पश्चिम बंगाल के गवर्नर श्रीमान जगदीप धनखड़ जी, विश्व भारती के वाइस चांसलर प्रोफेसर बिद्युत चक्रबर्ती जी, शिक्षक गण, कर्मचारी गण और मेरे ऊर्जावान युवा साथियों !
गुरुदेव रबिंद्रनाथ टैगोर ने जो अद्भुत धरोहर मां भारती को सौंपी है, उसका हिस्सा बनना, आप सभी साथियों से जुड़ना मेरे लिए प्रेरक भी है, आनंददायक भी है और एक नई ऊर्जा भरने वाला है। अच्छा होता मैं इस पवित्र मिट्टी पर खुद आ करके आपके बीच शरीक होता। लेकिन जिस प्रकार के नए नियमों में जीना पड़ रहा है और इसलिए मैं आज रूबरू न आते हुए, दूर से ही सही, आप सबको प्रणाम करता हूं, इस पवित्र मिट्टी को प्रणाम करता हूं। इस बार तो कुछ समय के अंतराल पर मुझे दूसरी बार ये मौका मिला है। आपके जीवन के इस महत्वपूर्ण अवसर पर आप सभी युवा साथियों को, माता–पिता को, गुरुजनों को मैं बहुत–बहुत बधाई देता हूं, अनेक-अनेक शुभकामनाएं देता हूं।
साथियों,
आज एक और बहुत ही पावन अवसर है, बहुत ही प्रेरणा का दिन है। आज छत्रपति शिवाजी महाराज की जन्म जयंती है। मैं सभी देशवासियों को, छत्रपति शिवाजी महाराज जी की जयंती पर बहुत–बहुत शुभकामनाएं देता हूं। गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर जी ने भी शिबाजि–उत्सब नाम से वीर शिवाजी पर एक कविता लिखी थी। उन्होंने लिखा था–
कोन् दूर शताब्देर
कोन्-एक अख्यात दिबसे
नाहि जानि आजि, नाहि जानि आजि,
माराठार कोन् शोएले अरण्येर
अन्धकारे बसे,
हे राजा शिबाजि,
तब भाल उद्भासिया ए भाबना तड़ित्प्रभाबत्
एसेछिल नामि–
“एकधर्म राज्यपाशे खण्ड
छिन्न बिखिप्त भारत
बेँधे दिब आमि।’’
यानि एक शताब्दी से भी पहले, किसी एक अनाम दिन, मैं उस दिन को आज नहीं जानता किसी पर्वत की ऊंची चोटी से, किसी घने वन में, ओह राजा शिवाजी, क्या ये विचार आपको एक बिजली की रोशनी की तरह आया था? क्या ये विचार आया था कि छिन्न–भिन्न इस देश की धरती को एक सूत्र में पिरोना है? क्या मुझे इसके लिए खुद को समर्पित करना है? इन पंक्तियों में छत्रपति वीर शिवाजी से प्रेरणा लेते हुए भारत की एकता, भारत को एक सूत्र में पिरोने का आह्वान था। देश की एकता को मजबूत करने वाली इन भावनाओं को हमें कभी भूलना नहीं है। पल-पल, जीवन के हर कदम पर देश की एकता-अखंडता के इस मंत्र को हमें हमें याद भी रखना है, हमें जीना भी है। यही तो टैगोर का हमें संदेश है।
साथियों,
आप सिर्फ एक विश्विद्यालय का ही हिस्सा नहीं हैं, बल्कि एक जीवंत परंपरा के वाहक भी हैं। गुरुदेव अगर विश्व भारती को सिर्फ एक यूनिवर्सिटी के रूप में देखना चाहते, तो वो इसको Global University
या कोई और नाम भी दे सकते थे। लेकिन उन्होंने, इसे विश्व भारती विश्वविद्यालय नाम दिया। उन्होंने कहा था- ‘’Visva-Bharati acknowledges India’s obligation to offer to others the hospitality of her best culture and India’s right to accept from others their best.’’
