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मन की बात की 84वीं कड़ी में प्रधानमंत्री का सम्बोधन


मेरे प्यारे देशवासियो, नमस्कार ! इस समय आप 2021 की विदाई और 2022 के स्वागत की तैयारी में जुटे ही होंगे। नए साल पर हर व्यक्ति, हर संस्था, आने वाले साल में कुछ और बेहतर करने, बेहतर बनने के संकल्प लेते हैं। पिछले सात सालों से हमारी ये ‘मन की बात’ भी व्यक्ति की, समाज की, देश की अच्छाइयों को उजागर कर, और अच्छा करने, और अच्छा बनने की, प्रेरणा देती आयी है। इन सात वर्षों में, ‘मन की बात’ करते हुए मैं सरकार की उपलब्धियों पर भी चर्चा कर सकता था। आपको भी अच्छा लगता, आपने भी सराहा होता, लेकिन, ये मेरा दशकों का अनुभव है कि मीडिया की चमक-दमक से दूर, अख़बारों की सुर्ख़ियों से दूर, कोटि-कोटि लोग हैं, जो बहुत कुछ अच्छा कर रहे हैं। वो देश के आने वाले कल के लिए, अपना आज खपा रहे हैं। वो देश की आने वाली पीढ़ियों के लिए अपने प्रयासों पर, आज, जी-जान से जुटे रहते हैं। ऐसे लोगों की बात, बहुत सुकून देती है, गहरी प्रेरणा देती है। मेरे लिए ‘मन की बात’ हमेशा से ऐसे ही लोगों के प्रयासों से भरा हुआ, खिला हुआ, सजा हुआ, एक सुन्दर उपवन रहा है, और ‘मन की बात’ में तो हर महीने मेरी मशक्कत ही इस बात पर होती है, इस उपवन की कौन सी पंखुड़ी आपके बीच लेकर के आऊं। मुझे ख़ुशी है कि हमारी बहुरत्ना वसुंधरा के पुण्य कार्यों का अविरल प्रवाह, निरंतर बहता रहता है। और आज जब देश ‘अमृत महोत्सव’ मना रहा है, तो ये जो जनशक्ति है, जन-जन की शक्ति है, उसका उल्लेख, उसके प्रयास, उसका परिश्रम, भारत के और मानवता के उज्जवल भविष्य के लिए, एक तरह से गारंटी देता है।

साथियो, ये जनशक्ति की ही ताकत है, सबका प्रयास है कि भारत 100 साल में आई सबसे बड़ी महामारी से लड़ सका। हम हर मुश्किल समय में एक दूसरे के साथ, एक परिवार की तरह खड़े रहे। अपने मोहल्ले या शहर में किसी की मदद करना हो, जिससे जो बना, उससे ज्यादा करने की कोशिश की। आज विश्व में Vaccination के जो आंकड़े हैं, उनकी तुलना भारत से करें, तो लगता है कि देश ने कितना अभूतपूर्व काम किया है, कितना बड़ा लक्ष्य हासिल किया है। Vaccine की 140 करोड़ dose के पड़ाव को पार करना, प्रत्येक भारतवासी की अपनी उपलब्धि है। ये प्रत्येक भारतीय का, व्यवस्था पर, भरोसा दिखाता है, विज्ञान पर भरोसा दिखाता है, वैज्ञानिकों पर भरोसा दिखाता है, और, समाज के प्रति अपने दायित्वों को निभा रहे, हम भारतीयों की, इच्छाशक्ति का प्रमाण भी है। लेकिन साथियो, हमें ये भी ध्यान रखना है कि कोरोना का एक नया variant, दस्तक दे चुका है। पिछले दो वर्षों का हमारा अनुभव है कि इस वैश्विक महामारी को परास्त करने के लिए एक नागरिक के तौर पर हमारा खुद का प्रयास बहुत महत्वपूर्ण है। ये जो नया Omicron variant आया है, उसका अध्ययन हमारे वैज्ञानिक लगातार कर रहे हैं। हर रोज नया data उन्हें मिल रहा है, उनके सुझावों पर काम हो रहा है। ऐसे में स्वयं की सजगता, स्वयं का अनुशासन, कोरोना के इस variant के खिलाफ देश की बहुत बड़ी शक्ति है। हमारी सामूहिक शक्ति ही कोरोना को परास्त करेगी, इसी दायित्वबोध के साथ हमें 2022 में प्रवेश करना है।

