महामहिम, प्रधानमंत्री ली सीन लूंग,
महामहिम, उपप्रधानमंत्री थरमन षनमुगरत्नम,
माननीय मंत्रियों,
प्रोफेसर टेन ताई योंग,
विशिष्ट अतिथिगणों,
सिंगापुर व्याख्यान देने के विशेषाधिकार और सम्मान के लिए धन्यवाद।
मैं इस बात को लेकर सचेत हूं कि मुझे उन नेताओं – पूर्व राष्ट्रपति श्री एपीजे अब्दुल कलाम, पूर्व प्रधानमंत्री श्री पी वी नरसिम्हा राव और पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी, के नक्शे कदम पर चलना है, जिन्होंने आधुनिक भारत और इस क्षेत्र के साथ हमारे संबंधों को आकार दिया।
प्रधानमंत्री महोदय, मैं यहां हमारे बीच आपकी उपस्थिति से सम्मानित महसूस कर रहा हूँ।
हम जी20 एवं आसियान और पूर्व एशिया शिखर सम्मेलनों के लिए पिछले कुछ हफ्तों से साथ रहे हैं।
यह बताता है कि दोनों देशों की नियति कितनी गहराई से जुड़ी हुई है।
आजादी के 50 साल पर मैं सिंगापुर के लोगों को 1.25 अरब दोस्तों और प्रशंसकों की ओर से शुभकामनाएं देता हूं।
मनुष्य और राष्ट्रों के जीवन में समय-समय पर मील के पत्थर का आना प्राकृतिक होता है।
लेकिन, कुछ ही देश उस गर्व और संतोष की भावना के साथ अपने अस्तित्व के पहले पचास साल का जश्न मना सकते हैं, सिंगापुर जिसके योग्य है।
मैं हमारे समय के सबसे बड़े नेताओं में से एक और आधुनिक सिंगापुर के वास्तुकार ली कुआन यू को श्रद्धांजलि देते हुए अपनी बात शुरू करने से बेहतर कुछ नहीं कर सकता।
उनके मिशन को अपने शब्दों में कहूं तो उन्होंने सिंगापुर को सफल देखने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया।
और यह उनका ही चितपरिचित फौलादी संकल्प था कि उन्होंने सिंगापुर को उसके स्वर्ण जयंती वर्ष के जरिए देखा।
उनका प्रभाव वैश्विक था। और उनके लिए भारत एक शुभचिंतक था, जो सच्ची दोस्ती की ईमानदारी के साथ बात करता है। उन्हें भारत में कइयों की तुलना में भारत की घरेलू क्षमता और विदेश में भूमिका पर भरोसा था।
मेरे लिए, वह एक व्यक्तिगत प्रेरणा थे। उनकी सिंगापुर की कहानी से मैंने कई बातें सीखीं।
सबसे प्रभावी और अभी तक का सबसे साधारण विचार यह है कि एक राष्ट्र के परिवर्तन की यात्रा खुद के रहने के तरीके में बदलाव से शुरू होती है। इसीलिए अपने शहर और आसपास के क्षेत्र को स्वच्छ रखना, आधुनिक ढांचा निर्मित करने की ही तरह महत्वपूर्ण है।
भारत में मेरे लिए भी स्वच्छ भारत अभियान महज पर्यावरण को स्वच्छ बनाने का कार्यक्रम नहीं है बल्कि यह हमारी सोच, जीवनशैली और कामकाज के तरीकों में परिवर्तन लाने के लिए है।
गुणवत्ता, दक्षता और उत्पादकता महज तकनीकी उपाय नहीं हैं, अलबत्ता यह मनःस्थिति और जीवन का एक तरीका भी हैं।
इसलिए, मार्च की मेरी सिंगापुर यात्रा और भारत में एक दिन के शोक के दौरान हम एक सच्चे दोस्त और एक बहुत ही खास रिश्ते का सम्मान देना चाहते थे।
सिंगापुर सपनों को वास्तविकता में बदलने वाला एक रूपक राष्ट्र बन गया है।
सिंगापुर हमें बहुत सी बातें सिखाता है।
उपलब्धियां प्राप्त करने के लिए किसी राष्ट्र का आकार कोई बाधा नहीं होता।
