प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आज अपने पहले पॉडकास्ट में उद्यमी और निवेशक निखिल कामथ से विभिन्न विषयों पर बातचीत की। बचपन के बारे में पूछे जाने पर प्रधानमंत्री ने अपने शुरुआती जीवन के अनुभवों को साझा किया और उत्तर गुजरात के मेहसाणा जिले के छोटे से शहर वडनगर में अपनी जड़ों के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि गायकवाड़ राज्य का शहर, वडनगर शिक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के लिए जाना जाता था, जहाँ तालाब, डाकघर और पुस्तकालय जैसी आवश्यक सुविधाएं मौजूद थीं। प्रधानमंत्री ने गायकवाड़ राज्य प्राथमिक विद्यालय और भागवताचार्य नारायणाचार्य हाई स्कूल में बिताए अपने स्कूली दिनों को याद किया। उन्होंने एक दिलचस्प किस्सा साझा किया कि कैसे उन्होंने एक बार चीनी दूतावास को चीनी दार्शनिक जुआनज़ांग पर बनी एक फिल्म के बारे में लिखा था, जिन्होंने वडनगर में काफी समय बिताया था। उन्होंने 2014 के एक अनुभव का भी जिक्र किया, जब वे भारत के प्रधानमंत्री बने थे और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने गुजरात और वडनगर की यात्रा करने की इच्छा जताई थी। राष्ट्रपति ने ज़ुआनज़ांग और उनके दोनों गृहनगरों के बीच ऐतिहासिक संबंध का हवाला दिया था। उन्होंने कहा कि इस संबंध ने दोनों देशों के बीच साझा विरासत और मजबूत संबंधों को उजागर किया।
अपने छात्र जीवन का जिक्र करते हुए श्री मोदी ने खुद को एक औसत छात्र बताया, जिस पर किसी का विशेष ध्यान नहीं गया। उन्होंने अपने शिक्षक वेलजीभाई चौधरी का जिक्र किया, जिन्होंने उनमें बहुत संभावनाएं देखीं थीं और वे अक्सर उनके पिता से अपनी अपेक्षाएं जाहिर करते थे। वेलजीभाई ने कहा था कि मोदी चीजों को जल्दी समझ लेते हैं, लेकिन फिर अपनी ही दुनिया में खो जाते हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि उनके शिक्षक उनसे बहुत स्नेह करते थे, लेकिन उन्हें प्रतिस्पर्धा में कोई दिलचस्पी नहीं थी। वे ज्यादा मेहनत किये बिना परीक्षा पास करना पसंद करते थे और विभिन्न गतिविधियों में अधिक रुचि रखते थे। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि उनका स्वभाव नई चीजों को जल्दी से जल्दी सीखना और विभिन्न गतिविधियों में शामिल होना था।
प्रधानमंत्री ने अपनी अनूठी यात्रा के बारे में बताया, जब वे बहुत कम उम्र में घर छोड़कर चले गए थे तथा अपने परिवार और दोस्तों से संपर्क खो चुके थे। उन्होंने कहा कि जब वे मुख्यमंत्री बने, तो उनकी कुछ इच्छाएं थीं, जिनमें अपने पुराने सहपाठियों से फिर से मिलना भी एक था। उन्होंने सीएम हाउस में करीब 30-35 दोस्तों को आमंत्रित किया, लेकिन उन्हें लगा कि वे उन्हें अपने पुराने दोस्त के बजाय मुख्यमंत्री के रूप में देखते हैं। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि उनकी इच्छा अपने उन सभी शिक्षकों को सार्वजनिक रूप से सम्मानित करने की थी, जिन्होंने उनकी शिक्षा में योगदान दिया था। उन्होंने अपने सबसे बुजुर्ग शिक्षक रासबिहारी मनिहार, जो उस समय 93 वर्ष के थे, सहित लगभग 30-32 शिक्षकों को सम्मानित करने के लिए एक भव्य कार्यक्रम आयोजित किया। इस कार्यक्रम में राज्यपाल और गुजरात के अन्य प्रतिष्ठित व्यक्ति शामिल हुए। इसके अतिरिक्त, उन्होंने अपने विस्तारित परिवार को सीएम हाउस में आमंत्रित किया, ताकि वे फिर से जुड़ सकें और एक-दूसरे से परिचय प्राप्त कर सकें। उन्होंने उन परिवारों को भी आमंत्रित किया जिन्होंने आरएसएस में उनके शुरुआती दिनों के दौरान उन्हें भोजन कराया था। ये चार कार्यक्रम उनके जीवन के महत्वपूर्ण क्षण थे, जो उनकी कृतज्ञता और अपनी जड़ों से जुड़े रहने की इच्छा को दर्शाते हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि वे किसी मार्गदर्शक दर्शन का पालन नहीं करते थे और उच्च अंकों के लिए प्रयास किए बिना परीक्षा उत्तीर्ण करने से संतुष्ट रहते थे। प्रधानमंत्री ने विभिन्न गतिविधियों में सहज रूप से शामिल होने की अपनी प्रवृत्ति का उल्लेख किया, बिना अधिक तैयारी के नाटक जैसी प्रतियोगिताओं में भाग लिया। उन्होंने अपने शारीरिक प्रशिक्षण शिक्षक श्री परमार के बारे में एक किस्सा साझा किया, जिन्होंने उन्हें नियमित रूप से मलखंभ और कुश्ती का अभ्यास करने के लिए प्रेरित किया था। अपने प्रयासों के बावजूद, वे एक पेशेवर एथलीट नहीं बन पाए और अंततः उन्होंने ये गतिविधियां बंद कर दीं।
