विशिष्ट अतिथिगण,
देवियों एवं सज्जनों,
आज भाषणों का दिन लग रहा है। थोड़ी देर पहले हमने राष्ट्रपति शी और प्रधानमंत्री मे को सुना। और अब मैं बोल रहा हूं। शायद यह कुछ लोगों के लिए ज्यादती है। अथवा 24/7 समाचार चैनलों के लिए अधिकता की समस्या हो सकती है।
दूसरी रायसीना वार्ता के उद्घाटन समारोह में आपसे बोलना बड़े सौभाग्य की बात है। महामहिम करजई, प्रधानमंत्री हार्पर, प्रधानमंत्री केविन रुड, आपलोगों को दिल्ली में देखकर खुशी हो रही है। साथ ही, सभी अतिथियों का गर्मजोशी से स्वागत है। अगले कुछ दिनों के दौरान आप हमारे आसपास की दुनिया की स्थिति पर कई बातचीत आयोजित करेंगे। आप इसकी निश्चितता एवं प्रचलित प्रवाह, टकराव एवं जोखिम, सफलताओं एवं अवसरों, अतीत के व्यवहार एवं पूर्वानुमान और संभावित ब्लैक स्वान्स एवं न्यू नॉर्मल्स पर चर्चा करेंगे।
मित्रों,
मई 2014 में भारत के लोगों ने भी एक न्यू नॉर्मल्स की शुरुआत की थी। मेरे साथी भारतीयों ने एक स्वर में बदलाव की बात करते हुए मेरी सरकार को जनादेश दिया था। न केवल व्यावहार में बल्कि मानसिकता में बदलाव। बहावपूर्ण स्थिति से उद्देश्यपूर्ण कार्यों के लिए बदलाव। साहसिक निर्णय लेने के लिए बदलाव। सुधार तब तक पर्याप्त नहीं हो सकता जब तक वह हमारी अथव्यवस्था और समाज को न बदल दे। बदलाव जो भारत के युवाओं की आकांक्षाओं एवं आशावाद में अंतर्निहित है और यह लाखों लोगों की असीम ऊर्जा में निहित है। प्रत्येक दिन काम पर मैं इस पवित्र ऊर्जा से प्रेरित होता हूं। काम पर हर दिन मेरी सूची भारत में सभी भारतीयों की समृद्धि और सुरक्षा के लिए सुधार एवं बदलाव से निर्देशित होती है।
मित्रों,
मुझे पता है कि भारत के बदलाव को उसके बाह्य परिदृश्य से अलग नहीं किया जा सकता। हमारा आर्थिक विकास; हमारे किसानों का कल्याण; हमारे युवाओं के लिए रोजगार के अवसर; पूंजी, प्रौद्योगिकी, बाजार एवं संसाधनों तक हमारी पहुंच; और हमारे देश की सुरक्षा, इन सब पर वैश्विक घटनाओं का काफी प्रभाव पड़ता है। लेकिन इसका उलटा भी सही है।
दुनिया को भारत की सतत तरक्की की उतनी ही जरूरत है जितनी भारत को दुनिया की आवश्यकता है। हमारे देश को बदलने की हमारी इच्छा का बाहरी दुनिया से अविभाज्य संबंध है। इसलिए यह स्वाभाविक है कि घर में भारत की पसंद और हमारी अंतरराष्ट्रीय प्राथमिकताएं एक निर्बाध क्रम तैयार करती हैं। और यह भारत के परिवर्तनकारी लक्ष्यों के साथ पूरी तरह संबद्ध है।
मित्रों,
भारत अस्थिर समय में अपने परिवर्तन को आगे बढ़ा रहा है जो समान रूप से मानव की प्रगति और हिंसक उथल-पुथल का परिणाम है। विभिन्न कारणों से एवं विभिन्न स्तरों पर दुनिया गंभीर बदलाव से गुजर रही है। वैश्विक स्तर पर जुड़े समाज, डिजिटल संभावनाएं, प्रौद्योगिकी में बदलाव, ज्ञान में उछाल और नवाचार मानवता की राह का नेतृत्व कर रहे हैं। लेकिन सुस्त विकास और आर्थिक अस्थिरता भी एक प्रमुख तथ्य है। बिट्स और बाइट्स के इस दौर में भौतिक सीमाएं कम प्रासंगिक हो सकती हैं। लेकिन देशों के भीतर की दीवारें, व्यापार एवं प्रवास के खिलाफ धारणा और दुनियाभर में बढ़ते संकीर्ण एवं संरक्षणवादी नजरिये भी गंभीर तथ्य हैं। परिणामस्वरूप वैश्वीकरण के लाभ खतरे में हैं और आर्थिक लाभ हासिल करना अब उतना आसान नहीं रह गया है।
