नमो बुद्धाय!
थाईलैंड में संवाद के इस संस्करण में आप सभी के साथ शामिल होना मेरे लिए सम्मान की बात है। भारत, जापान और थाईलैंड के कई प्रतिष्ठित संस्थान और गणमान्य इस आयोजन को संभव बनाने की दिशा में कार्य कर रहे हैं। मैं इन प्रयासों के लिए उनकी सराहना करता हूँ और सभी प्रतिभागियों को अपनी शुभकामनाएं देता हूँ।
मित्रों,
मैं इस अवसर पर अपने मित्र श्री शिंजो आबे को याद करता हूं। 2015 में, उनके साथ मेरी बातचीत से ही संवाद का विचार उभरा। तब से, संवाद ने विभिन्न देशों की यात्रा की है, इससे आपसी विचार-विमर्श, वार्तालाप और गहरी समझ को बढ़ावा दिया है।
मित्रों,
मुझे प्रसन्नता है कि संवाद का यह संस्करण थाईलैंड में हो रहा है। थाईलैंड की संस्कृति, इतिहास और विरासत बहुत समृद्ध है। यह एशिया की साझा दार्शनिक और आध्यात्मिक परंपराओं का एक सुंदर उदाहरण है।
मित्रों,
भारत और थाईलैंड के बीच दो हज़ार वर्ष से भी ज़्यादा समय से गहरे सांस्कृतिक संबंध हैं। रामायण और रामकियेन हमें जोड़ते हैं। भगवान बुद्ध के प्रति हमारी साझा श्रद्धा हमें एकजुट करती है। पिछले वर्ष, जब हमने भगवान बुद्ध के पवित्र अवशेष थाईलैंड भेजे थे, तो लाखों भक्तों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी थी। हमारे देश कई क्षेत्रों में जीवंत साझेदारी भी करते हैं। भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति और थाईलैंड की ‘एक्ट वेस्ट’ नीति एक-दूसरे की पूरक हैं, जो आपसी प्रगति और समृद्धि को बढ़ावा देती हैं। यह सम्मेलन हमारी मित्रता में एक और सफल अध्याय है।
मित्रों,
संवाद का विषय एशियाई शताब्दी की बात करता है। जब लोग इस शब्द का इस्तेमाल करते हैं, तो वे अक्सर एशिया के आर्थिक उत्थान का उल्लेख करते हैं। हालाँकि, यह सम्मेलन इस बात पर प्रकाश डालता है कि एशियाई शताब्दी केवल आर्थिक मूल्य के बारे में नहीं है, बल्कि सामाजिक मूल्यों के बारे में भी है। भगवान बुद्ध की शिक्षाएं दुनिया को एक शांतिपूर्ण और प्रगतिशील युग बनाने में मार्गदर्शन कर सकती हैं। उनका ज्ञान हमें मानव-केंद्रित भविष्य की ओर ले जाने की शक्ति रखता है।
मित्रों,
संवाद का एक मुख्य विषय है संघर्ष से बचना। अक्सर, संघर्ष इस विश्वास से उत्पन्न होते हैं कि केवल हमारा मार्ग ही सही है जबकि अन्य सभी गलत हैं। भगवान बुद्ध इस मुद्दे पर अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं:
इमेसु किर सज्जन्ति, एके समणब्राह्मणा |
विग्गय्ह नं विवदन्ति,
जना एकंगदस्सिनो ||
इसका अभिप्राय यह है कि कुछ लोग अपने ही विचारों पर अडिग रहते हैं और बहस करते हैं, सिर्फ़ एक पक्ष को ही सही मानते हैं लेकिन एक ही मुद्दे पर कई दृष्टिकोण हो सकते हैं। यही कारण है कि ऋग्वेद में कहा गया है:
एकं सद्विप्रा बहु॒धा वदन्ति |
जब हम यह स्वीकार करते हैं कि सत्य को विभिन्न दृष्टिकोणों से देखा जा सकता है, तो हम संघर्ष से बच सकते हैं।
मित्रों,
