जय बद्री विशाल, जय बद्री विशाल, जय बद्री विशाल,
जय बाबा केदार, जय बाबा केदार, जय बाबा केदार,
उत्तराखंड के गवर्नर गुरमीत सिंह जी, यहां के लोकप्रिय मृदूभाषी, हर पल जिसके चेहरे पर स्मित रहता है, ऐसे हमारे पुष्कर सिंह धामी जी, संसद में मेरे साथी श्री तीरथ सिंह रावत जी, भाई धन सिंह रावत जी, महेंद्र भाई भट्ट जी, अन्य सभी महानुभाव और मेरे प्यारे भाइयों और बहनों,
आज बाबा केदार और बद्री विशाल जी के दर्शन करके, उनके आशीर्वाद प्राप्त करके जीवन धन्य हो गया, मन प्रसन्न हो गया, और ये पल मेरे लिए चिरंजीव हो गए। बाबा के सानिध्य में बाबा के आदेश से, बाबा की कृपा से पिछली बार जब आया था। तो कुछ शब्द मेरे मुंह से निकले थे। वो शब्द मेरे नहीं थे, कैसे आए? क्यों आए? किसने दिए पता नहीं है। लेकिन यूं ही मुंह से निकल गया था। ये दशक उत्तराखंड का दशक होगा। और मुझे पक्का विश्वास है इन शब्दों पर बाबा के, बद्री विशाल के, मां गंगा के, निरंतर आशीर्वाद की शक्ति बनी रहेगी, ये मेरा अंतर मन कहता है। ये मेरा सौभाग्य है आज मैं आपके बीच, इन नई परियोजनाओं के साथ फिर उसी संकल्प को दोहराने आया हूं। और मेरा सौभाग्य है कि आज मुझे आप सभी के दर्शन करने का मौका मिला है।
माणा गांव, भारत के अंतिम गांव के रूप में जाना जाता है। लेकिन जैसे हमारे मुख्यमंत्री जी ने इच्छा प्रकट की अब तो मेरे लिए भी सीमा पर बसा हर गांव देश का पहला गांव ही है। सीमा पर बसे आप जैसे सभी मेरे साथी देश के सशक्त प्रहरी हैं। और मैं आज माणा गांव की पुरानी यादें ताजा करना चाहता हूं। शायद कुछ पुराने लोग हों उनको याद हो, मैं तो मुख्यमंत्री बन गया, प्रधानमंत्री बन गया, इसलिए सीमा के इस पहले प्रहरी गांव को याद कर रहा हूं, ऐसा नहीं है। आज से 25 साल पहले जब मैं उत्तराखंड में भारतीय जनता पार्टी के एक कार्यकर्ता के रूप में काम करता था। न कोई मुझे ज्यादा जानता था, ना मेरे उस प्रकार का कोई पब्लिक लाईफ था। मैं संगठन के लोगों के बीच में ही अपना जीवन गुजारता था, काम करता था और उस समय माणा में मैंने उत्तराखंड भाजपा की कार्यसमिति की मीटिंग बुलाई थी। तो मेरे उत्तराखंड के सारे कार्यकर्ता मेरे से बहुत उस समय नाराज थे, प्रश्न पूछते थे कि साहब इतना दूर कितनी मेहनत से जाना पड़ेगा, कितना समय जाएगा। मैंने कहा भाई जिस दिन उत्तराखंड बीजेपी के दिल में माणा का महत्व पक्का हो जाएगा ना, उत्तराखंड की जनता के दिल में भाजपा के लिए महत्व बन जाएगा। और उसी का परिणाम ये माणा गांव की मिट्टी की ताकत है। ये माणा गांव के मेरे भाइयों–बहनों का आदेश है, आशीर्वाद है कि आज लगातार आपके आशीर्वाद बने रहते हैं। और मैं तो उत्तराखंड में नई सरकार बनने के बाद सार्वजनिक कार्यक्रम में पहली बार बोल रहा हूं। तो मैं आज जब यहां आया हूं, और माणा की धरती से मैं पूरे उत्तराखंड के भाई–बहनों को, हम सबको दोबारा सेवा करने का मौका दिया है, इसलिए हृदय से आभार व्यक्त करता हूं।
साथियों,
21वीं सदी के विकसित भारत के निर्माण के दो प्रमुख स्तंभ हैं। पहला, अपनी विरासत पर गर्व और दूसरा, विकास के लिए हर संभव प्रयास। आज उत्तराखंड, इन दोनों ही स्तंभों को मजबूत कर रहा है। आज सुबह मैंने बाबा केदार की और बाद में बद्रीनाथ विशाल के चरणों में जाके प्रार्थना की और साथ – साथ, क्योंकि परमात्मा ने मुझे जो काम दिया है वो भी मुझे करना होता है। और मेरे लिए तो देश के 130 करोड़ की जनता वो भी परमात्मा का रूप है। और इसलिए मैंने विकास कार्यों की भी समीक्षा की। और अब आपके बीच आकर मुझे 2 रोपवे प्रोजेक्टस के