गुरुदेव की विश्व भारती से अपेक्षा थी कि यहां जो सीखने आएगा वो पूरी दुनिया को भारत और भारतीयता की दृष्टि से देखेगा। गुरुदेव का ये मॉडल ब्रह्म, त्याग और आनंद, के मूल्यों से प्रेरित था। इसलिए उन्होंने विश्व भारती को सीखने का एक ऐसा स्थान बनाया, जो भारत की समृद्ध धरोहर को आत्मसात करे, उस पर शोध करे और गरीब से गरीब की समस्याओं के समाधान के लिए काम करे। ये संस्कार मैं पूर्व में यहां से निकले छात्र–छात्राओं में भी देखता हूं और आपसे भी देश की यही अपेक्षा है।
साथियों,
गुरुदेव टैगोर के लिए विश्व भारती, सिर्फ ज्ञान देने वाली, ज्ञान परोसोन वाली एक संस्था मात्र नहीं थी। ये एक प्रयास है भारतीय संस्कृति के शीर्षस्थ लक्ष्य तक पहुंचने का, जिसे हम कहते हैं– स्वयं को प्राप्त करना। जब आप अपने कैंपस में बुधवार को ‘उपासना’ के लिए जुटते हैं, तो स्वयं से ही साक्षात्कार करते हैं। जब आप गुरुदेव द्वारा शुरू किए गए समारोहों में जुटते हैं, तो स्वयं से ही साक्षात्कार करने का एक अवसर प्राप्त होता है। जब गुरुदेव कहते हैं–
‘आलो अमार
आलो ओगो
आलो भुबन भारा’
तो ये उस प्रकाश के लिए ही आह्वान है जो हमारी चेतना को जागृत करती है। गुरुदेव टैगोर मानते थे, विविधताएं रहेंगी, विचारधाराएं रहेंगी, इन सबके साथ ही हमें खुद को भी तलाशना होगा। वो बंगाल के लिए कहते थे–
बांगलार माटी,
बांगलार जोल,
बांगलार बायु, बांगलार फोल,
पुण्यो हौक,
पुण्यो हौक,
पुण्यो हौक,
हे भोगोबन..
लेकिन साथ ही वो भारत की विविधता का भी उतना ही गौरवगान बड़े भाव से करते थे। वो कहते थे–
हे मोर चित्तो पुन्यो तीर्थे जागो रे धीरे,
ई भारोतेर महामनोबेर सागोरो–तीरे
हेथाय दाराए दु बाहु बाराए नमो
नरोदे–बोतारे,
और ये गुरुदेव का ही विशाल विजन था कि शांतिनिकेतन के खुले आसमान के नीचे वो विश्वमानव को देखते थे।
एशो कर्मी, एशो ज्ञानी,
ए शो जनकल्यानी, एशो तपशराजो हे!
एशो हे धीशक्ति शंपद मुक्ताबोंधो शोमाज हे !
हे श्रमिक साथियों, हे जानकार साथियों, हे समाज सेवियों, हे संतों, समाज के सभी जागरूक साथियों, आइए समाज की मुक्ति के लिए मिल करके प्रयास करें। आपके कैंपस में ज्ञान प्राप्ति के लिए एक पल भी बिताने वाले का ये सौभाग्य है कि उसे गुरुदेव का ये विजन मिलता है।
साथियों,
विश्व भारती तो अपने आप में ज्ञान का वो उन्मुक्त समंदर है, जिसकी नींव ही अनुभव आधारित शिक्षा के लिए रखी गई। ज्ञान की, क्रिएटिविटी की कोई सीमा नहीं होती है, इसी सोच के साथ गुरुदेव ने इस महान विश्वविद्यालय की स्थापना की थी। आपको ये भी हमेशा याद रखना होगा कि ज्ञान, विचार और स्किल, static नहीं हैं, पत्थर की तरह नहीं है, स्थिर नहीं हैं, जीवंत हैं। ये सतत चलने वाली प्रक्रिया है और इसमें Course Correction की गुंजाइश भी हमेशा रहेगी, लेकिन Knowledge और Power, दोनों Responsibility के साथ आते हैं।
जिस प्रकार, सत्ता में रहते हुए संयम और संवेदनशील रहना पड़ता है, रहना जरूरी होता है, उसी प्रकार हर विद्वान को, हर जानकार को भी उनके प्रति ज़िम्मेदार रहना पड़ता है जिनके पास वो शक्ति नहीं है। आपका ज्ञान सिर्फ आपका नहीं बल्कि समाज की, देश की, अरे भावी पीढ़ियों की भी वो धरोहर है। आपका ज्ञान, आपकी स्किल, एक समाज को, एक राष्ट्र को गौरवान्वित भी कर सकती है और वो समाज को बदनामी और बर्बादी के अंधकार में भी धकेल सकती है। इतिहास और वर्तमान में ऐसे अनेक उदाहरण हैं।
