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प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने महाराष्ट्र के नागपुर में माधव नेत्रालय प्रीमियम सेंटर की नीव रखी


प्रधानमंत्री ने आज महाराष्ट्र के नागपुर में माधव नेत्रालय प्रीमियम सेंटर की नीव रखी। सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के महत्व पर प्रकाश डाला। यह पवित्र नवरात्रि उत्सव की शुरुआत का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि देश भर में आज गुड़ी पड़वा, उगादि और नवरेह जैसे त्यौहार मनाए जा रहे हैं। उन्होंने इस दिन के महत्व पर जोर दिया क्योंकि इसी दिन भगवान झूलेलाल और गुरु अंगद देव की जयंती भी है। उन्होंने इस अवसर को प्रेरणादायी डॉ. केबी हेडगेवार की जयंती और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की शानदार यात्रा के शताब्दी वर्ष के रूप में भी स्वीकार किया। उन्होंने इस महत्वपूर्ण दिन पर डॉ. हेडगेवार और श्री गोलवलकर गुरुजी को श्रद्धांजलि देने के लिए स्मृति मंदिर जाने पर अपना सम्मान व्यक्त किया।

इस दौरान भारतीय संविधान के 75 वर्ष पूरे होने तथा अगले महीने इसके निर्माता डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर की जयंती के अवसर पर मनाए जाने वाले समारोहों पर प्रकाश डालते हुए श्री मोदी ने दीक्षाभूमि पर डॉ. अंबेडकर को श्रद्धांजलि अर्पित करने तथा उनका आशीर्वाद लेने की बात कही। उन्होंने देशवासियों को नवरात्रि तथा अन्य सभी त्यौहारों की शुभकामनाएं दीं।

सेवा के पवित्र केंद्र के रूप में नागपुर के महत्व पर जोर देते हुए और एक महान पहल के विस्तार को स्वीकार करते हुए, श्री मोदी ने माधव नेत्रालय के प्रेरक गान पर टिप्पणी की। यह गान आध्यात्मिकता, ज्ञान, गौरव और मानवता को दर्शाता है। उन्होंने माधव नेत्रालय को एक ऐसा संस्थान बताया जो पूज्य गुरुजी के आदर्शों का पालन करते हुए दशकों से लाखों लोगों की सेवा कर रहा है और अनगिनत लोगों के जीवन में रोशनी लौटा रहा है।

उन्होंने माधव नेत्रालय के नए परिसर के शिलान्यास का उल्लेख किया और विश्वास व्यक्त किया कि यह विस्तार इसकी सेवा कार्यों को और तेज़ करेगा जिससे हज़ारों नए जीवन में रोशनी आएगी और उनके जीवन से अंधकार दूर होगा। उन्होंने माधव नेत्रालय से जुड़े सभी लोगों के प्रयासों की सराहना की और उनकी निरंतर सेवा के लिए अपनी शुभकामनाएं दीं।

लाल किले से ‘सबके प्रयास’ पर जोर देते हुए और स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में देश द्वारा की गई महत्वपूर्ण प्रगति पर प्रकाश डालते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि माधव नेत्रालय इन प्रयासों का पूरक है। उन्होंने जोर देते हुए कहा, सरकार की प्राथमिकता सभी नागरिकों के लिए बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं सुनिश्चित करना है, यहां तक ​​कि सबसे गरीब व्यक्ति को भी सर्वोत्तम संभव उपचार मिले। उन्होंने उल्लेख किया कि किसी भी नागरिक को गरिमापूर्ण जीवन से वंचित नहीं किया जाना चाहिए और वरिष्ठ नागरिक जिन्होंने अपना जीवन राष्ट्र को समर्पित कर दिया है, उन्हें चिकित्सा उपचार के बारे में चिंता में नहीं रहना चाहिए। उन्होंने आयुष्मान भारत के प्रभाव पर प्रकाश डाला जिसने लाखों लोगों को मुफ्त इलाज प्रदान किया है। श्री मोदी ने देश भर में हजारों जन औषधि केंद्रों का भी उल्लेख किया जो गरीब और मध्यम वर्ग के परिवारों को सस्ती दवाएं प्रदान करते हैं जिससे नागरिकों को हजारों करोड़ रुपये की बचत होती है। उन्होंने पिछले एक दशक में गांवों में लाखों आयुष्मान आरोग्य मंदिरों की स्थापना के बारे में बताया। ये लोगों को टेलीमेडिसिन के माध्यम से प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करते हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि इन सुविधाओं ने नागरिकों को चिकित्सा जांचों के लिए सैकड़ों किलोमीटर की यात्रा करने की आवश्यकता को समाप्त कर दिया है।

