प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने हिंदुस्तान स्टील वर्क्स कंस्ट्रक्शन लिमिटेड (एचएससीएल) के वित्तीय पुनर्गठन को अपनी मंजूरी दे दी है। इसके साथ ही कैबिनेट ने राष्ट्रीय भवन निर्माण निगम लिमिटेड (एनबीसीसी) द्वारा एचएससीएल का अधिग्रहण किए जाने को भी अपनी स्वीकृति दे दी है। एनबीसीसी शहरी विकास मंत्रालय के अधीन एक केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम है।
एचएससीएल की मौजूदा चुकता इक्विटी पूंजी 117.1 करोड़ रुपये है। प्रस्ताव के तहत, भारत सरकार के गैर योजना ऋण एवं योजना ऋण के साथ-साथ उन पर संचित ब्याज और 1,502.2 करोड़ रुपये के बकाया गारंटी शुल्क को इक्विटी में परिवर्तित किया जाएगा और कंपनी की इक्विटी पूंजी को बढ़ाकर उसी स्तर पर पहुंचा दिया जाएगा। कंपनी की चुकता इक्विटी पूंजी 1,619.3 करोड़ रुपये हो जाएगी। इसके एवज में 31 मार्च, 2015 तक के 1585 करोड़ रुपये के संचित घाटे को बट्टे खाते में डाल दिया जाएगा। संचित घाटे को बट्टे खाते में डाल देने के बाद एचएससीएल की इक्विटी और चुकता पूंजी 34.3 करोड़ रुपये हो जाएगी। एनबीसीसी 35.7 करोड़ रुपये की राशिएचएससीएल में इक्विटी के रूप में डालेगी। एचएससीएल इसके बाद एनबीसीसी की सहायक कंपनी बन जाएगी और इसमें एनबीसीसी की इक्विटी अंशभागिता 51 फीसदी होगी।
एचएससीएल में भारत सरकार की हिस्सेदारी घटकर 49 फीसदी रह जाएगी। एचएससीएल की इक्विटी और चुकता पूंजी 70 करोड़ रुपये हो जाएगी।
एनबीसीसी एवं एचएससीएल भारत सरकार के उद्यम हैं और उनकी कारोबारी गतिविधियां एक जैसी हैं। इस निर्णय से एनबीसीसी को अपना कारोबारी स्तर बढ़ाने में मदद मिलेगी और इसके साथ ही श्रमबल का बेहतर उपयोग करने में भी सहायता मिलेगी। एनबीसीसी और एचएससीएल एक-दूसरे के संसाधनों एवं विशेषज्ञता से लाभ उठाएंगी। एचएससीएल परियोजनाओं के साथ-साथ मिले आदेशों के निष्पादन की अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में सक्षम हो जाएगी।
भारत सरकार वाणिज्यिक बैंकों से लिए गए सावधिऋणों को निपटाने के लिए 200 करोड़ रुपये की एकबारगी सहायता प्रदान करेगी। यह 110 करोड़ रुपये (लगभग) की आकस्मिक देनदारी का बोझ भी वहन करेगी, जैसा कि वीआरएस देनदारियों के लिए मुआवजे के मद में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्णय लिया गया। इसके अलावा, भारत सरकार वित्त वर्ष 2015-16 के लिए बैंक ऋणों पर तकरीबन 44 करोड़ रुपये के बकाया ब्याज (31 मार्च 2016 तक) के साथ-साथ एनबीसीसी द्वारा एचएससीएल के अधिग्रहण की तारीख तक की ब्याज राशि का भी भुगतान करेगी।
पृष्ठभूमि:
एचएससीएल को आधुनिक एकीकृत इस्पात संयंत्रों के निर्माण के लिए वर्ष 1964 में स्थापित किया गया था। बाद के वर्षों में कंपनी ने अन्य सिविल बुनियादी ढांचागत निर्माण परियोजनाओं के क्षेत्र में भी अपना विविधीकरण कर लिया है। एचएससीएल वर्ष 1978-79 से ही घाटे में रहने लगी, जिसका मुख्य कारण कई सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों के बड़े श्रमबल का समावेश करना और निजी कंपनियों में कर्मचारियों की संख्या का वर्ष 1970 के 4,100 से बढ़कर वर्ष 1979 में 26,537 के स्तर पर पहुंच जाना था। भारत सरकार द्वारा वर्ष 1999 में मंजूर एचएससीएल के पुनरुद्धार पैकेज के साथ-साथ बाद में भी कंपनी के वित्तीय पुनर्गठन के लिए किए गए प्रयास सफल नहीं हो पाए थे।
सचिवों की समिति ने जुलाई, 2015 में सिफारिश की थी कि इस्पात मंत्रालय संबंधित क्षेत्र के ही किसी और सीपीएसई द्वारा एचएससीएल के विलय/अधिग्रहण की संभावना का पता लगा सकता है। एचएससीएल की आगे की राह पर एक कागज तैयार करने के लिए सचिवों का एक समूह (जीओएस) गठित किया गया था। जीओएस की सिफारिशों और फिर इसके बाद आम सहमति होने पर एचएससीएल के वित्तीय पुनर्गठन और एनबीसीसी द्वारा इसका अधिग्रहण किए जाने पर एक कैबिनेट नोट तैयार किया गया था।