मेरे प्यारे देशवासियो, नमस्कार। अगस्त के इस महीने में, आप सभी के पत्रों, संदेशों और cards ने, मेरे कार्यालय को तिरंगामय कर दिया है। मुझे ऐसा शायद ही कोई पत्र मिला हो, जिस पर तिरंगा न हो, या तिरंगे और आज़ादी से जुड़ी बात न हो। बच्चों ने, युवा साथियों ने तो अमृत महोत्सव पर खूब सुंदर-सुंदर चित्र, और कलाकारी भी बनाकर भेजी है। आज़ादी के इस महीने में हमारे पूरे देश में, हर शहर, हर गाँव में, अमृत महोत्सव की अमृतधारा बह रही है। अमृत महोत्सव और स्वतंत्रता दिवस के इस विशेष अवसर पर हमने देश की सामूहिक शक्ति के दर्शन किए हैं। एक चेतना की अनुभूति हुई है। इतना बड़ा देश, इतनी विविधताएं, लेकिन जब बात तिरंगा फहराने की आई, तो हर कोई, एक ही भावना में बहता दिखाई दिया। तिरंगे के गौरव के प्रथम प्रहरी बनकर, लोग, खुद आगे आए। हमने स्वच्छता अभियान और वैक्सीनेशन अभियान में भी देश की spirit को देखा था। अमृत महोत्सव में हमें फिर देशभक्ति का वैसा ही जज़्बा देखने को मिल रहा है। हमारे सैनिकों ने ऊँची-ऊँची पहाड़ की चोटियों पर, देश की सीमाओं पर, और बीच समंदर में तिरंगा फहराया। लोगों ने तिरंगा अभियान के लिए अलग-अलग innovative ideas भी निकाले। जैसे युवा साथी, कृशनील अनिल जी ने, अनिल जी एक Puzzle artist हैं और उन्होंने record समय में खूबसूरत तिरंगा mosaic art तैयार की है। कर्नाटका के कोलार में, लोगों ने 630 फीट लम्बा और 205 फीट चौड़ा तिरंगा पकड़कर अनूठा दृश्य प्रस्तुत किया। असम में सरकारी कर्मियों ने दिघालीपुखुरी वार मेमोरियल में तिरंगा फहराने के लिए अपने हाथों से 20 फीट का तिरंगा बनाया। इसी तरह, इंदौर में लोगों ने human chain के जरिए भारत का नक्शा बनाया। चंडीगढ़ में, युवाओं ने, विशाल human तिरंगा बनाया। ये दोनों ही प्रयास Guinness Record में भी दर्ज किये गए हैं। इस सबके बीच, हिमाचल प्रदेश की गंगोट पंचायत से एक बड़ा प्रेरणादायी उदाहरण भी देखने को मिला। यहाँ पंचायत में स्वतंत्रता दिवस के कार्यक्रम में प्रवासी मजदूरों के बच्चों को मुख्य अतिथि के रूप में शामिल किया गया।
साथियो, अमृत महोत्सव के ये रंग, केवल भारत में ही नहीं, बल्कि, दुनिया के दूसरे देशों में भी देखने को मिले। बोत्स्वाना में वहाँ के रहने वाले स्थानीय singers ने भारत की आज़ादी के 75 साल मनाने के लिए देशभक्ति के 75 गीत गाए। इसमें और भी खास बात ये है, कि ये 75 गीत हिन्दी, पंजाबी, गुजराती, बांग्ला, असमिया, तमिल, तेलुगू, कन्नड़ा और संस्कृत जैसी भाषाओँ में गाये गए। इसी तरह, नामीबिया में भारत-नामीबिया के सांस्कृतिक-पारंपरिक संबंधों पर विशेष स्टैम्प जारी किया है।
साथियो, मैं और एक ख़ुशी की बात बताना चाहता हूँ। अभी कुछ दिन पहले, मुझे, भारत सरकार के सूचना और प्रसारण मंत्रालय के कार्यक्रम में जाने का अवसर मिला। वहाँ उन्होंने ‘स्वराज’ दूरदर्शन के serial का screening रखा था। मुझे, उसके premiere पर जाने का मौका मिला। ये आजादी के आंदोलन में हिस्सा लेने वाले अनसुने नायक-नायिकाओं के प्रयासों से देश की युवा-पीढ़ी को परिचित कराने की एक बेहतरीन पहल है। दूरदर्शन पर, हर रविवार रात 9 बजे, इसका प्रसारण होता है। और मुझे बताया गया कि 75 सप्ताह तक चलने वाला है। मेरा आग्रह है कि आप समय निकालकर इसे खुद भी देखेँ और अपने घर के बच्चों को भी जरुर दिखाएं और स्कूल-कॉलेज के लोग तो इसको रिकॉर्डिंग करके जब सोमवार को स्कूल-कॉलेज खुलते हैं तो विशेष कार्यक्रम की रचना भी कर सकते हैं, ताकि आजादी के जन्म के इन महानायकों के प्रति, हमारे देश में, एक नई जागरूकता पैदा होगी।आजादी का अमृत महोत्सव अगले साल यानी अगस्त 2023 तक चलेगा। देश के लिए, स्वतंत्रता सेनानियों के लिए, जो लेखन-आयोजन आदि हम कर रहे थे, हमें उन्हें और आगे बढ़ाना है।
