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मंत्रिमंडल यूरोपीय पुनर्निर्माण और विकास बैंक में भारत की सदस्‍यता के संबंध में मंजूरी दी


प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने यूरोपीय पुनर्निर्माण और विकास बैंक (ईबीआरडी) में भारत की सदस्‍यता के संबंध में मंजूरी दी है।

ईबीआरडी की सदस्यता प्राप्त करने के लिए आर्थिक कार्य विभाग, वित्त मंत्रालय द्वारा आवश्यक कदम उठाए जाएंगे।

 

प्रभाव:

ईबीआरडी की सदस्‍यता से भारत की अंतर्राष्‍ट्रीय छवि में और अधिक निखार आएगा तथा इसके आर्थिक हितों को भी प्रोत्‍साहन मिलेगा। ईबीआरडी के संचालन वाले देशों तथा उसके क्षेत्र ज्ञान तक भारत की पहुंच निवेश तथा अवसरों को बढ़ाएगी।

भारत के निवेश अवसरों में बढ़ोत्तरी होगी।

इस सदस्‍यता से विनिर्माण, सेवा, सूचना प्रौद्योगिकी और ऊर्जा में सह-वित्‍तपोषण अवसरों के जरिए भारत और ईबीआरडी के बीच सहयोग के अवसर बढेंगे।

ईबीआरडी के महत्‍वपूर्ण कार्यों में अपने संचालन के देशों में निजी क्षेत्र का विकास करना शामिल है। इस सदस्‍यता से भारत को निजी क्षेत्र के विकास को लाभान्वित करने के लिए बैंक की तकनीकी सहायता तथा क्षेत्रीय ज्ञान से मदद मिलेगी।

इससे देश में निवेश का माहौल बनाने में योगदान मिलेगा।

ईबीआरडी की सदस्यता से भारतीय फर्मों की प्रतिस्पर्धात्मक शक्ति बढ़ेगी और व्यापार के अवसरों, खरीद कार्यकलापों, परामर्श कार्यों आदि में अंतर्राष्ट्रीय बाजारों तक उनकी पहुँच बढ़ेगी।

इससे एक ओर तो भारतीय पेशेवरों के लिए नए क्षेत्र खुलेंगे और दूसरी ओर भारतीय निर्यातकों को भी लाभ मिलेगा।

बढ़ी हुई आर्थिक गतिविधियों से रोजगार सृजन क्षमता में विस्तार होगा।

इससे भारतीय नागरिक भी इस बैंक में रोजगार के अवसर प्राप्त कर सकेंगे।

वित्तीय व्‍यय:

ईबीआरडी की सदस्‍यता के लिए न्‍यूनतम आरंभिक निवेश लगभग €1 (एक) मिलियन है। तथापि, यह अनुमान इस अनुमान पर आधारित है कि भारत सदस्‍यता प्राप्‍त करने के लिए अपेक्षित न्‍यूनतम शेयर संख्‍या (100) की खरीद करने का निर्णय लेगा। यदि भारत अधिक संख्‍या में बैंक शेयर खरीदता है तो वित्तीय व्यय इससे अधिक हो सकता है। इस स्तर पर बैंक की सदस्‍यता के लिए मंत्रिमंडल से सैद्धांतिक अनुमोदन लिया जा रहा है।

 

पृष्ठभूमि:

 यूरोपीय पुनर्निर्माण और विकास बैंक (ईबीआरडी) में भारत की सदस्यता प्राप्त करने से संबंधित मामला लंबे समय से भारत सरकार के पास विचाराधीन था। पिछले कुछ वर्षों में देश की प्रभावी आर्थिक वृद्धि और बढ़ी हुई अंतर्राष्‍ट्रीय राजनीतिक छवि को देखते हुए यह उपयुक्‍त समझा गया कि भारत को विश्‍व बैंक, एशियाई विकास बैंक एवं अफ्रीका विकास बैंक जैसे बहुपक्षीय विकास बैंक (एमडीबी) से सबंधों के आग वैश्विक विकासात्‍मक परिदृश्‍य पर अपनी उपस्थिति बढ़ाना चाहिए। इसी पृष्‍ठभूमि में पहले एशियाई अवसंरचना निवेश बैंक (एआईआईबी) तथा न्‍यू डेवलपमेंट बैंक (एनडीबी) में शामिल होने का निर्णय लिया गया था।