मंत्रीपरिषद के मेरे सहयोगी, श्रीमान महेश शर्मा जी, आजाद हिंद फौज के सदस्य और देश के वीर सपूत और हम सबके बीच श्रीमान लालटी राम जी, सुभाष बाबू के भतीजे, भाई चंद्रकुमार बोस जी, ब्रिगेडियर आर.एस.चिकारा जी और यहां उपस्थित सुरक्षा बलों के सेना के सभी पूर्व अफसर, अन्य महानुभाव, भाइयो और बहनों।
आज 21 अक्तूबर का ऐतिहासिक दिन, लाल किले पर ध्वजारोहनका ये अवसर, आप कल्पना कर सकते हैं कि मैं कितना अपने-आपको सौभाग्य मानता हूं? ये वही लाल किला है, जहां पर victory parade का सपना नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने 75 वर्ष पूर्व देखा था। आजाद हिंद सरकार के पहले प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेते हुए नेताजी ने ऐलान किया था कि इसी लाल किले पर एक दिन पूरी शान से तिरंगा लहराया जाएगा।आजाद हिंद सरकार अखंड भारत की सरकार थी, अविभाजित भारत की सरकार थी। मैं देशवासियों को आजाद हिंद सरकार के 75 वर्ष होने पर बहुत-बहुत बधाई देता हूं।
साथियो, अपने लक्ष्य के प्रति जिस व्यक्ति का इतना साफ vision था। लक्ष्य को हासिल करने के लिए जो अपना सब कुछ दांव पर लगाने के लिए निकल गया हो, जो सिर्फ और सिर्फ देश के लिए समर्पित हो; ऐसे व्यक्ति को याद करने भर से ही पीढ़ी दर पीढ़ी प्रेरित हो जाती है। आज मैं नमन करता हूं उन माता-पिता को, जिन्होंने नेताजी जैसा सपूत इस देश को दिया। जिन्होंने राष्ट्र के लिए बलिदान देने वाले वीर-वीरांगनाओं को जन्म दिया। मैं नतमस्तक हूं उन सैनिकों और उनके परिवारों के आगे जिन्होंने स्वतंत्रता की लड़ाई में सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। मैं पूरे विश्व में फैले उन भारतवासियों को भी स्मरण करता हूं जिन्होंने नेताजी के इस मिशन को तन-मन-धन से सहयोग किया था और स्वतंत्र, समृद्ध, सशक्त भारत बनाने में अपना बहुमूल्य योगदान दिया था।
साथियो, आजाद हिंद सरकार, ये आजाद हिंद सरकार, ये सिर्फ नाम नहीं था बल्कि नेताजी के नेतृत्व में इस सरकार द्वारा हर क्षेत्र से जुड़ी योजनाएं बनाई गई थीं। इस सरकार का अपना बैंक था, अपनी मुद्रा थी, अपना डाक टिकट था, अपना गुप्तचर तंत्र था। देश के बाहर रहकर, सीमित संसाधनों के साथ, शक्तिशाली साम्राज्य के खिलाफ इतना व्यापक तंत्र विकसित करना, सशक्त क्रांति, अभूतपूर्व, मैं समझता हूं ये असाधारण कार्य था।
नेताजी ने एक ऐसी सरकार के विरुद्ध लोगों को एकजुट किया, जिसका सूरज कभी अस्त नहीं होता था, दुनिया के एक बड़े हिस्से में जिसका शासन था। अगर नेताजी की खुद की लेखनी पढ़ें तो हमें ज्ञात होता है कि वीरता के शीर्ष पर पहुंचने की नींव कैसे उनके बचपन में ही पड़ गई थी।
वर्ष 1912 के आसपास, आज से 106 साल पहले, उन्होंने अपनी मां को जो चिट्टी लिखी थी, वो एक चिट्ठी इस बात की गवाह है कि सुभाष बाबू के मन में गुलाम भारत की स्थिति को लेकर कितनी वेदना थी, कितनी बेचैनी थी, कितना दर्द था।ध्यान रखिएगा, वो उस समय सिर्फ 15-16 की उम्र के थे।