आप देखिए, जो दुनिया में आतंक फैला रहे हैं, जो दुनिया में हिंसा फैला रहे हैं, उनमें भी कई Highly Educated, Highly Learned, Highly Skilled लोग हैं। दूसरी तरफ ऐसे भी लोग हैं जो कोरोना जैसी वैश्विक महामारी से दुनिया को मुक्ति दिलाने के लिए दिन-रात अपनी जान की बाजी लगा देते हैं। अस्पतालों में डटे रहते हैं, प्रयोगशालाओं में जुटे हुए हैं।
ये सिर्फ विचारधारा का प्रश्न नहीं है, मूल बात तो mindset की है। आप क्या करते हैं, ये इस बात पर निर्भर करता है कि आपका माइंडसेट पॉजिटिव है या नेगेटिव है। स्कोप दोनों के लिए है, रास्ते दोनों के लिए ओपेन हैं। आप समस्या का हिस्सा बनना चाहते हैं या फिर समाधान का, ये तय करना हमारे अपने हाथ में होता है। अगर हम उसी शक्ति, उसी सामर्थ्य, उसी बुद्धि, उसी वैभव को सत्कार्य के लिए लगाएंगे तो परिणाम एक मिलेगा, दुष्कर्मों के लिए लगाएंगे तो परिणाम दूसरा मिलेगा। अगर हमीं सिर्फ अपना हित देखेंगे तो हम हमेशा चारों तरफ मुसीबतें देखते आएंगे, समस्याएं देखते आएंगे, नाराजगी देखते आएंगे, आक्रोश नजर आएगा।
लेकिन अगर आप खुद से ऊपर उठ करके, अपने स्वार्थ से ऊपर उठ करके Nation First की अप्रोच के साथ आगे बढ़ेंगे तो आपको हर समस्या के बीच में भी Solution ढूंढने का मन करेगा, Solution नजर आएगा। बुरी शक्तियों में भी आपको अच्छा ढूंढने का, उसमें से अच्छाई का परिवर्तन का मन करेगा और आप स्थितियां बदलेंगे भी, आप स्वयं भी अपने-आप में एक Solution बनकर उभरेंगे।
अगर आपकी नीयत साफ है और निष्ठा मां भारती के प्रति है, तो आपका हर निर्णय, आपका हर आचरण, आपकी हर कृति किसी ना किसी समस्या के समाधान की तरफ ही बढ़ेगा। सफलता और असफलता हमारा वर्तमान और भविष्य तय नहीं करती है। हो सकता है आपको किसी फैसले के बाद जैसा सोचा था वैसा परिणाम न मिले, लेकिन आपको फैसला लेने में डरना नहीं चाहिए। एक युवा के रूप में, एक मनुष्य के रूप में, जब कभी हमें फैसला लेने से डर लगने लगे तो वो हमारे लिए सबसे बड़ा संकट होगा। अगर फैसले लेने का हौसला चला गया तो मान लीजिएगा कि आपकी युवानी चली गई है। आप युवा नहीं रहे हैं।
जब तक भारत के युवा में नया करने का, रिस्क लेने का और आगे बढ़ने का जज्बा रहेगा, तब तक कम से कम मुझे देश के भविष्य की चिंता नहीं है। और मुझे जो देश युवा हो, 130 करोड़ आबादी में इतनी बड़ी तादाद में युवा शक्ति हो तो मेरा भरोसा और मजबूत हो जाता है, मेरा विश्वास और मजबूत हो जाता है। और इसके लिए आपको जो सपोर्ट चाहिए, जो माहौल चाहिए, उसके लिए मैं खुद भी और सरकार भी…इतना ही नहीं, 130 करोड़ का संकल्पों से भरा हुआ, सपनों से लेकर जीने वाला देश भी आपके समर्थन में खड़ा है।
साथियों,
विश्व भारती के 100 वर्ष के ऐतिहासिक अवसर पर जब मैंने आपसे बात की थी, तो उस दौरान भारत के आत्मसम्मान और आत्मनिर्भरता के लिए आप सभी युवाओं के योगदान का जिक्र किया था। यहां से जाने के बाद, जीवन के अगले पड़ाव में आप सभी युवाओं को अनेक तरह के अनुभव मिलेंगे।
साथियों,
आज जैसे छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती का हमें गर्व है वैसे ही मुझे आज धर्मपाल जी की याद आती है। आज महान गांधीवादी धरमपाल जी की भी जन्म जयंती भी है। उनकी एक रचना है– The Beautiful Tree- Indigenous Indian Education in the Eighteenth Century.