देश में मेडिकल कॉलेजों की संख्या दोगुनी करने और एम्स संस्थानों की संख्या तीन गुनी करने पर जोर देते हुए श्री मोदी ने कहा कि भविष्य में लोगों की सेवा करने के लिए अधिक कुशल डॉक्टरों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए मेडिकल सीटों की संख्या भी दोगुनी कर दी गई है। उन्होंने छात्रों को उनकी मूल भाषाओं में चिकित्सा का अध्ययन करने के अवसर प्रदान करने के लिए सरकार के प्रयासों पर जोर दिया जिससे वे डॉक्टर बन सकें। उन्होंने कहा कि आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में प्रगति के साथ-साथ देश अपने पारंपरिक ज्ञान को भी बढ़ावा दे रहा है। उन्होंने भारत के योग और आयुर्वेद को मिल रही वैश्विक मान्यता पर कहा। ये विश्व मंच पर देश की प्रतिष्ठा बढ़ा रहे हैं।

प्रधानमंत्री ने कहा कि किसी भी राष्ट्र का अस्तित्व उसकी संस्कृति और चेतना के पीढ़ियों के विस्तार पर निर्भर करता है। उन्होंने भारत के सदियों पुराने गुलामी और आक्रमणों के इतिहास का उल्‍लेख किया जिन्‍होंने इसके सामाजिक ढांचे को खत्म करने का प्रयास किया, फिर भी भारत की चेतना जीवित रही और इन आक्रमणों का सामना करती रही। उन्होंने भक्ति आंदोलन का उदाहरण देते हुए कहा, “सबसे कठिन समय के दौरान भी, भारत में नए सामाजिक आंदोलनों ने इस चेतना को जागृत रखा”, जहां गुरु नानक देव, कबीर दास, तुलसीदास, सूरदास और महाराष्ट्र के संत तुकाराम, संत एकनाथ, संत नामदेव और संत ज्ञानेश्वर जैसे संतों ने अपने मूल विचारों से भारत की राष्ट्रीय चेतना में जान फूंकी। उन्होंने कहा कि इन आंदोलनों ने भेदभाव को समाप्‍त किया और समाज को एकजुट किया। स्वामी विवेकानंद के योगदान का उल्‍लेख करते हुए कहा इन्होंने एक निराश समाज को झकझोर दिया, उसे उसके असली सार की याद दिलाई, आत्मविश्वास जगाया और यह सुनिश्चित किया कि भारत की राष्ट्रीय चेतना अडिग रहे, प्रधानमंत्री ने औपनिवेशिक शासन के अंतिम दशकों के दौरान इस चेतना को सक्रिय करने में डॉ. हेडगेवार और गुरुजी की भूमिका का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय चेतना के संरक्षण और संवर्धन के लिए 100 वर्ष पहले बोए गए विचार के बीज अब एक विशाल वृक्ष बन गया है। उन्होंने कहा कि सिद्धांत और आदर्श इस महान वृक्ष को ऊंचाई देते हैं जिसकी शाखाएं लाखों स्वयंसेवक हैं। उन्होंने कहा, “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारत की अमर संस्कृति का आधुनिक अक्षय वट है। यह अक्षय वट भारतीय संस्कृति और हमारे राष्ट्र की चेतना को निरंतर ऊर्जा प्रदान कर रहा है।”