मेरे प्यारे देशवासियो, हमारे पूर्वजों का ज्ञान, हमारे पूर्वजों की दीर्घ-दृष्टि और हमारे पूर्वजों का एकात्मचिंतन, आज भी कितना महत्वपूर्ण है; जब उसकी गहराई में जाते हैं तो हम आश्चर्य से भर जाते हैं।हज़ारों साल पुराना हमारा ऋग्वेद| ऋग्वेद में कहा गया है:-
ओमान-मापो मानुषी: अमृक्तम् धात तोकाय तनयाय शं यो:।
यूयं हिष्ठा भिषजो मातृतमा विश्वस्य स्थातु: जगतो जनित्री:।|
अर्थात् – हे जल, आप मानवता के परम मित्र हैं। आप, जीवनदायिनी हैं, आप से ही अन्न उत्पन्न होता है, और आप से ही हमारी संतानों का हित होता है। आप, हमें सुरक्षा प्रदान करने वाले हैं और सभी बुराइयों से दूर रखते हैं। आप, सबसे उत्तम औषधि हैं, और आप ही, इस ब्रह्मांड के पालनहार हैं।
सोचिए, हमारी संस्कृति में हजारों वर्ष पहले जल और जल संरक्षण का महत्व समझाया गया है। जब ये ज्ञान, हम, आज के सन्दर्भ में देखते हैं, तो रोमांचित हो उठते हैं, लेकिन, जब इसी ज्ञान को देश, अपने सामर्थ्य के रूप में स्वीकारता है तो उनकी ताकत अनेक गुना बढ़ जाती है। आपको याद होगा, ‘मन की बात’ में ही चार महीने पहले मैंने अमृत सरोवर की बात की थी। उसके बाद अलग-अलग जिलों में स्थानीय प्रशासन जुटा, स्वयं सेवी संस्थाएं जुटीं और स्थानीय लोग जुटे – देखते ही देखते, अमृत सरोवर का निर्माण एक जन-आंदोलन बन गया है। जब देश के लिए कुछ करने की भावना हो, अपने कर्तव्यों का एहसास हो, आने वाली पीढ़ीयों की चिंता हो, तो सामर्थ्य भी जुड़ता है, और संकल्प, नेक बन जाता है। मुझे तेलंगाना के वारंगल के एक शानदार प्रयास की जानकारी मिली है। यहाँ एक नई ग्राम पंचायत का गठन हुआ है जिसका नाम है ‘मंग्त्या-वाल्या थांडा’। यह गाँव Forest Area के करीब है। यहाँ के गाँव के पास ही एक ऐसा स्थान था जहाँ मानसून के दौरान काफी पानी इकट्ठा हो जाता था। गाँव वालों की पहल पर अब इस स्थान को अमृत सरोवर अभियान के तहत विकसित किया जा रहा है। इस बार मानसून के दौरान हुई बारिश में ये सरोवर पानी से लबालब भर गया है।
मैं मध्य प्रदेश के मंडला में मोचा ग्राम पंचायत में बने अमृत सरोवर के बारे में भी आपको बताना चाहता हूँ। ये अमृत सरोवर कान्हा राष्ट्रीय उद्यान के पास बना है और इससे इस इलाके की सुन्दरता को और बढ़ा दिया है। उत्तर प्रदेश के ललितपुर में, नवनिर्मित शहीद भगत सिंह अमृत सरोवर भी लोगों को काफी आकर्षित कर रहा है। यहाँ की निवारी ग्राम पंचायत में बना ये सरोवर 4 एकड़ में फैला हुआ है। सरोवर के किनारे हुआ वृक्षारोपण इसकी शोभा को बढ़ा रहा है। सरोवर के पास लगे 35 फीट ऊँचे तिरंगे को देखने के लिए भी दूर-दूर से लोग आ रहे हैं। अमृत सरोवर का ये अभियान कर्नाटका में भी जोरों पर चल रहा है। यहाँ के बागलकोट जिले के ‘बिल्केरूर’ गाँव में लोगों ने बहुत सुंदर अमृत सरोवर बनाया है। दरअसल इस क्षेत्र में, पहाड़ से निकले पानी की वजह से लोगों को बहुत मुश्किल होती थी, किसानों और उनकी फसलों को भी नुकसान पहुँचता था। अमृत