अस्थिरता, हिंसा, उग्रवाद, पृथकतावाद और अंतरराष्ट्रीय खतरे लगातार खतरनाक दिशाओं में बढ़ रहे हैं। और इन चुनौतियों को बढ़ाने में नॉन-स्टेट ऐक्टर्स की अहम भूमिका है। एक अलग दुनिया द्वारा एक अलग दुनिया बनाने के लिए तैयार संस्था एवं आर्किटेक्चर अब पुराने हो चुके हैं। और वे प्रभावी बहुपक्षवाद के लिए बाधा खड़ी कर रहे हैं। शीतयुद्ध की रणनीतिक स्पष्टता के करीब एक चैथाई सदी बाद दुनिया खुद को नए सिरे से व्यवस्थित कर रही है लेकिन उसके द्वारा हटाई गई वस्तुओं की धूल अभी तक साफ नहीं हुए हैं। लेकिन कुछ चीजें स्पष्ट हैं। राजनैतिक एवं सैन्य शक्ति बिखरकर बहुध्रुवीय दुनिया में वितरित हो चुकी है और बहुध्रुवीय एशिया का उदय आज एक प्रमुख तथ्य है। और हम उसका स्वागत करते हैं।
क्योंकि उसने कई देशों के उदय की वास्तविकता को स्वीकार किया है। यह तमाम लोगों की आवाजों को स्वीकार करता है कि महज कुछ लोगों के विचार के आधार पर वैश्विक एजेंडा तय नहीं होना चाहिए। इसलिए हमें ऐसी किसी सहजवृत्ति या प्रवृत्ति के प्रति सावधान रहने की जरूरत है जो खासकर एशिया में किसी अपवर्जन को बढ़ावा देता है। इस सम्मेलन में बिल्कुल सही समय पर बहुध्रुवीयता के साथ बहुपक्षवाद पर गौर किया जा रहा है।
मित्रों,
हम सामरिक दृष्टि से एक जटिल माहौल में रहते हैं। इतिहास के व्यापक परिदृश्य में बदलती दुनिया कोई नई स्थिति नहीं है। महत्त्वपूर्ण सवाल यह है कि देशों को एक ऐसी परिस्थिति में किस प्रकार की भूमिका निभानी चाहिए जहां संदर्भ का ढांचा तेजी से बदल रहा हो। हमारी पसंद और चाल हमारी राष्ट्रीय ताकत पर आधारित हैं।
हमारा सामरिक अभिलाषा हमारी सभ्यता के इन लोकाचारों से आकार लेता हैः
-यथार्थवाद
-सह-अस्तित्व
-सहयोग, तथा
-सहभागिता।
यह हमारे राष्ट्रीय हितों की एक स्पष्ट और जिम्मेदार अभिव्यक्ति है। भारतीयों, देश और विदेश दोनों, की समृद्धि और हमारे नागरिकों की सुरक्षा सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण हैं। लेकिन केवल अपने हितों का ही ख्याल रखना न तो हमारी संस्कृति में है और न ही हमारे व्यवहार में। हमारे कार्य एवं आकांक्षाएं, क्षमता एवं मानव पूंजी, लोकतंत्र एवं जनसांख्यिकी और शक्ति एवं सफलता समग्र क्षेत्रीय एवं वैश्विक प्रगति को लगातार आगे बढ़ाते रहेंगे। हमारी आर्थिक एवं राजनैतिक समृद्धि जबरदस्त क्षेत्रीय एवं वैश्विक अवसरों का प्रतिनिधित्व करती है। यह शांति के लिए एक ताकत, स्थिरता के लिए एक कारक और क्षेत्रीय एवं वैश्विक समृद्धि के लिए एक इंजन है।
मेरी सरकार के लिए इसका मतलब अंतरराष्ट्रीय कार्यों की राह है जो इन बातों पर केंद्रित हैः
– संपर्क का पुनर्निर्माण, पुलों को बहाल करना और हमारे आसपास एवं दूर की जगहों से भारत को जोड़ना।