संसाधनों की कमी प्रेरणा, कल्पना एवं नवाचार के लिए कोई बाधा नहीं है।
जब एक राष्ट्र विविधता को गले लगाता है, तो वह एक साझे उद्देश्य के पीछे एकजुट हो सकता है।
और, अंतरराष्ट्रीय नेतृत्व विचारों की शक्ति से उभरता है, ना कि सिर्फ ताकत के रूढ़िवादी उपायों से।
सिंगापुर ने किसी देश के सिर्फ एक पीढ़ी के भीतर ही समृद्धि के उच्चतम स्तर में प्रवेश करने से ज्यादा हासिल किया है।
उसने इस क्षेत्र की प्रगति के लिए प्रेरित किया और अपने एकीकरण का नेतृत्व किया है।
और, उसके कारण दूसरों ने भी माना है कि प्रगति की संभावना हमारी पकड़ के भीतर ही है। यह एक अनदेखी और दूर से नजर आने वाली आशा नहीं है।
सिंगापुर की सफलता महज आंकड़ों की समग्रता और निवेश के आकार से नहीं है।
यह उससे है, जिसे मैं सफलता की कुंजी मानता हूं। यह मानव संसाधनों की गुणवत्ता, लोगों के विश्वास और एक राष्ट्र के संकल्प पर आधारित है।
गणमान्य सदस्यो एवं दोस्तो,
यह वही नजरिया है जिसके साथ हम भारत में परिवर्तन लाने का प्रयास कर रहे हैं।
हमारे प्रयासों का उद्देश्य जनता है और वही परिवर्तन के पीछे की शक्ति होगी।
मैं आंकड़ों से हमारे प्रयासों की सफलता को परखना नहीं चाहता लेकिन लोगों के चेहरे पर मुस्कान की सुर्ख चमक से इसे देखना चाहता हूं।
इसलिए, हमारी नीतियों का एक हिस्सा हमारे लोगों को सशक्त करने के लिए है।
दूसरा हिस्सा ऐसी परिस्थितियों का निर्माण करना है जिनमें उद्यम पनपे, अवसरों का विस्तार हो और हमारे लोगों की क्षमताएं उभरकर सामने आएं।
तभी तो हम, कौशल और शिक्षा के माध्यम से हमारे लोगों में निवेश कर रहे हैं। हमारा विशेष ध्यान बालिकाओं, वित्तीय समावेशन; स्थायी निवास; स्वच्छ नदियों और स्मार्ट शहरों पर है। हम चाहते हैं कि हमारे सभी नागरिकों की पानी एवं साफ-सफाई जैसी सभी बुनियादी जरूरतें पूरी हों।
हम एक ऐसे पर्यावरण का पोषण एवं रक्षा करेंगे जिसके तहत हर नागरिक आता हो और वह उसमें भागीदार हो। हम अवसरों को लेकर उनके भरोसे और अधिकारों को सुरक्षित रखेंगे।
और, हम कानूनों, नियमों, नीतियों, प्रक्रियाओं और संस्थाओं में सुधार से अवसरों का सृजन कर रहे हैं। हमारे शासन के अपने तरीकों और राज्य सरकारों के साथ काम करने के तरीकों में भी बदलाव आया है।
परिवर्तन के इस साझा सॉफ्टवेयर के साथ ही हम तरक्की के हार्डवेयर का भी निर्माण कर रहे हैं। इसमें अगली पीढ़ी का बुनियादी ढांचा, निर्माण क्षेत्र में बदलाव, कृषि सुधार, आसान व्यापार और स्मार्ट सेवाएं शामिल हैं।
यही वजह है कि हम एक ही समय में कई मोर्चों पर आगे बढ़ रहे हैं। हम एक व्यापक रणनीति को बनाने वाले संबंधों से परिचित हैं।
कुछ समय पहले मुझे पता चला कि सिंगापुर के लोगों को भारत के बारे में अच्छी खासी जानकारी है। ऐसा भारत के साथ-साथ यहां आने वाले लोगों की संख्या के कारण है।
किसी में मामले में, मेरे लिए, दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के प्रमुख के रूप में भारत के उद्भव से अधिक टिकाऊ यह है कि बदलाव का पहिया तेजी से घूमे, आत्मविश्वास बढ़े, संकल्प मजबूत हो और दिशा स्पष्ट हो।