शिलान्यास का सौभाग्य मिला है। इससे केदारनाथ जी और गुरुद्वारा हेमकुंड साहेब के दर्शन करना और आसान हो जाएगा। गुरुग्रंथ साहब की हम पर कृपा बनीं रहे। सभी पूज्यों गुरुओं की हम पर कृपा बनी रहे, कि ऐसा पवित्र कार्य करने का गुरुओं के आशीर्वाद से हमें अवसर मिला है। बाबा केदार के आशीर्वाद बने रहें। और आप कल्पना कर सकते हैं, ये रोपवे खंबे, तार, अंदर बैठने के लिए कार, इतना मात्र नहीं है। ये रोपवे तेज गति से आपको बाबा के पास ले जाएगा इतना नहीं है। इसके होने से इस पर काम करने वाले लोगों से आप कल्पना नहीं कर सकते हैं, मेरे देश के 130 करोड़ देशवासियों के आशीर्वाद उन पर बरसने वाले हैं। हेमकुंड साहब दुनिया भर में गुरु ग्रंथ साहब की पवित्र पूजा करने वाले जितने भी मेरे भाई–बहन हैं, आज हमें आशीर्वाद बरसाते होंगे कि आज हेमकुंड साहब तक का ये रोपवे बन रहा है। आप कल्पना नहीं कर सकते हैं इसकी ताकत क्या है। आप देखना आज यूके हो, जर्मनी हो, कनाडा हो, वहां पर उत्सव मनाया जाएगा। क्योंकि अब हेमकुंड साहब तक जाने का रोपवे बन जाएगा। और समय तो बचेगा, भक्ति में मन और ज्यादा लगेगा।
विकास के इन सभी प्रोजेक्ट्स के लिए उत्तराखंड को और देश–विदेश के हर आस्थावान श्रद्धालुओं को मैं आज बहुत–बहुत बधाई देता हूं। और गुरुओं की कृपा बनी रहे, बाबा केदार की कृपा बनी रहे, बद्री विशाल की कृपा बनी रहे, यही और हमारे सभी श्रमिक साथियों को भी भी शक्ति मिले, ताकि वे भी पूरी ताकत से समय सीमा में इस काम को पूरा करें। और हम प्रार्थना करें, हर बार प्रार्थना करें, क्योंकि ये बहुत कठिन इलाका है। यहां काम करना कठिन होता है। हवाएं तेज चलती हैं और इतनी ऊंचाई पर जाकर के काम करना होता है। परमात्मा से प्रार्थना करें कि इस पूरे काम के दरमियान कोई एक्सीडेंट न हो जाए, किसी हमारे साथी का नुकसान न हो जाए, ये हम प्रार्थना करते रहें, और जिस भी गांव के पास वो काम करते हैं वो भगवान का काम कर रहे हैं, आप उनको संभालना, उनको मजदूर मत समझना, उनको मजदूर मत समझना, ये मत समझना कि उनको पैसे मिल रहे हैं, काम कर रहे हैं, जी नहीं वो परमात्मा की सेवा कर रहे हैं। वो आपके गांव के मेहमान हैं। कठिन काम करने वाले हैं, उनको जितना संभालोगे काम उतना तेजी से होगा। करोगे ना? इनको संभालोगे ना? अपनी संतानों की तरह संभालोगे, अपने भाई–बहन की तरह संभालोगे।
साथियों,
आज मैं बाबा केदार के धाम में गया था तो वहां जो श्रमिक भाई–बहन काम करते थे। उनसे भी मुझे बातचीत करने का मौका मिला। जो इंजीनियर लोग हैं, उनके भी साथ बात करने का मौका मिला। मुझे इतना अच्छा लगा और वो कह रहे थे कि हम कोई रोड का या इमारत का काम नहीं कर रहे हैं। हम तो बाबा की पूजा कर रहे हैं, बाबा की पूजा कर रहे हैं, और ये हमारा पूजा करने का तरीका है।
साथियों,
देश की आजादी के 75 साल पूरे होने पर मैंने लाल किले से एक आह्वान किया है। ये आह्वान है, गुलामी की मानसिकता से पूरी तरह मुक्ति का। आजादी के इतने वर्षों के बाद, आखिरकार मुझे ये क्यों कहना पड़ा? क्या जरूरत पड़ी यह कहने की? ऐसा इसलिए, क्योंकि हमारे देश को गुलामी की मानसिकता ने ऐसा जकड़ा हुआ है कि प्रगति का हर कार्य कुछ लोगों को अपराध की तरह लगता है। यहां तो गुलामी के तराजू से प्रगति के काम को तोला जाता है। इसलिए लंबे समय तक हमारे यहां, अपने आस्था स्थलों के विकास को लेकर एक नफरत का भाव रहा। विदेशों में वहां की संस्कृति से जुड़े स्थानों की ये लोग तारीफ करते–करते नहीं थकते, लेकिन भारत में इस प्रकार के काम को हेय दृष्टि से देखा जाता