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శ్రీ రామానుజాచార్య స్మార‌క త‌పాలా బిళ్ల ఆవిష్కరణ సంద‌ర్భంగా ప్ర‌ధాన‌ మంత్రి ప్ర‌సంగ‌ పాఠం

శ్రీ రామానుజాచార్య స్మార‌క త‌పాలా బిళ్ల ఆవిష్కరణ సంద‌ర్భంగా ప్ర‌ధాన‌ మంత్రి ప్ర‌సంగ‌ పాఠం


గొప్ప సంఘ సంస్క‌ర్త, సాధువు శ్రీ రామానుజాచార్య వెయ్యవ జ‌యంతి సంద‌ర్భంగా ఆయన స్మారక త‌పాలా బిళ్ల‌ను ఆవిష్కరిస్తున్నందుకు నేను ఎంతో సంతోషిస్తున్నాను. ఇది నాకు ద‌క్కిన విశేష అవ‌కాశంగా భావిస్తున్నాను.

సమ్మిళిత స‌మాజం, మ‌తం, మరియు స‌మ‌ భావ‌న సిద్ధాంతాలే శ్రీ రామానుజాచార్య జీవితంం యొక్క ప్రధాన సందేశం. ఏది ఏమైనా, ఏదెలా ఉన్నా అది దైవ‌ భావ‌నే అని శ్రీ రామానుజాచార్య విశ్వ‌సించారు. మానవులలో దైవం, దైవంలో మనుషులు వ్యక్తం అవుతున్నారని ఆయన గమనించారు. భక్తులందరిని ఆయన సమానులుగా దర్శించగ‌లిగారు.

కులాధిప‌త్యం, పెత్తందారీత‌నాల‌ను మ‌తం, స‌మాజంలో స‌మ‌గ్ర‌మే అని అంద‌రూ గుర్తించినప్పుడు.. ప్ర‌తి ఒక్క‌రూ కులప‌ర‌మైన హెచ్చుత‌గ్గుల‌ను ఆమోదించిన‌ప్పుడు.. ఆ భావ‌న‌ల‌పై శ్రీ రామానుజాచార్య త‌న వ్య‌క్తిగ‌త‌ జీవితంతో పాటు ఆధ్యాత్మిక బోధ‌న‌ల ద్వారా తిరుగుబాటు చేశారు.

संतश्री रामानुजाचार्य ने सिर्फ उपदेश नहीं दिए, सिर्फ नई राह नहीं दिखाई, बल्कि अपनी जिंदगी में उन्होंने अपने वचनों को जीकर भी दिखाया। हमारे शास्त्रों में जो लिखा है- मनसा वाचा कर्मणा, इस सूत्र पर चलते हुए उन्होंने अपनी जिंदगी को ही अपना उपदेश बना दिया।जो उनके मन में था, वही वचन में था और वही कर्म में भी दिखा।

संतश्री रामानुजाचार्य में एक विशेषता थी कि जब भी विवाद होता था, तो वो स्थिति को और बिगड़ने से रोकने और समस्या को सुलझाने का प्रयास करते थे। ईश्वर को समझने के लिए अद्वैतवाद और द्वैतवाद से अलग, बीच का एक मार्ग “विशिष्टाद्वैत” भी इसी की कड़ी था।
हर वो परंपरा, जो समाज में भेद पैदा करती हो, उसे बांटती हो, संतश्री रामानुजाचार्य उसके खिलाफ थे। वो उस व्यवस्था को तोड़ने के लिए, उसे बदलने के लिए अपनी पूरी शक्ति से प्रयास करते थे।
आपको ज्ञात होगा कि किस तरह मुक्ति और मोक्ष के जिस मंत्र को उन्हें सार्वजनिक करने से मना किया गया था, वो उन्होंने एक सभा बुलाकर, हर वर्ग, हर स्तर के लोगों के सामने उच्चारित कर दिया था। उन्होंने कहा था कि जिस मंत्र से परेशानियों से मुक्ति मिलती है, वो किसी एक के पास क्यों रहे, उसका पता हर गरीब को लगना चाहिए। संतश्री रामानुजाचार्य का हृदय इतना विशाल, इतना परोपकारी था।

