प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आज नई दिल्ली के विज्ञान भवन में 98वें अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन का उद्घाटन किया। इस अवसर पर उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए उन्होंने नई दिल्ली में आयोजित मराठी भाषा के इस भव्य आयोजन में सभी मराठियों का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन किसी भाषा या क्षेत्र तक सीमित नहीं है, बल्कि इस सम्मेलन में आजादी की लड़ाई की महक के साथ-साथ महाराष्ट्र और राष्ट्र की सांस्कृतिक विरासत भी है।
श्री मोदी ने कहा कि अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन 1878 में अपने पहले आयोजन से लेकर अब तक भारत की 147 वर्षों की यात्रा का साक्षी रहा है। उन्होंने कहा कि श्री महादेव गोविंद रानाडे, श्री हरि नारायण आप्टे, श्री माधव श्रीहरि अणे, श्री शिवराम परांजपे, श्री वीर सावरकर जैसी देश की अनेक महान विभूतियों ने इसकी अध्यक्षता की है। उन्होंने श्री शरद पवार द्वारा इस गौरवशाली परंपरा का हिस्सा बनने के लिए आमंत्रित किए जाने पर आभार व्यक्त करते हुए देश और दुनिया भर के सभी मराठी प्रेमियों को इस आयोजन के लिए बधाई दी।
प्रधानमंत्री ने इस बात को रेखांकित करते हुए कि आज अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस है, कहा कि मराठी भाषा के बारे में सोचते समय संत ज्ञानेश्वर के वचन याद आना बहुत स्वाभाविक है। संत ज्ञानेश्वर के एक पद्य की व्याख्या करते हुए श्री मोदी ने कहा कि मराठी भाषा अमृत से भी बढ़कर मीठी है। इसलिए मराठी भाषा और मराठी संस्कृति के प्रति उनका प्रेम और स्नेह अपार है। उन्होंने विनम्रतापूर्वक कहा कि हालांकि वे इस कार्यक्रम में मौजूद मराठी विद्वानों जितने प्रवीण नहीं हैं, लेकिन वह मराठी सीखने के लिए निरंतर प्रयासरत रहे हैं।
श्री मोदी ने इस बात को रेखांकित किया कि यह सम्मेलन ऐसे महत्वपूर्ण समय पर हो रहा है जब राष्ट्र छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक की 350वीं वर्षगांठ, पुण्यश्लोक अहिल्याबाई होल्कर की 300वीं जयंती और बाबासाहेब अंबेडकर के प्रयासों से निर्मित हमारे संविधान की 75वीं वर्षगांठ मना रहा है। इस बात पर गर्व व्यक्त करते हुए कि महाराष्ट्र की धरती पर एक मराठी भाषी महापुरूष ने 100 वर्ष पहले राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) का बीज बोया था, श्री मोदी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि आज यह एक वटवृक्ष के रूप में अपना शताब्दी वर्ष मना रहा है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि पिछले 100 वर्षों से आरएसएस ने अपने सांस्कृतिक प्रयासों के माध्यम से वेदों से लेकर विवेकानंद तक भारत की महान परंपरा और संस्कृति को नई पीढ़ी तक पहुंचाया है। प्रधानमंत्री ने कहा कि उनका सौभाग्य है कि उनके जैसे लाखों लोगों को आरएसएस ने देश के लिए जीने की प्रेरणा दी है। प्रधानमंत्री ने यह भी स्वीकार किया कि आरएसएस के माध्यम से ही उन्हें मराठी भाषा और परंपरा से जुड़ने का अवसर मिला। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि कुछ महीने पहले ही मराठी को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया गया है, जिसका भारत और दुनिया भर में 12 करोड़ से अधिक मराठी भाषियों को दशकों से इंतज़ार था। उन्होंने इसे अपने जीवन का सौभाग्य बताया कि उन्हें यह कार्य करने का अवसर मिला।
