पेट्रोलियम और हाइड्रोकार्बन क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए एक प्रमुख नीतिगत कार्यक्रम में सरकार ने पहलों की एक श्रृंखला का अनावरण किया है। केंद्रीय मंत्रिमंडल और आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति की बैठक में आज निम्नलिखित निर्णय लिए गए-
· हाइड्रोकार्बन उत्खनन एवं लाइसेंसिंग नीति (हेल्प) को कैबिनेट की स्वीकृति।
· उच्च दबाब-उच्च तापमान, गहरे पानी तथा बेहद गहरे पानी क्षेत्रों में खोजों से उत्पादित गैस के लिए मूल्य निर्धारण स्वतंत्रता समेत विपणन पर फैसला।
· सरकार द्वारा निजी संयुक्त उद्यमों को दिए गए छोटे-मझोले आकार के तेल क्षेत्रों एवं खोजे गए तेल क्षेत्रों के उत्पा दन साझा अनुबंधों के विस्तार की नीति मंजूर।
· रत्न एवं आर-सीरिज फील्ड्स का अनुबंध।
हाइड्रोकार्बन उत्खनन एवं लाइसेंसिंग नीति (हेल्प) को कैबिनेट की स्वीकृति
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल (कैबिनेट) ने हाइड्रोकार्बन उत्खनन एवं लाइसेंसिंग नीति (हेल्प) को अपनी मंजूरी दे दी है।
इस नीति की मुख्य बातें निम्नलिखित हैं:
I. हाइड्रोकार्बन के सभी स्वरूपों के उत्खनन एवं उत्पादन के लिए एकसमान लाइसेंस
II. खुली रकबा नीति
III.राजस्व भागीदारी वाले मॉडल के संचालन में आसानी
IV. उत्पादित कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस के लिए विपणन व मूल्य निर्धारण संबंधी आजादी उपर्युक्त निर्णय से तेल एवं गैस का घरेलू उत्पादन बढ़ेगा, इस क्षेत्र में व्यापक निवेश आएगा और बड़ी संख्या में रोजगार अवसर सृजित होंगे। इस नीति का उद्देश्य पारदर्शिता बढ़ाना और प्रशासकीय विवेकाधिकार में कमी लाना भी है।
एकसमान लाइसेंस से ठेकेदार के लिए एकल लाइसेंस के तहत परंपरागत के साथ-साथ गैर परंपरागत तेल एवं गैस संसाधनों का भी उत्खनन करना संभव हो जाएगा, जिनमें सीबीएम, शेल गैस/तेल, टाइट गैस और गैस हाइड्रेट्स भी शामिल हैं। खुली रकबा नीति की अवधारणा से ईएंडपी कंपनियों के लिए नामित क्षेत्र से ब्लॉकों का चयन करना संभव हो जाएगा।
निवेश गुणज और लागत वसूली/उत्पादन संबंधी भुगतान पर आधारित उत्पादन हिस्सेदारी वाली मौजूदा राजकोषीय प्रणाली का स्थान राजस्व हिस्सेदारी वाला ऐसा मॉडल लेगा, जिसका संचालन करना आसान होगा। पूर्ववर्ती अनुबंध मुनाफे में हिस्सेदारी वाली अवधारणा पर आधारित थे, जिसके तहत लागत की वसूली के बाद सरकार और ठेकेदार के बीच मुनाफे की हिस्सेदारी तय की जाती है। मुनाफा हिस्सेदारी वाली विधि के तहत सरकार के लिए निजी सहभागियों के लागत संबंधी ब्यौरे की जांच करना आवश्यक हो गया था, जिससे काफी देरी होने लगी और अनेक विवाद भी उभर कर सामने आए। नई व्यवस्था के तहत सरकार का इससे कोई वास्ता नहीं रहेगा कि कितनी लागत आई है। इतना ही नहीं, सरकार को तेल, गैस इत्यादि की बिक्री से प्राप्त सकल राजस्व का एक हिस्सा प्राप्त होगा। यह ‘कारोबार में सुगमता लाने’ की सरकारी नीति के अनुरूप है।