सुदूरवर्ती गांव और सबसे अधिक दूर रहने वाला नागरिक राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की मुख्यधारा में शामिल होना चाहता है और यह विचार देश भर में फैल रहा है।
विशिष्ट अतिथिगणों,
भारत और सिंगापुर समय के कई चौराहे पर एक साथ खड़े रहे हैं।
हमारा रिश्ता इतिहास के पन्नों, संस्कृति के पद चिन्हों, रिश्तेदारी और पुराने वाणिज्यिक संबंधों से लिखा गया है।
हम स्वतंत्रता की भोर में मित्रवत साथ खड़े थे और हम साझा आशाओं की भागीदारी के लिए एक-दूसरे तक पहुंचे हैं।
सिंगापुर की सफलता भारतीयों की एक आकांक्षा बन गया और वहीं भारत अधिक शांतिपूर्ण, संतुलित और स्थिर दुनिया के लिए एक आशा बनकार उभरा।
जब भारत ने खुलापन दिखाना शुरू किया तो सिंगापुर भारत के आगे बढ़ने की प्रेरणा और पूर्व के लिए प्रवेश द्वार बन गया।
ससम्मान सेवामुक्त वरिष्ठ मंत्री गोह चोक तोंग से ज्यादा किसी ने इसके लिए मेहनत नहीं की और उनसे ज्यादा किसी को इसका श्रेय नहीं जाता। उन्होंने भारत को सिंगापुर और इस क्षेत्र से फिर से जोड़ा।
उन्होंने विशाल संभावनाओं के लिए मेरी भी आंखें खोली।
आज, सिंगापुर दुनिया में हमारे सबसे महत्वपूर्ण साझेदारों में से एक है। यह रिश्ता जितना व्यापक है, उतना ही सामरिक भी है।
हमारे रक्षा और सुरक्षा संबंध व्यापक हैं। यह साझा हितों और साझा दृष्टिकोण से प्रतीत होता है। सिंगापुर के साथ और भारत में नियमित रूप से अभ्यास होता है।
सिंगापुर दुनिया में भारत के लिए सबसे बड़ा निवेश स्रोत और गंतव्य है। यह दुनिया में भारत से सबसे ज्यादा जुड़ा राष्ट्र है। यह दक्षिण पूर्व एशिया में सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है और पर्यटकों एवं छात्रों के लिए एक लोकप्रिय गंतव्य है।
अब जब हम अपने सपनों के भारत का निर्माण कर रहे हैं, सिंगापुर पहले से ही इन कार्यों में प्रमुख भागीदार है – विश्वस्तरीय मानव संसाधन, स्मार्ट सिटी, स्वच्छ नदियों, स्वच्छ ऊर्जा अथवा अगली पीढ़ी का टिकाऊ बुनियादी ढांचा।
बेंगलुरू में पहली आईटी पार्क से शुरुआत के बाद अब इसमें भारतीय राज्य आंध्र प्रदेश की नवीनतम राजधानी अमरावती भी शामिल है।
हमारी अर्थव्यवस्थाओं के विकास से साथ ही हमारी साझेदारी का विस्तार होगा और व्यापार एवं निवेश के ढांचे में आगे सुधार देखने को मिलेगा।
लेकिन मैंने हमेशा सिंगापुर को उन्नत रूप में देखा है।
भोजन और पानी से लेकर स्वच्छ ऊर्जा और चिरस्थायी आवास जैसी 21वीं सदी की चुनौतियों से निपटने में सिंगापुर की सफलता ने मुझे उसके साथ साझेदारी करने को प्रेरित किया।
और सिंगापुर कई तरीकों से इस शताब्दी में हमारे क्षेत्र की प्रगति को प्रभावित करेगा।
माननीय प्रधानमंत्री और गणमान्य सदस्य,
यह क्षेत्र एशिया प्रशांत और हिंदमहासागर क्षेत्र का प्रमुख भाग है। हालांकि हमने इसे प्रभाषित करने के लिए चुना है। इसका परस्पर संबद्ध इतिहास और परस्परसंबद्ध नीयती को रेखांकित करने वाले विषय बिलकुल स्पष्ट हैं।