सैंकड़ों वर्षों की गुलामी ने देश का जो हाल कर दिया था, उसकी पीड़ा उन्होंने अपनी मां से पत्र के द्वारा साझा की थी। उन्होंने अपनी मां से पत्र में सवाल पूछा था कि मां क्या हमारा देश दिनों-दिन और अधिक पतन में गिरता जाएगा? क्या ये दुखिया भारतमाता का कोई एक भी पुत्र ऐसा नहीं है जो पूरी तरह अपने स्वार्थ को तिलांजलि देकर, अपना संपूर्ण जीवन भारत मां की सेवा में समर्पित कर दे? बोलो मां, हम कब तक सोते रहेंगे? 15-16 की उम्र के सुभाष बाबू ने मां को ये सवाल पूछा था।
भाइयो और बहनों, इस पत्र में उन्होंने मां से पूछे गए सवालों का उत्तर भी दे दिया था। उन्होंने अपनी मां को स्पष्ट कर दिया था कि अब, अब और प्रतीक्षा नहीं की जा सकती, अब और सोने का समय नहीं है, हमको अपनी जड़ता से जागना ही होगा, आलस्य त्यागना ही होगा और कर्म में जुट जाना होगा। ये सुभाष बाबू, 15-16 साल के! अपने भीतर की इस तीव्र उत्कंठा ने किशोर सुभाष बाबू को नेताजी सुभाष बना दिया।
नेताजी का एक ही उद्देश्य था, एक ही मिशन था- भारत की आजादी। मां भारत को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराना। यही उनकी विचारधारा थी और यही उनका कर्मक्षेत्र था।
साथियो, सुभाष बाबू को अपने जीवन का लक्ष्य तय करने, अपने अस्तित्व को समर्पित करने का मंत्र स्वामी विवेकानंद और उनकी शिक्षाओं से मिला-
आत्मनोमोक्षार्दम जगत हिताय च– यानि जगत की सेवा से ही मुक्ति का मार्ग खुलता है। उनके चिंतन का मुख्य आधार था- जगत की सेवा। अपने भारत की सेवा के इसी भाव की वजह से वो हर यातना सहते गए, हर चुनौती को पार करते गए, हर साजिश को नाकाम करते गए।
भाइयो और बहनों, सुभाष बाबू उन सेनानियों में रहे, जिन्होंने समय के साथ खुद को बदला और अपने लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए अपने कदम उठाए। यही कारण है कि पहले उन्होंने महात्मा गांधी के साथ कांग्रेस में रहकर देश में ही प्रयास किए और फिर हालात के मुताबिक उन्होंने सशस्त्र क्रांति का रास्ता चुना। इस मार्ग ने स्वतंत्रता आंदोलन को और तेज करने में बड़ी भूमिका निभाई।
साथियों, सुभाष बाबू ने जो विश्वमंथन किया, उसका अमृत सिर्फ भारत ने ही नहीं चखा बल्कि इसका लाभ और भी दूसरे देशों को हुआ। जो देश उस समय अपनी आजादी की लड़ाई लड़ रहे थे, उन्हें सुभाषचंद्र बोस को देख करके प्रेरणा मिलती थी। उन्हें लगता था कि कुछ भी असंभव नहीं है। हम भी संगठित हो सकते हैं, अंग्रेजों को ललकार सकते हैं, आजाद हो सकते हैं। महान स्वतंत्रता सेनानीनेल्सनमंडेला, भारत रत्न नेल्सन मंडेला जी ने भी कहा था कि दक्षिण अफ्रीका के छात्र आंदोलन के दौरान वो भी सुभाष बाबू को अपना नेता मानते थे, अपना हीरो मानते थे।