जब उनसे पूछा गया कि राजनीति में एक राजनेता की प्रतिभा क्या मानी जा सकती है, तो श्री मोदी ने जवाब दिया कि राजनेता बनना और राजनीति में सफल होना दो अलग-अलग चीजें हैं। उन्होंने टिप्पणी की कि राजनीति में सफलता के लिए लोगों के सुख-दुख के प्रति समर्पण, प्रतिबद्धता और सहानुभूति आवश्यक है। उन्होंने एक प्रभुत्वशाली नेता के बजाय एक अच्छा टीम सदस्य होने के महत्व पर प्रकाश डाला। प्रधानमंत्री ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन पर विचार करते हुए कहा कि कई व्यक्तियों ने राजनीति में प्रवेश किए बिना इस लक्ष्य में योगदान दिया। उन्होंने जोर दिया कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद के नेता, स्वतंत्रता संग्राम से उभरे थे, जिनमें समाज के प्रति समर्पण की गहरी भावना थी। श्री मोदी ने जोर देकर कहा कि “अच्छे लोगों को महत्वाकांक्षा के बजाय एक मिशन के साथ राजनीति में आते रहना चाहिए”। महात्मा गांधी का उदाहरण देते हुए श्री मोदी ने कहा कि गांधी का जीवन और उनके कार्य बहुत कुछ बताते थे, पूरे देश को प्रेरित करते थे। प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि प्रभावशाली संवाद वाक्पटु भाषणों से कहीं अधिक महत्वपूर्ण होता है। उन्होंने गांधी की अपने कार्यों और प्रतीकों के माध्यम से शक्तिशाली संदेश संप्रेषित करने की क्षमता पर प्रकाश डाला, जैसे अहिंसा का समर्थन करते हुए एक लंबा डंडा लेकर चलने से जुड़ा विरोधाभास। प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि राजनीति में सच्ची सफलता केवल पेशेवर कौशल या वाक्पटुता पर निर्भर रहने के बजाय, समर्पण और प्रभावी संवाद का जीवन जीने से मिलती है।
श्री मोदी ने एक लाख युवाओं को महत्वाकांक्षा के बजाय मिशन-आधारित दृष्टिकोण के साथ राजनीति में शामिल होने की आवश्यकता दोहराई। उन्होंने कहा कि उद्यमी जहां विकास पर ध्यान केंद्रित करते हैं, वहीं राजनीति में आत्मत्याग और राष्ट्र को पहले रखने की आवश्यकता होती है। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि समाज उन लोगों को स्वीकार करता है, जो राष्ट्र को प्राथमिकता देते हैं और राजनीतिक जीवन आसान नहीं है। उन्होंने कहा कि राजनीति में जीवन आसान नहीं है। प्रधानमंत्री ने अशोक भट्ट के बारे में एक किस्सा साझा किया, जो एक समर्पित कार्यकर्ता थे, जो कई बार मंत्री रहने के बावजूद एक साधारण जीवन जीते थे। उन्होंने कहा कि श्री भट्ट मदद के लिए हमेशा उपलब्ध रहते थे, यहां तक कि आधी रात को भी और व्यक्तिगत लाभ के बिना सेवा करने का जीवन जीते थे। उन्होंने कहा कि यह उदाहरण राजनीति में समर्पण और निस्वार्थ भावना के महत्व को रेखांकित करता है। प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि राजनीति केवल चुनाव लड़ने के बारे में नहीं है, बल्कि आम लोगों का दिल जीतने के लिए है, जिसके लिए लोगों के बीच रहना और उनके जीवन से जुड़ना जरूरी है।
जब श्री मोदी से पूछा गया कि परिस्थितियों ने किस तरह से जीवन को आकार दिया है, तो उन्होंने अपने चुनौतीपूर्ण बचपन को “विपत्तियों का विश्वविद्यालय” बताया और कहा, “मेरा जीवन मेरा सबसे बड़ा शिक्षक है।“ उन्होंने कहा कि अपने राज्य की महिलाओं के संघर्ष को देखकर, जो पानी लाने के लिए कई किलोमीटर पैदल चलती थीं, उन्हें स्वतंत्रता के बाद पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करने की अपनी प्रतिबद्धता से प्रेरणा मिली। प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि हालांकि वे योजनाओं का स्वामित्व नहीं लेते हैं, लेकिन वे राष्ट्र को लाभ पहुंचाने वाले सपनों को साकार करने के लिए खुद को समर्पित कर देते हैं। उन्होंने मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के मार्गदर्शक सिद्धांतों को साझा किया: अथक परिश्रम करना, व्यक्तिगत लाभ की इच्छा नहीं करना और जानबूझकर गलत काम करने से बचना। उन्होंने स्वीकार किया कि गलतियाँ मानवीय हैं, लेकिन उन्होंने अच्छे इरादों के साथ काम करने की अपनी प्रतिबद्धता पर जोर दिया। गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में अपने भाषण को याद करते हुए, श्री मोदी ने कहा कि वे कड़ी मेहनत से पीछे नहीं हटेंगे, वे अपने निजी स्वार्थ के लिए कुछ नहीं करेंगे और वे गलत नीयत से कोई गलती नहीं करेंगे। वे इन तीन नियमों को अपने जीवन का मंत्र मानते हैं।