यह स्वतंत्रता और समृद्धि के विस्तार का क्षेत्र है। यह सबसे अधिक जनसंख्या वाले दो राष्ट्रों, इस दुनिया की कुछ सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं, और विश्व के सबसे प्रतिभाशाली और कड़ी मेहनत करने वाले लोगों का घर है।
एशिया का पुनः उत्थान होना हमारे युग की सबसे महान घटना है।
पिछली सदी के मध्य में छाए अंधेरे से जापान ने एशिया के उत्थान का नेतृत्व किया है। इसके बाद विकास की इस गति का दक्षिण-पूर्व एशिया, कोरिया और चीन की ओर विस्तार हुआ और अब भारत सतत एशियाई गतिशीलता और संमृद्धि को बनाए रखने की एक उज्ज्वल आशा का केंद्र बन गया है।
लेकिन यह अनेक अनसुलझे सवालों और अनुत्तरित विवादों, प्रतिस्पर्धी दावों और विवादित मानदंड़ों, सैन्य शक्ति के विस्तार और आतंकवाद की छाया को विस्तार देने वाले, समुद्रों में अनिश्चिताओं और साइबर स्पेस में जोखिम वाला क्षेत्र भी है।
यह क्षेत्र विशाल महासागर में एक द्वीप नहीं बल्कि यह दुनिया से गहराई से जुड़ा है और प्रभावित है।
हमारा क्षेत्र देश में और दो देशों के दर्मियान विषमताओं से भरा क्षेत्र है। जहां आवास, भोजन और पानी की चुनौतियां मौजूद हैं, जहां प्रकृति के हमारे उपहार और परंपराओं की दौलत त्वरित विकास के दबाव को अनुभव करती है और हमारी कृषि तथा द्वीप जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।
एशिया ने अपने इतिहास के विभिन्न बिंदुओं पर इनमें से कुछ को सहा है लेकिन ये चुनौतियां इससे पहले शायद की देखी गई हों। एशिया अभी भी एक शांतिपूर्ण, स्थिर और खुशहाल भविष्य के लिए अपने विविध परिवर्तनों के माध्यम से अपना रास्ता प्राप्त कर रहा है।
यह ऐसी यात्रा है जो सफल होनी चाहिए। भारत और सिंगापुर को इस अनुभव का लाभ उठाने के लिए मिल कर कार्य करना चाहिए। भारत का इतिहास एशिया से अलग नहीं किया जा सकता है। ऐसा अनेक बार हुआ है कि हम अंतर्मुखी हुए।
हम पुनः और अब हम एशिया के साथ फिर अधिक नजदीकी के कारण एकीकृत इतिहास की ओर लौट रहे हैं। हम प्राचीन संबंधों की स्वाभाविक प्रवृत्ति के साथ अपने प्राचीन समुद्री और जमीनी मार्गों की ओर लौट रहे हैं।
पिछले 18 महीनों के दौरान मेरी सरकार ने विश्व के अन्य भागों की अपेक्षा इस क्षेत्र के साथ अधिक कार्यक्रम बनाए हैं। प्राचीन प्रशांत द्वीपीय राष्ट्रों आस्ट्रेलिया और मंगोलिया के साथ नई शुरूआत की है लेकिन चीन, जापान, कोरिया और आसियान सदस्य देशों के साथ अधिक सघन संबंध स्थापित किए हैं। हमने अपना विजन, अपने विजन को उद्देश्य और उत्साह के साथ सामने रखा है।
भारत और चीन की साझी सीमा हैं और पांच हजार सालों से हमारे दर्मियान परस्पर संबंध कायम हैं। भिक्षुकों और व्यापारियों ने हमारे संबंधों को और पाला पोसा है और हमारे समाज को समृद्ध किया है।
यह इतिहास सातवीं सदी में ह्वेनसांग की यात्रा से प्रतिबिम्बित है और मुझे गुजरात में अपने जन्म स्थान से चीन में जियान तक इसे जोड़ने का गौरव प्राप्त हुआ है। जियान में ही चीन के राष्ट्रपति ने मई में मेरी अगवानी की थी।