भाइयो और बहनों, आज हम आजाद हिंद सरकार के 75 वर्ष का समारोह मना रहे हैं तो चार वर्ष बाद 2022 में आजाद भारत के 75 वर्ष पूरे होने वाले हैं। आज से 75 वर्ष पूर्व नेताजी ने शपथ लेते हुए वादा किया था एक ऐसा भारत बनाने का जहां सभी के पास समान अधिकार हो, सभी के पास समान अवसर हो। उन्होंने वादा किया था कि अपनी प्राचीन परम्पराओं से प्रेरणा लेकर उनको और गौरव करने वाले सुखी और समृद्ध भारत का निर्माण करने का। उन्होंने वादा किया था देश के संतुलित विकास का, हर क्षेत्र के विकास का। उन्होंने वादा किया था ‘बांटो और राज करो’ की उस नीति से, उसे जड़ से उखाड़ फेंकने का, जिसकी वजह से भारत को इस ‘बांटो और राज करो’ की राजनीति ने सदियों तक गुलाम रखा था।
आज स्वतंत्रता के इतने वर्ष बाद भी नेताजी का सपना पूरा नहीं हुआ है। भारत अनेक कदम आगे बढ़ा है, लेकिन अभी नई ऊंचाइयों पर पहुंचना बाकी है। इसी लक्ष्य को पाने के लिए आज भारत के सवा सौ करोड़ लोग नए भारत के संकल्प के साथ आगे बढ़ रहे हैं। एक ऐसा नया भारत जिसकी कल्पना नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने भी की थी।
आज एक ऐसे समय में जबकि विध्वंसकारी शक्तियां देश के बाहर और अंदर से हमारी स्वतंत्रता, एकता और संविधान पर प्रहार कर रही हैं, भारत के प्रत्येक निवासी का ये कर्तव्य है कि वे नेताजी से प्रेरित होकर उन शक्तियों से लड़ने, उन्हें परास्त करने और देश के विकास में अपना पूर्ण योगदान करने का भी संकल्प ले।
लेकिन साथियो, इन संकल्पों के साथ ही एक बात और महत्वपूर्ण है- ये बात है राष्ट्रीयता की भावना, भारतीयता की भावना। यहीं लाल किले पर मुकदमे की सुनवाई के दौरान, आजाद हिंद फौज के सेनानी शाहनवाज खान ने कहा था कि सुभाषचंद्र बोस वो पहले व्यक्ति थे जिन्होंने भारत के होने का एहसास उनके मन में जगाया।
वो पहले व्यक्ति थे जिन्होंने भारत को भारतीय की नजर से देखना सिखाया। आखिर वो कौन सी परिस्थितियां थीं, जिसकी वजह से शाहनवाज खान जी ने ऐसी बात कही थी? भारत को भारतीय की नजर से देखना और समझना क्यों आवश्यक था- ये आज जब हम देश की स्थिति देखते हैं तो और स्पष्ट रूप से समझ पाते हैं।
भाइयो और बहनों, कैम्ब्रिज के अपने दिनों को याद करते हुए सुभाष बाबू ने लिखा था कि हम भारतीयों को ये सिखाया जाता है कि यूरोप, Great Britain का ही बड़ा स्वरूप है, इसलिए हमारी आदत यूरोप को इंगलैंड के चश्मे से देखने की हो गई है। ये हमारा दुर्भाग्य रहा कि स्वतंत्रता के बाद भारत और यहां की व्यवस्थाओं का निर्माण करने वालों ने भारत को भी इंगलैंड के चश्मे से ही देखा।
हमारी संस्कृति, हमारी महान भाषाओं, हमारी शिक्षा व्यवस्था, हमारे पाठ्यक्रम, हमारे सिस्टम को इस संक्रमण का बहुत नुकसान उठाना पड़ा। आज मैं निश्चित तौर पर कह सकता हूं कि स्वतंत्र भारत के बाद के दशकों में अगर देश को सुभाष बाबू, सरदार पटेल जैसे व्यक्तित्वों का मार्गदर्शन मिला होता, भारत को देखने के लिए वो विदेशी चश्मा नहीं होता तो स्थितियां बहुत भिन्न होतीं।
साथियों, ये भी दुखद है कि एक परिवार को बड़ा बनाने के लिए देश के अनेक सपूतों- वो चाहे सरदार पटेल हो, बाबा साहेब अम्बेडकर हों, उन्हीं की तरह ही नेताजी के योगदान को भी भुलाने का भरसक प्रयास किया गया है। अब हमारी सरकार स्थिति को बदल रही है। आप सभी को अब तक पता चला होगा, यहां आने से पहले मैं राष्ट्रीय पुलिस स्मारक का समर्पण करने के कार्यक्रम में था। मैंने नेताजी सुभाषचंद्र बोस के नाम पर एक राष्ट्रीय सम्मान शुरू करने की वहां पर घोषणा की है।