था। इसकी वजह एक ही थी– अपनी संस्कृति को लेकर हीन भावना, अपने आस्था स्थलों पर अविश्वास, अपनी विरासत से विद्वेष। और ये हमारे समाज में आज बढ़ा हो, ऐसा नहीं है। आजादी के बाद सोमनाथ मंदिर के निर्माण के समय क्या हुआ था, वो हम सब जानते हैं। इसके बाद राम मंदिर के निर्माण के समय के इतिहास से भी हम भली–भांति परिचित हैं। गुलामी की ऐसी मानसिकता ने हमारे पूजनीय पवित्र आस्था स्थलों को जर्जर स्थिति में ला दिया था। सैकड़ों वर्षों से मौसम की मार सहते आ रहे पत्थर, मंदिर स्थल, पूजा स्थल के जाने के मार्ग, वहां पर पानी की व्यवस्था हो तो उसकी तबाही, सब कुछ तबाह होकर के रख दिया गया था। आप याद करिए साथियों, दशकों तक हमारे आध्यात्मिक केंद्रों की स्थिति ऐसी रही वहां की यात्रा जीवन की सबसे कठिन यात्रा बन जाती थी। जिसके प्रति कोटि–कोटि लोगों की श्रद्धा हो, हजारों साल से श्रद्धा हो, जीवन का एक सपना हो कि उस धाम में जाकर के मत्था टेककर आएंगे, लेकिन सरकारें ऐसी रहीं कि अपने ही नागरिकों को वहां तक जाने की सुविधा देना उनको जरूरी नहीं लगा। पता नहीं कौन से गुलामी की मानसिकता ने उनको जकड़कर रखा था। ये अन्याय था कि नहीं था भाइयों? ये अन्याय था कि नहीं था? ये जवाब आपका नहीं है, ये जवाब 130 करोड़ देशवासियों का है और आपके इन सवालों का जवाब देने के लिए ईश्वर ने मुझे ये काम दिया है।
भाइयों–बहनों,
इस उपेक्षा में लाखों–करोड़ों जनभावनाओं के अपमान का भाव छिपा था। इसके पीछे पिछली सरकारों का निहित स्वार्थ था। लेकिन भाइयों और बहनों, ये लोग हजारों वर्ष पुरानी हमारी संस्कृति की शक्ति को समझ नहीं पाए। वो ये भूल गए कि आस्था के ये केंद्र सिर्फ एक ढांचा नहीं बल्कि हमारे लिए ये प्राणशक्ति है, प्राणवायु की तरह हैं। वो हमारे लिए ऐसे शक्तिपुंज हैं, जो कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी हमें जीवंत बनाए रखते हैं। उनकी घोर उपेक्षा के बावजूद ना तो हमारे आध्यात्मिक केंद्रों का महत्व कम हुआ, ना ही उन्हें लेकर हमारे समर्पण भाव में कोई कमी आई। और आज देखिए, काशी, उज्जैन, अयोध्या अनगिनत ऐसे श्रद्धा के केंद्र अपने गौरव को पुन: प्राप्त कर रहे हैं। केदारनाथ, बद्रीनाथ, हेमकुंड साहेब को भी श्रद्धा को संभालते हुए आधुनिकता के साथ सुविधाओं से जोड़ा जा रहा है। अयोध्या में इतना भव्य राममंदिर बन रहा है। गुजरात के पावागढ़ में मां कालिका के मंदिर से लेकर देवी विंध्यांचल के कॉरिडोर तक, भारत अपने सांस्कृतिक उत्थान का आह्वान कर रहा है। आस्था के इन केंद्रों तक पहुंचना अब हर श्रद्धालु के लिए सुगम और सरल हो रहा है। और जो व्यवस्थाएं विकसित हो रही हैं। वो हमारे बड़े– बुजुर्गों के लिए तो सुविधा है। लेकिन मुझे विश्वास है मेरे देश की नई पीढ़ी 12-15-18-20-22 साल के नौजवान बेटे–बेटियां उनके लिए भी ये श्रद्धा का आकर्षण का केंद्र बनेंगे। वो हमारी नीति होनी चाहिए। अब हमारे दिव्यांग साथी भी इन स्थानों पर जाकर दर्शन कर रहे हैं। मुझे याद है मैंने जब गिरनार में रोपवे बनाया। 80-80 साल की माता–पिता ऐसे बुजुर्ग लोग वहां आने के बाद मुझे चिट्ठी लिखते थे कि कभी सोचा नहीं था कि गिरनार पर्वत पर जाकर के इतने इतने क्षेत्रों की हम पूजा दर्शन कर पाएंगे। आज वो इतने आशीर्वाद दे रहे हैं। एक रोपवे बनाया।
साथियों,
इस ताकत को कई लोग पहचान ही नहीं पाते। आज पूरा देश अपने आध्यात्मिक केंद्रों को लेकर गर्व के भाव से भर गया है। उत्तराखंड की ये देवभूमि स्वयं इस परिवर्तन की साक्षी बन रही है। डबल इंजन की सरकार बनने से पहले केदारनाथ में एक सीजन में ज्यादा से ज्यादा 5 लाख श्रद्धालु आया करते थे। अब इस सीजन में ये संख्या मुझे बता रहे हैं 45 लाख, अब देखिए।
