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प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने पॉडकास्ट में लेक्स फ्रिडमैन के साथ बातचीत की

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने पॉडकास्ट में लेक्स फ्रिडमैन के साथ बातचीत की


प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आज पॉडकास्ट में लेक्स फ्रिडमैन के साथ विभिन्न विषयों पर बातचीत की। इस दौरान जब उनसे पूछा गया कि वे उपवास क्यों करते हैं और कैसे करते हैं, तो प्रधानमंत्री ने लेक्स फ्रिडमैन का अपना सम्मान करने के प्रतीक के रूप में उपवास करने के लिए आभार व्यक्त किया। श्री मोदी ने कहा, “भारत में धार्मिक परंपराएँ दैनिक जीवन से गहराई से जुड़ी हुई हैं।उन्होंने कहा कि हिंदुत्व केवल अनुष्ठानों के बारे में नहीं है, बल्कि जीवन का मार्गदर्शन करने वाला एक दर्शन है, जिसकी व्याख्या भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने की है। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि उपवास अनुशासन विकसित करने और अपने आप को आंतरिक तथा बाहरी रूप से संतुलित करने का एक साधन है। प्रधानमंत्री ने कहा कि उपवास इंद्रियों की क्षमता को बढ़ाता है, उन्हें अधिक संवेदनशील और जागरूक बनाता है। उन्होंने कहा कि उपवास के दौरान, व्यक्ति सूक्ष्म सुगंधों और विवरणों को भी अधिक स्पष्ट रूप से महसूस कर सकता है। उन्होंने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि उपवास सोचने की प्रक्रिया को तेज करता है, नए दृष्टिकोण प्रदान करता है और अलगअलग सोच को प्रोत्साहित करता है। श्री मोदी ने स्पष्ट किया कि उपवास केवल भोजन से परहेज करने के बारे में नहीं है; इसमें तैयारी और विषहरण की एक वैज्ञानिक प्रक्रिया शामिल है। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि वे कई दिनों पहले आयुर्वेदिक और योग अभ्यासों का पालन करके अपने शरीर को उपवास के लिए तैयार करते हैं और इस अवधि के दौरान जलयोजन के महत्व पर बल देते हैं। एक बार उपवास शुरू होने के बाद, वे इसे भक्ति और आत्मअनुशासन के रूप में देखते हैं, जो गहन आत्मनिरीक्षण और ध्यान केंद्रित करने पर बल देता है। प्रधानमंत्री ने बताया कि उपवास का उनका अभ्यास व्यक्तिगत अनुभव से उत्पन्न हुआ, जो उनके स्कूल के दिनों में महात्मा गांधी द्वारा प्रेरित एक आंदोलन से शुरू हुआ था। उन्होंने अपने पहले उपवास के दौरान ऊर्जा और जागरूकता में वृद्धि महसूस की, जिसने उन्हें इसकी परिवर्तनकारी शक्ति के बारे में आश्वस्त किया। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि उपवास उनकी क्रियाशीलता धीमी नहीं करता है; इसके बजाय, यह अक्सर उनकी उत्पादकता बढ़ाता है। उन्होंने कहा कि उपवास के दौरान, उनके विचार अधिक स्वतंत्र और रचनात्मक रूप से प्रवाहित होते हैं, जिससे यह स्वयं को व्यक्त करने के लिए एक अविश्वसनीय अनुभव बन जाता है।

यह पूछे जाने पर कि उन्होंने उपवास के दौरान और कभीकभी नौ दिन तक उपवास जारी रखने के दौरान वैश्विक मंच पर एक नेता के रूप में अपनी भूमिका कैसे निभाई, श्री मोदी ने चातुर्मास की प्राचीन भारतीय परंपरा पर प्रकाश डाला, जो मानसून के मौसम में आता है, जब पाचन क्रिया स्वाभाविक रूप से धीमी हो जाती है। उन्होंने कहा कि इस अवधि के दौरान, कई भारतीय दिन में केवल एक बार भोजन करने की प्रथा का पालन करते हैं। उनके लिए, यह परंपरा जून के मध्य से शुरू होती है और नवंबर में दीपावली के बाद तक जारी रहती है, जो चार से साढ़े चार महीने तक चलती है। उन्होंने कहा कि सितंबर या अक्टूबर में नवरात्रि महोत्सव के दौरान, जो शक्ति, भक्ति और आध्यात्मिक अनुशासन का उत्सव है, वह भोजन से पूरी तरह परहेज करते हैं और नौ दिनों तक केवल गर्म पानी पीते हैं। उन्होंने आगे बताया कि मार्च या अप्रैल में चैत्र नवरात्रि के दौरान, वह नौ दिनों तक दिन में एक बार केवल एक विशिष्ट फल खाकर एक अनूठी उपवास प्रथा का पालन करते हैं। उदाहरण के लिए, यदि वह पपीता चुनते हैं, तो वह पूरे उपवास की अवधि में केवल पपीता खाते हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ये उपवास प्रथाएँ उनके जीवन में गहराई से समाहित हैं और 50 से 55 वर्षों से लगातार इसका पालन कर रहे हैं।

प्रधानमंत्री ने कहा कि उनके उपवास के स्वरूप शुरू में निजी थे और सार्वजनिक रूप से ज्ञात नहीं थे। लेकिन, मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री बनने के बाद इन्हें अधिक व्यापक रूप से पहचाना जाने लगा। उन्होंने कहा कि अब उन्हें अपने अनुभव साझा करने में कोई आपत्ति नहीं है, क्योंकि वे दूसरों के लिए लाभदायक हो सकते हैं, दूसरों की भलाई के लिए उनके जीवन के समर्पण के साथ अनुकूलित हो सकते हैं। उन्होंने व्हाइट हाउस में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति श्री बराक ओबामा के साथ द्विपक्षीय बैठक के दौरान अपने उपवास का एक उदाहरण भी साझा किया।

प्रधानमंत्री ने अपने प्रारंभिक जीवन के बारे में पूछे जाने पर, अपने जन्मस्थान, उत्तर गुजरात के मेहसाणा जिले के वडनगर पर बातचीत के दौरान इसके समृद्ध ऐतिहासिक महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि वडनगर बौद्ध शिक्षा का एक प्रमुख केंद्र था, जिसने चीनी दार्शनिक ह्वेन त्सांग जैसी हस्तियों को आकर्षित किया। उन्होंने कहा कि यह शहर 1400 के दशक के आसपास एक प्रमुख बौद्ध शिक्षा का केंद्र भी था। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि उनके गांव में एक अनूठा वातावरण था, जहां बौद्ध, जैन और हिंदू परंपराएं सामंजस्यपूर्ण रूप से सहअस्तित्व में थीं। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि इतिहास केवल पुस्तकों तक सीमित नहीं है, क्योंकि वडनगर में हर पत्थर और दीवार एक कहानी कहती है। मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान, उन्होंने बड़े पैमाने पर उत्खनन परियोजनाएं शुरू कीं, जिसमें 2,800 साल पुराने साक्ष्य सामने आए, जो शहर के निरंतर अस्तित्व को सिद्ध करते हैं। श्री मोदी ने कहा कि इन खोजों ने वडनगर में एक अंतरराष्ट्रीय स्तर के संग्रहालय की स्थापना की है, जो अब विशेष रूप से पुरातत्व के विद्यार्थियों के लिए अध्ययन का एक प्रमुख क्षेत्र है। उन्होंने ऐसे ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण स्थान पर जन्म लेने के लिए आभार व्यक्त किया तथा इसे अपना सौभाग्य माना। प्रधानमंत्री ने अपने बचपन के कुछ पहलुओं को भी साझा किया, जिसमें उन्होंने बिना खिड़कियों वाले एक छोटे से घर में अपने परिवार के जीवन का वर्णन किया, जहाँ वे अत्यधिक गरीबी में पलेबढ़े, लेकिन उन्हें कभी भी गरीबी का बोझ महसूस नहीं हुआ, क्योंकि उनके पास तुलना करने का कोई आधार नहीं था। उन्होंने कहा कि उनके पिता अनुशासित और मेहनती थे, जो समय की प्रतिबद्धता के लिए जाने जाते थे। श्री मोदी ने अपनी माँ की कड़ी मेहनत और दूसरों की देखभाल करने की उनकी भावना पर प्रकाश डाला, जिसने उनमें सहानुभूति और सेवा की भावना पैदा की। उन्होंने याद किया कि कैसे उनकी माँ सुबहसुबह बच्चों को अपने घर पर इकट्ठा करके पारंपरिक उपचारों से उनका इलाज करती थीं। श्री मोदी ने इस बात पर बल दिया कि इन अनुभवों ने उनके जीवन और मूल्यों को आकार दिया। प्रधानमंत्री ने कहा कि राजनीति में उनकी यात्रा ने उनकी विनम्र शुरुआत को प्रकाश में लाया, क्योंकि मुख्यमंत्री के रूप में उनके शपथ ग्रहण के दौरान मीडिया कवरेज ने उनकी पृष्ठभूमि को जनता के सामने उजागर किया। उन्होंने बताया कि उनके जीवन के अनुभव, चाहे सौभाग्य के रूप में देखे जाएँ या दुर्भाग्य के रूप में, इस तरह से सामने आए हैं जो अब उनके सार्वजनिक जीवन को प्रभावित करते हैं।

