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प्रयागराज में विकास परियोजनाओं के उद्घाटन और शुभारंभ पर प्रधानमंत्री के संबोधन का मूल पाठ

प्रयागराज में विकास परियोजनाओं के उद्घाटन और शुभारंभ पर प्रधानमंत्री के संबोधन का मूल पाठ


उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल जी, मुख्यमंत्री श्रीमान योगी आदित्यनाथ जी, उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या जी, ब्रजेश पाठक जी, उत्तर प्रदेश के मंत्री, सांसद और विधायक साथी, प्रयागराज के मेयर और जिला पंचायत अध्यक्ष, अन्य महानुभाव, और मेरे प्यारे भाइयों और बहनों।

प्रयागराज में संगम की इस पावन भूमि को मैं श्रद्धापूर्वक प्रणाम करता हूं। महाकुंभ में पधार रहे सभी साधु-संतों को भी नमन करता हूं। महाकुंभ को सफल बनाने के लिए दिन-रात परिश्रम कर रहे कर्मचारियों का, श्रमिकों और सफाई-कर्मियों का मैं विशेष रूप से अभिनंदन करता हूं। विश्व का इतना बड़ा आयोजन, हर रोज लाखों श्रद्धालुओं के स्वागत और सेवा की तैयारी लगातार 45 दिनों तक चलने वाला महायज्ञ, एक नया नगर बसाने का महा-अभियान, प्रयागराज की इस धरती पर एक नया इतिहास रचा जा रहा है। अगले साल महाकुंभ का आयोजन देश की सांस्कृतिक, आध्यात्मिक पहचान को नए शिखर पर स्थापित करेगा।  और मैं तो बड़े विश्वास के साथ कहता हूं, बड़ी श्रद्धा के साथ कहता हूं, अगर मुझे इस महाकुंभ का वर्णन एक वाक्य में करना हो तो मैं कहूंगा ये एकता का ऐसा महायज्ञ होगा, जिसकी चर्चा पूरी दुनिया में होगी। मैं इस आयोजन की भव्य और दिव्य सफलता की  आप सभी को शुभकामनाएं देता हूं।

साथियों,

हमारा भारत पवित्र स्थलों और तीर्थों का देश है। ये गंगा, यमुना, सरस्वती, कावेरी, नर्मदा जैसी अनगिनत पवित्र नदियों का देश है। इन नदियों के प्रवाह की जो पवित्रता है, इन अनेकानेक तीर्थों का जो महत्व है, जो महात्म्य है, उनका संगम, उनका समुच्चय, उनका योग, उनका संयोग, उनका प्रभाव, उनका प्रताप ये प्रयाग है। ये केवल तीन पवित्र नदियों का ही संगम नहीं है। प्रयाग के बारे में कहा गया है-माघ मकरगत रबि जब होई। तीरथपतिहिं आव सब कोई॥ अर्थात्, जब सूर्य मकर में प्रवेश करते हैं, सभी दैवीय शक्तियाँ, सभी तीर्थ, सभी ऋषि, महर्षि, मनीषि प्रयाग में आ जाते हैं। ये वो स्थान है, जिसके प्रभाव के बिना पुराण पूरे नहीं होते। प्रयागराज वो स्थान है, जिसकी प्रशंसा वेद की ऋचाओं ने की है।