सरोवर बनाने के लिए गाँव के लोग, सारा पानी channelize करके एक तरफ ले आए। इससे इलाके में बाढ़ की समस्या भी दूर हो गई। अमृत सरोवर अभियान हमारी आज की अनेक समस्याओं का समाधान तो करता ही है, हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए भी उतना ही आवश्यक है। इस अभियान के तहत, कई जगहों पर, पुराने जलाशयों का भी कायाकल्प किया जा रहा है। अमृत सरोवर का उपयोग, पशुओं की प्यास बुझाने के साथ ही, खेती-किसानी के लिए भी, हो रहा है। इन तालाबों की वजह से आस-पास के क्षेत्रों का Ground Water Table बढ़ा है। वहीँ इनके चारों ओर हरियाली भी बढ़ रही है। इतना ही नहीं, कई जगह लोग अमृत सरोवर में मछली पालन की तैयारियों में भी जुटे हैं। मेरा, आप सभी से और खास कर मेरे युवा साथियों से आग्रह है कि आप अमृत सरोवर अभियान में बढ़-चढ़कर के हिस्सा लें और जल संचय और जलसंरक्षण के इन प्रयासों को पूरी की पूरी ताकत दें, उसको आगे बढ़ायें।
मेरे प्यारे देशवासियो, असम के बोंगाई गाँव में एक दिलचस्प परियोजना चलाई जा रही है – Project सम्पूर्णा। इस project का मकसद है कुपोषण के खिलाफ लड़ाई और इस लड़ाई का तरीका भी बहुत unique है। इसके तहत, किसी आंगनबाड़ी केंद्र के एक स्वस्थ बच्चे की माँ, एक कुपोषित बच्चे की माँ से हर सप्ताह मिलती है और पोषण से संबंधित सारी जानकारियों पर चर्चा करती है। यानी, एक माँ, दूसरी माँ की मित्र बन, उसकी मदद करती है, उसे सीख देती है। इस project की मदद से, इस क्षेत्र में, एक साल में, 90 प्रतिशत से ज्यादा बच्चों में कुपोषण दूर हुआ है। आप कल्पना कर सकते हैं, क्या कुपोषण दूर करने में गीत-संगीत और भजन का भी इस्तेमाल हो सकता है? मध्य प्रदेश के दतिया जिले में “मेरा बच्चा अभियान”! इस “मेरा बच्चा अभियान” में इसका सफलतापूर्वक प्रयोग किया गया। इसके तहत, जिले में भजन-कीर्तन आयोजित हुए, जिसमें पोषण गुरु कहलाने वाले शिक्षकों को बुलाया गया। एक मटका कार्यक्रम भी हुआ, इसमें महिलाएँ, आंगनबाड़ी केंद्र के लिए मुट्ठी भर अनाज लेकर आती हैं और इसी अनाज से शनिवार को ‘बालभोज’ का आयोजन होता है। इससे आंगनबाड़ी केन्द्रों में बच्चों की उपस्थिति बढ़ने के साथ ही कुपोषण भी कम हुआ है। कुपोषण के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए एक unique अभियान झारखंड में भी चल रहा है। झारखंड के गिरिडीह में सांप-सीढ़ी का एक game तैयार किया गया है। खेल-खेल में बच्चे, अच्छी और ख़राब आदतों के बारे में सीखते हैं।
साथियो, कुपोषण से जुड़े इतने सारे अभिनव प्रयोगों के बारे में, मैं आपको इसीलिये बता रहा हूँ, क्योंकि हम सब को भी, आने वाले महीने में, इस अभियान से जुड़ना है। सितम्बर का महीना त्योहारों के साथ-साथ पोषण से जुड़े बड़े अभियान को भी समर्पित है। हम हर साल 1 से 30 सितम्बर के बीच पोषण माह मनाते हैं। कुपोषण के खिलाफ पूरे देश में अनेक Creative और Diverse Efforts किए जा रहे हैं। Technology का बेहतर इस्तेमाल और जन-भागीदारी भी, पोषण अभियान का महत्वपूर्ण हिस्सा बना है। देश में लाखों आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को mobile devices देने से लेकर आंगनबाड़ी सेवाओं की पहुँच को Monitor करने के लिए Poshan Tracker भी launch किया गया है। सभी Aspirational Districts और North East के राज्यों में 14 से 18 साल की बेटियों को