श्री मोदी ने युवाओं को धैर्य और आत्मविश्वास बनाए रखने के लिए प्रोत्साहित किया। जब उनसे युवाओं को सलाह देने के लिए कहा गया तो उन्होंने इस बात पर बल दिया कि चुनौतियाँ जीवन का हिस्सा हैं, लेकिन उन्हें किसी के उद्देश्य को परिभाषित नहीं करना चाहिए। श्री मोदी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि कठिनाइयाँ धीरज की परीक्षा होती हैं, जिसका उद्देश्य व्यक्तियों को पराजित करने के बजाय उन्हें मजबूत बनाना होता है। उन्होंने कहा कि प्रत्येक संकट विकास और सुधार का अवसर प्रस्तुत करता है। प्रधानमंत्री ने कहा कि जीवन में कोई शॉर्टकट नहीं है। रेलवे स्टेशन के संकेतों का उदाहरण देते हुए जो पटरियों को पार करने के विरुद्ध चेतावनी देते हैं, प्रधानमंत्री ने कहा, “शॉर्टकट आपको छोटा कर देगा।उन्होंने सफलता प्राप्त करने में धैर्य और दृढ़ता के महत्व पर बल दिया। उन्होंने हर दायित्व को दिल से निभाने और जीवन को जुनून के साथ जीने, यात्रा में पूर्णता खोजने की आवश्यकता पर भी बल दिया। इस बात पर प्रकाश डालते हुए कि केवल प्रचुरता ही सफलता की गारंटी नहीं है, क्योंकि संसाधनों वाले लोगों को भी आगे बढ़ना चाहिए और समाज में योगदान देना चाहिए, प्रधानमंत्री ने कभी भी सीखना बंद करने के महत्व पर बल दिया, क्योंकि व्यक्तिगत विकास जीवन भर आवश्यक है। उन्होंने अपने पिता की चाय की दुकान पर बातचीत से सीखने का अपना अनुभव साझा किया, जिसने उन्हें निरंतर सीखने और आत्मसुधार का मूल्य सिखाया। उन्होंने कहा कि बहुत से लोग बड़े लक्ष्य निर्धारित करते हैं और अगर वे लक्ष्य पूरे नहीं कर पाते तो निराश हो जाते हैं। उन्होंने सिर्फ़ कुछ बनने के बजाय कुछ करने पर ध्यान केंद्रित करने की सलाह दी, क्योंकि यह मानसिकता लक्ष्यों की ओर निरंतर दृढ़ संकल्प और प्रगति की अनुमति देती है। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि सच्ची संतुष्टि इस बात से आती है कि कोई क्या देता है, कि क्या पाता है। उन्होंने युवाओं को योगदान और सेवा पर केंद्रित मानसिकता विकसित करने के लिए प्रोत्साहित किया।

श्री मोदी ने हिमालय की अपनी यात्रा के बारे में पूछे जाने पर, एक छोटे से शहर में अपने पालनपोषण के बारे में बताया, जहाँ सामुदायिक जीवन प्रमुखा था। वे अक्सर स्थानीय पुस्तकालय जाते थे, जहाँ स्वामी विवेकानंद और छत्रपति शिवाजी महाराज जैसी हस्तियों के बारे में पुस्तकों से उन्हें प्रेरणा मिलती थी। इससे उनके जीवन को भी इसी तरह आकार देने की इच्छा जागृत हुई, जिससे उन्हें अपनी शारीरिक सीमाओं के साथ प्रयोग करने की प्रेरणा मिली, जैसे कि अपनी सहनशक्ति का परीक्षण करने के लिए ठंड के मौसम में बाहर सोना। स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं के प्रभाव को उजागर करते हुए, विशेष रूप से एक कहानी जिसमें स्वामी विवेकानंद, अपनी बीमार माँ की सहायता की आवश्यकता के बावजूद, ध्यान के दौरान देवी काली से कुछ भी माँगने के लिए खुद को तैयार नहीं कर पाए, एक ऐसा अनुभव जिसने विवेकानंद में देने की भावना पैदा की। श्री मोदी ने कहा कि इसने उन पर एक छाप छोड़ी। उन्होंने बल देकर कहा कि सच्चा संतोष दूसरों को देने और उनकी सेवा करने से आता है। उन्होंने एक घटना का स्मरण किया जब उन्होंने एक पारिवारिक विवाह के दौरान एक संत की देखभाल करने के लिए पीछे रहने का फैसला किया, जो आध्यात्मिक गतिविधियों के प्रति उनके आरंभिक झुकाव को दर्शाता है। उन्होंने कहा कि अपने गाँव में सैनिकों को देखकर उन्हें देश की सेवा करने की प्रेरणा मिली, लेकिन उस समय उनके पास कोई स्पष्ट मार्ग नहीं था। प्रधानमंत्री ने जीवन के अर्थ को समझने की अपनी गहरी लालसा और इसे खोजने की अपनी यात्रा का उल्लेख किया। उन्होंने स्वामी आत्मस्थानंदजी जैसे संतों के साथ अपने संबंधों पर प्रकाश डाला, जिन्होंने उन्हें समाज की सेवा के महत्व के बारे में मार्गदर्शन दिया। उन्होंने बताया कि मिशन में अपने समय के दौरान, वे उल्लेखनीय संतों से मिले जिन्होंने उन्हें प्यार और आशीर्वाद दिया। श्री मोदी ने हिमालय में अपने अनुभवों के बारे में भी बात की, जहाँ एकांत और तपस्वियों के साथ मुलाकात ने उन्हें आकार देने और अपनी आंतरिक शक्ति को खोजने में सहायता की। उन्होंने अपने व्यक्तिगत विकास में ध्यान, सेवा और भक्ति की भूमिका पर बल दिया।

रामकृष्ण मिशन में स्वामी आत्मस्थानंदजी के साथ अपने अनुभव को साझा करते हुए, जिसके कारण उन्होंने हर स्तर पर सेवा का जीवन जीने का निर्णय लिया, श्री मोदी ने कहा कि भले ही दूसरे उन्हें प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री के रूप में देखते हों, लेकिन वे आध्यात्मिक सिद्धांतों के प्रति पूरी तरह प्रतिबद्ध हैं। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि उनकी आंतरिक स्थिरता दूसरों की सेवा करने में निहित है, चाहे वह अपनी मां को बच्चों की देखभाल करने में सहायता करना हो, हिमालय में भटकना हो या अपने वर्तमान दायित्व वाली स्थिति से काम करना हो। प्रधानमंत्री ने कहा कि उनके लिए, एक संत और एक नेता के बीच कोई वास्तविक अंतर नहीं है, क्योंकि दोनों की भूमिकाएँ समान वास्तविक मूल्यों द्वारा निर्देशित होती हैं। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि हम पोशाक और काम जैसे बाहरी पहलू बदल सकते हैं, सेवा के प्रति उनका समर्पण स्थिर रहता है। उन्होंने इस बात पर भी बल दिया कि वे हर दायित्व को उसी तरह शांत, ध्यान और समर्पण के साथ निभाते हैं।