శ్రీ రామానుజాచార్య హృద‌య‌గ‌త భావ‌న‌ల‌నే స్వామి వివేకానంద సూటిగా వెలిబుచ్చారు. అణ‌గారిన వ‌ర్గాల కోసం ఆ విశాల హృద‌యం ఆవేద‌న చెందింది. పీడితుల వేద‌న‌కు కార‌ణం క‌ర్మ‌ఫ‌ల‌మే అనే భావ‌నకు ఆమోదం ల‌భించిన ఆ కాలంలో వారి సంక్షేమం కోసం ప‌రిత‌పించింది. శ్రీ రామానుజాచార్య త‌న కాలంలో తిష్ఠ‌ వేసుకు కూర్చున్న ఆ భావ‌న‌ల‌ను ఛేదించారు. ఆయ‌న ఆలోచ‌న‌ల సరళి ఆయన యుగం క‌న్నా ముందు కాలానికి చెందినవిగా ఉండేది.

శ్రీ రామానుజాచార్య‌ అనేక కోణాల్లో స‌హ‌స్రాబ్ది సాధువుగా చెప్పుకోవచ్చును. పీడితుల అవ్య‌క్త ఆకాంక్ష‌ల‌ను ఆయ‌న దార్శ‌నిక‌త వెయ్యేళ్ల ముందుగానే గుర్తించింది. సామాజికంగా వెలి వేయబడిన వారిని, కులాధిప‌త్యం కింద న‌లిగిపోతున్న‌ వారిని, దివ్యాంగుల‌ను స‌మాజంలో స‌మ‌గ్ర భాగం చేయాల్సిన అవ‌సరాన్ని ఆయ‌న గుర్తించారు. త‌ద్వారా మ‌తాన్నే గాక మొత్తం స‌మాజాన్ని సంపూర్ణం, స‌మ‌గ్రం చేయ‌ద‌లిచారు.

गरीबों के लिए, शोषितों के लिए, वंचितों के लिए, दलितों के लिए वो साक्षात भगवान बनकर आए। एक समय था तिरुचिरापल्लीमेंश्रीरंगम मंदिर का पूरा प्रशासन एक विशेष जाति के ही पास था। इसलिए उन्होंने मंदिर का पूरा administrative system ही बदल दिया था। उन्होंने अलग-अलग जातियों के लोगों को मंदिर के administration में शामिल किया। महिलाओं को भी कई जिम्मेदारी सौंपी गई। मंदिर को उन्होंने नागरिक कल्याण और जनसेवा का केंद्र बनाया। उन्होंने मंदिर को एक ऐसे institution में बदल दिया जहां गरीबों को भोजन, दवाइयां, कपड़े और रहने के लिए जगह दी जाती थी। उनके सुधारवादी आदर्श आज भी कई मंदिरों में “रामानुज-कुट” के तौर पर नजर आते हैं।
ऐसे कितने ही उदाहरण आपको उनकी जिंदगी में मिलेंगे। caste- system को चुनौती देते हुए उन्होंने अपना गुरु भी ऐसे व्यक्ति को बनाया जिसे जाति की वजह से तब का समाज गुरु बनने योग्य नहीं मानता था। उन्होंने आदिवासियों तक पहुंच कर उन्हें जागरूक किया, उनकी सामाजिक जिंदगी में सुधार के लिए काम किया।
इसलिए हर धर्म के लोगों ने, हर वर्ग के लोगों ने संतश्री रामानुजाचार्य की उपस्थिति और संदेशों से प्रेरणा पाई। मेलकोट के मंदिर में भगवान की आराधना करती मुस्लिम राजकुमारी बीबी नचियार की मूर्ति इसकी गवाह है। देश के बहुत कम लोगों को पता होगा कि आज से हजार वर्ष पूर्व दिल्ली के सुल्तान की बेटी बीबी नचियार की मूर्ति संत श्री रामानुजाचार्य ने ही मंदिर में स्थापित कराई थी।
आप अंदाजा लगा सकते हैं कि उस समय सामाजिक समरसता और सद्भाव का कितना बड़ा संदेश संतश्री रामानुजाचार्य ने अपने इस कार्य के माध्यम से दिया था। आज भी बीबी नचियार की मूर्ति पर श्रद्धा सुमन अर्पित किए जाते हैं। बीबी नचियार की मूर्ति की तरह ही संतश्री रामानुजाचार्य का संदेश आज भी उतना ही प्रासंगिक है।