आदर्शवाद और विचारधारा के महत्व के बारे में बात करते हुए, प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि “राष्ट्र प्रथम” ही हमेशा उनका मार्गदर्शक सिद्धांत रहा है। उन्होंने कहा कि यह विचारधारा पारंपरिक और वैचारिक सीमाओं से परे है, जिससे उन्हें नए विचारों को अपनाने और पुराने विचारों को त्यागने की अनुमति मिलती है, यदि वे राष्ट्र के हित में हों। उन्होंने कहा कि उनका अटल मानक “राष्ट्र प्रथम” है। प्रधानमंत्री ने प्रभावशाली राजनीति में विचारधारा की तुलना में आदर्शवाद के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि विचारधारा आवश्यक है, लेकिन सार्थक राजनीतिक प्रभाव के लिए आदर्शवाद महत्वपूर्ण है। उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन का उदाहरण दिया, जहां विभिन्न विचारधाराएं स्वतंत्रता के सामान्य लक्ष्य के लिए आपस में समाहित हो गयीं।
युवा राजनेताओं को सार्वजनिक जीवन में ट्रोल और अवांछित आलोचनाओं से कैसे निपटना चाहिए, इस बारे में पूछे जाने पर, श्री मोदी ने राजनीति में संवेदनशील व्यक्तियों की आवश्यकता पर जोर दिया, जिन्हें दूसरों की मदद करने से खुशी मिलती है। उन्होंने टिप्पणी की कि लोकतंत्र में, किसी को आरोप-प्रत्यारोप स्वीकार करना चाहिए, लेकिन अगर कोई सही है और उसने कुछ भी गलत नहीं किया है, तो चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है।
सोशल मीडिया से पहले और बाद की राजनीति और राजनेताओं पर इसके प्रभाव तथा युवा राजनेताओं को सोशल मीडिया का उपयोग करने की सलाह के विषय पर, प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने बच्चों के साथ अपनी बातचीत के बारे में एक मजेदार किस्सा साझा किया, जो अक्सर उनसे पूछते हैं कि टीवी पर आने और आलोचना होने के बारे में उन्हें कैसा लगता है। अपमान से अप्रभावित रहने वाले एक व्यक्ति की कहानी सुनाते हुए, उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि जब तक कोई सच्चा है और उसका विवेक साफ है, तब तक आलोचना से परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है, प्रधानमंत्री ने टिप्पणी की कि उन्होंने भी इसी तरह की मानसिकता अपनाई है, अपने कार्यों पर ध्यान केंद्रित किया है और सच्चाई पर कायम रहे हैं। सार्वजनिक जीवन में संवेदनशीलता की आवश्यकता पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि इसके बिना, कोई भी वास्तविक रूप में लोगों की सेवा नहीं कर सकता है। उन्होंने टिप्पणी की कि राजनीति और कार्यस्थलों सहित हर क्षेत्र में आलोचना और असहमति आम बात है, हमें उन्हें स्वीकार करना चाहिए और उनसे निपटना चाहिए। प्रधानमंत्री ने लोकतंत्र में सोशल मीडिया की परिवर्तनकारी शक्ति पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि पहले केवल कुछ ही स्रोत जानकारी प्रदान करते थे, लेकिन अब लोग विभिन्न चैनलों के माध्यम से आसानी से तथ्यों को सत्यापित कर सकते हैं। श्री मोदी ने कहा, “सोशल मीडिया लोकतंत्र के लिए एक महत्वपूर्ण साधन बन गया है, जो व्यक्तियों को सत्य तक पहुँचने और जानकारी को सत्यापित करने की सुविधा देता है।” उन्होंने कहा कि आज के युवा खासकर अंतरिक्ष अन्वेषण जैसे क्षेत्रों में, सोशल मीडिया पर सक्रिय रूप से जानकारी की पुष्टि कर रहे हैं। उन्होंने आगे कहा कि चंद्रयान की सफलता ने युवाओं में एक नई भावना जगाई है और वे गगनयान मिशन जैसे कार्यक्रमों पर उत्सुकता से नज़र रख रहे हैं। सोशल मीडिया की उपयोगिता के बारे में प्रधानमंत्री ने स्वीकार किया, “सोशल मीडिया नई पीढ़ी के लिए एक शक्तिशाली साधन है।” राजनीति में अपने शुरुआती दिनों को याद करते हुए, उन्होंने बताया कि सोशल मीडिया के आगमन से पहले भी आलोचना और निराधार आरोप आम थे। हालांकि, उन्होंने कहा कि आज विभिन्न प्लेटफ़ॉर्म की उपलब्धता सत्य की खोज और सत्यापन के लिए एक व्यापक कैनवास प्रदान करती है। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि सोशल मीडिया लोकतंत्र और युवाओं को सशक्त बना सकता है, जिससे यह समाज के लिए एक मूल्यवान संसाधन हो सकता है।