प्रधानमंत्री ने अपने आरंभिक जीवन पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रभाव के बारे में चर्चा करते हुए देशभक्ति गीतों के प्रति अपने बचपन के आकर्षण का उल्लेख किया, विशेष रूप से मकोशी नामक एक व्यक्ति के गाए गए गीतों के प्रति, जो एक डफली के साथ उनके गांव में आया करते थे। उन्होंने कहा कि इन गीतों ने उन्हें गहराई से प्रभावित किया और अंततः आरएसएस से जुड़ने में अपनी भूमिका निभाई। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि आरएसएस ने उनमें हर काम को उद्देश्यपूर्ण रूप से करने जैसे वास्तविक मूल्यों को स्थापित किया, चाहे वह पढ़ाई हो या व्यायाम, राष्ट्र के लिए योगदान देना। इस बात पर जोर देते हुए कि लोगों की सेवा करना ईश्वर की सेवा करने के समान है, श्री मोदी ने कहा कि आरएसएस जीवन में उद्देश्य की ओर एक स्पष्ट दिशा प्रदान करता है। उन्होंने कहा कि आरएसएस अपनी 100वीं वर्षगांठ के करीब है और यह एक विशाल स्वयंसेवी संगठन है जिसके दुनिया भर में लाखों सदस्य हैं। आरएसएस से प्रेरित विभिन्न पहलों पर प्रकाश डालते हुए, जैसे कि सेवा भारती, जो बिना सरकारी सहायता के झुग्गीझोपड़ियों और बस्तियों में 1,25,000 से अधिक सेवा परियोजनाएं चलाती है, श्री मोदी ने वनवासी कल्याण आश्रम का भी उल्लेख किया, जिसने जनजातीय क्षेत्रों में 70,000 से अधिक एकलशिक्षक विद्यालय स्थापित किए हैं और विद्या भारती, जो लगभग 30 लाख विद्यार्थियों को शिक्षित करने वाले लगभग 25,000 विद्यालय संचालित करती है। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि आरएसएस शिक्षा और मूल्यों को प्राथमिकता देता है, यह सुनिश्चित करता है कि विद्यार्थी जमीन से जुड़े रहें और समाज पर बोझ बनने से बचने के लिए कौशल सीखें। उन्होंने भारतीय मजदूर संघ पर प्रकाश डाला, जिसके देश भर में लाखों सदस्य हैं, जो पारंपरिक श्रमिक आंदोलनों के विपरीतश्रमिकों को दुनिया को एकजुट करनापर ध्यान केंद्रित करके एक अनूठा दृष्टिकोण अपनाता है। प्रधानमंत्री ने आरएसएस से प्राप्त जीवन मूल्यों और उद्देश्य तथा स्वामी आत्मस्थानंद जैसे संतों से प्राप्त आध्यात्मिक मार्गदर्शन के लिए आभार व्यक्त किया।

श्री मोदी ने भारत के विषय पर कहा कि भारत एक सांस्कृतिक पहचान और सभ्यता है, जो हजारों वर्ष पुरानी है। 100 से अधिक भाषाओं और हजारों बोलियों वाले भारत की विशालता पर प्रकाश डालते हुए, इस कहावत पर जोर देते हुए कि हर 20 मील पर भाषा, रीतिरिवाज, भोजन और पहनावे की शैली बदल जाती है, उन्होंने कहा कि इतनी विविधता के बावजूद, एक सामान्य सूत्र है जो देश को एकजुट करता है। प्रधानमंत्री ने भगवान राम की कहानियों पर प्रकाश डाला, जो पूरे भारत में गूंजती हैं। उन्होंने बताया कि कैसे भगवान राम से प्रेरित नाम गुजरात के रामभाई से लेकर तमिलनाडु के रामचंद्रन और महाराष्ट्र के राम भाऊ तक हर क्षेत्र में पाए जाते हैं। उन्होंने कहा कि यह अनूठा सांस्कृतिक बंधन भारत को एक सभ्यता के रूप में जोड़ता है। श्री मोदी ने स्नान के दौरान भारत की सभी नदियों का स्मरण करने की परंपरा पर बल दिया, जब लोग गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिंधु और कावेरी जैसी नदियों के नाम जपते हैं। उन्होंने कहा कि एकता की यह भावना भारतीय परंपराओं में गहराई से समाहित है और महत्वपूर्ण आयोजनों तथा अनुष्ठानों के दौरान किए गए संकल्पों में परिलक्षित होती है, जो ऐतिहासिक रिकॉर्ड के रूप में भी काम करते हैं। जम्बूद्वीप से शुरू होकर कुलदेवता तक के समारोहों में ब्रह्मांड का आह्वान करने जैसी प्रथाओं में भारतीय शास्त्रों के सावधानीपूर्वक मार्गदर्शन को रेखांकित करते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि ये प्रथाएँ अब भी जीवित हैं और पूरे भारत में प्रतिदिन मनाई जाती हैं। उन्होंने कहा कि जहाँ पश्चिमी और वैश्विक मॉडल राष्ट्रों को प्रशासनिक व्यवस्था के रूप में देखते हैं, वहीं भारत की एकता इसके सांस्कृतिक बंधनों में निहित है। उन्होंने कहा कि भारत में पूरे इतिहास में विभिन्न प्रशासनिक व्यवस्थाएँ रही हैं, लेकिन इसकी एकता सांस्कृतिक परंपराओं के माध्यम से संरक्षित है। श्री मोदी ने शंकराचार्य द्वारा चार तीर्थ स्थलों की स्थापना का उल्लेख करते हुए भारत की एकता को बनाए रखने में तीर्थ परंपराओं की भूमिका को भी रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि आज भी लाखों लोग तीर्थयात्रा के लिए यात्रा करते हैं, जैसे रामेश्वरम से काशी तक और काशी से रामेश्वरम तक जल लाना। उन्होंने भारत के हिंदू कैलेंडर की समृद्धि की ओर भी ध्यान आकर्षित किया, जो देश की विविध परंपराओं को प्रदर्शित करता है।

महात्मा गांधी की विरासत और भारत के स्वतंत्रता संग्राम पर चर्चा करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि उनका जन्म गुजरात में हुआ था और महात्मा गांधी की तरह ही उनकी मातृभाषा गुजराती थी। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि विदेश में वकील के रूप में अवसर मिलने के बावजूद गांधी जी ने अपने जीवन को भारत के लोगों की सेवा में समर्पित करने का निर्णय लिया, जो कर्तव्य और पारिवारिक मूल्यों की गहरी भावना से प्रेरित था। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि गांधी जी के सिद्धांत और कार्य आज भी हर भारतीय को प्रभावित करते हैं। स्वच्छता के लिए गांधी की वकालत को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि उन्होंने स्वयं भी इसका अभ्यास किया और इसे अपनी चर्चाओं का मुख्य विषय बनाया। श्री मोदी ने स्वतंत्रता के लिए भारत के लंबे संघर्ष पर बातचीत की, जिसके दौरान सदियों के औपनिवेशिक शासन के बावजूद पूरे देश में स्वतंत्रता की लौ प्रज्वलित हुई। उन्होंने कहा कि भारत की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए लाखों लोगों ने अपने जीवन का बलिदान दिया, कारावास और शहादत को सहन किया। श्री मोदी ने कहा कि जबकि कई स्वतंत्रता सेनानियों ने स्थायी प्रभाव डाला, यह महात्मा गांधी ही थे जिन्होंने सत्य पर आधारित एक जन आंदोलन का नेतृत्व करके देश को जागृत किया। उन्होंने सफाईकर्मियों से लेकर शिक्षकों, कताई करने वालों और देखभाल करने वालों तक हर व्यक्ति को स्वतंत्रता संग्राम में शामिल करने की गांधी की क्षमता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि गांधी ने आम नागरिकों को स्वतंत्रता के लिए सैनिकों में बदल दिया, एक ऐसा विशाल आंदोलन बनाया जिसे अंग्रेज पूरी तरह से समझ ही नहीं पाए। उन्होंने दांडी मार्च के महत्व पर ध्यान दिया, जहां एक चुटकी नमक ने क्रांति को जन्म दिया। प्रधानमंत्री ने एक गोलमेज सम्मेलन का एक किस्सा साझा किया, जहां गांधी जी ने बहुत कम वस्त्र पहने हुए, बकिंघम पैलेस में किंग जॉर्ज से मुलाकात की। उन्होंने गांधी जी के मनमोहक आकर्षण को प्रदर्शित करते हुए इस मजाकिया टिप्पणी पर प्रकाश डाला, “आपके राजा ने हम दोनों के लिए पर्याप्त कपड़े पहने हैं।श्री मोदी ने गांधी जी के एकता और लोगों की ताकत को पहचानने के आह्वान पर विचार किया, जो आज भी गूंज रहा है। उन्होंने हर पहल में आम आदमी को शामिल करने और पूरी तरह से सरकार पर निर्भर रहने के बजाय सामाजिक परिवर्तन को बढ़ावा देने की अपनी प्रतिबद्धता पर बल दिया।