भी, पोषण अभियान के दायरे में लाया गया है। कुपोषण की समस्या का निराकरण इन कदमों तक ही सीमित नहीं है – इस लड़ाई में, दूसरी कई और पहल की भी अहम भूमिका है। उदाहरण के तौर पर, जल जीवन मिशन को ही लें, तो भारत को कुपोषणमुक्त कराने में इस मिशन का भी बहुत बड़ा असर होने वाला है। कुपोषण की चुनौतियों से निपटने में, सामाजिक जागरूकता से जुड़े प्रयास, महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मैं आप सभी से आग्रह करूँगा, कि आप, आने वाले पोषण माह में, कुपोषण या Malnutrition को, दूर करने के प्रयासों में, हिस्सा जरुर लें।
मेरे प्यारे देशवासियो, चेन्नई से श्रीदेवी वर्दराजन जी ने मुझे एक Reminder भेजा है। उन्होंने MyGov पर अपनी बात कुछ इस प्रकार से लिखी है – नए साल के आने में अब 5 महीने से भी कम समय बचा है, और हम सब जानते हैं कि आने वाला नया साल International Year of Millets के तौर पर मनाया जाएगा। उन्होंने मुझे देश का एक millet Map भी भेजा है। साथ ही पूछा है कि क्या आप ‘मन की बात’ में, आने वाले एपिसोड में इस पर चर्चा कर सकते हैं? मुझे, अपने देशवासियों में इस तरह के जज्बे को देखकर बहुत ही आनन्द की अनुभूति होती है। आपको याद होगा कि United Nations ने एक प्रस्ताव पारित कर वर्ष 2023 (दो हजार तेईस) को International Year of Millets घोषित किया है। आपको ये जानकर भी बहुत ख़ुशी होगी कि भारत के इस प्रस्ताव को 70 से ज्यादा देशों का समर्थन मिला था। आज, दुनिया भर में, इसी मोटे अनाज का, Millets का, Craze बढ़ता जा रहा है। साथियो, जब मैं मोटे अनाज की बात करता हूँ तो मेरे एक प्रयास को भी आज आपको share करना चाहता हूँ। पिछले कुछ समय से भारत में कोई भी जब विदेशी मेहमान आते हैं, राष्ट्राध्यक्ष भारत आते हैं तो मेरी कोशिश रहती है कि भोजन में भारत के Millets यानी हमारे मोटे अनाज से बनी हुई Dishes बनवाऊं और अनुभव यह आया है, इन महानुभावों को, यह Dishes, बहुत पसंद आती है, और हमारे मोटे अनाज के संबंध में, Millets के संबंध में, काफ़ी कुछ जानकारियाँ एकत्र करने का वो प्रयास भी करते हैं। Millets, मोटे अनाज, प्राचीन काल से ही हमारे Agriculture, Culture और Civilisation का हिस्सा रहे हैं। हमारे वेदों में Millets का उल्लेख मिलता है, और इसी तरह, पुराणनुरू और तोल्काप्पियम में भी, इसके बारे में, बताया गया है। आप, देश के किसी भी हिस्से में जाएं, आपको, वहां लोगों के खान-पान में, अलग-अलग तरह के Millets जरुर देखने को मिलेंगे। हमारी संस्कृति की ही तरह, Millets में भी, बहुत विविधताएँ पाई जाती हैं। ज्वार, बाजरा, रागी, सावां, कंगनी, चीना, कोदो, कुटकी, कुट्टू, ये सब Millets ही तो हैं। भारत, विश्व में, Millets का सबसे बड़ा उत्पादक देश है, इसलिए इस पहल को सफ़ल बनाने की बड़ी ज़िम्मेदारी भी हम भारत-वासियों के कंधे पर ही है। हम सबको मिलकर इसे जन-आंदोलन बनाना है, और देश के लोगों में Millets के प्रति जागरूकता भी बढ़ानी है। और साथियो, आप तो भली भांति जानते हैं, Millets, किसानों के लिए भी फायदेमंद हैं और वो भी खास करके छोटे किसानों को। दरअसल, बहुत ही कम समय में फसल तैयार हो जाती है, और इसमें, ज्यादा पानी की आवश्यकता भी नहीं होती है। हमारे छोटे किसानों के लिए तो Millets विशेष रूप से लाभकारी है। Millets के भूसे को बेहतरीन चारा भी माना जाता