संतश्री रामानुजाचार्य के जीवन और शिक्षा से भारतीय समाज का उदार, बहुलतावादी और सहिष्णु स्वरूप और मजबूत हुआ। बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर ने भी उनके बारे मेंअपनी मैगजीन बहिष्कृत भारत में 3 जून, 1927 को एक एडिटोरियल लिखा था। 90 वर्ष पहले लिखे इस एडिटोरियल को पढ़ने पर संत श्री रामानुजाचार्य के प्रेरणामयी जीवन की कितनी ही बातें, मन-मंदिर को छू जाती हैं।
बाबा साहेब ने लिखा था-
“हिंदू धर्म में समता की दिशा में यदि किसी ने महत्वपूर्ण कार्य किए, और उन्हें लागू करने का प्रयास किया, तो वो संतश्री रामानुजाचार्य ने ही किया। उन्होंने कांचीपूर्ण नाम के एक गैर ब्राह्मण को अपना गुरु बनाया। जब गुरु को भोजन कराने के बाद उनकी पत्नी ने घर को शुद्ध किया तो संत श्री रामानुजाचार्य ने इसका विरोध किया”।
एक दलित गुरु के घर में आने के बाद अपने ही घर की शुद्धि होते देख संतश्री रामानुजाचार्य बहुत दुःखी भी हुए और उन्हें बहुत गुस्सा भी आया था। जिस कुरीति को मिटाने के लिए वो अथक परिश्रम कर रहे थे, वो उनके घर से ही नहीं दूर हो सकी थी। इसके बाद ही उन्होंने संन्यास ले लिया और फिर अपना पूरा जीवन समाज हित में लगा दिया। मैं फिर कहूंगा। उन्होंने सिर्फ उपदेश नहीं दिया बल्कि अपने कार्यों से उन उपदेशों को जीकर भी दिखाया।

उस दौर में समाज की जिस तरह की सोच थी, उसमेंसंतश्री रामानुजाचार्य महिलाओं को कैसे सशक्त करते थे, इस बारे में भी बाबा साहेब ने अपने editorial में बताया है।

उन्होंने लिखा है-
तिरुवल्ली में एक दलित महिला के साथ एक शास्त्रार्थ के बाद उन्होंने उस महिला से कहा कि आप मुझसे कहीं ज्यादा ज्ञानी हैं। इसके बाद संत श्री रामानुजाचार्य ने उस महिला को दीक्षा दी और उसकी मूर्ति बनाकर मंदिर में भी स्थापित कराई। उन्होंने धनुर्दास नाम के एक अस्पृश्य को अपना शिष्य बनाया। इसी शिष्य की मदद से वो नदी में स्नान करने के बाद वापस आते थे”।

विनम्रता और विद्रोही प्रवृति का ये एक अद्भुत समागम था। जिस व्यक्ति के घर में दलित गुरू के प्रवेश के बाद उसे शुद्ध किया गया हो, वो व्यक्ति नदी के स्नान के बाद एक दलित का ही सहारा लेकर मंदिर तक जाता था। जिस दौर में दलित महिलाओं को खुलकर बोलने की भी स्वतंत्रता ना हो, उस दौर में उन्होंने एक दलित महिला से शास्त्रार्थ में हारने पर मंदिर में उसकी मूर्ति भी लगवाई।
बाबा साहेब इसलिए संत श्री रामानुजाचार्य से बहुत प्रभावित थे। जो लोग बाबा साहेब को पढ़ते रहे हैं, वो पाएंगे कि उनके विचारों और जिंदगी पर संत रामानुजाचार्य का कितना बड़ा प्रभाव था।
मुझे लगता है कि ऐसे कम ही व्यक्ति होंगे जिनके जीवन की प्रेरणा का विस्तार एक हजार वर्ष तक ऐसे अलग-अलग कालखंडों में हुआ हो। संतश्री रामानुजाचार्य के विचारों से ही प्रभावित होकर एक हजार वर्ष के इस लंबे दौर में कई सामाजिक आंदोलनों ने जन्म लिया। उनके सरल संदेशों ने ही भक्ति आंदोलन का स्वरूप तय किया।

