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सांसद आदर्श ग्राम जयापुर वाराणसी के समारोह मे प्रधानमंत्री का भाषण


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उत्‍तर प्रदेश सरकार के मंत्री, श्रीमान अहमद हसन जी उत्‍तर प्रदेश के मंत्री और इसी इलाके के प्रतिनिधि श्रीमान सुरेंद्र सिंह जी, हमारे एमएलसी श्रीमान केदारनाथ श्रीजी, ग्राम के प्रधान, आदरणीय बहन दुर्गा देवी जी, श्री अरविन्‍द जी और विशाल संख्‍या में पधारे हुए जयापुर के प्‍यारे भाईयों और बहनों,

भारत सरकार ने एक सांसद आदर्श ग्राम योजना की कल्‍पना की है। अब मुझे भी एक सांसद के नाते इस आदर्श ग्राम योजना की जिम्‍मेवारी लेनी थी। मैं पिछले दिनों अखबार में भांति-भांति की कल्‍पना कथाएं पढ़ रहा था। कोई कहता है जयापुर इस कारण से लिया है, कोई कहता है जयापुर उस कारण से लिया है, किसी ने कहा जयापुर ऐसे लिया है, जयापुर में ऐसा है, जयापुर में वैसा है, पता नहीं इतनी कथाएं मैं पिछले दिनों पढ़ रहा हूं कि मैं हैरान हूं, लेकिन इतना Fertile दिमाग लोगों का रहता है .. मैंने इस गांव में क्‍यों आना पसंद किया, जो मैं पढ़ रहा हूं, ऐसी किसी बात का मुझे पता नहीं है। मैंने पसंद किया उसका एक बहुत छोटा सा कारण है और छोटा कारण यह है कि जब भारतीय जनता पार्टी ने मुझे बनारस से पार्लियामेंट का चुनाव लड़ने के लिए घोषित किया, उसके कुछ ही समय के बाद मुझे जानकारी मिली की जयापुर में आग लगने के कारण 5 लोगों की मृत्‍यु हो गई और बहुत बड़ा हादसा हुआ। बनारस लोकसभा क्षेत्र में किसी एक गांव का सबसे पहले मैंने नाम सुना तो जयापुर का सुना था। वो भी एक संकट की घड़ी में सुना था। मैंने.. मैं एमपी तो था नहीं, सरकार भी हमारी यहां नहीं थी लेकिन मैंने सरकारी अधिकारियों को फोन किए, हमारे कार्यकर्ताओं को फोन किए और सब लोग यहां मदद के लिए पहुंचे थे। तो ये एक कारण था, जिसके कारण मेरे दिल दिमाग में जयापुर ने जगह ले ली थी। जिस संबंध का प्रारंभ संकट की घड़ी से होता है, वो संबंध चिरंजीवी बन जाता है। यही एक छोटा सा कारण है कि मेरा जयापुर से जुड़ने का एक सौभाग्‍य बन गया। बाकि जिन्‍होंने जितनी कथा चलाई है, सब गलत है, सब बेकार है। मैं खुद उन कथाओं को नहीं जानता हूं।

