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विज्ञान भवन, नई दिल्ली में सतर्कता जागरूकता सप्ताह पर आयोजित कार्यक्रम में प्रधानमंत्री के संबोधन का मूल पाठ

विज्ञान भवन, नई दिल्ली में सतर्कता जागरूकता सप्ताह पर आयोजित कार्यक्रम में प्रधानमंत्री के संबोधन का मूल पाठ


मंत्रिमंडल के मेरे सहयोगी डॉक्टर जितेंद्र सिंह जी, प्रिंसिपल सेक्रेटरी डॉक्टर पी के मिश्रा, श्री राजीव गौबा, सीवीसी श्री सुरेश पटेल, अन्य सभी कमिशनर्स, देवियों और सज्जनों !

ये सतर्कता सप्ताह सरदार साहब की जन्म जयंती से शुरू हुआ है। सरदार साहब का पूरा जीवन ईमानदारी, पारदर्शिता और इससे प्रेरित पब्लिक सर्विस के निर्माण के लिए समर्पित रहा। और इसी कमिटमेंट के साथ आपने सतर्कता को लेकर जागृति का ये अभियान चलाया है। इस बार आप सभी ‘विकसित भारत के लिए भ्रष्टाचार मुक्त भारत’, इस संकल्प के साथ सतर्कता सप्ताह मना रहे हैं। ये संकल्प आज के समय की मांग है, प्रासंगिक है और देशवासियों के लिए उतना ही महत्वपूर्ण है।

साथियों,

विकसित भारत के लिए, विश्वास और विश्वसनीयता, ये दोनों बहुत आवश्यक है। सरकार के ऊपर जनता का बढ़ता हुआ विश्वास, जनता का भी आत्मविश्वास बढ़ाता है। हमारे यहां मुश्किल ये भी रही कि सरकारों ने जनता का विश्वास तो खोया ही, जनता पर भी विश्वास करने में पीछे रहीं। गुलामी के लंबे कालखंड से हमें भ्रष्टाचार की, शोषण की, संसाधनों पर कंट्रोल की जो legacy मिली, उसको दुर्भाग्य से आजादी के बाद और विस्तार मिला और इसका बहुत नुकसान देश की चार-चार पीढ़ी ने उठाया है।

लेकिन आजादी के इस अमृतकाल में हमें दशकों से चली आ रही इस परिपाटी को पूरी तरह बदल देना है। इस बार 15 अगस्त को लाल किले से भी मैंने कहा है कि बीते आठ वर्षों के श्रम, साधना, कुछ initiative, उसके बाद अब भ्रष्टाचार के खिलाफ निर्णायक लड़ाई का समय आ गया है। इस संदेश को समझते हुए, इस मार्ग पर चलते हुए हम विकसित भारत की तरफ तेजी से जा पाएंगे।

साथियों,

हमारे देश में भ्रष्टाचार की और देशवासियों को आगे बढ़ने से रोकने वाली दो बड़ी वजहें रही हैं- एक-सुविधाओं का अभाव और दूसरा-सरकार का अनावश्यक दबाव। लंबे समय तक हमारे यहां सुविधाओं का, अवसरों का अभाव बनाए रखा गया, एक गैप, एक खाई बढ़ने दी गई। इससे एक अस्वस्थ स्पर्धा शुरू हुई जिसमें किसी भी लाभ को, किसी भी सुविधा को दूसरे से पहले पाने की होड़ लग गई। इस होड़ ने भ्रष्टाचार का इकोसिस्टम बनाने के लिए एक प्रकार से खाद-पानी का काम किया। राशन की दुकान में लाइन, गैस कनेक्शन से लेकर सिलेंडर भरवाने में लाइन, बिल भरना हो, एडमिशन लेना हो, लाइसेंस लेना हो, कोई परमिशन लेनी हो, सब जगह लाइन। ये लाइन जितनी लंबी, भ्रष्टाचार की जमीन उतनी ही समृद्ध। और इस तरह के भ्रष्टाचार का सबसे ज्यादा नुकसान अगर किसी को उठाना पड़ता है, तो वो है देश का गरीब और देश का मध्यम वर्ग।

जब देश का गरीब और मध्यम वर्ग, अपनी ऊर्जा इन्हीं संसाधनों को जुटाने में लगा देगा तो फिर देश कैसे आगे बढ़ेगा, कैसे विकसित होगा? इसलिए हम बीते 8 वर्षों से अभाव और दबाव से बनी व्यवस्था को बदलने का प्रयास कर रहे हैं, डिमांड और सप्लाई के गैप को भरने की कोशिश कर रहे हैं। इसके लिए हमने कई रास्ते चुने हैं।

