आज जो अपने जीवन की एक नई शुरुआत करने जा रहे हैं, ऐसे सभी पदक विजेता और, डिग्री प्राप्त करने वाले साथियों, उपस्थित सभी महानुभाव,
आज 11 सितम्बर है। 11 सितम्बर कहने के बाद बहुत कम ध्यान में आता है, लेकिन 9/11 कहने के बाद तुरंत ध्यान आता है। इतिहास में 9/11 तारीख किस रूप में अंकित हुई है। यही 9/11 है कि जिस दिन, मानवता को ध्वस्त करने का एक हीन प्रयास हुआ। हजारों लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया और वही 9/11 है आज कि जहां PGI से वो नौजवान, समाज में कदम रख रहे हैं, जो औरों की जिंदगी बचाने के लिए जूझनें वाले हैं।
मारना बहुत सरल होता है। लेकिन किसी को जिंदा रखना? पूरा जीवन खपा देना पड़ता है। और उस अर्थ में आपके जीवन में भी, आज ये 9/11 का एक विशेष महत्व बनता है। इतिहास के झरोखे में 9/11 का और भी एक महत्व है – 1893 – करीब 120 साल पहले, इसी देश का एक महापुरुष, अमेरिका की धरती पर गया था। और 9/11 कि शिकागो की धर्म परिषद में स्वामी विवेकानंद ने अपना उद्बोधन किया था। और उस उद्बोधन का प्रारम्भ था, “Sister and Brothers of America”. और उस एक शब्द ने, उस एक वाक्य ने पूरे सभागृह को लंबे अरसे तक तालियों से गूंजने के लिए मजबूर कर दिया था। उस एक पल ने पूरी मानवता को बंधुता में जोड़ने का एक एहसास कराया था। वो एक घोष वाक्य से मानवता के साथ, हर मानवीय जीवन किस प्रकार की ऊंचाइयों को प्राप्त कर सकता है, उसका संदेश था। लेकिन 9/11, 1893 स्वामी विवेकानंद का संदेश अगर दुनिया ने माना होता, दुनिया ने स्वीकार किया होता, तो शायद वो जो दूसरा 9/11 हुआ, वो न होता।
और उस परिपेक्ष में आज 9/11 को, चंडीगढ़ PGI में, दीक्षांत समारोह में मुझे आने का अवसर मिला है। मैं PGI से भलीभांति परिचित हूं। बहुत बार यहां आया करता था। कोई न कोई हमारे परिचित लोग बीमार होते थे तो मुझे मिलने आना होता था। क्योंकि मैं लंब अरसे तक यहीं चंडीगढ़ में रहा, मेरा कार्यक्षेत्र रहा। और इसलिए मैं भलीभांति PGI से परिचित रहा।
आज आपने समारोह मे देखा होगा, जो पहले कभी नहीं देखा होगा, सरकारी स्कूल के under privileged कुछ बच्चे यहां बैठे हैं। मैंने एक आग्रह रखा है कि जहां भी मुझे convocation में जाने का अवसर मिलता है, तो मैं आग्रह करता हूं उस शहर के गरीब बस्ती के जो सरकारी स्कूल हैं, वहां के बच्चों को लाकर के इस कार्यक्रम के साक्षी बनाइए। ये दृश्य जब देखेंगे तो उनके भीतर एक aspiration जगता है, उनके भीतर भी एक विश्वास पैदा होता है, “कभी हम भी यहां हो सकते हैं।“
तो ये दीक्षांत समारोह में दो चीज़ें हैं। एक जिन्होंने शिक्षा प्राप्त करके जीवन के एक नये क्षेत्र में कदम रखना है वो है। और दूसरे वो हैं, जो आज इस कदमों पर चलने का कोई संकल्प लेकर करके शायद ये दृश्य देखकर करके यहां से जाएंगे। एक शिक्षक जितना नहीं सिखा सकता है उससे ज्यादा एक दृश्य मन में अंकित होता है और किसी की जिदंगी को बदलने का कारण बन सकता है। और उस अर्थ में मेरा आग्रह रहता है कैसे हमारे गरीब परिवार के बच्चे भी ऐसे समारोह में साक्षी हों। और उसी के तहत मैं PGI का आभारी हूं कि उन्होंने मेरे इस सुझाव को स्वीकार किया और इन छोटे-छोटे बालकों को आज इस समारोह का साक्षी बनाने का अवसर दिया। एक अर्थ में आज के समारोह के ये मुख्य अतिथि हैं। वे हमारे real Chief Guest हैं।
