जय स्वामीनारायण!
जय स्वामीनारायण!
परम पूज्य महंत स्वामी जी, पूज्य संत गण, गवर्नर श्री, मुख्यमंत्री श्री और उपस्थित सभी सत्संगी परिवार जन, ये मेरा सौभाग्य है कि मुझे इस ऐतिहासिक कार्यक्रम में साक्षी बनने का साथी बनने का और सत्संगी बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। इतने बड़े स्तर पर और एक महीने भर चलने वाला ये कार्यक्रम और मैं नहीं मानता हूं ये कार्यक्रम सिर्फ संख्या के हिसाब से बड़ा है, समय के हिसाब से काफी लंबा है। लेकिन यहां जितना समय मैंने बिताया, मुझे लगता है कि यहां एक दिव्यता की अनुभूति है। यहां संकल्पों की भव्यता है। यहां बाल वृद्ध सबके लिए हमारी विरासत क्या है, हमारी धरोहर क्या है, हमारी आस्था क्या है, हमारा अध्यात्म क्या है, हमारी परंपरा क्या है, हमारी संस्कृति क्या है, हमारी प्रकृति क्या है, इन सबको इस परिसर में समेटा हुआ है। यहां भारत का हर रंग दिखता है। मैं इस अवसर पर सभी पूज्य संत गण को इस आयोजन के लिए कल्पना सामर्थ्य के लिए और उस कल्पना को चरितार्थ करने के लिए जो पुरुषार्थ किया है, मैं उन सबकी चरण वंदना करता हूं, हृदय से बधाई देता हूं और पूज्य महंत स्वामी जी के आशीर्वाद से इतना बड़ा भव्य आयोजन और ये देश और दुनिया को आकर्षित करेगा इतना ही नहीं है, ये प्रभावित करेगा, ये आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करेगा।
15 जनवरी तक पूरी दुनिया से लाखों लोग मेरे पिता तुल्य पूज्य प्रमुख स्वामी जी के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने के लिए यहां पधारने वाले हैं। आप में से शायद बहुत लोगों को पता होगा UN में भी, संयुक्त राष्ट्र में भी प्रमुख स्वामी जी का शताब्दी समारोह मनाया गया और ये इस बात का सबूत है कि उनके विचार कितने शाश्वत हैं, कितने सार्वभौमिक हैं और जो हमारी महान परंपरा संतों के द्वारा प्रस्थापित वेद से विवेकानंद तक जिस धारा को प्रमुख स्वामी जैसे महान संतों ने आगे बढ़ाया, वो वसुधैव कुटुम्बकम की भावना आज शताब्दी समारोह में उसके भी दर्शन हो रहे हैं। ये जो नगर बनाया गया है, यहां हमारे हजारों वर्ष की हमारी ये महान संत परंपरा, समृद्ध संत परंपरा उसके दर्शन एक साथ हो रहे हैं। हमारी संत परंपरा किसी मथ, पंथ, आचार, विचार सिर्फ उसको फैलाने तक सीमित नहीं रही है, हमारे संतों ने पूरे विश्व को जोड़ने वसुधैव कुटुम्बकम के शाश्वत भाव को सशक्त किया है और मेरा सौभाग्य है अभी ब्रह्मविहारी स्वामी जी कुछ अंदर की बातें भी बता दे रहे हैं। बाल्यकाल से ही एक मेरे मन में कुछ ऐसे ही क्षेत्रों में आकर्षण रहा तो प्रमुख स्वामी जी के भी दूर से दर्शन करते रहते थे। कभी कल्पना नहीं थी, उन तक निकट पहुंचेंगे। लेकिन अच्छा लगता था, दूर से भी दर्शन करने का मौका मिलता था, अच्छा लगता था, आयु भी बहुत छोटी थी, लेकिन जिज्ञासा बढ़ती जाती थी। कई वर्षों के बाद शायद 1981 में मुझे पहली बार अकेले में उनके साथ सत्संग करने का सौभाग्य मिला और मेरे लिए surprise था कि उनको मेरे विषय में थोड़ी बहुत जानकारी उन्होंने इकट्ठी करके रखी थी और पूरा समय ना कोई धर्म की चर्चा, ना कोई ईश्वर की चर्चा, न कोई अध्यात्म की चर्चा कुछ नहीं, पूरी तरह सेवा, मानव सेवा, इन्हीं विषयों पर बातें करते रहे। वो