एशिया-प्रशांत और हिंद महासागर क्षेत्र को आपस में जोड़ने वाले विश्व के दो बड़े लोकतंत्र के नेताओं के तौर पर हमने इस क्षेत्र के लिए एक संयुक्त रणनीतिक विजन पर हामी भरी है। यह हमारी इस रजामंदी को भी दर्शाता है कि इन क्षेत्रों में शांति, समृद्धि एवं स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए अमेरिका एवं भारत के बीच और ज्यादा घनिष्ठ साझेदारी अत्यंत जरूरी है।
भारत और अमेरिका क्षेत्रीय एवं वैश्विक विकास को तेज रफ्तार प्रदान करने में सक्षम हैं। अफ्रीका से लेकर पूर्वी एशिया तक हम अपनी साझेदारी के जरिए सतत एवं समावेशी विकास और क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को प्रोत्साहित करेंगे। इसके तहत इच्छुक भागीदारों से भी गठबंधन किया जाएगा ताकि गरीबी के समस्या से निपटने और व्यापक स्तर पर समृद्धि सुनिश्चित करने में आसानी हो सके।
क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण में सहयोग देने के लिए हम कहीं ज्यादा तेजी से ढांचागत कनेक्टिविटी और आर्थिक विकास को कुछ इस तरह से बढ़ावा देंगे जिससे दक्षिण, दक्षिण-पूर्व एवं मध्य एशिया का आपस में जुड़ाव हो सकेगा। इसके साथ ही ऊर्जा के ट्रांसमिशन के अलावा मुक्त व्यापार एवं जनसंपर्क को भी बढ़ावा दिया जाएगा।
किसी भी क्षेत्र में समृद्धि दरअसल सुरक्षा पर निर्भर करती है। हमारा विशेष ध्यान समुद्री सुरक्षा की अहमियत पर है। हम समूचे क्षेत्र, विशेषकर दक्षिण चीन सागर में नौवहन तथा इस क्षेत्र के ऊपर हवाई उड़ान की आजादी की अहमियत से भी वाकिफ हैं।
हम सभी पक्षों का आह्वान करते हैं कि वे ताकत का इस्तेमाल करने अथवा धमकी देने से बचें और अंतर्राष्ट्रीय कानून के मान्य सिद्धांतों के अनुरूप सभी शांतिपूर्ण उपायों के जरिए क्षेत्रीय एवं समुद्री विवादों को निपटाने पर अपना ध्यान केंद्रित करें।
हम इस क्षेत्र में आतंकवाद, पायरेसी और व्यापक जनसंहार को अन्जाम देने वाले हथियारों के प्रसार का विरोध करते हैं।
हम उन साझा मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए मिलजुल कर काम करेंगे जिन्होंने हमारे देशों को महान बनाया है।
अगले पांच वर्षों के दौरान हम क्षेत्रीय स्तर पर होने वाली बातचीत को और आगे बढ़ाएंगे, इस क्षेत्र के अन्य देशों के साथ त्रिपक्षीय सलाह-मशविरा में निवेश करेंगे और अतिरिक्त बहुपक्षीय अवसरों की तलाश करेंगे।