चिंता के मुद्दे पर चर्चा करते हुए, श्री मोदी ने यह बात साझा की कि हर कोई, जिसमें वह स्वयं भी शामिल हैं, इसका अनुभव करता है। चिंता का प्रबंधन हर व्यक्ति अलग-अलग तरीके से करता है और इसे संभालने के लिए प्रत्येक व्यक्ति की अपनी शैली और क्षमता होती है। प्रधानमंत्री ने 2002 के गुजरात चुनाव और गोधरा की घटना सहित व्यक्तिगत किस्से साझा किए, जिसमें बताया कि कैसे उन्होंने चुनौतीपूर्ण समय के दौरान अपनी भावनाओं और जिम्मेदारियों को संभाला। उन्होंने स्वाभाविक मानवीय प्रवृत्तियों से ऊपर रहने और अपने मिशन पर ध्यान केंद्रित करने के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने छात्रों को अनावश्यक दबाव का अनुभव किये बिना परीक्षा को अपनी नियमित गतिविधियों के हिस्से के रूप में लेने की सलाह दी। उन्होंने छात्रों को इसे अपने जीवन का एक नियमित हिस्सा मानने के लिए प्रोत्साहित किया।
सबसे खराब स्थिति के बारे में अधिक न सोचने के अपने दृष्टिकोण को साझा करते हुए, श्री मोदी ने कहा कि उन्होंने अपनी वर्तमान स्थिति तक पहुँचने के लिए कभी भी अपनी यात्रा की योजना नहीं बनाई और हमेशा अपनी जिम्मेदारियों को अच्छी तरह से पूरा करने पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि उन्होंने कभी भी सफलता या असफलता के विचारों को अपने दिमाग पर हावी नहीं होने दिया।
असफलताओं से सीखने की बात करते हुए, प्रधानमंत्री ने चंद्रयान-2 की विफलता पर प्रकाश डाला, जहाँ उन्होंने जिम्मेदारी ली और वैज्ञानिकों को आशावादी बने रहने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने राजनीति में जोखिम लेने, युवा नेताओं का समर्थन करने और उन्हें राष्ट्र के लिए काम करने के लिए प्रोत्साहित करने के महत्व पर बल दिया। उन्होंने टिप्पणी की कि राजनीति को प्रतिष्ठा देना और अच्छे लोगों को इसमें शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करना इसके शुद्धिकरण के लिए आवश्यक है। प्रधानमंत्री ने युवा नेताओं से अज्ञात के डर को दूर करने का आग्रह किया और इस बात पर जोर दिया कि भारत के भविष्य की सफलता उनके हाथों में है। उन्होंने उन्हें व्यक्तिगत लाभ के लिए नहीं, बल्कि देश के लिए काम करने और लोकतंत्र की गरिमा को बनाए रखने के लिए प्रोत्साहित किया।
राजनीति को “गंदी जगह” मानने की धारणा के बारे में पूछे जाने पर, श्री मोदी ने इस बात पर जोर दिया कि राजनीति केवल चुनाव और जीत या हार के बारे में नहीं है, बल्कि इसमें नीति-निर्माण और शासन भी शामिल है, जो महत्वपूर्ण बदलाव लाने का एक साधन है। परिस्थितियों को बदलने में अच्छी नीतियों और उनके क्रियान्वयन के महत्व पर प्रकाश डालते हुए, श्री मोदी ने प्रधानमंत्री जनमन योजना का उदाहरण दिया, जो राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के मार्गदर्शन में विकसित की गई एक योजना है, जिसका उद्देश्य सर्वाधिक वंचित आदिवासी समुदायों की सहायता करना है। उन्होंने कहा कि इस पहल से भले ही राजनीतिक लाभ न मिले, लेकिन इसका 250 स्थानों पर 25 लाख लोगों के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा है। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि राजनीति में सही समय पर सही निर्णय लेने से सकारात्मक बदलाव हो सकते हैं, जिससे संतुष्टि और तृप्ति की भावना पैदा होती है।
श्री मोदी ने असफलताओं के संबंध में अपने अनुभव साझा किए, उन्होंने बचपन में एक सैन्य स्कूल में शामिल होने की अपनी इच्छा को याद किया, जो वित्तीय बाधाओं के कारण पूरी नहीं हो पाई। उन्होंने एक संन्यासी जीवन जीने की अपनी आकांक्षा को भी साझा किया, जो रामकृष्ण मिशन में शामिल होने के उनके प्रयासों के बावजूद अधूरी रह गई। प्रधानमंत्री ने इस बात पर प्रकाश डाला कि असफलताएँ जीवन का एक हिस्सा हैं और व्यक्तिगत विकास में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं। उन्होंने आरएसएस में अपने समय की एक घटना साझा की, जहाँ उन्होंने गाड़ी चलाते समय की गई गलती से सीखा, असफलताओं से सीखने के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने टिप्पणी की कि वे हमेशा अपने आरामदायक क्षेत्र से बाहर रहे हैं, जिसने उनके व्यक्तित्व और जीवन के प्रति दृष्टिकोण को आकार दिया है। उनका मानना है कि प्रगति के लिए आरामदायक क्षेत्र से बचना आवश्यक है और सफलता प्राप्त करने के लिए जोखिम उठाना महत्वपूर्ण है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि आराम किसी के अंतिम लक्ष्य को प्राप्त करने में बाधा बन सकता है तथा विकास और प्रगति के लिए आरामदायक क्षेत्र से बाहर निकलना आवश्यक है।