अपतटीय क्षेत्रों में उत्खनन एवं उत्पादन में निहित बेहद जोखिम और लागत को ध्यान में रखते हुए एनईएलपी से जुड़ी रॉयल्टी दरों की तुलना में इन क्षेत्रों के लिए अपेक्षाकृत कम रॉयल्टी दरें तय की गई हैं, ताकि उत्खनन एवं उत्पादन को बढ़ावा दिया जा सके। रॉयल्टी दरों की एक वर्गीकृत प्रणाली शुरू की गई है, जिसके तहत रॉयल्टी दरें उथले पानी में उत्खनन के लिए ज्यादा तय की गई हैं, जबकि गहरे पानी एवं अत्यंत गहरे पानी में उत्खनन के लिए अपेक्षकृत कम तय की गई हैं। इसके साथ ही अंदरूनी (ऑनलैंड) क्षेत्रों के लिए रॉयल्टी दर को अपरिवर्तित रखा गया है, ताकि राज्य सरकारों को मिलने वाला राजस्व प्रभावित न हो। एनईएलपी की तर्ज पर ही नई नीति के तहत भी अनुबंध पर दिए जाने वाले ब्लॉकों पर उपकर और आयात शुल्क नहीं लगाए जाएंगे। इन ब्लॉकों में उत्पादित होने वाले कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस के लिए विपणन संबंधी आजादी भी इस नीति में दी गई है। यह ‘न्यूनतम सरकार- अधिकतम शासन’ से जुड़ी सरकारी नीति के ही अनुरूप है।
उच्च दबाब-उच्च तापमान, गहरे पानी तथा बेहद गहरे पानी क्षेत्रों में खोजों से उत्पादित गैस के लिए मूल्य निर्धारण स्वतंत्रता समेत विपणन पर फैसला
आर्थिक मामलों पर केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आज उच्च दबाब-उच्च तापमान, गहरे पानी तथा बेहद गहरे पानी क्षेत्रों में खोजों से उत्पादित गैस के लिए मूल्य निर्धारण स्वतंत्रता समेत विपणन मंजूर करने के एक प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। मंजूरी दी गई विपणन स्वतंत्रता पर एक अधिकतम मूल्य सीमा लगाई जाएगी जिस पर फैसला वैकल्पिक ईधनों के आयातित समेत कुल मूल्य के आधार पर किया जाएगा।
नीति दिशा-निर्देश भविष्य की खोजों के साथ-साथ वर्तमान खोजों पर भी लागू होंगे जिनका व्यावसायिक उत्पादन 01-01-2016 तक प्रारंभ नहीं हो सका है। बहरहाल, ऐसी वर्तमान खोजों, जिनका व्यावसायिक उत्पादन 01-01-2016 तक प्रारंभ नहीं हो सका है, से संबंधित गैस मूल्य निर्धारण से प्रत्यक्ष रूप से जुड़े ठेकेदारों द्वारा दायर किया गया कोई मुकदमा लंबित है तो यह नीति दिशा-निर्देश ऐसे मुकदमों के समापन/ वापस लिये जाने तथा कानूनी प्रक्रियाओं की समाप्ति के बाद ही लागू होंगे। वर्तमान में उत्पादन के तहत सभी गैस क्षेत्र उसी मूल्य निर्धारण व्यवस्था से शासित होंगे जो वर्तमान में उन पर लागू हैं।
इस फैसले से ऐसे क्षेत्रों में पहले ही खोजे जा चुके तेल क्षेत्रों की व्यवहार्यता के बेहतर होने की उम्मीद है तथा साथ ही ये भविष्य की खोजों के मुद्रीकरण में भी सहायक होंगे। इससे ठेकेदारों द्वारा इस क्षेत्र में उल्लेखनीय मात्रा में निवेश किये जाने की उम्मीद है। इन खोजों के विकास चरण के दौरान भारी संख्या में रोजगार सृजन होगा और उसका कुछ हिस्सा उत्पादन के दौरान भी जारी रहेगा।
सरकार द्वारा निजी संयुक्त उद्यमों को दिए गए छोटे-मझोले आकार के तेल क्षेत्रों एवं खोजे गए तेल क्षेत्रों के उत्पा दन साझा अनुबंधों के विस्तार की नीति मंजूर
आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति (सीसीईए) ने छोटे एवं मझोले आकार के खोजे गए तेल क्षेत्रों से संबंधित उत्पादन हिस्सेदारी अनुबंधों (पीएससी) के विस्तारीकरण की नीति को अपनी मंजूरी दे दी है। इस विस्तारीकरण नीति का संबंध 28 क्षेत्रों (फील्ड) से है। इनमें से 27 क्षेत्रों (छोटे एवं मझोले आकार के क्षेत्र) के अनुबंध वर्ष 1991 से वर्ष 1993 के बीच बोलियों के दो दौर के अंतर्गत दिए गए थे, जबकि एक क्षेत्र (पीवाई-3) के लिए बोली खोजे गए क्षेत्र के रूप में अलग से लगाई गई थी। इनमें से ज्यादातर क्षेत्रों में प्राप्य भंडार के संबंधित पीएससी की शेष अनुबंधित अवधि के अंदर हासिल होने की संभावना नहीं है। यही नहीं, उन विशेष क्षेत्रों में पूंजी प्रेरित बढ़ाई गई तेल रिकवरी/ बेहतर तेल रिकवरी (ईओआर/आईओआर) परियोजनाओं के माध्यम से हाइड्रोकार्बन की अतिरिक्त खोज की जा सकती है। मुनाफे की अवधि अनुबंध की चालू अवधि से अधिक होगी।
