प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल को राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) की प्रगति से अवगत कराया गया। मंत्रीमंडल को अधिकार प्राप्त कार्यक्रम समिति (ईपीसी) और एनएचएम के मिशन स्टियरिंग समूह (एमएसजी) के निर्णयों से भी अवगत कराया गया। राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) की शुरूआत अप्रैल 2005 में की गई थी और 2013 के दौरान राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन (एनयूएचएम) के शुभारंभ के साथ इसे राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) में सम्मिलित कर लिया गया। तदुपरांत एनआरएचएम और एनयूएचएम इस एनएचएम के अंतर्गत दो उप-मिशन बन गए।
मंत्रिमंडल ने एमएमआर, आईएमआर, यू5 एमआर और टीएफआर में तेजी से कमी सहित एनएचएम के अन्तर्गत प्रगति को नोट किया। मंत्रिमंडल ने तपेदिक, मलेरिया, कुष्ठरोग आदि जैसे विभिन्न रोग नियंत्रण कार्यक्रमों के संबंध में हुई प्रगति को भी नोट किया।
मंत्रिमंडल ने यह नोट किया कि:-
• एनएचएम अवधि के दौरान यू 5 एम आर में गिरावट की दर लगभग दोगुनी हो गई है।
• एमएमआर में प्राप्त दर की कमी के साथ भारत एम डी जी 5 के लक्ष्यों को प्राप्त कर लेगा।
• मलेरिया, तपेदिक और एच आई वी / एड्स के मामलों की रोकथाम एवं सुधार की दिशा में मिलेनियम विकास लक्ष्य 6 प्राप्त हो गया है।
2010 में प्रति 10 हजार जनसंख्या पर काला अज़ार के एक से अधिक मामले वाले खण्ड की संख्या 230 थी, 2016 में घटकर यह संख्या 94 खण्ड रह गयी है।
• पोस्ट-पार्टम इंट्रा-यूट्रिन कॉन्ट्रासेप्टिव डिवाइस (पीपीआईसीडी) सेवा प्रदायक को 150 रूपये की दर से प्रोत्साहन राशि तथा पीपीआईयूसीडी लगवाने के लिए इच्छुक महिला को प्रोत्साहित करने वाले/साथ आने वाले आशा कर्मचारी को 150 रूपये की दर से प्रोत्साहन राशि दी जा रही है। पीपीआईयूसीडी सुविधा को महत्व देने तथा पोस्ट-अबॉर्सन इंट्रा-यूट्रिन कॉन्ट्रासेप्टिव सेवाओं को महत्व देने के लिए पीपीआईयूसीडी सेवाओं को स्वीकार करने के लिए प्रोत्साहन के प्रावधान के प्रस्तावों पीपीआईयूसीडी के लिए वही पद्धति वाले प्रोत्साहन को एमएसजी के समक्ष रखा गया। एमएसजी ने प्रासंगिक लागत एवं यात्रा लागत को कवर करने के लिए पीपीआईयूसीडी को अपनाए जाने के लिए प्रोत्साहन राशि उपलब्ध कराने हेतु प्रस्तावों को अनुमति प्रदान की और अनुवर्ती दौरों तथा पीएआईयूसीडी लगवाने के लिए आगंतुक, सेवा प्रदायक तथा आशा कर्मी हेतु पीपीआईयूसीडी पर लागू उन्हीं दरों को मंजूरी दी गई।
• ऐसे मामलों में जहां रोगियों को विद्यमान एमएमयू से समतल क्षेत्रों में प्रतिदिन 60 मरीजों से ज्यादा होते हो तथा पर्वतीय क्षेत्रों रोगियों की संख्या 30 से अधिक हो वहां मामला दर मामला आधार पर प्रति 10 लाख जनसंख्या के मामले में 1 एमएमयू के मानदंड में छूट दी गई है। एमएसजी ने एमएमयू के लिए संचालनगत मार्गदर्शी निर्देशों को भी नोट किया।
