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न्यू इंडिया बाजार की ताकत में विश्वास करता है, सबसे पसंदीदा निवेश डेस्टिनेशन होगा: पीएम मोदी


1.भारत में मार्च में पहले लॉकडाउन के माध्यम से कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई शुरू करने के सात महीने हो चुके हैं। आपका मूल्यांकन क्या है? हमारा प्रदर्शन कैसा रहा?

मुझे यकीन है कि हम सभी इस बात से सहमत हैं कि इस वायरस के बारे में कुछ पता नहीं था। अतीत में पहले ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था। इसलिए इस नए अज्ञात दुश्मन से निपटने के दौरान हमारी प्रतिक्रिया भी विकसित हुई है।

मैं कोई हेल्थ एक्सपर्ट नहीं हूं लेकिन मेरा आकलन संख्याओं पर आधारित है। मुझे लगता है कि हमें अपने कोरोना वायरस से लड़ाई का आकलन इस बात से करना चाहिए कि हम कितनी जिंगदियां बचा पाए।

वायरस बहुत अस्थिर साबित हो रहा है। एक समय लगा कि गुजरात जैसे कुछ स्थान हॉट स्पॉट हैं और केरल, कर्नाटक आदि में स्थिति नियंत्रण में है। कुछ महीनों के बाद गुजरात में हालात सुधरे लेकिन केरल में हालात बदतर हो गए।

यही कारण है कि मैं महसूस करता हूं कि गफलत के लिए कोई जगह नहीं है। मैंने हाल ही में 20 अक्टूबर को राष्ट्र को दिए अपने संदेश में इस बात पर जोर दिया कि आगे बढ़ने का एकमात्र तरीका मास्क पहनना, हाथ धोना और सोशल डिस्टेंसिंग जैसी सावधानियां बरतना है, क्योंकि ‘जब तक दवाई नहीं, तब तक ढिलाई नहीं।’

2. लेकिन, क्या इसने व्यापक रूप से आपकी अपेक्षा के अनुरूप काम किया है या आपको लगातार सुधार और इनोवेट करना पड़ा?

हमने आगे बढ़कर प्रो-एक्टिव होने का फैसला किया और समय पर देशव्यापी लॉकडाउन शुरू किया। हमने लॉकडाउन की शुरुआत की, जब संक्रमण के कुल मामले कुछ ही सैकड़ों में थे, जबकि अन्य देशों में हजारों में केस आने के बाद लॉकडाउन लागू किया गया। हमने महामारी के उठाव के एक नाजुक दौर में लॉकडाउन लगाया।

हमें लॉकडाउन के विभिन्न चरणों के लिए न केवल व्यापक समय मिला, बल्कि हमने सही अनलॉक प्रक्रिया भी अपनाई। यही कारण रहा कि हमारी अर्थव्यवस्था का अधिकांश हिस्सा भी पटरी पर आ रहा है। अगस्त और सितंबर में जारी डेटा भी यही संकेत देते हैं।

भारत ने देश में कोविड-19 महामारी से निपटने में साइंस ड्रिवन अप्रोच अपनाया है। हमारी यह अप्रोच लाभकारी सिद्ध हुई।

अब अध्ययनों से पता चलता है कि इस रेस्पांस से हमें एक ऐसी स्थिति से बचने में मदद मिली, जिसके कारण कई और मौतों के साथ वायरस का तेजी से प्रसार हो सकता था। समय पर लॉकडाउन लगाने के अलावा भारत, मास्क पहनने को अनिवार्य करने, कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग ऐप का उपयोग करने और रैपिड एंटीजन टेस्ट की व्यवस्था करने वाले पहले देशों में से एक था।

इस व्यापक आयाम की महामारी से निपटने में यदि देश एकजुट नहीं होता, तो इसका प्रबंधन करना संभव नहीं होता। इस वायरस से लड़ने के लिए पूरा देश एक साथ खड़ा हो गया। कोरोना वॉरियर्स, जो हमारे अग्रिम पंक्ति के हेल्थ वर्कर्स हैं, ने अपने जीवन को खतरे में डालकर, इस देश के लिए लड़ाई लड़ी।

3.आपको सबसे बड़ी सीख क्या मिली?

पिछले कुछ महीनों में एक पॉजिटिव लर्निग मिली, वह थी-डिलिवरी मैकेनिज्म का महत्व, जो अंतिम छोर तक पहुंचता है। इस डिलिवरी मैकेनिज्म का अधिकांश भाग हमारी सरकार के पहले कार्यकाल में बनाया गया था और इसने हमें सदी में एक बार होने वाली महामारी का सामना करने में हमारी काफी मदद की।

मैं सिर्फ दो उदाहरण दूंगा। सबसे पहले, डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर व्यवस्था के माध्यम से हम लाखों लोगों के बैंक खातों में सीधे नकद ट्रांसफर करने में सक्षम हुए। यह पूरा बुनियादी ढांचा पिछले छह वर्षों में बनाया गया था इससे यह संभव हुआ। इससे पहले, अपेक्षाकृत छोटी प्राकृतिक आपदाओं में भी राहत गरीबों तक नहीं पहुंच पाती थी और बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार होता था।

लेकिन हम भ्रष्टाचार के किसी भी शिकायत के बिना, बहुत कम समय में लोगों को बड़े पैमाने पर राहत देने में सक्षम हुए। यह गवर्नेंस में टेक्नोलॉजी की शक्ति है। इसके विपरीत शायद आप अपने पाठकों को यह बता सकें कि 1970 के दशक में चेचक की महामारी के दौरान भारत ने किस तरह का प्रदर्शन किया था।

और दूसरा, इतने कम समय में एक बिलियन से अधिक लोगों का इतने कम समय में व्यवहार परिवर्तन- मास्क पहनना और सामाजिक दूरी बनाए रखना। बिना किसी जोर-जबरदस्ती के सार्वजनिक भागीदारी पाने का यह एक विश्व मॉडल है।

केंद्र और राज्य सरकारें एक टीम की भांति सहज तरीके से काम कर रही हैं, सार्वजनिक और निजी क्षेत्र एक साथ आए हैं, सभी मंत्रालय कंधे से कंधा मिलाकर विविध जिम्मेदारियों में व्यस्त हैं और लोगों की भागीदारी ने एकजुट और प्रभावी लड़ाई सुनिश्चित की है।

4. भारत में कोविड-19के प्रसार की स्थिति के बारे में आपका क्या आकलन है?