अनुबंध की विस्तारित अवधि में छोटे तथा मझोले तेल क्षेत्रों के लिए लाभ में सरकार का हिस्सा 10 प्रतिशत अधिक होगा। यह वृद्धि विस्तारित अवधि के दौरान किसी वर्ष में सामान्य अनुबंध प्रावधानों के इस्तेमाल से की गई गणना से अधिक है। अनुबंध की विस्तारित अवधि में उस समय की रॉयल्टी तथा उप-कर दरों पर भुगतान किया जाएगा। सभी अनुबंधकों को अपने हिस्से के अनुसार रॉयल्टी और उप-कर देने होंगे। इससे इन ब्लॉकों में वर्तमान रियायती व्यवस्था की तुलना में अतिरिक्त रॉयल्टी तथा उप-कर से सरकारी राजस्व में 2890 करोड़ रुपये आएंगे।
वित्तीय शर्तों के अतिरिक्त नीति में विस्तार मंजूरी के लिए पूर्व आवश्यकता संबंधी विस्तृत दिशा-निर्देश,अनुरोध मूल्यांकन का निर्धारण, अनुरोध पर विचार करने की समय-सीमा, विस्तार की अवधि, पंचाट का स्थान आदि के बारे में व्यापक दिशा-निर्देश दिए गए हैं।
उत्पादन वृद्धि
पीएससी विस्तार की नीति से हाइड्रोकार्बन का उत्पादन अधिक होगा। विस्तारित अवधि के दौरान मुद्रीकृत होने वाला भंडार 15.7एनएमटी तेल का तथा 20.6 एनएमटी गैस के बराबर तेल का है। इस क्षेत्र से जुड़े भंडारों से 8.25 बिलियन डॉलर (लगभग 53 हजार करोड़ रुपये) का मुद्रीकरण होगा। इन भंडारों के मुद्रीकरण के लिए 3 से 4 बिलियन डॉलर के निवेश की आवश्यकता होगी।
रोजगार सृजन क्षमता
· इन अनुबंधों के विस्तार से तेल क्षेत्र में अतिरिक्त निवेश आएगा और इससे प्रत्यक्ष (क्षेत्र संचालन संबंधी) तथा अप्रत्यक्ष (इन क्षेत्रों से जुड़े सेवा उद्योग) रोजगार सृजन होगा।
· अनुबंधों का विस्तार इस बात को ध्यान में रखते हुए होगा कि इन क्षेत्रों में वर्तमान रोजगार स्तर अधिक समय तक बना रहे। अभी मझोले आकार के क्षेत्रों में क्षेत्र संचालन के लिए 300 कर्मी और छोटे आकार के क्षेत्रों में 40 से 60 लोग काम कर रहे हैं।
· इन क्षेत्रों में निवेश से निर्माण गतिविधि और सुविधाएं बढ़ेंगी। कुशल श्रमिकों के अतिरिक्त अनेक अकुशल श्रमिकों को रोजगार मिलेगा।
पारदर्शिता तथा न्यूनतम सरकार और अधिकतम शासन
· ई तथा पी कंपनियों को शेष भंडारों के दोहन के विषय में निवेश निर्णय लेने में मदद के लिए विस्तार नीति मंजूर की गई है ताकि निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से विस्तार मंजूरी हो।
· नीति में विस्तार की स्पष्ट शर्तें दी गई हैं ताकि देश की ऊर्जा सुरक्षा हित में तेजी से संसाधनों का उपयोग किया जा सके और निवेश के माहौल में सुधार लाया जा सके।
रत्न एवं आर-सीरिज फील्ड्स का अनुबंध
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों पर केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आज मेसर्स एस्सार ऑयल लिमिटेड एवं मेसर्स ऑयल पैसिफिक यूके लिमिटेड के महासंघ के पक्ष में 12-03-1996 को रत्न एवं आर-सीरिज के मझोले आकार के खोजे गए तेल क्षेत्रों के लिए जारी अनुबंध पत्र को रद्द करने को मंजूरी दे दी एवं रत्न एवं आर-सीरिज फील्ड्स को वापस ओएनजीसी को लौटा देने का फैसला किया।