प्रधानमंत्री ने कहा, “भाषा केवल संवाद का माध्यम भर नहीं होती है, बल्कि हमारी संस्कृति की संवाहक होती है।” उन्होंने कहा कि यद्यपि भाषाएं समाज में जन्म लेती हैं, लेकिन वे समाज के निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि मराठी ने महाराष्ट्र और राष्ट्र के कई व्यक्तियों के विचारों को अभिव्यक्ति देकर हमारे सांस्कृतिक विकास में योगदान दिया है। मराठी भाषा के महत्व के बारे में समर्थ रामदास जी के शब्दों का हवाला देते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, “मराठी एक संपूर्ण भाषा है, जिसमें वीरता, सौंदर्य, संवेदना, समानता, समरसता, आध्यात्मिकता और आधुनिकता है।” उन्होंने कहा कि मराठी में भक्ति, शक्ति और युक्ति भी है। श्री मोदी ने कहा कि जब भारत को आध्यात्मिक ऊर्जा की जरूरत हुई, तो महाराष्ट्र के महान संतों ने ऋषियों के ज्ञान को मराठी में सुलभ कराया। उन्होंने संत ज्ञानेश्वर, संत तुकाराम, संत रामदास, संत नामदेव, संत तुकड़ोज़ी महाराज, गाडगे बाबा, गोरा कुम्हार और बहीणाबाई के योगदान को स्वीकार किया, जिन्होंने मराठी में भक्ति आंदोलन के माध्यम से समाज को एक नई दिशा दिखाई। प्रधानमंत्री ने आधुनिक समय में श्री गजानन दिगंबर मडगुलकर और श्री सुधीर फड़के की गीत रामायण के प्रभाव को रेखांकित किया।
प्रधानमंत्री ने इस बात पर प्रकाश डाला कि गुलामी के सैकड़ों वर्षों के लंबे कालखंड में मराठी भाषा, आंक्रांताओं से मुक्ति का जयघोष बनी। उन्होंने दुश्मनों को नाको चने चबवाने वाले छत्रपति शिवाजी महाराज, संभाजी महाराज और बाजीराव पेशवा जैसे मराठा योद्धाओं की वीरता का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि आज़ादी की लड़ाई में वासुदेव बलवंत फड़के, लोकमान्य तिलक और वीर सावरकर जैसे सेनानियों ने अंग्रेजों की नींद उड़ा दी थी। प्रधानमंत्री ने उनके योगदान में मराठी भाषा और साहित्य की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया। श्री मोदी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि केसरी और मराठा जैसे समाचार पत्र, कवि गोविंदराज की ओजस्वी कवितायें, और राम गणेश गडकरी के नाटकों ने राष्ट्रवाद की भावना को पोषित किया। उन्होंने कहा कि लोकमान्य तिलक ने गीता रहस्य भी मराठी में ही लिखी थी, लेकिन, इसने पूरे देश में नई ऊर्जा भर दी थी।
श्री मोदी ने कहा, “मराठी भाषा और साहित्य ने समाज के शोषित और वंचित वर्गों के लिए सामाजिक मुक्ति के द्वार खोले हैं।” उन्होंने ज्योतिबा फुले, सावित्रीबाई फुले, महर्षि कर्वे और बाबासाहेब अंबेडकर जैसे महान समाज सुधारकों के योगदान का उल्लेख किया, जिन्होंने मराठी में नए युग की सोच को सींचने का काम किया। उन्होंने कहा कि मराठी भाषा ने देश को समृद्ध दलित साहित्य दिया है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि अपने आधुनिक चिंतन के कारण मराठी साहित्य में विज्ञान कथाओं की भी रचनाएं हुई हैं। है। आयुर्वेद, विज्ञान और तर्कशास्त्र में महाराष्ट्र के लोगों के असाधारण योगदान को स्वीकार करते हुए श्री मोदी ने कहा कि इस संस्कृति ने हमेशा नए विचारों और प्रतिभाओं को आमंत्रित किया है, जिससे महाराष्ट्र की प्रगति हुई है। उन्होंने कहा कि मुंबई केवल महाराष्ट्र ही नहीं, बल्कि पूरे देश की आर्थिक राजधानी बनकर उभरी है। प्रधानमंत्री ने कहा कि जब मुंबई की बात आती है, तो फिल्मों का उल्लेख किए बिना साहित्य की चर्चा पूरी नहीं हो सकती। उन्होंने कहा कि यह महाराष्ट्र और मुंबई ही हैं, जिन्होंने मराठी फिल्मों और हिंदी सिनेमा दोनों को ऊंचाई दी है। उन्होंने फिल्म ‘छावा’ की वर्तमान लोकप्रियता का उल्लेख किया, जिसमें शिवाजी सावंत के मराठी उपन्यास के माध्यम से संभाजी महाराज की वीरता को पेश किया गया है।