आज आपसे बात करते हुए मैं इस पवित्र धाम में आपसे बात कर रहा हूं तो मेरा मन करता है उसका जिक्र मैं जरूर करूं। और बंगाल की धरती, ऊर्जावान धरती के बीच जब बात कर रहा हूं तब तो मेरा स्वाभाविक मन करता है कि मैं जरूर धरमपाल जी के उस विषय को आपके सामने रखूं। इस पुस्तक में धरमपाल जी थॉमस मुनरो द्वारा किए गए एक राष्ट्रीय शिक्षा सर्वे का ब्योरा दिया है।
1820 में हुए इस शिक्षा सर्वे में कई ऐसी बातें हैं, जो हम सबको हैरान भी करती हैं और गौरव से भर देती हैं। उस सर्वे में भारत की साक्षरता दर बहुत ऊंची आंकी गई थी। सर्वे में ये भी लिखा गया था कि कैसे हर गांव में एक से ज्यादा गुरुकुल थे। और जो गांव के मंदिर होते थे, वो सिर्फ पूजा-पाठ की जगह नहीं, वे शिक्षा को बढ़ावा देने वाले, शिक्षा को प्रोत्साहन देने वाले, एक अत्यंत पवित्र कार्य से भी गांव के मंदिर जुड़े हुए रहते थे। वे भी गुरुकुल की परम्पराओं को आगे बढ़ाने में, बल देने में प्रयास करते थे। हर क्षेत्र, हर राज में तब महाविद्यालयों को बहुत गर्व से देखा जाता था कि कितना बड़ा उनका नेटवर्क था। उच्च शिक्षा के संस्थान भी बहुत बड़ी मात्रा में थे।
भारत पर ब्रिटिश एजुकेशन सिस्टम थोपे जाने से पहले, थॉमस मुनरो ने भारतीय शिक्षा पद्धति और भारतीय शिक्षा व्यवस्था की ताकत को अनुभव किया था, देखा था। उन्होंने देखा था कि हमारी शिक्षा व्यवस्था कितनी vibrant है, ये 200 साल पहले की बात है। इसी पुस्तक में विलियम एडम का भी जिक्र है जिन्होंने ये पाया था कि 1830 में बंगाल और बिहार में एक लाख से ज्यादा Village Schools थे, ग्रामीण विद्यालय थे।
साथियों,
ये बातें मैं आपको विस्तार से इसलिए बता रहा हूं क्योंकि हमें ये जानना आवश्यक है कि हमारी शिक्षा व्यवस्था क्या थी, कितनी गौरवपूर्ण थी, कैसे ये हर इंसान तक पहुंची हुई थी। और बाद में अंग्रेजों के कालखंड में और उसके बाद के कालखंड में हम कहां से कहां पहुंच गए, क्या से क्या हो गया।
गुरुदेव ने विश्वभारती में जो व्यवस्थाएं विकसित कीं, जो पद्धतियां विकसित कीं, वो भारत की शिक्षा व्यवस्था को परतंत्रता की बेड़ियों से मुक्त करने, भारत को आधुनिक बनाने का एक माध्यम थीं। अब आज भारत में जो नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति बनी है, वो भी पुरानी बेड़ियों को तोड़ने के साथ ही, विद्यार्थियों को अपना सामर्थ्य दिखाने की पूरी आजादी देती है। ये शिक्षा नीति आपको अलग–अलग विषयों को पढ़ने की आजादी देती है। ये शिक्षा नीति, आपको अपनी भाषा में पढ़ने का विकल्प देती है। ये शिक्षा नीति entrepreneurship, self-employment को भी बढ़ावा देती है।