है। आजकल, युवा-पीढ़ी, Healthy Living और Eating को लेकर बहुत Focussed है। इस हिसाब से भी देखेँ तो, Millets में, भरपूर Protein, Fibre और Minerals मौजूद होते हैं। कई लोग तो इसे, Super food भी बोलते हैं। Millets से एक नहीं, अनेक लाभ हैं। Obesity को कम करने के साथ ही Diabetes, Hypertension और Heart related diseases के खतरे को भी कम करते हैं। इसके साथ ही ये पेट और लीवर की बीमारियों से बचाव में भी मददगार हैं। थोड़ी देर पहले ही हमने कुपोषण के बारे में बात की है। कुपोषण से लड़ने में भी Millets काफी लाभदायक हैं, क्योंकि, ये, protein के साथ-साथ energy से भी भरे होते हैं। देश में आज Millets को बढ़ावा देने के लिए काफी कुछ किया जा रहा है। इससे जुड़ी Research और Innovation पर Focus करने के साथ ही FPOs को प्रोत्साहित किया जा रहा है, ताकि, उत्पादन बढ़ाया जा सके। मेरा, अपने किसान भाई-बहनों से, यही आग्रह है कि, Millets, यानी मोटे अनाज को, अधिक-से-अधिक अपनाएं और इसका फायदा उठाएं। मुझे ये देखकर काफी अच्छा लगता है कि आज कई ऐसे Start-Ups उभर रहे हैं, जो Millets पर काम कर रहे हैं। इनमें से कुछ Millet Cookies बना रहे हैं, तो कुछ, Millet Pan Cakes और डोसा भी बना रहे हैं। वहीँ कुछ ऐसे हैं, जो, Millet Energy Bars, और Millet Breakfast तैयार कर रहे हैं। मैं इस क्षेत्र में काम करने वाले सभी लोगों को बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूँ। त्योहारों के इस मौसम में हम लोग अधिकतर पकवानों में भी Millets का उपयोग करते हैं। आप अपने घरों में बने ऐसे पकवानों की तस्वीरे Social Media पर जरुर share करें, ताकि लोगों के बीच Millets को लेकर जागरूकता बढ़ाने में मदद मिले।
मेरे प्यारे देशवासियो, अभी कुछ दिन पहले, मैंने, अरुणाचल प्रदेश के सियांग जिले में जोरसिंग गाँव की एक खबर देखी। ये खबर एक ऐसे बदलाव के बारे में थी, जिसका इंतजार, इस गाँव के लोगों को, कई वर्षों से था। दरअसल, जोरसिंग गाँव में इसी महीने, स्वतन्त्रता दिवस के दिन से 4G internet की सेवाएँ शुरू हो गई हैं। जैसे, पहले कभी गाँव में बिजली पहुँचने पर लोग खुश होते थे, अब, नए भारत में वैसी ही खुशी, 4G पहुँचने पर होती है। अरुणाचल और नार्थ ईस्ट के दूर-सुदूर इलाकों में 4G के तौर पर एक नया सूर्योदय हुआ है, Internet Connectivity एक नया सवेरा लेकर आई है। जो सुविधाएं कभी सिर्फ बड़े शहरों में होती थी, वो Digital India ने गाँव–गाँव में पहुंचा दी हैं। इस वजह से देश में नए Digital Entrepreneur पैदा हो रहे हैं। राजस्थान के अजमेर जिले के सेठा सिंह रावत जी ‘दर्जी ऑनलाइन’ ‘E-store’ चलाते हैं। आप सोचेंगे ये क्या काम हुआ, दर्जी ऑनलाइन!! दरअसल, सेठा सिंह रावत कोविड के पहले tailoring का काम करते थे। कोविड आया, तो रावत जी ने इस चुनौती को मुश्किल नहीं, बल्कि अवसर के रूप में लिया। उन्होंने, ‘Common Service Centre’ यानी CSC E-Store join किया, और, online कामकाज शुरू किया। उन्होंने देखा कि ग्राहक, बड़ी संख्या में, mask का order दे रहे हैं। उन्होंने कुछ महिलाओं को काम पर रखा और mask बनवाने लगे। इसके बाद उन्होंने ‘दर्जी ऑनलाइन’ नाम से अपना online store शुरू कर दिया जिसमें और भी कई तरह से कपड़े वो बनाकर बेचने लगे। आज Digital India की ताकत से सेठा सिंह जी का काम इतना बढ़ चुका है, कि