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शिनहुआ विश्‍वविद्यालय, बीजिंग में प्रधानमंत्री के संबोधन का मूल पाठ


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शिनहुआ विश्‍वविद्यालय के अध्‍यक्ष श्री कियू योंग,

विदेश मंत्री श्री वांग ई,

शिनहुआ विश्‍वविद्यालय के सहायक अध्‍यक्ष श्री शी यीगोंग,

मुझे आज शिनहुआ विश्‍वविद्यालय आकर अपार हर्ष का अनुभव हो रहा है।

आपका संस्‍थान विश्‍वस्‍तरीय है। आप चीन के शिक्षाक्षेत्र की सफलता के प्रतीक हैं।

आप चीन के आर्थिक चमत्‍कार का आधार हैं। आपने राष्‍ट्रपति शी सहित महान नेता दिये हैं।

यह आश्‍चर्य का विषय नहीं है कि चीन की आर्थिक प्रगति और अनुसंधान, विज्ञान और प्रौद्योगिकी का नया नेतृत्‍व एकसाथ सामने आया।

मुझे एक चीनी कहावत खासतौर से पसंद है। यदि आप एक साल के लिये सोचते हैं, तो बीज का रोपण कीजिये। यदि आप दस साल आगे सोचते हैं, तो आप वृक्ष का रोपण कीजिये और यदि आप सौ वर्ष आगे का सोचते हैं, तो आप लोगों को शिक्षा दीजिये।

भारत में भी एक प्राचीन कहावत है: व्‍यय क्रते वर्धते एव नित्‍यम्, विद्या धनम् सर्व धन प्रधानम्।यानी धन देने से बढ़ता है। ज्ञान ही धन है और सभी वस्‍तुओं से श्रेष्‍ठ है।

यह एक मिसाल है कि कैसे हमारे दो प्राचीन राष्‍ट्र अपने कालातीत ज्ञान से एक दूसरे के साथ जुड़े हैं।

इसके अलावा भी ऐसा बहुत कुछ है जो हमारी प्राचीन सभ्‍यता को एक दूसरे के साथ जोड़ता है।

मैंने अपनी यात्रा की शुरुआत शियान से की। ऐसा करके मुझे चीनी बौद्ध भिक्षुक ह्वेनसांग की याद आयी।

उन्‍होंने सातवीं सदी में शियान से भारत की यात्रा शुरू की थी। पिछले वर्ष राष्ट्रपति शी की भारत यात्रा अहमदाबाद से शुरू हुई थी। अहमदाबाद से मेरा जन्म स्थान वडनगर अधिक दूर नहीं है लेकिन यह इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि वडनगर ने चीन से आने वाले ह्वेन सांग सहित कई तीर्थयात्रियों का आतिथ्य किया है।

भारत और चीन के बीच विश्व का सबसे बड़ा शैक्षिक आदान-प्रदान टैंग राजवंश के समय में शुरू हुआ था।

अभिलेखों से पता चलता है कि लगभग 80 भारतीय बौद्ध भिक्षुओं ने चीन की यात्रा की और लगभग 150 चीनी बौद्ध भिक्षुओं ने भारत में शिक्षा प्राप्त की। और हां, यह 10वीं और 11वीं शताब्दी में हुआ।

चीन के साथ होने वाले कपास के व्यापार के कारण मुम्बई एक बंदरगाह और जहाज निर्माता केन्द्र के रूप में उभरा।

और, जो लोग रेशम और वस्त्रों से प्रेम करते हैं उन्हें मालूम होगा कि भारत की प्रसिद्ध तनचोई साड़ी मेरे राज्य गुजरात के तीन भाईयों की देन है, जिन्होंने 19वीं शताब्दी में चीनी उस्तादों से बुनकरी की कला सीखी थी।

हमारे प्राचीन व्यापार का यह सबूत है कि रेशम को प्राचीन भाषा संस्कृत में सिनपट्ट कहते हैं।

इस तरह हमारे शताब्दियों पुराने संबंध अध्यात्म, शिक्षा, कला और व्यापार पर आधारित हैं।

यह हमारे एक दूसरे की सभ्यता और साझा समृद्धि के प्रति सम्मान का परिचायक है।

इसका सबूत भारतीय चिकित्सक डॉ. द्वारिकानाथ कोटनिस के मानवीय मूल्यों में भी परिलक्षित होता है, जिन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान चीन के फौजियों का उपचार किया था।