अपनी जोखिम लेने की क्षमता और समय के साथ इसके विकास के बारे में चर्चा करते हुए, प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि जोखिम लेने की उनकी क्षमता बहुत अधिक है क्योंकि उन्होंने कभी भी व्यक्तिगत लाभ को प्राथमिकता नहीं दी और यह निडर रवैया उन्हें बिना किसी हिचकिचाहट के निर्णय लेने की सुविधा देता है। उन्होंने साझा किया कि वह खुद पर सोचने और खुद से जुड़ने के लिए दूरदराज के स्थानों पर अकेले समय बिताते थे, एक ऐसा अभ्यास, जिसकी उन्हें याद आती है। 1980 के दशक में रेगिस्तान में रहने से जुड़े एक ऐसे अनुभव का हवाला देते हुए, जहाँ उन्हें आध्यात्मिक जागृति का अनुभव हुआ, श्री मोदी ने कहा कि इसने उन्हें रण उत्सव की स्थापना करने के लिए प्रेरित किया, जो एक प्रमुख पर्यटन कार्यक्रम बन गया है, जिसने सर्वश्रेष्ठ पर्यटक गाँव के रूप में वैश्विक मान्यता प्राप्त की है। प्रधानमंत्री ने टिप्पणी की कि राजनीति और उद्यमिता दोनों में विकास और प्रगति के लिए आरामदायक क्षेत्र से बाहर निकलना आवश्यक है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि जोखिम उठाना और चुनौतियों का सीधे सामना करना बड़ी उपलब्धियों की ओर ले जाता है।
व्यक्तिगत संबंधों के बारे में, श्री मोदी ने माता-पिता को खोने से जुड़ी भावनाओं पर अपने विचार साझा किए। उन्होंने कहा कि कम उम्र में घर छोड़ने के कारण, उन्हें पारंपरिक लगाव का अनुभव नहीं हुआ, लेकिन उनकी माँ के 100वें जन्मदिन के दौरान, उन्होंने उन्हें बहुमूल्य सलाह दी: “बुद्धिमानी से काम करो, पवित्रता से जियो।” प्रधानमंत्री ने कहा कि उनकी माँ ने अशिक्षित होने के बावजूद गहन ज्ञान दिया। उन्होंने उनके साथ गहन बातचीत के छूटे हुए अवसरों पर विचार व्यक्त किया कि उनका स्वभाव हमेशा उन्हें अपना काम जारी रखने के लिए प्रोत्साहित करने पर केंद्रित था। प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि माता-पिता के चले जाने से मिश्रित भावनाएं आती हैं, लेकिन उनके द्वारा दी गई बुद्धिमत्ता और मूल्य स्थायी धरोहर बने रहते हैं।
राजनीति को “गंदी जगह” मानने की धारणा के बारे में श्री मोदी ने कहा कि राजनेताओं के काम ही इसकी छवि को खराब कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि राजनीति अभी भी आदर्शवादी व्यक्तियों के लिए एक जगह है, जो बदलाव लाना चाहते हैं। प्रधानमंत्री ने अपने बचपन का एक किस्सा साझा किया, जिसमें एक स्थानीय डॉक्टर ने न्यूनतम धन के साथ एक स्वतंत्र चुनाव अभियान चलाया, जिससे यह पता चलता है कि समाज सत्य और समर्पण की पहचान करता है और उसका समर्थन करता है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि राजनीति में धैर्य और प्रतिबद्धता आवश्यक है और इसे केवल चुनावों के चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए। उन्होंने सामुदायिक कार्य और नीति-निर्माण से जुड़ने के महत्व पर प्रकाश डाला, जो महत्वपूर्ण बदलाव ला सकते हैं। उन्होंने गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के उदाहरण साझा किए, जहां उन्होंने अधिकारियों को भूकंप पुनर्वास की दिशा में काम करने के लिए प्रेरित किया और पुराने नियमों को बदलकर प्रभावशाली निर्णय लिए। प्रधानमंत्री ने एक पहल के बारे में भी बात की, जहां उन्होंने नौकरशाहों को उन गांवों में फिर से जाने के लिए प्रोत्साहित किया, जहां से उन्होंने अपना करियर शुरू किया था, ताकि वे ग्रामीण जीवन की वास्तविकता से फिर से जुड़ सकें और अपने काम के प्रभाव को समझ सकें। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि शासन के प्रति उनके दृष्टिकोण में कठोर शब्दों या फटकार का सहारा लिए बिना अपनी टीम को प्रेरित करना और मार्गदर्शन देना शामिल है।
“न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन” की अवधारणा के बारे में पूछे जाने पर, प्रधानमंत्री ने इसे स्पष्ट करते हुए कहा कि इसका मतलब मंत्रियों या कर्मचारियों की संख्या कम करना नहीं है, बल्कि यह प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने और नौकरशाही के बोझ को कम करने पर केंद्रित है। प्रधानमंत्री ने इस बात पर प्रकाश डाला कि नागरिकों पर बोझ कम करने के लिए लगभग 40,000 अनुपालन समाप्त कर दिए गए हैं। उन्होंने उल्लेख किया कि लगभग 1,500 पुराने कानूनों को समाप्त कर दिया गया है और आपराधिक कानूनों में सुधार किया गया है। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि इसका लक्ष्य शासन को सरल बनाना और इसे अधिक कुशल बनाना है और ये प्रयास वर्तमान में सफलतापूर्वक कार्यान्वित किए जा रहे हैं।