अब उन्हें पूरे देश से order मिलते हैं। सैकड़ों महिलाओं को उन्होंने अपने यहाँ रोजगार दे रखा है। Digital India ने यूपी के उन्नाव में रहने वाले ओम प्रकाश सिंह जी को भी Digital Entrepreneur बना दिया है। उन्होंने अपने गांव में एक हजार से ज्यादा Broadband connection स्थापित किए हैं। ओम प्रकाश जी ने अपने Common Service Centre के आसपास, निशुल्क Wifi zone का भी निर्माण किया है, जिससे, जरूरतमंद लोगों की बहुत मदद हो रही है। ओम प्रकाश जी का काम अब इतना बढ़ गया है कि उन्होंने 20 से ज्यादा लोगों को नौकरी पर रख लिया है। ये लोग, गांवो के स्कूल, अस्पताल, तहसील ऑफिस और आंगनवाडी केंद्रों तक Broadband Connection पहुंचा रहे हैं और इससे रोजगार भी प्राप्त कर रहे हैं। Common Service Centre की तरह ही Government E- market place यानी GEM portal पर भी ऐसी कितनी success stories देखने को मिल रही हैं।
साथियो, मुझे गावों से ऐसे कितने ही सन्देश मिलते हैं, जो internet की वजह से आए बदलावों को मुझसे साझा करते हैं। internet ने हमारे युवा साथियों की पढ़ाई और सीखने के तरीकों को ही बदल दिया है। जैसे कि यूपी की गुड़िया सिंह जब उन्नाव के अमोइया गांव में अपनी ससुराल आई, तो उन्हें अपनी पढाई की चिंता हुई। लेकिन, भारतनेट ने उनकी इस चिंता का समाधान कर दिया। गुड़िया ने internet के जरिए अपनी पढ़ाई को आगे बढ़ाया, और अपना Graduation भी पूरा किया। गांव–गांव में ऐसे कितने ही जीवन, Digital India अभियान से नयी शक्ति पा रहे हैं। आप मुझे, गावों के Digital Entrepreneurs के बारे में, ज्यादा-से-ज्यादा लिखकर भेजें, और उनकी success stories को social media पर भी जरूर साझा करें।
मेरे प्यारे देशवासियो, कुछ समय पहले, मुझे, हिमाचल प्रदेश से ‘मन की बात’ के एक श्रोता रमेश जी का पत्र मिला। रमेश जी ने अपने पत्र में पहाड़ों की कई खूबियों का ज़िक्र किया है। उन्होंने लिखा, कि, पहाड़ों पर बस्तियाँ भले ही दूर-दूर बसती हों, लेकिन, लोगों के दिल, एक-दूसरे के, बहुत नजदीक होते हैं। वाकई, पहाड़ों पर रहने वाले लोगों के जीवन से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। पहाड़ों की जीवनशैली और संस्कृति से हमें पहला पाठ तो यही मिलता है कि हम परिस्थितियों के दबाव में ना आएं तो आसानी से उन पर विजय भी प्राप्त कर सकते हैं, और दूसरा, हम कैसे स्थानीय संसाधनों से आत्मनिर्भर बन सकते हैं। जिस पहली सीख का जिक्र मैंने किया, उसका एक सुन्दर चित्र इन दिनों स्पीती क्षेत्र में देखने को मिल रहा है। स्पीती एक जनजातीय क्षेत्र है। यहाँ, इन दिनों, मटर तोड़ने का काम चलता है। पहाड़ी खेतों पर ये एक मेहनत भरा और मुश्किल काम होता है। लेकिन यहाँ, गाँव की महिलाएं इकट्ठा होकर, एक साथ मिलकर, एक-दूसरे के खेतों से मटर तोड़ती हैं। इस काम के साथ-साथ महिलाएं स्थानीय गीत ‘छपरा माझी छपरा’ ये भी गाती हैं। यानी यहाँ आपसी सहयोग भी लोक-परंपरा का एक हिस्सा है। स्पीती में स्थानीय संसाधनों के सदुपयोग का भी बेहतरीन उदाहरण मिलता है। स्पीती में किसान जो गाय पालते हैं, उनके गोबर को सुखाकर बोरियों में भर लेते हैं। जब सर्दियाँ आती हैं, तो इन बोरियों को गाय के रहने की जगह में, जिसे यहाँ खूड़ कहते हैं, उसमें बिछा दिया जाता है। बर्फबारी के बीच, ये बोरियाँ, गायों को, ठंड से सुरक्षा देती हैं। सर्दियाँ जाने के बाद, यही गोबर, खेतों में खाद के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। यानी, पशुओं के waste से ही उनकी सुरक्षा भी, और खेतों के लिए खाद भी। खेती की लागत भी कम, और खेत में उपज भी ज्यादा। इसीलिए तो ये क्षेत्र, इन दिनों, प्राकृतिक खेती के लिए भी एक प्रेरणा बन रहा है।