साथियों,
आस्था और अध्यात्म के स्थलों के इस पुनर्निमाण का एक और पक्ष है, जिसकी उतनी चर्चा नहीं हो पाती है। ये पक्ष है पहाड़ के लोगों की Ease of Living का, पहाड़ के युवाओं को रोजगार का। जब पहाड़ पर रेल, रोड और रोपवे पहुंचते हैं, तो अपने साथ रोजगार लेकर आते हैं। जब पहाड़ पर रेल–रोड और रोपवे पहुंचते हैं, तो ये पहाड़ का जीवन भी जानदार, शानदार और अधिक आसान बना देते हैं। ये सुविधाएं पहाड़ पर टूरिज्म भी बढ़ाती हैं, ट्रांसपोर्टेशन भी आसान करती हैं। अब तो हमारी सरकार ड्रोन को भी पहाड़ों पर सामान के ट्रांसपोर्ट का प्रमुख साधन बनाने पर काम कर रही है। क्योंकि आजकल ड्रोन आते हैं, 20 किलो, 25 किलो, 50 किलो तक सामान उठाकर के तेज गति से दूसरी जगह भी उतार देते हैं। हम उसको लाना चाहते हैं। ताकि आपके यहां जो फल, सब्जी पैदा होती है। वो ताजा–ताजा बड़े शहरों में पहुंचे, ताकि आपको ज्यादा कमाई हो। और मैं आज हिन्दुस्तान के सीमा पर देश की रक्षा कर रहे गांववासियों के बीच आया हूं तब अभी मैं आप जो हमारी माताएं–बहनें सेल्फ हेल्प ग्रुप की बहनें जो उत्पादन पैदा करती है। जो मसाला, वो पहाड़ी नमक, ये सारी चीजें मैं देख रहा था। और पैकेजिंग वगैरह मैं सचमुच में मेरा मन बड़ा प्रसन्न कर गया जी। माताओं–बहनों को प्रणाम करता हूं, क्या बढ़िया काम किया है आपने। लेकिन मैं यहां से हिन्दुस्तान भर से जो प्रवासी आते हैं, जो यात्री आते हैं, जो एडवेंचर के लिए आते हैं, जो श्रद्धा के लिए, किसी भी तरीके से क्यों न आते हों। एक जीवन में रूपरेखा बनाइये कि आप यात्रा में जितना खर्च करते हैं। Travelling का खर्चा करते होंगे, खाने के पीछे खर्चा करते होंगे, बड़ी होटल में रहने के लिए खर्चा करते होंगे। आप मन में एक रूपरेखा बनाइये।
मैं सभी 130 करोड़ देशवासियों को हिन्दुस्तान के उस गांव से बता रहा हूं, जो चीन के सीमा पर भारत का ये सीमा पर रखवाली करने वाले गांव के बीच से बोल रहा हूं। मैं उनकी तरफ से बोल रहा हूं। आप जहां भी जाए यात्रा करने के लिए इस कठिन क्षेत्र में आएं या पूरी चले जाएं या कन्याकुमारी चले जाएं या सोमनाथ, कहीं पर भी जाएं एक संकल्प कीजिए। जैसे मैं वोकल फॉर लोकल की बात करता हूं ना। मैं आज एक और संकल्प के लिए प्रार्थना करता हूं और देशवासियों को प्रार्थना करना ये तो मेरा हक बनता है जी। मैं आदेश तो नहीं दे सकता हूं। प्रार्थना तो कर सकता हूं। मैं प्रार्थना करता हूं आप जितना खर्चा करते हैं, तय कीजिए कम से कम 5 पर्सेंट जो टोटल खर्चा आपका यात्रा का होगा उसमें 5 पर्सेंट, अगर 100 रुपया खर्च करते हो तो 5 रुपया उस इलाके में जो कुछ भी स्थानीय उत्पाद है, स्थानीय लोग जो बनाते हैं आप उसको जरूर खरीदिये। आपके घर में है तो दूसरा लेकर के जाइये। किसी को भेंट दे दीजिए। लेकिन वहां से जरूर लेकर जाइये। आपको मैं विश्वास दिलाता हूं भाइयों–बहनों। इन सारे क्षेत्रों में इतनी रोजी–रोटी मिल जाएगी, अभी मुझे माताएं–बहनें कह रही थीं कि इस बार यात्री इतने आए, मैंने कहा कितनी बिक्री हुई –तो जरा पहले तो शर्मा गए बताते–बताते, मैंने कहा नहीं–नहीं बताइये–बताइये, फिर उन्होंने कहा ढाई लाख रुपये का बिक गया इस बार। उनको इतना संतोष था। अगर सब यात्री, सभी प्रवासी जहां जाए वहां स्थानीय जो गरीब लोग पैदा करते हैं। वैसी स्थानीय बनी हुई चीज 5 पर्सेंट बजट ये जोड़ दीजिए। आप देखिए आपको जीवन में संतोष होगा और घर में रखेंगे, बच्चों को बताएंगे कि देखिए हमने उस साल जब उत्तराखंड गए थे ना ये तस्वीर तो तुझे अच्छी लगती है। उस तस्वीर के पीछे तो हमने 20 रुपये खर्च किया है, लेकिन ये जो छोटी चीज़ दिखती है ना वहां की एक बूढ़ी मां बना रही थी। मैं उससे लेकर के आया था। आपको आनंद होगा, आपको संतोष होगा, इसलिए मैं आज यहां से पूरे देश को प्रार्थना कर रहा हूं