भाइयों-बहनों,

प्रयाग वो है, जहां पग-पग पर पवित्र स्थान हैं, जहां पग-पग पर पुण्य क्षेत्र हैं। त्रिवेणीं माधवं सोमं, भरद्वाजं च वासुकिम्। वन्दे अक्षय-वटं शेषं, प्रयागं तीर्थनायकम्॥ अर्थात्, त्रिवेणी का त्रिकाल प्रभाव, वेणी माधव की महिमा, सोमेश्वर के आशीर्वाद, ऋषि भारद्वाज की तपोभूमि, नागराज वासुकि का विशेष स्थान, अक्षय वट की अमरता और शेष की अशेष कृपा…ये है- हमारा तीर्थराज प्रयाग! तीर्थराज प्रयाग यानी- “चारि पदारथ भरा भँडारू।  पुन्य प्रदेस देस अति चारू”। अर्थात्, जहां धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष चारों पदार्थ सुलभ हैं, वो प्रयाग है। प्रयागराज केवल एक भौगोलिक भूखंड नहीं है। ये एक आध्यात्मिक अनुभव क्षेत्र है। ये प्रयाग और प्रयाग के लोगों का ही आशीर्वाद है, कि मुझे इस धरती पर बार-बार आने का सौभाग्य मिलता है। पिछले कुंभ में भी मुझे संगम में स्नान करने का सौभाग्य मिला था। और, आज इस कुंभ के आरंभ से पहले मैं एक बार फिर मां गंगा के चरणों में आकर के आशीर्वाद प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त किया है। आज मैंने संगम घाट के लेटे हुए हनुमान जी के दर्शन किए। अक्षयवट वृक्ष का आशीर्वाद भी प्राप्त किया। इन दोनों स्थलों पर श्रद्धालुओं की सहूलियत के लिए हनुमान कॉरिडोर और अक्षयवट कॉरिडोर का निर्माण हो रहा है। मैंने सरस्वती कूप री-डवलपमेंट प्रोजेक्ट की भी जानकारी ली। आज यहां हजारों करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट का लोकार्पण हुआ है। मैं इसके लिए आप सबको बधाई देता हूं।

साथियों,

महाकुंभ हजारों वर्ष पहले से चली आ रही हमारे देश की सांस्कृतिक, आध्यात्मिक यात्रा का पुण्य और जीवंत प्रतीक है। एक ऐसा आयोजन जहां हर बार धर्म, ज्ञान, भक्ति और कला का दिव्य समागम होता है। हमारे यहां कहा गया है, दश तीर्थ सहस्राणि, तिस्रः कोट्यस्तथा अपराः । सम आगच्छन्ति माघ्यां तु, प्रयागे भरतर्षभ ॥ अर्थात्, संगम में स्नान से करोड़ों तीर्थ के बराबर पुण्य मिल जाता है।  जो व्यक्ति प्रयाग में स्नान करता है, वो हर पाप से मुक्त हो जाता है। राजा-महाराजाओं का दौर हो या फिर सैकड़ों वर्षों की गुलामी का कालखंड आस्था का ये प्रवाह कभी नहीं रुका। इसकी एक बड़ी वजह ये रही है कि कुंभ का कारक कोई वाह्य शक्ति नहीं है। किसी बाहरी व्यवस्था के बजाय कुंभ, मनुष्य के अंतर्मन की चेतना का नाम है। ये चेतना स्वत: जागृत होती है। यही चेतना भारत के कोने-कोने से लोगों को संगम के तट तक खींच लाती है। गांव, कस्बों, शहरों से लोग प्रयागराज की ओर निकल पड़ते हैं। सामूहिकता की ऐसी शक्ति, ऐसा समागम शायद ही कहीं और देखने को मिले। यहां आकर संत-महंत, ऋषि-मुनि, ज्ञानी-विद्वान, सामान्य मानवी सब एक हो जाते हैं, सब एक साथ त्रिवेणी में डुबकी लगाते हैं। यहां जातियों का भेद खत्म हो जाता है, संप्रदायों का टकराव मिट जाता है। करोड़ों लोग एक ध्येय, एक विचार से जुड़ जाते हैं। इस बार भी महाकुंभ के दौरान यहां अलग-अलग राज्यों से करोड़ों लोग जुटेंगे, उनकी भाषा अलग होगी, जातियां अलग होंगी, मान्यताएं अलग होंगी, लेकिन संगम नगरी में आकर वो सब एक हो जाएंगे। और इसलिए मैं फिर एक बार कहता हूं, कि महाकुंभ, एकता का महायज्ञ है। जिसमें हर तरह के भेदभाव की आहुति दे दी जाती है। यहां संगम में डुबकी लगाने वाला हर भारतीय एक भारत-श्रेष्ठ भारत की अद्भुत तस्वीर प्रस्तुत करता है।