श्री मोदी ने कहा कि महात्मा गांधी की विरासत सदियों से चली रही है। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि उनकी प्रासंगिकता आज भी कायम है। उन्होंने अपनी जिम्मेदारी की भावना को उजागर करते हुए कहा कि उनकी ताकत उनके नाम में नहीं बल्कि 140 करोड़ भारतीयों और हजारों वर्षों की कालातीत संस्कृति और विरासत के समर्थन में निहित है। उन्होंने विनम्रतापूर्वक कहा, “जब मैं किसी वैश्विक नेता से हाथ मिलाता हूं, तो वह मोदी नहीं, बल्कि 140 करोड़ भारतीय होते हैं।वर्ष 2013 में अपनी पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार घोषित किए जाने पर हुई उनकी व्यापक आलोचना को याद करते हुए, श्री मोदी ने कहा कि आलोचकों ने उनकी विदेश नीति और वैश्विक भूराजनीति की समझ पर सवाल उठाए थे। उन्होंने उस समय जवाब दिया, “भारत तो खुद को कमतर आंकने देगा, ही कभी किसी को ऊंचा मानेगा। भारत अब अपने समकक्षों के साथ आंख से आंख मिलाकर चलेगा।उन्होंने कहा कि यह विश्वास उनकी विदेश नीति का केंद्र बना हुआ है। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि देश सदैव पहले आता है। प्रधानमंत्री ने वैश्विक शांति और भाईचारे के लिए भारत की दीर्घकालिक वकालत पर प्रकाश डाला, जो दुनिया को एक परिवार मानने के दृष्टिकोण पर आधारित है। उन्होंने वैश्विक पहलों में भारत के योगदान पर टिप्पणी की, जैसे कि नवीकरणीय ऊर्जा के लिएएक सूर्य, एक विश्व, एक ग्रिडऔर वैश्विक स्वास्थ्य सेवा के लिएएक पृथ्वी, एक स्वास्थ्यकी अवधारणा, जो सभी वनस्पतियों और जीवों तक फैली हुई है। उन्होंने वैश्विक कल्याण को प्रोत्साहन देने के महत्व पर बल दिया और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से सामूहिक प्रयासों का आह्वान किया।एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्यके आदर्श वाक्य के साथ जी-20 शिखर सम्मेलन की भारत द्वारा मेजबानी पर बात करते हुए, श्री मोदी ने भारत के कालातीत ज्ञान को दुनिया के साथ साझा करने के कर्तव्य को रेखांकित किया। उन्होंने आज की दुनिया की परस्पर जुड़ी प्रकृति पर टिप्पणी करते हुए कहा, “कोई भी देश अलगथलग होकर नहीं पनप सकता। हम सभी एकदूसरे पर निर्भर हैं।उन्होंने वैश्विक पहलों को आगे बढ़ाने के लिए समन्वय और सहयोग की आवश्यकता पर बल दिया। यह देखते हुए कि समय के साथ विकसित होने में उनकी अक्षमता ने उनकी प्रभावशीलता पर वैश्विक बहस को जन्म दिया है, उन्होंने संयुक्त राष्ट्र जैसे वैश्विक संगठनों की प्रासंगिकता के बारे में भी बातचीत की।

श्री मोदी ने यूक्रेन में शांति के मार्ग के विषय पर कहा कि वे भगवान बुद्ध और महात्मा गांधी की भूमि का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन महान आत्माओं की शिक्षाएं और कार्य पूरी तरह से शांति के लिए समर्पित थे। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि भारत की मजबूत सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि यह सुनिश्चित करती है कि जब भारत शांति की बात करता है, तो दुनिया सुनती है। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारतीयों में संघर्ष के लिए कोई जगह नहीं है, बल्कि वे सद्भाव का समर्थन करते हैं, शांति के लिए खड़े होते हैं और जहाँ भी संभव हो शांति स्थापना का दायित्व लेते हैं। प्रधानमंत्री ने रूस और यूक्रेन दोनों के साथ अपने घनिष्ठ संबंधों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि वे राष्ट्रपति पुतिन के साथ इस बात पर बल देने के लिए बातचीत कर सकते हैं कि यह युद्ध का समय नहीं है और राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की को यह भी बता सकते हैं कि समाधान युद्ध के मैदान में नहीं बल्कि बातचीत के माध्यम से प्राप्त किए जा सकते हैं। उन्होंने कहा कि चर्चाओं में दोनों पक्षों को शामिल किया जाना चाहिए ताकि वे फलदायी हो सकें। उन्होंने कहा कि वर्तमान स्थिति यूक्रेन और रूस के बीच सार्थक बातचीत का अवसर प्रस्तुत करती है। संघर्ष के कारण होने वाली पीड़ा पर प्रकाश डालते हुए, जिसमें ग्लोबल साउथ पर इसका प्रभाव भी शामिल है, जिसने खाद्य, ईंधन और उर्वरक में संकट का सामना किया है, प्रधानमंत्री ने वैश्विक समुदाय से शांति की खोज में एकजुट होने का आह्वान किया। उन्होंने अपना रुख दोहराते हुए कहा, “मैं तटस्थ नहीं हूं। मेरा एक रुख है और वह है शांति, और शांति ही वह चीज है जिसके लिए मैं प्रयास करता हूं।

भारत और पाकिस्तान के संबंधों के विषय पर चर्चा करते हुए प्रधानमंत्री ने वर्ष 1947 में भारत के विभाजन की दर्दनाक सच्चाई को छुआ और उसके बाद हुई पीड़ा और रक्तपात पर प्रकाश डाला। उन्होंने पाकिस्तान से आने वाली रेलगाड़ियों में घायल लोगों और लाशों से भरे दर्दनाक दृश्य का वर्णन किया। उन्होंने कहा कि सामंजस्यपूर्ण सहअस्तित्व की उम्मीदों के बावजूद, पाकिस्तान ने शत्रुता का रास्ता चुना और भारत के खिलाफ छद्म युद्ध छेड़ दिया। प्रधानमंत्री ने रक्तपात और आतंक पर पनपने वाली विचारधारा पर सवाल उठाया और इस बात पर जोर दिया कि आतंकवाद केवल भारत के लिए बल्कि दुनिया के लिए एक खतरा है। उन्होंने बताया कि आतंक का रास्ता अक्सर पाकिस्तान की ओर जाता है, उन्होंने ओसामा बिन लादेन का उदाहरण दिया, जिसे वहां शरण लेते हुए पाया गया था। उन्होंनेकहा कि पाकिस्तान अशांति का केंद्र बन गया है और उससे राज्य प्रायोजित आतंकवाद को छोड़ने का आग्रह किया। उन्होंने सवाल किया, “अपने देश को अराजक ताकतों के हवाले करके आप क्या हासिल करने की उम्मीद करते हैं?” श्री मोदी ने शांति को बढ़ावा देने के अपने व्यक्तिगत प्रयासों को साझा किया, जिसमें लाहौर की उनकी यात्रा और प्रधानमंत्री के रूप में उनके शपथ ग्रहण समारोह के लिए पाकिस्तान को दिया गया निमंत्रण शामिल है। उन्होंने इस कूटनीतिक कदम को शांति और सद्भाव के प्रति भारत की प्रतिबद्धता का प्रमाण बताया, जैसा कि पूर्व राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी के संस्मरण में उल्लेख किया गया है। हालांकि, उन्होंने कहा कि इन प्रयासों का सामना शत्रुता और विश्वासघात से हुआ।

खेलों की एकीकृत शक्ति पर बल देते हुए, श्री मोदी ने कहा कि वे लोगों को गहरे स्तर पर जोड़ते हैं और दुनिया को ऊर्जा प्रदान करते हैं। उन्होंने कहा, “खेल मानव विकास में एक प्रमुख भूमिका निभाते हैं। वे केवल खेल नहीं हैं; वे राष्ट्रों के लोगों को एक साथ लाते हैं।उन्होंने कहा कि हालांकि वे खेल तकनीकों के विशेषज्ञ नहीं हैं, लेकिन परिणाम अक्सर खुद ही बोलते हैं, जैसा कि भारत और पाकिस्तान के बीच हाल ही में हुए क्रिकेट मैच में देखा गया। प्रधानमंत्री ने भारत की मजबूत फुटबॉल संस्कृति पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने महिला फुटबॉल टीम के शानदार प्रदर्शन और पुरुष टीम की प्रगति का उल्लेख किया। अतीत को याद करते हुए, उन्होंने कहा कि 1980 की पीढ़ी के लिए, माराडोना एक सच्चे नायक थे, जबकि आज की पीढ़ी तुरंत मेस्सी का उल्लेख करती है। श्री मोदी ने मध्य प्रदेश के एक आदिवासी जिले शहडोल की एक यादगार यात्रा को साझा किया, जहाँ उन्होंने फुटबॉल के प्रति गहराई से समर्पित एक समुदाय से मुलाकात की। उन्होंने युवा खिलाड़ियों से मुलाकात को याद किया, जो गर्व से अपने गाँव कोमिनी ब्राज़ीलकहते थे, यह नाम फुटबॉल परंपरा की चार पीढ़ियों और लगभग 80 राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ियों के माध्यम से अर्जित किया गया था। उन्होंने कहा कि उनके वार्षिक फुटबॉल मैच में आसपास के गांवों से 20,000 से 25,000 दर्शक आते हैं। उन्होंने भारत में फुटबॉल के प्रति बढ़ते जुनून के बारे में आशा व्यक्त करते हुए कहा कि यह केवल उत्साह बढ़ाता है बल्कि सच्ची टीम भावना भी पैदा करता है।