मेरे प्यारे देशवासियो, महाभारत के युद्ध के समय, भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कहा था – ‘नभः स्पृशं दीप्तम्’ यानि गर्व के साथ आकाश को छूना। ये भारतीय वायुसेना का आदर्श वाक्य भी है। माँ भारती की सेवा में लगे अनेक जीवन आकाश की इन बुलंदियों को रोज़ गर्व से छूते हैं, हमें बहुत कुछ सिखाते हैं। ऐसा ही एक जीवन रहा ग्रुप कैप्टन वरुण सिंह का। वरुण सिंह, उस हेलीकॉप्टर को उड़ा रहे थे, जो इस महीने तमिलनाडु में हादसे का शिकार हो गया। उस हादसे में, हमने, देश के पहले सीडीएस जनरल बिपिन रावत और उनकी पत्नी समेत कई वीरों को खो दिया। वरुण सिंह भी मौत से कई दिन तक जांबाजी से लड़े, लेकिन फिर वो भी हमें छोड़कर चले गए। वरुण जब अस्पताल में थे, उस समय मैंने social media पर कुछ ऐसा देखा, जो मेरे ह्रदय को छू गया। इस साल अगस्त में ही उन्हें शौर्य चक्र दिया गया था। इस सम्मान के बाद उन्होंने अपने स्कूल के प्रिंसिपल को एक चिट्ठी लिखी थी। इस चिट्ठी को पढ़कर मेरे मन में पहला विचार यही आया कि सफलता के शीर्ष पर पहुँच कर भी वे जड़ों को सींचना नहीं भूले। दूसरा – कि जब उनके पास celebrate करने का समय था, तो उन्होंने आने वाली पीढ़ियों की चिंता की। वो चाहते थे कि जिस स्कूल में वो पढ़े, वहाँ के विद्यार्थियों की जिंदगी भी एक celebration बने। अपने पत्र में वरुण सिंह जी ने अपने पराक्रम का बखान नहीं किया बल्कि अपनी असफलताओं की बात की। कैसे उन्होंने अपनी कमियों को काबिलियत में बदला, इसकी बात की। इस पत्र में एक जगह उन्होंने लिखा है – “It is ok to be mediocre. Not everyone will excel at school and not everyone will be able to score in the 90s. If you do, it is an amazing achievement and must be applauded. However, if you don’t, do not think that you are meant to be mediocre. You may be mediocre in school but it is by no means a measure of things to come in life. Find your calling; it could be art, music, graphic design, literature, etc. Whatever you work towards, be dedicated, do your best. Never go to badbedbed thinking, I could have put-in more efforts.

साथियो, औसत से असाधारण बनने का उन्होंने जो मंत्र दिया है, वो भी उतना ही महत्वपूर्ण है। इसी पत्र में वरुण सिंह ने लिखा है –

“Never lose hope. Never think that you cannot be good at what you want to be. It will not come easy, it will take sacrifice of time and comfort. I was mediocre, and today, I have reached difficult milestones in my career. Do not think that 12th board marks decide what you are capable of achieving in life. Believe in yourself and work towards it.”

