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मंत्रिमंडल ने 1958 के मर्चेंट शिपिंग एक्ट और 1838 के कोस्टिंग वेस्ल्स एक्ट को निरस्त करके नए मर्चेंट शिपिंग बिल 2016 को संसद में रखने को मंजूरी दी


प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने संसद में मर्चेंट शिपिंग विधेयक, 2016 रखने को मंजूरी दे दी है।

मर्चेंट शिपिंग अधिनियम, 2016 दरअसल मर्चेंट शिपिंग अधिनियम, 1958 का सुधरा हुआ नया रूप है। इस विधेयक में मर्चेंट शिपिंग अधिनियम, 1958 के साथ ही कोस्टिंग वेसल्स अधिनियम, 1838 का निरसन भी मुहैया किया गया है।

समय समय पर अधिनियम में बहुत सारे संशोधन किए गए जिससे इतने वर्षों में मर्चेंट शिपिंग अधिनियम, 1958 दरअसल कानून का एक भारी टुकड़ा बन गया था। इसे 1966 से 2014 के बीच 17 बार संशोधित किया गया जिससे इसके सेक्शनों की संख्या बढ़कर 560 से भी अधिक हो गई। नए अधिनियम में इन प्रावधानों को बहुत बारीक प्रयासों के बाद घटाकर 280 सेक्शन तक लाया गया है।

इस विधेयक के प्रावधान भारत में मर्चेंट शिपिंग के संचालन वाले कानून को बहुत सरल कर देंगे। इसके अलावा, कुछ बेमानी प्रावधानों को हटा दिया जाएगा और शेष प्रावधानों को समेकित और सरल बनाया जाएगा जिससे व्यापार, पारदर्शिता और सेवाओं के प्रभावी वितरण को बढ़ावा मिलेगा।

इस विधेयक के लागू होने पर जिन उल्लेखनीय सुधारों की शुरुआत होगी वे इस प्रकार हैं:

1. भारतीय टन भार बढ़ोतरी / तटीय शिपिंग के भारत में विकास में इस प्रकार होगी वृद्धि : –

– बेयर बोट-कम-डिमाइस (बीबीसीडी) पर जहाजों और भारी-स्वामित्व वाले जहाजों को अनुमति देकर; भारतीयों द्वारा चार्टर को भारतीय झंडे वाले जहाजों के रूप में पंजीकृत करके;

– भारतीय नियंत्रित टन भार को एक अलग श्रेणी की पहचान देकर;

– तटीय ऑपरेशन के लिए भारतीय ध्वज पोतों को लाइसेंस जारी करने की जरूरत पूरी करके और सीमा शुल्क अधिकारियों द्वारा बंदरगाह मंजूरी दिलाकर; और

– तटीय जहाजों का विकास और तटीय शिपिंग को बढ़ावा देने के लिए अलग नियम बनाकर।

2. नाविकों के लिए कल्याणकारी उपायों की शुरुआत, जैसे: –

– समुद्री लुटेरों द्वारा बंधक बना लिए गए नाविकों को तब तक मजदूरी प्राप्त होगी जब तक वे रिहा होकर सुरक्षित अपने घर नहीं पहुंचते;

– मछली पकड़ने, नौकायन करने के जहाज जो बिना मेकेनिकल सिस्टम के प्रोपल्जन वाले हैं और जिनका शुद्ध भार 15 टन से कम है उन पर काम कर रहे क्रू का बीमा करवाना मालिकों के लिए अनिवार्य; और

– शिपिंग मास्टर के समक्ष क्रू द्वारा समझौता लेख पर हस्ताक्षर करने की आवश्यकता अब नहीं होगी।

3. कुछ बची हुई श्रेणी के जहाजों का पंजीकरण किसी भी क़ानून के तहत कवर नहीं और तो सुरक्षा से संबंधित पहलुओं के लिए प्रावधान किया जाना।

4. सभी अंतरराष्ट्रीय समुद्री संगठन (आईएमओ) कन्वेंशन / प्रोटोकॉल को भारतीय कानूनों में शामिल करना (1/1/2016 से अनिवार्य कर दी गई आईएमओ मेंबर-स्टेट की ऑडिट स्कीम के अनुपालन के लिए ये आवश्यक रूप से पूर्व-अपेक्षित है) जो इन सात अलग-अलग कन्वेंशन को प्रावधानों को शामिल करके होता है,

– इंटरवेंशन कन्वेंशन 1969,

– खोजबीन और बचाव के लिए ‘कन्वेंशन 1979’,

– जहाजों से प्रदूषण की रोकथाम के लिए प्रोटोकॉल, मरीन पॉल्यूशन कन्वेंशन का अनुबंध-6,

– शिप्स बैलेस्ट वॉटर एंड सेडीमेंट 2004 के नियंत्रण और प्रबंधन का कन्वेंशन,

– मलबा हटाने का नैरोबी कन्वेंशन 2007,

– सैलवेज कन्वेंशन 1989, और

– बंकर तेल प्रदूषण नुकसान का ‘इंटरनेशनल कन्वेंशन 2001’

इसके अलावा, पहले जहाजों के सर्वेक्षण, जांच और सर्टिफिकेशन के लिए जो प्रावधान मौजूदा अधिनियम के कई हिस्सों में बिखरे हुए थे उन्हें साथ लाया गया है ताकि भारतीय शिपिंग इंडस्ट्री की सुविधा के लिए एक सरल व्यवस्था प्रदान की जा सके। कोस्टल वेसल्स अधिनियम 1838 ब्रिटिश काल का एक पुराना कानून है जिसके तहत बिना मैकेनिकल प्रोपल्जन वाले जहाजों का ही पंजीकरण किया जा रहा है और वो भी सिर्फ सौराष्ट्र और कच्छ अधिकार क्षेत्र में, तो उसे निरस्त किया जाना प्रस्तावित है क्योंकि मर्चेंट शिपिंग अधिनियम 2016 में ऐसे प्रावधान लाए गए हैं जिनमें पूरे भारत के जहाजों का पंजीकरण किया जाएगा।