वायरस के शुरुआती दौर में किए गए प्रो-एक्टिव उपायों से हमें महामारी के खिलाफ अपने बचाव की तैयारी करने में मदद मिली। हालांकि, एक भी असामयिक मृत्यु अत्यंत दर्दनाक है, परंतु हमारे जितने बड़े, खुलेपन वाले और कनेक्टिविटी वाले देश के लिए यह महत्वपूर्ण है कि हमारे यहां दुनिया में सबसे कम कोविड-19 मृत्यु दर है। हमारी रिकवरी दर लगातार ऊंची बनी हुई है और हमारे एक्टिव केस काफी गिर रहे हैं।

सितंबर के मध्य में लगभग 97,894 दैनिक मामलों के शिखर से, हम अक्टूबर के अंत में लगभग 50,000 नए मामलों की रिपोर्ट कर रहे हैं। यह संभव हुआ क्योंकि पूरा भारत एक साथ आया और टीम इंडिया के रूप में काम किया।

5. हाल के रुझान,एक्टिव और फैटिलिटी दोनों मामलों में कमी दर्शा रहे हैं। उम्मीद है कि सबसे खराब हालात का समय बीत गया है। क्या आप भी सरकार के पास उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर इस बात से सहमत हैं?

यह एक नया वायरस है। जिन देशों ने शुरू में प्रकोप को नियंत्रित किया था, वे अब इसके फिर से बढ़ने की रिपोर्ट कर रहे हैं।

भारत के भौगोलिक विस्तार, जनसंख्या घनत्व और यहां के नियमित सामाजिक समारोहों को ध्यान में रखते हुए हम इन संख्याओं को देखने और तुलना करना चाहते हैं। हमारे कई राज्य अनेक देशों से बड़े हैं।

हमारे देश के भीतर ही इसका प्रभाव बहुत विविध है- कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जहां यह बहुत कम है, जबकि कुछ राज्य हैं जहां यह बहुत केंद्रित और लगातर बना हुआ है। फिर भी यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि 700 जिलों वाले देश में, कुछ राज्यों के कुछ जिलों में ही इसका प्रभाव नजर आता है।

नए केसेस, मृत्यु दर और कुल सक्रिय मामलों की हमारी नवीनतम संख्या, कुछ समय पहले की तुलना में कम होने का संकेत देती है लेकिन फिर भी हमें आत्मसंतोष होकर नहीं बैठ जाना है। वायरस अभी भी फैला हुआ है और हमारी ढिलाई से पनपता है।

मुझे लगता है कि हमें स्थिति को संभालने के लिए अपनी क्षमताओं को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, लोगों को अधिक जागरूक बनाना चाहिए तथा अधिक सुविधाएं तैयार करनी चाहिए और इस उक्ति के अनुसार चलना चाहिए कि ‘सर्वश्रेष्ठ की आशा रखें, लेकिन सबसे बुरे के लिए भी तैयार रहें।’

6. कोविड-19महामारी ने अर्थव्यवस्था को कमजोर किया है। आपने जीवन और आजीविका के बीच सही संतुलन बना कर इससे निपटने का प्रयास किया है। आपके विचार से सरकार इस प्रयास में कितनी सफल रही है?

हमें आजादी मिले सात दशक से अधिक समय हो गया है, लेकिन अभी भी कुछ लोगों के पास औपनिवेशिक हैंगओवर है कि लोग और सरकारें दो अलग-अलग संस्थाएं हैं। यह विपत्ति सरकार पर आई है, यह धारणा इस मानसिकता से निकलती है। महामारी ने 130 करोड़ लोगों को प्रभावित किया है और सरकार और नागरिक दोनों, मिलकर इसका मुकाबला करने के लिए काम कर रहे हैं।

जब से कोविड-19 शुरू हुआ, तब से यह दुनिया भर में विभिन्न देशों में मरने वाले लोगों की संख्या देखकर भय होता था। रोगियों की संख्या अचानक बढ़ जाने से उनकी स्वास्थ्य प्रणाली चरमरा रही थी। बूढ़े और जवान दोनों अंधाधुंध मर रहे थे। उस समय, हमारा उद्देश्य भारत में वैसी स्थिति से बचना और लोगों के जीवन को बचाना था। यह वायरस एक अज्ञात दुश्मन की तरह था। यह अभूतपूर्व था।

जब कोई अदृश्य शत्रु से लड़ रहा होता है, तो उसे समझने में समय लगता है और उसका मुकाबला करने के लिए एक प्रभावी रणनीति तैयार करता है। हमें 130 करोड़ भारतीयों तक पहुंचना था और उन्हें वायरस के खतरों से अवगत कराना था, जिसे अपनाकर हम खुद को और अपने परिवार के सदस्यों को बचा सकते हैं।

यह बहुत ही चुनौतीपूर्ण काम था। जन चेतना को जगाना महत्वपूर्ण था। जन चेतना का जागरण जन भागीदारी से ही संभव हो पाता है। जनता कर्फ्यू के माध्यम से, थालियां बजाकर या सामूहिक रूप से दीपक जलाकर सामूहिक राष्ट्रीय संकल्प का संकेत देते हुए, हमने सभी भारतीयों को एक मंच पर लाने के लिए जन भागदारी का इस्तेमाल किया। इतने कम समय में जन जागरूकता का यह एक अविश्वसनीय उदाहरण है।

7. और आर्थिक रणनीति क्या थी?

जान बचाना सिर्फ कोविड-19 से जान बचाने तक सीमित नहीं था। यह गरीबों को पर्याप्त भोजन और आवश्यक चीजें प्रदान करने के बारे में भी था। यहां तक कि जब अधिकांश विशेषज्ञ और समाचार पत्र सरकार से कॉर्पोरेट क्षेत्र के लिए आर्थिक पैकेज जारी करने के लिए कह रहे थे, तब हमारा फोकस कमजोर आबादी के बीच जीवन को बचाने के लिए था। गरीब लोगों, प्रवासियों, किसानों की पीड़ा को कम करने के लिए हमने पीएम गरीब कल्याण पैकेज की घोषणा की।

एक विशेष अंतर्दृष्टि और समझ जो हमें जल्द मिली, वह यह थी कि कृषि एक ऐसा क्षेत्र है, जहां उत्पादकता पर समझौता किए बिना, सोशल डिस्टेंसिंग के नियम को अधिक स्वभाविक रूप से बनाए रखा जा सकता है। इसलिए हमने शुरू से ही कृषि गतिविधियों को लगभग शुरू करने अनुमति दी और हम सभी ने इस क्षेत्र में आज परिणाम देखा है कि इतने महीनों के व्यवधान के बावजूद यह क्षेत्र असाधारण रूप से अच्छा कर रहा है।

लोगों की तात्कालिक और मध्यम अवधि की जरूरतों को पूरा करने के लिए खाद्यान्न का रिकॉर्ड वितरण, श्रमिक स्पेशल रेलगाड़ियों का परिचालन और प्रो-एक्टिव होकर उपज की खरीद की गई।

