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निगोशिएबल इन्स्ट्रूमेंट (हुण्‍डी, चेक संबंधी प्रपत्र) (संशोधन) अध्‍यादेश, 2015 जारी करने का प्रस्‍ताव


प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी की अध्‍यक्षता में केन्‍द्रीय मंत्रिमंडल ने निगोशिएबल इन्‍स्‍ट्रूमेंट (हुण्‍डी, चेक संबंधी प्रपत्र) (संशोधन) अध्‍यादेश, 2015 जारी करने के प्रस्‍ताव को अपनी स्‍वीकृति दे दी है।

निगोशिएबल इन्‍स्‍ट्रूमेंट अधिनियम, 1881 (एनआई अधिनियम) में प्रस्‍तावित संशोधनों के तहत एनआई अधिनियम की धारा 138 के तहत किए गए अपराधों के लिए वाद दायर करने से जुड़े मामलों में क्षेत्राधिकार के बारे में स्‍पष्‍टीकरण देने पर ध्‍यान केन्द्रित किया गया है।

क्षेत्राधिकार से जुड़े मुद्दों पर स्‍पष्‍टीकरण इक्विटी के दृष्टिकोण से अपेक्षित है क्‍योंकि यह शिकायतकर्ता के हित में होगा और इससे निष्‍पक्ष सु‍नवाई सुनिश्चित होगी।

चेक बाउंस के मामलों में क्षेत्राधिकार के मुद्दों पर स्‍पष्‍टीकरण से एक वित्‍तीय प्रपत्र के रूप में चेक की विश्‍वसनीयता बढ़ेगी। इससे सामान्‍य तौर पर व्‍यापार एवं वाणिज्‍य में मदद मिलेगी और बैंकों समेत ऋणदाता संस्‍थानों को चेक बाउंस के चलते कर्ज अदायगी में चूक होने की आशंका के बगैर अर्थव्‍यवस्‍था को वित्‍त मुहैया कराने का सिलसिला जारी रखने में आसानी होगी।

एनआई अधिनियम की धारा 138 का वास्‍ता खाताधारक के खाते में अपर्याप्‍त धन इत्‍यदि के चलते कर्ज अथवा अन्‍य देनदारी की कानूनन अदायगी के लिए उसके द्वारा जारी किए गए चेक के बांउस होने से जुड़े मामलों से है। एनआई अधिनियम की धारा 138 में चेक जारी करने वाले के खाते में अपर्याप्‍त धन के चलते उसके द्वारा जारी चेक के बाउंस होने की स्थिति में जुर्माना लगाने का प्रावधान है। एनआई अधिनियम का उद्देश्‍य चेक के इस्‍तेमाल को बढ़ावा देना और संबंधित प्रपत्र की विश्‍वसनीयता बढ़ाना है, ताकि सामान्‍य कारोबारी लेन-देन और देनदारियों का निपटान सुनिश्चित किया जा सके।

विभिन्‍न वित्‍तीय संस्‍थानों और उद्योग संगठनों का कहना है कि धारा 138 के तहत वाद दायर करने का क्षेत्राधिकार संबंधित बैंक द्वारा चेक जारी किए गए स्‍थान को ही तय किए जाने से जुड़ी सुप्रीम कोर्ट की हालिया कानूनी व्‍याख्‍या से भारी मुश्‍किलों का सामना करना पड़ रहा है। एनआई अधिनियम के धारा 138 के तहत ऋणदाताओं को वाद दायर करने में आ रही मुश्किलों से निजात पाने के लिए धारा 138 के तहत अपराध के क्षेत्राधिकार की स्‍पष्‍ट परिभाषा तय करने का प्रस्‍ताव किया गया, क्‍योंकि इस वजह से बड़ी संख्‍या में मामले अटक गए हैं। तदनुसार, निगोशिएबल इन्‍स्‍ट्रूमेंट (संशोधन) विधेयक, 2015 को 6 मई, 2015 को लोकसभा में पेश किया गया था और 13 मई, 2015 को उसे इस सदन में विचार-विमर्श के बाद पारित कर दिया गया था। हालांकि 13 मई, 2015 को ही अनिश्चित काल के लिए राज्‍यसभा का स्‍थगन हो जाने के चलते वहां इस विधेयक पर चर्चा नहीं हो सकी और सदन द्वारा इसे पारित नहीं किया जा सका। इस वजह से यह वि‍धेयक कानून की शक्‍ल नहीं ले सका।