वरुण ने लिखा था कि अगर वो एक भी student को प्रेरणा दे सके, तो ये भी बहुत होगा। लेकिन, आज मैं कहना चाहूँगा – उन्होंने पूरे देश को प्रेरित किया है। उनका letter भले ही केवल students से बात करता हो, लेकिन उन्होंने हमारे पूरे समाज को सन्देश दिया है।

साथियो, हर साल मैं ऐसे ही विषयों पर विद्यार्थियों के साथ परीक्षा पर चर्चा करता हूँ। इस साल भी exams से पहले मैं students के साथ चर्चा करने की planning कर रहा हूँ। इस कार्यक्रम के लिए दो दिन बाद 28 दिसंबर से MyGov.in पर registration भी शुरू होने जा रहा है। ये registration 28 दिसंबर से 20 जनवरी तक चलेगा। इसके लिए क्लास 9 से 12 तक के students, teachers, और parents के लिए online competition भी आयोजित होगा। मैं चाहूँगा कि आप सब इसमें जरुर हिस्सा लें। आपसे मुलाक़ात करने का मौका मिलेगा। हम सब मिलकर परीक्षा, career, सफलता और विद्यार्थी जीवन से जुड़े अनेक पहलुओं पर मंथन करेंगे।

मेरे प्यारे देशवासियो, ‘मन की बात’ में, अब मैं आपको कुछ सुनाने जा रहा हूँ, जो सरहद के पार, कहीं बहुत दूर से आई है। ये आपको आनंदित भी करेंगी और हैरान भी कर देगी:

Vocal #(Vande Matram)

वन्दे मातरम् । वन्दे मातरम्

सुजलां सुफलां मलयजशीतलाम्

शस्यशामलां मातरम् । वन्दे मातरम्

शुभ्रज्योत्स्नापुलकितयामिनीं

फुल्लकुसुमितद्रुमदलशोभिनीं

सुहासिनीं सुमधुर भाषिणीं

सुखदां वरदां मातरम् ।। १ ।।

वन्दे मातरम् । वन्दे मातरम् ।

मुझे पूरा विश्वास है कि ये सुनकर आपको बहुत अच्छा लगा होगा, गर्व की अनुभूति हुई होगी। वन्दे मातरम् में जो भाव निहित है, वो हमें गर्व और जोश से भर देता है।

साथियो, आप ये जरूर सोच रहे होंगे कि आखिर ये खूबसूरत video कहाँ का है, किस देश से आया है ? इसका जवाब आपकी हैरानी और बढ़ा देगा। वन्दे मातरम् प्रस्तुत करने वाले ये students Greece के हैं। वहां वे इलिया के हाई स्कूल में पढ़ाई करते हैं। इन्होंने जिस खूबसूरती और भाव के साथ ‘वंदे मातरम्’ गाया है वो अद्भुत और सराहनीय है। ऐसे ही प्रयास, दो देशों के लोगों को और करीब लाते हैं। मैं Greece के इन छात्र- छात्राओं और उनके Teachers का अभिनन्दन करता हूँ। आजादी के अमृत महोत्सव के दौरान किये गए उनके प्रयास की सराहना करता हूँ।

साथियो, मैं लखनऊ के रहने वाले निलेश जी की एक post की भी चर्चा करना चाहूँगा। निलेश जी ने लखनऊ में हुए एक अनूठे Drone Show की बहुत प्रशंसा की है। ये Drone Show लखनऊ के Residency क्षेत्र में आयोजित किया गया था। 1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम की गवाही, Residency की दीवारों पर आज भी नजर आती है। Residency में हुए Drone Show में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अलग-अलग पहलुओं को जीवंत बनाया गया। चाहे ‘चौरी चौरा आन्दोलन’ हो, ‘काकोरी ट्रेन’ की घटना हो या फिर नेताजी सुभाष का अदम्य साहस और पराक्रम, इस Drone Show ने सबका दिल जीत लिया। आप भी इसी तरह अपने शहरों के, गांवों के, आजादी के आन्दोलन से जुड़े अनूठे पहलुओं को लोगों के सामने ला सकते हैं। इसमें Technology की भी खूब मदद ले सकते हैं। आजादी का अमृत महोत्सव, हमें आजादी की जंग की स्मृतियों को जीने का अवसर देता है, उसको अनुभव करने का अवसर देता है। ये देश के लिए नए संकल्प लेने का, कुछ कर गुजरने की इच्छाशक्ति दिखाने का, प्रेरक उत्सव है, प्रेरक अवसर है। आइए, स्वतंत्रता संग्राम की महान विभूतियों से प्रेरित होते रहें, देश के लिए अपने प्रयास और मजबूत करते रहें।