ये शिक्षा नीति Research को, Innovation को बल देती है, बढ़ावा देती है। आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में ये शिक्षा नीति भी एक अहम पड़ाव है। देश में एक मज़बूत रिसर्च और इनोवेशन इकोसिस्टम बनाने के लिए भी सरकार लगातार काम कर रही है। हाल ही में सरकार ने देश और दुनिया के लाखों Journals की फ्री एक्सेस अपने स्कॉलर्स को देने का फैसला किया है। इस साल बजट में भी रिसर्च के लिए नेशनल रिसर्च फाउंडेशन के माध्यम से आने वाले 5 साल में 50 हज़ार करोड़ रुपए खर्च करने का प्रस्ताव रखा है।
साथियों,
भारत की आत्मनिर्भरता, देश की बेटियों के आत्मविश्वास के बिना संभव नहीं है। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में पहली बार Gender Inclusion Fund की भी व्यवस्था की गई है। इस पॉलिसी में छठी क्लास से ही Carpentry से लेकर Coding तक ऐसे अनेक स्किल सेट्स पढ़ाने की योजना इसमें है, जिन स्किल्स से लड़कियों को दूर रखा जाता था। शिक्षा नीति बनाते समय, बेटियों में Drop-out Rate ज्यादा होने के कारणों को गंभीरता से स्टडी किया गया है। इसलिए, पढ़ाई में निरंतरता, डिग्री कोर्स में एंट्री और एग्जिट का ऑप्शन हो और हर साल का क्रेडिट मिले, इसकी एक नए प्रकार की व्यवस्था की गई।
साथियों,
बंगाल ने अतीत में भारत के समृद्ध ज्ञान–विज्ञान को आगे बढ़ाने में देश को नेतृत्व दिया और ये गौरवपूर्ण बात है। बंगाल, एक भारत, श्रेष्ठ भारत की प्रेरणा स्थली भी रहा है और कर्मस्थली भी रहा है। शताब्दी समारोह में चर्चा के दौरान मैंने इस पर भी विस्तार से अपनी बात रखी थी। आज जब भारत 21वीं सदी की Knowledge economy बनाने की तरफ बढ़ रहा है तब भी नज़रें आप पर हैं, आप जैसे नौजवानों पर हैं, बंगाल की ज्ञान संपदा पर हैं, बंगाल के ऊर्जावान नागरिकों पर हैं। भारत के ज्ञान और भारत की पहचान को विश्व के कोने–कोने तक पहुंचाने में विश्व भारती की बहुत बड़ी भूमिका है।
इस वर्ष हम अपनी आजादी के 75वें वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं। विश्व भारती के प्रत्येक विद्यार्थी की तरफ से देश को सबसे बड़ा उपहार होगा कि भारत की छवि को और निखारने के लिए हम सब मिल करके और विशेष करके मेरे नौजवान साथी ज्यादा से ज्यादा लोगों को जागरूक करें। भारत जो है, जो मानवता, जो आत्मीयता, जो विश्व कल्याण की भावना हमारे रक्त के कण–कण में है, उसका ऐहसास बाकी देशों को कराने के लिए, पूरी मानव जाति को कराने के लिए विश्व भारती को देश की शिक्षा संस्थाओं का नेतृत्व करना चाहिए।
मेरा आग्रह है, अगले 25 वर्षों के विश्व भारती के विद्यार्थी मिलकर एक विजन डॉक्यूमेंट बनाएं। जब आजादी के 100 साल होंगे, वर्ष 2047 में जब भारत अपनी आजादी के 100 वर्ष का समारोह बनाएगा, तब तक विश्व भारती के 25 सबसे बड़े लक्ष्य क्या होंगे, ये इस विजन डॉक्यूमेंट में रखे जा सकते हैं। आप अपने गुरुजनों के साथ चिंतन–मनन करें, लेकिन कोई न कोई लक्ष्य अवश्य तय करें।