हमारे देश में जब nationality calamity होती है, आपदा प्रबंधन और राहत और बचाव के काम में जो जुटते हैं, दूसरों की जान बचाने के लिए अपनी जान की बाजी लगाने वाले ऐसे शूरवीरों को, पुलिस के जवानों को अब हर साल नेताजी के नाम से एक सम्मान दिया जाएगा। देश की शान को बढ़ाने वाले हमारे पुलिस के जवान, पैरामिलिट्री फोर्स के जवान इसके हकदार होंगे।
साथियो, देश का संतुलित विकास समाज के प्रत्येक स्तर पर, प्रत्येक व्यक्ति को राष्ट्र निर्माण का अवसर, राष्ट्र की प्रगति में उसकी भूमिका नेताजी के बृहद विजन का एक अहम हिस्सा है। नेताजी की अगुवाई में बनी आजाद हिंद सरकार ने भी पूर्वी भारत को भारत की आजादी का gateway बनाया था।अप्रैल 1944 में कर्नल शौकम मलिक की अगुवाई में मणिपुर के मोयरांग में आजाद हिंद फौज ने तिरंगा फहराया था।
ये भी हमारा दुर्भाग्य रहा है कि ऐसे शौर्य को आजादी के आंदोलन में उत्तर-पूर्व और पूर्वी भारत के योगदान को उतना स्थान नहीं मिल पाया। विकास की दौड़ में भी देश का ये अहम अंग पीछे रह गया। आज मुझे संतोष होता है कि जिस पूर्वी भारत का महत्व सुभाष बाबू ने समझा, उसे वर्तमान सरकार भी उतना ही महत्व दे रही है, उसी दिशा में ले जा रही है, इस क्षेत्र को देश के विकास का growth engine बनाने के लिए काम कर रही है।
भाइयो और बहनों, मैं खुद को सौभाग्यशाली मानता हूं कि देश के लिए नेताजी ने जो कुछ भी दिया; उसको देश के सामने रखने का, उनके दिखाए रास्तों पर चलने का मुझे बार-बार अवसर मिला है। और इसलिए जब मुझे आज के इस आयोजन में आने का निमंत्रण मिला तो मुझे गुजरात के दिनों में नेताजी सुभाषचंद्र बोस के कार्यों की समृति भी ताजा हो गई।
साथियो, जब मैं गुजरात का मुख्यमंत्री था, तब 2009 में ऐतिहासिक हरीपूरा कांग्रेस, कांग्रेस का अधिवेशन था। हरीपुरा कांग्रेस के अधिवेशन की याद को हमने एक प्रकार से फिर जागृत किया था। उस अधिवेशन में जिस प्रकार सरदार वल्लभ भाई पटेल ने, गुजरात के लोगों ने नेताजी को कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद बैलगाड़ियों में बैठ करके बहुत बड़ा जुलूस निकाला था, वैसा ही, यानी जो एक भव्य आयोजन किया गया था, ठीक वैसा ही दृश्य हमने दोबारा 2009 में, वहीं पर खड़ा कर करके इतिहास को पुनर्जीवित किया था। भले ही वो कांग्रेस का अधिवेशन था, लेकिन वो इतिहास का पृष्ठ था, हमने उसको जी करके दिखाया था।
साथियो, आजादी के लिए जो समर्पित हुए, वो उनका सौभाग्य था। हम जैसे लोग जिन्हें ये अवसर नहीं मिला है, हमारे पास देश के लिए जीने का, विकास के लिए समर्पित होने का, हम सबके लिए रास्ता खुला पड़ा है। लाखों बलिदान देकर हम स्वराज तक पहुंचे हैं। अब हम सभी पर, सवा सौ करोड़ भारतीयों पर इस स्वराज को सुराज के साथ बनाए रखने की चुनौती है। नेताजी ने कहा था- ‘हथियारों की ताकत और खून की कीमत से तुम्हें आजादी प्राप्त करनी है। फिर जब भारत आजाद होगा तो देश के लिए तुम्हें स्थायी सेना बनानी होगी, जिसका काम होगा हमारी आजादी को हमेशा बनाए रखना।‘