हमने इतिहास को संस्कृत पाली और चीनी भाषा में लिखे धार्मिक ग्रन्थों, अतीत में लिखे गए पत्रों गर्मजोशी और सम्मान से हुए आदान-प्रदानों भारत की प्रसिद्ध तंचौई साड़ियों और संस्कृत भाषा में रेशम के नाम सीना पट्टा में देखा है।
आज हमारा मानवता में 2/5 योगदान है और दोनों ही देश विश्व की तेजी से बढ़ती हुई प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं वाले देश हैं। चीन का आर्थिक परिवर्तन हमारे लिए भी एक प्रेरणा स्रोत है।
चूंकि यह अपनी अर्थव्यवस्था को पुनर्संतुलित करती है और भारत में विकास की गति के लिए कदम उठाए गए हैं। इसलिए हम दोनों एक दूसरे की प्रगति को मजबूती प्रदान कर सकते हैं तथा अपने क्षेत्र में स्थिरता और समृद्धि को आगे बढ़ा सकते हैं।
इसके साथ-साथ हम अपनी व्यापार से लेकर जलवायु परिवर्तन तक की साझा वैश्विक चुनौतियों से निपटने में अधिक प्रभावी हो सकते हैं।
हमारे सीमा विवाद सहित कई अनसुलझे मुद्दे हैं। लेकिन हम सीमा क्षेत्रों को शांतिपूर्ण और स्थिर बनाए रखने में समर्थ रहे हैं। हम रणनीतिक संचार और समानता के विस्तारों को मजबूती प्रदान करने पर रजामंद हैं। हमने आतंकवाद सहित जैसी आम आम चुनौतियों से निपटते हुए आर्थिक अवसरों को भी साझा किया है।
भारत और चीन अपने हितों और जिम्मेदारियों के प्रति जागरूक दो स्वयं आश्वासित और विश्वसनीय देशों के रूप में अपने संबंधों की जटिलता से परे रचनात्मक कार्य करेंगे।
जिस प्रकार चीन के उत्थान ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्रेरित किया है। विश्व की वैश्विक विकास और क्षेत्रीय शांति तथा स्थिरता के लिए चीन की सहायता प्राप्त करना चाहता है।
भारत और जापान ने कुछ बाद में एक-दूसरे की खोज खबर ली। लेकिन मेरे दोस्त, प्रधानमंत्री अबे ने मुझे प्राचीन आध्यात्मिक संबंधों के प्रतीक क्योटो धार्मिक स्थलों के दर्शन कराए। 100 से अधिक वर्ष पहले स्वामी विवेकानंद जापान के तट पर पहुंचे थे और उन्होंने भारतीय युवाओं का जापान जाने के लिए आह्वान किया था। स्वतंत्र भारत ने उनकी सलाह को गंभीरता से लिया। ऐसी कई भागीदारियां हैं जिनको जापान के साथ हमारे संबंधों के रूप में काफी सद्भावना प्राप्त है।
किसी अन्य राष्ट्र ने भारत के आधुनिकीकरण और प्रगति के लिए इतना योगदान नहीं किया है जितना जापान ने। उदाहरण के लिए जापान ने कार, मैट्रो और औद्योगिक पार्कों के लिए काफी योगदान दिया है। कोई अन्य भागीदार भारत की प्रगति में इतनी बड़ी भूमिका नहीं निभा सकता है जितनी जापान ने निभाई है।
अब हम और अधिक एक जुट हुए हैं। हम इसे रणनीतिक भागीदारी के रूप में देखते हैं क्योंकि यह एशिया, प्रशांत और हिंद महासागर क्षेत्रों को शांतिपूर्ण और स्थिर सुनिश्चित करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
कोरिया और आस्ट्रेलिया के साथ हमारे संबंध मजबूत आर्थिक आधार के साथ शुरू हुए और जो बाद में रणनीतिक बन गए।