श्री मोदी ने कवि केशवसुत को उद्धृत करते हुए इस बात पर जोर दिया कि हम पुरानी सोच पर थमे नहीं रह सकते और मानव सभ्यता, विचार और भाषा निरंतर विकसित होते रहते हैं। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारत दुनिया की सबसे प्राचीन जीवंत सभ्यताओं में से एक है क्योंकि इसने लगातार विकास किया है, नए विचारों को जोड़ा है और नए बदलावों का स्वागत किया है। प्रधानमंत्री इस बात की ओर इंगित करते हुए कि भारत की विशाल भाषाई विविधता इस विकास का प्रमाण और एकता का सबसे बुनियादी आधार भी है, कहा कि मराठी इस विविधता का उदाहरण है। उन्होंने भाषा की तुलना मां से करते हुए कहा कि मां की तरह ही भाषा भी बिना किसी भेदभाव के अपने बच्चों को नया और व्यापक ज्ञान प्रदान करती है। उन्होंने कहा कि भाषा हर विचार और हर विकास को अपने में समाहित करती है। श्री मोदी ने कहा कि मराठी की उत्पत्ति संस्कृत से हुई है और इसमें प्राकृत का भी काफी प्रभाव है। उन्होंने महान विचारकों और लेखकों के योगदान पर प्रकाश डाला जिन्होंने मानवीय सोच को और अधिक व्यापक बनाया है। उन्होंने लोकमान्य तिलक की गीता रहस्य का उल्लेख किया, जिसने संस्कृत गीता की व्याख्या की और इसे मराठी के माध्यम से जन-सुलभ बनाया। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि ज्ञानेश्वरी गीता में भी संस्कृत पर मराठी में टिप्पणी लिखी गई, जो आज विद्वानों और संतों के लिए गीता को समझने के लिए एक मानक बन गई है। प्रधानमंत्री ने कहा कि मराठी ने दूसरी सभी भारतीय भाषाओं से साहित्य को लिया है, और बदले में उन भाषाओं को भी समृद्ध किया है। उन्होंने ‘आनंदमठ’ जैसी कृतियों का मराठी में अनुवाद करने वाले भार्गवराम विट्ठल वरेकर और पन्ना धाय, दुर्गावती और रानी पद्मिनी के जीवन पर आधारित कृतियों की रचना करने वाली विंदा करंदीकर, जिनका कई भाषाओं में अनुवाद किया गया है, जैसे लोगों का उदाहरण दिया। उन्होंने जोर देकर कहा, “भारतीय भाषाओं में कभी कोई आपसी वैर नहीं रहा। उन्होंने हमेशा एक दूसरे को अपनाया और एक दूसरे को समृद्ध किया है।”
प्रधानमंत्री ने इस बात की ओर इंगित किया कि जब भाषा के नाम पर भेद डालने की कोशिश की जाती है, तो हमारी भाषाओं की साझी विरासत ही उसका सही जवाब देती है। प्रधानमंत्री ने भाषाओं को समृद्ध करने और उन्हें अपनाने के दायित्व पर जोर देते हुए सभी से इन भ्रमों से दूर रहने का आग्रह किया। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि आज देश की सभी भाषाओं को मुख्यधारा की भाषाओं के रूप में देखा जाता है। उन्होंने मराठी सहित सभी प्रमुख भाषाओं में शिक्षा को बढ़ावा देने के प्रयासों की ओर इशारा किया। श्री मोदी ने उल्लेख किया कि अब महाराष्ट्र के युवा मराठी में उच्च शिक्षा, इंजीनियरिंग और मेडिकल की पढ़ाई कर सकेंगे। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि अंग्रेजी न जानने के कारण प्रतिभाओं की उपेक्षा करने वाली सोच को बदल दिया गया है।