साथियो, इसी तरह के कई सराहनीय प्रयास, हमारे, एक और पहाड़ी राज्य, उत्तराखंड में भी देखने को मिल रहे हैं। उत्तराखंड में कई प्रकार के औषधि और वनस्पतियाँ पाई जाती हैं। जो हमारे सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होती हैं। उन्हीं में से एक फल है – बेडू। इसे, हिमालयन फिग के नाम से भी जाना जाता है। इस फल में, खनिज और विटामिन भरपूर मात्रा में पाये जाते हैं। लोग, फल के रूप में तो इसका सेवन करते ही हैं, साथ ही कई बीमारियों के इलाज में भी इसका उपयोग होता है। इस फल की इन्हीं खूबियों को देखते हुए अब बेडू के जूस, इससे बने जैम, चटनी, अचार और इन्हें सुखाकर तैयार किए गए ड्राई फ्रूट को बाजार में उतारा गया है। पिथौरागढ़ प्रशासन की पहल और स्थानीय लोगों के सहयोग से, बेडू को बाजार तक अलग-अलग रूपों में पहुँचाने में सफलता मिली है। बेडू को पहाड़ी अंजीर के नाम से branding करके online market में भी उतारा गया है। इससे किसानों को आय का नया स्त्रोत तो मिला ही है, साथ ही बेडू के औषधीय गुणों का फायदा दूर-दूर तक पहुँचने लगा है।
मेरे प्यारे देशवासियो, ‘मन की बात’ में आज शुरुआत में हमने आजादी के अमृत महोत्सव के बारे में बात की है। स्वतंत्रता दिवस के महान पर्व के साथ-साथ आने वाले दिनों में और भी कई पर्व आने वाले हैं। अभी कुछ दिन बाद ही भगवान गणेश की आराधना का पर्व गणेश चतुर्थी है। गणेश चतुर्थी, यानी गणपति बप्पा के आशीर्वाद का पर्व। गणेश चतुर्थी के पहले ओणम का पर्व भी शुरू हो रहा है। विशेष रूप से केरला में ओणम शांति और समृद्धि की भावना के साथ मनाया जाएगा। 30 अगस्त को हरतालिका तीज भी है। ओडिशा में 1 सितंबर को नुआखाई का पर्व भी मनाया जाएगा। नुआखाई का मतलब ही होता है, नया खाना, यानी, ये भी, दूसरे कई पर्वों की तरह ही, हमारी, कृषि परंपरा से जुड़ा त्योहार है। इसी बीच, जैन समाज का संवत्सरी पर्व भी होगा। हमारे ये सभी पर्व, हमारी सांस्कृतिक समृद्धि और जीवंतता के पर्याय हैं। मैं, आप सभी को, इन त्योहारों और विशेष अवसरों के लिए शुभकामनाएँ देता हूँ। इन पर्वों के साथ-साथ, कल 29 अगस्त को, मेजर ध्यानचंद जी की जन्मजयंती पर राष्ट्रीय खेल दिवस भी मनाया जाएगा। हमारे युवा खिलाड़ी वैश्विक मंचों पर हमारे तिरंगे की शान बढ़ाते रहें, यही हमारी ध्यानचंद जी के प्रति श्रद्दांजलि होगी। देश के लिए हम सभी मिलकर ऐसे ही काम करते रहें, देश का मान बढ़ाते रहें, इसी कामना के साथ मैं अपनी बात समाप्त करता हूँ। अगले माह, एक बार फिर आपसे ‘मन की बात’ होगी।
बहुत-बहुत धन्यवाद।
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DS/SH/VK
Sharing this month's #MannKiBaat. Do tune in! https://t.co/3Tk3HItn4j
— Narendra Modi (@narendramodi) August 28, 2022
On the special occasion of Amrit Mahotsav and Independence Day, we have seen the collective might of the country. #MannKiBaat pic.twitter.com/pbJmkT4dKa
— PMO India (@PMOIndia) August 28, 2022