मेरे प्यारे भाइयों–बहनों,
पहाड़ के लोगों की पहली पहचान यही होती है कि वो बहुत मेहनती होते हैं। उन्हें उनके साहस, उनकी जुझारू प्रवृत्ति के लिए जाना जाता है। वो प्रकृति के प्रति शिकायत नहीं करते हैं। संकटों के बीच जीना सीख लेते हैं जी। लेकिन साहब पहले की सरकारों के समय, पहाड़ों के लोगों के सामर्थ्य को उनके खिलाफ ही इस्तेमाल किया गया। दशकों तक सरकारें ये सोचकर पहाड़ की उपेक्षा करती रहीं कि वो मेहनतकश लोग हैं, पहाड़ जैसा उनका हौसला है, अरे उनकी तो ताकत इतनी है उनको तो कुछ जरूरत नहीं है चल जाएगा। ये उनकी ताकत के साथ अन्याय था। उनकी ताकत है इसका मतलब ये तो नहीं है कि उनको ऐसे ही रहने दिया जाए। उनको भी तो सुविधा चाहिए। मुश्किल हालातों में पहाड़ के लोगों को मदद मिलनी चाहिए। जब सुविधाएं पहुंचाने की बात हो, जब सरकारी योजनाओं का लाभ पहुंचाने की बात हो, तो पहाड़ के लोगों का नंबर सबसे बाद में आता था। इस सोच के साथ देश कैसे आगे बढ़ता? पहाड़ के लोगों के साथ हो रहे इस अन्नाय को मुझे समाप्त करना ही था। इसलिए, पहले जिन इलाकों को देश की सीमाओं का अंत मानकर नजरअंदाज किया जाता था, हमने वहां से समृद्धि का आरंभ मानकर काम शुरू किया है। पहले देश का आखिरी गांव जानकर जिसकी उपेक्षा की जाती थी, हमने वहां के लोगों की अपेक्षाओं पर फोकस करके काम करना शुरू किया है।
पहले देश के विकास में जिनके योगदान को महत्व नहीं दिया गया, हमने उन्हीं को साथ लेकर प्रगति के महान लक्ष्यों की ओर बढ़ने का संकल्प किया है। हमने पहाड़ की उन चुनौतियों का हल निकालने की कोशिश की, जिससे जूझने में वहां के लोगों की बड़ी ऊर्जा व्यर्थ हो जाए वो हमें मंजूर नहीं है। हमने हर गांव तक बिजली पहुंचाने का अभियान चलाया, जिसका बहुत बड़ा लाभ मेरे पहाड़ के भाइयों और बहनों को मिला। मैं यहां गांव की एक सरपंच बहन से मिला, मैं पूछ रहा था शौचालय बन गए अरे बोले साहब बन गए। मैंने कहा पानी पहुंच रहा है बोली पाइप लग रही है। इतनी चेहरे पर खुशी थी अपने गांव में काम होने का आनंद था उनके, सरपंच महिला थी। बड़े गर्व से मुझे बता रही थी। हमने हर घर जल का अभियान चलाया, जिसकी वजह से आज उत्तराखंड के 65 प्रतिशत से ज्यादा घरों में पाइप से पानी पहुँच चुका है। हमने हर पंचायत को ऑप्टिकल फाइबर से जोड़ने का अभियान चलाया, जिसकी वजह से उत्तराखंड के कोने–कोने में आज डिजिटल कनेक्टिविटी पहुंच रही है। मैं आज देख रहा था, ये भी ऑनलाइन पैसे ले रहे थे, डिजिटल, फिनटेक। मैं जरा हमारे पार्लियामेंट में कुछ बुद्धिमान लोग बैठते हैं, उनको बताना चाहता हूं कि माणा आइये माणा। ये मेरे माणा में देखिए, आठवीं कक्षा पढ़ी बूढी मेरी मां बहनें डिजिटल पेमेंट ले रही हैं। पेटीएम ऐसा लिखा हुआ है। QR Code लगाया है अपने माल के सामने, ये ताकत मेरे देश की ये माणा गांव के इन लोगों के पास देखकर के और गर्व हो रहा है।
