महामहिम राष्ट्रपति पार्क ग्यून ही,
महामहिम शिखा मोजाह,
महामहिम श्री बान की मून,
चोसून-इलबो के अध्यक्ष श्री बंग संग-हून,
राष्ट्रपति पार्क और शिखा मोजाह और बान की मून के साथ मंच साझा करना मेरे लिए एक बड़ा सम्मान है।
ये सभी एशिया के विख्यात नेता हैं। ये सभी एशिया की विविधता और उसकी समान भावना को दर्शाते हैं।
अपनी सरकार के पहले वर्ष में कोरिया गणराज्य का दौरा कर मैं प्रसन्न हूं।
कोरिया के ब्रांडों के भारतीय घरों में पहुंचने से पहले ही कोरिया के लोगों ने भारतीयों के दिलों में अपना स्थान बना लिया था।
लगभग 100 वर्ष पहले भारत के महान कवि रवीन्द्र नाथ टैगोर ने कोरिया को पूर्व का दीप कहा था। आज कोरिया उन्हें सही साबित कर रहा है।
कोरिया की चमत्कारिक आर्थिक वृद्धि और प्रौद्योगिकी में वैश्विक नेतृत्व से एशिया की सदी के दावे को और अधिक बल मिला है।
कोरिया एशिया और प्रशांत क्षेत्र में लोकतंत्र और स्थायित्व के लिए स्तंभ है।
एशिया का पुनरुत्थान हमारे दौर की सबसे बड़ी घटना है।
इसकी शुरुआत जापान से हुई और इसके बाद यह चीन, कोरिया एवं दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में पहुंचा।
पश्चिम में कतर जैसे देश अपने रेगिस्तान जैसे परिदृश्य को प्रगति की अर्थव्यवस्था में बदल रहे हैं।
एशिया की प्रगति को जारी रखने की बारी अब भारत की है।
125 करोड़ आबादी का यह देश 80 करोड़ युवाओं के रूप में असाधारण संसाधनों का धनी है।
भारत की संभावनाओं पर कोई संदेह नहीं है और पिछले एक वर्ष से हम वादों को वास्तविकता और आशा को विश्वास में बदल रहे हैं।
भारत में वृद्धि दर प्रति वर्ष 7.5 प्रतिशत रही है तथा इसके और अधिक मजबूत होने की आशा है।
विश्व एक आवाज में यह कह रहा है कि विश्व और हमारे क्षेत्र के लिए भारत आशा की नई किरण है।
दुनिया की आबादी के छठे हिस्से की प्रगति विश्व के लिए एक अवसर होगी।
यह भारत को दुनिया के लिए और अधिक करने की क्षमता भी देगा।
इन सबसे ऊपर भारत की प्रगति एशिया की सफलता की कहानी होगी और यह एशिया के हमारे सपनों को सच करने में मददगार साबित होगी।
जब एशिया के सभी देश प्रगति करेंगे तब एशिया को अधिक सफलता मिलेगी।
एशिया के दो चेहरे नहीं होने चाहिए- एक आशा और समृद्धि का तथा दूसरा कष्ट और हताशा का।
यह विकास और अवनति के देशों का महाद्वीप नहीं होना चाहिए जहां एक ओर स्थायित्व है और दूसरी ओर बिखरे हुए संस्थान हैं।
भारत साझा समृद्धि वाले एशिया की आशा करता है जहां एक देश की सफलता दूसरे देश की मजबूती बने।
वृद्धि देश के अंदर और देशों के बीच समेकित होनी चाहिए। यह राष्ट्रीय सरकार का दायित्व होने के साथ एक क्षेत्रीय जिम्मेदारी भी है।
इसलिए भारत के भविष्य का जो सपना मैं देखता हूं वही अपने पड़ोसियों के लिए भी चाहता हूं।
एशिया में कुछ देश अधिक समृद्ध हैं। हमें अपने संसाधनों और बाजारों को ऐसे देशों के साथ साझा करने के लिए तैयार होना चाहिए जिनकी उन्हें आवश्यकता है।
मुझे इस बात की प्रसन्नता है कि एशिया में कई देशों ने यह जिम्मेदारी उठाई है।
यह वह सिद्धांत है जो भारत की नीतियों को दिशा प्रदान करता है और यह संपूर्ण विश्व को एक परिवार ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ के रूप में देखने की नैतिकता से आता है।