लोगों को हो रही कठिनाइयों को दूर करने के लिए हम एक आत्मनिर्भर भारत पैकेज लेकर आए। इस पैकेज ने समाज के सभी वर्गों और अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों के समक्ष खड़े मुद्दों का समाधान किया।

इससे हमें उन सुधारों को करने का अवसर प्रदान किया जो दशकों से होने की प्रतीक्षा कर रहे थे लेकिन किसी ने विगत में पहल नहीं की। कोयला, कृषि, श्रम, रक्षा, नागरिक उड्डयन इत्यादि जैसे क्षेत्रों में सुधार किए गए है, जो हमें उस उच्च विकास पथ पर वापस लाने में मदद करेंगे जिस पर संकट से पहले थे।

हमारे प्रयास परिणाम दे रहे हैं क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था पहले से, उम्मीद से अधिक तेजी से पटरी पर लौट रही है।

8. आपकी सरकार ने दूसरी पीढ़ी के दो प्रमुख रिफॉर्म्स की शुरुआत की है- फॉर्म और लेबर रिफॉर्म्स। वांछित लाभांश देने वाली देने वाली इन पहलों के प्रति आप कितने आशावादी हैं,विशेष रूप से समग्र आर्थिक मंदी और राजनीतिक विरोध के प्रकाश में?

एक्सपर्ट्स लंबे समय से रिफॉर्म्स की वकालत कर रहे हैं। यहां तक कि राजनीतिक पार्टियां भी इन सुधारों के नाम पर वोट मांगती रही हैं। सभी की इच्छा थी कि ये रिफॉर्म्स हो। मुद्दा यह है कि विपक्षी दल यह नहीं चाहते कि हमें इसका श्रेय मिले।

हम क्रेडिट भी नहीं चाहते हैं। हमने किसानों और श्रमिकों के कल्याण को ध्यान में रखते हुए ये रिफॉर्म्स किए हैं। वे हमारे ट्रैक रिकॉर्ड के कारण  हमारे इरादों को समझते हैं और उनपर भरोसा करते हैं।

हम पिछले छह वर्षों में कृषि क्षेत्र में कदम दर कदम सुधार कर रहे हैं। इसलिए हमने आज जो कुछ किया है, वह 2014 में शुरू किए गए कार्यों की श्रृंखला का एक हिस्सा है। हमने कई बार एमएसपी में बढ़ोतरी की और वास्तव में हमने पूर्व की सरकारों की तुलना में एमएसपी पर किसानों से कई गुना अधिक खरीद की। सिंचाई और बीमा दोनों में भारी सुधार हुए। किसानों के लिए प्रत्यक्ष आय सहायता सुनिश्चित की गई।

भारतीय खेती में जो कमी रही है, वह हमारे किसानों के खून-पसीने की मेहनत के अनुरूप पूरा रिटर्न नहीं मिलता है। इन सुधारों द्वारा लाया गया नया ढांचा हमारे किसानों को मिलने वाले मुनाफे में काफी वृद्धि करेगा। जैसे अन्य उद्योगों में होता है कि एक बार लाभ अर्जित करने के बाद, अधिक उत्पादन उत्पन्न करने के लिए उस क्षेत्र में वापस निवेश किया जाता है। लाभ और पुनर्निवेश का एक चक्र जैसा उभरता है। खेती के क्षेत्र में भी, यह चक्र अधिक निवेश, इनोवेशन और नई टेक्नोलॉजी के लिए दरवाजे खोलेगा। इस प्रकार, ये सुधार न केवल कृषि क्षेत्र बल्कि संपूर्ण ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बदलने की अपार क्षमता रखते हैं।

एमएसपी पर देखें तो केवल पूरे रबी मार्केटिंग सीजन में केंद्र सरकार ने 389.9 लाख मीट्रिक टन गेहूं की खरीद की, जो कि ऑल टाइम रिकॉर्ड है, जिसमें 75,055 करोड़ एमएसपी के रूप में किसानों को दिए गए।

चालू खरीफ मार्केटिंग सीजन में, 159.5 लाख मीट्रिक टन धान की खरीद की गई है, जबकि पिछले साल इसी दौरान 134.5 लाख मीट्रिक टन था। यह 18.62% की वृद्धि है। यह सब तब हुआ जब हम तीन अध्यादेश लाए, जिन्हें अब संसद ने पारित कर दिया है।

यूपीए-2 (2009-10 से 2013-14) के पांच वर्षों की तुलना में धान के लिए किसानों को एमएसपी का भुगतान 1.5 गुना, गेहूं का 1.3 गुना, दलहन का 75 गुना और तिलहन का 10 गुना हुआ। यह उन लोगों के झूठ और फरेब को साबित करता है जो एमएसपी के बारे में अफवाह फैला रहे हैं।

9. और लेबर रिफॉर्म्स के बारे में क्या कहेंगे?

ये रिफॉम्स बहुत श्रमिक समर्थक हैं। अब वे सभी लाभ और सामाजिक सुरक्षा के हकदार हैं, भले ही निश्चित अवधि के लिए काम पर रखा गया हो। श्रम सुधार रोजगार के अवसर पैदा करने के साथ-साथ न्यूनतम मजदूरी सुधार सुनिश्चित करेंगे, अनौपचारिक क्षेत्र में श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा प्रदान करेंगे और सरकारी हस्तक्षेप को कम करके श्रमिक को मजदूरी का समय पर भुगतान सुनिश्चित करेंगे और श्रमिकों की व्यावसायिक सुरक्षा को प्राथमिकता देंगे। इस प्रकार बेहतर काम का माहौल बनाने में योगदान होगा।

पिछले कुछ हफ्तों में, हमने वह सब कर दिया है जो हमने करने के लिए तय किया था। 1,200 से अधिक धाराओं (sections) वाले 44 केंद्रीय श्रम कानूनों को सिर्फ चार कोड्स में समाहित कर दिया गया है। अब सिर्फ एक रजिस्ट्रेशन, एक एसेसमेंट और एक रिटर्न फाइल करनी होगी। आसान अनुपालन के साथ, इससे व्यवसायों को निवेश करने और कर्मचारी और नियोक्ता (employer)  के लिए विन-विन स्थिति के लिए एक स्थिर व्यवस्था बनेगी।

मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को देखें तो पिछले छह वर्षों में, हमने नई मैन्युफैक्चरिंग इकाइयों के लिए कॉर्पोरेट टैक्स की दर में 15 प्रतिशत की कटौती से लेकर एफडीआई सीमा बढ़ाने और अंतरिक्ष, रक्षा जैसे रणनीतिक क्षेत्रों में निजी निवेश की अनुमति दी है। हमने मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के लिए कई सुधारात्मक उपाय किए, श्रम सुधार को छोड़कर। अब हमने वह भी कर दिया है। यह अक्सर मजाक में कहा जाता था कि औपचारिक क्षेत्र में भारत में श्रमिकों से अधिक श्रम कानून थे। श्रम कानूनों ने अक्सर श्रमिकों को छोड़कर सभी की मदद की। समग्र विकास तब तक नहीं हो सकता जब तक भारत के कार्यबल को औपचारिकता का लाभ नहीं मिलता।

मुझे विश्वास है कि पिछले कुछ महीनों में किए गए ये सुधार मैन्युफैक्चरिंग और कृषि दोनों क्षेत्रों में विकास दर और रिटर्न को बढ़ाने में मदद करेंगे। इसके अलावा, यह दुनिया को यह भी संकते देंगे कि यह एक नया भारत है जो बाजार  और बाजार की ताकतों पर विश्वास करता है।

10. एक आलोचना यह है कि कर्मचारियों की छंटनी लीचनेपन (Flexibility) को300 लोगों को रोजगार वाले कारखानों तक बढ़ाया गया है लेकिन इलेक्ट्रॉनिक्स, कपड़ों और अन्य क्षेत्रों में विशाल कारखाने इनसे भी अधिक को रोजगार देते हैं। सभी फैक्ट्रियों में इस लचीनेपन का विस्तार क्यों नहीं किया गया है? इसके अलावा, हड़ताल के अधिकार के बारे में आलोचनाओं के बारे में आपके क्या विचार हैं?

भारत एक दोहरी समस्या से पीड़ित था। हमारे श्रम कानून ऐसे थे कि अधिकांश श्रमिकों के पास कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं थी। कंपनियां श्रम कानूनों के डर से अधिक श्रमिकों को काम पर रखना नहीं चाहती थीं, जिससे श्रमिक बहुल उत्पादन गिरता था। इंस्पेक्टर राज सिस्टम और जटिल श्रम कानूनों का नियोक्ताओं पर गहरी परेशानी वाला प्रभाव था।

हमें इस मानसिकता से बाहर आने की जरूरत है कि उद्योग और श्रम हमेशा एक दूसरे के साथ संघर्ष में रहते हैं, ऐसा तंत्र क्यों नहीं है जहां दोनों को समान रूप से लाभ हो? चूंकि श्रम कानून एक समवर्ती विषय है, इसलिए वह राज्य सरकारों को उनकी विशिष्ट स्थिति और आवश्यकताओं के अनुसार उसमें संशोधन करने के लिए लचीलापन देता है।

हड़ताल के अधिकार पर बिल्कुल भी अंकुश नहीं लगाया गया है। वास्तव में, ट्रेड यूनियनों को एक नए अधिकार के साथ मजबूत किया गया है, जिससे उन्हें वैधानिक मान्यता प्राप्त हो सके।

हमने नियोक्ता- कर्मचारी के संबंध को अधिक व्यवस्थित बना दिया है। नोटिस की अवधि का प्रावधान कर्माचारियों और नियोक्ताओं के बीच किसी भी शिकायत के सौहार्दपूर्ण निपटारे का अवसर देता है।

11. जीएसटी प्रणाली कोविड-19 से काफी तनाव मे आ गई है। केंद्र ने अब पैसे उधार लेने और स्थानंतरित करने पर सहमति व्यक्त की है। लेकिन आगे के हालत को देखते हुए,आप राज्य सरकारों की स्थिति के बारे में क्या सोचेते हैं?

पिछले छह वर्षों में हमारे सभी कार्यों में प्रतिस्पर्धी और सहकारी संघवाद की भावना देखी गई है। हमारा जितना बड़ा एक देश केवल केंद्र के एक स्तंभ पर विकसित नहीं हो सकता, उसे राज्यो के दूसरे स्तंभ की जरूरत है। इस दृष्टिकोण के कारण कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई भी मजबूत हुई। सामूहिक रूप से निर्णय लिए गए। मुझे उनके सुझावों और इनपुट्स को सुनने के लिए सीएम के साथ कई बार वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग करनी पड़ी, जिनका इतिहास में कोई उदाहरण नहीं है।

जीएसटी पर बात करें तो यह सभी मायनों में एक असाधारण वर्ष है। अधिकांश धारणाओं और गणनाओं में सदी में कभी आने वाली महामारी को ध्यान में नहीं रखा गया था। फिर भी, हमने आगे बढ़ने के लिए विकल्प प्रस्तावित किए हैं और अधिकांश राज्य उनके साथ सहमत हैं। एक आम सहमति विकसित हो रही है।

12. आप कई वर्षों तक मुख्यमंत्री रहे हैं। वर्तमान संदर्भ में आर्थिक पक्ष पर राज्यों के साथ किस तरह का सहयोग आप प्रस्तावित करते हैं?

यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि केंद्र-राज्य संबंध जीएसटी तक सीमित नहीं है। महामारी और ग्रॉस टैक्स रेवेन्यू में गिरावट के बावजूद, हमने राज्यों को उन्नत संसाधान ट्रांसफर (enhanced resource transfers) प्रदान किए हैं। अप्रैल से जुलाई के बीच राज्यों के लिए करों में सहायता के अनुदान की कुल राशि, जिसमें केंद्र प्रायोजित योजनाएं भी शामिल हैं, पिछले वर्ष की इसी अवधि में 3.42 लाख करोड़ से 19 प्रतिशत बढ़कर 4.06 लाख करोड़ हो गया। संक्षेप में जब हमारा राजस्व गिर गया तब भी हमने राज्यों को धन के प्रवाह को बनाए रखा।

कोविड-19 महामारी को देखते हुए केंद्र सरकार ने वर्ष 2020-21 के लिए राज्यों को सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) के 2 प्रतिशत तक की अतिरिक्त उधार सीमा की भी अनुमति दी है। यह 4.27 लाख करोड़ की राशि राज्यों को उपलब्ध कराई जा रही है। केंद्र ने जून 2020 में राज्यों को पहले ही 0.5 प्रतिशत जुटाने की अनुमति दे रखी है। इससे राज्यों को 1,06,830 करोड़ की अतिरिक्त राशि उपलब्ध हुई है। राज्यों के अनुरोध पर, स्टेट डिजास्टर रेस्पांस फंड (SDRF) का उपयोग करने की सीमा 35 प्रतिशत से बढ़ाकर 50 प्रतिशत कर दी गई है। यह कोरोना से लड़ने के लिए राज्यों के साथ अधिक वित्त सुनिश्चित करने के लिए किया गया था।

13. कई लोग तर्क देते हैं कि केंद्र ने अपनी परेशानियों को राज्यों पर डाल दिया है। आपका क्या विचार है?