• अवयस्क लड़कियों के महावारी स्वच्छता योजना के अंतर्गत प्रस्तावों – (1) ऐसे 19 राज्यों में जहां इस योजना को शुरू किया जाना है, पहले वर्ष के लिए 6 सेनेटरी नेपकिनों के एक पैक के लिए बजट समर्थन राशि को 8 रूपये से बढ़ाकर 12 रूपये करना और तद्उपरांत इसे 6 सेनेटरी नेपकिन के एक पैक के लिए 8 रूपये की वर्तमान राशि निर्धारित करना, (2) मंत्रालय को किसी भावी लागत के लिए वृद्धि को मंजूरी प्रदान करना ।
• एनएचएम के अंतर्गत कार्यक्रम प्रबंधन बजट की अधिकतम सीमा में वृद्धि, जिसमें बड़े राज्यों के लिए कुल वार्षिक कार्य योजना की वर्तमान 6.5 प्रतिशत से बढ़ाकर 9 प्रतिशत तथा छोटे राज्यों/संघशासित क्षेत्रों के लिए उस वर्ष हेतु वार्षिक कार्य योजना के वर्तमान 11 प्रतिशत से 14 प्रतिशत करना।
• स्वस्थ्य जीवनशैली संव्यवहार को बढ़ावा देने सहित विशिष्ट गतिविधियों के माध्यम से मानव संसाधन विकास मंत्रालय के साथ समन्वय स्थापित कर देश में सभी पब्लिक और प्राइवेट स्कूलों में एन एच एम के अंतर्गत स्कूल स्वास्थ्य गतिविधियों को सुदृढ़ बनाने का प्रस्ताव।
• मां की सम्पूर्ण ममता (एमएए) के अंतर्गत माताओं की सामूहिक बैठक आयोजित कराने के लिए स्तनपान के संवर्धन हेतु माताओं की बैठकों के लिए प्रेरित और संचालन करने के लिए प्रतिमाह 100 रूपये की दर से आशा कर्मी को प्रोत्साहन राशि।
• केंद्र, राज्य और स्थानीय सरकारों के बीच साझेदारी स्थापित करना।
• पंचायती राज संस्थाओं तथा समुदायों को प्राथमिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों एवं संरचना में सहभागिता के लिए एक मंच की स्थापाना।
• साम्यता एवं सामाजिक न्याय का बढ़ावा देने के अवसर मुहैया कराना।
• स्थानीय पहल को बढ़ावा देने के लिए राज्यों एवं समुदाय के साथ ढील लाने के लिए एकतंत्र की स्थापना।
• उन्नत एवं निरोगात्मक स्वास्थ्य सेवाओं के लिए अंत: क्षेत्र समन्वय को बढ़ावा देने के लिए फ्रेम वर्क का विकास।
लक्ष्य:
• न्यायसंगत, सस्ती और गुणवत्तायुक्त स्वास्थ्य सेवाओं तक सार्वभौम पहुंच सुनिश्चित करना जो लोगों की जरूरतों के प्रति जवाबदेह और उत्तरदायी हो।
प्रमुख प्रभाव:
• 5 वर्ष से कम आयु के शिशुओं की मृत्यु दर (यू5एमआर):वर्ष 2015 में घटकर 43 हुई जो 2010 में 59 थी। प्रतिशत वार्षिक गिरावट दर 2010-15 में बढ़कर 6.1 प्रतिशत हो गई जो 1990-2010 के दौरान 3.7 प्रतिशत रही थी। 2014-15 में वार्षिक गिरावट दर 4.4 प्रतिशत थी। भारत वर्तमान गिरावट दर पर यू5एमआर के सहस्राब्दी विकास लक्ष्य 4 को हासिल कर सकता है।
• मातृ मृत्यु अनुपात (एमएमआर): (प्रति 1,00,000 जीवित जन्मों में मातृ मृत्यु की संख्या) वर्ष 2010-12 की 178 से घटकर 2011-13 के दौरान 167 हो गई। इसके बाद के आंकड़े को आरजीआई द्वारा अधिसूचित किया जाना अभी बाकी है। भारत 5 एमएमआर की गिरावट दर पर सहस्राब्दी विकास को हासिल कर सकता है।
• शिशु मृत्यु दर (आईएमआर): (प्रति 1,000 जन्म पर एक साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु की संख्या) – वर्ष 2014 में 39 थी जो घटकर वर्ष 2015 में 37 हो गई।
• कुल प्रजनन दर (टीएफआर): वर्ष 2015 में घटकर 3 हो गई जो 2010 में 2.5 थी (एनएफएचएस 2015-16 के अनुसार, वर्तमान में यह 2.2 है)। हम 2017 तक 2.1 टीएफआर के 12वीं पंचवर्षीय योजना लक्ष्य को हासिल कर सकते हैं।