जब दीक्षांत समारोह हो रहा है तो मैं दो और शब्दों का भी उल्लेख करना चाहूंगा, कि जब ये दीक्षांत समारोह होता है तो कहीं हमारे मन में ये भाव तो नहीं होता है कि शिक्षांत समारोह है? कहीं ये भाव तो नहीं होता है कि विद्यांत समारोह है? अगर हमारे मन में ये भाव उठता है कि शिक्षांत समारोह या विद्यांत समारोह है तो ये सही अर्थ में दीक्षांत समारोह नहीं है।
ये शिक्षांत समारोह नहीं है, यहां शिक्षा का अंत नहीं होता है। ये विद्यांत समारोह नहीं है, ये विद्या की उपासना का अंतकाल ये नहीं है। ये दीक्षांत समारोह है। हमारे मानवीय इतिहास की ओर नजर करें तो ऐसा ध्यान में आता है कि सबसे पहला दीक्षांत समारोह करीब 2500 हजार वर्ष पहले हुआ, ऐसा लिखित उल्लेख प्राप्त होता है। 2500 वर्ष पुरानी ये परंपरा है। तैत्रेयी उपनिषद में सबसे पहले दीक्षांत समारोह की चर्चा है। यानि ये घटना 2500 वर्ष से चली आ रही है। और इसी धरती से, ये संस्कार की प्रक्रिया प्रारंभ हुई है।
जब दीक्षांत समारोह होता है तब कुछ पल तो लगता है, “हां चलो यार, बहुत हो गया, कितने दिन postmortem room में निकालते थे! वो कैसे दिन ते, चलो अब छुट्टी हो गई! पता नहीं laboratory में कितना time जाता था और पता नहीं हमारे साहब भी कितना परेशान करते थे। रात-रात को duty पर बुला लेते थे। Patient को खांसी भी नहीं होती थी, लेकिन उठाते थे, चलो देखो जरा क्या हुआ है।“
आपको लगता होगा कि सब परेशानियों से मुक्ति हो गई। हकीकत में जो आपने सीखा, समझ है, पाया है, अनुभव किया है, उसे अब कसौटी पर कसने का सच्चा वक्त प्रारंभ होता है। किसी अध्यापक के द्वारा आपकी की गई कसौटी और उसके कारण मिले हुए marks, उसके कारण मिला हुआ प्रमाण-पत्र और उसके कारण जीवन यापन के लिए खुला हुआ रास्ता वहीं से बात समाप्त नहीं होती है, बात एक प्रकार से शुरू होती है कि अब हर पल कसौटी शुरू होती है। पहले आप patient को देखते थे तो एक student के रूप में, patient कम नजर आता था, syllabus ज्यादा याद आता था कि किताब में लिखा था कि इतना pulse rate है तो ऐसा होता है, तो हमें वो patient भी याद नहीं आता था, उसकी pulse भी ध्यान में नहीं रहती थी लेकिन teacher ने जो बताया गया कि “यार इसका कैसा है जरा देखो तो फिर किताब देखते थे उसकी pulse का जो हो हो, लेकिन हम किताब देखते हैं यार क्या हुआ।“
यानी हमने उसकी प्रकार से अपने समय को बिताया है। लेकिन अब जब हम Patient की pulse पकड़ते है तो किताब ध्यान में नहीं आती है। एक जिंदा इंसान आपके सामने बैठा होता है, pulse rate ऊपर नीचे हुआ तो आपकी धड़कन भी ऊपर-नीचे हो जाती है। इतनी एकामता जुड़ जाती है किताब से निकलकर के जिंदगी से जुड़ने का एक अवसर आज से प्रारंभ होता है।