अमेरिका के राष्ट्रपति महामहिम श्री डोनाल्ड ट्रम्प के बारे में पूछे जाने पर, प्रधानमंत्री ने ह्यूस्टन में आयोजितहाउडी मोदीरैली के बारे में एक यादगार घटना को याद किया, जहाँ उन्होंने और राष्ट्रपति ट्रम्प ने खचाखच भरे स्टेडियम को संबोधित किया था। उन्होंने राष्ट्रपति ट्रम्प की विनम्रता के बारे में बताया कि कैसे वे मोदी के भाषण के दौरान दर्शकों के बीच बैठे रहे और बाद में उनके साथ स्टेडियम में घूमने के लिए सहमत हुए, जिससे आपसी विश्वास और एक मजबूत बंधन का प्रदर्शन हुआ। उन्होंने राष्ट्रपति ट्रम्प के साहस और निर्णय लेने की क्षमता पर प्रकाश डालते हुए एक अभियान के दौरान गोली लगने के बाद भी उनके लचीलेपन को याद किया। श्री मोदी ने व्हाइट हाउस की अपनी पहली यात्रा पर विचार किया, जहाँ राष्ट्रपति ट्रम्प ने औपचारिक प्रोटोकॉल तोड़कर व्यक्तिगत रूप से उन्हें घुमाया था। उन्होंने अमेरिकी इतिहास के प्रति ट्रम्प के गहरे सम्मान का उल्लेख किया, क्योंकि उन्होंने बिना नोट्स या सहायता के पिछले राष्ट्रपतियों और महत्वपूर्ण क्षणों के बारे में विवरण साझा किए। उन्होंने उनके बीच मजबूत विश्वास और संचार पर बल दिया, जो ट्रम्प के राष्ट्रपति कार्यालय से अनुपस्थित रहने के दौरान भी अडिग रहा। राष्ट्रपति ट्रम्प द्वारा उन्हें महान वार्ताकार कहने की उदारता पर टिप्पणी करते हुए, तथा इसे ट्रम्प की विनम्रता का श्रेय देते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि उनका वार्ता दृष्टिकोण हमेशा भारत के हितों को प्राथमिकता देता है, बिना किसी को ठेस पहुँचाए सकारात्मक रूप से वकालत करता है। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि उनका राष्ट्र उनका सर्वोच्च आदेश है, तथा वे भारत के लोगों द्वारा उन्हें सौंपी गई जिम्मेदारी का सम्मान करते हैं। अमेरिका की अपनी हालिया यात्रा के दौरान एलन मस्क, तुलसी गबार्ड, विवेक रामास्वामी तथा जेडी वेंस जैसे व्यक्तियों के साथ अपनी सफल बैठकों पर प्रकाश डालते हुए, श्री मोदी ने गर्मजोशी भरे, पारिवारिक माहौल की बात की तथा एलन मस्क के साथ अपने पुराने परिचय को साझा किया। उन्होंने डीओजीई मिशन के बारे में मस्क के उत्साह पर प्रसन्नता व्यक्त की तथा 2014 में पदभार ग्रहण करने के बाद से शासन में अक्षमताओं तथा हानिकारक प्रथाओं को समाप्त करने के अपने स्वयं के प्रयासों के साथ समानताएँ बताईं। प्रधानमंत्री ने कल्याणकारी योजनाओं से 10 करोड़ फर्जी या डुप्लिकेट नामों को हटाने सहित शासन सुधारों के उदाहरण साझा किए, जिससे भारी मात्रा में धन की बचत हुई। उन्होंने पारदर्शिता सुनिश्चित करने तथा बिचौलियों को समाप्त करने के लिए प्रत्यक्ष लाभ अंतरण की शुरुआत की, जिससे लगभग तीन लाख करोड़ रुपये की बचत हुई। उन्होंने सरकारी खरीद, लागत कम करने और गुणवत्ता में सुधार के लिए जीईएम पोर्टल भी शुरू किया। इसके अतिरिक्त, उन्होंने शासन को सुव्यवस्थित करने के लिए 40,000 अनावश्यक अनुपालन समाप्त किए और 1,500 पुराने कानूनों को हटाया। उन्होंने कहा कि इन साहसिक बदलावों ने भारत को वैश्विक चर्चा का विषय बना दिया है, ठीक उसी तरह जैसे डीओजीई जैसे अभिनव मिशन दुनिया भर का ध्यान आकर्षित करते हैं।

भारत और चीन के साथ द्विपक्षीय संबंधों के बारे में पूछे जाने पर, प्रधानमंत्री ने एकदूसरे से सीखने और वैश्विक भलाई में योगदान देने के अपने साझा इतिहास पर बल देते हुए इस बात पर प्रकाश डाला कि एक समय में, भारत और चीन ने मिलकर दुनिया के सकल घरेलू उत्पाद में 50 प्रतिशत से अधिक का योगदान दिया था, जो उनके विशाल योगदान को दर्शाता है। उन्होंने चीन में बौद्ध धर्म के गहन प्रभाव सहित गहरे सांस्कृतिक संबंधों का उल्लेख किया, जिसकी उत्पत्ति भारत में हुई थी। श्री मोदी ने दोनों देशों के बीच संबंधों को बनाए रखने और मजबूत करने के महत्व पर बल दिया। उन्होंने स्वीकार किया कि पड़ोसियों के बीच मतभेद स्वाभाविक हैं, लेकिन इन मतभेदों को विवादों में बदलने से रोकने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा, “बातचीत एक स्थिर और सहयोगी संबंध बनाने की कुंजी है जो दोनों देशों को लाभान्वित करती है“। प्रधानमंत्री ने वर्तमान में जारी सीमा विवादों को संबोधित करते हुए, 2020 में उत्पन्न तनावों को स्वीकार किया, लेकिन कहा कि राष्ट्रपति षी चिनफिंग के साथ उनकी हालिया बैठक से सीमा पर सामान्य स्थिति वापस गई है। उन्होंने 2020 से पहले के स्तर पर स्थितियों को बहाल करने के प्रयासों पर प्रकाश डाला और आशा व्यक्त की कि विश्वास, उत्साह और ऊर्जा धीरेधीरे वापस जाएगी। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि वैश्विक स्थिरता और समृद्धि के लिए भारत और चीन के बीच सहयोग आवश्यक है तथा उन्होंने संघर्ष के बजाय स्वस्थ प्रतिस्पर्धा की वकालत की।

वैश्विक तनावों पर प्रधानमंत्री ने कोविड-19 से मिले सबक पर विचार किया, जिसने हर देश की सीमाओं को उजागर किया और एकता की आवश्यकता को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि शांति की ओर बढ़ने के बजाय, दुनिया अधिक विखंडित हो गई है, जिससे अनिश्चितता और बिगड़ते संघर्ष हो रहे हैं। उन्होंने सुधारों की कमी और अंतरराष्ट्रीय कानूनों की अवहेलना के कारण संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों की गैर प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला। श्री मोदी ने संघर्ष से सहयोग की ओर बदलाव का आह्वान किया और विकाससंचालित दृष्टिकोण को आगे बढ़ने का रास्ता बताया। उन्होंने कहा कि एक दूसरे से जुड़ी और एक दूसरे पर निर्भर दुनिया में विस्तारवाद काम नहीं करेगा। उन्होंने देशों को एक दूसरे का समर्थन करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने चल रहे संघर्षों पर वैश्विक मंचों द्वारा साझा की गई गहरी चिंता को देखते हुए शांति की बहाली की आशा व्यक्त की।