• मलेरिया एपीआई 2016 में घटकर 84 हो गई जो 2011 में 1.10 थी। मलेरिया के संबंध में 12वीं योजना लक्ष्य हासिल कर लिया गया है और एपीआई को 1 से कम प्रति 1,000 आबादी रखा गया है।
• टीबी के कारण मृत्यु की संख्या प्रति 1,00,000 आबादी पर घटकर 2015 में 36 रह गई जो 2010 में 40 थी। इसका फैलाव भी प्रति 1,00,000 आबादी पर 1990 के 465 से घटकर 2014 में 195 रह गया। इसी प्रकार प्रति 1,00,000 आबादी पर टीबी के मामले भी घटकर 2015 में 217 रह गए जो 2000 में 289 थे। टीबी की वार्षिक प्रसार एवं मृत्यु दर 1990 के स्तर की तुलना में घटकर आधी रह गई है।
• कुष्ठ प्रसार दर राष्ट्रीय स्तर पर प्रति 10,000 की आबादी पर 31 मार्च 2012 को 0.68 से घटकर 31 मार्च 2017 को 0.66 रह गई। मार्च 2017 तक 556 जिलों ने 12वीं योजना लक्ष्य को हासिल कर लिया था।
• कालाजार: प्रति 10,000 की आबादी पर कालाजार के एक से अधिक मामले वाले स्थानीय ब्लॉकों की संख्या 2010 में 230 थी जो घटकर 2016 में 94 रह गई।
हाथीपांव: 31 मार्च 2017 तक 256 स्थानिक जिलों में से 94 जिलों ने 1% से कम एमएफ दर हासिल की जो ट्रांसमिशन एसेसमेंट सर्वे (टीएएस) द्वारा सत्यापित थी और मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एमडीए) को सफलतापूर्वक रोक दिया गया।
वर्ष 2012-13 से 2016-17 तक की अवधि में राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों को 88,353.59 करोड़ रुपये (अनुदान सहित) की राशि जारी की गई, जबकि वित्त वर्ष 2016-17 के दौरान राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों को 18,436.03 करोड़ रुपये (अनुदान सहित) जारी किए गए।
एनएचएम को सार्वभौमिक लाभ- यानी पूरी आबादी, सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्र तक आने वाले सभी लोगों को सेवा प्रदान करना आदि- के लिए लागू किया गया है। हालांकि वर्ष 2016-17 के दौरान सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों में वाह्य रोगी सेवाओं का लाभ उठाने वाले लोगों की कुल संख्या 146.82 करोड़ थी जबकि 6.99 करोड़ लोगों ने इन-पेशेंट सेवाओं का लाभ उठाया। वर्ष 2016-17 के दौरान सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों में 1.55 करोड़ शल्य चिकित्सा की गई।
यह देश के सभी राज्यों और जिलों को कवर करेगा।
पहले से ही चल रहे कार्यक्रम:
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के पास दो उप-मिशन यानी राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) और राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन (एनयूएचएम) हैं। एनआरएचएम को अप्रैल 2005 में शुरू किया गया था जबकि एनयूएचएम को शुरू करने की मंजूरी मंत्रिमंडल ने 1 मई 2013 को दी थी। एनएचएम के तहत न्यायसंगत, सस्ती एवं गुणवत्तायुक्त स्वास्थ्य सेवाओं तक सार्वभौमिक पहुंच सुनिश्चित करने की परिकल्पना की गई है जो लोगों की जरूरतों के प्रति जवाबदेह और उत्तरदायी हो। इस कार्यक्रम के प्रमुख घटकों में ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में स्वास्थ्य व्यवस्था को सुदृढ़ करना, प्रजनन-मातृ-नवजात-बाल एवं किशोर स्वास्थ्य (आरएमएनसीएच+ए) को प्रोत्साहित करना और संक्रामक एवं गैर-संक्रामक रोगों का नियंत्रण शामिल है।