श्री मोदी ने कहा, “साहित्य समाज का दर्पण होने के साथ-साथ पथप्रदर्श भी होता है।” उन्होंने देश में साहित्य सम्मेलन और साहित्य से जुड़ी संस्थाओं की महत्वपूर्ण भूमिका पर टिप्पणी की। उन्होंने आशा व्यक्त की कि अखिल भारतीय मराठी साहित्य महामंडल गोविंद रानाडे, हरिनारायण आप्टे, आचार्य अत्रे और वीर सावरकर जैसी महान विभूतियों द्वारा स्थापित आदर्शों को आगे बढ़ाएगा। प्रधानमंत्री ने इस बात पर प्रकाश डाला कि 2027 में साहित्य़ सम्मेलन की इस परंपरा को 150 वर्ष पूरे होंगे। और तब 100वां सम्मेलन होगा। उन्होंने सभी से इस अवसर को विशेष बनाने और अभी से तैयारी शुरू करने का आग्रह किया। सोशल मीडिया के जरिए मराठी साहित्य की सेवा करने वाले कई युवाओं के प्रयासों को स्वीकार करते हुए प्रधानमंत्री ने उन्हें मंच प्रदान करने और उनकी प्रतिभाओं को पहचान दिलाने के लिए प्रोत्साहित किया। प्रधानमंत्री ने ऑनलाइन प्लेटफॉर्म और भाषिणी जैसी पहल के माध्यम से मराठी सीखने को बढ़ावा देने के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने युवाओं के बीच मराठी भाषा और साहित्य से संबंधित प्रतियोगिताएं आयोजित करने का सुझाव दिया। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि ये प्रयास और मराठी साहित्य की प्रेरणाएं विकसित भारत के लिए 140 करोड़ देशवासियों को प्रेरित करेंगी। उन्होंने महादेव गोविंद रानाडे, हरिनारायण आप्टे, माधव श्रीहरि अणे और शिवराम परांजपे जैसे महान व्यक्तित्वों की महान परंपरा को जारी रखने का आग्रह कर सभी का आभार प्रकट करते हुए अपना संबोधन समाप्त किया।
इस कार्यक्रम में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री श्री देवेंद्र फड़नवीस, सांसद (राज्यसभा) श्री शरद पवार, 98वें सम्मेलन की अध्यक्ष डॉ. तारा भवालकर सहित अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।
पृष्ठभूमि
98वां अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन 21 से 23 फरवरी तक आयोजित किया जा रहा है और इसमें पैनल चर्चा, पुस्तक प्रदर्शनियां, सांस्कृतिक कार्यक्रम और प्रतिष्ठित साहित्यकारों के साथ संवाद सत्र आयोजित किए जाएंगे। यह सम्मेलन मराठी साहित्य की कालातीत प्रासंगिकता का कीर्तिगान करेगा और समसामयिक संवाद में इसकी भूमिका का पता लगाएगा, जिसमें भाषा संरक्षण, अनुवाद और साहित्यिक कार्यों पर डिजिटलीकरण के प्रभाव जैसे विषय शामिल होंगे।
राष्ट्रीय राजधानी में 71 वर्षों के बाद आयोजित हो रहे मराठी साहित्य सम्मेलन में साहित्य की एकीकृत भावना को प्रदर्शित करते हुए पुणे से दिल्ली तक एक प्रतीकात्मक साहित्यिक ट्रेन यात्रा भी शामिल है, जिसमें 1,200 प्रतिभागी भाग लेंगे। इस सम्मेलन में 2,600 से अधिक कविताएं प्रस्तुत की जाएंगी, 50 पुस्तकों का लोकार्पण होगा और 100 बुक स्टॉल लगाए जाएंगे। देश भर से प्रतिष्ठित विद्वान, लेखक, कवि और साहित्य प्रेमी इसमें भाग लेंगे।
Addressing the 98th Akhil Bharatiya Marathi Sahitya Sammelan in New Delhi. https://t.co/AgVAi7GVGj
— Narendra Modi (@narendramodi) February 21, 2025
हमारी भाषा हमारी संस्कृति की संवाहक होती है: PM @narendramodi pic.twitter.com/UwwMwurkyN
— PMO India (@PMOIndia) February 21, 2025
मराठी एक सम्पूर्ण भाषा है। pic.twitter.com/ROhES7EjcX
— PMO India (@PMOIndia) February 21, 2025
महाराष्ट्र के कितने ही संतों ने भक्ति आंदोलन के जरिए मराठी भाषा में समाज को नई दिशा दिखाई: PM @narendramodi pic.twitter.com/WttQQLtz83
— PMO India (@PMOIndia) February 21, 2025
भारतीय भाषाओं में कभी कोई आपसी वैर नहीं रहा। pic.twitter.com/QeaFNFHQsd
— PMO India (@PMOIndia) February 21, 2025
***
एमजी/आरपीएम/केसी/आरके
Addressing the 98th Akhil Bharatiya Marathi Sahitya Sammelan in New Delhi. https://t.co/AgVAi7GVGj
— Narendra Modi (@narendramodi) February 21, 2025
हमारी भाषा हमारी संस्कृति की संवाहक होती है: PM @narendramodi pic.twitter.com/UwwMwurkyN