मेरे प्यारे देशवासियो, हमारा भारत कई अनेक असाधारण प्रतिभाओं से संपन्न है, जिनका कृतित्व दूसरों को भी कुछ करने के लिए प्रेरित करता है। ऐसे ही एक व्यक्ति हैं तेलंगाना के डॉक्टर कुरेला विट्ठलाचार्य जी। उनकी उम्र 84 साल है। विट्ठलाचार्य जी इसकी मिसाल है कि जब बात अपने सपने पूरे करने की हो, तो उम्र कोई मायने नहीं रखती। साथियो, विट्ठलाचार्य जी की बचपन से एक इच्छा थी कि वो एक बड़ी सी Library खोलें। देश तब गुलाम था, कुछ परिस्थितियां ऐसी थीं कि बचपन का वो सपना, तब सपना ही रह गया। समय के साथ विट्ठलाचार्य जी, Lecturer बने, तेलुगु भाषा का गहन अध्ययन किया और उसी में कई सारी रचनाओं का सृजन भी किया। 6-7 साल पहले वो एक बार फिर अपना सपना पूरा करने में जुटे। उन्होंने खुद की किताबों से Library की शुरुआत की। अपने जीवनभर की कमाई इसमें लगा दी। धीरे-धीरे लोग इससे जुड़ते चले गए और योगदान करते गए। यदाद्रि-भुवनागिरी जिले के रमन्नापेट मंडल की इस Library में करीब 2 लाख पुस्तकें हैं। विट्ठलाचार्य जी कहते हैं कि पढ़ाई को लेकर उन्हें जिन मुश्किलों का सामना करना पड़ा, वो किसी और को न करना पड़े। उन्हें आज ये देखकर बहुत अच्छा लगता है कि बड़ी संख्या में Students को इसका लाभ मिल रहा है। उनके प्रयासों से प्रेरित होकर, कई दूसरे गांवों के लोग भी Library बनाने में जुटे हैं।

साथियो, किताबें सिर्फ ज्ञान ही नहीं देतीं बल्कि व्यक्तित्व भी संवारती हैं, जीवन को भी गढ़ती हैं। किताबें पढ़ने का शौक एक अद्भुत संतोष देता है। आजकल मैं देखता हूं कि लोग ये बहुत गर्व से बताते हैं कि इस साल मैंने इतनी किताबें पढ़ीं। अब आगे मुझे ये किताबें और पढ़नी हैं। ये एक अच्छा Trend है, जिसे और बढ़ाना चाहिए। मैं भी ‘मन की बात’ के श्रोताओ से कहूंगा कि आप इस वर्ष की अपनी उन पाँच किताबों के बारे में बताएं, जो आपकी पसंदीदा रही हैं। इस तरह से आप 2022 में दूसरे पाठकों को अच्छी किताबें चुनने में भी मदद कर सकेंगे। ऐसे समय में जब हमारा Screen Time बढ़ रहा है, Book Reading अधिक से अधिक Popular बने, इसके लिए भी हमें मिलकर प्रयास करना होगा।

मेरे प्यारे देशवासियो, हाल ही में मेरा ध्यान एक दिलचस्प प्रयास की ओर गया है। ये कोशिश हमारे प्राचीन ग्रंथों और सांस्कृतिक मूल्यों को भारत ही नहीं, बल्कि दुनियाभर में लोकप्रिय बनाने की है। पुणे में Bhandarkar Oriental Research Institute नाम का एक Centre है। इस संस्थान ने दूसरे देशों के लोगों को महाभारत के महत्व से परिचित कराने के लिए Online Course शुरू किया है। आप ये जानकर हैरान रह जाएंगे कि ये Course भले अभी शुरू किया गया है लेकिन इसमें जो Content पढ़ाया जाता है उसे तैयार करने की शुरुआत 100 साल से भी पहले हुई थी। जब Institute ने इससे जुड़ा Course शुरू किया तो उसे जबरदस्त Response मिला। मैं इस शानदार पहल की चर्चा इसलिए कर रहा हूं ताकि लोगों को पता चले कि हमारी परंपरा के विभिन्न पहलुओं को किस प्रकार Modern तरीके से प्रस्तुत किया जा रहा है। सात समंदर पार बैठे लोगों तक इसका लाभ कैसे पहुंचे, इसके लिए भी Innovative तरीके अपनाए जा रहे हैं।