मैं आपको एक उदाहरण देता हूं कि पहले क्या हुआ करता था। जब यूपीए सरकार के समय वैट को सीएसटी (CST) में बदला गया तब उन्होंने राज्यों को किसी भी राजस्व में कमी के लिए क्षतिपूर्ति का वादा किया था। लेकिन आप जानते हैं कि यूपीए ने क्या किया? उन्होंने वादे के बावजूद राज्यों को क्षतिपूर्ति देने से इंकार कर दिया। केवल एक साल के लिए नहीं बल्कि पांच साल तक। यह एक कारण था कि यूपीए के तहत जीएसटी शासन के लिए राज्य सहमत नहीं थे। जब हमने 2014 में सत्ता संभाली थी तब इसके बावजूद कि वादा पिछली सरकार ने किया था, हमने उन बकाया को समाप्त करने के लिए इसे अपने ऊपर लिया। यह संघवाद के प्रति हमारी अप्रोच को दर्शाता है।

14. सरकार के आलोचकों का कहना है कि भारत- संक्रमण और आर्थिक संचुकन(contraction)दोनों मामलों में ऊंची पायदान पर रहा। आप इस तरह की आलोचना को जवाब कैसे देते हैं?

कुछ लोग ऐसे होते हैं जो इतने बुद्धिमान होते हैं कि वे हमारे देश की तुलना दूसरे देशों के साथ करते हैं जिनकी जनसंख्या हमारे राज्यों जितनी हैं और उस तुलना के लिए निरपेक्ष संख्या (absolute number) का उपयोग करते हैं।

हालांकि, मैं उम्मीद करता हूं कि द इकोनॉमिक टाइम्स बेहतर रिसर्च करेगा और इस तरह के तर्कों में नहीं बहेगा। हमारे वर्तमान आंकड़े को देखते हुए, हमें यह भी देखना चाहिए कि मार्च में विशेषज्ञों ने किस तरह की भारी संख्या का अनुमान लगाया था।

15. वे पांच इकोनॉमिक पैरामीटर्स क्या हैं जिन्हें आप बाउंस बैक के स्पष्ट संकेतक के रूप में इंगित करेंगे?विशेष रूप से, आप अगले साल किस तरह के रिबाउंड (rebound) की उम्मीद करते हैं।

हम आर्थिक सुधार के अपने रास्ते पर हैं। संकेतक यही सुझाव देते हैं। सबसे पहले, कृषि में, जैसा कि मैंने पहले कहा, हमारे किसानों ने सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं और हमने एमएसपी के उच्चतम स्तर पर रिकॉर्ड खरीद भी की है। इन दो कारकों- रिकॉर्ड उत्पादन और रिकॉर्ड खरीद- ग्रामीण अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण आय को इंजेक्ट करने जा रहे हैं, जो कि मांग का अपना चक्र होगा। दूसरा, रिकॉर्ड उच्च एफडीआई प्रवाह, भारत को निवेशक मित्र देश के रूप में बढ़ती छवि को दर्शाता है। इस वर्ष महामारी के बावजूद, हमने अप्रैल-अगस्त के लिए 35.73 बिलिनय डॉलर का उच्चतम एफडीआई प्राप्त की। यह पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 13 प्रतिशत अधिक है,जो एक रिकॉर्ड वर्ष भी था। तीसरा, ट्रैक्टर की बिक्री के साथ-साथ ऑटो बिक्री पिछले साल के स्तर तक पहुंच चुकी है या पार कर रही है। यह मांग में मजबूत पुनरुत्थान का संकेत देता है। चौथा- विनिर्माण क्षेत्र में लगातार सुधार ने भारत को सितंबर में चीन और ब्राजील के बाद प्रमुख उभरते बाजारों में दो पायदान चढ़कर तीसरे स्थान  पर लाने में मदद की है। विनिर्माण में सात वर्ष की साल-दर-साल वृद्धि में पहली बार वृद्धि परिलक्षित हुई है। ई-वे बिल और जीएसटी कलेक्शन में भी वृद्धि हो रही है।

अंत में, ईपीएफओ के नए शुद्ध अभिदाता (new net subscribers) के मामले में, अगस्त 2020 के महीने ने जुलाई 2020 की तुलना में एक लाख से अधिक नए ग्राहकों के साथ 34 प्रतिशत की छलांग लगाई है। इससे पता चलता है कि जॉब मार्केट उठ रहा है।

इसके अलावा, विदेशी मुद्रा भंडार ने रिकॉर्ड ऊंचाई को छू लिया है। रेलवे माल ढुलाई जैसे सुधार के प्रमुख संकेतकों में 15 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है और पिछले साल इसी महीने सितंबर में बिजली की मांग में 4 प्रतिशत की वृद्धि हुई। इससे पता चलता है कि रिकवरी व्यापक आधारी वाली है। साथ ही आत्मनिर्भर भारत घोषणाएं अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ी प्रेरणा हैं, विशेष रूप से छोटे व्यवसायों और अनौपचारिक क्षेत्र के लिए।

16. भविष्य में प्रोत्साहन (stimulus) के लिए आपकी क्या योजना है?

हम समग्र मैक्रो-आर्थिक स्थिरता (macro-economic stability) सुनिश्चित करते हुए अर्थव्यवस्था को लगातार समय पर ढंग से उठाने के लिए आवश्यक सभी उपाय करेंगे। याद रखें कि अभी हम महामारी से उबरे नहीं हैं। फिर भी हमारी अर्थव्यवस्था ने हमारे लोगों के लचीलेपन के कारण बड़े पैमाने पर बाउंस बैक की उल्लेखनीय क्षमता दिखाई है। यह कुछ ऐसा है जो उन संख्याओं में नजर नहीं आता, लेकिन उन संख्याओं के पीछे के कारक हैं। दुकान-मालिक, व्यापारी, एमएमएमई चलाने वाला व्यक्ति, कारखाने में काम करने वाला व्यक्ति, उद्यमी, ये सभी मजबूत बाजार की भावना और अर्थव्यवस्ता के पुनरुद्धार के लिए जिम्मेदार नायक हैं।

17. आपको लगता है कि भारत अभी भी मैन्युफैक्चरिंग के लिए एक प्रमुख विश्व केंद्र के रूप में उभर सकता है,विशेष रूप से ऐसे समय में वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं को हिस्सा बनकर,जब कंपनियां चीन के संपर्क में आने का जोखिम उठा रही हैं? इस संबंध में क्या प्रगति है? क्या भारत, वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में चीन के विश्वसनीय विकल्प के रूप में उभर सकता है?