इंडिया स्टैक पहल पर चर्चा करते हुए, श्री मोदी ने यूपीआई, ईकेवाईसी और आधार जैसी भारत की डिजिटल पहलों के परिवर्तनकारी प्रभाव पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि इन प्रौद्योगिकियों ने किसानों के खातों में सीधे धन अंतरण को सक्षम किया है, जिससे भ्रष्टाचार और धन की चोरी समाप्त हुई है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यूपीआई एक वैश्विक आश्चर्य बन गया है, जो आज की प्रौद्योगिकी-संचालित सदी में प्रौद्योगिकी को लोकतांत्रिक बनाने की भारत की क्षमता को प्रदर्शित करता है। प्रधानमंत्री ने ताइवान की अपनी यात्रा का एक किस्सा साझा किया, जहाँ वे उच्च योग्यता वाले नेताओं से प्रभावित हुए थे। उन्होंने भारतीय युवाओं से उत्कृष्टता का समान स्तर हासिल करने की इच्छा व्यक्त की। उन्होंने ताइवान के एक दुभाषिया के साथ हुई बातचीत का भी ज़िक्र किया, जिसकी भारत के बारे में पुरानी धारणाएँ थीं। प्रधानमंत्री ने मज़ाकिया अंदाज़ में समझाया कि जहां भारत के अतीत में सपेरों का बोलबाला था, वहीं आज का भारत तकनीक से सशक्त है, जहाँ हर बच्चा कंप्यूटर माउस का इस्तेमाल करने में माहिर है। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि भारत की ताकत अब इसकी तकनीकी उन्नति में निहित है और सरकार ने नवाचार का समर्थन करने के लिए अलग से कोष और आयोग बनाए हैं। उन्होंने युवाओं को जोखिम लेने के लिए प्रोत्साहित किया, उन्हें आश्वासन दिया कि अगर वे असफल होते हैं, तो भी उनका समर्थन किया जाएगा।
भारत के बारे में बेहतर वैश्विक धारणा पर चर्चा करते हुए, प्रधानमंत्री ने इस बात पर ज़ोर दिया कि यह केवल उनकी उपलब्धि नहीं है, बल्कि सभी भारतीयों का सामूहिक प्रयास है। उन्होंने कहा कि विदेश यात्रा करने वाला प्रत्येक भारतीय राष्ट्र के राजदूत के रूप में कार्य करता है तथा इसकी छवि में योगदान देता है। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि नीति आयोग का उद्देश्य दुनिया भर में भारतीय समुदाय से जुड़ना है, उनकी ताकत का लाभ उठाना है। उन्होंने मुख्यमंत्री बनने से पहले व्यापक यात्रा के अपने अनुभव साझा किए और बताया कि कैसे उन्होंने प्रवासी भारतीयों की क्षमता को पहचाना। उन्होंने कहा कि इस मान्यता ने भारत के लिए एक मजबूत वैश्विक छवि का निर्माण किया है। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि कम अपराध दर, उच्च शिक्षा स्तर और भारतीयों की कानून का पालन करने की प्रकृति ने सकारात्मक वैश्विक धारणा में योगदान दिया है। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि उद्यमी सामूहिक शक्तियों का लाभ उठाकर, सकारात्मक छवि बनाए रखकर तथा मजबूत नेटवर्क और संबंध बनाने पर ध्यान केंद्रित करके इस दृष्टिकोण से सीख सकते हैं।
श्री मोदी ने उद्यमिता और राजनीति दोनों में प्रतिस्पर्धा के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने 2005 का एक किस्सा साझा किया, जब अमेरिकी सरकार ने उन्हें वीजा देने से इनकार कर दिया था, जिसे उन्होंने एक निर्वाचित सरकार और राष्ट्र का अपमान माना। उन्होंने कहा कि उन्होंने एक ऐसे भविष्य की कल्पना की थी, जहाँ दुनिया भारतीय वीजा के लिए कतार में खड़ी होगी और आज, 2025 में, वह सपना एक वास्तविकता बन रहा है। प्रधानमंत्री ने कुवैत की अपनी हालिया यात्रा का एक उदाहरण साझा करते हुए भारतीय युवाओं और आम आदमी की आकांक्षाओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने एक मजदूर के साथ बातचीत को याद किया, जो अपने जिले में एक अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का सपना देखता था। प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि ऐसी आकांक्षाएँ भारत को 2047 तक एक विकसित राष्ट्र बनने की ओर ले जाएँगी। उन्होंने टिप्पणी की कि भारत के युवाओं की भावना और महत्वाकांक्षा देश की प्रगति की कुंजी है।