मेरी पहली मुलाकात थी और एक-एक शब्द मेरे हृदय पटल पर अंकित होता जा रहा था और उनका एक ही संदेश था कि जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य सेवा ही होना चाहिए। अंतिम सांस तक सेवा में जुटे रहना चाहिए। हमारे यहां तो शास्त्र कहते हैं नर सेवा ही नारायण सेवा है। जीव में ही शिव है लेकिन बड़ी-बड़ी आध्यात्मिक चर्चा को बहुत ही सरल शब्दों में समाहित करते। जैसा व्यक्ति वैसा ही वो परोसते थे, जितना वो पचा सके, जितना वो ले सके। अब्दुल कलाम जी, इतने बड़े वैज्ञानिक उनको भी उनसे मिलकर के कुछ ना कुछ होता था और संतोष होता था और मेरे जैसा एक सामान्य सोशल वर्कर, वो भी जाता था, उसको भी कुछ मिलता था, संतोष होता था। ये उनके व्यक्तित्व की विशालता थी, व्यापकता थी, गहराई थी और एक आध्यात्मिक संत के नाते तो बहुत कुछ आप कह सकते हैं, जान सकते हैं। लेकिन मेरे मन में हमेशा रहा है कि वह सच्चे अर्थ में एक समाज सुधारक थे, वे एक reformist थे और हम जब उनको अपने-अपने तरीके से याद करते हैं लेकिन एक तार जो मुझे हमेशा नजर आता है, हो सकता है उस माला में अलग-अलग तरह के मनके हमको नजर आते होंगे, मोती हमें नजर आते होंगे, लेकिन अंदर का जो तार है वो एक प्रकार से मनुष्य कैसा हो, भविष्य कैसा हो, व्यवस्थाओं में परिवर्तनशीलता क्यों हो, अतिशान आदर्शों से जुड़ा हुआ हो। लेकिन आधुनिकता के सपने, आधुनिकता की हर चीज को स्वीकार करने वाले हों, एक अद्भुत संयोग, एक अद्भुत संगम, उनका तरीका भी बड़ा अनूठा था, उन्होंने हमेशा लोगों की भीतर की अच्छाई को प्रोत्साहित किया। कभी ये नहीं कहा हां भई तुम है ऐसा करो, ईश्वर का नाम लो ठीक हो जाएगा नहीं, होगी तुम्हारे कमियां होंगी मुसीबत होगी लेकिन तेरे अंदर ये अच्छाई है तुम उस पर ध्यान केंद्रित करो। और उसी शक्ति को वो समर्थन देते थे, खाद पानी डालते थे। आपके भीतर की अच्छाइयां ही आपके अंदर आ रही, पनप रही बुराइयों को वहीं पर खत्म कर देंगी, ऐसा एक उच्च विचार और सहज शब्दों में वो हमें बताते रहते थे। और इसी माध्यम को उन्होंने एक प्रकार से मनुष्य के संस्कार करने का, संस्कारित करने का परिवर्तित करने का माध्यम बनाया। सदियों पुरानी बुराइयां जो हमारे समाज जीवन में ऊंच-नीच भेदभाव उन सबको उन्होंने खत्म कर दिया और उनका व्यक्तिगत स्पर्श रहता था और उसके कारण ये संभव रहता था। मदद सबकी करना, चिंता सबकी करना, समय सामान्य रहा हो या फिर चुनौती का काल रहा हो, पूज्य प्रमुख स्वामी जी ने समाज हित के लिए हमेशा सबको प्रेरित किया। आगे रहकर के, आगे बढ़कर के योगदान दिया। जब मोरबी में पहली बार मच्छु डैम की तकलीफ हुई, मैं वहां volunteer के रूप में काम करता था। हमारे प्रमुख स्वामी, कुछ संत, उनके साथ सत्संगी सबको उन्होंने भेज दिया था और वो भी वहां हमारे साथ मिट्टी उठाने के काम में लग गए थे। Dead bodies का अग्नि संस्कार करने में काम में लगे थे। मुझे याद है, 2012 में मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद मैं उनके पास गया। आम तौर पर मैं मेरे जीवन के जो भी महत्वपूर्ण पड़ाव आए होंगे, प्रमुख स्वामी जी के पास अवश्य गया हूं। शायद बहुत कम लोगों को पता होगा, मैं 2002 का चुनाव लड़ रहा था। पहली बार मैं मुझे चुनाव लड़ना था, पहली बार नामांकन भरना था और राजकोट से मुझे उम्मीदवार होना था, तो वहां दो संत मौजूद थे, मैं जब वहां गया तो उन्होंने मुझे एक डिब्बा दिया, मैंने खोला तो अंदर एक pen थी, उन्होंने कहा कि प्रमुख स्वामी जी ने भेजा है, आप जब नामांकन में हस्ताक्षर करेंगे तो इस pen से करना। अब वहां से लेकर मैं काशी चुनाव के लिए गया।