और, आप डॉक्टर हैं आप mechanic नहीं है। एक mechanic का भी कारोबार पुर्जों के साथ होता है। आजकल डाक्टर का भी कारोबार पुर्जों के साथ ही होता है। सारे spare part का उसको पता होता है। technology ने हर spare part का काम क्या है वो भी बता दिया है लेकिन उसके बावजूद भी हम एक मशीन के साथ कारोबार नहीं करते हैं, एक जिंदा इंसान के साथ करते हैं और इसलिए सिर्फ ज्ञान enough नहीं होता है। हर पुर्जे के संबंध में, उसके काम के संबंध में आई हुई कठिनाई के संबंध में सिर्फ ज्ञान होना sufficient नहीं होता है, हमारे लिए आवश्यक होता है मानवीय संवेदनाओं का सेतु जोड़ना। आप देखना, सफल डॉक्टरों का जरा history देखिए, बीमारी को focus करने वाले डॉक्टर बहुत कम सफल होते हैं। लेकिन बीमार पर focus करने वाले डॉक्टर ज्यादा सफल होते हैं। जो बीमारी में ज्यादा सटा हुआ है, जो सिर्फ बीमारी को address करता है, वो न patient को ठीक कर पाता है और न ही अपने जीवन को सफल कर पाता है। लेकिन जो बीमार को address करता है, उसकी मनोवैज्ञानिक अवस्था को address करता है, उसकी अवस्था को सोचता है, गरीब से गरीब patient आ गया, पता है, payment नहीं दे पाएगा। लेकिन डॉक्टर ने अगर एक बीमार को देखा, बीमारी को बाद में देखा तो आपने देखा तो 20 साल के बाद भी वो गरीब patient मजदूरी करके डॉक्टर के घर वापस आकर के अपना कर्ज चुका देगा। क्यों? क्योंकि आपने बीमारी को नहीं, बीमार को अपना बना लिया था। और एक बार बीमार को हम अपना बना लेते हैं, तो उसकी बीमारी को जानने का कारण भी बहुत बन जाता है।
आजकल medical science एक प्रकार से technology से overpowered है। Technology-driven medical science है। आज कोई डॉक्टर बीमार व्यक्ति आ जाए तो देखकर के, चार सवाल पूछकर के दवाई नहीं देता है। वो कहता है जाओ पहले laboratory में, blood test करवाओ, urine test करवाओ। सारी technology उसकी चीर-फाड़ करके, चीजें छोड़कर के, उसको कागज पर डाल दे तो फिर आप ऐसा करते हैं कि “अच्छा ऐसा करो, वो लाल वाली दवाई दे दे, ये दे दो, ये दो दो”, अपने कपाउंडर के बता देते हैं। यानी डॉक्टर को निर्णय करने की इतनी सुविधा बन गई है, उसको इतनी चीजें उपलब्ध हैं। और थोड़ा सा भी experience उसको expertise की ओर ले जाने के लिए बहुत बड़ी ताकत देता है। और जब मैं सुनता हूं कि PGI एक digital initiative वाला institute है, इसका मतलब आप most modern technology के साथ जुड़े हुए परिचित डॉक्टर हैं। और अगर आप most modern technology के साथ जुड़े हुए डॉक्टर हैं तो आपके लिए अब उस patient को समझना, उसकी बीमारी को समझना, उस बीमारी को ठीक करने के रास्ते तय करना, technology आपको मदद करती है।
ये जो बदलाव आया है, वो बदलाव पूरे medical science में किस प्रकार से बदलाव आए। और मुझे विश्वास है कि यहां जो शिक्षा-दीक्षा आपने पाई है… हम ये भी समझे कि हम डॉक्टर बन गए, हमें डॉक्टर किसने बनाया? इसलिए बने कि हमारा दिमाग बहुत तेज था, entrance exam में बहुत अच्छे marks ले आए थे, उस समय हमारा coaching बहुत बढ़िया हुआ था? इसलिए हम डॉक्टर बन गए? हम इसलिए डॉक्टर बन गए कि 5 साल, 7 साल, जो भी बिताना था, वो बहुत अच्छे ढंग से बिताया, इसलिए डॉक्टर बन गए? अगर ये हम सोचते हैं तो शायद हम अधूरी सोच के हैं, हमारे खयालात अपूर्ण हैं।