आसियान हमारी एक्ट ईस्ट पॉलिसी की धुरी है। हम भौगोलिक और एतिहासिक रूप से जुड़े हैं और अनेक आम चुनौतियों के खिलाफ एकजुट हैं तथा अनेक साझा उम्मीदों से बंधे हैं।
आसियान के प्रत्येक सदस्य के साथ हमने राजनीतिक, सुरक्षा, रक्षा और आर्थिक संबंधों को मजबूत बनाया है और क्योंकि आसियान समुदाय क्षेत्रीय एकीकरण के रास्ते पर एकता के मार्ग को प्रस्शत करता है इसलिए हम भारत और आसियान के मध्य अधिक गतिशील भागीदारी के लिए उत्सुक हैं जो हमारे 1.9 बिलियन लोगों के लिए समृद्ध क्षमता रखती है।
भारत के पास आर्थिक सहयोग का ढांचा है। हम क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था के साथ अधिक गहराई से एकीकृत होना चाहते हैं। हम अपनी भागीदारी के समझौतों को उन्नयन करेंगे और क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी अनुबंध के शीघ्र निष्कर्ष के लिए कार्य करेंगे।
हमारे समय के संक्रमण और प्रवाह में इस क्षेत्र की सबसे प्रमुख जरूरत ऐसे नियमों और मानदंडों को बनाए रखना है जो हमारे सामूहिक व्यवहार को परिभाषित करें। इसी कारण से हमें पूर्व एशिया शिखर सम्मेलन और अन्य मंचों में एक साथ आना चाहिए। ताकि हम एक सहकारी और सहयोगपूर्ण भविष्य का कुछ लोगों की ताकत के बल पर बल्कि सभी की सहमति से निर्माण कर सकें।
भारत यह सुनिश्चित करने के लिए की हमारे महासागर अंतरिक्ष और साइबर हमारी साझा समृद्धि के केंद्र बने रहें और प्रतियोगिता के नए रंगमंच न बने इस क्षेत्र के देशों और अमेरिका और रूस सहित अन्य देशों तथा पूर्व एशिया शिखर सम्मेलन के भागीदार के साथ कार्य करेगा।
भारत सभी के लाभ के लिए समुद्रों को सुरक्षित, सुनिश्चित और मुक्त रखने के लिए अपनी शक्ति भी उधार दे देगा।
यह आज का युग अंतर निर्भरता का है इसलिए इस शताब्दी के वादों को साकार करने के लिए राष्ट्रों को एक साथ आना चाहिए। हमें ऐसा इसलिए करना चाहिए क्योंकि हमारी बड़ी चुनौतियां एक-दूसरे से नहीं बल्कि हम सभी के लिए साझी हैं।
आतंकवाद एक ऐसी ही प्रमुख वैश्विक चुनौती है जो अलग- अलग समूहों की अपेक्षा से बड़ी ताकत है। इसकी काली छाया हमारे समाज और हमारे देशों पर आतंकवाद के लिए भर्ती करने और लक्ष्यों को चयन के रूप में पड़ रही है। आतंकवाद में न केवल जीवन नष्ट होते हैं बल्कि इससे अर्थव्यवस्था भी पटरी से उतर सकती है।
विश्व को इसके विरूद्ध एक स्वर में आवाज उठानी चाहिए और सामंजस्य से काम करना चाहिए। इसके लिए राजनीतिक कानूनी सैनिक या खुफिया प्रयास किये जा सकते हैं लेकिन हमें और अधिक प्रयास करने होंगे।
आतंकवाद के लिए अभ्यारण्य बनाने, उनकी मदद करने, हथियार और धन उपलब्ध कराने के लिए जिम्मेदार देशों को भी जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए। देशों को एकदूसरे के साथ सहयोग करना चाहिए। समाजों की अपने अंदर और उससे बाहर एक दूसरे तक पहुंच होनी चाहिए। हमें धर्म से आतंकवाद को अलग करना चाहिए और मानव मूल्यों पर जोर देना चाहिए जो हर धर्म को परिभाषित करें।