आज, इतिहास के कुछ कठिन और काले अध्यायों के बाद, भारत और चीन विश्व में होने वाले बड़े परिवर्तनों के अनोखे मौके के समय एक साथ खड़े हैं।

विश्व के ऐसे दो सबसे अधिक आबादी वाले राष्ट्र तेजी के साथ आर्थिक विकास और सामाजिक परिवर्तन के दौर से गुजर रहे हैं, जिसकी मिसाल इतिहास में नहीं मिलती।

पिछले तीन दशकों में चीन की कामयाबी ने पूरे विश्व के आर्थिक परिदृश्य को बदल दिया है।

भारत आर्थिक क्रांति का अब अगला मोर्चा है।

हमारी आबादी की प्रकृति भी ऐसी ही है। भारत में लगभग 800 मिलियन लोगों की आयु 35 वर्ष से कम है। उनकी आकांक्षाएं, ऊर्जा, उद्यमशीलता और कौशल भारत के आर्थिक बदलाव का बल हैं।

हमारे पास ऐसा करने का राजनीतिक जनादेश और इच्छाशक्ति है।

पिछले वर्ष के दौरान हम एक स्पष्ट और सकारात्मक दृष्टिकोण से आगे बढ़े हैं। हम पूरी गति, प्रतिबद्धता और दृढ़ इरादे से इसे कार्यान्वित कर रहे हैं।

हमने अपनी नीतियों में सुधार करने के बड़े कदम उठाये हैं और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के द्वार खोले हैं। इसमें बीमा, निर्माण, रक्षा और रेल जैसे क्षेत्र भी शामिल किए गए हैं।

हम अनावश्यक नियमों को समाप्त कर रहे हैं और प्रक्रियाओं को सरल बना रहे हैं। हम कई चरणों में स्वीकृति लेने वाली प्रणाली और लंबे समय तक प्रतिक्षा करने की प्रक्रिया को डिजीटल प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल से समाप्त कर रहे हैं।

हम ऐसी कर प्रणाली बना रहे हैं जो स्थिर और प्रतिस्पर्धी होगी तथा इससे भारतीय बाजार में एकरूपता आएगी।

हम सड़क, बंदरगाह, रेल, हवाई अडडे, दूरसंचार, डिजीटल नेटवर्क और स्वच्छ ऊर्जा जैसे अगली पीढ़ी के बुनियादी ढांचे में निवेश बढ़ा रहे हैं।

हमारे संसाधन पूरी तेजी और पारदर्शिता के साथ उपयोग में लाये जा रहे हैं। और, हम यह सुनिश्चित करेंगे कि भू-अधिग्रहण से विकास बाधित न हो और किसानों पर कोई बोझ न पड़े।

विश्वस्तरीय निर्माण क्षेत्र के संदर्भ में आधुनिक अर्थव्यवस्था बनाने के लिए हम विश्व कौशल का संयोजन कर रहे हैं।

हम अपने किसानों के बेहतर भविष्य और विकास को बढ़ाने के लिए अपने कृषि क्षेत्र को दोबारा जीवित कर रहे हैं।

चीन की तरह ही, शहरी नवीकरण अर्थव्यवस्था में ऊर्जा भरने के लिए आवश्यक है।

गरीबी को समाप्त करने और गरीबों को संरक्षण देने के लिए हम आधुनिक आर्थिक उपायों के साथ प्राचीन रणनीतियों का उपयोग कर रहे हैं।

हमने वित्तीय समावेश के लिए प्रमुख योजनाएं शुरू की हैं जिनमें बैंक खाता विहीनों को आर्थिक सहायता और गरीबों को सीधे लाभ पहुंचाने के प्रभावशाली कदमों को सुनिश्चित कर रहे हैं। और, हम यह भी सुनिश्चित कर रहे हैं कि बीमा तथा पेंशन योजनाएं निर्धनतम लोगों तक पहुंच सकेँ।

हमने समय आधारित लक्ष्य बनाया है कि आवास, पानी और स्वच्छता तक सबकी पहुंच संभव हो।

इससे न केलव जीवन बदलेगा बल्कि आर्थिक गति को बढ़ाने के लिए एक नया स्रोत भी पैदा होगा।