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अब कुछ लोगों ने लिखा कि प्रधानमंत्री ने एक गांव को गोद लिया है। ये सांसद आदर्श ग्राम योजना ऐसी है कि हकीकत में कोई सांसद गांव को गोद नहीं ले रहा है, गांव सांसद को गोद ले रहा है। क्‍योंकि हम सांसद बन जाएं, हम मंत्री बन जाएं, मुख्‍यमंत्री बन जाएं, प्रधानमंत्री बन जाएं, हम कहीं पर भी पहु्ंचें लेकिन गांव के लोगों से जो सीखने को मिलता है वो कहीं और नहीं मिलता। अगर मुझे अच्‍छा जन-प्रतिनिधि बनना है, अगर मुझे अच्‍छे जन-प्रतिनिधि रूप में लोगों को समझना है, समस्‍याओं को समझना है, कुछ सीखना है तो मैं बाबुओं के बीच बैठ करके नहीं सीख सकता, अफसरों के बीच बैठ करके नहीं सीख सकता। ये मुझे शिक्षा-‍दीक्षा मिल सकती है गांव के अनुभवी लोगों के पास। उनके पास स्‍कूल-कॉलेज की डिग्री हो या न हो, लेकिन उनका अनुभव, उनका तर्जुबा इतना होता है.. समस्‍याओं के बीच रास्‍ते खोजने को जो उनका तरीका होता है, उनकी कल्‍पना शक्ति को समझने का जो अवसर मिलता है वो जन-प्रतिनिधियों के लिए भी एक उत्‍तम शिक्षा का अवसर होता है, इसलिए जयापुर को मैंने गोद नहीं लिया है, मैं जयापुर को प्रार्थना करने आया हूं कि आप अपने सांसद को गोद लीजिए और आपके सांसद को सिखाईये कि भई गांव की समस्‍याओं का समाधान कैसे होता है। आजादी के इतने बाद भी, कितने वर्ष बीत गए हमारे गांव की हालत ऐसी क्‍यों रही? वो सही में रास्‍ता बताएगा की देखिए आपने दिल्‍ली में, लखनऊ में बैठ करके जो योजनाएं बनाई हैं, 60 साल तक बनाई हैं, अरबों-खरबों रुपया खर्च किया है अब कुछ हमारी सुनो और जो हम कहें वो करो।

ये एक मैंने रास्‍ता उल्‍टा करने का प्रयास किया है और मेरा विश्‍वास है कि 60 साल तक हम एक ही बात को ले करके चले.. क्‍योंकि जब आजादी की लड़ाई लड़ते थे, तबसे एक बात हमारे मन में एक बात बैठ गई कि एक बार आजादी आ जाएगी, बस फिर कुछ नहीं करना है फिर सब अपने आप हो जाएगा, इसी इंतजार में रहे। फिर समय आया, हमें लगने लगा कि सरकार ये नहीं करती, सरकार वो नहीं करती, बाबू ये नहीं करता, टीचर वो नहीं करता, क्‍यों नहीं करता, तो समाज और सरकार अलग-अलग होने लग गईं। सरकार एक जगह पे, समाज दूसरी जगह पे। एक बहुत बड़ी खाई हो गई। इसका मतलब ये हुआ कि 60 साल तक हमने जो तौर-तरीके अपनाये, जो रास्‍ते अपनाएं वे ऐसे रास्‍ते हैं, जिनमें कुछ न कुछ कमी नजर आती है। सब कुछ गलत नहीं होगा, सब कुछ बुरा भी नहीं होगा, लेकिन कुछ न कुछ कमी नजर आती है। क्‍या इस कमी को हम भर सकते है? और ये कमी इस बात की है कि ये देश हमारा है, ये गांव हमारा है, ये मोहल्‍ला हमारा है, क्‍या हमें अपना गांव, अपना मोहल्‍ला, सबने मिल करके अच्‍छा बनाना चाहिए कि नहीं बनाना चाहिए? कहीं एक गड्ढा हो गया हो, तो हम किराया खर्च के लखनऊ जाएंगे, लखनऊ जा करके मेमोरेंडम देगें कि हमारे गांव का गड्ढा भर दो। उसमें हम सैकड़ों रुपया खर्च कर देंगे लेकिन मिल करके तय करें कि गड्ढा भर देना है तो गड्ढा भर जाता है।

इसलिए आदर्श ग्राम योजना.. मैं देख रहा हूं कि कुछ गांवों में स्‍पर्धा चल पड़ी है कि हमारा गांव आदर्श गांव बने, सांसद हमारा गांव ले। ये गलती इसलिए हो रही है कि लोगों के मन ये भ्रम है कि सांसद अगर ग्राम ले लेगा, तो उसके कारण पैसे आने वाले हैं। इस योजना में पैसे है ही नहीं। ये योजना पैसों वाली है ही नहीं क्‍योंकि पैसे हो तो फिर कोई खाने वाला भी निकल आएगा न। ये योजना ऐसी है कि सरकार की इतनी योजनाएं चल रही है, इतने रुपये खर्च हो रहे है, गांव के जीवन में बदलाव क्‍यों नहीं आ रहा, क्‍या कारण है?