आज मैं कह सकता हूं कि भारत एक ऐसी सेना के निर्माण की तरफ बढ़ रहा है जिसका सपना नेताजी सुभाष बोस ने देखा था। जोश, जुनून और जज्बा, ये तो हमारी सैन्य परम्परा का हिस्सारहा ही है, अब तकनीक और आधुनिक हथियारी शक्ति भी उसके साथ जोड़ी जा रही है। हमारी सैन्य ताकत हमेशा से आत्मरक्षा के लिए ही रही है और आगे भी रहेगी। हमें कभी किसी दूसरे की भूमि का लालच नहीं रहा। हमारा सदियों से इतिहास है, लेकिन भारत की संप्रभुता के लिए जो भी चुनौती बनेगा उसको दोगुनी ताकत से जवाब मिलेगा।
साथियो, सेना को सशक्त करने के लिए बीते चार वर्षों में अनेक कदम उठाए गए हैं। दुनिया की best technology को भारतीय सेना का हिस्साबनाया जा रहा है। सेना की क्षमता हो या फिर बहादुर जवानों के जीवन को सुगम और सरल बनाने का काम हो- बड़े और कड़े फैसले लेने का साहस इस सरकार में है और ये आगे भी बरकरार रहेगा।Surgical strike से लेकर नेताजी से जुड़ी फाइलों को सार्वजनिक करने तक का फैसला हमारी ही सरकार ने लिया है। यहां मौजूद अनेक पूर्व सैनिक इस बात के भी साक्षी हैं कि दशकों से चली आ रही One Rank One Pension की मांग को सरकार ने अपने वायदे के मुताबिक पूरा कर दिया है।
इतना ही नहीं, करीब 11,000 करोड़ रुपये का arrear भी पूर्व सैनिकों तक पहुंचाया जा चुका है, जिससे लाखों पूर्व सैनिकों को लाभ मिला है। इसके साथ-साथ सातवें वेतन आयोग की सिफारिश पर जो पेंशन तय की गई है, वो भी OROP (One Rank One Pension) लागू होने के बाद तय पेंशन के आधार पर बढ़ी है। यानि मेरे फौजी भाइयों को पेंशन पर double bonanza मिला है।
ऐसे अनेक प्रयास पूर्व सैनिकों के जीवन को सरल और सुगम बनाने के लिए किए गए हैं। इसके अलावा सैनिकों के शौर्य को भावी पीढ़ियां जान पाएं, इसके लिए National War Museum कार्य भी अब आखिरी चरण पर पहुंच चुका है।
साथियों, कल, यानी 22 अक्तूबर को Rani Jhansi Regiment के भी 75 वर्ष पूरे हो रहे हैं। सशस्त्र सेना में महिलाओं की भी बराबरी की भागीदारी हो, इसकी नींव भी नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने ही रखी थी। देश की पहली सशस्त्र महिला रेजिमेंट भारत की समृद्ध परम्पराओं के प्रति सुभाष बाबू के आगाध विश्वास का परिणाम था। तमाम विरोधों को दरकिनार करते हुए उन्होंने महिला सैनिकों की सलामी ली थी।
मैं गर्व के साथ कह सकता हूं कि नेताजी ने जो काम 75 वर्ष पहले शुरू किया था, उसको सही मायने में आगे बढ़ाने का काम इस सरकार ने किया है। इसी 15 अगस्त को मैंने यहीं लाल किले से एक बड़ा ऐलान किया था- मैंने कहा था कि सशस्त्र सेना में Short Service Commission के माध्यम से नियुक्त महिला अधिकारियों को पुरुष समकक्ष अधिकारियों की तरह ही एक पारदर्शी चयन प्रक्रिया द्वारा स्थाई कमीशन दिया जाएगा।