साथियो, आज दुनियाभर में भारतीय संस्कृति के बारे में जानने को लेकर दिलचस्पी बढ़ रही है। अलग-अलग देशों के लोग ना सिर्फ हमारी संस्कृति के बारे में जानने के लिए उत्सुक हैं बल्कि उसे बढ़ाने में भी मदद कर रहे हैं। ऐसे ही एक व्यक्ति हैं, सर्बियन स्कॉलर डॉ. मोमिर निकिच (Serbian Scholar Dr. Momir Nikich)। इन्होंने एक Bilingual Sanskrit-Serbian डिक्शनरी तैयार की है। इस डिक्शनरी में शामिल किए गए संस्कृत के 70 हजार से अधिक शब्दों का सर्बियन भाषा में अनुवाद किया गया है। आपको ये जानकार और भी अच्छा लगेगा कि डॉ० निकिच ने 70 वर्ष की उम्र में संस्कृत भाषा सीखी है। वे बताते हैं कि इसकी प्रेरणा उन्हें महात्मा गांधी के लेखों को पढ़कर मिली। इसी प्रकार का उदाहरण मंगोलिया के 93 (तिरानवे) साल के प्रोफ़ेसर जे. गेंदेधरम का भी है। पिछले 4 दशकों में उन्होंने भारत के करीब 40 प्राचीन ग्रंथों, महाकाव्यों और रचनाओं का मंगोलियन भाषा में अनुवाद किया है। अपने देश में भी इस तरह के जज्बे के साथ बहुत लोग काम कर रहे हैं। मुझे गोवा के सागर मुले जी के प्रयासों के बारे में भी जानने को मिला है, जो सैकड़ों वर्ष पुरानी ‘कावी’ चित्रकला को लुप्त होने से बचाने में जुटे हैं। ‘कावी’ चित्रकला भारत के प्राचीन इतिहास को अपने आप में समेटे है। दरअसल, ‘काव’ का अर्थ होता है लाल मिट्टी। प्राचीन काल में इस कला में लाल मिट्टी का प्रयोग किया जाता था। गोवा में पुर्तगाली शासन के दौरान वहाँ से पलायन करने वाले लोगों ने दूसरे राज्यों के लोगों का भी इस अद्भुत चित्रकला से परिचय कराया। समय के साथ ये चित्रकला लुप्त होती जा रही थी। लेकिन सागर मुले जी ने इस कला में नई जान फूँक दी है। उनके इस प्रयास को भरपूर सराहना भी मिल रही है। साथियो, एक छोटी सी कोशिश, एक छोटा कदम भी, हमारे समृद्ध कलाओं के संरक्षण में बहुत बड़ा योगदान दे सकता है। अगर हमारे देश के लोग ठान लें, तो देशभर में हमारी प्राचीन कलाओं को सजाने, संवारने और बचाने का जज्बा एक जन-आंदोलन का रूप ले सकता है। मैंने यहाँ कुछ ही प्रयासों के बारे में बात की है। देशभर में इस तरह के अनेक प्रयास हो रहे हैं। आप उनकी जानकारी Namo App के ज़रिये मुझ तक जरुर पहुँचाएँ।