वर्ष 2016-17 के दौरान एनएचएम के तहत प्रगति इस प्रकार रही:
वर्ष 2016-17 के दौरान एनएचएम के तहत निम्नलिखित अभियान शुरू किए गए:
नया टीकाकरण अभियान:
• खसरा-रूबेला (एमआर) टीका: रूबेला संक्रमण के कारण जन्मजात जन्म दोषों से सुरक्षा प्रदान करने के लिए यूनिवर्सल टीकाकरण कार्यक्रम में खसरा-रूबेला संयुक्त टीके के तहत रूबेला टीका शामिल किया गया। इस टीके को 5 फरवरी, 2017 को शुरू में पांच राज्यों तमिलनाडु, कर्नाटक, गोवा, पुडुचेरी एवं लक्षद्वीप में 9 महीने से 15 वर्ष आयुवर्ग के बच्चों के लिए एमआर टीकाकरण अभियान के जरिये शुरू किया गया। 31 मार्च 2017 तक इन राज्यों में एमआर टीकाकरण अभियान के तहत 32 करोड़ बच्चों को टीका लगाया जा चुका है।
निष्क्रिय पोलियो वैक्सीन (आईपीवी): भारत पोलियो मुक्त है लेकिन इस स्थिति को बनाए रखने के लिए 30 नवंबर 2015 को आईपीवी की शुरुआत की गई।
• वयस्क जापानी एन्सेफलाइटिस (जेई) वैक्सीन: नेशनल वेक्टर बोर्ने डिजीज कंट्रोल प्रोग्राम (एनवीबीडीसीपी) ने असम, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में 15 से 65 साल के आयु वर्ग में वयस्क जेई टीकाकरण के लिए अत्यधिक जोखिम वाले 21 जिलों की पहचान की है और इन जिलों में 2.6 करोड़ से अधिक वयस्कों को जेई टीका लगाया जा चुका है।
• रोटा-वायरस वैक्सीन: रोटा-वायरस के कारण बच्चों में रुग्णदर और मृत्युदर की रोकथाम के लिए रोटावायरस टीके को यूनिवर्सल टीकाकरण कार्यक्रम में शामिल किया गया। पहले चरण में इसे 4 राज्यों: आंध्र प्रदेश, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और ओडिशा में लागू किया गया। इन चार राज्यों में इसके कार्यान्वयन के मूल्यांकन के बाद कुछ अन्य राज्यों में भी इसे विस्तारित करने की योजना है।
मिशन इंद्रधनुष (एमआई):
• मिशन इंद्रधनुष को दिसंबर 2014 में शुरू किया गया था ताकि बच्चों के पूर्ण प्रतिरक्षण कवरेज को कम से कम 90% तक बढ़ाया जा सके और 2020 तक इसे बनाए रखा जा सके।
• मिशन इंद्रधनुष के तीन चरण पूरे हो चुके हैं और चौथा चरण जारी है। मिशन इंद्रधनुष के इन चार चरणों में कुल 528 जिलों को कवर किया गया। मिशन इंद्रधनुष के पूरे हो चुके तीन चरण और फिलहाल जारी चौथे चरण में 31 मार्च, 2017 के अनुसार लगभग 11 करोड़ बच्चे शामिल हुए जिनमें से 55 लाख बच्चों को पूरी तरह से प्रतिरक्षित किया गया था। इसके अलावा 56 लाख गर्भवती महिलाओं को भी टिटनस टॉक्साइड का टीका लगाया गया।
• मिशन इंद्रधनुष के पहले दो चरणों में देश भर में पूर्ण प्रतिरक्षण कवरेज में 7% की वृद्धि हुई।
• वर्ष 2016-17 के दौरानमिशन इंद्रधनुष के तीसरे चरणके तहत 216 जिलों में अभियान चलाया गया। उस दौरान करीब 84 लाख बच्चों तक पहुंचा गया जिनमें से 16.28 लाख बच्चों को पूरी तरह से प्रतिरक्षित किया गया। इसके अलावा 17.78 लाख गर्भवती महिलाओं को टिटनस टॉक्साइड का टीका भी लगाया गया।
मुफ्त औषधि सेवा अभियान:
• मुफ्त दवा उपलब्ध कराने और दवाओं की खरीद, गुणवत्ता आश्वस्त करने, आईटी आधारित आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन प्रणाली, प्रशिक्षण एवं शिकायत निवारण आदि की व्यवस्था के लिए राज्यों को मदद प्रदान की गई।