मैने अभी, भारत सरकार के सबसे बड़े जो बाबू हैं, जो देश का एक प्रकार से कारोबार चलाते हैं, उनको दिवाली के निमित्‍त मेरे यहां चाय के लिए बुलाया था। सब बहुत बड़े-बड़े अफसर हैं, बहुत बड़े-बड़े बाबू हैं उनको मिलना भी सामान्‍य नागरिक के लिए बहुत मुश्किल होता है, इतने बड़े लोग हैं। मैंने उनको चाय पे बुलाया था, मैंने उनको एक काम कहा, मैंने कहा कि देखिए आप इतने बड़े अफसर बन गए हैं, लेकिन जब पहली बार आईएएस अफसर बन करके आए होंगे तो पहली नौकरी जहां लगी होगी और जहां आपने कम से कम सालभर काम किया होगा, मैंने कहा कि आने वाले दिनों में आप लोग जहां आपने नौकरी की शुरुआत की थी उस गांव में जाओ और अपने बच्‍चों के साथ जाओ, परिवार को ले करके जाओ, उनको दिखाओ कि आप जब छोटे थे, नए-नए आए थे, शादी नहीं हुई थी, नौकरी की शुरुआत थी, कहाँ रहते थे, किस दफ्तर में बैठते थे, कैसी गाड़ी में घुमते थे, उस समय कौन पहचान वाले लोग थे जब आप परिचय कराओ परिवारजनों से और फिर रात को वहां रूको। कम से कम तीन दिन रूको और रात को सोते समय सोचों कि 30 साल पहले, 25 साल पहले यहां पर आपने नौकरी की होगी, ये गांव आप जैसा छोड़ गए थे, उसमें कुछ बदलाव आया है क्‍या 30-40 साल में? आप तो यहां से यहां पहुंच गए, लेकिन गांव वहां का वहां रहा गया। आप खुद जा करके देखिए। मैंने उनको कहा है कि खुद जा करके देखिए और अपने परिवार को भी दिखाइए मैं एक ऐसी जागृति लाना चाहता हूं, ऐसी संवेदना पैदा करना चाहता हूं कि हम सोचें। हम भले ही कितने आगे चले जाएं, लेकिन जिन्‍होंने हमें आगे भेजा है, उनको तो कोई आगे ले जाने का प्रबंध हो और इसलिए ये मेरी कोशिश है कि हम लोगों के बीच जा करके, लोगों के साथ मिल करके, सरकार की वर्तमान जो योजनाएं हैं, उन योजनाओं को लागू करवा के अपनी आंखों के सामने वो सब देखें कि वे योजनाएं शत-प्रतिशत लागू होती हैं कि नहीं होती। देखिए, गांव में परिवर्तन आता है कि नहीं आता है। उन योजनाओं के लागू करने में कठिनाई आ रही है तो नीतिगत परिवर्तन लाने की जरूरत है तो वो परिवर्तन क्‍या लाना है। एक बार, एक गांव भी अगर सांसद इस प्रकार से बना देगा न, अपने आप और गांव को उस दिशा में काम करने के लिए सभी सरकार को, बाबुओं को आदत लग जाएगी।