हमें डॉक्टर बनाने में एक ward boy का भी role रहा होगा। हमें डॉक्टर बनाने में exam के समय देर रात चाय बेचने वाले को जाकर के कहा होगा कि “देखो यार रात को देर तक पढ़ना है, उठ जाओ यार चाय बना दो”। उसने कहा होगा “साहब, ठंड बहुत है सोने दो”। आपने कहा होगा “नहीं-नहीं यार, चाय बना दे, कल exam है”। और उस गरीब आदमी, पेड़ के नीचे सोए हुए व्यक्ति ने उठकर के चाय बनाई होगी, चाय पिलाई होगी। और आपने रात को फिर 2 घंटे पढ़ाई की होगी और फिर दूसरे दिन exam दिए होंगे और कुछ marks पाएं होंगे, क्या उस चाय वाले का कोई contribution नहीं है?
और इसलिए हम जो कुछ भी बनते हैं, हमारी अपनी बदौलत नहीं बनते हैं। हर प्रकार के समाज के लोगों का कुछ न कुछ योगदान होता है। हर किसी ने हमारे जीवन में बदलाव लाने के लिए role अदा किया होता है। मतलब ये हुआ, कि हम सरकार के कारण डॉक्टर नहीं बने हैं, हम समाज के कारण बने हैं। और समाज के ऋण, ये चुकता करना हमारा दायित्व बनता है।
आप में से बहुत लोग होंगे जिनके passport तैयार होंगे। बहुत लोग होंगे जो शायद visa के application करके आए होंगे। लेकिन ये देश हमारा है। आज हम जो कुछ भी है, किसी न किसी गरीब के हक की कोई चीज उससे लेकर के हमें दी गई होगी। तभी तो हम यहां पहुंचे हैं। और इसलिए जीवन में कोई भी निर्णय करें, महात्मा गांधी हमेशा कहा करते थे कि “मेरे जीवन का निर्णय या मेरी सरकार का कोई भी निर्णय – सही है या गलत – अगर मैं उलझन में हूं, तो मैं एक बार पल भर के लिए समाज के आखिरी इंसान को जरा याद कर लूँ, जरा उसका चेहरा स्मरण कर लूँ, और तय करूं जो मैं कर रहा हूँ, उसकी भलाई में है या नहीं है”। आपका निर्णय सही हो जाएगा। मैं भी आपसे आज यही आग्रह करूंगा कि दीक्षांत समारोह में आप एक जीवन की बड़ी जिम्मेदारी लेने जा रहे हो। लेकिन आप एक ऐसी व्यवस्था से जुड़े हो, एक आप ऐसे क्षेत्र से जुड़े हो, कि जहां आज के बाद आप सिर्फ अपने जीवन का निर्णय नहीं करते हैं, आप समाज जीवन की जिम्मेदारी उठाने का भी निर्णय कर रहे हो। और इसलिए जीवन में कभी उलझन में हो, कभी निर्णय करने के अवसर आये कि ये करूं ये वो करूं पल भर के लिए कोई न कोई गरीब ने आपकी जिदंगी बनाने में role play किया हो। किसी ने आपकी चिंता की हो आपके कारण कोई न कोई काम किया हो। जरा पल भर उसको याद कर लीजिए और सही कर रहें या गलत कर रहे हैं अपने आप फैसला हो जाएगा। और ये अगर निर्णय की प्रक्रिया रही तो हिन्दुस्तान को कभी कठिनाइयों से गुजरने का अवसर नहीं आएगा।
हमारे देश में हम परपरागत रूप holistic healthcare का जमाना है। आज दुनिया में एक बहुत बड़ा बदलाव आया है holistic healthcare का, preventive healthcare का – उसकी ओर लोग conscious हो रहे हैं। आप देखिए, अभी हमने अंतर्राष्ट्रीय योगा दिवस मनाया। कोई कल्पना कर सकता है कि United Nations के इतिहास में सभी 193 countries जिसका समर्थन करें, 193 countries दुनिया की co-sponsor बने, और सौ दिन के भीतर-भीतर UN के अन्दर अंतर्राष्ट्रीय योगा दिवस का निर्णय हो जाए – ये पूरे UN के इतिहास की सबसे बड़ी घटना है। ये क्यों हुआ? इसलिए हुआ कि पूरा विश्व medical science से भी कुछ और मांग रहा है। दवाइयों से गुजारा करने के बजाय वो अच्छे स्वास्थ्य की चिंता करने लगा है। जन-मन बदल रहा है।