• देखभाल के समय लोगों की जेब से खर्च कम करने का उद्देश्य।
• विस्तृत परिचालन दिशानिर्देश तैयार कर राज्यों को 2 जुलाई 2015 को जारी किए गए।
• सी.डैक द्वारा विकसित मॉडल आईटी एप्लिकेशन ड्रग्स एंड वैक्सीन डिस्ट्रिब्यूशन मैनेजमेंट सिस्टम्स (डीवीडीएमएस) को राज्यों के साथ साझा किया गया।
• 23 राज्यों में आईटी आधारित औषधि वितरण प्रबंधन प्रणाली के जरिये दवाओं की खरीद, गुणवत्ता व्यवस्था एवं वितरण को संचालित किया गया।
• सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों में मुफ्त आवश्यक दवाएं मुहैया कराने के लिए नीति को अधिसूचित किया है।
नि:शुल्क नैदानिक सेवा पहल:
• परिचालन दिशानिर्देशों को तैयार कर उसे 2 जुलाई 2015 को जारी कर दिया गया।
• पीपीपी की एक श्रेणी के लिए मॉडल आरएफपी दस्तावेज भी शामिल जैसे: जिला अस्पतालों में टेली रेडियोलॉजी, सीटी स्कैन और प्रयोगशाला निदान के लिए हब एंड स्पोक मॉडल।
बायो मेडिकल उपकरण रखरखाव:
• लक्ष्य- सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों में लगभग 11,000 करोड़ रुपये के मूल्य के बायो-मेडिकल उपकरण की निष्क्रियता दर कम करना। (राज्यों में 20% -60% के दायरे में)
• वर्ष 2016-17 के दौरान 13 राज्यों में इन्वेंट्री मैपिंग और बीएमएमबी को प्रभावी तौर पर शुरू किया गया।
• 29 राज्यों के 29,115 स्वास्थ्य केंद्रों में कुल 7,56,750 उपकरणों की पहचान की गई जिनकी लागत करीब 4,564 करोड़ रुपये आंकी गई है।
• इस पहल के तहत वर्ष 2016-17 में 20 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में 11 करोड़ रुपये की मंजूरी दी गई।
कायाकल्प-सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों के लिए पुरस्कार का शुभारंभ:
• सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों में साफ-सफाई, स्वच्छता और संक्रमण नियंत्रण प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिए शुरू किया गया।
• 2016-17 के दौरान कायाकल्प अभियान का विस्तार डीएच के साथ-साथ उप जिला अस्पतालों (एसडीएच)/सीएचसी और पीएचसी तक किया गया।
• 27 राज्यों में 107.99 करोड़ रुपये की मंजूरी दी गई।
• 30,000 से अधिक सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों का मूल्यांकन किया गया और 179 डीएचएस, 324 एसडीएचएस/सीएचसी और 632 पीएचसी सहित 1,100 से अधिक सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों को कायाकल्प पुरस्कार प्राप्त हुए।
किलकारी और मोबाइल एकेडमी:
• गर्भावस्था की दूसरी तिमाही से लेकर बच्चे के एक साल के होने तकगर्भावस्था, बच्चे के जन्म और शिशुओं की देखभाल के बारे में साप्ताहिक समय पर 72 ऑडियो संदेश सीधे परिवार के मोबाइल फोन पर भेजे जाते हैं।
• किलकारी के दायरे में बिहार, छत्तीसगढ़, दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड हैं।
• 31 मार्च, 2017 तक किलकारी के तहत लगभग 82 करोड़ फोन कॉल (प्रत्येक कॉल की औसत अवधि: लगभग 1 मिनट) सफलतापूर्वक किए गए।