हमने गाँवों में हेल्थ और वेलनेस सेंटर खोलने का अभियान चलाया जिसकी वजह से आज गांव के पास चिकित्सा की सुविधा पहुंच रही है। इन अभियानों का बहुत बड़ा लाभ हमारी माताओं–बहनों–बेटियों को हुआ है। एक संवेदनशील सरकार, गरीबों का दुख–दर्द समझने वाली सरकार कैसे काम करती है। ये आज देश के हर कोने में लोग अनुभव कर रहे हैं। कोरोना के इस काल में, जब वैक्सीन लगवाने की बारी आई, अगर पहले की सरकारे होतीं तो शायद अभी तक वैक्सीन यहां तक ना आती, लेकिन ये मोदी है। मैंने कहा कोरोना जाए, उससे ज्यादा तेजी से मुझे वैक्सीन पहाड़ों में ले जानी है और मैं सरकार को बधाई देता हूं मेरे उत्तराखंड और मेरे हिमाचल दो प्रदेशों ने सबसे पहले वैक्सीनेशन का काम पूरा कर दिया भाइयों। इस वैश्विक महामारी में लोगों को भूखमरी का शिकार ना होना पड़े, बच्चों को कुपोषण का शिकार ना होना पड़े, इसके लिए हमने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना शुरू की। इस योजना की वजह से उत्तराखंड के भी लाखों लोगों को मुफ्त अनाज मिला और हमने पक्का किया कि किसी गरीब के घर में भी कोई दिन ऐसा नहीं होना चाहिए, जब घर में चूल्हा न जला हो, रोटी न पकी हो, कोई बच्चा भूखा सोया हो वो दिन मैं देखना नहीं चाहता था, और हम सफलतापूवर्क पूरा कर पाए भाइयों–बहनों।
कुछ समय पहले ही हमारी सरकार ने उस अवधि को और तीन महीना बढ़ा दिया है। ताकि इस त्यौहारों के दिनों में हमारे गरीब परिवारों को दिक्कत न हो। डबल इंजन की सरकार के प्रयासों से अब उत्तराखंड में विकास कार्यों में फिर तेजी आ रही है। जो लोग घर से पलायन करके चले गए थे, अब अपने पुराने घरों में लौटने लगे हैं। होम स्टे, गेस्ट हाउस, ढाबों, छोटी–छोटी दुकानों में अब रौनक बढ़ने लगी है। इन सुविधाओं से उत्तराखंड में पर्यटन का हो रहा ये विस्तार यहां के विकास को भी गति देने वाला है। मुझे खुशी है कि डबल इंजन की सरकार यहां के युवाओं को होम स्टे की सुविधा बढ़ाने के लिए, युवाओं के स्किल डवलपमेंट के लिए निरंतर आर्थिक मदद दे रही है। सीमावर्ती क्षेत्रों के युवाओं को NCC से जोड़ने का अभियान भी यहां के युवाओं को उज्ज्वल भविष्य के लिए तैयार कर रहा है। पूरे देश में सीमावर्ती क्षेत्र में जो अच्छे स्कूल होंगे, अब एनसीसी हम वहां चलाएंगे। अहमदाबाद, मुंबई, चेन्नई वहां एनसीसी 75 साल चली। अब एनसीसी चलेगी इन गांवों में, मेरे गांव के बच्चों को मिलेगा लाभ।
साथियों,
हमारे पहाड़ के लोगों की सबसे बड़ी चुनौती रहती है कनेक्टिविटी। कनेक्टिविटी ना हो तो, तो पहाड़ पर जीवन, वाकई पहाड़ जैसा हो जाता है। हमारी डबल इंजन की सरकार, इस चुनौती का भी समाधान कर रही है। आज उत्तराखंड को मल्टीमोडल कनेक्टिविटी प्रदान करने के लिए हर साधन पर काम किया जा रहा है। हिमालय की हरी भरी पहाड़ियों पर रेल गाड़ी की आवाज़ उत्तराखंड के विकास की एक नई गाथा लिखेगी। देहरादून एयरपोर्ट भी अब नए अवतार में सेवा दे रहा है। अभी मैं हिमाचल प्रदेश गया था, वहां मैंने वंदे भारत ट्रेन शुरू की ओर मुझे कईयों ने बताया कि हमारे यहां दो–दो पीढ़ी पहले की जो उमर के लोग हैं। ऐसे गांवों में हर गांव में लोग हैं, जिन्होंने अभी तक रेल नहीं देखी है और आप हमारे हिमाचल में वंदे भारत ट्रेन ले आए। वंदे भारत ट्रेन तो अभी तो एक स्टेशन पहुंची है, लेकिन पूरे हिमाचल और पहाड़ के लोगों के लिए बहुत बड़ा तोहफा है। वो दिन मैं उत्तराखंड में भी देखना चाहता हूं भाइयों। आज चाहे हिमाचल से उत्तराखंड आना–जाना हो, या फिर दिल्ली और यूपी से उत्तराखंड आना–जाना, फोर लेन हाइवे और एक्सप्रेसवे जल्द ही आपका स्वागत करने वाले हैं। चारधाम ऑल वेदर रोड उत्तराखंड के लोगों के साथ–साथ पर्यटकों और श्रद्धालुओं को एक नया एहसास दे रहे हैं। अब हर कोई पर्यटक जो दूसरे राज्यों से उत्तराखंड आ रहा रहा है, वो यहां से यात्रा का अद्भुत अनुभव लेकर जाता है। दिल्ली–देहरादून इकॉनॉमिक कॉरिडोर से दिल्ली–देहरादून की दूरी तो कम होगी ही, इससे उत्तराखंड के उद्योगों को भी बढ़ावा मिलेगा।
भाइयों और बहनों,
आधुनिक कनेक्टिविटी राष्ट्ररक्षा की भी गांरटी होती है। इसलिए बीते 8 सालों से हम इस दिशा में एक के बाद एक कदम उठा रहे हैं। कुछ साल पहले हमने कनेक्टिविटी की 2 बड़ी योजनाएं शुरु की थीं। एक भारतमाला और दूसरी सागरमाला। भारतमाला के तहत देश के सीमावर्ती क्षेत्रों को बेहतरीन और चौड़े हाईवे से जोड़ा जा रहा है। सागरमाला से अपने सागर तटों की कनेक्टिविटी को सशक्त किया जा रहा है। बीते 8 वर्षों में जम्मू कश्मीर से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक बॉर्डर कनेक्टिविटी का भी अभूतपूर्व विस्तार हमने किया है। 2014 के बाद से बॉर्डर रोड ऑर्गनाइजेशन ने करीब–करीब 7 हजार किलोमीटर नई सड़कों का निर्माण किया है, सैकड़ों पुल नए बनाए हैं। बहुत सी महत्वपूर्ण टनल्स का भी पूरा काम किया है। एक समय था, जब बॉर्डर किनारे सड़क बनाने के लिए भी दिल्ली से मंजूरी लेनी पड़ती थी। हमने ना सिर्फ इस बाध्यता को समाप्त किया बल्कि बॉर्डर किनारे अच्छी सड़कें बनाने पर, तेजी से सड़कें बनाने पर जोर दे दिया। अब पहाड़ी राज्यों की कनेक्टिविटी को और बेहतर बनाने के लिए हमने विशेष तौर पर जैसे सागरमाला है, वैसे भारतमाला है, वैसे अब पर्वतमाला का काम आगे बढ़ने वाला है। इसके तहत उत्तराखंड और हिमाचल में रोपवे का एक बहुत बड़ा नेटवर्क बनना शुरु हो चुका है। हमारे यहां जब हम बॉर्डर की बात सुनते हैं, तो यही मन में आता है कि वहां सिर्फ फौजी साथी होंगे, बाकी सब वीरान होगा। लेकिन इस धारणा को भी हमें बदलना है और धरातल पर भी इसको हम बदलके रहना है। हमारे बॉर्डर के गांवों में चहल–पहल बढ़नी चाहिए, वहां विकास जीवन का उत्सव मनना चाहिए, ये हम प्रयास कर रहे हैं। और हम तो कहते हैं जो कभी गांव छोड़कर के गए हैं, उनको अपने गांव वापस लौटने का मन कर जाए, ऐसे मुझे जिंदा गांव खड़े करने हैं। और मैं कह रहा हूं ऐसा नहीं मैं करके आया हूं। गुजरात के अंदर पाकिस्तान की सीमा पर आखिरी गाँव है कच्छ के रेगिस्तान में धोरड़ो। आज धोरड़ो बहुत बड़ा टूरिस्ट सेंटर बना हुआ है। लाखों लोग हर साल आते हैं, वहां के लोगों के लिए करोड़ों रुपये का व्यापार होता है। आखिरी गांव को जिंदा कर दिया, उसके कारण पूरा इलाका जिंदा हो गया।
अभी मैंने पाकिस्तान की सीमा पर गुजरात का एक दूसरा इलाका है रेगिस्तान में एक तीर्थ स्थान था, एक मां का स्थान था। वहां बहुत बड़ा स्थान बना दिया। और अभी उत्तराखंड के अफसरों को मैंने भेजा था। जरा देखकर आइये, क्या माणा के आस–पास हम ऐसा कुछ कर सकते हैं क्या? मैं सोच रहा हूं, मैं बॉर्डर के गांवों में कुछ न कुछ होना चाहिए, इसमें दिमाग में खपाए बैठा हूं, और इसीलिए मैं आज आया हूं। क्योंकि मैं उसको जरा और बड़ी बारिकी से समझना चाहता हूं। और यहां माणा से माणा पास तक जो सड़क बनेगी, उससे मुझे पक्का विश्वास है टूरिस्टों को आने जाने के लिए एक बड़ा नया युग शुरू हो जाएगा। लोग अब बद्री विशाल से वापस नहीं जाएंगे। जब तक माणा पाथ नहीं जाते हैं वापस नहीं जाएंगे, वो स्थिति मैं पैदा करके रहूँगा भाइयों। इसी प्रकार जोशीमठ से मलारी सड़क के चौड़ीकरण से सामान्य लोगों के साथ ही हमारे फौजियों के लिए भी बॉर्डर तक पहुंचना बहुत आसान होगा।
भाइयों और बहनों,