2002 के गुजरात दंगों के विषय पर, श्री मोदी ने इसके लिए अग्रणी अस्थिर माहौल का विस्तृत विवरण दिया, जिसमें कंधार अपहरण, लाल किला हमला और 9/11 के आतंकवादी हमलों सहित वैश्विक और राष्ट्रीय संकटों की एक श्रृंखला पर प्रकाश डाला। उन्होंने तनावपूर्ण माहौल और नए नियुक्त मुख्यमंत्री के रूप में उनके सामने आने वाली चुनौतियों पर टिप्पणी की, जिसमें विनाशकारी भूकंप के बाद पुनर्वास की देखरेख और दुखद गोधरा घटना के बाद के प्रबंधन शामिल थे। प्रधानमंत्री ने 2002 के दंगों के बारे में गलत धारणाओं के बारे में कहा कि उनके कार्यकाल से पहले गुजरात में सांप्रदायिक हिंसा का एक लंबा इतिहास रहा है। उन्होंने जोर देकर कहा कि न्यायपालिका ने मामले की पूरी तरह से जांच की और उन्हें पूरी तरह से निर्दोष पाया। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि गुजरात 2002 से 22 वर्षों तक शांतिपूर्ण रहा है, इसका श्रेय सभी के लिए विकास और सभी के विश्वास पर केंद्रित शासन दृष्टिकोण को दिया। श्री मोदी ने आलोचना के बारे में बात करते हुए कहा, “आलोचना लोकतंत्र की आत्मा है“, वास्तविक, अच्छी तरह से सूचित आलोचना के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि उनका मानना ​​है कि बेहतर नीति निर्माण की ओर ले जाती है। हालांकि, उन्होंने निराधार आरोपों के प्रचलन पर चिंता व्यक्त की, जिसे उन्होंने रचनात्मक आलोचना से अलग बताया। उन्होंने कहा, “आरोपों से किसी को कोई लाभ नहीं होता; वे केवल अनावश्यक संघर्ष का कारण बनते हैं।प्रधानमंत्री ने पत्रकारिता पर अपना दृष्टिकोण साझा करते हुए संतुलित दृष्टिकोण की वकालत की। उन्होंने एक बार साझा की गई एक उपमा को याद किया, पत्रकारिता की तुलना एक मधुमक्खी से की जो अमृत इकट्ठा करती है और मिठास फैलाती है, लेकिन जब आवश्यक हो तो शक्तिशाली डंक भी मार सकती है। उन्होंने अपनी उपमा की चुनिंदा व्याख्याओं पर निराशा व्यक्त की, पत्रकारिता को सनसनीखेज होने के बजाय सत्य और रचनात्मक प्रभाव पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता पर बल दिया।

राजनीति में अपने व्यापक अनुभव पर चर्चा करते हुए, संगठनात्मक कार्य, चुनाव प्रबंधन और अभियान की रणनीति बनाने पर अपने शुरुआती ध्यान देने पर प्रकाश डालते हुए, श्री मोदी ने कहा कि 24 वर्षों से गुजरात और भारत के लोगों ने उन पर भरोसा किया है, और वे इस पवित्र कर्तव्य को अटूट समर्पण के साथ निभाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। उन्होंने जाति, पंथ, विश्वास, धन या विचारधारा के आधार पर भेदभाव किए बिना कल्याणकारी योजनाओं को हर नागरिक तक पहुँचाने के लिए अपनी सरकार की प्रतिबद्धता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि विश्वास को बढ़ावा देना उनके शासन मॉडल की आधारशिला है, यह सुनिश्चित करना कि योजनाओं से सीधे लाभान्वित नहीं होने वाले लोग भी शामिल महसूस करें और भविष्य के अवसरों के बारे में आश्वस्त हों। प्रधानमंत्री ने कहा, “हमारा शासन लोगों में निहित है, कि चुनावों में, और नागरिकों और राष्ट्र की भलाई के लिए समर्पित है।श्री मोदी ने राष्ट्र और उसके लोगों को ईश्वर की अभिव्यक्ति के रूप में सम्मानित करने के अपने दृष्टिकोण को साझा करते हुए, अपनी भूमिका की तुलना लोगों की सेवा करने वाले एक समर्पित पुजारी से की। उन्होंने हितों के टकराव की कमी पर जोर दिया, यह देखते हुए कि उनका कोई दोस्त या रिश्तेदार नहीं है जो उनके पद से लाभान्वित हो, जो आम आदमी के साथ प्रतिध्वनित होता है और विश्वास पैदा करता है। प्रधानमंत्री ने दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी से जुड़े होने पर गर्व व्यक्त किया, जिसका श्रेय उन्होंने लाखों समर्पित स्वयंसेवकों के अथक प्रयासों को दिया। उन्होंने कहा कि भारत और उसके नागरिकों के कल्याण के लिए समर्पित इन स्वयंसेवकों का राजनीति में कोई व्यक्तिगत हित नहीं है और वे अपनी निस्वार्थ सेवा के लिए व्यापक रूप से जाने जाते हैं। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि उनकी पार्टी में यह विश्वास चुनाव परिणामों में परिलक्षित होता है, जिसका श्रेय वे लोगों के आशीर्वाद को देते हैं।

भारत में चुनाव कराने की अविश्वसनीय व्यवस्था के बारे में बात करते हुए, 2024 के आम चुनावों का उदाहरण देते हुए, श्री मोदी ने बताया कि 98 करोड़ पंजीकृत मतदाता हैं, जो उत्तरी अमेरिका और यूरोपीय संघ की संयुक्त जनसंख्या से भी अधिक है। उन्होंने कहा कि इनमें से 64.6 करोड़ मतदाताओं ने भीषण गर्मी का सामना करते हुए वोट डाला। उन्होंने कहा कि भारत में दस लाख से अधिक मतदान केंद्र और 2,500 से अधिक पंजीकृत राजनीतिक दल हैं, जो इसके लोकतंत्र के पैमाने को दर्शाता है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि दूरदराज के गांवों में भी मतदान केंद्र हैं, जहां हेलीकॉप्टरों का इस्तेमाल दुर्गम क्षेत्रों में मतदान मशीनों को ले जाने के लिए किया जाता है। उन्होंने गुजरात के गिर वन में एक मतदाता के लिए स्थापित मतदान केंद्र जैसे किस्से साझा किए, जो लोकतंत्र के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को रेखांकित करते हैं। प्रधानमंत्री ने स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने में वैश्विक मानक स्थापित करने के लिए भारत के निर्वाचन आयोग की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि भारतीय चुनावों के प्रबंधन का अध्ययन दुनिया भर के शीर्ष विश्वविद्यालयों द्वारा केस स्टडी के रूप में किया जाना चाहिए, क्योंकि इसमें राजनीतिक जागरूकता और तार्किक उत्कृष्टता की अपार गहराई शामिल है।

अपने नेतृत्व पर विचार करते हुए, श्री मोदी ने कहा कि वे खुद को प्रधानमंत्री के बजाय एकप्रधान सेवकके रूप में पहचानते हैं, और सेवा उनके कार्य नीति का मार्गदर्शक सिद्धांत है। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि उनका ध्यान उत्पादकता और लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने पर है, कि सत्ता की चाहत पर। उन्होंने कहा, “मैं राजनीति में सत्ता में बने रहने के लिए नहीं, बल्कि सेवा करने के लिए आया हूँ।

अकेलेपन की धारणा को संबोधित करते हुए, प्रधानमंत्री ने बताया कि उन्हें कभी इसका अनुभव नहीं होता, क्योंकि वेएक प्लस एकके दर्शन में विश्वास करते हैं, जो स्वयं और सर्वशक्तिमान का प्रतिनिधित्व करता है। उन्होंने कहा कि राष्ट्र और उसके लोगों की सेवा करना ईश्वर की सेवा करने के समान है। उन्होंने कहा कि महामारी के दौरान, वे वीडियोकांफ्रेंसिंग के माध्यम से एक शासन मॉडल तैयार करके और 70 वर्ष और उससे अधिक आयु के पार्टी स्वयंसेवकों से व्यक्तिगत रूप से जुड़कर, उनका हालचाल पूछकर और पुरानी यादों को ताज़ा करके लगे रहे।