हमें अपने युवाओं को कौशल और शिक्षा से सशक्त करना होगा ताकि वे अपने भविष्य की ओर आशा से देख सकें।
अगले 40 वर्षों में एशिया के तीन अरब निवासी समृद्धि के अगले स्तर पर पहुंचेंगे। एशिया की समृद्धि और बढ़ती हुई जनसंख्या से हमारे सीमित संसाधनों की मांग बढ़ेगी।
इसलिए हमारी आर्थिक वृद्धि के साथ प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कम होना चाहिए। मैं इसलिए जीवन शैली और समृद्धि के मार्गों में बदलाव की बात करता हूं और मुझे विश्वास है कि यह हमारे भविष्य से समझौता किए बिना संभव है।
एशिया को नये उत्पादों के लिए अपनी क्षमता और मित्तव्ययी निर्माण का इस्तेमाल वहनीय नवीकरणीय ऊर्जा के लिए करना चाहिए।
प्रकृति के प्रति सम्मान हमारी साझा विरासत का अंग है। जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निपटना हमारे स्वयं के सरोकारों के लिए आवश्यक है।
इसलिए भारत ने अगले पांच वर्षों में 175 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन की क्षमता का लक्ष्य निर्धारित किया है। लेकिन कोयला और तेल लम्बे समय तक हमारी ऊर्जा के प्रमुख संसाधन बने रहेंगे। इसलिए उन्हें और अधिक स्वच्छ तथा पर्यावरण के लिए कम नुकसानदेह बनाने के लिए मिलकर काम करें।
समेकित वृद्धि के प्रति हमारी नीति तब तक अधूरी है जब तक कि हम अपने क्षेत्र में कृषि में बदलाव के लिए अपने नवाचार और प्रौद्योगिकी को साझा नहीं करते।
हम में से कइयों का समान पारिस्थितिक तंत्र और ग्रामीण अर्थव्यवस्था है और एक दूसरे से सीखने का हमारा लम्बा इतिहास रहा है।
वर्ष तक एशिया के अधिकतर निवासी शहरों में रह रहे होंगे। एशिया के शहरी क्षेत्रों की आबादी दुनिया के अन्य क्षेत्रों में मध्यम क्षेत्रफल के देशों से अधिक होगी। कुछ अनुमानों के अनुसार भारत में उस समय विश्व की प्रतिशत शहरी जनसंख्या निवास कर रही होगी।
इसलिए रहने योग्य और भविष्य के लिए दीर्घकालिक शहरों का सृजन करना हम सबका सामूहिक लक्ष्य होना चाहिए।
इसलिए हमने भारत में शहरों के नवीकरण और स्मार्ट शहर बनाने पर अधिक ध्यान दिया है और हम इस बारे में सियोल जैसे शहरों से बहुत कुछ सीख सकते हैं।
अगर एशिया समान रूप से प्रगति करेगा तो वह क्षेत्रीय भागों के बारे में नहीं सोचेगा। आज पश्चिम एशिया में होने वाली किसी भी घटना का पूर्वी एशिया में मजबूत प्रभाव पड़ता है और समुद्री क्षेत्र में होने वाली किसी भी घटना का पर्वतीय क्षेत्रों में असर पड़ता है।
भारत एशिया के मध्य में है और हम एक-दूसरे से जुड़े एशिया के निर्माण की जिम्मेदारी स्वीकार करेंगे।
हमें अपने क्षेत्रों को आधारभूत ढांचे से जोड़ना होगा और उनका एकीकरण व्यापार तथा निवेश के जरिये करना होगा।
हमें एशिया में चिर शांति और स्थायित्व सुनिश्चित करने के लिए हर संभव प्रयास करने होंगे।
इस वर्ष दो युद्धों की वीं और वीं बरसी पर हमें यह स्मरण करना चाहिए कि शांति अवश्यंभावी नहीं है।
हमें ऐसे संस्थानों का निर्माण करना चाहिए जो समानता सह अस्तित्व और अंतरराष्ट्रीय नियमों और मानकों को बढ़ावा देते हैं।