– भारत की आर्थिक प्राथमिकताओं के साथ संबंधों का नेटवर्क तैयार करना।
– हमारे प्रतिभाशाली युवाओं को वैश्विक जरूरतों एवं अवसरों से जोड़ते हुए भारत को एक मानव संसाधन शक्ति बनाना।
– विकास के लिए भागीदारी करना जिसका दायरा हिंद एवं प्रशांत महासागर के द्वीपों से लेकर कैरिबियाई द्वीपों तक और अफ्रीका महादेश से लेकर अमेरिका तक विस्तृत हो।
– वैश्विक चुनौतियों पर भारतीय आख्यान बनाना।
– वैश्विक संस्थाओं एवं संगठनों के पुनर्विन्यास, पुनर्निर्माण और सुदृढीकरण में मदद करना।
– योग और आयुर्वेद सहित भारत की सांस्कृतिक विरासत के लाभ को वैश्विक भलाई के लिए प्रसार करना। इसलिए बदलाव केवल घरेलू क्षेत्रों पर केंद्रित नहीं है बल्कि यह हमारे वैश्विक एजेंडे में शामिल है।
मेरे लिए ‘सब का साथ, सबका विकास‘ सिर्फ भारत के लिए एक दृष्टि नहीं है। यह पूरी दुनिया के लिए एक धारणा है। और यह अपने आप में कई परतों, कई विषयों और विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों को प्रकट करता है।
हम उस ओर मुखातिब हैं भौगोलिक और साझा हितों के संदर्भ में हमारे करीबी हैं। हमने देखा है कि ‘नेबरहुड फस्र्ट’ के हमारे दृष्टिकोण के प्रति हमारे पड़ोसियों के रुख में उल्लेखनीय बदलाव आया है। दक्षिण एशिया के लोग रक्त, साझा इतिहास, संस्कृति और आकांक्षाओं से जुड़े हुए हैं। यहां के युवा बदलाव, अवसर, प्रगति और समृद्धि चाहते हैं। अच्छी तरह से जुड़ा हुआ, एकीकृत और संपन्न पड़ोसी का होना मेरा सपना है। पिछले ढ़ाई साल के दौरान हमने अपने लगभग सभी पड़ोसियों क्षेत्रीय एकजुटता के लिए साथ लाने का प्रयास किया है। हमने अपने क्षेत्र के प्रगतिशील भविष्य के लिए जहां भी जरूरत पड़ी, अतीत के बोझ को हल्का किया है। हमारे प्रयासों का परिणाम आप सबके सामने है।
अफगानिस्तान में, दूरी और पारगमन में कठिनाइयों के बावजूद, पुनर्निमाण, संस्थानों और क्षमताओं के निर्माण में हमारी भागदारी हाथ बंटा रही है। इस पृष्ठभूमि में हमारे सुरक्षा सहयोग को भी मजबूती मिली है। अफगानिस्तान के पार्लियामेंट भवन और इंडिया-अफगानिस्तान फ्रेंडशिप डैम का निर्माण पूरा होना विकास भागीदारी के लिए हमारी प्रतिबद्धता के दो चमचमाते उदाहरण हैं।
बांग्लादेश के साथ हमने कनेक्टिविटी एवं बुनियादी ढांचा परियोजनाओं और खासकर भूमि एवं समुद्री सीमाओं के निपटारे के जरिये बेहतर सम्मिलन एवं राजनीतिक समझ हासिल की है।
नेपाल, श्रीलंका, भूटान और मालदीव में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं, कनेक्टिविटी, ऊर्जा एवं विकास परियोजनाओं में हमारी सहभागिता इस क्षेत्र में स्थिरता एवं प्रगति का एक स्रोत है।
हमारे पड़ोसियों के लिए मेरी दृष्टि पूरे दक्षिण एशिया में शांतिपूर्ण एवं सौहार्दपूर्ण संबंधों पर जोर देती है। इसी दृष्टि ने मुझे अपने शपथग्रहण समारोह में पाकिस्तान सहित सभी सार्क देशों के नेताओं को आमंत्रित करने के लिए प्रेरित किया। इसी दृष्टि के लिए मैंने लाहौर की यात्रा की। लेकिन केवल भारत ही शांति की राह पर नहीं चल सकता। यह पाकिस्तान की भी यात्रा होनी चाहिए। पाकिस्तान यदि भारत के साथ बातचीत को आगे बढ़ाना चाहता है तो उसे आतंकवाद से दूर होना पड़ेगा।