प्रधानमंत्री ने इस बात पर पर जोर दिया कि शांति का लगातार समर्थन करके भारत ने वैश्विक स्तर पर विश्वसनीयता और विश्वास अर्जित किया है। उन्होंने कहा कि भारत तटस्थ नहीं है, बल्कि शांति के पक्ष में दृढ़ता से खड़ा है और यह रुख रूस, यूक्रेन, ईरान, फिलिस्तीन और इजरायल सहित सभी संबंधित पक्षों को बताया गया है। उन्होंने संकट के समय भारत के सक्रिय प्रयासों पर प्रकाश डाला, जैसे भारतीय नागरिकों को और कोविड-19 महामारी के दौरान पड़ोसी देशों से लोगों को निकालना। प्रधानमंत्री ने कहा कि भारतीय वायु सेना के कर्मियों ने नागरिकों को वापस लाने के जोखिम भरे कार्य के लिए स्वेच्छा से काम किया, जो भारत की अपने लोगों के लिए प्रतिबद्धता को दर्शाता है। उन्होंने नेपाल भूकंप के दौरान की एक घटना को भी साझा किया, जहां नागरिकों को बचाने और वापस लाने के भारत के प्रयासों की एक डॉक्टर ने सराहना की, जिसने ऐसे जीवन रक्षक मिशनों में टैक्स के महत्व को महसूस किया। प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि वैश्विक स्तर पर नागरिकों की सेवा करने से अच्छाई और पारस्परिकता की भावना जागृत होती है। उन्होंने इस्लामिक देश अबू धाबी में मंदिर बनाने के लिए भूमि प्राप्त करने के सफल अनुरोध का भी उल्लेख किया, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के सम्मान और विश्वास को दर्शाता है। इस पहल ने लाखों भारतीयों को अपार खुशी दी है। प्रधानमंत्री ने आश्वस्त किया कि दुनिया भर में अपने नागरिकों के प्रति शांति और समर्थन के लिए भारत की प्रतिबद्धता अटूट है और वैश्विक मंच पर देश की विश्वसनीयता बढ़ती जा रही है।
भोजन संबंधी अपनी पसंद के बारे में अपने विचार साझा करते हुए श्री मोदी ने कहा कि वे भोजन के शौकीन नहीं हैं और उन्हें अलग-अलग देशों में जो भी परोसा जाता है, वह उन्हें पसंद आता है। उन्होंने बताया कि संगठन में काम करने के दौरान, वे अक्सर स्वर्गीय श्री अरुण जेटली पर निर्भर रहते थे, जो भारत भर के बेहतरीन रेस्तरां और व्यंजनों के बारे में अच्छी जानकारी रखते थे।
पिछले कुछ वर्षों में अपने पद में आए बदलाव की धारणा पर बात करते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि भले ही परिस्थितियां और भूमिकाएं बदल गई हों, लेकिन वे वही व्यक्ति हैं और उन्हें कोई फर्क महसूस नहीं होता है और वे कौन हैं, इसका सार नहीं बदला है। प्रधानमंत्री ने कहा कि पद और जिम्मेदारियों में बदलाव ने उनके मूल मूल्यों और सिद्धांतों को प्रभावित नहीं किया है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि वे अपनी स्थिति में आए बदलावों से अप्रभावित रहते हैं और जमीन से जुड़े रहते हैं तथा अपने काम के प्रति वही विनम्रता और समर्पण बनाए रखते हैं।
प्रधानमंत्री ने सार्वजनिक भाषण पर अपने विचार साझा करते हुए इस बात पर जोर दिया कि आत्म-अनुभव एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उन्होंने कहा कि जब लोग अपने अनुभवों के आधार पर बोलते हैं, तो उनके शब्द, भाव और कथन स्वाभाविक रूप से प्रभावशाली हो जाते हैं। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि गुजराती होने के बावजूद धाराप्रवाह हिंदी बोलने की उनकी क्षमता उनके शुरुआती जीवन के अनुभवों से आयी है, जैसे रेलवे स्टेशनों पर चाय बेचना और विभिन्न क्षेत्रों के लोगों से बातचीत करना। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि अपनी जमीन और जड़ों से जुड़े रहना प्रभावी संचार में मदद करता है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि अच्छे वक्तृत्व का सार दिल से बोलना और वास्तविक अनुभव साझा करना है।
श्री मोदी ने भारत में स्टार्टअप इकोसिस्टम के विकास पर प्रकाश डाला। भारत के युवाओं की शक्ति पर विश्वास व्यक्त करते हुए उन्होंने पहले स्टार्टअप सम्मेलन का एक किस्सा साझा किया, जहाँ कोलकाता की एक युवती ने स्टार्टअप को विफलता का मार्ग मानने की शुरुआती धारणा का वर्णन किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि आज स्टार्टअप ने प्रतिष्ठा और विश्वसनीयता हासिल कर ली है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारत में उद्यमशीलता की भावना बड़े सपनों और आकांक्षाओं से प्रेरित है और देश के युवा अब पारंपरिक नौकरियों की तलाश करने के बजाय अपना खुद का उद्यम शुरू करने के प्रति अधिक इच्छुक हैं।