Illness को address करने का जमाना चला गया, wellness को address करने का वक्त आ चुका है। हम Illness को address करेंगे कि wellness को address करेंगे? अब हमने एक comprehensive सोच के साथ आगे बढ़ना पड़ेगा, जिसमें सिर्फ illness नहीं wellness के लिए address करें, हम well being के लिए करेंगे। और जब ये फर्क हम समझेंगे तब लोगों में योगा की तरफ आकर्षण क्यों बढ़ा है, उसका हमें परिचय होगा उसका हमें अंदाज आएगा। और उस अर्थ में योगा के द्वारा विश्व preventive healthcare, holistic healthcare, wellness की तरफ जाना – उसकी ओर कदम चल रहा है।
कभी-कभी मुझे लगता है हमारे physiotherapist… मुझे लगता है सफल physiotherapist होने के लिए अच्छे योग टीचर होना बहुत जरूरी है। आपने देखा होगा आपकी physiotherapy और योग की activity – इतनी perfect similarity इसमें है कि अगर जो physiotherapy का courses करते हैं, उसके साथ साथ अगर वो योग expert भी बने जाएं, तो वो शायद best physiotherapist बन सकता है।
कहने का तात्पर्य है कि समाज जीवन में एक बहुत बड़ा बदलाव आ रहा है। वो दवाइयों से मुक्ति चाहता है। वो side effect के चक्कर में पड़ना नहीं चाहता है। वो illness के चक्कर से बच करके wellness की दिशा में जाना चाहता है। और इसलिए हमारे पूरे health sector में इन बातों को ध्यान में रखकर ही अपनी आगे की नीतियां ओर रणनीतियां बनानी पड़ती हैं। मुझे विश्वास है आप जैसे प्रबुद्ध नागरिकों के द्वारा ये संभव होगा।
मैं आशा करता हूं कि आज इस दीक्षांत समारोह से निकलने वाले सभी महानुभाव जिन्होंने gold medal प्राप्त किया है उनको मेरी तरफ से विशेष बधाई देता हूं। कुछ लोग हो सकता है इस सारे प्रक्रिया से रहे गये होंगे। मैं उनको कहता हूं कि निराश होने का कोई कारण नहीं होता है। कभी- कभी विफलता भी सफलता के लिए एक अच्छा शिक्षक बन जाती है। और इसलिए जिन्होंने सोचा होगा कि ये पाना है, ये बनना है, कुछ रह गये होंगे उन्हें निराश होने की आवश्यकता नहीं है उन्हें उसी विश्वास के साथ आगे बढ़ना चाहिए। और जिन्होंने असफलता पाई है, और जीवन की नई ऊंचाईयों को पाने का जिन्हें अवसर मिला है, उन सबको मेरी तरफ से बहुत-बहुत शुभकामनाएं हैं। आप उस पद पर हैं, जहां से आपको सिर्फ patient की नहीं, आने वाले दिनों में विद्यार्थियों को भी तैयार करने का मौका मिले, उस स्थान पर आप प्राप्त हुए हैं। मैं चाहूंगा कि आपके द्वारा एक संवेदनशील डॉक्टर तैयार हो, आपके द्वारा ये पूरा health sector… क्योंकि सामान्य मानवी के लिए भगवान का दृश्य रूप जो है न, वो डॉक्टर होता है, सामान्य मानवी डॉक्टर को भगवान मानता है। क्योंकि उसने भगवान को देखा नहीं लेकिन किसी ने जिंदगी बचा ली तो मानता है कि यही मेरा भगवान है।
आप कल्पना कीजिए कि आप उस क्षेत्र में हैं जहां सामान्य मानवी आपको भगवान के रूप में देखता है और वो ही आपकी प्रेरणा है, वो ही आपके जीवन को दौड़ाने के लिए सबसे बड़ी ऊर्जा है, उस ऊर्जा की ओर ध्यान देकर के हम आगे की ओर बढ़े, ये ही मेरी आप सबको बहुत-बहुत शुभकामना है। बहुत-बहुत धन्यवाद।
I congratulate all those who are beginning a new phase in their lives: PM @narendramodi begins his speech at PGIMER https://t.co/YERqGc2pZJ