देवियों एवं सज्जनों,
इसके अलावा पश्चिम में एक छोटी समयावधि में, और अनिश्चितता एवं संघर्ष के बावजूद, सउदी अरब, यूएई, कतर और ईरान सहित खाड़ी एवं पश्चिम एशिया के देशों के साथ हमने अपनी भागीदारी को नए सिरे से परिभाषित किया है। अगले सप्ताह भारत के गणतंत्र दिवस के अवसर पर महामहिम अबू धाबी के क्राउन प्रिंस को मुख्य अतिथि के तौर स्वागत करते हुए मुझे खुशी होगी। हमने न केवल धारणा को बदलने पर ध्यान केंद्रित किया है, बल्कि हमने अपने संबंधों की बास्तविकता को भी बदल दिया है।
इससे हमें हमारी सुरक्षा हितों को बढ़ावा देने, आर्थिक एवं ऊर्जा करारों को मजबूती देने और करीब 80 लाख भारतीयों के सामाजिक कल्याण के लिए चीजों को बेहतर बनाने में मदद मिली है। मध्य एशिया में भी हमने समृद्ध भागीदारी के नए अध्याय को पलटने के लिए साझा इतिहास एवं संस्कृति पर आधारित अपने संबंधों का महल बनाया है। शंधाई सहयोग संगठन की हमारी सदस्यता मध्य एशियाई देशों के साथ हमारे संबंधों के लिए एक मजबूत संस्थागत लिंक मुहैया कराती है। हमने अपने मध्य एशियाई भाइयों एवं बहनों के सर्वांगीन समृद्धि में निवेश किया है। और उस क्षेत्र में लंबे समय के संबंधों को सफलतापूर्वक नए सिरे से गढ़ा है।
पूर्व में, हमारी ऐक्ट ईस्ट पॉलिसी के केंद्र में दक्षिण पूर्व एशिया के साथ हमारा संबंध है। हमने इस क्षेत्र में पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन जैसे संस्थागत ढांचे के साथ करीबी संबंध बनाया है। आसियान और इसके सदस्य देशों के साथ हमारी भागीदारी ने इस क्षेत्र में वाणिज्यि, प्रौद्योगिकी, निवेश, विकास और सुरक्षा भागीदारी को समृद्ध किया है। इसने हमारे व्यापक सामरिक हितों को भी उन्नत किया है और इस क्षेत्र में स्थिरता को बढ़ावा दिया है। चीन के साथ हमारे संबंधों में, जैसा कि राष्ट्रपति शी और मैं सहमत हुए, हमने अपने संबंधों में मौजूद वाणिज्य एवं व्यापार संबंधी अपार संभावनाओं के दोहन की बात कही है। मैं भारत और चीन के विकास को न केवल दोनों देशों बल्कि पूरी दुनिया के लिए अभूतपूर्व अवसर के रूप में देखता हूं। लेकिन ठीक उसी समय इन दो बड़े पड़ोसी शक्तियों के बीच कुछ मतभेद होना अस्वाभाविक नहीं है। हमारे संबंधों को बरकरार रखने और इस क्षेत्र में शांति एवं प्रगति के लिए दोनों देशों को संवेदनशीलता दिखाने और एक-दूसरे की प्रमुख चिंताओं एवं हितों का सम्मान करने की जरूरत है।
मित्रों,
प्रचलित ज्ञान हमें बताता है कि यह एशिया की सदी है। एशिया में जबरदस्त बदलाव हो रहा है। यहां प्रगति और समृद्धि का विशाल भंडार है जो इस क्षेत्र में विभिन्न जगहों पर विस्तृत है। लेकिन बढ़ती महत्वाकांक्षा और प्रतिद्वंद्विता के कारण कुछ जगहों पर तनाव पैदा होते दिख रहे हैं। एशिया प्रशांत क्षेत्र में सैन्य शक्तियों, संसाधनों और संपत्तियों में लगातार वृद्धि होने के कारण सुरक्षा की चिंता भी बढ़ गई है। इसलिए इस क्षेत्र में सुरक्षा ढांचा निश्चित तौर पर खुला, पारदर्शी, संतुलित और समावेशी होना चाहिए। संवाद और उम्मीद के मुताबिक व्यवहार को बढ़ावा देना अंतरराष्ट्रीय मानदंडों एवं संप्रभुता के लिए सम्मान में निहित है।