संघर्ष का एक और कारण दूसरों को खुद से मौलिक रूप से अलग समझना है। मतभेद दूरियों को जन्म देते हैं, और दूरियाँ कलह में बदल सकती हैं। इसका मुकाबला करने के लिए, धम्मपद की एक पंक्ति कहती है:
सब्बे तसन्ति दण्डस्स, सब्बे भयन्ति माचुनो |
अत्तानं उपमं कत्वा, न हनेय न घटये ||
इसका अर्थ यह है कि हर कोई दर्द और मृत्यु से डरता है। दूसरों को अपने जैसा समझकर हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि कोई नुकसान या हिंसा न हो। अगर इन शब्दों का पालन किया जाए तो संघर्ष से बचा जा सकता है।
मित्रों,
दुनिया के कई मुद्दे संतुलित दृष्टिकोण के बजाय अतिवादी रुख अपनाने से उत्पन्न होते हैं। अतिवादी दृष्टिकोण संघर्ष, पर्यावरण संकट और यहां तक कि तनाव से संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म देते हैं। ऐसी चुनौतियों का समाधान भगवान बुद्ध की शिक्षाओं में निहित है। उन्होंने हमें मध्यम मार्ग अपनाने और अतिवाद से बचने का आग्रह किया। संयम का सिद्धांत आज भी प्रासंगिक है और वैश्विक चुनौतियों से निपटने में मार्गदर्शन प्रदान करता है।
मित्रों,
आज, संघर्ष लोगों और राष्ट्रों से आगे बढ़ रहे हैं- मानवता प्रकृति के साथ संघर्ष में तेजी से बढ़ रही है। इससे पर्यावरण संकट उत्पन्न हो गया है जो हमारी पृथ्वी के लिए खतरा बन गया है। इस चुनौती का जवाब एशिया की साझा परंपराओं में निहित है, जो धम्म के सिद्धांतों में निहित है। हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म, शिंटोवाद और अन्य एशियाई परंपराएं हमें प्रकृति के साथ सद्भाव में रहना सिखाती हैं। हम खुद को प्रकृति से अलग नहीं बल्कि उसका एक हिस्सा मानते हैं। हम महात्मा गांधी द्वारा समर्थित ट्रस्टीशिप की अवधारणा में विश्वास करते हैं। आज प्रगति के लिए प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करते समय, हमें भविष्य की पीढ़ियों के प्रति अपनी जिम्मेदारी पर भी विचार करना चाहिए। यह दृष्टिकोण सुनिश्चित करता है कि संसाधनों का उपयोग विकास के लिए किया जाए, लालच के लिए नहीं।
मित्रों,
मैं वडनगर से हूं, जो पश्चिमी भारत का एक छोटा सा शहर है जो कभी बौद्ध धर्म की शिक्षा का एक बड़ा केंद्र था। भारतीय संसद में, मैं वाराणसी का प्रतिनिधित्व करता हूँ, जिसमें सारनाथ भी शामिल है। सारनाथ वह पवित्र स्थान है जहाँ भगवान बुद्ध ने अपना पहला प्रवचन दिया था। यह एक सुंदर संयोग है कि भगवान बुद्ध से जुड़े स्थलों ने मेरी यात्रा को आकार दिया है।
मित्रों,
भगवान बुद्ध के प्रति हमारी श्रद्धा हमारी सरकार की नीतियों में झलकती है। हमने बौद्ध सर्किट के हिस्से के रूप में महत्वपूर्ण बौद्ध स्थलों को जोड़ने के लिए पर्यटन अवसंरचना विकसित की है। इस सर्किट में यात्रा को सुविधाजनक बनाने के लिए ‘बुद्ध पूर्णिमा एक्सप्रेस’ विशेष ट्रेन का शुभारंभ किया गया है। कुशीनगर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे का उद्घाटन एक ऐतिहासिक कदम है, जिससे अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध तीर्थयात्रियों को लाभ होगा। हाल ही में, हमने बोधगया के बुनियादी ढांचे को बढ़ाने के लिए विभिन्न विकास पहलों की घोषणा की है। मैं दुनिया भर के तीर्थयात्रियों, विद्वानों और भिक्षुओं को भगवान बुद्ध की भूमि भारत आने के लिए हार्दिक आमंत्रित करता हूँ।