महाराष्ट्र में वारकरी संप्रदाय, राजस्थान और गुजरात में वल्लभ संप्रदाय, मध्य भारत और बंगाल में चैतन्य संप्रदाय और असम में शंकर देव ने उनके विचारों को जन-जन तक पहुंचाया।

संत श्री रामानुजाचार्य के वचनों से ही प्रभावित होकर गुजराती आदिकवि और संत नरसी मेहता ने कहा था- वैष्णव जन तो तेने कहिए, जे पीर पराई जाणे रे !!! गरीब का दर्द समझने का ये भाव संतश्री रामानुजाचार्य की ही देन है।

इन एक हजार वर्षों में संतश्री रामानुजाचार्य के संदेशों ने देश के लाखों-करोड़ों लोगों को सामाजिक समरसता, सामाजिक सद्भाव और सामाजिक जिम्मेदारियों का ऐहसास कराया है। उन्होंने हमें समझाया है कि कट्टरता और कर्मकांड में डूबे रहने को ही धर्म मानना कायरों का, अज्ञानियों का, अंध-विश्वासियों का, तर्कहीनों का रास्ता है। इसलिए हर वो व्यक्ति जो जातिभेद, विषमता और हिंसा के विरुद्ध खड़ा होता है वो गुरु नानक हो जाता है, कबीर हो जाता है।
जो समय की कसौटी पर खरा नहीं उतरता, वो कितना भी प्राचीन क्यों ना हो,उसमें सुधार करना ही हमारी संस्कृति है। इसलिए समय-समय पर हमारे देश में ऐसी महान आत्माएं सामने आईं जिन्होंने अपनी व्यक्तिगत प्रतिष्ठा को दांव पर लगाकर, विष पीकर, हर तरह का रिस्क उठाकर, समाज को सुधारने के लिए काम किया। जिन्होंने सैकड़ों वर्षों से चली आ रही व्यवस्था की बुराइयों को खत्म करने का प्रयास किया। जिन्होंने समाज में परिवर्तन के लिए, भारत की चेतना को बचाने के लिए, उसे जगाने के लिए काम किया।

संतश्री रामानुजाचार्य जैसे ऋषियों का तप है, इनके द्वारा शुरू किए और
अविरलचलते सामाजिक जागरण के पुण्य प्रवाह का प्रताप है कि –

हमारी श्रृद्धा हमेशा हमारे गौरवशाली इतिहास पर अडिग रही
हमारा आचरण, रीति-रिवाज, परम्पराएं समयानुकूल बनते गए
हमारी सोच हमेशा समय के परे रही

इसी कारण हमारा समाज युगयुग से सतत उर्ध्वगामी रहा। यही वो अमरतत्व है जिससे हमारी संस्कृति चिरपुरातन होते हुए भी नित्यनूतन बनी रही। इन्हीं पुण्य आत्माओं के अमृत मंथन की वजह से हम गर्व से कहते हैं-

“कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी, सदियों रहा है दुश्मन दौरे-जमां हमारा”
दुनिया का नक्शा बदल गया, बड़े-बड़े देश खत्म हो गए, लेकिन हमारा भारत, हमारा हिंदुस्तान, सबका साथ-सबका विकास के भारत मंत्र के साथ आगे बढ़ रहा है।
आज मुझे खुशी है कि संत श्री रामानुजाचार्य के जन्म के सहस्राब्दी वर्ष में कई संस्थाएं मिलकर उनकी शिक्षा और संदेशों को घर-घर तक पहुंचा रही है। मुझे उम्मीद है कि इन शिक्षाओं और संदेशों को देश के वर्तमान से भी जोड़ा जा रहा होगा।