मित्रों,
पिछले ढ़ाई साल के दौरान हमने अमेरिका, रूस, जापान ओर अन्य प्रमुख वैश्विक शक्तियों के साथ अपने संबंधों को एक मजबूत गति दी है। उनके साथ हमने न केवल सहयोग की इच्छा जाहिर की बल्कि हमने अपनी चुनौतियों एवं अवसरों के बारे में विचारों को भी एकजुट किया। ये भागीदारी भारत की आर्थिक प्राथमिकताओं और रक्षा एवं सुरक्षा के लिहाज से बिल्कुल उपयुक्त हैं। अमेरिका के साथ हमने अपने व्यापक संबंधों को मजबूती और गति दी है। नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के साथ हुई मेरी बातचीत में, हम हमारी सामरिक साझेदारी में इन फायदों के लिए प्रयास जारी रखने के लिए सहमत हुए। रूस हमारा एक स्थायी मित्र है। राष्ट्रपति पुतिन और मैंने आज की दुनिया की चुनौतियों पर लंबी बातचीत की है। हमारी विश्वसनीय एवं सामरिक भागीदारी खासकर रक्षा के क्षेत्र में काफी गहरा गया है।
हमारे निवेश हमारे संबंधों के नए वाहक हैं, और ऊर्जा, व्यापार एवं एसएंडटी लिंकेज पर जोर देने के परिणाम सफल रहे हैं। जापान के साथ भी हमारी एक सच्ची सामरिक भागीदारी है जो आर्थिक गतिविधि के हरेक क्षेत्र में रूपरेखा तैयार कर रही है। प्रधानमंत्री अबे और मैंने हमारे सहयोग को आगे और तेज करने के लिए अपनी प्रतिबद्धता जाहिर की है। भारत के विकास खास तौर पर ज्ञान उद्योग और स्मार्ट शहरीकरण में यूरोप के साथ मजबूत भागीदारी का हमारा सपना है।
मित्रों,
भारत दशकों से अपने साथी विकासशील देशों के साथ अपनी क्षमताओं एवं ताकत को साझा करने में अग्रणी रहा है। हम पिछले कुछ वर्षों में अफ्रीका के अपने भाइयों और बहनों के साथ अपने संबंधों को और मजबूत किया है। और हमने दशकों पुराने पारंपरिक दोस्ती एवं ऐतिहासिक संबंधों के ठोस बुनियाद पर सार्थक विकास भागीदारी का निर्माण किया है। आज हमारी विकास भागीदारी के पदचिह्न दुनियाभर में फैले हुए हैं।
देवियों एवं सज्जनों,
भारत का एक समुद्री देश होने का लंबा इतिहास रहा है। सभी दिशाओं में हमारे समुद्री हित सामरिक एवं महत्वपूर्ण हैं। हिंद महासागर के प्रभाव का दायरा तटीय सीमाओं से काफी परे है। इस क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा एवं विकास के लिए हमारी पहल ‘सागर’ का दायरा न केवल मुख्य भूमि एवं द्वीपों की रखवाली तक सीमित है। बल्कि यह हमारे समुद्री संबंधो में आर्थिक एवं सुरक्षा सहयोग को मजबूती देने के हमारे प्रयासों को परिभाषित करती है। हम जानते हैं कि सम्मिलन, सहयोग और सामूहिक कार्रवाई से हमारे समुद्री क्षेत्र में शांति और आर्थिक गतिविधियां बेहतर होंगी। हम यह भी मानते हैं कि हिंद महासागर में शांति, समृद्धि और सुरक्षा के लिए प्राथमिक दायित्व उन लोगों में निहित है जो इस क्षेत्र में निवास करते हैं। हमारा कोई विशेष दृष्टिकोण नहीं है। और हमारा उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय कानून के प्रति सम्मान के आधार पर देशों को साथ लाना है। हमारा मानना है कि नौवहन की आजादी और अंतरराष्ट्रीय प्रावधानों का सम्मान करना शांति एवं आर्थिक विकास और भारत-प्रशांत समुद्री क्षेत्र में बेहतर संपर्क के लिए आवश्यक है।