आपने अपने क्षेत्र के अनेक गांवों को गोद लिया हुआ है। क्या इसकी शुरुआत, हर गांव को आत्मनिर्भर बनाने से हो सकती है? पूज्य बापू ग्रामराज्य की जो बात करते थे, ग्राम स्वराज की बात करते थे। मेरे नौजवान साथियो गांव के लोग, वहां के शिल्पकार, वहां के किसान, इन्हें आप आत्मनिर्भर बनाइए, इनके उत्पादों को विश्व के बड़े–बड़े बाजारों में पहुंचाने की कड़ी बनिए।
विश्व भारती तो, बोलपुर जिले का मूल आधार है। यहाँ के आर्थिक–भौतिक, सांस्कृतिक सभी गतिविधियों में विश्वभारती रचा–बसा है, एक जीवंत इकाई है। यहां के लोगों को, समाज को सशक्त करने के साथ ही, आपको अपना बृहद दायित्व भी निभाना है।
आप अपने हर प्रयास में सफल हों, अपने संकल्पों को सिद्धि में बदलें। जिन उद्देश्यों को ले करके विश्व भारती में कदम रखा था और जिन संस्कारों और ज्ञान की संपदा को लेकर आज जब आप विश्वभारती से कदम दुनिया की दहलीज पर रख रहे हैं, तब दुनिया आपसे बहुत कुछ चाहती है, बहुत कुछ अपेक्षाएं रखती है। और इस मिट्टी ने आपको संवारा है, आपको संभाला है। और आपको विश्व की अपेक्षाओं को पूर्ण करने योग्य बनाया है, मानव की अपेक्षाओं को पूर्ण करने योग्य बनाया है। आप आत्म विश्वास से भरे हुए हैं, आप संकल्पों के प्रति प्रतिबद्ध हैं, संस्कारों से पुलकित हुई आपकी जवानी है। ये आने वाली पीढ़ियों को काम आएगी, देश के काम आएगी। 21वीं सदी में भारत अपना उचित स्थान प्राप्त करे, इसके लिए आपका सामर्थ्य बहुत बड़ी ताकत के रूप में उभरेगा, ये पूरा विश्वास है और आप ही के बीच में आप ही का एक सहयात्री होने के नाते मैं आज इस गौरवपूर्ण क्षण में अपने-आप को धनवान मानता हूं। और हम सब मिल करके इस गुरुदेव टैगोर ने जिस पवित्र मिट्टी से हम लोगों को शिक्षित किया है, संस्कारित किया है, हम सब मिलके आगे बढ़ें, यही मेरी आपको शुभकामनाएं हैं।
मेरी तरफ से अनेक-अनेक शुभकामनाएं। आपके माता-पिता को मेरा प्रणाम, आपके गुरुजनों को प्रणाम।
मेरी तरफ से बहुत-बहुत धन्यवाद।
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डीएस/एसएच/एनएस
Addressing the Visva-Bharati. Watch. https://t.co/HDxyZLMVc7
— Narendra Modi (@narendramodi) February 19, 2021
गुरुदेव अगर विश्व भारती को सिर्फ एक यूनिवर्सिटी के रूप में देखना चाहते, तो वो इसको Global University या कोई और नाम भी दे सकते थे।
— PMO India (@PMOIndia) February 19, 2021
लेकिन उन्होंने, इसे विश्व भारती विश्वविद्यालय नाम दिया: PM @narendramodi
गुरुदेव टैगोर के लिए विश्व भारती, सिर्फ ज्ञान देने वाली एक संस्था नहीं थी।
— PMO India (@PMOIndia) February 19, 2021
ये एक प्रयास है भारतीय संस्कृति के शीर्षस्थ लक्ष्य तक पहुंचने का, जिसे हम कहते हैं- स्वयं को प्राप्त करना: PM @narendramodi