एक भी चुनाव ऐसा नहीं है, जब मैं नामांकन करने गया। और उसके लिए मुझे हस्ताक्षर करने के लिए पूज्य प्रमुख स्वामी जी के व्यक्ति आकर के खड़े न हो वहां। और जब काशी गया तब तो मेरे लिए सरप्राइज था, उस पेन का जो कलर था, वो बीजेपी के झंडे के कलर का था। ढ़क्कन उसका जो था वो ग्रीन कलर का था और नीचे का हिस्सा औरेंज कलर का था। मतलब कई पहले दिनों से उन्होंने संभाल के रखा होगा और याद कर-करके उसी रंग की पेन मुझे भेजना। यानि व्यक्तिगत रूप से वरना उनका कोई क्षेत्र नहीं था कि मेरी इतनी केयर करना, शायद बहुत लोगों को आश्चर्य होगा सुनकर के। 40 साल में शायद एक साल ऐसा नहीं गया होगा कि हर वर्ष प्रमुख स्वामी जी ने मेरे लिए कुर्ता-पायजामा का कपड़ा न भेजा हो और ये मेरा सौभाग्य है। और हम जानते हैं बेटा कुछ भी बन जाए, कितना भी बड़ा बन जाए, लेकिन मां-बाप के लिए तो बच्चा ही होता है। देश ने मुझे प्रधानमंत्री बना दिया, लेकिन जो परंपरा प्रमुख स्वामी जी चलाते थे, उनके बाद भी वो कपड़ा भेजना चालू है। यानि ये अपनापन और मैं नहीं मानता हूं कि ये संस्थागत पीआरसीव का काम है, नहीं एक अध्यात्मिक नाता था, एक पिता-पुत्र का स्नेह था, एक अटूट बंधन है और आज भी वो जहां होंगे मेरे हर पल को वो देखते होंगे। बारीकी से मेरे काम को झांकते होंगे। उन्होंने मुझे सिखाया-समझाया, क्या मैं उसी राह पर चल रहा हूं कि नहीं चल रहा हूं वो जरूर देखते होंगे। कच्छ में भूकंप जब मैं volunteer के रूप में कच्छ में काम करता था, तब तो मेरा मुख्यमंत्री का कोई सवाल ही नहीं उठता था। लेकिन वहां सभी संत मुझे मिले तो सबसे पहले कि तुम्हारे खाने की क्या व्यवस्था है, मैंने कहा कि मैं तो अपने कार्यकर्ता के यहां पहुंच जाऊंगा, नहीं बोले कि तुम कहीं पर भी जाओ तुम्हारे लिए यहां भोजन रहेगा, रात को देर से आओगे तो भी खाना यहीं खाओ। यानि मैं जब तक भुज में काम करता रहा मेरे खाने कि चिंता प्रमुख स्वामी ने संतो को कह दिया होगा वे पीछे पड़े रहते थे मेरे। यानि इतना स्नेह और मैं ये सारी बातें कोई अध्यात्मिक बातें नहीं कर रहा हूं जी मैं तो एक सहज-सामान्य व्यवहार की बातें कर रहा हूं आप लोगों के साथ।
जीवन के कठिन से कठिन पलों में शायद ही कोई ऐसा मौका होगा कि जब प्रमुख स्वामी ने खुद मुझे बुलाया ना हो या मेरे से फोन पर बात न की हो, शायद ही कोई घटना होगी। मुझे याद है, मैं वैसे अभी वीडियो दिखा रहे थे, उसमें उसका उल्लेख था। 