इसका अर्थ यह भी है कि हमें अपने समुद्रों बाहरी अंतरिक्ष और साइबर स्पेस को सुरक्षित रखने और सभी को लाभ पहुंचाने के लिए मिलकर कार्य करना चाहिए।
यह हर देश की एक-दूसरे के प्रति जिम्मेदारी भी है।
यह हम सबका एक जैसी चुनौतियों आतंकवाद अंतरदेशीय अपराधों प्राकृतिक आपदाओं और रोगों से निपटने में सामूहिक कर्तव्य भी है।
जोश से भरे एशिया में अनिश्चितताएं भी हैं लेकिन इसकी दिशा तय करने में एशिया को नेतृत्व के लिए पहल करनी होगी।
लेकिन एशिया के तेजी से बढ़ते प्रभाव के कारण इसे दुनिया में अधिक जिम्मेदारी भी उठानी होगी और इसे अंतरराष्ट्रीय मुद्दों में बड़ी भूमिका निभानी चाहिए।
हमें शासन प्रणाली के अंतरराष्ट्रीय संस्थानों जैसे संयुक्त राष्ट्र और इसकी सुरक्षा परिषद में सुधार के लिए एकजुट होकर कार्य करना होगा।
प्रतिद्वंद्विता का एशिया हमें आगे बढ़ने से रोकेगा जबकि एशिया की एकता विश्व की शक्ल निर्धारित करेगी।
अंत में मैं यह कहना चाहता हूं- इतिहास में एशिया धर्म संस्कृति ज्ञान और व्यापार के प्रवाह से जुड़ा रहा है।
और एशिया ने दुनिया को महान धर्म चाय और चावल बेहतरीन मानव सृजन और सबसे महत्वपूर्ण आविष्कार और प्रौद्योगिकी प्रदान की है।
हम दुखद संघर्षों और उपनिवेशवाद की लम्बी छाया से बाहर निकले हैं।
हमने एशिया की शक्ति और जोश देखा है।
आइए मिलकर हमारी विरासत और सहक्रियता हमारी प्राचीन बुद्धिमता और युवा ऊर्जा का उपयोग अपने और विश्व के लिए समान उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए करें।
धन्यवाद।
आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद।
It is a great honour to share the stage with President Park and Sheikha Mozah: PM @narendramodi https://t.co/6i1JXHSDtP
— PMO India (@PMOIndia) May 19, 2015
Korea’s economic miracle and global leadership in technology has made the promise of the Asian Century more real: PM @narendramodi
— PMO India (@PMOIndia) May 19, 2015
Growth must be more inclusive within & across nations. This is the obligation of national governments but also a regional responsibility: PM
— PMO India (@PMOIndia) May 19, 2015
As some of us in Asia become more prosperous we must be prepared to share our resources and markets with those who need them: PM
— PMO India (@PMOIndia) May 19, 2015
Reverence for nature is part of our shared heritage. Combating climate change is in our enlightened self interest: PM @narendramodi
— PMO India (@PMOIndia) May 19, 2015
If Asia must rise as one, Asia should no longer think of itself in regional fragments: PM @narendramodi
— PMO India (@PMOIndia) May 19, 2015
India is located at Asia’s crossroads. And, we will assume our responsibility to build an inter-connected Asia: PM @narendramodi
— PMO India (@PMOIndia) May 19, 2015
Let us now draw upon our heritage and synergies our ancient wisdom and youthful energy to pursue a common purpose: PM @narendramodi
— PMO India (@PMOIndia) May 19, 2015