जब आप अपने कैंपस में बुधवार को ‘उपासना’ के लिए जुटते हैं, तो स्वयं से ही साक्षात्कार करते हैं।
— PMO India (@PMOIndia) February 19, 2021
जब आप गुरुदेव द्वारा शुरू किए गए समारोहों में जुटते हैं, तो स्वयं से ही साक्षात्कार करते हैं: PM @narendramodi
विश्व भारती तो अपने आप में ज्ञान का वो उन्मुक्त समंदर है, जिसकी नींव ही अनुभव आधारित शिक्षा के लिए रखी गई।
— PMO India (@PMOIndia) February 19, 2021
ज्ञान की, क्रिएटिविटी की कोई सीमा नहीं होती, इसी सोच के साथ गुरुदेव ने इस महान विश्वविद्यालय की स्थापना की थी: PM @narendramodi
आपको ये भी हमेशा याद रखना होगा कि ज्ञान, विचार और स्किल, स्थिर नहीं है, ये सतत चलने वाली प्रक्रिया है।
— PMO India (@PMOIndia) February 19, 2021
और इसमें Course Correction की गुंजाइश भी हमेशा रहेगी।
लेकिन Knowledge और Power, दोनों Responsibility के साथ आते हैं: PM @narendramodi
जिस प्रकार, सत्ता में रहते हुए संयम और संवेदनशील रहना पड़ता है, उसी प्रकार हर विद्वान को, हर जानकार को भी उनके प्रति ज़िम्मेदार रहना पड़ता है जिनके पास वो शक्ति नहीं है।
— PMO India (@PMOIndia) February 19, 2021
आपका ज्ञान सिर्फ आपका नहीं बल्कि समाज की, देश की धरोहर है: PM @narendramodi at Visva Bharati Convocation
आपका ज्ञान, आपकी स्किल, एक समाज को, एक राष्ट्र को गौरवान्वित भी कर सकती है और वो समाज को बदनामी और बर्बादी के अंधकार में भी धकेल सकती है।
— PMO India (@PMOIndia) February 19, 2021
इतिहास और वर्तमान में ऐसे अनेक उदाहरण हैं: PM @narendramodi
आप देखिए, जो दुनिया में आतंक फैला रहे हैं, जो दुनिया में हिंसा फैला रहे हैं, उनमें भी कई Highly Learned, Highly Skilled लोग हैं।
— PMO India (@PMOIndia) February 19, 2021
दूसरी तरफ ऐसे भी लोग हैं जो कोरोना जैसी वैश्विक महामारी से दुनिया को मुक्ति दिलाने के लिए दिनरात प्रयोगशालाओं में जुटे हुए हैं: PM @narendramodi
ये सिर्फ विचारधारा का प्रश्न नहीं है, बल्कि माइंडसेट का भी विषय है।
— PMO India (@PMOIndia) February 19, 2021
आप क्या करते हैं, ये इस बात पर निर्भर करता है कि आपका माइंडसेट पॉजिटिव है या नेगेटिव है: PM @narendramodi
अगर आपकी नीयत साफ है और निष्ठा मां भारती के प्रति है, तो आपका हर निर्णय किसी ना किसी समाधान की तरफ ही बढ़ेगा।
— PMO India (@PMOIndia) February 19, 2021
सफलता और असफलता हमारा वर्तमान और भविष्य तय नहीं करती।
हो सकता है आपको किसी फैसले के बाद जैसा सोचा था वैसा परिणाम न मिले, लेकिन आपको फैसला लेने में डरना नहीं चाहिए: PM
आज महान गांधीवादी धरमपाल जी की जन्म जयंती भी है।
— PMO India (@PMOIndia) February 19, 2021
उनकी एक रचना है- The Beautiful Tree- Indigenous Indian Education in the Eighteenth Century.