तीन प्रमुख बातों की ओर मैं ध्‍यान आकर्षित करना चाहूंगा। एक आधुनिक टेक्नोलॉजी का रास्ता, दूसरा मूल सुविधाओं के सैचुरेशन का लक्ष्य, और तीसरा आत्मनिर्भरता का रास्ता। अब जैसे राशन को ही लीजिए। बीते 8 वर्षों में हमने पीडीएस को टेक्नॉलॉजी से जोड़ा, और करोड़ों फर्ज़ी लाभार्थियों को सिस्टम से बाहर कर दिया।

इसी प्रकार, डीबीटी से अब सरकार द्वारा दिया जाने वाला लाभ सीधे लाभार्थियों तक पहुंचाया जा रहा है। इस एक कदम से ही अभी तक 2 लाख करोड़ रुपए से अधिक गलत हाथों में जाने से बचा है। कैश आधारित अर्थव्यवस्था में घूसखोरी, काला धन, ये डिटेक्ट करना कितना मुश्किल है, ये हम सब जानते हैं।

अब डिजिटल व्यवस्था में लेन-देन का पूरा ब्योरा कहीं ज्यादा आसानी से उपलब्ध हो रहा है। गवर्नमेंट ई मार्केट प्लेस- GeM जैसी व्यवस्था से सरकारी खरीद में कितनी पारदर्शिता आई है, ये जो भी इसके साथ जुड़ रहे हैं, उसका महत्‍व समझ रहे हैं, अनुभव कर रहे हैं।

साथियों,

किसी भी सरकारी योजना के हर पात्र लाभार्थी तक पहुंचना, सैचुरेशन के लक्ष्यों को प्राप्त करना समाज में भेदभाव भी समाप्त करता है और भ्रष्टाचार की गुंजाइश को भी खत्म कर देता है। जब सरकार और सरकार के विभिन्न विभाग, खुद ही आगे बढ़कर हर पात्र व्यक्ति को तलाश रहे हैं, उसके दरवाजे जाकर दस्‍तक दे रहे हैं, तो जो बिचौलिए बीच में बने रहते थे, उनकी भूमिका भी समाप्त हो जाती है। इसलिए हमारी सरकार द्वारा हर योजना में सैचुरेशन के सिद्धांत को अपनाया गया है। हर घर जल, हर गरीब को पक्की छत, हर गरीब को बिजली कनेक्शन, हर गरीब को गैस कनेक्शन, ये योजनाएं सरकार की इसी अप्रोच को दिखाती है।

साथियों,

विदेशों पर अत्याधिक निर्भरता भी भ्रष्टाचार का एक बड़ा कारण रही है। आप जानते हैं कि कैसे दशकों तक हमारे डिफेंस सेक्टर को विदेशों पर निर्भर रखा गया। इस वजह से कितने ही घोटाले हुए। आज हम डिफेंस सेक्टर में आत्मनिर्भरता के लिए जो ज़ोर लगा रहे हैं, उससे भी इन घोटालों का स्कोप भी समाप्त हो गया है। राइफल से लेकर फाइटर जेट्स और ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट तक आज भारत खुद बनाने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। डिफेंस ही नहीं, बल्कि बाकी जरूरतों के लिए हमें विदेशों से खरीद, कम से कम उस पर निर्भर रहना पड़े, आत्मनिर्भरता के ऐसे प्रयासों को आज बढ़ावा दिया जा रहा है।

साथियों,

सीवीसी पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए सबके प्रयास को प्रोत्साहित करने वाला संगठन है। अब पिछली बार मैंने आप सभी से प्रिवेंटिव विजिलेंस पर ध्यान देने का आग्रह किया था। मुझे बताया गया है कि आपने इस दिशा में अनेक कदम उठाए हैं। इसके लिए जो 3 महीने का अभियान चलाया गया है, वो भी प्रशंसनीय है, मैं आपको और आपकी पूरी टीम को बधाई देता हूं। और इसके लिए ऑडिट का, इंस्पेक्शन का एक पारंपरिक तरीका आप अपना रहे हैं। लेकिन इसको और आधुनिक, अधिक टेक्नोलॉजी ड्रिवन कैसे बनाएं, इसको लेकर भी आप ज़रूर सोचते रहे हैं और सोचना भी चाहिए।