इन तेल क्षेत्रों को आर्थिक उदारीकरण के बाद 1992-93 के दौरान सरकार द्वारा घोषित तेल क्षेत्र खोज नीति के तहत प्रदान किये जाने की योजना बनाई गई थी। ऐसी परिकल्पना की गई थी कि उत्पादन साझा अनुबंध (पीएससी) पर हस्ताक्षर करने के द्वारा निजी क्षेत्र/ संयुक्त क्षेत्र विकास के जरिये इन तेल क्षेत्रों का विकास ऐसी परियोजनाओं से देश में अतिरिक्त मूल्य का सृजन करने में सहायक होगा। बहरहाल, इन क्षेत्रों से संबंधित पीएससी पर कई वजहों से पिछले 2 दशकों के दौरान हस्ताक्षर नहीं हो पाया और समग्र नीति लक्ष्य को अर्जित करने में रत्न एवं आर-सीरिज का लक्षित योगदान अर्जित नहीं किया जा सका।
सरकार ने महसूस किया कि 20 वर्षों से भी अधिक समय के अंतराल के कारण 12-03-1996 को जारी अनुबंध पत्र के समय की व्याप्त स्थितियों एवं शर्तों में उल्लेखनीय बदलाव आ गए हैं।
इन तेल क्षेत्रों से कच्चे तेल एवं प्राकृतिक गैस उत्पादन पर लगने वाले वैधानिक लेवी के लिहाज से सरकार के लिए भारी वित्तीय आवश्यकता पर विचार करते हुए एवं इन तेल क्षेत्रों के त्वरित विकास द्वारा घरेलू हाइड्रोकार्बन उत्पादन बढ़ाने के समग्र उद्देश्यों के साथ सरकार ने फैसला किया कि इन तेल क्षेत्रों को उनके मूल लाइसेंसी ओएनजीसी को वापस लौटा दिया जाए। उल्लेखनीय है कि ओएनजीसी ने प्रारंभ में इन तेल क्षेत्रों को विकास किया था, उसने इसका संचालन किया तथा इन तेल क्षेत्रों से 1994 तक उत्पादन प्राप्त किया था।
In a major policy drive to give a boost to petroleum and hydrocarbon sector, the Government has unveiled a series of initiatives.
— PMO India (@PMOIndia) March 10, 2016
This includes HELP: innovative policy which provides for uniform licensing system to cover all hydrocarbons under single licensing framework
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Marketing & pricing freedom for new gas production from Deepwater,Ultra Deepwater & High Pressure-High Temp Areas also a part of initiatives
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Initiatives include policy for grant of extension to the Production Sharing Contracts for small, medium sized and discovered fields.
— PMO India (@PMOIndia) March 10, 2016
With regard to HELP: the new policy regime marks a generational shift and modernization of the oil and gas exploration policy.
— PMO India (@PMOIndia) March 10, 2016
It is expected to stimulate new exploration activity for oil, gas and other hydrocarbons and eventually reduce import dependence.
— PMO India (@PMOIndia) March 10, 2016
It is also expected to create substantial new job opportunities in the petroleum sector.
— PMO India (@PMOIndia) March 10, 2016
The introduction of the concept of revenue sharing is a major step in the direction of “minimum government maximum governance.”
— PMO India (@PMOIndia) March 10, 2016