साथियों,

महाकुंभ की परंपरा का सबसे अहम पहलू ये है कि इस दौरान देश को दिशा मिलती है। कुंभ के दौरान संतों के वाद में, संवाद में, शास्त्रार्थ में, शास्त्रार्थ के अंदर देश के सामने मौजूद अहम विषयों पर, देश के सामने मौजूद चुनौतियों पर व्यापक चर्चा होती थी, और फिर संतजन मिलकर राष्ट्र के विचारों को एक नई ऊर्जा देते थे, नई राह भी दिखाते थे। संत-महात्माओं ने देश से जुड़े कई महत्वपूर्ण निर्णय कुंभ जैसे आयोजन स्थल पर ही लिए हैं। जब संचार के आधुनिक माध्यम नहीं थे, तब कुंभ जैसे आयोजनों ने बड़े सामाजिक परिवर्तनों का आधार तैयार किया था। कुंभ में संत और ज्ञानी लोग मिलकर समाज के सुख-दुख की चर्चा करते थे, वर्तमान और भविष्य को लेकर चिंतन करते थे, आज भी कुंभ जैसे बड़े आयोजनों का महात्म्य वैसा ही है। ऐसे आयोजनों से देश के कोने-कोने में समाज में सकारात्मक संदेश जाता है, राष्ट्र चिंतन की ये धारा निरंतर प्रवाहित होती है। इन आयोजनों के नाम अलग-अलग होते हैं, पड़ाव अलग-अलग होते हैं, मार्ग अलग-अलग होते हैं, लेकिन यात्री एक होते हैं, मकसद एक होता है।

साथियों,

कुंभ और धार्मिक यात्राओं का इतना महत्व होने के बावजूद, पहले की सरकारों के समय, इनके महात्म्य पर ध्यान नहीं दिया गया। श्रद्धालु ऐसे आयोजनों में कष्ट उठाते रहे, लेकिन तब की सरकारों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता था। इसकी वजह थी कि भारतीय संस्कृति से, भारत की आस्था से उनका लगाव नहीं था, लेकिन आज केंद्र और राज्य में भारत के प्रति आस्था, भारतीय संस्कृति को मान देने वाली सरकार है। इसलिए कुंभ में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए सुविधाएं जुटाना डबल इंजन की सरकार अपना दायित्व समझती है। इसलिए यहां केंद्र और राज्य सरकार ने मिलकर हजारों करोड़ रुपए की योजनाएं शुरू की हैं। सरकार के अलग-अलग विभाग, जिस तरह महाकुंभ की तैयारियों को पूरा करने में जुटे हैं, वो बहुत सराहनीय है। देश-दुनिया के किसी कोने से कुंभ तक पहुंचने में कोई दिक्कत ना हो, इसके लिए यहां की कनेक्टिविटी पर विशेष फोकस किया गया है। अयोध्या, वाराणसी, रायबरेली, लखनऊ से प्रयागराज शहर की कनेक्टिविटी को बेहतर किया गया है। मैं जिस Whole of the Government अप्रोच की बात करता हूं, उन महाप्रयासों का महाकुंभ भी इस स्थली में नजर आता है।

साथियों,

हमारी सरकार ने विकास के साथ-साथ विरासत को भी समृद्ध बनाने पर फोकस किया है। आज देश के कई हिस्सों में अलग-अलग टूरिस्ट सर्किट विकसित किए जा रहे हैं। रामायण सर्किट, श्री कृष्णा सर्किट, बुद्धिस्ट सर्किट, तीर्थांकर सर्किट…इनके माध्यम से हम देश के उन स्थानों को महत्व दे रहे हैं, जिन पर पहले फोकस नहीं था। स्वदेश दर्शन योजना हो, प्रसाद योजना हो…इनके माध्यम से तीर्थस्थलों पर सुविधाओं का विस्तार किया जा रहा है। अयोध्या के भव्य राम मंदिर ने पूरे शहर को कैसे भव्य बना दिया है, हम सब इसके साक्षी हैं। विश्वनाथ धाम, महाकाल महालोक इसकी चर्चा आज पूरे विश्व में है। यहां अक्षय वट कॉरिडोर, हनुमान मंदिर कॉरिडोर, भारद्वाज ऋषि आश्रम कॉरिडोर में भी इसी विजन का प्रतिबिंब है। श्रद्धालुओं के लिए सरस्वती कूप, पातालपुरी, नागवासुकी, द्वादश माधव मंदिर का कायाकल्प किया जा रहा है।