साथियों,

भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार जो इच्छा शक्ति दिखा रही है, वैसी ही इच्छाशक्ति सभी विभागों में भी दिखनी आवश्यक है। विकसित भारत के लिए हमें एक ऐसा administrative ecosystem विकसित करना है, जो भ्रष्टाचार पर zero tolerance रखता हो। ये आज सरकार की नीति में, सरकार की इच्छाशक्ति में, सरकार के फैसलों में, आप हर जगह पर देखते होंगे। लेकिन यही भाव हमारी प्रशासनिक व्यवस्था के DNA में भी मजबूती से बनना चाहिए। एक भावना ये है कि जो भ्रष्ट अफसर होते हैं, उनके खिलाफ कार्रवाई, चाहे वो आपराधिक हो या फिर विभागीय, बरसों तक चलती रहती है। क्या हम भ्रष्टाचार से संबंधित disciplinary proceedings को मिशन मोड में, एक अवधि तय करके पूरा कर सकते हैं? क्‍योंकि लटकती तलवार उसको भी परेशान करती है। अगर वो निर्दोष है, और इस चक्र में आ गया तो उसको इस बात का बड़ा जीवन भर दुख रहता है कि मैंने प्रमाणिकता से जिंदगी जी और मुझे कैसा फंसा दिया और फिर निर्णय नहीं कर रहे हैं। जिसने बुरा किया है, उसका नुकसान अलग से ही है, लेकिन जिसने नहीं किया वो इस लटकती तलवार के कारण सरकार के लिए और जीवन के लिए हर प्रकार से बोझ बन जाता है। अपने ही साथियों को इस प्रकार से लंबे-लंबे समय तक लटकाए रखने का क्‍या फायदा है।

साथियों,

इस तरह के आरोपों पर जितनी जल्दी फैसला होगा, उतनी ही प्रशासनिक व्यवस्था में पारदर्शिता आएगी, उसकी शक्ति बढ़ेगी। जो criminal cases हैं, उनमें भी तेजी से कार्रवाई किए जाने, उनकी लगातार मॉनिटरिंग किए जाने की आवश्यकता है। एक और काम जो किया जा सकता है, वो है pending corruption cases के आधार पर डिपार्टमेंट्स की रैकिंग। अब उसमें भी स्वच्छता के लिए जैसे हम कम्‍पीटीशन करते हैं, इसमें भी करें। देखें तो कौन डिपार्टमेंट इसमें बड़ा उदासीन है, क्‍या कारण है। और कौन डिपार्टमेंट है जो बहुत तेजी से इस समस्या को गंभीरता से ले करके आगे बढ़ रहा है। और इससे जुड़ी रिपोर्ट्स का मासिक या तिमाही पब्लिकेशन, अलग-अलग विभागों को भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रहे केसों को तेजी से निपटाने के लिए प्रेरित करेगा।

हमें टेक्नोलॉजी के माध्यम से एक और काम करना चाहिए। अक्सर देखा गया है कि vigilance clearance में काफी समय लग जाता है। इस प्रक्रिया को भी टेक्नोलॉजी की मदद से streamline किया जा सकता है। एक विषय और जो मैं आपके सामने रखना चाहता हूं, वो है public grievance के डेटा का। सरकार के विभिन्न विभागों में सामान्य मानवी द्वारा शिकायतें भेजी जाती हैं, उनके निपटारे का भी एक सिस्टम बना हुआ है।

लेकिन अगर public grievance के डेटा का हम ऑडिट कर सकें, तो ये पता लगेगा कि कोई खास विभाग है कि वहां ज्‍यादा से ज्‍यादा शिकायतें आ रही हैं। कोई खास पर्सन है, उसी के यहां जा करके सारा मामला अटकता है। क्‍या कोई प्रोसेसिंग पद्धतियाँ जो हैं हमारी, उसी में कोई गड़बड़ी है, जिस कारण मुसीबतें आ रही हैं। मुझे लगता है ऐसा करके आप उस विभाग में भ्रष्टाचार की तह तक आसानी से पहुंच पाएंगे। हमें इन कम्प्लेंट्स को आइसोलेटेड नहीं देखना चाहिए। पूरी तरह कैनवास पर रख करके सारा analysis करना चाहिए। और इससे जनता का भी सरकार और प्रशासनिक विभागों पर विश्वास और बढ़ेगा।