हमारे पहाड़ी राज्यों की चुनौतियां भी एक जैसी हैं। विकास की आकांक्षाएं भी बहुत प्रबल हैं। विशेष रूप से उत्तराखंड और हिमाचल तो भूगोल और परंपरा के हिसाब से भी एक दूसरे से कई मामलों में जुड़े हुए हैं। ये गढ़वाल है, और उत्तरकाशी के, देहरादून के उस तरफ आपके शिमला और सिरमौर आ गए। जौनसार और सिरमौर के गिरिपार में तो अंतर करना भी बड़ा मुश्किल होता है। मैं तो अभी हिमाचल के अनेक क्षेत्रों में जाकर आया हूं। वहां उत्तराखंड की बहुत चर्चा है। हिमाचल वाले कह रहे हैं कि जिस प्रकार उत्तराखंड ने तेज़ विकास के लिए, धरोहरों, आस्था के स्थानों के विकास के लिए, बॉर्डर और पहाड़ी क्षेत्रों की सुविधा बढ़ाने के लिए, डबल इंजन की सरकार को दोबारा ले आए हैं, वही मंत्र हिमाचल को भी प्रेरणा दे रहा है। मैं उत्तराखंड को फिर विश्वास दिलाता हूं कि आपकी आशाओं–आकांक्षांओं को पूरा करने के लिए हमारी मेहनत कभी कम नहीं होगी। मैं बाबा केदार और बद्री विशाल से इस जनविश्वास पर खरा उतरने का आशीर्वाद मांगने भी यहां आया हूं। एक बार फिर विकास के लिए विकास की परियोजनाओं के लिए मैं आप सबको बहुत–बहुत बधाई देता हूं। और इतनी बड़ी तादाद में आप आशीर्वाद देने आए, माताएं–बहनें आईं। शायद आज घर में कोई नहीं होगा। छोटा सा माणा आज पूरा यहां माहौल बदल दिया है। मैं कितना भाग्यवान हूं, जब ये माताएं–बहनें मुझे आर्शीवाद दें। आज सचमुच मेरा जीवन धन्य हो गया है। मैं दीपावली की आप सभी को अग्रिम शुभकामनाएं देता हूं। और मैं आपके उत्तम स्वास्थ्य के लिए, आपके बच्चों के उत्तम प्रगति के लिए बद्री विशाल के चरणों में प्रार्थना करते हुए मेरी वाणी को विराम देता हूं।
मेरे साथ पूरी ताकत से बोलिए– भारत माता की जय, भारत माता की जय, भारत माता की जय।
जय बद्री विशाल, जय बद्री विशाल, जय बद्री विशाल।
जय बाबा केदार, जय बाबा केदार, जय बाबा केदार।
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DS/ST/DK
Kedarnath and Badrinath are significant to our ethos and traditions. https://t.co/68IErTo24N
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PM @narendramodi begins his speech at a programme in Badrinath. pic.twitter.com/S62ckFYewx
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For me every village on the border is the first village in the country, says PM @narendramodi pic.twitter.com/GwsI7fQQfM
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Two major pillars for developed India of the 21st century. pic.twitter.com/iFhOtXprYz
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We have to completely free ourselves from the colonial mindset. pic.twitter.com/qaQ6uEOoGl
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आस्था के ये केंद्र सिर्फ एक ढांचा नहीं बल्कि हमारे लिए प्राणवायु हैं। pic.twitter.com/wsJjsh0aRJ
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Enhancing 'Ease of Living' for the people in hilly states. pic.twitter.com/L0ZHHGXK6L
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We began working with utmost priority in the areas which were ignored earlier. pic.twitter.com/ci5w2DNljL
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Our focus is on improving multi-modal connectivity in the hilly states. pic.twitter.com/9hjG7AG1AI
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आधुनिक कनेक्टिविटी राष्ट्ररक्षा की भी गांरटी होती है। pic.twitter.com/h69bxCI0En
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