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गंगा नदी (कायाकल्प, संरक्षण और प्रबंधन) के प्राधिकार के आदेश, 2016 को कैबिनेट की मंजूरी


प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने गंगा नदी (कायाकल्प, संरक्षण और प्रबंधन) के प्राधिकार के आदेश, 2016 को स्वीकृति प्रदान कर दी। आदेश के लागू होने के बाद स्वच्छ गंगा के लिए नीति तैयार की जा सकेगी और इसे फास्ट ट्रैक ढंग से क्रियान्वयित किया जा सकेगा। इससे एक नया संस्थागत ढांचा तैयार होगा जो राष्ट्रीय मिशन की सशक्त बनाएगा जिससे इसका संचालन स्वतंत्र एवं दायित्वपूर्ण तरीके से हो सकेगा। प्राधिकरण को मिशन का दर्जा देने का फैसला किया गया है। इसके बाद इसे पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत आने वाली शक्तियां मिल जाएंगी। इसी तरह, वित्तीय और प्रशासनिक प्रतिनिधिमंडल का गठन होगा जिसकी इन कार्यों के प्रति जवाबदेही होगी। इससे गंगा संरक्षण के लिए परियोजना के कार्यान्वयन की प्रक्रिया में तेजी आएगी।

प्रमुख विशेषताएं:-

संक्षेप में आदेश की प्रमुख बातें

1. मौजूदा एनजीआरबीए की जगह माननीय प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में गंगा नदी कायाकल्प, संरक्षण और प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय परिषद का गठन किया गया है। इसकी जिम्मेदारी प्रदूषण की रोकथाम के अधीक्षण और गंगा नदी बेसिन के कायाकल्प की होगी।

2. माननीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्री की अध्यक्षता में उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन किया गया है। इसके गठन से मंत्रालयों, विभागों और राज्यों को इससे जोड़ना हैः

• विशिष्ट गतिविधियों, गंगा नदी के कायाकल्प और गंगा नदी के संरक्षण के उद्देश्य से समय-सीमा के साथ काम को पूरा करने के लिए एक कार्य योजना तैयार की गई है।

• इस कार्य योजना के कार्यान्वयन की निगरानी के लिए एक तंत्र विकसित किया गया है।

समय सीमा के भीतर कार्य योजना का कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिए इससे मंत्रालयों, विभागों और राज्य सरकारों के बीच समन्वय स्थापित हो पाएगा।

3. स्वच्छ गंगा के लिए राष्ट्रीय मिशन(एनएमसीजी) की एक प्राधिकरण के तौर पर घोषणा से पर्यावरण (संरक्षण)अधिनियम 1986 के तहत इसे ज्यादा शक्तियां मिलेंगी और इसके कार्यों को सुगम बनाने में मदद मिलेगी। एनएमसीजी के ढांचे को दो स्तरों पर तैयार किया गया है जिसमें पहले स्तर पर गवर्निंग काउंसिल(जीसी) होगी जिसकी अध्यक्षता एनएमसीजी के डीजी करेंगे। इसके बाद एक कार्यकारी कमेटी(ईसी) होगी जिसके अध्यक्ष एनएमसीजी के डीजी होंगे। एनएमसीजी राष्ट्रीय गंगा परिषद के निर्देशों के अनुरूप गंगा बेसिन प्रबंधन योजना को लागू करेगी। साथ ही समन्वय और कायाकल्प एवं गंगा नदी तथा उसकी सहायक नदियों के संरक्षण के लिए आवश्यक सभी गतिविधियों को लेकर समन्वय करने का काम करेगी।

4. राज्य के स्तर पर प्रत्येक राज्य में प्राधिकरण के तौर पर राज्य गंगा समितियां गठित करने का प्रस्ताव है। यह समितियां अधीक्षण, निर्देशन और अपने अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत जिला गंगा संरक्षण समितियों पर नियंत्रण रखेंगी।

5. इसी तरह, जिला गंगा समिति गंगा नदी के किनारे बसे जिलों में एक प्राधिकरण के तौर गंगा संरक्षण की जिम्मेदारी संभालेगी। साथ ही गंगा नदी के जल की गुणवत्ता की निगरानी के लिए विभिन्न परियोजनाओं की निगरानी करेगी।

