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सार्क सदस्य देशों के लिए मुद्रा विनियमन व्यवस्थापन की रूपरेखा वाले प्रस्ताव को संशोधनों के साथ 14 नवम्बर 2017 तक दो वर्ष का विस्तार मिला, आवश्यकता होने पर और विस्तार दिया जा सकता है


प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी की अध्यक्षता में केन्‍द्रीय कैबिनेट ने ‘सार्क सदस्य देशों के लिए मुद्रा विनियमन व्यवस्थापन की रूपरेखा वाले प्रस्ताव’ को संशोधनों समेत 14 नवम्बर 2017 तक दो वर्ष का विस्तार देने की मंजूरी दे दी। आवश्यकता महसूस होने पर वित्त मंत्री इस प्रस्ताव को और अधिक विस्तार दे सकते हैं।

इस सुविधा के अंतर्गत रिज़र्व बैंक ऑफ इण्डिया की ओर से प्रत्येक सार्क सदस्य देशों (अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, मॉलदीव, नेपाल, पाकिस्तान एवं श्रीलंका) को उनकी आयात आवश्यकता के आधार पर मुद्रा विनियमन का प्रस्ताव दिया गया है जो डॉलर, यूरो अथवा भारतीय रुपये में 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक नहीं होना चाहिए।

9 अक्तूबर 2013 को वाशिंगटन में सार्क के वित्त समूह की 27 वीं बैठक में सार्क सदस्य देशों के सेंट्रल बैंक गवर्नर्स ने फ्रेमवर्क में कुछ संशोधनों को अनुमति प्रदान दी थी। इस मंजूरी का आधार फ्रेमवर्क के परिचालन के दौरान हासिल अनुभव रहे थे, साथ ही मंजूरी के पीछे मंशा इसके अनुच्छेदों में स्पष्टता लाने की थी।

कैबिनेट की स्वीकृति के बाद आरबीआई इसके परिचालन पर सार्क देशों के सेंट्रल बैंकों से क्रमवार द्विपक्षीय बातचीत करेगा। सरकार की पूर्व अनुमति के पश्चात इन द्विपक्षीय अनुबंधों पर आरबीआई के हस्ताक्षर होंगे। फ्रेमवर्क में किसी संशोधन से पूर्व वित्त मंत्री की पूर्व अनुमति अनिवार्य होगी।

सार्क सदस्य देशों के लिए मुद्रा विनियमन व्यवस्थापन की रूपरेखा वाले फ्रेमवर्क ने सार्क सदस्य देशों के साथ भारत के संबंधों को प्रगाढ़ बनाया है। यह व्यवस्थापन सार्क देशों में भारत की विश्वसनीयता एवं कद बढ़ाने के अलावा क्षेत्र में वित्तीय स्थायित्व को बढ़ावा देगा। सार्क देशों में मुद्रा विनियमन की सुविधा का विस्तार क्षेत्रीय एकीकरण और आपसी निर्भरता को मज़बूती देगा और क्षेत्र में भारत के आर्थिक प्रभाव में बढ़ोतरी करेगा।

फ्रेमवर्क व्यवस्थापन की वैधता में बढ़ोतरी के कोई वित्तीय निहितार्थ नहीं हैं। यदि कोई भी द्विपक्षीय विनियमन व्यवस्थापन हस्ताक्षरित होता है तो किसी भी पक्ष/ पक्षों के पीछे हटने पर आरबीआई की आरक्षित विदेशी मुद्रा अधिकतम 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक अस्थाई तौर पर व्यय हो जाएगी। कर्ज़ लेने वाला देश डॉलर, यूरो या भारतीय रुपये में भेज देगा, लेकिन घरेलू मुद्रा में कर्ज़ देने पर कोई ब्याज नहीं मिलेगा।

पृष्ठभूमि:-

सार्क सदस्य देशों के लिए मुद्रा विनियमन व्यवस्थापन की रूपरेखा वाला प्रस्ताव भारत सरकार द्वारा 1 मार्च 2012 को मंजूर किया गया था। फ्रेमवर्क को अल्पावधि वाली विदेशी मुद्रा आवश्यकताओं के निधियन की मंशा से लाया गया था।