भारत ने केवल महामारी के बाद मैन्युफैक्चरिंग के बारे में बोलना शुरू नहीं किया है, हम कुछ समय से मैन्यूफैक्चरिंग बढ़ाने पर काम कर रहे हैं। भारत, आखिरकार, एक कुशल कार्यबल वाला एक युवा देश है। लेकिन भारत दूसरों के नुकसान से लाभ पाने में विश्वास नहीं करता है। भारत अपनी ताकत के दम पर ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग हब बनेगा। हमारा प्रयास किसी देश का विकल्प बनना नहीं है बल्कि, एक ऐसा देश बनना है जो विशिष्ट अवसर प्रदान करता है। हम सभी की प्रगति देखना चाहते हैं। यदि भारत प्रगति करता है, तो मानवता का 1/6वां हिस्सा प्रगति करेगा।

हमने देखा है कि द्वितीय विश्व युद्द के बाद एक नये विश्व व्यवस्था का गठन कैसे हुआ। कोविड-19 के बाद भी कुछ ऐसा ही होगा। इस बार, भारत वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में विनिर्माण और एकीकरण की ‘बस’ की सवारी करेगा। हमारे पास डेमोक्रेसी, डेमोग्राफी और डिमांड के रूप में विशिष्ट फायदे हैं।

18. भारत की इस विशाल छलांग(giant leap) को सक्षम करने के लिए आप कौन से नीतिगत उपाय प्रस्तावित करते हैं?

पिछले कुछ महीनों के दौरान, भारत का फॉर्मा सेक्टर पहले ही भविष्य का रास्ता दिखा चुका है। भारत वैश्विक फॉर्मा सप्लाई चेन में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में उभरा है। हम बहुत कम समय में पीपीई किट के दूसरे सबसे बड़े निर्माता बन गए हैं। भारत तकनीकी रूप से उन्नत वस्तुओं जैसे वेंटिलेटर के निर्माण में भी एक छाप छोड़ रहा है और पहले की लगभग नगण्य क्षमता से, अब हम त्वरित समय में हजारों वेंटिलेटर का निर्माण कर रहे हैं।

आजादी से लेकर महामारी शुरू होने तक पूरे भारत में सरकारी अस्पतालों में लगभग 15-16 हजार वेंटिलेटर काम कर रहे थे। अब हम इन अस्पतालों में 50,000 और वेंटिलेटर जोड़ने की दिशा में तेजी से बढ़ रहे हैं।

अब, हमने इस मॉडल को सफलतापूर्वक स्थापित किया है। हम अन्य क्षेत्रों में इसका अनुकरण कर सकते हैं। मोबाइल मैन्युफैक्चरिंग, दवा और चिकित्सा उपकरणों के लिए हमारी हाल ही में शुरू की गई उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (पीएलआई) योजनाएं प्रतिस्पर्धात्मकता के साथ-साथ क्षमता बनाने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित निवेशकों को आकर्षित करने के अच्छे उदाहरण हैं। साथ ही वे भारत को उनका निर्यात का हब बनाते हैं। अकेले मोबाइल फोन सेंगमेंट में यह उम्मीद की जा रही है कि उनका 10 लाख करोड़ से अधिक का उत्पादन अगले पांच वर्षों में होगा, जिसमें से 60 प्रतिशत निर्यात होगा।

मूडीज के मुताबिक अमेरिका से 2020 में ग्रीनफील्ड के 145 प्रोजेक्ट भारत में आए हैं, जबकि चीन में 86, वियतनाम में 12 और मलेशिया में 15 हैं। यह भारत की विकास की कहानी में वैश्विक आत्मविश्वास का एक स्पष्ट संकेत हैं। हमने भारत को अग्रणी विनिर्माण गंतव्य बनाने के लिए मजबूत नींव रखी है।

कॉरपोरेट टैक्स में कटौती, कोयला क्षेत्र में वाणिज्यिक खनन की शुरुआत, निजी निवेश के लिए अंतरिक्ष क्षेत्र को खोलना, नागरिक उड्डयन उपयोग के लिए हवाई मार्गों पर रक्षा प्रतिबंधों को उठाना, कुछ ऐसे कदम हैं जो विकास को बढ़ावा देने में लंबा रास्ता तय करेंगे।

लेकिन हमें यह भी समझना चाहिए कि भारत उतनी तेजी से बढ़ सकता है जितना तेज काम, हमारे राज्य करते हैं। निवेश आकर्षित करने के लिए राज्यों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्धा होनी चाहिए। राज्य ईज ऑफ डूंइग बिजनेस रैंकिंग पर भी प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं। अकेले प्रोत्साहन, निवेश के लिए पर्याप्त नहीं हो सकता। राज्यों को बुनियादी ढांचे का निर्माण करने और विकास से संबंधित नीतियों का पालन करने की आवश्यकता होगी।

19. कुछ क्षेत्रों (quarters) में इस बात का डर है कि आत्मनिर्भर भारत निरंकुशता के दिनों की वापसी करता है। कुछ का कहना है कि भारत का वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला का हिस्सा बनने के प्रयास तथा आयात को प्रतिबंधित करने में विरोधाभास है। आपके विचार?

यह भारत या भारतीयों के स्वभाव में नहीं है कि वे अंदर की ओर देखें या आत्म-केंद्रित हों। हम एक दूरदर्शी सभ्यता और एक जीवंत लोकतंत्र हैं जो एक बेहतर दुनिया के निर्माण के लिए अन्य देशों के साथ बातचीत करने के लिए देखता है। आत्मनिर्भर भारत केवल प्रतिस्पर्धा के बारे में नहीं है, बल्कि क्षमता के बारे में भी है, यह प्रभुत्व के बारे में नहीं है, बल्कि निर्भरता के बारे में है, यह भीतर देखने के लिए बारे में नहीं है, बल्कि दुनिया को बाहर से देखने के बारे में है।

इसलिए, जब हम आत्मनिर्भर भारत कहते हैं तो हमारा मतलब एक ऐसे भारत से है, जो सबसे पहले आत्मनिर्भर हो। एक आत्मनिर्भर भारत दुनिया के लिए एक विश्वसनीय मित्र भी है। एक आत्मनिर्भर भारत का मतलब ऐसे भारत से नहीं है जो आत्म-केंद्रित हो। जब कोई बच्चा 18 वर्ष की आयु तक पहुंचता है, तो माता पिता भी उसे आत्मनिर्भर बनने के लिए कहते हैं। यह नैचुरल है।

आज हम चिकित्सा क्षेत्र में दुनिया की मदद करने के लिए अपनी आत्मनिर्भरता का उपयोग कर रहे हैं। उदाहरण के लिए हम लागत में वृद्धि या प्रतिबंध लगाए बिना टीकों और दवाओं का उत्पादन कर रहे हैं। हमारे जैसा अपेक्षाकृत गरीब देश डॉक्टरों को शिक्षित करने के लिए एक बड़ी धनराशि लगता है जो आज दुनिया भर में फैले हुए हैं, मानवता की मदद कर रहे हैं। हमने उन्हें पलायन करने से कभी नहीं रोका।

जब भारत एक निश्चित क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो जाएगा तो वह हमेशा दुनिया की मदद करेगा। यदि कोई व्यक्ति भारत की नैतिकता और भावना को नहीं समझता है तो वे इस अवधारणा को नहीं समझ पाएंगे।

20. तो कोई विरोधाभास नहीं है?