मुझे एक ऐसा माहौल बनाना है कि जयापुर में भी, क्‍या जयापुर के लोग इतना फैसला कर सकते हैं? मैं कुछ दिनों से टीवी पर देख रहा हूं, जयापुर चमक रहा है टीवी पर। सरकारी लोग भी आए हैं, सफाई कर रहे थे, रास्‍ते ठीक कर रहे थे। क्‍यों? तो बोले मोदी जी आने वाले हैं और गांव वाले भी कहते हैं कि मोदी जी हर बार आ जाए तो अच्‍छा होगा, गांव साफ हो जाएगा। क्‍या ये सोच सही है क्‍या? क्‍या हम नहीं तय कर सकते कि चलो भई इस निमित्‍त अब गांव साफ हो गया है। अब मेरा जयापुर गांव का एक-एक नागरिक तय करें, हम हमारे गांव को गंदा नहीं होने देंगे। ये आदर्श ग्राम की शुरूआत हुई कि नहीं हुई? हुई कि नहीं हुई? करेंगे? आप मुझे बताईये मैं जयापुर के लोगों को पूंछू- कि हमारे इस गांव में सबसे पुराना, सबसे बड़ी उम्र का वृक्ष कौन सा है? कौन सा है जो सबसे पुराना है, सबसे बूढ़ा है? कभी सोचा है गांव वालों ने? नहीं सोचा होगा। क्‍या कभी स्‍कूल के मास्‍टर जी को लगा कि चलो भई हम स्‍कूल के सभी बच्‍चों को ले करके उस पेड़ के पास ले जाएं और उनको कहें कि देखिए ये पेड़ 150 साल पुराना है, 200 साल पुराना है और उसको कहें कि तुम्‍हारे दादा के दादा थे न, वो भी इस पर खेला करते थे, तुम्‍हारे परिवार के लोग थे न, वो भी यहां आते थे। उस पेड़ के साथ उसका लगाव होगा। आज किसी गांव को मालूम नहीं होगा कि हमारे गांव का सबसे पुरातन पेड़ कौन सा है। कौन सा वृक्ष सबसे पुरातन है। क्‍यों? हमें इन चीजों से लगाव नहीं है। हमारे गांव में 100 साल से ऊपर के लोग कितने हैं? 75 साल से ऊपर लोग कितने हैं? वयोवृद्ध लोग कितने हैं? क्‍या कभी हमारे गांव के बालकों को इन वृद्ध परिवारों के साथ बिठा करके उनके साथ कोई संवाद का कार्यक्रम किया क्‍या कि आप छोटे थे तब क्‍या करते थे? तब स्‍कूल था क्‍या? टीचर आता था क्‍या? तब खाना-पीना कैसे होता था? उस समय ठंड कैसी रहती थी? गर्मी कैसी थी? कभी किया है ये जो सहज रूप से एक गांव का अपनापन का माहौल होता है वो धीरे धीरे धीरे सिकुड़ता चला जा रहा है। क्‍या हम मिल करके इस माहौल को बदलने की शुरूआत कर सकते हैं क्‍या?

मुझे बताइए, ये अपना जयापुर गांव, उसका जन्‍मदिन क्‍या है? मालूम है क्‍या? नहीं है। कोई तो होगा इसका जन्‍मदिन। कभी न कभी तो इस गांव का जन्‍म हुआ होगा, अगर हमें मालूम नहीं है तो हम जरा खोजें, सरकारी दफ्तरों में कि भई ये जयापुर गांव सरकारी रिकॉर्ड पर कब आया, ढूंढें, अगर नहीं मिलता है तो हम सब गांव वाले मिल करके तय करें कि भई फलानी तारीख को हर वर्ष हम गांव का जन्‍मदिन मनाएंगे, हम अपना तो जन्‍मदिन मनाते हैं, कभी ये मेरा गांव, जहां मैं पैदा हुआ हूं मैं बड़ा हुआ हूं.. हम मिल करके गांव का जन्‍मदिन मनाये। उस दिन इस गांव से पढ़-लिखकर बाहर गए है, रोजी-रोटी कमाने बाहर गए है, उन सबको भी रहना चाहिए कि अपने गांव का जन्‍मदिन है, उस दिन तो गांव जाना ही पड़ेगा। सारे गांव से जो बाहर गए हैं, उन सबको उस दिन आना ही पड़ेगा और उस दिन हमारे जो 75-80-90 की उम्र के जो गांव के एकदम वृद्ध लोग हैं उनका सम्‍मान किया जाए। आप मुझे बताइए जब गांव अपना जन्‍मदिन मनाएगा तो गांव में सफाई गांव के लोग करेंगे कि नहीं करेंगे? गांव में बदलाव आएगा कि नहीं आएगा? हमारे शहर में रहने वाले लोग हैं जो कोई अगर धनी हो गया, पैसे वाला हो गया वो गांव में आएगा और उसको अगर पता चलेगा कि भई गांव के अंदर स्‍कूल में एक पंखा लगाने की जरूरत है तो पंखा दान में दे के जाएगा कि नहीं जाएगा?