91-92 में श्रीनगर के लाल चौक में तिरंगा झंडा फहराने के लिए मेरी पार्टी की तरफ से एकता यात्रा की योजना हुई थी। डाँ मुरली मनोहर जी के नेतृत्व में वो यात्रा चल रही थी और मैं उसकी व्यवस्था देखता था। जाने से पहले मैं प्रमुख स्वामी जी का आशीर्वाद लेकर गया था तो उनको पता था कि मैं कहाँ जा रहा हूं, क्या कर रहा हूं। हम पंजाब से जा रहे थे तो हमारी यात्रा के साथ आतंकवादियों की भीड़ हो गई, हमारे कुछ साथी मारे गऐ। पूरे देश में बड़ी चिंता का विषय था कहीं गोलियां चली काफी लोग मारे गऐ थे। और फिर वहीं से हम जम्मू पहुंच रहे थे। हमने श्रीनगर लालचौक तिरंगा झंडा फहराया। लेकिन जैसे ही मैंने जम्मू में लैंड किया, सबसे पहला फोन प्रमुख स्वामी जी का और मैं कुशल तो हूं न, चलिए ईश्वर तुम्हें आशीर्वाद दें, आओगे तो फिर मिलते हैं, सुनेंगे तुमसे कुछ क्या हुआ, सहज-सरल। मैं मुख्यमंत्री बन गया, अक्षरधाम के सामने ही 20 मीटर की दूरी पर मेरा घर जहां सीएम निवास था, मैं वहां रहता था। और मेरा आने-जाने का रास्ता भी ऐसा कि जैसे ही निकलता था, तो पहले अक्षरधाम शिखर के दर्शन करके ही मैं आगे जाता था। तो सहज-नित्य नाता और अक्षरधाम पर आतंकवादियों ने हमला बोल दिया तो मैंने प्रमुख स्वामी जी को फोन किया। इतना बड़ा हमला हुआ है, मैं हैरान था जी, हमला अक्षरधाम पर हुआ है, संतो पर क्या बीती होगी गोलियां चली, नहीं चली किसको क्या सारी चिंता का विषय था क्योंकि एकदम से धुंधला सा वातावरण था। ऐसी संकट की घड़ी में इतना बड़ा आतंकी हमला, इतने लोग मारे गए थे। प्रमुख स्वामी जी ने मुझे क्या कहा फोन किया तो अरे भई तेरा घर तो सामने ही है, तुम्हें कोई तकलीफ नहीं है ना। मैंने कहा बापा इस संकट की घड़ी में आप इतनी स्वस्थतापूर्वक मेरी चिंता कर रहे हैं। उन्होंने कहा देख भई ईश्वर पर भरोसा करो सब अच्छा होगा। ईश्वर सत्य के साथ होता है यानि कोई भी व्यक्ति हो, ऐसी स्थिति में मानसिक संतुलन, स्वस्थता ये भीतर की गहन आध्यात्मिक शक्ति के बिना संभव नहीं है जी। जब प्रमुख स्वामी ने अपने गुरूजनों से और अपनी तपस्या से सिद्ध की थी। और मुझे एक बात हमेशा याद रहती है, मुझे लगता है कि वो मेरे लिए पिता के समान थे, आप लोगों को लगता होगा कि मेरे गुरू थे। लेकिन एक और बात की तरफ मेरा ध्यान जाता है और जब दिल्ली अक्षरधाम बना तब मैंने इस बात का उल्लेख भी किया था, क्योंकि मुझे किसी ने बताया था कि योगी जी महाराज की इच्छा थी कि यमुना के तट पर अक्षरधाम का होना जरूरी है। अब उन्होंने तो बातों-बातों में योगी जी महाराज के मुंह से निकला होगा, लेकिन वो शिष्य देखिए जो अपने गुरू के इन शब्दों को जीता रहा। योगी जी तो नहीं रहे, लेकिन वो योगी जी के शब्दों को जीता रहा, क्योंकि योगी जी के सामने प्रमुख स्वामी शिष्य थे। हम लोगों को गुरू के रूप में उनकी ताकत दिखती है, लेकिन मुझे एक शिष्य के रूप में उनकी ताकत दिखती है कि अपने गुरू के उन शब्द को उन्होंने जीकर दिखाया तो यमुना के तट पर अक्षरधाम बनाकर के आज पूरी दुनिया के लोग आते हैं तो अक्षरधाम के माध्यम से भारत की महान विरासत को समझने का प्रयास करते हैं। ये युग-युग के लिए किया गया काम है, ये युग को प्रेरणा देने वाला काम है। आज विश्व में कहीं पर भी जाइए, मंदिर हमारे यहां कोई नई चीज नहीं है, हजारों साल से मंदिर बनते रहे हैं। लेकिन हमारी मंदिर पंरपरा को आधुनिक बनाना मंदिर व्यवस्थाओं को आध्यात्मिकता और आधुनिकता का मिलन करना। मैं समझता हूं कि एक बड़ी परंपरा प्रमुख स्वामी जी ने प्रस्थापित की है। बहुत लोग हमारी संत परंपरा के बड़े, नई पीढ़ी के दिमाग में तो पता नहीं क्या-क्या कुछ भर दिया जाता है, ऐसा ही मानते हैं। पहले के जमाने में तो कहावत चलती थी कि मुझे माफ करना सब सत्संगी लोग, पहले से कहा था भई साधु बनना है संत स्वामीनारायण के बनो फिर लड्डू बताते थे। यहीं कथा चलती थी कि साधु बनना है तो संत स्वामीनारायण के बनो मौज रहेगी। लेकिन प्रमुख स्वामी ने संत परंपरा को जिस प्रकार से पूरी तरह बदल डाला, जिस प्रकार से स्वामी विवेकानंद जी ने रामकृष्ण मिशन के द्वारा सन्यस्थ जीवन को सेवा भाव के लिए एक बहुत बड़ा विस्तार दिया। प्रमुख स्वामी जी ने भी संत यानि सिर्फ स्व के कल्याण के लिए नहीं है, संत समाज के कल्याण के लिए है और हर संत इसलिए उन्होंने तैयार किया, यहां पर बैठे हुए हर संत किसी न किसी सामाजिक कार्य से निकलकर के आए हैं और आज भी सामाजिक कार्य उनका जिम्मा है। सिर्फ आशीर्वाद देना और तुमको मोक्ष मिल जाए ये नहीं है। जंगलों में जाते हैं, आदिवासियों के बीच में काम कर रहे हैं। एक प्राकृतिक आपदा हुई तो volunteer के रूप में जीवन खपा देते हैं। और ये परंपरा खड़ी करने में पूज्य प्रमुख स्वामी महाराज का बहुत बड़ा योगदान है। वे जितना समय, शक्ति और प्रेरणा देते थे, मंदिरों के माध्यम से विश्व में हमारी पहचान बने, उतना ही सामर्थ्य वे संतों के विकास के लिए करते थे। प्रमुख स्वामी जी चाहते तो गांधी नगर में रह सकते थे, अहमदाबाद में रह सकते थे, बड़े शहर में रह सकते थे, लेकिन उन्होंने ज्यादातर सहारनपुर में अपना समय बिताना पसंद किया। यहां से 80-90 किलोमीटर दूर और वहां क्या किया उन्होंने संतो के लिए Training Institute पर बल दिया और मुझे आज कोई भी अखाड़े के लोग मिलते हैं तो मैं उनको कहता हूं कि आप 2 दिन के लिए सहारनपुर जाइए संतो की Training कैसी होनी चाहिए, हमारे महात्मा कैसे होने चाहिए, साधु-महात्मा कैसे होने चाहिए ये देखकर के आए और वो जाते हैं और देखकर के आते हैं। यानि आधुनिकता उसमें Language भी सिखाते है अंग्रेजी भाषा सिखाते हैं, संस्कृत भी सिखाते हैं, विज्ञान भी सिखाते हैं, हमारी spiritual परम्पराऐं भी सिखाई जाती हैं। यानि एक सम्पूर्ण प्रयास विकास कर-कर के समाज में संत भी ऐसा होना चाहिए जो सामर्थ्यवान होना चाहिए। सिर्फ त्यागी होना जरूरी, इतनी सी बात में नहीं त्याग तो हो लेकिन सामर्थ्य होना चाहिए। और उन्होंने पूरी संत परंपरा जो पैदा की है जैसे उन्होंने अक्षरधाम मंदिरों के द्वारा विश्व में एक हमारी भारत की महान पंरपरा को परिचित करवाने के लिए एक माध्यम बनाया है। वैसे उत्तम प्रकार की संत परंपरा के निर्माण में भी पूज्य प्रमुख जी स्वामी जी महाराज ने एक Institutional Mechanism खड़ा किया है। वो व्यक्तिगत व्यवस्था के तहत नहीं उन्होंने Institutional Mechanism खड़ा किया है, इसलिए शताब्दियों तक व्यक्ति आएंगे-जाएंगे, संत नए-नए आएंगे, लेकिन ये व्यवस्था ऐसी बनी है कि एक नई परंपरा की पीढ़ियां बनने वाली है ये मैं अपनी आंखों के सामने देख रहा हूं। और मेरा अनुभव है वो देवभक्ति और देशभक्ति में फर्क नहीं करते थे। देवभक्ति के लिए जीते हैं आप, देशभक्ति के लिए जीते हैं जो उनका लगता है कि मेरे लिए दोनों सत्संगी हुआ करते हैं। देवभक्ति के लिए भी जीने वाला भी सत्संगी है, देशभक्ति के लिए भी जीने वाला सत्संगी होता है। आज प्रमुख स्वामी जी की शताब्दी का समारोह हमारी नई पीढ़ी को प्रेरणा का कारण बनेगा, एक जिज्ञासा