सबसे बढ़कर, हम अपने शासन करने के तरीके में भी बदलाव ला रहे हैं- बदलाव सिर्फ उस तरीके में नहीं जिसका इस्तेमाल हम दिल्ली में करते हैं बल्कि राज्य सरकारों, जिलों और शहरों में करते हैं।

क्योंकि हम जानते हैं कि दिल्ली में सिर्फ दृष्टि बनायी जा सकती है, लेकिन हमारी सफलता राज्य राजधानियों द्वारा तय होती है।

इसलिए मेरे साथ दो मुख्यमंत्री भी आये हैं। हमारी विदेश नीति का यह एक नया पहलू है। और, यह भारत के संदर्भ में पहली बार हो रहा है कि प्रधानमंत्री ली और मैं अपनी साझेदारी पर चर्चा करने के लिए राज्य के नेताओं और मुख्यमंत्रियों के साथ बैठेंगे।

मैं जानता हूं कि मानसिकता और कार्यसंस्कृति को बदलने से कहीं अधिक आसान नीतियों का पुनर्लेखन होता है। लेकिन, हम सही रास्ते पर चल रहे हैं।

आप भारत में बदलाव महसूस करेंगे। और, यह आप हमारी विकास दर में देखेंगे। यह बढ़कर 7.5 प्रतिशत हो गई है और हम इस बात से बहुत प्रोत्साहित हैं कि अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञ एक स्वर में यह कह रहे हैं कि विकास दर और ऊंची होगी।

कई तरह से हमारे दोनों देश समान आकांक्षाओं, समान चुनौतियों और समान अवसरों को परिलक्षित करते हैं।

हम एक दूसरे की सफलता से प्रेरित हो सकते हैं।

और, हमारे समय विश्व में व्याप्त अनिश्चितता के दौरान हम एक दूसरे की प्रगति को बढ़ा सकते हैं।

शायद विश्व की कोई और अर्थव्यवस्था भारत के भविष्य में सन्निहित इस तरह के अवसर प्रदान नहीं कर सकती। और, कुछ ही साझेदारियां हमारे वायदे के अनुरूप पूरी की जा सकती हैं।

पिछले सितम्बर में राष्ट्रपति शी की यात्रा के दौरान हमने अपने योगदान का एक नया आयाम निर्धारित किया था।

भारतीय रेल के आधुनिकीकरण में साझेदारी, भारत में दो चीनी औद्योगिक पार्क, अगले पांच वर्षों में भारत में 20 अरब डालर का निवेश और “मेक इन इंडिया” अभियान में साझेदारी। यह हमारे भविष्य का स्वरूप है।

कल शंघाई में हमारे उद्योगों के बीच पहली साझेदारी संबंधी समझौता होगा।

लेकिन, इस साझेदारी को लंबे समय तक कायम रखने के लिए हमें चीनी बाजारों तक भारतीय उद्योग की पहुंच में भी सुधार करना होगा। इस समस्या को हल करने के लिए राष्ट्रपति शी और प्रधानमंत्री ली की प्रतिबद्धता से मैं प्रोत्साहित हुआ हूं।

हमारे द्विपक्षीय योगदान की तरह ही हमारी अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी भी एक दूसरे की सफलता के लिए महत्वपूर्ण होगी।

बदलते विश्व ने हमारे लिए नये अवसर और चुनौतियां पैदा की हैं।

हम दोनों को अपने पड़ोस में अस्थिरता का सामना है, जिससे हमारी सुरक्षा को खतरा है और हमारी अर्थव्यवस्था धीमी हो सकती है।

हम दोनों बढ़ते उग्रवाद और आतंकवाद का सामना कर रहे हैं। और, हमारे यहां व्याप्त इस खतरे का स्रोत एक ही क्षेत्र है।

हमें आतंकवाद के बदलते चरित्र से निपटना होगा, जिसके कारण इसका पूर्वानुमान लगाना मुश्किल हो गया है और यह पहले से अधिक विस्तृत हुआ है।

हमारी ऊर्जा की जरूरत सबसे अधिक उसी क्षेत्र से पूरी होती है जहां अस्थिरता व्याप्त है और जिसका भविष्य अनिश्चित है।

भारत और चीन अपना अंतर्राष्ट्रीय व्यापार समान समुद्री मार्ग से करते हैं। दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं के लिए इन समुद्री मार्गों की सुरक्षा बहुत महत्वपूर्ण है और इसे प्राप्त करने के लिए दोनों देशों के बीच सहयोग जरूरी है।