कड़ी मेहनत का राज पूछे जाने पर, श्री मोदी ने कहा कि उन्हें अपने आसपास के लोगों की कड़ी मेहनत देखने से प्रेरणा मिलती है, जिसमें किसान, सैनिक, मजदूर और माताएँ शामिल हैं जो अपने परिवार और समुदाय के लिए अथक परिश्रम करते हैं। उन्होंने कहा, “मैं कैसे सो सकता हूँ? मैं कैसे आराम कर सकता हूँ? प्रेरणा मेरी आँखों के सामने है।उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि उनके साथी नागरिकों द्वारा उन्हें सौंपे गए दायित्व उन्हें अपना सर्वश्रेष्ठ देने के लिए प्रेरित करते हैं। उन्होंने 2014 के अपने अभियान के दौरान किए गए वादों को याद किया: देश के लिए कड़ी मेहनत में कभी पीछे नहीं हटना, कभी भी बुरे इरादे से काम नहीं करना और कभी भी व्यक्तिगत लाभ के लिए कुछ नहीं करना। उन्होंने कहा कि उन्होंने सरकार के प्रमुख के रूप में अपने 24 वर्षों के दौरान इन मानकों को बरकरार रखा है। प्रधानमंत्री ने इस बात पर प्रकाश डाला कि उन्हें 140 करोड़ लोगों की सेवा करने, उनकी आकांक्षाओं को समझने और उनकी ज़रूरतों को पूरा करने से प्रेरणा मिलती है। उन्होंने कहा, “मैं हमेशा जितना हो सके उतना करने, जितना संभव हो उतना कठिन परिश्रम करने के लिए दृढ़ संकल्पित रहता हूँ। आज भी, मेरी ऊर्जा उतनी ही मज़बूत है।

श्रीनिवास रामानुजन, जिन्हें व्यापक रूप से सार्वकालिक महानतम गणितज्ञों में से एक माना जाता है, के प्रति अपना गहरा सम्मान व्यक्त करते हुए, श्री मोदी ने कहा कि रामानुजन का जीवन और कार्य विज्ञान और अध्यात्म के बीच गहरे संबंध को दर्शाता है। उन्होंने रामानुजन की इस मान्यता पर प्रकाश डाला कि उनके गणितीय विचार उस देवी से प्रेरित थे जिसकी वे पूजा करते थे, उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ऐसे विचार आध्यात्मिक अनुशासन से उत्पन्न होते हैं। उन्होंने कहा, “अनुशासन केवल कड़ी मेहनत से कहीं अधिक है; इसका अर्थ है किसी कार्य के प्रति स्वयं को पूरी तरह समर्पित करना और स्वयं को उसमें पूरी तरह से डुबो देना ताकि आप अपने काम के साथ एक हो जाएं।प्रधानमंत्री ने ज्ञान के विविध स्रोतों के प्रति खुले रहने के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि यह खुलापन नए विचारों के उद्भव को बढ़ावा देता है। उन्होंने सूचना और ज्ञान के बीच अंतर पर जोर देते हुए कहा, “कुछ लोग गलती से सूचना को ज्ञान समझ लेते हैं। ज्ञान कुछ गहरा है; यह धीरेधीरे प्रसंस्करण, प्रतिबिंब और समझ के माध्यम से विकसित होता है।उन्होंने दोनों को प्रभावी ढंग से संभालने के लिए इस अंतर को पहचानने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।

अपने निर्णय लेने को प्रभावित करने वाले कारकों पर चर्चा करते हुए, श्री मोदी ने अपनी वर्तमान भूमिका से पहले भारत के 85-90 प्रतिशत जिलों की अपनी व्यापक यात्रा पर प्रकाश डाला। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि इन अनुभवों ने उन्हें जमीनी हकीकत का प्रत्यक्ष ज्ञान प्रदान किया। उन्होंने कहा, “मैं ऐसा कोई बोझ नहीं उठाता जो मुझे दबा दे या मुझे एक निश्चित तरीके से कार्य करने के लिए मजबूर करे।उन्होंने बताया कि उनका मार्गदर्शक सिद्धांतमेरा देश पहलेहै, और वे निर्णय लेते समय सबसे गरीब व्यक्ति के चेहरे पर विचार करने के महात्मा गांधी के ज्ञान से प्रेरणा लेते हैं। प्रधानमंत्री ने अपने सुसंपर्क वाले प्रशासन पर प्रकाश डाला, यह देखते हुए कि उनके कई और सक्रिय सूचना चैनल उन्हें विविध दृष्टिकोण प्रदान करते हैं। उन्होंने कहा, “जब कोई मुझे जानकारी देने आता है, तो वह मेरी जानकारी का एकमात्र स्रोत नहीं होता है।उन्होंने एक शिक्षार्थी की मानसिकता बनाए रखने, एक छात्र की तरह सवाल पूछने और कई कोणों से मुद्दों का विश्लेषण करने के लिए शैतान के वकील की भूमिका निभाने पर भी जोर दिया। श्री मोदी ने कोविड-19 संकट के दौरान अपनी निर्णय लेने की प्रक्रिया को साझा किया, जहाँ उन्होंने वैश्विक आर्थिक सिद्धांतों का आँख मूंदकर पालन करने के दबाव का विरोध किया। उन्होंने कहा, “मैं गरीबों को भूखा नहीं सोने दूंगा। मैं रोजमर्रा की बुनियादी जरूरतों को लेकर सामाजिक तनाव पैदा नहीं होने दूंगा।उन्होंने जोर देकर कहा कि धैर्य और अनुशासन पर आधारित उनके दृष्टिकोण ने भारत को गंभीर मुद्रास्फीति से बचने और दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक बनने में सहायता की। प्रधानमंत्री ने अपनी जोखिम लेने की क्षमता पर प्रकाश डाला और कहा, “अगर मेरे देश के लिए, लोगों के लिए कुछ सही है, तो मैं हमेशा जोखिम लेने के लिए तैयार हूं।उन्होंने अपने फैसलों की जिम्मेदारी लेने पर जोर दिया और कहा, “अगर कुछ गलत होता है, तो मैं दूसरों पर दोष नहीं मढ़ता। मैं खड़ा होता हूं, जिम्मेदारी लेता हूं और परिणाम को अपनाता हूं।उन्होंने कहा कि यह दृष्टिकोण उनकी टीम के भीतर गहरी प्रतिबद्धता को बढ़ावा देता है और नागरिकों के बीच विश्वास का निर्माण करता है। उन्होंने कहा, “मैं गलतियाँ कर सकता हूँ, लेकिन मैं बुरे इरादों से काम नहीं करूँगा।

श्री मोदी से जब कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) को बढ़ावा देने में भारत की भूमिका के बारे में पूछा गया तो उन्होंने जोर देकर कहा, “कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) का विकास मूल रूप से एक सहयोगात्मक प्रयास है। कोई भी देश पूरी तरह से अपने दम पर एआई का विकास नहीं कर सकता है।उन्होंने कहा, “दुनिया चाहे एआई के साथ कुछ भी करे, यह भारत के बिना अधूरा रहेगा।उन्होंने विशिष्ट उपयोग के मामलों के लिए एआईसंचालित अनुप्रयोगों पर भारत के सक्रिय कार्य और व्यापक पहुँच सुनिश्चित करने के लिए इसके अनूठे बाज़ारआधारित मॉडल पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि भारत का विशाल प्रतिभा समूह इसकी सबसे बड़ी ताकत है। उन्होंने कहा, “कृत्रिम बुद्धिमत्ता मूल रूप से मानव बुद्धिमत्ता द्वारा संचालित, आकार और निर्देशित होती है, और यह वास्तविक बुद्धिमत्ता भारत के युवाओं में प्रचुर मात्रा में मौजूद है।प्रधानमंत्री ने 5-जी सेवा शुरू होने में भारत की तीव्र प्रगति का एक उदाहरण साझा किया, जिसने वैश्विक अपेक्षाओं को पार कर लिया। उन्होंने भारत के अंतरिक्ष मिशनों की लागतप्रभावशीलता पर प्रकाश डाला, जैसे कि चंद्रयान, जिसकी लागत हॉलीवुड की किसी ब्लॉकबस्टर फिल्म से भी कम थी, जो भारत की दक्षता और नवाचार को प्रदर्शित करता है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ये उपलब्धियाँ भारतीय प्रतिभा के लिए वैश्विक सम्मान पैदा करती हैं और भारत के सभ्यतागत लोकाचार को दर्शाती हैं। श्री मोदी ने वैश्विक तकनीक में भारतीय मूल के नेताओं की सफलता पर भी विचार किया और इसका श्रेय भारत के समर्पण, नैतिकता और सहयोग के सांस्कृतिक मूल्यों को दिया। उन्होंने कहा, “भारत में पलेबढ़े लोग, विशेष रूप से संयुक्त परिवारों और खुले समाजों से आए लोग, जटिल कार्यों और बड़ी टीमों का प्रभावी ढंग से नेतृत्व करना आसान पाते हैं।उन्होंने भारतीय पेशेवरों की समस्यासमाधान क्षमताओं और विश्लेषणात्मक सोच पर प्रकाश डाला, जो उन्हें वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्धी बनाती है। एआई द्वारा मनुष्यों की जगह लेने की चिंताओं को संबोधित करते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि प्रौद्योगिकी हमेशा मानवता के साथ आगे बढ़ी है, जिसमें मनुष्य अनुकूलन करते हैं और एक कदम आगे रहते हैं। उन्होंने कहा, “मानव कल्पना ईंधन है। एआई इसके आधार पर कई चीजें बना सकता है, लेकिन कोई भी तकनीक कभी भी मानव मन की असीमित रचनात्मकता और कल्पना की जगह नहीं ले सकती है।उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि एआई मनुष्यों को यह सोचने के लिए चुनौती देता है कि वास्तव में मानव होने का क्या मतलब है, एकदूसरे की देखभाल करने की जन्मजात मानवीय क्षमता पर प्रकाश डाला जिसे एआई दोहरा नहीं सकता।