देखिए, बिना सरकार समाज की शक्ति जागृति करके हम एक आदर्श गांव की दिशा में कैसे आगे बढ़ें। अगर हम तय करें कि हमारे गांव में एक भी बच्‍चा ऐसा नहीं होगा जो खाना खाने से पहले हाथ नहीं धोया होगा। खाना खाने से पहले हमारे गांव का हर बच्‍चा हाथ धोकर ही खाना खाएगा। मुझे बताइए इस काम के लिए सरकार की जरूरत है क्‍या? जान करके हैरानी होगी, अभी मैंने एक रिपोर्ट पढ़ी थी, अपने एक पड़ोसी देश की, उस रिपोर्ट में लिखा गया था कि उस देश में जो बच्‍चे मरते हैं, उन मरने वालों बच्‍चों में 40 प्रतिशत बच्‍चे.. यानी अगर 100 बच्‍चे मरते हैं तो 100 में से 40 बच्‍चों के मरने का कारण क्‍या था? एक ही कारण था कि वो भोजन के पहले हाथ धो करके खाना नहीं खाते थे। हमारा बच्‍चा हमें कितना प्‍यारा है। वो बीमार हो जाए, तो पूरा घर दु:खी हो जाता है लेकिन कभी एक छोटी बात करने का हम संकल्‍प कर सकते हैं? कि भई अब, अब जयापुर गांव में कोई बच्‍चा ऐसा नहीं होगा जो बिना हाथ धोये कोई भी चीज हाथ में ले करके मुह में रखेगा। आपको लगेगा, ये प्रधानमंत्री है कि कौन है? यही तो गलती हो गई है। हमारे बड़े-बड़े लोगों ने इतनी बड़ी-बड़ी बातें की जो कभी जमीन पर उतरी ही नहीं। मैं बड़ी बातें करने के लिए पैदा नहीं हुआ हूं, मुझे छोटी-छोटी बातों के द्वारा बड़े-बड़े काम करने हैं।

मैं यहां अपने लोगों से पूंछू, कोई 10वीं कक्षा में पढ़े होंगे, कोई 12वीं पास किए होंगे, ग्रेजुएट होंगे, कोई 50 साल के होंगे, कोई 60 साल के होंगे, कोई 80 साल के होंगे, मैं उनको पूंछू- कि जिस स्‍कूल में आपका बच्‍चा पढ़ता है क्‍या कभी आप उस स्‍कूल में गए हो? उस स्‍कूल को देखा है? मास्‍टर जी आते हैं कि नहीं आते हैं? सफाई होती है कि नहीं होती है? पीने का पानी साफ है कि गंदा है? वहां शौचालय है कि नहीं है? लेबोरेट्ररी है कि नहीं है? लाइब्रेरी है कि नहीं है? कम्‍प्‍यूटर है तो चलता है कि नहीं चलता? कुछ भी। कभी जा करके हमने रूचि ली होगी? कभी नहीं ली क्‍योंकि पहले दिन बच्‍चे को छोड़ आए और कह दिया कि मास्‍टर जी ये सौंप दिया, अब तुम जानो, उसका नसीब जाने, जो करना है करो, ऐसे चलता है क्‍या? हम अगर हमारे गांव के स्‍कूल का, अगर हम तय करें कि चलो भई हर मोहल्‍ले की एक कमिटी बनाएं। ये कमिटी के लोग रोज स्‍कूल जाएंगे, दूसरी कमिटी वाले दूसरे दिन जाएंगे, तीसरी कमिटी वाले तीसरे दिन जाएंगे। हमें बताइए, हमारा स्‍कूल, कितना भी छोटा स्‍कूल क्‍यों न हो, वो फिर एक प्रकार से गांव के अंदर सरस्‍वती का मंदिर बन जाएगा कि नहीं बन जाएंगा? शिक्षा का धाम बन जाएगा कि नहीं बन जाएगा? सरल काम है।