माधव नेत्रालय के नए परिसर की यात्रा शुरू होने पर दृष्टि और दिशा के बीच स्वाभाविक संबंध पर टिप्पणी करते हुए श्री मोदी ने वैदिक आकांक्षा “पश्येम शरदः शतम्” जिसका अर्थ है “हम सौ वर्षों तक देख सकें, इसका उल्‍लेख करते हुए जीवन में दृष्टि के महत्व के बारे में बताया।” उन्होंने बाह्य दृष्टि और आंतरिक दृष्टि दोनों के महत्व पर जोर दिया। विदर्भ के महान संत, श्री गुलाबराव महाराज, जिन्हें “प्रज्ञाचक्षु” के रूप में जाना जाता है उनको याद करते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा, “छोटी उम्र में अपनी दृष्टि खोने के बावजूद, श्री गुलाबराव महाराज ने कई किताबें लिखीं”। उन्होंने कहा कि भले ही उनके पास शारीरिक दृष्टि नहीं थी, लेकिन उनके पास गहन दृष्टि थी, जो ज्ञान से उपजी है और विवेक के माध्यम से प्रकट होती है। उन्होंने जोर दिया कि ऐसी दृष्टि व्यक्ति और समाज दोनों को सशक्त बनाती है। उन्होंने टिप्पणी की कि आरएसएस एक पवित्र प्रयास है जो बाह्य और आंतरिक दोनों दृष्टि की दिशा में काम कर रहा है। उन्होंने माधव नेत्रालय को बाह्य दृष्टि के उदाहरण बताया और कहा कि आंतरिक दृष्टि ने संघ को सेवा का पर्याय बना दिया है।

प्रधानमंत्री ने शास्त्रों का उल्‍लेख करते हुए इस बात पर जोर दिया कि जीवन का उद्देश्य सेवा और परोपकार है। उन्होंने कहा कि जब सेवा मूल्यों में समाहित हो जाती है तो यह भक्ति बन जाती है जो प्रत्येक आरएसएस स्वयंसेवक के जीवन का सार है। उन्होंने कहा कि सेवा की यह भावना स्वयंसेवकों की पीढ़ियों को खुद को अथक रूप से समर्पित करने के लिए प्रेरित करती है। उन्होंने कहा कि यह भक्ति स्वयंसेवकों को लगातार सक्रिय रखती है, उन्हें कभी थकने या रुकने नहीं देती। गुरुजी के शब्दों को याद करते हुए कि जीवन का महत्व इसकी अवधि में नहीं बल्कि इसकी उपयोगिता में निहित है, श्री मोदी ने “देव से देश” और “राम से राष्ट्र” के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित कर्तव्य के प्रति प्रतिबद्धता पर जोर दिया। उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में स्वयंसेवकों के निस्वार्थ कार्य पर टिप्पणी की, चाहे वे सीमावर्ती गांव हों, पहाड़ी क्षेत्र हों या वन क्षेत्र। उन्होंने वनवासी कल्याण आश्रम, आदिवासी बच्चों के लिए एकल विद्यालय, सांस्कृतिक जागरण मिशन और वंचितों की सेवा के लिए सेवा भारती के प्रयासों जैसी पहलों में उनकी भागीदारी का उल्‍लेख किया। प्रयाग महाकुंभ के दौरान स्वयंसेवकों के अनुकरणीय कार्य की सराहना करते हुए, जहां उन्होंने नेत्र कुंभ पहल के माध्यम से लाखों लोगों की सहायता की, उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि जहां भी सेवा की आवश्यकता है, स्वयंसेवक मौजूद हैं। उन्होंने बाढ़ और भूकंप जैसी आपदाओं के दौरान स्वयंसेवकों की अनुशासित सेवा के बारे में बताया और उनकी निस्वार्थता और सेवा के प्रति समर्पण का उल्‍लेख किया। उन्होंने कहा, “सेवा एक बलिदान की अग्नि है, और हम आहुति की तरह जलते हैं, उद्देश्य के सागर में विलीन हो जाते हैं।”