यह जरूरी नहीं है कि एक्सपर्ट्स के बीच कंफ्यूजन है तो हमारी अप्रोच में भी अंतर्विरोध है। हमने कृषि, श्रम और कोयला जैसे सुधारों के माध्यम से एफडीआई के लिए प्रतिबंधों को कम किया है। केवल वही देश, दुनिया के साथ काम करने के लिए अधिक से अधिक रास्ते खोलने पर जाएगा जो अंतरराष्ट्रीय व्यापार और वाणिज्य की शक्ति में विश्वास रखता है। साथ ही, यह भी सच है कि भारत उन क्षेत्रों में अपनी क्षमता का एहसास करने में असमर्थ रहा है, जहां उसके निहित लाभ हैं। उदाहरण के लिए कोयला क्षेत्र को लें। दुनिया के सबसे बड़े भंडारों में से एक होने के बावजूद, 2019-20 में भारत ने लगभग 1.5 लाख करोड़ रुपये के कोयले का आयात किया। डिफेंस, हमारे लिए आयात निर्भरता का एक और क्षेत्र है। हमने एफडीआई सीमा 49 से बढ़ाकर 74 प्रतिशत कर दी तो अगले पांच वर्षो में 3.5 लाख करोड़ रुपये की 101 वस्तुओं के घरेलु उत्पादन की भी घोषणा की है।

अतीत में अपने बाजार खोलने के दौरान, हमने 10 मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) और 6 तरजीही व्यापार समझौतों (पीटीए) पर भी हस्ताक्षर किए। मौजूदा एफटीए का आकलन इस आधार पर होना चाहिए कि वे भारत के लिए कैसे लाभान्वित हुए हैं, न कि वैचारिक रूप से खड़े होने के आधार पर।

भारत ग्लोबल वैल्यू चेन का हिस्सा बनना चाहता है और व्यापार सौदे करना चाहता है, लेकिन उन्हें निष्पक्ष और गैर-भेदभावपूर्ण होना चाहिए। इसके अलावा, चूंकि भारत एक बड़े बाजार तक पहुंच प्रदान कर रहा है, इसलिए समझौतों को पारस्परिक और संतुलित होना चाहिए।

हमने अपने एफटीए के तहत अपने बड़े बाजार को पहुंच दी। हालांकि, हमारे ट्रेडिंग पार्टनर्स ने हमेशा जवाब में वैसा ही पारस्परिक व्यवहार नहीं किया। हमारे निर्यातकों को अक्सर गैर-इरादतन गैर-टैरिफ बाधाओं का सामना करना पड़ता है। उदाहरण के लिए, जबकि हमारे ट्रेडिंग पार्टनर्स भारत को स्टील निर्यात कर सकते हैं, कुछ व्यापारिक साझेदार भारतीय स्टील के आयात की अनुमति नहीं देते हैं। इसी तरह, भारतीय टायर निर्माता तकनीकी बाधाओं के कारण निर्यात करने में असमर्थ हैं। जबकि भारत व्यापार में खुलेपन और पारदर्शिता के लिए प्रतिबद्ध है। यह अपने निर्यातकों के लिए स्वतंत्र और निष्पक्ष पहुंच सुनिश्चित करने के लिए अपने उपायों और उपकरणों का उपयोग करेगा।

आरसीईपी के मामले में भारत ने अंतिम निष्कर्ष के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास किया। हम निष्पक्ष व्यापार प्रथाओं और पारदर्शिता के आधार पर एक स्तरीय प्लेइंग फील्ड चाहते थे। हमने कुछ आरसीईपी देशों में गैर-शुल्क बाधाओं और सब्सिडी शासनों की अपारदर्शिता पर गंभीर चिंता व्यक्त की। भारत ने आरसीईपी में शामिल नहीं होने का निर्णय सोच समझ कर लिया। हमने इस तथ्य पर प्रकाश डाला कि वर्तमान संरचना के आसीईपी के मार्गदर्शक सिद्धांतों को प्रतिबिंबित नहीं किया और न ही बकाया मुद्दों पर विचार किया।

21. सरकारी आकलन से यह प्रतीत होता है कि एफटीए ने भारत के पक्ष में काम नहीं किया है। हम भी आरसीपीई से बाहर चले गए। आपकी सोच इस विषय पर किसी प्रकार विकसित हुई है?क्या आपको लगता है कि हमें एफटीए को लक्ष्य में रखना चाहिए?

अंतरराष्ट्रीय व्यापार के पीछे मार्गदर्शक सिद्धांत सभी देशों के लिए विन-विन समाधान बनाना है। मुझे विशेषज्ञों ने बताया कि विश्व व्यापार संगठन के माध्यम से आदर्श रूप से व्यापार सौदे वैश्विक और बहुपक्षीय होना चाहिए। भारत ने हमेशा वैश्विक व्यापार नियमों का पालन किया है और वह एक मुक्त, निष्पक्ष, न्यायसंगत, पारदर्शी और नियमों पर आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यापार प्रणाली के लिए खड़ा है, जिसे डब्ल्यूटीओ के तहत परिकल्पित विकास के उद्देश्यों और विकासशील देशों की आकांक्षाओं को पूरा करना चाहिए।

22.भारत पीपीई और मास्क के एक प्रमुख उत्पादक के रूप में उभरा है। इसी प्रकार फॉर्मा एक रणनीतिक क्षेत्र के रूप में उभरा है। आगे बढ़ते हुए, आप इस क्षेत्र में हमारे एडवांटेज को कैसे मजूबत करेंगे?