मेरे प्यारे देशवासियो, अरुणाचल प्रदेश के लोगों ने साल भर से एक अनूठा अभियान चला रखा है और उसे नाम दिया है “अरुणाचल प्रदेश एयरगन सरेंडर अभियान”। इस अभियान में, लोग, स्वेच्छा से अपनी एयरगन सरेंडर कर रहे हैं – जानते हैं क्यों ? ताकि अरुणाचल प्रदेश में पक्षियों का अंधाधुंध शिकार रुक सके। साथियो, अरुणाचल प्रदेश पक्षियों की 500 से भी अधिक प्रजातियों का घर है। इनमें कुछ ऐसी देसी प्रजातियाँ भी शामिल हैं, जो दुनिया में कहीं और नहीं पाई जाती हैं। लेकिन धीरे-धीरे अब जंगलों में पक्षियों की संख्या में कमी आने लगी है। इसे सुधारने के लिए ही अब ये एयरगन सरेंडर अभियान चल रहा है। पिछले कुछ महीनों में पहाड़ से मैदानी इलाकों तक, एक Community से लेकर दूसरी Community तक, राज्य में हर तरफ लोगों ने इसे खुले दिल से अपनाया है। अरुणाचल के लोग अपनी मर्जी से अब तक 1600 से ज्यादा एयरगन सरेंडर कर चुके हैं। मैं अरुणाचल के लोगों की, इसके लिए प्रशंसा करता हूँ, उनका अभिनन्दन करता हूँ।

मेरे प्यारे देशवासियो, आप सभी की ओर से 2022 से जुड़े बहुत सारे सन्देश और सुझाव आए हैं। एक विषय हर बार की तरह अधिकांश लोगो के संदेशो में हैं। ये है स्वच्छता और स्वच्छ भारत का। स्वच्छता का ये संकल्प अनुशासन से, सजगता से, और समर्पण से ही पूरा होगा। हम एनसीसी कैडेट्स (NCC Cadets) द्वारा शुरू किए गये पुनीत सागर अभियान में भी इसकी झलक देख सकते हैं। इस अभियान में 30 हज़ार से अधिक एनसीसी कैडेट्स शामिल हुए। NCC के इन cadets ने beaches पर सफाई की, वहाँ से प्लास्टिक कचरा हटाकर उसे recycling के लिए इकट्ठा किया। हमारे beaches, हमारे पहाड़ ये हमारे घूमने लायक तभी होते हैं जब वहाँ साफ सफाई हो। बहुत से लोग किसी जगह जाने का सपना ज़िन्दगी भर देखते हैं, लेकिन जब वहाँ जाते हैं तो जाने-अनजाने कचरा भी फैला आते हैं। ये हर देशवासी की ज़िम्मेदारी है कि जो जगह हमें इतनी खुशी देती हैं, हम उन्हें अस्वच्छ न करें।

साथियो, मुझे saafwater (साफवाटर) नाम से एक start-up के बारे में पता चला है जिसे कुछ युवाओं ने शुरु किया है। ये Artificial Intelligence और internet of things की मदद से लोगों को उनके इलाके में पानी की शुद्धता और quality से जुड़ी जानकारी देगा। ये स्वच्छता का ही तो एक अगला चरण है। लोगों के स्वच्छ और स्वस्थ भविष्य के लिए इस start-up की अहमियत को देखते हुए इसे एक Global Award भी मिला है।

साथियो, ‘एक कदम स्वच्छता की ओर’ इस प्रयास में संस्थाएँ हो या सरकार, सभी की महत्वपूर्ण भूमिका है। आप सब जानते हैं कि पहले सरकारी दफ्तरों में पुरानी फाइलों और कागजों का कितना ढ़ेर रहता था। जब से सरकार ने पुराने तौर-तरीकों को बदलना शुरु किया है, ये फाइल्स और कागज के ढ़ेर Digitize होकर computer के folder में समाते जा रहे हैं। जितना पुराना और pending material है, उसे हटाने के लिए मंत्रालयों और विभागों में विशेष अभियान भी चलाए जा रहे हैं। इस अभियान से कुछ बड़ी ही interesting चीज़े हुई हैं। Department of Post में जब ये सफाई अभियान चला तो वहाँ का junkyard पूरी तरह खाली हो गया। अब इस junkyard को courtyard और cafeteria में बदल दिया गया है। एक और junkyard two wheelers के लिए parking space बना दिया गया है। इसी तरह पर्यावरण मंत्रालय ने अपने खाली हुए junkyard को wellness centre में बदल दिया। शहरी कार्य मंत्रालय ने तो एक स्वच्छ ATM भी लगाया है। इसका उद्धेश्य है कि लोग कचरा दें और बदले में cash लेकर जाएँ। Civil Aviation Ministry के विभागों ने पेड़ों से गिरने वाली सूखी पत्तियों और जैविक कचरे से जैविक compost खाद बनाना शुरु किया है। ये विभाग waste paper से stationery भी बनाने का काम कर रहा है। हमारे सरकारी विभाग भी स्वच्छता जैसे विषय पर इतने innovative हो सकते हैं। कुछ साल पहले तक किसी को इसका भरोसा भी नहीं होता था, लेकिन, आज ये व्यवस्था का हिस्सा बनता जा रहा है। यही तो देश की नई सोच है जिसका नेतृत्व सारे देशवासी मिलकर कर रहे हैं।