The celebration of Amrit Mahotsav were seen not only in India, but also in other countries of the world. #MannKiBaat pic.twitter.com/blq1kobV2m
— PMO India (@PMOIndia) August 28, 2022
PM @narendramodi urges everyone to watch 'Swaraj' serial on Doordarshan.
— PMO India (@PMOIndia) August 28, 2022
It is great initiative to acquaint the younger generation of the country with the efforts of unsung heroes who took part in the freedom movement. #MannKiBaat pic.twitter.com/3aaTxex3QZ
Construction of Amrit Sarovars has become a mass movement.
— PMO India (@PMOIndia) August 28, 2022
Commendable efforts can be seen across the country. #MannKiBaat pic.twitter.com/ERbFIMubhm
Efforts for social awareness play an important role in tackling the challenges of malnutrition.
— PMO India (@PMOIndia) August 28, 2022
I would urge all of you in the coming nutrition month, to take part in the efforts to eradicate malnutrition: PM during #MannKiBaat pic.twitter.com/UkJvqUlvQu
Today, millets are being categorised as a superfood.
— PMO India (@PMOIndia) August 28, 2022
A lot is being done to promote millets in the country.
Along with focusing on research and innovation related to this, FPOs are being encouraged, so that, production can be increased. #MannKiBaat pic.twitter.com/ASZ3X29oDW
Thanks to Digital India initiative, digital entrepreneurs are rising across the country. #MannKiBaat pic.twitter.com/JxFwmlD33C
— PMO India (@PMOIndia) August 28, 2022
Praiseworthy efforts from Himachal Pradesh and Uttarakhand. #MannKiBaat pic.twitter.com/UFjekFQeD7
— PMO India (@PMOIndia) August 28, 2022
Azadi Ka Amrit Mahotsav has captured the imagination of the nation and we saw a glimpse of this in the #HarGharTiranga movement. Let’s keep this momentum till August 2023! #MannKiBaat pic.twitter.com/a6U0T0Pmtr
— Narendra Modi (@narendramodi) August 28, 2022
India is witnessing an outstanding mass movement in the form of Amrit Sarovar. #MannKiBaat pic.twitter.com/vyktZTUIHA
— Narendra Modi (@narendramodi) August 28, 2022
In the series of festivals coming up, there’s one more which I want to draw your attention to…this one is aimed at eliminating malnutrition. #MannKiBaat pic.twitter.com/na1c24Eg1I
— Narendra Modi (@narendramodi) August 28, 2022
In less than 5 months we will mark the International Millet Year. As a large producer of millets, let’s make the Millet Year a resounding success! #MannKiBaat pic.twitter.com/bMlvvzkp76
— Narendra Modi (@narendramodi) August 28, 2022
Good news from Arunachal Pradesh and the rise of a tech powered India. #MannKiBaat pic.twitter.com/XRr6M7PU2u
— Narendra Modi (@narendramodi) August 28, 2022
There’s much to learn from our hill states. Here are inspiring anecdotes from Himachal Pradesh and Uttarakhand. #MannKiBaat pic.twitter.com/D1b3Qfw5i6
— Narendra Modi (@narendramodi) August 28, 2022