साथियों,

करप्शन पर निगरानी के लिए हम समाज की भागीदारी, सामान्य नागरिक की भागीदारी को हम अधिक से अधिक कैसे प्रोत्साहित कर सकते हैं, इस पर भी काम होना चाहिए। इसलिए भ्रष्टाचारी चाहे कितना भी ताकतवर क्यों ना हो, वो किसी भी हाल में बचना नहीं चाहिए, ये आप जैसी संस्थाओं की जिम्मेदारी है।

किसी भ्रष्टाचारी को राजनीतिक-सामाजिक शरण ना मिले, हर भ्रष्टाचारी समाज द्वारा कठघरे में खड़ा किया जाना चाहिए, ये वातावरण बनाना भी आवश्यक है। हमने देखा है कि जेल की सजा होने के बावजूद भी, भ्रष्टाचार साबित होने के बावजूद भी कई बार भ्रष्टाचारियों का गौरवगान किया जाता है। मैं तो देख रहा हूं, ऐसे ईमानदारी का ठेका ले करके घूमने वाले लोग उनके साथ जा करके ऐसे हाथ पकड़कर फोटो निकालने में शर्म नहीं आती उनको।

ये स्थिति भारतीय समाज के लिए ठीक नहीं। आज भी कुछ लोग दोषी पाए जा चुके भ्रष्टाचारियों के पक्ष में भांति-भांति के तर्क देते हैं। अब तो भ्रष्‍टाचारियों को बड़े-बड़े सम्‍मान देने के लिए वकालत की जा रही है, ये कभी ऐसा सुना नहीं हमने देश में। ऐसे लोगों, ऐसी ताकतों को भी समाज द्वारा अपने कर्तव्य का बोध कराया जाना बहुत आवश्यक है। इसमें भी आपके विभाग द्वारा की गई ठोस कार्रवाई की बड़ी भूमिका है।

साथियों,

आज जब मैं आपके बीच आया हूं तो कुछ और बातें भी करने का मन स्वाभाविक करता है। भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध कार्रवाई करने वाले सीवीसी जैसे सभी संगठनों को और यहां सभी आपकी एजेंसीज के लोग बैठे हैं, आपको डिफेंसिव होने की कोई ज़रूरत नहीं है। अगर देश की भलाई के लिए काम करते हैं, तो अपराधबोध में जीने की जरूरत नहीं हैं दोस्‍तों। हमें political agenda पर नहीं चलना है।

लेकिन देश के सामान्‍य मानवी को जो मुसीबतें आ रही हैं, उसे मुक्ति दिलाने का हमारा काम है, ये काम हमको करना है। और जिनके vested interest हैं वो चिल्‍लाएंगे, वो इंस्‍टीट्यूशन के गले रोंदने की कोशिश करेंगे। इस इंस्‍टीट्यूशन में बैठे हुए समर्पित लोगों को बदनाम करने का प्रयास किया जाएगा। ये सब होगा, मैं लंबे अर्से तक इस व्‍यवस्‍था से निकला हुआ हूं दोस्तों। लंबे अरसे तक हेड ऑफ द गवर्नमेंट के रूप में मुझे काम करने का अवसर मिला है। मैंने बहुत गालियां सुनी, बहुत आरोप सुने दोस्तों, कुछ बचा नहीं मेरे लिए।

लेकिन जनता-जनार्दन ईश्‍वर का रूप होती है, वो सत्‍य को परखती है, सत्‍य को जानती है और मौका आने पर सत्‍य के साथ खड़ी भी रहती है। मैं अपने अनुभव से कहता हूं दोस्‍तों। चल पड़िए ईमानदारी के लिए, चल पड़िए आपको जो ड्यूटी मिली है उसको ईमानदारी से निभाने के लिए। आप देखिए, ईश्‍वर आपके साथ चलेगा, जनता-जनार्दन आपके साथ चलेगी, कुछ लोग चिल्‍लाते रहेंगे, क्‍योंकि उनका निजी स्‍वार्थ होता है। उनके स्‍वयं के पैर गंदगी में पड़े हुए होते हैं।

और इसलिए मैं बार-बार कहता हूं, देश के लिए, ईमानदारी के लिए, काम करते समय कुछ भी अगर इस प्रकार के विवाद खड़े होते हैं, अगर हम ईमानदारी के रास्‍ते पर चलेंगे, प्रामाणिकता से काम कर रहे हैं, डिफेंसिव होने की कोई जरूरत नहीं दोस्‍तों।