शिक्षा, परीक्षा और छात्र सफलता के विषय पर बात करते हुए, श्री मोदी ने कहा कि सामाजिक मानसिकता छात्रों पर अनुचित दबाव डालती है, स्कूल और परिवार अक्सर रैंकिंग के आधार पर सफलता को मापते हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि इस मानसिकता के कारण बच्चों को लगता है कि उनका पूरा जीवन 10वीं और 12वीं कक्षा की परीक्षाओं पर निर्भर करता है। उन्होंने इन मुद्दों को संबोधित करने के लिए भारत की नई शिक्षा नीति में पेश किए गए महत्वपूर्ण बदलावों पर प्रकाश डाला और परीक्षा पे चर्चा जैसी पहलों के माध्यम से छात्रों के बोझ को कम करने के लिए अपनी प्रतिबद्धता साझा की। प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि परीक्षा किसी व्यक्ति की क्षमता का एकमात्र पैमाना नहीं होनी चाहिए। उन्होंने कहा, “कई लोग अकादमिक रूप से उच्च स्कोर नहीं कर सकते हैं, लेकिन क्रिकेट में शतक लगा सकते हैं क्योंकि यहीं उनकी असली ताकत है।उन्होंने अपने स्कूल के दिनों के किस्से साझा किए, जिसमें नवीन शिक्षण विधियों पर प्रकाश डाला गया, जिसने सीखने को आनंददायक और प्रभावी बनाया। उन्होंने कहा कि ऐसी तकनीकों को नई शिक्षा नीति में शामिल किया गया है। श्री मोदी ने छात्रों को हर काम को समर्पण और ईमानदारी से करने की सलाह दी, इस बात पर जोर देते हुए कि बढ़े हुए कौशल और क्षमताएँ सफलता के द्वार खोलती हैं। उन्होंने युवाओं को हतोत्साहित होने के लिए प्रोत्साहित करते हुए कहा, “निश्चित रूप से आपके लिए कुछ कार्य आवश्यक रूप से निर्धारित हैं। अपने कौशल को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करें और अवसर आपके पास आएंगे।उन्होंने अपने जीवन को एक बड़े उद्देश्य से जोड़ने के महत्व पर प्रकाश डाला, जो प्रेरणा और अर्थ लाता है। तनाव और कठिनाइयों को संबोधित करते हुए, प्रधानमंत्री ने मातापिता से अपने बच्चों को स्टेटस सिंबल के रूप में उपयोग करना बंद करने और यह समझने का आग्रह किया कि जीवन केवल परीक्षाओं के बारे में नहीं है। उन्होंने छात्रों को अच्छी तरह से तैयारी करने, अपनी क्षमताओं पर भरोसा करने और आत्मविश्वास के साथ परीक्षा देने की सलाह दी। उन्होंने परीक्षाओं के दौरान चुनौतियों से पार पाने के लिए व्यवस्थित समय प्रबंधन और नियमित अभ्यास के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने प्रत्येक व्यक्ति की अद्वितीय क्षमताओं में अपने विश्वास की पुष्टि की, छात्रों को सफल होने के लिए खुद पर और अपनी क्षमताओं पर भरोसा बनाए रखने के लिए प्रोत्साहित किया।

प्रधानमंत्री ने सीखने के प्रति अपने दृष्टिकोण को भी साझा किया और वर्तमान में पूरी तरह से मौजूद रहने के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कहा, “जब भी मैं किसी से मिलता हूं, तो मैं वर्तमान में पूरी तरह से मौजूद रहता हूं। यह पूरा ध्यान मुझे नई अवधारणाओं को जल्दी से समझने में सहायता करता है।उन्होंने दूसरों को भी इस आदत को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया और कहा कि इससे दिमाग तेज होता है और सीखने की क्षमता में सुधार होता है। उन्होंने अभ्यास के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा, “आप केवल महान ड्राइवरों की जीवन कहानियों को पढ़कर ड्राइविंग में महारत हासिल नहीं कर सकते। आपको खुद गाड़ी चलानी होगी और सड़क पर चलना होगा।श्री मोदी ने मृत्यु की निश्चितता पर विचार किया, और जीवन को गले लगाने, इसे उद्देश्यपूर्ण बनाने और मृत्यु के डर को दूर करने के महत्व पर जोर दिया, क्योंकि यह अपरिहार्य है। उन्होंने कहा, “अपने जीवन को समृद्ध, परिष्कृत और उन्नत करने के लिए प्रतिबद्ध रहें ताकि आप मृत्यु के आने से पहले पूरी तरह से और उद्देश्यपूर्ण जीवन जी सकें।

प्रधानमंत्री ने भविष्य के बारे में अपनी आशा व्यक्त करते हुए कहा कि निराशावाद और नकारात्मकता उनकी मानसिकता का हिस्सा नहीं है। उन्होंने संकटों पर काबू पाने और पूरे इतिहास में परिवर्तन को अपनाने में मानवता के अनुकूलन पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, “हर युग में, परिवर्तन की निरंतर बहती धारा के साथ अनुकूलन करना मानव स्वभाव में है।उन्होंने असाधारण सफलताओं की संभावना पर जोर दिया जब लोग पुरानी सोच के स्वरूप से मुक्त होकर परिवर्तन को अपनाते हैं।

आध्यात्मिकता, ध्यान और सार्वभौमिक कल्याण के विषयों पर बोलते हुए, श्री मोदी ने गायत्री मंत्र के महत्व पर प्रकाश डाला, इसे सूर्य की उज्ज्वल शक्ति को समर्पित आध्यात्मिक ज्ञान के लिए एक शक्तिशाली उपकरण के रूप में वर्णित किया। उन्होंने कहा कि कई हिंदू मंत्र विज्ञान और प्रकृति के साथ गहराई से जुड़े हुए हैं, जो प्रतिदिन जपने पर गहन और स्थायी लाभ लाते हैं। प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि ध्यान खुद को विकर्षणों से मुक्त करने और वर्तमान में मौजूद रहने के बारे में है। उन्होंने हिमालय में अपने समय के एक अनुभव को याद किया, जहाँ एक ऋषि ने उन्हें एक कटोरे पर गिरने वाली पानी की बूंदों की लयबद्ध ध्वनि पर ध्यान केंद्रित करना सिखाया था। उन्होंने इस अभ्यास कोदिव्य प्रतिध्वनिके रूप में वर्णित किया, जिसने उन्हें एकाग्रता विकसित करने और ध्यान में विकसित होने में सहायता की। हिंदू दर्शन पर विचार करते हुए, श्री मोदी ने जीवन के परस्पर जुड़ाव और सार्वभौमिक कल्याण के महत्व पर जोर देने वाले मंत्रों को उद्धृत किया। उन्होंने कहा, “हिंदू कभी भी केवल व्यक्तिगत कल्याण पर ध्यान केंद्रित नहीं करते हैं। हम सभी की भलाई और समृद्धि की कामना करते हैं।उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि प्रत्येक हिंदू मंत्र शांति के आह्वान के साथ समाप्त होता है, जो जीवन के सार और ऋषियों की आध्यात्मिक प्रथाओं का प्रतीक है। प्रधानमंत्री ने अपने विचार साझा करने के अवसर के लिए आभार व्यक्त करते हुए पॉडकास्ट का समापन किया।  उन्होंने कहा कि इस बातचीत ने उन्हें उन विचारों को तलाशने और व्यक्त करने का अवसर दिया जो उन्होंने लंबे समय से अपने भीतर दबाए रखे थे।

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