अब पेरिस सम्मेलन में कुछ ही दिन शेष हैं और हमें जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन के सिद्धांतों के अनुरूप ठोस परिणाम हासिल करने चाहिए। ऐसा करना विशेष रूप से हमारे क्षेत्र और छोटे द्वीप देशों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
मित्रों,
हमारा क्षेत्र विशाल वायदों का है लेकिन हम यह जानते हैं कि स्थायी शांति और समृद्धि अपरिहार्य नहीं है। इसलिए एशियाई सदी के अपने विजन को प्राप्त करने के लिए कड़ी मेहनत करनी चाहिए।
एशिया को अपनी प्राचीन संस्कृतियों और विश्व के सभी बड़े धर्मों का ज्ञान है। इसके पास युवाओं की ऊर्जा और अभियान भी है। एशिया के पहले नोबल पुरस्कार विजेता रविन्द्र नाथ टैगोर ने एक सदी पहले इस क्षेत्र की यात्रा के दौरान यह भविष्यवाणी की थी कि स्वयं की प्राप्ति के लिए एशिया आत्म चेतना फिर से हासिल कर रहा है।
यहां सिंगापुर में जहां क्षेत्र की धाराओं का विलय होता है इसके विविध मेल-मिलापों और विचारों का मिलन होता है और आकांक्षाओं को पंख लग जाते हैं। यहां मैं ऐसा अनुभव करता हूं कि हम पहले के मुकाबले इस विजन के बहुत नजदीक हो गए हैं।
भारत अपने बदलाव के लिए कार्य कर रहा है और विश्व में शांति और स्थिरता के लिए प्रयासरत है। इसलिए भारत की इस यात्रा में सिंगापुर एक प्रमुख भागीदार होगा।
धन्यवाद।
Just delivered the Singapore Lecture. You can view my speech. https://t.co/bDCMNK9Xx5
— Narendra Modi (@narendramodi) November 23, 2015
Mr. Lee Kuan
Yew remains a personal inspiration: PM @narendramodi at the Singapore Lecture https://t.co/l2Kpc0BjD1 @leehsienloong
— PMO India (@PMOIndia) November 23, 2015
Singapore teaches us many things: PM @narendramodi at the Singapore Lecture https://t.co/l2Kpc0BjD1
— PMO India (@PMOIndia) November 23, 2015
The size of a nation is no barrier to the scale of its achievements: PM @narendramodi
— PMO India (@PMOIndia) November 23, 2015
I do not judge the success of our efforts from the cold statistics of number, but from the warm glow of smile on human faces: PM
— PMO India (@PMOIndia) November 23, 2015
India and Singapore have been together at many crossroads of time: PM @narendramodi
— PMO India (@PMOIndia) November 23, 2015
This area covers the arc of Asia Pacific and Indian Ocean Regions: PM @narendramodi
— PMO India (@PMOIndia) November 23, 2015
This area covers the arc of Asia Pacific and Indian Ocean Regions: PM @narendramodi
— PMO India (@PMOIndia) November 23, 2015
India will lend its strength to keep the seas safe, secure and free for the benefit of all: PM @narendramodi
— PMO India (@PMOIndia) November 23, 2015
Terrorism does not just take a toll of lives, but can derail economies: PM @narendramodi at the Singapore Lecture
— PMO India (@PMOIndia) November 23, 2015