— PMO India (@PMOIndia) September 11, 2015
Today is 9/11, a day when so many people lost their lives. But there is another relevance to this day in history: PM @narendramodi
— PMO India (@PMOIndia) September 11, 2015
On this day in 1893 Swami Vivekananda went to USA and addressed the Parliament of World's Relgions in Chicago: PM @narendramodi
— PMO India (@PMOIndia) September 11, 2015
'Sisters and brothers of America' these words of Swami Vivekananda...they were enough to make an impact on the audience: PM @narendramodi
— PMO India (@PMOIndia) September 11, 2015
I am familiar with this institution. I used to stay here in Chandigarh and have visited this campus in the past: PM https://t.co/YERqGc2pZJ
— PMO India (@PMOIndia) September 11, 2015
Children from Government schools are here. Being here will leave a great impact on their minds. It will inspire them: PM @narendramodi
— PMO India (@PMOIndia) September 11, 2015
Today your education is not ending. Nor is your learning ending today through this ceremony: PM @narendramodi https://t.co/YERqGc2pZJ
— PMO India (@PMOIndia) September 11, 2015
Earlier it was about the syllabus but now, more than books you are connected with lives: PM @narendramodi https://t.co/YERqGc2pZJ
— PMO India (@PMOIndia) September 11, 2015
Technology driven medical science in assuming importance: PM @narendramodi https://t.co/YERqGc2pZJ
— PMO India (@PMOIndia) September 11, 2015
We have become what we have due to the contribution of so many people. We have become what we have due to 'Samajh' (society) not Sarkar: PM
— PMO India (@PMOIndia) September 11, 2015
Focus is now on wellness. World is looking at preventive healthcare & this was seen when the world marked Yoga day so enthusiastically: PM
— PMO India (@PMOIndia) September 11, 2015
A wonderful day…interacted with people form Punjab, Haryana, Chandigarh, UP & Uttarakhand. Here are some pictures. pic.twitter.com/GpmOAvc9jL
— NarendraModi(@narendramodi) September 11, 2015
The new civil air terminal will benefit people of Chandigarh & nearby areas. It will enhance connectivity. pic.twitter.com/gYlrBmTRcJ
— NarendraModi(@narendramodi) September 11, 2015
One of the key priorities of our Government is to ensure that the poor have their own homes. http://t.co/M6VbmM3Z7F
— NarendraModi(@narendramodi) September 11, 2015
At PGIMER convocation, was happy that children from government schools joined us. Am sure they'll remember this day. http://t.co/gxaQZwOytQ
— NarendraModi(@narendramodi) September 11, 2015
I spoke about OROP & why the credit for the implementation of OROP must go to the poor of India. http://t.co/axJwKLyfu0
— NarendraModi(@narendramodi) September 11, 2015