गुरुजी के बारे में एक प्रेरक किस्सा साझा करते हुए श्री मोदी ने कहा कि एक बार गुरूजी से पूछा गया था कि उन्होंने संघ को सर्वव्यापी क्यों कहा। गुरुजी ने संघ की तुलना प्रकाश से की और इस बात पर जोर देते हुए कहा कि भले ही प्रकाश हर काम खुद न कर सके लेकिन यह अंधकार को दूर करता है और दूसरों को आगे बढ़ने का रास्ता दिखाता है। उन्होंने कहा कि गुरुजी की शिक्षा एक जीवन मंत्र के रूप में काम करती है, जो सभी को प्रकाश का स्रोत बनने, बाधाओं को दूर करने और प्रगति का मार्ग प्रशस्त करने का आग्रह करती है। उन्होंने “मैं नहीं, बल्कि आप” और “मेरा नहीं, बल्कि राष्ट्र के लिए” सिद्धांतों के साथ निस्वार्थता के सार पर प्रकाश डाला।

प्रधानमंत्री ने “मैं” के बजाय “हम” को प्राथमिकता देने और सभी नीतियों और निर्णयों में राष्ट्र को पहले स्थान पर रखने के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि इस तरह के दृष्टिकोण से पूरे देश में सकारात्मक प्रभाव दिखाई देते हैं। उन्होंने देश को पीछे धकेलने वाली जंजीरों को तोड़ने की आवश्यकता पर जोर दिया और औपनिवेशिक मानसिकता से आगे बढ़ने के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि भारत अब 70 वर्षों से हीन भावना से ग्रसित उपनिवेशवाद के अवशेषों की जगह राष्ट्रीय गौरव के नए अध्याय जोड़ रहा है। उन्होंने भारतीयों को नीचा दिखाने के लिए बनाए गए पुराने ब्रिटिश कानूनों की जगह नई भारतीय न्याय संहिता लाने पर टिप्पणी की। उन्होंने राजपथ को कर्तव्य पथ में बदलने पर जोर दिया। यह औपनिवेशिक विरासत पर कर्तव्य का प्रतीक है। उन्होंने नौसेना के झंडे से औपनिवेशिक प्रतीकों को हटाने का भी उल्लेख किया जिस पर अब छत्रपति शिवाजी महाराज का प्रतीक गर्व से अंकित है। उन्होंने अंडमान क्षेत्र में द्वीपों के नाम बदलने की भी सराहना की, जहां वीर सावरकर ने राष्ट्र के लिए कष्ट सहे और नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने भारत की स्वतंत्रता के नायकों को सम्मानित करने के लिए स्वतंत्रता का बिगुल बजाया।