मैं कभी-कभी गरीब परिवारों को कहता हूं, एक काम करो- आपके परिवार में बेटी का जब जन्‍म हो, उसको एक उत्‍सव के रूप में मनाना चाहिए, मनाते हैं क्‍या? कुछ परिवारों में तो बेटी पैदा हुई तो झगड़ा हो जाता है। उस बहु की बिचारी की मुसीबत आ जाती है। क्‍या हमारा जयापुर गांव, बेटी का जन्‍म होगा तो उत्‍सव मनाएगा कि नहीं मनाएगा। हमारे गांव लक्ष्‍मी जी का पदार्पण हो, बेटी लक्ष्‍मी का स्‍वरूप है। हम, फिर हम गर्व करेंगे कि नहीं करेंगे गांव के लोग? आज नहीं होगा। आज देखिए जितने लड़के पैदा होते हैं, लड़कियां उससे कम पैदा हो रही हैं और कारण क्‍या है? कि मां के गर्भ में ही बेटी को मार दिया जाता है, अगर मां के गर्भ में ही बेटी को मार देंगे तो ये संसार-चक्र कैसे चलेगा? अगर एक गांव में हजार बच्‍चे पैदा होते हैं, बालक और 800 बालिकाएं पैदा होती हैं तो 200 बालक कवारें रह जाएंगे। क्‍या हाल होगा गांव का, समाज का क्‍या हाल होगा? क्‍या ये काम सरकार करेगी क्‍या? क्‍या एक समाज के नाते हमारी बहन-बेटियों की इज्‍ज़त, उनका गौरव.. एक समाज में वातावरण बनना चाहिए कि नहीं? इसलिए मैं आज जयापुर के पास इसलिए आया हूं, हमने तय करना है, इतने साल जो किया सो किया, अब नए तरीके से सोचना है। मैं तो ये भी कहता हूं कि अगर आपके पास जमीन है, खेत है, छोटी सी भी जमीन है, अगर आपके घर में बेटी पैदा होती है, उस खुशी में आप, आपके खेत के एक कोने में, किनारे पर 5 पेड़ बो दीजिए उस दिन। बेटी बड़ी होगी, वे पेड़ भी बड़े होगे। बेटी जब 20 साल की होगी, पेड़ भी 20 साल का हो जाएगा और बेटी की शादी करवानी होगी तो 5 पेड़ को बेच दोगे, बेटी की शादी अपने आप हो जाएगी।

हम लोगों ने मिल करके समाज में ये व्‍यवस्‍था खड़ी करने है। अब गांव अपना जन्‍मदिन मनाए तो जातिवाद बच ही नहीं सकता। सब मिल करके मनाएंगे, जातिवाद नहीं रह सकता और जातिवाद का जहर गया तो गांव की ताकत इतनी बढ़ जाएगी, जिसकी आप कल्‍पना नहीं कर सकते। इसलिए ये पूरा आदर्श ग्राम योजना, सरकार की योजनाओं को लागू भी करना है, सही तरीके से लागू करना है, सही समय पर लागू करना है, अच्‍छे तरीके से लागू करना है, अच्‍छा परिणाम मिले इस प्रकार से लागू करना है और सांसद का मार्गदर्शन मिले, सांसद गांव को उसमें जोड़े, आप देखिए काम की गति बन जाएगी। एक बार एक गांव में सब सरकारी अफसरों को आदत लग गई कि ऐसे काम होता है तो बाकि सब गांवों में भी वैसा ही शुरू हो जाएगा, देर नहीं लगेगी।

मेरे मन में इस, बनारस का जो पूरा विस्‍तार जो मेरे जिम्‍मे आया है और एक प्रकार से ये जिला भी.. बहुत कुछ करने का मेरा इरादा है लेकिन सरकारी तरीके से नहीं करना है, सरकारी खजाने से नहीं करना है। हमें जनता की शक्ति से करना है, जन-शक्ति से करना है।

अभी हमारी प्रधान दुर्गा देवी जी भाषण कर रहीं थी, मैंने उनसे पूछा कि आपकी पढ़ाई कितनी हुई है तो उन्‍होंने कहा, 8वीं तक मैं पढ़ी हूं। अब देखिएं, 8वीं तक पढ़ी होने के कारण उनका कांफिडेस लेवल कितना ऊंचा था। गर्व हो, दुर्गा देवी जी को सुनकर लगा कि वाह! कितने बढि़या तरीके से उन्‍होंने अपनी बात को प्रकट किया। क्‍या हम नहीं चाहते कि हमारे हर घर की बेटी पढ़े? अगर गांव की प्रधान दुर्गा देवी जी भी पढ़ी-लिखी है तो हमारे गांव की हर बेटी पढ़नी चाहिए।