प्रस्तावित ढांचा को पर्यावरण(संरक्षण) अधिनियम 1986(1986 का 29) की की धारा तीन के प्रावधानों के तहत लागू किया जाएगा। इससे प्राधिकारों के उद्देश्यों की पूर्ति की जा सकेगी।

इसकी अन्य विशेषताएं इस प्रकार हैः

• यह गंगा नदी की स्वच्छता के लिए पर्यावरण संरक्षण / कायाकल्प को लेकर एनएमसीजी को और अधिक शक्तियां मुहैया कराएगा। यह गंगा नदी के प्रदूषण नियंत्रण के लिए नियमों के पालन को लेकर एनएमसीजी के निर्देशानुसार स्थानीय निकायों के साथ उचित समन्वय सुनिश्चित करेगा।

• सीपीसीबी के काम नहीं करने की स्थिति में एनएमसीजी कार्यवाही करने को लेकर कदम उठा सकता है। पर्यावरण अधिनियम के तहत सीपीसीबी भी एनएमसीजी के साथ मिलकर कदम उठाएगा।

• इसका फोकस पुर्नोत्थान संरचना पर विशेष ध्यान देने के पानी की गुणवत्ता और पर्यावरण की दृष्टि से टिकाऊ विकास सुनिश्चित करने के उद्देश्य से गंगा नदी में आवश्यक पारिस्थितिक प्रवाह बनाए रखने के लिए होगा।

त्वरित गति से गंगा बेसिन में मलजल उपचार के बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए एक अभिनव हाइब्रिड ऐनुयटी पर आधारित मॉडल को भी मंजूरी दी गई है। इससे यह सुनिश्चित होगा कि एक स्थायी आधार पर बनाई गई बुनियादी ढांचा परियोजना कार्य कर रही है।

आदेश में पारदर्शिता, लागत प्रभावशीलता सुनिश्चित करने के लिए, समवर्ती लेखा परीक्षा, सुरक्षा ऑडिट, अनुसंधान संस्थानों एवं वित्तीय ढांचे के लिए प्रावधान किए गए हैं।

पृष्टभूमिः

गंगा एक्शन प्लान(जीएपी) के पहले चरण को 1985 में शुरू किया गया था औऱ उसके बाद इसके दूसरे चरण की शुरुआत 1993 में हुई थी जिसका मकसद गंगा नदी के जल की गुणवत्ता में सुधार लाना था। साथ इस कार्य को गंगा नदी की सहायक नदियों तक विस्तार देना था। मई 2015 में सरकार ने नमामि गंगे कार्यक्रम को मंजूर किया था। इसके तहत गंगा और उसकी सहायक नदियों के लिए संरक्षण को लेकर व्यापक कदम उठाए जाने हैं। इस मद में केंद्र सरकार पूरा कोष मुहैया करा रही है। पानी की गुणवत्ता में गिरावट को रोकने के लिए कमद उठाए जाने के बावजूद इस कार्यक्रम के कार्यान्वयन की कुछ सीमाएं हैं।

एनएमसीजी एक सोसायटी के तौर पर 2012 से ही काम कर रही है और परियोजनाओं को लागू करने के उद्देश्य से फंड के लिए इसकी भूमिका सीमित है। यह गंगा प्रदूषण को लेकर न तो संबंधित अधिकारियों को कोई निर्देश दे सकती है और न ही विभिन्न खतरों पर कोई संज्ञान ले सकती थी। विभिन्न अदालतों और जनता की नजरों में संगठन को गंगा नदी के संरक्षक के रूप में अच्छी तरह से जिम्मेदार बना दिया गया, मिशन इस तरह की उम्मीदों को संभालने के लिए बिल्कुल असहाय था, क्योंकि उसके पास इसे लेकर कोई ढांचा मौजूद नहीं था।

इस आदेश को मंजूरी दिए जाने के बाद अब उम्मीद की जा सकती है कि गंगा नदी के कायाकल्प और प्रदूषण के प्रभावी उपशमन को सुनिश्चित किया जा सकेगा। साथ ही नदी में पारिस्थितिक प्रवाह बनाए रखने के लिए, प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों पर प्रतिबंध लगाने और अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए यह निरीक्षण को लेकर कदम उठा सकेगा। इसके अलावा, नदी की स्थिति को लेकर शोध और उसके डाटा के प्रसार को सुनिश्चित करने के लिए प्रस्ताव रखा गया है।