श्री मोदी ने कहा, “भारत का मार्गदर्शक सिद्धांत “वसुधैव कुटुम्बकम” दुनिया के हर कोने तक पहुंच रहा है और भारत के कार्यों में इसकी झलक मिल रही है।” उन्होंने कोविड-19 महामारी के दौरान भारत के प्रयासों का उल्‍लेख किया जिसमें दुनिया को एक परिवार के रूप में टीके उपलब्ध कराए गए। उन्होंने “ऑपरेशन ब्रह्मा” के तहत म्यांमार में हाल ही में आए भूकंप, साथ ही तुर्की और नेपाल में भूकंप और मालदीव में जल संकट के दौरान सहायता सहित प्राकृतिक आपदाओं के लिए भारत की त्वरित प्रतिक्रिया का उल्लेख किया। उन्होंने संघर्षों के दौरान अन्य देशों के नागरिकों को निकालने में भारत की भूमिका पर जोर दिया और कहा कि भारत की प्रगति वैश्विक दक्षिण की आवाज को बढ़ा रही है। उन्होंने कहा कि वैश्विक भाईचारे की यह भावना भारत के सांस्कृतिक मूल्यों से उपजी है। भारत के युवाओं को देश की सबसे बड़ी संपत्ति, आत्मविश्वास से भरपूर और जोखिम उठाने की बढ़ी हुई क्षमता के रूप में रेखांकित करते हुए, श्री मोदी ने नवाचार, स्टार्टअप और भारत की विरासत और संस्कृति पर उनके गर्व में उनके योगदान का उल्लेख किया। उन्होंने प्रयाग महाकुंभ में लाखों युवाओं की भागीदारी को भारत की सनातन परंपराओं से उनके जुड़ाव का उदाहरण बताया। उन्होंने युवाओं के राष्ट्रीय जरूरतों पर ध्यान केंद्रित करने, “मेक इन इंडिया” की सफलता में उनकी भूमिका और स्थानीय उत्पादों के लिए उनके मुखर समर्थन पर टिप्पणी की। उन्होंने राष्ट्र के लिए जीने और काम करने के उनके दृढ़ संकल्प पर जोर दिया। ये राष्ट्र निर्माण की भावना से प्रेरित होकर खेल के मैदानों से लेकर अंतरिक्ष अन्वेषण तक में उत्कृष्टता प्राप्‍त करते हैं। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि भारत के युवा 2047 तक विकसित भारत के लक्ष्य की ओर देश का नेतृत्व करेंगे। प्रधानमंत्री ने इस यात्रा के पीछे प्रेरक शक्ति के रूप में संगठन, समर्पण और सेवा के तालमेल पर प्रकाश डाला। उन्होंने टिप्पणी की कि आरएसएस द्वारा दशकों के प्रयास और समर्पण फल दे रहे हैं। ये भारत के विकास में एक नया अध्याय लिख रहे हैं।

प्रधानमंत्री ने 1925 में आरएसएस की स्थापना के दौरान विपरीत परिस्थितियों पर टिप्पणी की, यह संघर्ष और स्वतंत्रता के व्यापक लक्ष्य का समय था। उन्होंने संघ की 100 साल की यात्रा के महत्व पर प्रकाश डाला और कहा कि 2025 से 2047 तक की अवधि राष्ट्र के लिए नए, महत्वाकांक्षी लक्ष्य प्रस्तुत करती है। उन्होंने एक पत्र से गुरुजी के प्रेरक शब्दों को याद किया जिसमें एक भव्य राष्ट्रीय भवन की नींव में एक छोटा सा पत्थर बनने की इच्छा व्यक्त की गई थी। उन्होंने सेवा के प्रति प्रतिबद्धता को प्रज्वलित रखने, अथक प्रयास जारी रखने और विकसित भारत के सपने को साकार करने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने अयोध्या में श्री राम मंदिर के निर्माण के दौरान साझा किए गए अपने विजन को दोहराया। यह अगले हजार वर्षों के लिए एक मजबूत भारत की नींव रखने के लिए था। प्रधानमंत्री ने विश्वास व्यक्त किया कि डॉ. हेडगेवार और गुरुजी जैसे दिग्गजों का मार्गदर्शन राष्ट्र को सशक्त बनाता रहेगा। उन्होंने विकसित भारत के विजन को पूरा करने और पीढ़ियों के बलिदानों का सम्मान करने के संकल्प की पुष्टि करते हुए समापन किया।

इस अवसर पर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री श्री देवेन्द्र फड़नवीस, केंद्रीय मंत्री श्री नितिन गडकरी, आरएसएस सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत, स्वामी गोविंद देवगिरि महाराज, स्वामी अवधेशानंद गिरि महाराज, डॉ. अविनाश चंद्र अग्निहोत्री और अन्य विशिष्ट अतिथि उपस्थित थे।

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