साथियों,

हमारा ये प्रयागराज, निषादराज की भी भूमि है। भगवान राम के मर्यादा पुरुषोत्तम बनने की यात्रा में एक महत्वपूर्ण पड़ाव श्रृंगवेरपुर का भी है। भगवान राम और केवट का प्रसंग आज भी हमें प्रेरित करता है। केवट ने अपने प्रभु को सामने पाकर उनके पैर धोए थे, उन्हें अपनी नाव से नदी पार कराई थी। इस प्रसंग में श्रद्धा का अनन्य भाव है, इसमें भगवान और भक्त की मित्रता का संदेश है। इस घटना का ये संदेश है कि भगवान भी अपने भक्त की मदद ले सकते हैं। प्रभु श्री राम और निषादराज की इसी मित्रता के प्रतीक के रूप में श्रृंगवेरपुर धाम का विकास किया जा रहा है। भगवान राम और निषादराज की प्रतिमा भी आने वाली पीढ़ियों को समता और समरसता का संदेश देती रहेगी।

साथियों,

कुंभ जैसे भव्य और दिव्य आयोजन को सफल बनाने में स्वच्छता की बहुत बड़ी भूमिका है। महाकुंभ की तैयारियों के लिए नमामि गंगे कार्यक्रम को तेजी से आगे बढ़ाया गया है। प्रयागराज शहर के सैनिटेशन और वेस्ट मैनेजमेंट पर फोकस किया गया है। लोगों को जागरूक करने के लिए गंगा दूत, गंगा प्रहरी और गंगा मित्रों की नियुक्ति की गई है। इस बार कुंभ में 15 हजार से ज्यादा मेरे सफाई कर्मी भाई-बहन कुंभ की स्वच्छता को संभालने वाले है।  मैं आज कुंभ की तैयारी में जुटे अपने सफाई कर्मी भाई-बहनों का अग्रिम आभार भी व्यक्त करूंगा। करोड़ों लोग यहां पर जिस पवित्रता, स्वच्छता, आध्यात्मिकता के साक्षी बनेंगे, वो आपके योगदान से ही संभव होगा। इस नाते यहां हर श्रद्धालु के पुण्य में आप भी भागीदार बनेंगे। जैसे भगवान कृष्ण ने जूठे पत्तल उठाकर संदेश दिया था कि हर काम का महत्व है, वैसे ही आप भी अपने कार्यों से इस आय़ोजन की महानता को और बड़ा करेंगे। ये आप ही हैं, जो सुबह सबसे पहले ड्यूटी पर लगते हैं, और देर रात तक आपका काम चलता रहता है। 2019 में भी कुंभ आयोजन के समय यहां की स्वच्छता की बहुत प्रशंसा हुई थी। जो लोग हर 6 वर्ष पर कुंभ या महाकुंभ में स्नान के लिए आते हैं, उन्होंने पहली बार इतनी साफ-सुंदर व्यवस्था देखी थी। इसलिए आपके पैर धुलकर मैंने अपनी कृत्यज्ञता दिखाई थी। हमारे स्वच्छता कर्मियों के पैर धोने से मुझे जो संतोष मिला था, वो मेरे लिए जीवन भर का यादगार अनुभव बन गया है।