हमने महामारी की शुरुआत में महसूस किया कि हम पीपीई के लिए आयात पर निर्भर हैं। विश्व के देशों द्वारा लॉकडाउन लगाए जाने के बाद समस्या बढ़ गई, जिससे मैन्युफैक्चरिंग प्रभावित हुई, जिसके परिणामस्वरूप वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में व्यवधान आया। इसका अनिवार्य रूप से मतलब था कि देश को संकट के समय आत्मनिर्भर बनने के तरीकों के बारे में जल्दी से सोचना था।

हमने इस उद्देश्य के लिए प्रत्येक कच्चे माल की पहचान और सोर्सिंग के लिए बहुत ही फोकस होकर अनुसरण किया। हमने पीपीई किट, एन-95 मास्क, वेंटिलेटर, डायग्नोस्टिक किट इत्यादि बनाने और खरीदने के उद्देश्य को पूरा करने के लिए उद्योग और राज्य सरकारों के साथ चौबीसों घंटे काम किया। एक बार जब इन मुद्दों को हल कर लिया गया, तो स्वदेशी उत्पादन शुरू हो गया और खरीद के लिए घरेलू निर्माताओं द्वारा आदेश दिए गए। भारत अब एक ऐसी स्थिति में है जहां हम न केवल अपनी घरेलू मांग को पूरा कर रहे हैं बल्कि अन्य देशों की मांग को पूरा करने में भी सक्षम हैं।

भारत पिछले कुछ महीनों में अपने विश्व की फॉर्मेसी होने के नाम को साबित करते हुए लगभग 150 देशों को दवाओं और चिकित्सा उपकरणों की आपूर्ति की। भारतीय फॉर्मा क्षेत्र का आकार लगभग 38 बिलियन डॉलर है। इस लाभ को मजबूत करने के लिए, सरकार ने चिकित्सा उपकरणों और सक्रिय दवा सामग्री के उत्पादन के लिए 14,000 करोड़ के परिव्यय को मंजूरी दे दी है। वैश्विक नेतृत्व की स्थिति प्राप्त करने के लिए थोक दवा पार्क और चिकित्सा उपकरण पार्क बनाए जा रहे हैं।

23. अगले साल तक टीका उपलब्ध होने की संभावना है। क्या उसके वितरण और टीकाकरण की प्राथमिकताओं पर जो किया जाएगा उस पर क्या कुछ सोच है?

सबसे पहले, मैं देश को आश्वस्त करना चाहता हूं कि कोरोना की वैक्सीन जब भी बनेगी, हर किसी का टीकाकरण किया जाएगा। किसी को छोड़ा नहीं जाएगा। हां, इस टीकाकरण अभियान के शुरुआत में कोरोना के खतरे के सबसे नजदीक मौजूद लोगों को शामिल किया जाएगा। इसमें कोरोना से जंग लड़ रहे फ्रंटलाइन वर्कर्स शामिल होंगे। कोविड-19 वैक्सीन के लिए वैक्सीन एडमिनिस्ट्रेशन पर एक राष्ट्रीय विशेषज्ञ समूह का गठन किया गया है।

हमें यह भी समझना चाहिए की वैक्सीन डेवलपमेंट अभी भी प्रगति पर है। परीक्षण जारी हैं। विशेषज्ञ यह नहीं कह सकते हैं कि वैक्सीन क्या होगा, इसकी खुराक प्रति व्यक्ति समय-समय पर या इसे कैसे दी जाएगी आदि। इस सब पर जब विशेषज्ञों द्वारा अंतिम रूप दिया जाएगा, तब नागरिकों को वैक्सीन देने के बारे में हमारे दृष्टिकोण को भी मार्गदर्शन मिलेगा।

लॉजिस्टिक पर 28,000 से अधिक कोल्ड चेन प्वाइंट कोविड-19 को स्टोर करेंगे और वितरित करेंगे ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे अंतिम छोर तक पहुंचे। राज्य, जिला और स्थानीय स्तर पर समर्पित टीमें यह देखेंगी कि वैक्सीन वितरण और प्रशासन व्यवस्थित और जवाबदेह तरीके से किया जाए। लाभार्थियों को भर्ती करने, ट्रैक करने और उन तक पहुंचने के लिए एक डिजिटल प्लेटफॉर्म भी तैयार किया जा रहा है।

24. कोविड-19 के झटके को देखते हुए हम 2024 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के लक्ष्य पर कहां खड़े हैं?

ज्यादातर लोग जो निराशावादी हैं वो संदेह में रहते हैं। यदि आप उनके बीच बैठते हैं, तो आपको निराशा और निराशा की बातें ही सुनने को मिलेंगी।

हालांकि, यदि आप आशावादी लोगों के साथ चर्चा करते हैं, तो आप सुधार के बारे में विचारों और सुझावों को सुनेंगे। आज हमारे देश का भविष्य आशावादी है, यह 5 ट्रिलियन डॉलर के लक्ष्य तक पहुंचने के लिए आशावादी है और यह आशावाद हमें आत्मविश्वास देता है। आज, अगर हमारे कोरोना वॉरियर्स मरीजों की सेवा करने के लिए 18-20 घंटे काम कर रहे हैं, तो यह हमें और अधिक कड़ी मेहनत करने के लिए प्रेरित करता है।

तो क्या हुआ, अगर हम महामारी के कारण इस वर्ष वांछित गति से आगे नहीं बढ़ सके! हम अगले साल नुकसान की भरपाई के लिए और तेजी से प्रयास करेंगे। यदि हम अपने मार्ग में बाधाओं से घिर जाते हैं तो कुछ भी बड़ा नहीं कर पाते। आशा नहीं रख कर, हम विफलता की गारंटी देते हैं। क्रय शक्ति समानता (purchasing power parity) के मामले में भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। हम चाहते हैं कि भारत वर्तमान अमेरिकी डॉलर की कीमतों के साथ ही तीसरा सबसे बड़ा देश बन जाए। पांच ट्रिलियन डॉलर का लक्ष्य हमें यह प्राप्त करने में मदद करेगा।

साथ ही, हमारी सरकार के पास लक्ष्यों को पूरा करने का एक ट्रैक रिकॉर्ड है। हमने समय सीमा से पहले ग्रामीण स्वच्छता लक्ष्य को पूरा किया। हम समय सीमा से पहले गांव के विद्युतीकरण लक्ष्य हासिल किए। हमने 8 करोड़ उज्ज्वला कनेक्शन लक्ष्य को समय सीमा से पहले पूरा किया। इसलिए हमारे ट्रैक रिकॉर्ड और निरंतर सुधारों को देखते हुए, लोगों को लक्ष्य तक पहुंचने की हमारी क्षमताओं पर भी विश्वास है।

हमने उन लोगों को उचित मौका दिया है जिन्होंने भारत में निवेश किया है, अपनी क्षमताओं का विस्तार करने और विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनने के लिए अपना विश्वास दिखाया है। आत्मनिर्भर भारत पहल, भारत की अप्रकट क्षमता को अनलॉक करने के बारे में है, ताकि हमारी फर्म्स (Firms) न केवल घरेलू बाजारों, बल्कि वैश्विक लोगों को भी सेवा दे सकें।