आज आपसे बात करते हुए मैं इसका जिक्र भी करना चाहता हूं: PM @narendramodi
इस पुस्तक में धरमपाल जी ने थॉमस मुनरो द्वारा किए गए एक राष्ट्रीय शिक्षा सर्वे का ब्योरा दिया है।
— PMO India (@PMOIndia) February 19, 2021
1820 में हुए इस शिक्षा सर्वे में कई ऐसी बातें हैं, जो हैरान करती हैं।
उस सर्वे में भारत की साक्षरता दर बहुत ऊंची आंकी गई थी: PM @narendramodi
भारत पर ब्रिटिश एजुकेशन सिस्टम थोपे जाने से पहले, थॉमस मुनरो ने भारतीय शिक्षा पद्धति और भारतीय शिक्षा व्यवस्था की ताकत देखी थी।
— PMO India (@PMOIndia) February 19, 2021
उन्होंने देखा था कि हमारी शिक्षा व्यवस्था कितनी वाइब्रेंट है: PM @narendramodi
इसी पुस्तक में विलियम एडम का भी जिक्र है जिन्होंने ये पाया था कि 1830 में बंगाल और बिहार में एक लाख से ज्यादा Village Schools थे: PM @narendramodi
— PMO India (@PMOIndia) February 19, 2021
गुरुदेव ने विश्वभारती में जो व्यवस्थाएं विकसित कीं, जो पद्धतियां विकसित कीं, वो भारत की शिक्षा व्यवस्था को परतंत्रता की बेड़ियों से मुक्त करने, उन्हें आधुनिक बनाने का एक माध्यम थीं: PM @narendramodi at Visva Bharati Convocation
— PMO India (@PMOIndia) February 19, 2021
आज भारत में जो नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति बनी है, वो भी पुरानी बेड़ियों को तोड़ने के साथ ही, विद्यार्थियों को अपना सामर्थ्य दिखाने की पूरी आजादी देती।
— PMO India (@PMOIndia) February 19, 2021
ये शिक्षा नीति आपको अलग-अलग विषयों को पढ़ने की आजादी देती है।
ये शिक्षा नीति, आपको अपनी भाषा में पढ़ने का विकल्प देती है: PM
ये शिक्षा नीति entrepreneurship, self employment को भी बढ़ावा देती है।
— PMO India (@PMOIndia) February 19, 2021
ये शिक्षा नीति Research को, Innovation को बढ़ावा देती है।
आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में ये शिक्षा नीति भी एक अहम पड़ाव है: PM @narendramodi
हाल ही में सरकार ने देश और दुनिया के लाखों Journals की फ्री एक्सेस अपने स्कॉलर्स को देने का फैसला किया है।
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इस साल बजट में भी रिसर्च के लिए नेशनल रिसर्च फाउंडेशन के माध्यम से आने वाले 5 साल में 50 हज़ार करोड़ रुपए खर्च करने का प्रस्ताव रखा है: PM @narendramodi
भारत की आत्मनिर्भरता, देश की बेटियों के आत्मविश्वास के बिना संभव नहीं है।
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नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में पहली बार Gender Inclusion Fund की भी व्यवस्था की गई है: PM @narendramodi
बंगाल ने अतीत में भारत के समृद्ध ज्ञान-विज्ञान को आगे बढ़ाने में देश को नेतृत्व दिया।
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बंगाल, एक भारत, श्रेष्ठ भारत की प्रेरणा स्थली भी रहा है और कर्मस्थली भी रहा है: PM @narendramodi
इस वर्ष हम अपनी आजादी के 75वें वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं।
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विश्व भारती के प्रत्येक विद्यार्थी की तरफ से देश को सबसे बड़ा उपहार होगा कि भारत की छवि को और निखारने के लिए आप ज्यादा से ज्यादा लोगों को जागरूक करें: PM @narendramodi
भारत जो है, जो मानवता, जो आत्मीयता, जो विश्व कल्याण की भावना हमारे रक्त के कण-कण में है, उसका ऐहसास बाकी देशों को कराने के लिए विश्व भारती को देश की शिक्षा संस्थाओं का नेतृत्व करना चाहिए: PM @narendramodi
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मेरा आग्रह है, अगले 25 वर्षों के लिए विश्व भारती के विद्यार्थी मिलकर एक विजन डॉक्यूमेंट बनाएं।
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वर्ष 2047 में, जब भारत अपनी आजादी के 100 वर्ष का समारोह बनाएगा, तब तक विश्व भारती के 25 सबसे बड़े लक्ष्य क्या होंगे, ये इस विजन डॉक्यूमेंट में रखे जा सकते हैं: PM @narendramodi