मित्रों,
हम शांति, प्रगति और समृद्धि के लिए बेहतर क्षेत्रीय कनेक्टिविटी के तर्क की सराहना करते हैं। हमने अपने विकल्पों और कार्यों के माध्यम से पश्चिम एवं मध्य एशिया और पूर्व की ओर एशिया प्रशांत तक हमारी पहुंच की बाधाओं को दूर करने पर जोर दिया है। ईरान और अफगानिस्तान के साथ चाबहार त्रिपक्षीय समझौता और इंटरनैशनल नॉर्थ साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर के लिए हमारी प्रतिबद्धता इसके दो स्पष्ट और सफल उदाहरण हैं। हालांकि यह कनेक्टिविटी अपने आप में अन्य देशों की संप्रभुता को कमजोर या उल्लंघन नहीं कर सकती है। अन्य देशों की संप्रभुता का सम्मान करने पर ही क्षेत्रीय कनेक्टिविटी कॉरिडोर मतभेद और कलह से बचते हुए अपने वादों को पूरा कर सकता है।
मित्रों,
हमने अपनी परंपराओं का पालन करते हुए अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं का बोझ अपने कंधों पर उठाया है। आपदा के समय में हमने सहायता और राहत प्रयासों का नेतृत्व किया है। नेपाल में भूकंप, यमन से निकासी और मालदीव एवं फिजी में संकट के दौरान हमने सबसे पहले पहल की। अंतरराष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा को बरकरार रखने के लिए हम अपनी जिम्मेदारी निभाने में भी कभी नहीं झिझके। हमने तटीय निगरानी, व्हाइट शिपिंग सूचनाएं और समुद्री डकैती, तस्करी एवं संगठित अपराध जैसे गैर पारंपरिक खतरों से निपटने में भी अपना सहयोग बढ़ाया है।
हमने लंबे समय से खड़ी वैश्विक चुनौतियों के लिए भी वैकल्पिक व्यवस्थाओं को आकार दिया है। हमारा मानना है कि आतंकवाद को धर्म से अलग करना और अच्छे एवं बुरे आतंकवाद में कृ़त्रिम भेद को खारिज करना अब वैश्विक बातचीत के प्रमुख बिंदु होने चाहिए। और हमारे पड़ोस में जो हिंसा का समर्थन करते हैं, घृणा को बढ़ावा देते हैं और आतंक का निर्यात करते हैं, उन्हें अलग-थलग और नजरअंदाज किया जाना चाहिए।
ग्लोबल वार्मिंग एक अन्य प्रमुख चुनौती है जिस ओर हमने अग्रणी भूमिका निभाया है। हमने अक्षय ऊर्जा से 175 गीगावॉट बिजली पैदा करने का महत्वाकांक्षी एजेंडा और समान रूप से आक्रामक लक्ष्य निर्धारित किया है। और हम अच्छी शुरुआत पहले ही कर चुके हैं। प्रकृति के साथ सौहार्दपूर्ण जीवन को बढ़ावा देने के लिए हमने सांस्कृतिक परंपराओं को साझा किया है। हमने सौर ऊर्जा के दोहन से मानव विकास को बढ़ावा देने के उद्देश्य से एक अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन बनाने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भी साथ लाया है।