ऐसा क्‍या कारण हो.. अगर पोलियो की खुराक पिलानी है, क्‍या पोलियो की खुराक पिलाने के लिए भी किसी सरकारी बाबू को आ करके, हमें याद दिलाना चाहिए? क्‍या पूरे गांव के अंदर ऐसे नौजवान नहीं होने चाहिएं कि जिनका काम हो कि भई पोलियो की खुराक हर बच्‍चे को पिलाई जाएगी। कभी भी, हमारे गांव के अंदर कभी, पोलियो आए नहीं, हमारे गांव में कोई बच्‍चा अपंग न हो, ये काम हम कर सकते हैं कि नहीं कर सकते? पोलियो की खुराक तो सरकार आएगी ले करके, लेकिन सरकार तक ले जाना बालकों को एक समाज के नाते, हम दायित्‍व उठा सकते हैं कि नहीं उठा सकते?

मैंने आप लोगों के बीच रह करके, पिछले दिनों हमारे पार्टी के कार्यकर्ताओं के माध्‍यम से, अफसरों के माध्‍यम से यहां की कई समस्‍याओं के विषय में जानकारी ली है और मुझे विश्‍वास है कि शासन में बैठे हुए लोग.. ज्‍यादातर यहां तो राज्‍य सरकार के माध्‍यम से ही काम होता है, इन बातों को पूरे करें। सरकार क्‍या करे क्‍या न करे, हम जयापुर के लोग क्‍या करें ये संकल्‍प ले करके आज जाना है और मैं कहता हूं सांसद ने गांव को गोद नहीं लिया है, गांव अब सांसद को गोद लेगा। एक नई दिशा में मुझे चलाना है और उसी से आदर्श ग्राम बनने वाला है। मैं जयापुर वासियों का बहुत आभारी हूं.. स्‍वाभाविक है मैंने यहां के कामों की, व्‍यवस्‍थाओं की पूछताछ की है, तो रास्‍ते भी निकलेंगे, लेकिन उसकी मैं चर्चा मंच पर से करना नहीं चाहता हूं। जिस जगह पर इसकी बात करनी होगी मैं करता रहूंगा लेकिन आप लोगों से मेरी जो अपेक्षा है, मैं आशा करूंगा कि आप लोग भी बैठिए, बैठ करके ऐसे काम- हम ग्रामवासी क्‍या कर सकते है? गांव की ताकत क्‍या हो सकती है? ये अगर हम कर लें..

मैंने सुना है कि यहां पानी की दिक्‍कत रहती है, सरकार करेंगी, सरकार का जो जिम्‍मा है वो सरकार करेंगी, हम तय कर सकते हैं क्‍या कि हम बरसात को एक बूंद पानी गांव के बाहर नहीं जाने देंगे। कौन कहता है पानी की दिक्‍कत रहेंगी? आपको कभी किल्‍लत नहीं पड़ेंगी, मैं आपको विश्‍वास दिलाता हूं लेकिन ये काम हमने सबने मिल करके करना होगा। सरकार, अपने तरीके से, जो इतने सालों से किया है..

अब हमने एक नए तरीके से आगे बढ़ना है। समाज की शक्ति से आगे बढ़ना है, जनता की शक्ति के भरोसे आगे बढ़ना है, पैसों की थेलियों से नहीं। सरकारें ये करेंगी, सरकारें वो करेंगी, टेंडर निकालेंगी, उससे नहीं! हम मिल करके हमारे गांव को.. अगल-बगल के जिले के लोगों को लगे, हां भाई हुआ! और मैंने ऐसे गांव देखें है जहां ऐसा हुआ है, लोगों ने किया है। हमें भी जयापुर को ऐसा बनाना है। मैं फिर एक बार, आपने जो स्‍वागत-सम्‍मान किया, प्‍यार दिया, उसके कारण मैं आपका बहुत-बहुत आभारी हूं और मैं आपको विश्‍वास दिलाता हूं कि हम सब मिल करके, सच्‍चे अर्थ में जयापुर! एक नया जयापुर बनाने की दिशा में आगे बढ़ेंगे, इसी एक विश्‍वास के साथ आप सबका बहुत-बहुत आभार।

धन्‍यवाद।