— PMO India (@PMOIndia) February 21, 2025
मराठी एक सम्पूर्ण भाषा है। pic.twitter.com/ROhES7EjcX
— PMO India (@PMOIndia) February 21, 2025
महाराष्ट्र के कितने ही संतों ने भक्ति आंदोलन के जरिए मराठी भाषा में समाज को नई दिशा दिखाई: PM @narendramodi pic.twitter.com/WttQQLtz83
— PMO India (@PMOIndia) February 21, 2025
भारतीय भाषाओं में कभी कोई आपसी वैर नहीं रहा। pic.twitter.com/QeaFNFHQsd
— PMO India (@PMOIndia) February 21, 2025
ये मेरे लिए अत्यंत गर्व की बात है कि मुझे नई दिल्ली में अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन में हिस्सा लेने का सौभाग्य मिला। pic.twitter.com/HXw6qtkj3g
— Narendra Modi (@narendramodi) February 21, 2025
अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन देश की 147 वर्षों की यात्रा का साक्षी रहा है। मैं देश-दुनिया के सभी मराठी प्रेमियों को इस आयोजन की बधाई देता हूं। pic.twitter.com/S31Fxcaa2h
— Narendra Modi (@narendramodi) February 21, 2025
मराठी एक संपूर्ण भाषा है। इसमें भक्ति भी है, शक्ति भी है और युक्ति भी है। pic.twitter.com/2a3IQmO5Iw
— Narendra Modi (@narendramodi) February 21, 2025
मराठी भाषा और साहित्य ने समाज के शोषित-वंचित वर्ग के लिए सामाजिक मुक्ति के द्वार खोलने का भी अद्भुत काम किया है। pic.twitter.com/ApqGEVjV2g
— Narendra Modi (@narendramodi) February 21, 2025
भारतीय भाषाओं में कभी कोई आपसी वैर नहीं रहा। इन्होंने हमेशा एक दूसरे को अपनाया है, एक दूसरे को समृद्ध किया है। pic.twitter.com/78BBWoNLyr
— Narendra Modi (@narendramodi) February 21, 2025
आज इसलिए हम देश की सभी भाषाओं को Mainstream Language के रूप में देख रहे हैं… pic.twitter.com/5OF0Lm6bHT
— Narendra Modi (@narendramodi) February 21, 2025
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पिछले 100 वर्षों से भारत की महान परंपरा और संस्कृति को नई पीढ़ी तक पहुंचाने का एक संस्कार यज्ञ चला रहा है। pic.twitter.com/eJnAn7LgF9
— Narendra Modi (@narendramodi) February 21, 2025
नवी दिल्ली इथे आयोजित अखिल भारतीय मराठी साहित्य संमेलनात सहभागी होण्याचे भाग्य मला लाभले, ही माझ्यासाठी अभिमानाची बाब आहे. pic.twitter.com/RXk4M7UUbl
— Narendra Modi (@narendramodi) February 21, 2025
अखिल भारतीय मराठी साहित्य संमेलन देशाच्या 147 वर्षांच्या प्रवासाचे साक्षीदार आहे. मी देशातील तसेच जगभरातील सर्व मराठी प्रेमींचे या आयोजनानिमित्त अभिनंदन करतो. pic.twitter.com/Z9IkCZETli
— Narendra Modi (@narendramodi) February 21, 2025
मराठी एक परिपूर्ण भाषा आहे. यात भक्ती ही आहे, शक्ती ही आहे आणि युक्ती देखील आहे. pic.twitter.com/MOpBScphvq
— Narendra Modi (@narendramodi) February 21, 2025
मराठी भाषा आणि साहित्याने समाजाच्या शोषित-वंचित वर्गासाठी सामाजिक मुक्तीची दारे खुली करण्याचे अद्भुत कार्य केले आहे. pic.twitter.com/FoGtS6J1eu
— Narendra Modi (@narendramodi) February 21, 2025
भारतीय भाषांमध्ये कुठल्याही प्रकारची परस्परांप्रती शत्रुत्वाची भावना नाही. त्यांनी नेहमीच एकमेकांचा आदर केला आहे , एकमेकांना समृद्ध केले आहे. pic.twitter.com/RxfWP3pgcB
— Narendra Modi (@narendramodi) February 21, 2025
म्हणूनच आज आपण देशातील सर्व भाषांकडे मुख्य प्रवाहातील भाषा म्हणून पाहात आहोत pic.twitter.com/CFu5R8fliw
— Narendra Modi (@narendramodi) February 21, 2025