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मंत्रिमंडल ने कांडला पोर्ट का नाम बदलकर दीनदयाल पोर्ट किए जाने को मंजूरी दी


प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी की अध्‍यक्षता में केन्‍द्रीय मंत्रिमंडल ने कांडला पोर्ट का नाम बदलकर दीन दयाल पोर्ट किए जाने को अपनी कार्येतर मंजूरी कर दी है।

भारत में बन्‍दरगाहों के नाम प्राय: उन शहरों अथवा कस्‍बों के नाम पर रखे जाते थे, जहां पर ये स्थिति हैं। तथापि, सरकार ने विशेष मामलों में पर्याप्‍त रूप से विचार करने के उपरान्‍त अतीत में बन्‍दरगाहों के नाम बदलकर महान नेताओं के नाम पर रखा है।

कांडला पोर्ट का नाम ‘दीनदयाल पोर्ट कांडला’ किए जाने से राष्‍ट्र के इस महानतम सपूत पंडित दीनदयाल उपाध्‍याय द्वारा किए गए अमूल्‍य योगदान को याद करते हुए कृतज्ञता प्रकट करेगा। इससे गुजरात के लोग, विशेषकर युवाजन को प्रेरणा हासिल होगी, जो महान नेताओं द्वारा किए गए योगदान से भली-भांति परिचित नहीं होते।

पृष्‍ठभूमि :

गुजरात, विशेषकर कच्‍छ जिले में विभिन्‍न संगठनों द्वारा जनता से यह मांग प्राप्‍त हो रही थी, कि ‘कांडला पोर्ट’ का नाम बदलकर दीनदयाल पोर्ट कांडला कर दिया जाए। पंडित दीनदयाल उपाध्‍याय (25.09.1916-1.2.1968) एक प्रमुख नेता थे, जिन्‍होंने अपना जीवन राष्‍ट्र की सेवा में समर्पित करने का संकल्‍प लिया था। उन्‍होंने अपना सम्‍पूर्ण जीवन राष्‍ट्र को अर्पित किया और जन सामान्‍य के बीच काम किया और इसके साथ ही उन्‍होंने निर्धन और मेहनतकश वर्ग के उत्‍थान के लिए स्‍वयं को अर्पित एवं बलिदान कर दिया। सहिष्‍णुता, अनुशासन, नि:स्‍वार्थता की नींव पर लोकतंत्र के मूल्‍यों की स्‍थापना और देश के कानून के प्रति सम्‍मान यह सभी उनके क्रियाकलाप “एकात्‍म मानववाद’’ के सिद्धांतों पर आधारित थे। वे आजीवन लोकतंत्र के भारतीयकरण, जन सामान्‍य के विचारों के सम्‍मान, नि:स्‍वार्थ एवं देश के कानून के प्रति सम्‍मान के लिए अनथक रूप से काम करते रहें। पंडित दीनदयाल उपाध्‍याय ने अपना सम्‍पूर्ण जीवन जन सेवा और सादगी, ईमानदारी एवं गरीब लोगों और दलितों के लिए नि:स्‍वार्थ सेवा के लिए अर्पित कर दिया।

चूंकि प‍ंडित दीनदयाल उपाध्‍याय की जन्‍म शताब्‍दी 25 सितंबर, 2017 को मनाई जानी थी, अत: यह महसूस किया गया कि इस महान राष्‍ट्रीय नेता की जन्‍म शताब्‍दी आयोजन के एक अंग के रूप में कांडला पोर्ट का नाम दीनदयाल पोर्ट किए जाने के सम्‍बंध में निर्णय लिया जाना सर्वथा उपयुक्‍त होगा।