जगेगी। आज के युग में भी और आप प्रमुख स्वामी जी के डिटेल में जाइए कोई बड़े-बड़े तकलीफ हो ऐसे उपदेश नहीं दिए उन्होंने सरल बातें की, सहज जीवन की उपयोगी बातें बताई और इतने बड़े समूह को जोड़ा मुझे बताया गया 80 हजार volunteers हैं। अभी हम आ रह थे तो हमारी ब्रहम जी मुझे बता रहे थे कि ये सारे स्वयंसेवक हैं और वो प्रधानमंत्री जो विजिट कर रहे हैं। मैंने कहा आप भी तो कमाल आदमी हो यार भूल गए क्या, मैंने कहा वो स्वयंसेवक हैं, मैं भी स्वयंसेवक हूं, हम दोनों एक दूसरे को हाथ कर रहें हैं। तो मैंने कहा अब 80 हजार में एक और जोड़ दीजिए। खैर बहुत कुछ कहने को है, पुरानी स्मृतियां आज मन को छू रहीं हैं। लेकिन मुझे हमेशा प्रमुख स्वामी की कमीं महसूस होती रही है। और मैं कभी उनके पास कोई बड़ा, ज्ञानार्थ कभी नहीं किया मैंने, ऐसे ही अच्छा लगता था, जाकर बैठना अच्छा लगता था। जैसे पेड़ के नीचे बैठे थके हुए हो, पेड़ के नीचे बैठते हैं तो कितना अच्छा लगता है, अब पेड़ थोड़े ने हमको कोई भाषण देता है। मैं प्रमुख स्वामी के पास बैठता था, ऐसे ही लगता था जी। एक वट-वृक्ष की छाया में बैठा हूं, एक ज्ञान के भंडार के चरणों में बैठा हूं। पता नहीं मैं इन चीजों को कभी लिख पाऊंगा कि नहीं लिख पाऊंगा लेकिन मेरे अंतर्मन की जो यात्रा है, वो यात्रा का बंधन ऐसी संत परंपरा से रहा हुआ है, आध्यात्मिक परंपरा से रहा हुआ है और उसमें पूज्य योगी जी महाराज, पूज्य प्रमुख स्वामी महाराज और पूज्य महंत स्वामी महाराज बहुत बड़ा सौभाग्य है मेरा कि मुझे ऐसे सात्विक वातावरण में तामसिक जगत के बीच में अपने आप को बचाकर के काम करने की ताकत मिलती रहती है। एक निंरतर प्रभाव मिलता रहता है और इसी के कारण राजसी भी नहीं बनना है, तामसी भी नहीं बनना है, सात्विक बनते हुए चलते रहना है, चलते रहना है, चलते रहना है। आप सबको बहुत-बहुत शुभकामनाएं।
जय स्वामीनारायण।
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DS/ST/AV/RK
Pujya Pramukh Swami Maharaj touched countless lives all over the world with his impeccable service, humility and wisdom. @BAPS https://t.co/rZgqMnOURR
— Narendra Modi (@narendramodi) December 14, 2022
In this programme, I can see every aspect of India's vibrancy and diversity. I want to appreciate the saints and seers for thinking of a programme of this nature and at such a scale. People from all over the world are coming to pay homage to HH Pramukh Swami Maharaj Ji: PM Modi pic.twitter.com/fVeJCfTxad
— PMO India (@PMOIndia) December 14, 2022
I have been drawn to the ideals of HH Pramukh Swami Maharaj Ji from my childhood. I never thought that sometime in my life, I would get to meet him. It was perhaps back in 1981 that I met him during a Satsang. He only spoke of Seva: PM @narendramodi pic.twitter.com/Ey7r6cLNdv
— PMO India (@PMOIndia) December 14, 2022
HH Pramukh Swami Maharaj Ji was a reformist. He was special because he saw good in every person and encouraged them to focus on these strengths. He helped every individual who came in contact with him. I can never forget his efforts during the Machchhu dam disaster in Morbi: PM pic.twitter.com/Q8J64kSfPF