साथियों,

कुंभ से जुड़ा एक और पक्ष है जिसकी चर्चा उतनी नहीं हो पाती। ये पक्ष है- कुंभ से आर्थिक गतिविधियों का विस्तार, हम सभी देख रहे हैं, कैसे कुंभ से पहले इस क्षेत्र में आर्थिक गतिविधियों में तेजी आ रही है। लगभग डेढ़ महीने तक संगम किनारे एक नया शहर बसा रहेगा। यहां हर रोज लाखों की संख्या में लोग आएंगे। पूरी व्यवस्था बनाए रखने के लिए प्रयागराज में बड़ी संख्या में लोगों की जरूरत पड़ेगी। 6000 से ज्यादा हमारे नाविक साथी, हजारों दुकानदार साथी, पूजा-पाठ और स्नान-ध्यान कराने में मदद करने वाले सभी का काम बहुत बढ़ेगा। यानी, यहां बड़ी संख्या में रोजगार के अवसर तैयार होंगे। सप्लाई चेन को बनाए रखने के लिए व्यापारियों को दूसरे शहरों से सामान मंगाने पड़ेंगे। प्रयागराज कुंभ का प्रभाव आसपास के जिलों पर भी पड़ेगा। देश के दूसरे राज्यों से आने वाले श्रद्धालु ट्रेन या विमान की सेवाएं लेंगे, इससे भी अर्थव्यवस्था में गति आएगी। यानि महाकुंभ से सामाजिक मजबूती तो मिलेगी ही, लोगों का आर्थिक सशक्तिकरण भी होगा।

साथियों,

महाकुंभ 2025 का आयोजन जिस दौर में हो रहा है, वो टेक्नोलॉजी के मामले में पिछले आयोजन से बहुत आगे है। आज पहले की तुलना में कई गुना ज्यादा लोगों के पास स्मार्ट फोन है। 2013 में डेटा आज की तरह सस्ता नहीं था। आज मोबाइल फोन में यूजर फ्रेंडली ऐप्स हैं, जिसे कम जानकार व्यक्ति भी उपयोग में ला सकता है। थोड़ी देर पहले अभी मैंने कुंभ सहायक चैटबॉट को लॉन्च किया है। पहली बार कुंभ आयोजन में AI, Artificial Intelligence और चैटबॉट का प्रयोग होगा। AI चैटबॉट ग्यारह भारतीय भाषाओं में संवाद करने में सक्षम है। मेरा ये भी सुझाव है कि डेटा और टेक्नोलॉजी के इस संगम से ज्यादा से ज्यादा लोगों को जोड़ा जाए। जैसे महाकुंभ से जुड़ी फोटोग्राफी कंपटीशन का आयोजन किया जा सकता है। महाकुंभ को एकता के महायज्ञ के रूप में दिखाने वाली फोटोग्राफी की प्रतियोगिता रख सकते हैं। इस पहल से युवाओं में कुंभ का आकर्षण बढ़ेगा। कुंभ में आने वाले ज्यादातर श्रद्धालु इसमें हिस्सा लेंगे। जब ये तस्वीरें सोशल मीडिया पर पहुंचेंगी तो कितना बड़ा कैनवास तैयार होगा, इसकी कल्पना नहीं कर सकते। इसमें कितने रंग, कितनी भावनाएं मिलेंगी, ये गिन पाना मुश्किल होगा।  आप आध्यात्म और प्रकृति से जुड़ी किसी प्रतियोगिता का आयोजन भी कर सकते हैं।

साथियों,

आज देश एक साथ विकसित भारत के संकल्प की तरफ तेजी से बढ़ रहा है। मुझे विश्वास है कि इस महाकुंभ से निकली आध्यात्मिक और सामूहिक शक्ति हमारे इस संकल्प को और मजबूत बनाएगी। महाकुंभ स्नान ऐतिहासिक हो, अविस्मरणीय हो, मां गंगा, मां यमुना और मां सरस्वती की त्रिवेणी से मानवता का कल्याण हो…हम सबकी यही कामना है। संगम नगरी में आने वाले हर श्रद्धालु को मैं शुभकामनाएं देता हूं, आप सबका भी मैं ह्दय से बहुत-बहुत धन्यवाद करता हूं। मेरे साथ बोलिए-  

भारत माता की जय।

भारत माता की जय।

भारत माता की जय।

गंगा माता की जय।

गंगा माता की जय।

गंगा माता की जय।  

बहुत-बहुत धन्यवाद।

 

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MJPS/VJ/RK