मित्रों,
नालंदा महाविहार इतिहास के सबसे महान विश्वविद्यालयों में से एक था। सदियों पहले संघर्ष की ताकतों ने इसे नष्ट कर दिया था। लेकिन हमने इसे अब शिक्षा के केंद्र के रूप में पुनर्जीवित करके अपनी वचनबद्धता दिखायी है। भगवान बुद्ध के आशीर्वाद से, मुझे विश्वास है कि नालंदा विश्वविद्यालय अपना पूर्व गौरव पुनः प्राप्त करेगा। पाली को बढ़ावा देने के लिए भी एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है, जिस भाषा में भगवान बुद्ध ने अपनी शिक्षाएं दी थीं। पाली को हमारी सरकार द्वारा शास्त्रीय भाषा घोषित किया गया है, जिससे इसके साहित्य का संरक्षण सुनिश्चित होता है। इसके अतिरिक्त, हमने प्राचीन पांडुलिपियों की पहचान करने और उन्हें सूचीबद्ध करने के लिए ज्ञान भारतम मिशन शुरू किया है। यह बौद्ध धर्म के विद्वानों के लाभ के लिए दस्तावेज़ीकरण और डिजिटलीकरण को प्रोत्साहित करेगा।
मित्रों,
पिछले दशक में, हमने भगवान बुद्ध की शिक्षाओं को बढ़ावा देने के लिए कई देशों के साथ सहयोग किया है। हाल ही में, भारत में ‘एशिया को मजबूत बनाने में बुद्ध धम्म की भूमिका’ विषय पर पहला एशियाई बौद्ध शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया था। इससे पहले, भारत ने पहले वैश्विक बौद्ध शिखर सम्मेलन की मेजबानी की थी। मुझे नेपाल के लुम्बिनी में भारत अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध संस्कृति और विरासत केंद्र की आधारशिला रखने का सम्मान मिला। भारत ने लुम्बिनी संग्रहालय के निर्माण में भी योगदान दिया है। इसके अलावा, भगवान बुद्ध के ‘संक्षिप्त आदेश’, 108 खंडों के मंगोलियाई कंजूर को भारत में पुनर्मुद्रित किया गया और मंगोलिया में मठों में वितरित किया गया। कई देशों में स्मारकों के संरक्षण में हमारे प्रयास, भगवान बुद्ध की विरासत के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को मजबूत करते हैं।
मित्रों,
यह उत्साहजनक है कि संवाद का यह संस्करण एक धार्मिक गोलमेज सम्मेलन की मेजबानी कर रहा है, जिसमें विभिन्न धार्मिक प्रमुख एक साथ आ रहे हैं। मुझे विश्वास है कि इस मंच से मूल्यवान अंतर्दृष्टि सामने आएगी, जो एक अधिक सामंजस्यपूर्ण दुनिया को आकार देगी। एक बार फिर, मैं इस सम्मेलन की मेजबानी के लिए थाईलैंड के लोगों और सरकार के प्रति अपना आभार व्यक्त करता हूँ। इस महान मिशन को आगे बढ़ाने के लिए यहां एकत्र हुए सभी प्रतिभागियों को मेरी शुभकामनाएँ। धम्म का प्रकाश हमें शांति, प्रगति और समृद्धि के युग की ओर ले जाता रहे।
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एमजी/आरपी/केसी/एसएस
Sharing my remarks during SAMVAD programme being organised in Thailand. https://t.co/ysOtGlslbI
— Narendra Modi (@narendramodi) February 14, 2025