— PMO India (@PMOIndia) December 14, 2022
In 2002 during the election campaign when I was a candidate from Rajkot I got a pen from two saints saying that Pramukh Swami Maharaj Ji has requested you sign your papers using this pen. From there till Kashi, this practice has continued: PM @narendramodi pic.twitter.com/LfgjNDlYrJ
— PMO India (@PMOIndia) December 14, 2022
During the Ekta Yatra under Dr. MM Joshi's leadership we faced a hostile situation on the way to Jammu. The moment I reached Jammu the first call I got was from Pramukh Swami Maharaj Ji, who asked about my wellbeing: PM @narendramodi
— PMO India (@PMOIndia) December 14, 2022
हमारे संतों ने पूरे विश्व को जोड़ने- वसुधैव कुटुंबकम के शाश्वत भाव को सशक्त किया। pic.twitter.com/cnzhsta9oQ
— PMO India (@PMOIndia) December 14, 2022
Go to any part of the world, you will see the outcome of Pramukh Swami Maharaj Ji's vision. He ensured our Temples are modern and they highlight our traditions. Greats like him and the Ramakrishna Mission redefined the Sant Parampara: PM @narendramodi pic.twitter.com/mNOiLUkB0p
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Pramukh Swami Maharaj Ji believed in Dev Bhakti and Desh Bhakti: PM @narendramodi pic.twitter.com/8Txcs3Jjae
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पूज्य प्रमुख स्वामी जी ने, समाज के हित के लिए, सबको प्रेरित किया। pic.twitter.com/qrXGF39Dhi
— PMO India (@PMOIndia) December 14, 2022
I am honoured to have attended the Shatabdi Mahotsav of Pujya Pramukh Swami Maharaj. I consider myself blessed to have interacted with him so closely. Shared my memories with him and recalled his outstanding service to humanity. pic.twitter.com/4Dri746KUe
— Narendra Modi (@narendramodi) December 14, 2022
प्रमुख स्वामी महाराज ने समाज सुधार के लिए अमूल्य योगदान दिया। उन्होंने हमेशा इस बात पर जोर दिया कि जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य सेवा ही होना चाहिए। pic.twitter.com/y5q83zsGa9
— Narendra Modi (@narendramodi) December 15, 2022
सामान्य समय रहा हो या फिर चुनौती का काल रहा हो, स्वामी जी ने हमेशा समाज के हित में आगे बढ़कर योगदान दिया। pic.twitter.com/b1Hbt729J4
— Narendra Modi (@narendramodi) December 15, 2022
संकट कितना भी बड़ा हो, विपत्ति कितनी भी बड़ी हो, स्वामी जी के लिए मानवीय संवेदनाएं हमेशा सर्वोच्च रहीं।
— Narendra Modi (@narendramodi) December 15, 2022
अक्षरधाम पर आतंकी हमले के बाद जब मैंने स्वामी जी को फोन किया तो उनकी बात सुनकर आश्चर्य में पड़ गया… pic.twitter.com/bG8qQfsYt6
Here are highlights from the Pramukh Swami Maharaj Shatabdi Mahotsav, a memorable programme which took place in Ahmedabad. pic.twitter.com/ttE3ZThH3B
— Narendra Modi (@narendramodi) December 15, 2022