भारत की सभ्यताओं की सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक संपन्नता में अंतरराष्ट्रीय रुचि को पुनर्जीवित करना हमारे प्रमुख प्रयासों में शामिल है। आज, बौद्ध धर्म, योग और आयुर्वेद को मानव की अमूल्य विरासत के रूप में पहचान मिली है। भारत हरेक कदम पर इस साझा विरासत का जश्न मनाएगा, क्योंकि यह देशों और क्षेत्रों के बीच पुल का काम करती है और सबकी भलाई को बढ़ावा देती है।
देवियों एवं सज्जनों,
अंत में मैं केवल इतना कहना चाहता हूं कि दुनिया को जोड़ने में हमारे प्राचीन ग्रंथों में हमें निर्देशित किया है।
ऋग्वेद कहता है,
आ नो भद्राः क्रत्वो यन्तु विश्वतः
यानी सभी दिशाओं से अच्छे विचार हमारे पास आएं।
एक समाज के रूप में हमने हमेशा किसी एक की चाहत के बजाय बहुतों की आवश्यकताओं का समर्थन किया है। और ध्रुवीकरण पर तरजीही भागीदारी की है। हमारा मानना है कि किसी एक की सफलता को निश्चित तौर पर कइयों के विकास को बढ़ावा देना चाहिए। हमारा काम और हमारी दृष्टि बिल्कुल स्पष्ट है। हमारी बदलाव की यात्रा हमारे घर से ही शुरू होती है। और उसे दुनियाभर में हमारी रचनात्मक एवं सहयोगात्मक भागीदारी का पुरजोर समर्थन मिला है। घर में दृढ़ता के साथ कदम उठाने और विदेश में भरोसेमंद दोस्तों के नेटवर्क में विस्तार के जरिये भविष्य के वादे को पूर कर लेंगे जो हमारे करोड़ों भारतीयों के लिए हैं। और इस प्रयास में मेरे दोस्तों, भारत में आप शांति एवं प्रगति, स्थिरता एवं सफलता और पहुंच एवं सुविधा की एक बीकन पाएंगे।
धन्यवाद,
बहुत-बहुत धन्यवाद।
Former President of Afghanistan @KarzaiH with PM @narendramodi during the @raisinadialogue in Delhi. pic.twitter.com/o4p17r76nQ
— PMO India (@PMOIndia) January 17, 2017
The Prime Minister addressed the @raisinadialogue, where he talked at length about 'New Normal: Multilateralism with Multi-polarity.' pic.twitter.com/hNWPQeVERQ
— PMO India (@PMOIndia) January 17, 2017
Shared my thoughts on ‘The New Normal: Multilateralism and Multi-polarity' at the @raisinadialogue in Delhi. https://t.co/8R45jNw7Kw
— Narendra Modi (@narendramodi) January 17, 2017
Talked about aspects of India's foreign policy, our relations with our immediate neighbourhood & other nations.
— Narendra Modi (@narendramodi) January 17, 2017
Elaborated on how India's strategic interests are shaped by our civilisational ethos of realism, co-existence, cooperation & partnership.
— Narendra Modi (@narendramodi) January 17, 2017
Self-interest is not India's culture. Our actions, aspirations, democracy, demography will be an anchor for regional & global progress.
— Narendra Modi (@narendramodi) January 17, 2017
For the world, India will remain a beacon of peace & progress, stability & success and access & accommodation.
— Narendra Modi (@narendramodi) January 17, 2017