समान रूप से, हम दोनों ही विखंडित एशिया को जोड़ना चाहते हैं। कुछ ऐसी परियोजनाएं हैं जिन्‍हें हम व्‍यक्तिगत रूप से आगे बढ़ाएंगे। वहीं, बांग्‍लादेश-चीन-भारत–म्‍यांमार कॉरिडोर जैसी कुछ परियोजनाओं को हम संयुक्‍त रूप से क्रियान्वित कर रहे हैं।

लेकिन भूगोल और इतिहास हमें यह बताते हैं कि आपस में जुड़े एशिया का सपना तभी साकार हो पाएगा जब भारत और चीन मिल-जुलकर काम करेंगे।

हम दो ऐसे मुल्‍क हैं जिन्‍हें एक खुली एवं नियम आधारित वैश्विक व्‍यापार प्रणाली से बहुत कुछ हासिल हुआ है। अगर यह व्‍यवस्‍था भंग हो जाती है तो समान रूप से हम दोनों को ही भारी नुकसान उठाना पड़ेगा।

जलवायु परिवर्तन पर जारी अंतर्राष्‍ट्रीय वार्ताओं में हम दोनों का ही बहुत कुछ दांव पर लगा हुआ है। इन मंचों पर हमारा सहयोग इन वार्ताओं से निकलने वाले नतीजों को आकार देने के लिहाज से अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण साबित होगा।

आज, हम एशिया के पुनरुत्‍थान की बातें करते हैं। यह एक ही समय में इस क्षेत्र में अनेक शक्तियों के अभ्‍युदय का नतीजा है।

यह महान वादों का एशिया है, लेकिन इसके साथ ही ढेर सारी अनिश्चिताएं भी हैं।

एशिया का फिर से अभ्‍युदय एक बहु-ध्रुवीय विश्‍व का मार्ग प्रशस्‍त कर रहा है, जिसका हम दोनों स्‍वागत करते हैं।

लेकिन यह समीकरणों में बदलाव का एक अप्रत्‍याशित एवं जटिल परिदृश्‍य भी है।

हम एशिया के शान्तिपूर्ण एवं स्थिर भविष्‍य को लेकर तभी निश्चिंत हो सकते हैं जब भारत और चीन आपसी सहयोग से कार्य करेंगे।

उभरता एशिया चाहता है कि वैश्विक मामलों में उसे अपनी बातें और पुरजोर ढ़ंग से रखने का अधिकार मिले। भारत और चीन दुनिया में अपनी भूमिका बढ़ाए जाने की मांग करते हैं। यह संयुक्‍त राष्‍ट्र सुरक्षा परिषद अथवा नया एशियाई ढांचागत निवेश बैंक में सुधार के रूप में हो सकता है।

लेकिन, एशिया की आवाज तभी और ज्‍यादा दमदार होगी एवं हमारे देश की भूमिका तभी ज्‍यादा प्रभावशाली होगी, जब भारत और चीन हम सभी के लिए और एक-दूसरे के लिए एक स्‍वर में बोलेंगे।

सरल शब्‍दों में कहें तो, 21वीं शताब्‍दी के एशियाई सदी साबित होने की संभावनाएं इस बात पर काफी हद तक निर्भर करेंगी कि भारत एवं चीन व्‍यक्तिगत रूप से क्‍या हासिल करते हैं और हम आपस में मिलजुलकर क्‍या-क्‍या करते हैं।

2.5 अरब जोड़े हाथों की एक साथ संवरती किस्‍मत हमारे क्षेत्र एवं मानवता दोनों के ही हित में होगी।

यही सोच मैं राष्‍ट्रपति शी और प्रधानमंत्री ली के साथ साझा करता हूं।

यही प्रेरणा हमारे रिश्‍तों को आगे बढ़ा रही है।

हाल के वर्षों में हमने अपनी सियासी वार्ताओं में तेजी ला दी है। हमने अपनी सीमाओं पर शांति बनाये रखी है। हमने अपने मतभेद सुलझाये हैं और इसके साथ ही हमारे आपसी सहयोग में इन्‍हें बाधक नहीं बनने दिया है। हमने पारस्‍परिक रिश्‍तों से जुड़े सभी क्षेत्रों में आपसी सहयोग बढ़ाया है।