सरकार के पहले, दूसरे और तीसरे कार्यकाल में अंतर के बारे में पूछे जाने पर, प्रधानमंत्री ने भारत के विकास के लिए अपने विकसित होते विज़न को साझा किया। उन्होंने कहा कि अपने पहले कार्यकाल के दौरान, वे और लोग एक-दूसरे को समझने की कोशिश कर रहे थे और वे दिल्ली को भी समझने की कोशिश कर रहे थे। अपने पहले और दूसरे कार्यकाल में, उन्होंने पिछली उपलब्धियों की तुलना करने और नए लक्ष्य निर्धारित करने पर ध्यान केंद्रित किया। हालाँकि, अपने तीसरे कार्यकाल में, उनका दृष्टिकोण काफी व्यापक हो गया है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि 2047 तक विकसित भारत के लिए एक स्पष्ट विज़न के साथ उनके सपनों और महत्वाकांक्षाओं का विस्यार हुआ है।
उन्होंने कहा टिप्पणी की कि उनके तीसरे कार्यकाल में उनका दृष्टिकोण काफी बदल गया है, उन्होंने 2047 तक विकसित भारत को प्राप्त करने पर अधिक ध्यान केंद्रित किया है। उन्होंने हर नागरिक को शौचालय, बिजली और नल से जल जैसी मूलभूत सुविधाओं की 100% डिलीवरी के महत्व पर जोर दिया और कहा कि ये अधिकार हैं, विशेषाधिकार नहीं। प्रधानमंत्री ने इस बात पर प्रकाश डाला कि सच्चा सामाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्षता यह सुनिश्चित करने में निहित है कि प्रत्येक भारतीय को बिना किसी भेदभाव के लाभ मिले। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि उनकी प्रेरक शक्ति “आकांक्षी भारत” है और उनका वर्तमान ध्यान भविष्य पर है, जिसका लक्ष्य 2047 तक महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल करना है। उन्होंने कहा कि उनका तीसरा कार्यकाल पिछले कार्यकाल से काफी अलग है, जिसमें महत्वाकांक्षा और दृढ़ संकल्प की भावना बढ़ी है।
प्रधानमंत्री ने अगली पीढ़ी के नेताओं को तैयार करने के महत्व पर जोर दिया और कहा कि गुजरात में अपने कार्यकाल के दौरान, उन्होंने अगले 20 वर्षों के लिए संभावित नेताओं को प्रशिक्षित करने पर ध्यान केंद्रित किया था। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि उनकी सफलता इस बात से मापी जायेगी कि वे अपनी टीम को भविष्य की चुनौतियों से निपटने के लिए कितनी अच्छी तरह तैयार कर रहे हैं। प्रधानमंत्री ने युवा प्रतिभाओं के पोषण और विकास के लिए अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की, ताकि भविष्य के लिए एक मजबूत और सक्षम नेतृत्व सुनिश्चित किया जा सके।
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने उम्मीदवार बनने और सफल राजनीतिज्ञ बनने की योग्यताओं के बीच अंतर पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि उम्मीदवार बनने के लिए प्राथमिक आवश्यकताएं न्यूनतम हैं, लेकिन सफल राजनीतिज्ञ बनने के लिए असाधारण गुणों की आवश्यकता होती है। प्रधानमंत्री ने इस बात पर प्रकाश डाला कि एक राजनीतिज्ञ लगातार जांच के दायरे में रहता है और एक भी चूक वर्षों की कड़ी मेहनत को बेकार कर सकती है। उन्होंने चौबीसों घंटे सजगता और समर्पण की आवश्यकता पर जोर दिया, ऐसे गुण जो विश्वविद्यालय के प्रमाणपत्रों से हासिल नहीं किए जा सकते। उन्होंने जोर देकर कहा कि सच्ची राजनीतिक सफलता के लिए अद्वितीय प्रतिबद्धता और ईमानदारी की आवश्यकता होती है।
बातचीत का समापन करते हुए, श्री मोदी ने देश के युवाओं और महिलाओं को संबोधित किया, राजनीति में नेतृत्व और भागीदारी के महत्व पर जोर दिया और युवा महिलाओं को स्थानीय शासन में 50% आरक्षण का लाभ उठाने तथा विधानसभाओं और संसद में प्रस्तावित 33% आरक्षण के साथ नेतृत्व की भूमिकाओं के लिए खुद को तैयार करने के लिए प्रोत्साहित किया। प्रधानमंत्री ने युवाओं से राजनीति को नकारात्मक रूप से न देखने और मिशन-आधारित दृष्टिकोण के साथ सार्वजनिक जीवन में शामिल होने का आग्रह किया। उन्होंने ऐसे नेताओं की आवश्यकता पर जोर दिया जो रचनात्मक हों, समाधान-उन्मुख हों और राष्ट्र की प्रगति के लिए समर्पित हों। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि आज के युवा 2047 तक महत्वपूर्ण पदों पर होंगे और देश को विकास की ओर ले जाएंगे। उन्होंने स्पष्ट किया कि युवाओं की भागीदारी के लिए उनका आह्वान किसी विशेष राजनीतिक दल तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका उद्देश्य सभी राजनीतिक दलों में नए दृष्टिकोण और ऊर्जा लाना है। उन्होंने देश के विकास को गति देने और भारत के उज्ज्वल भविष्य को सुनिश्चित करने में युवा नेताओं के महत्व पर बल दिया।
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— Narendra Modi (@narendramodi) January 10, 2025
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