పేద‌ల అవ‌స‌రాల‌ను తీర్చ‌డంలో శ్రీ రామానుజాచార్య సామాజిక బాధ్య‌త‌ను అనుసంధానించిన సంగ‌తి మీకంద‌రికీ తెలిసిందే. మేల్కాట్ స‌మీపంలోని తొండ‌నూరులో 200 ఎక‌రాలకు పైగా విస్తీర్ణంలో కృత్రిమ స‌ర‌స్సును ఆయ‌న త‌వ్వించ‌డం ఇందుకు నిద‌ర్శ‌నం. ప్ర‌జా సంక్షేమం కోసం స్వామి శ్రీ రామానుజాచార్య ప‌డిన త‌ప‌న‌కు స‌జీవ ఉదాహ‌ర‌ణ‌గా ఈ స‌ర‌స్సు ఇంకా నిలిచే ఉంది. నేటికీ 70కిపైగా గ్రామాల తాగునీటి అవసరాలను, సాగునీటి అవ‌స‌రాల‌ను తీరుస్తోంది.

आज जब हर तरफ पानी को लेकर इतनी चिंता है, तब एक हजार वर्ष पूर्व बनाई गई ये झील इस बात का जवाब है कि जल संरक्षण क्यों आवश्यक है। एक हजार वर्ष में ना जाने कितनी पीढ़ियों को उस झील से आशीर्वाद मिला है, जीवन मिला है। ये झील इस बात का भी सबूत है कि जल संरक्षण को लेकर हम आज जो भी तैयारी करते हैं, उसका फायदा आने वाले सैकड़ों वर्षों तक लोगों को होता है। इसलिए आज नदियों की सफाई, झीलों की सफाई, लाखों तालाब खुदवाना, वर्तमान के साथ ही भविष्य की तैयारी का भी हिस्सा है।

इस झील की चर्चा करते हुए मैं आप सभी से ये अपील करूंगा कि संत श्री रामानुजाचार्य के कार्यों को लोगों तक पहुंचाते समय, जल संरक्षण को लेकर आज क्या कुछ किया जा सकता है, उस बारे में भी लोगों को सक्रिय करें।

ఈ సంద‌ర్భంగా ఇక్క‌డ ఉన్న వివిధ సంస్థ‌ల‌కు నేను ఒక విజ్ఞ‌ప్తి చేయ‌ద‌లచాను. భార‌త‌దేశం 2022 నాటికి 75వ స్వాతంత్ర్య దిన సంవ‌త్స‌రంలో అడుగుపెడుతున్న నేప‌థ్యంలో మ‌న‌ల్ని వెనుకకు నెడుతున్న బ‌ల‌హీన‌త‌ల‌ను, ఆటంకాల‌ను అధిగ‌మించే దిశ‌గా కృషి చేస్తున్నాం. ఇందుకు అనుగుణంగా మీరు కూడా సుస్ప‌ష్ట‌మైన, ప‌రిగ‌ణ‌న‌లోకి తీసుకోద‌గిన నిర్దిష్ట ల‌క్ష్యాల‌ను నిర్దేశించుకొని ముంద‌డుగు వేయాల‌ని కోరుతున్నాను.

आप तय कर सकते हैं की दस हजार गांवों तक जाएंगे, या 50 हजार गांवों तक जाएंगे।

मेरी अपील है कि संतश्री रामानुजाचार्य के राष्ट्रधर्म की चेतना जगाने वाले वचनों के साथ-साथ वर्तमान चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए मानव कल्याण, नारी कल्याण, गरीब कल्याण के बारे में भी लोगों कोऔरसक्रिय किया जाए।
इन्हीं शब्दों के साथ मैं अपनी बात खत्म करता हूं। मैं एक बार फिर आप सभी का आभार व्यक्त करता हूं कि आपने मुझे संतश्री रामानुजाचार्य पर स्मारक डाक टिकट जारी करने का अवसर दिया।

మీకంద‌రికీ అనేకానేక ధ‌న్య‌వాదాలు!!!

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