अगर हम अपनी भागीदारी को और गहराई में ले जाना चाहते हैं तो हमें निश्चित तौर पर वे मुद्दे भी सुलझाने होंगे जिनकी वजह से हमारे रिश्‍तों में हिचकिचाहट एवं शंकायें, यहां तक कि अविश्‍वास पैदा हो जाता है।

सबसे पहले हमें सीमा विवाद को तेजी से सुलझाने की कोशिश करनी चाहिए।

हम दोनों यह मानते हैं कि यह इतिहास की विरासत है। इसे सुलझाना भविष्‍य के लिए हमारी साझा जिम्‍मेदारी है। हमें निश्चित तौर पर नये उद्देश्‍य एवं संकल्‍प के साथ आगे बढ़ना चाहिए।

हमारे द्वारा चुने जाना वाला समाधान सीमा विवाद को सुलझाने से भी कहीं ज्‍यादा कारगर साबित होना चाहिए।

यह कुछ ऐसा होना चाहिए जिससे हमारे रिश्‍तों में बदलाव आये, न कि नई बाधायें खड़ी करे।

हम सीमा पर शांति बनाये रखने में उल्‍लेखनीय तौर पर सफल रहे हैं।

हमें पारस्‍परिक एवं समान सुरक्षा के सिद्धांत पर यह स्थिति निश्चित तौर पर आगे भी बनाये रखनी चाहिए।

हमारे समझौते, प्रोटोकॉल और सीमा व्‍यवस्‍था इसमें मददगार रही है।

लेकिन, अनिश्चितता की छाया सीमा से जुड़े संवेदनशील क्षेत्रों में सदा झलकती रहती है।

ऐसा इसलिए है क्‍योंकि दोनों ही पक्षों को यह नहीं पता है कि इन क्षेत्रों में वास्‍तविक नियंत्रण रेखा कहां है।

यही कारण है कि हमने इसे स्‍पष्‍ट करने की प्रक्रिया फिर से शुरू करने का प्रस्‍ताव रखा है। हम सीमा विवाद पर अपनी स्थिति पर प्रतिकूल असर डाले बिना ऐसा कर सकते हैं।

हमें वीजा नीतियों से लेकर सीमा पार नदियों तक के ऐसे मुद्दों का रचनात्‍मक हल ढूंढ़ने के बारे में सोचना चाहिए, जिनसे परेशानियां उत्‍पन्‍न होती हैं।

कभी-कभी छोटे कदम भी एक-दूसरे के बारे में हमारे लोगों की सोच पर गहरा असर डाल सकते हैं।

हम दोनों ही अपने साझा पड़ोस में अपने संबंध बढ़ा रहे हैं। ऐसे में पारस्‍परिक विश्‍वास एवं भरोसे को मजबूती प्रदान करने के लिए रणनीतिक संवाद को और ज्‍यादा बढ़ाने की जरूरत है।

हमें यह अवश्‍य सुनिश्चित करना चाहिए कि अन्‍य देशों के साथ हमारे रिश्‍ते एक-दूसरे के लिए चिंता का विषय न बन जायें और जहां तक संभव हो हमें आपस में मिल-जुलकर काम करना चाहिए, जैसा कि हमने नेपाल में आये भूकंप के दौरान किया था।

अगर पिछली शताब्‍दी गठबंधनों का युग था, तो यह आपसी निर्भरता का दौर है। अत: एक-दूसरे के खिलाफ गठबंधनों की वार्ताओं का कोई औचित्‍य नहीं है।

चाहे कुछ भी हो जाये, हम दोनों ही प्राचीन सभ्‍यतायें, विशाल एवं स्‍वतंत्र राष्‍ट्र हैं। हममें से कोई भी किसी की योजना का हिस्‍सा नहीं बन सकता।

अत: अंतर्राष्‍ट्रीय मंचों पर हमारी भागीदारी अन्‍य देशों की चिंताओं के बजाय हमारे दोनों देशों के हितों के आधार पर निर्धारित की जानी चाहिए।

पुनर्गठित संयुक्‍त राष्‍ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्‍थायी सदस्‍यता और निर्यात नियंत्रण व्‍यवस्‍थाओं जैसे परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह में भारत की सदस्‍यता के लिए चीन की ओर से दिए जा रहे समर्थन से हमारे अंतर्राष्‍ट्रीय सहयोग में मजबूती आने से भी कहीं ज्‍यादा हासिल होगा।