आप सभी साक्षी हैं कि जब आप conviction के साथ action लेते हैं, कई मौके आपके जीवन में भी आए होंगे, समाज आपके साथ खड़ा ही रहा होगा, दोस्‍तों। भ्रष्टाचार मुक्त देश और भ्रष्टाचार मुक्त समाज बनाने के लिए सीवीसी जैसी संस्थाओं को निरंतर जागृत रहना वो एक विषय है, लेकिन उन्‍हें सारी व्‍यवस्‍थाओं को भी जागरूक रखना पड़ेगा, क्‍योंकिे अकेले तो क्‍या करेंगे, चार-छह लोग एक दफ्तर में बैठ करके क्‍या कर पाएंगे। पूरी व्‍यवस्‍था जब तक उनके साथ जुड़ती नहीं है, उस स्पिरिट को ले करके जीती नहीं है, तो व्‍यवस्‍थाएं भी कभी-कभी चरमरा जाती हैं।

साथियों,

आपका दायित्व बहुत बड़ा है। आपकी चुनौतियां भी बदलती रहती हैं। और इसलिए आपके तौर-तरीकों में, कार्यप्रणाली में भी निरंतर गतिशीलता आवश्यक है। मुझे विश्वास है कि आप अमृतकाल में एक पारदर्शी और प्रतिस्पर्धी इकोसिस्टम के निर्माण में अहम भूमिका निभाते रहेंगे।

मुझे अच्‍छा लगा आज कुछ school students यहां बुलाए गए हैं। सबने Essay कम्‍पीटीशन में हिस्‍सा लिया। एक लगातार स्‍पीच कम्‍पीटीशन की भी परंपरा विकसित की जा सकती है। लेकिन एक बात की तरफ मेरा ध्‍यान गया, आपका भी ध्‍यान गया होगा। आपने भी उसको देखा होगा, बहुतों ने देखा होगा, बहुतों ने जो देखा उस पर सोचा होगा। मैंने भी देखा, मैंने भी सोचा। सिर्फ 20 प्रतिशत पुरुष भ्रष्‍टाचार के खिलाफ की लड़ाई में इनाम ले गए, 80 पर्सेंट बेटियां ले गईं। पांच में से चार बेटियां, मतलब ये 20 को 80 कैसे करें, क्‍योंकि डोर तो उनके हाथ में हैं। इन पुरुष में भी भ्रष्‍टाचार के खिलाफ वो ही ताकत पैदा हो, जो इन बेटियों के दिल-दिमाग में पड़ी है, उज्‍ज्‍वल भविष्‍य का रास्‍ता तभी वही बनेगा।

लेकिन आपका इस preventive इस दृष्टि से ये अभियान अच्‍छा है कि बच्‍चों के मन में भ्रष्‍टाचार के खिलाफ एक नफरत पैदा होनी चाहिए। जब तक गंदगी के खिलाफ नफरत पैदा नहीं होती, स्‍वच्‍छता का महत्‍व समझ में नहीं आता है। और भ्रष्‍टाचार को कम न आंकें, पूरी व्‍यवस्‍था को चरमरा देता है जी। और मैं जानता हूं, इस पर बार-बार सुनना पड़ेगा, बार-बार बोलना पड़ेगा, बार-बार सजग रहना पड़ेगा।

कुछ लोग अपनी शक्ति इसलिए भी लगाते हैं कि इतने कानूनों में से बाहर कैसे रह करके सब किया जाए, वो ज्ञान का उपयोग वो भी करते हैं, advise भी करते हैं इसके लिए, इस दायरे के बाहर करोगे कोई problem नहीं होगी। लेकिन अब दायरा बढ़ता ही चला जा रहा है। आज नहीं तो कल, कभी न कभी तो समस्‍या आनी ही है और बचना मुश्किल है जी। टेक्‍नोलॉजी कुछ न कुछ तो सबूत छोड़ रही है। जितना ज्‍यादा टेक्‍नोलॉजी की ताकत का उपयोग होगा, हम व्‍यवस्‍थाओं को बदल सकते हैं और बदली भी जा सकती हैं। हम कोशिश करें।

मेरी आप सभी को बहुत-बहुत शुभकामनाएं हैं।

धन्यवाद भाइयों !

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DS/NS