मेरे प्यारे देशवासियो, ‘मन की बात’ में इस बार भी हमने ढ़ेर सारे विषयों पर बात की। हर बार की तरह, एक महीने बाद, हम फिर मिलेंगे, लेकिन, 2022 में। हर नई शुरुआत अपने सामर्थ्य को पहचानने का भी एक अवसर लाती है। जिन लक्ष्यों की पहले हम कल्पना भी नहीं करते थे। आज देश उनके लिए प्रयास कर रहा है। हमारे यहाँ कहा गया है –

क्षणश: कणशश्चैव, विद्याम् अर्थं च साधयेत्।

क्षणे नष्टे कुतो विद्या, कणे नष्टे कुतो धनम्।|

यानि, जब हमें विद्या अर्जित करनी हो, कुछ नया सीखना हो, करना हो, तो हमें हर एक क्षण का इस्तेमाल करना चाहिए। और जब हमें, धन अर्जन करना हो, यानि उन्नति-प्रगति करनी हो तो हर एक कण का, यानि हर संसाधन का, समुचित इस्तेमाल करना चाहिए। क्योंकि, क्षण के नष्ट होने से, विद्या और ज्ञान चला जाता है, और कण के नष्ट होने से, धन और प्रगति के रास्ते बंद हो जाते हैं। ये बात हम सब देशवासियों के लिए प्रेरणा है। हमें कितना कुछ सीखना है, नए-नए innovations करने हैं, नए-नए लक्ष्य हासिल करने हैं, इसलिए, हमें एक क्षण गंवाए बिना लगना होगा। हमें देश को विकास की नयी ऊँचाई पर लेकर जाना है, इसलिए हमें अपने हर संसाधन का पूरा इस्तेमाल करना होगा। ये एक तरह से, आत्मनिर्भर भारत का भी मंत्र है, क्योंकि, हम जब अपने संसाधनों का सही इस्तेमाल करेंगे, उन्हें व्यर्थ नहीं होने देंगे, तभी तो हम local की ताकत पहचानेंगे, तभी तो देश आत्मनिर्भर होगा। इसलिए, आईये हम अपना संकल्प दोहरायें कि बड़ा सोचेंगें, बड़े सपने देखेंगे, और उन्हें पूरा करने के लिए जी-जान लगा देंगे। और, हमारे सपने केवल हम तक ही सीमित नहीं होंगे। हमारे सपने ऐसे होंगे जिनसे हमारे समाज और देश का विकास जुड़ा हो, हमारी प्रगति से देश की प्रगति के रास्ते खुलें और इसके लिए, हमें आज ही लगना होगा, बिना एक क्षण गँवाए, बिना एक कण गँवाये। मुझे पूरा भरोसा है कि इसी संकल्प के साथ आने वाले साल में देश आगे बढ़ेगा, और 2022, एक नए भारत के निर्माण का स्वर्णिम पृष्ठ बनेगा। इसी विश्वास के साथ, आप सभी को 2022 की ढेर सारी शुभकामनाएं। बहुत बहुत धन्यवाद।