इससे हमारे रिश्‍ते नये मुकाम पर पहुंच जायेंगे। इससे दुनिया में एशिया की आवाज और ज्‍यादा दमदार हो जायेगी।

अगर हम आपसी रिश्‍ते एवं विश्‍वास को और ज्‍यादा पुख्‍ता करने में समर्थ हो जायें तो हम एशिया को खुद के साथ-साथ शेष दुनिया से भी जोड़ने के लिए किए जा रहे आपसी प्रयासों में नई जान फूंकने में सफल हो जायेंगे।

हमारे सैनिक सीमा पर एक-दूसरे का सामना करते हैं, लेकिन हमें अपनी अनेक साझा चुनौतियों का सामना करने के लिए अपने प्रतिरक्षा एवं सुरक्षा सहयोग को भी और गहरा करना चाहिए।

कुल मिलाकर हमें आगे बढ़़ते हुए हमारे लोगों के बीच अपनत्‍व एवं सुविधा के और ज्‍यादा पुल निश्चित तौर पर बनाने चाहिए।

विश्‍व की आबादी का लगभग 33 फीसदी या तो भारतीय अथवा चीनी है। हालांकि, इसके बावजूद हमारे लोग एक-दूसरे के बारे में बहुत कम जानते हैं।

हमें निश्चित तौर पर प्राचीन समय के तीर्थयात्रियों से प्रेरणा लेनी चाहिए, जिन्‍होंने अज्ञानता के अंधकार का सामना करते हुए ज्ञान की तलाश की थी और हम दोनों को ही समृद्ध बनाया। अत: हमने चीन के नागरिकों को इलेक्‍ट्रॉनिक पर्यटक वीजा देने का फैसला किया है। हम 2015 के दौरान चीन में ‘भारत वर्ष’ मना रहे हैं। हम आज ‘प्रांतीय एवं राज्‍य नेता फोरम’ लांच कर रहे हैं।

हम आज बाद में योग-ताइची कार्यक्रम में भाग लेंगे। इसमें हमारी दोनों सभ्‍यताओं के एकजुट होने की झलक देखने को मिलेगी। हम फुडान विश्‍वविद्यालय में गांधी और भारत अध्‍ययन केन्‍द्र तथा कुनमिंग में योग कॉलेज शुरू कर रहे हैं।

भारतीय तीर्थयात्रियों के लिए कैलाश मानसरोवर का दूसरा मार्ग जून में शुरू होगा, जिसके लिए मैं राष्‍ट्रपति शी का धन्‍यवाद करता हूं। विश्‍व की दो सबसे बड़ी आबादियों के बीच आपसी सम्‍पर्क बढ़ाने की दिशा में भारत और चीन की ओर से उठाये जाने वाले कदमों में ये प्रयास भी शामिल हैं।

इसे ही ध्‍यान में रखते हुए मैंने एक विश्‍वविद्यालय में इन बातों का जिक्र करना उचित समझा। कारण यह है कि युवाओं को ही हमारे देशों के भविष्‍य की विरासत और हमारे रिश्‍तों की जिम्‍मेदारी मिलेगी।

राष्‍ट्रपति शी ने भारत एवं चीन के आपस में जुड़े सपनों और प्रमुख देशों के बीच नई तरह के रिश्‍ते का वाकपटुता से जिक्र किया है। न केवल हमारे सपने आपस में जुड़े हुए हैं, बल्कि हमारा भविष्‍य भी काफी गहराई से आपस में जुड़ा हुआ है। मौजूदा समय में हमारे पास विकल्‍प चुनने का अवसर है।

भारत एवं चीन दो ऐसी गौरवमयी सभ्‍यतायें और दो ऐसे महान राष्‍ट्र हैं जो उनकी नियति को पूरा करेंगे।

सफलता का अपना मार्ग चुनने के लिए हम दोनों के ही पास ताकत एवं इच्‍छा-शक्ति है।

लेकिन, हमारे पास यह प्राचीन ज्ञान भी है कि हमारी यात्रा तभी और ज्‍यादा सुगम होगी तथा हमारा भविष्‍य और ज्‍यादा उज्‍ज्‍वल तभी बन पायेगा, जब हम दोनों एक साथ चलेंगे, एक-दूसरे पर भरोसा रखेंगे और कदम-से-कदम मिलाकर चलेंगे।

आप सभी को बहुत-बहुत धन्‍यवाद। आपके निमंत्रण के लिए धन्‍यवाद।