• मोबाइल ऐकेडमी- मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं (आशा) के ज्ञान में विस्तार और उनके संचार कौशल में सुधार के लिए मुफ्त ऑडियो प्रशिक्षण पाठ्यक्रम तैयार किए गए।
• बिहार, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में इसे लागू किया जा चुका है।
• एमसीटीएस में पंजीकृत 79,660 आशाओं ने मोबाइल एकेडमी कोर्स शुरू कियाजिसमें से 68,803 (यानी लगभग 86%) आशाओं ने 31 मार्च, 2017 तक पाठ्यक्रम पूरा कर लिया था।
मदर एंड चाइल्ड ट्रैकिंग सिस्टम (एमसीटीएस)/प्रजनन एवं बाल स्वास्थ्य (आरसीएच) पोर्टल
• वेब आधारित नाम आधारित ट्रैकिंग प्रणाली को मदर एंड चाइल्ड ट्रैकिंग सिस्टम (एमसीटीएस) कहा गया है। इसे सभी राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों में शुरू किया गया है ताकि सभीगर्भवती महिलाओं को प्रसवोत्तर और जन्मपूर्व देखभाल सेवाओं एवं सभी बच्चों के लिए प्रतिरक्षण सहित समस्त पूरक गुणवत्ता एमसीएच सेवाओं की समय पर वितरण सुविधा सुनिश्चित हो सके।
• 68 करोड़ गर्भवती महिलाओं और 1.31 करोड़ बच्चों को 31 मार्च, 2017 तक एमसीटीएस/आरसीएच पोर्टल में पंजीकृत किया गया।
• परिवार नियोजन – राष्ट्रीय परिवार नियोजन कार्यक्रम में तीन नए तरीके पेश किए गए:
• इनजेक्टेबल कॉन्ट्रासेप्टिव डीएमपीए (अन्तारा)- 3 महीने का इंजेक्शन
• कॉन्ट्रासेप्टिव पिल (छाया)- बिना हार्मोन वाली सप्ताह में एक बार ली जाने वाली गोली।
• प्रोगेस्टेरोन-ओनली पिल्स (पीओपी)- दूध पिलाने वाली माताओं के लिए।
परिवार नियोजन का नया मीडिया अभियान:
• 360oका समग्र परिवार नियोजन अभियान जिसके तहत एक नया लोगो भी लॉन्च किया गया।
संशोधित राष्ट्रीय टीबी नियंत्रण कार्यक्रम (आरएनटीसीपी)
• कारर्टिज आधारित न्यूक्लिक एसिड एम्पलिफिकेशन टेस्ट (सीबीएनएएटी) की 121 मशीनें 2016 तक थीं।
• 500 अतिरिक्त सीबीएनएएटी मशीनें राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों को प्रदान की गईं।
• टीबी खासकर डीआर-टीबी के खिलाफ लड़ाई के लिए त्वरित गुणवत्तायुक्त निदान उपलब्ध कराया गया।
• टीबी के उपचार में दवा प्रतिरोधी परिणाम में सुधार के लिए कंडीशनल एक्सेस प्रोग्राम (सीएपी) के तहत नई टीबी-रोधी दवा बेडाक्विलिन को उतारा गया।
पृष्ठभूमि:
मंत्रिमंडल ने केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री की अध्यक्षता में संबंधित मंत्रालयों के 10 मंत्रियों, 16 सचिवों, 10 स्वतंत्र विशेषज्ञों, 4 राज्य सचिवों आदि के साथ मिशन संचालन समूह (एमएसजी) की स्थापना और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के सचिव की अध्यक्षता में अधिकारप्राप्त कार्यक्रम समिति (ईपीसी) की स्थापना को मंजूरी दी है। नीतिगत मार्गदर्शन एवं निरीक्षण के अलावा इन निकायों को एनएचआरएम के सभी घटकों और योजनाओं के संदर्भ में वित्तीय मानदंड प्रदान करने और उन्हें मंजूरी देने/संशोधन करने की शक्तियां दी गई हैं। मंत्रिमंडल की मंजूरी में आगे कहा गया है कि इन प्रत्यायोजित शक्तियों का प्रयोग इस शर्त के अधीन होगा कि एनआरएचएम के बारे में प्रगति रिपोर्ट, वित्तीय मानदंडों में विचलन के साथ मौजूदा योजनाओं में संशोधन और नई योजनाओं का ब्यौरा वार्षिक आधार पर सूचनाओं के लिए मंत्रिमंडल के सामने रखा जाएगा।