साथियो, ये सरकार के उन प्रयासों का विस्तार है जो बीते चार वर्षों से उठाए गए हैं। मार्च, 2016 में नेवी में महिलाओं को पायलटकरने का फैसला लिया गया था। कुछ दिन पहले ही नौसेना की 6 जांबाज महिला अधिकारियों ने समंदर को जीतकर विश्व को भारत की नारी-शक्ति का परिचय करवाया है। इसके अलावा देश को पहली महिला फाइटर पायलट देने का काम भी इसी सरकार के दौरान हुआ है।
मुझे इस बात का भी संतोष है कि आजाद भारत में पहली बार भारत की सशस्त्र सेनाओं को सशक्त करने, देखरेख करने का जिम्मा भी देश की पहली देश की पहली रक्षामंत्री सीतारमण जी के हाथ में है।
साथियो, आज आप सभी के सहयोग से, सशस्त्र बलों के कौशल और समर्पण से देश पूरी तरह से सुरक्षित है, समर्थ है और विकास के पथ पर सही दिशा में तेज गति से लक्ष्य को पाने के लिए दौड़ रहा है।
एक बार फिर, आप सभी को, देशवासियों को, इस महत्वपूर्ण अवसर पर हृदयपूर्वक बहुत-बहुत बधाई देता हूं। एकता, अखंडता और आत्मविश्वास की हमारी ये यात्रा नेताजी सुभाषचंद्र बोस जी के आशीर्वाद से निरंतर आगे बढ़े।
इसी के साथ मेरे साथ सब बोलेंगे-
भारत माता की – जय
भारत माता की – जय
भारत माता की – जय
वंदे – मातरम
वंदे – मातरम
वंदे – मातरम
बहुत-बहुत धन्यवाद
Members of the Azad Hind Fauj fought valiantly for India’s freedom.
— Narendra Modi (@narendramodi) October 21, 2018
We will always be grateful to them for their courage.
Today, I had the honour of meeting Lalti Ram Ji, an INA veteran. It was wonderful spending time with him. pic.twitter.com/5vjuFTf3BV
It was a privilege to hoist the Tricolour at the Red Fort, marking 75 years of the establishment of the Azad Hind Government.
— Narendra Modi (@narendramodi) October 21, 2018
We all remember the courage and determination of Netaji Subhas Bose. pic.twitter.com/m9SuBTxhPQ
By setting up the Azad Hind Fauj and the Azad Hind Government, Netaji Subhas Bose showed his deep commitment towards a free India.
— Narendra Modi (@narendramodi) October 21, 2018
This spirit of nationalism was a part of him from his young days, as shown in a letter he wrote to his mother. pic.twitter.com/21SxPLW0Rk
All over the world, people took inspiration from Netaji Subhas Bose in their fights against colonialism and inequality.
— Narendra Modi (@narendramodi) October 21, 2018
We remain committed to fulfilling Netaji's ideals and building an India he would be proud of. pic.twitter.com/axeQPnPHGN
Subhas Babu always took pride in India's history and our rich values.
— Narendra Modi (@narendramodi) October 21, 2018
He taught us that not everything must be seen from a non-Indian prism. pic.twitter.com/9qKPTILBWt
It is unfair that in the glorification of one family, the contribution of several other greats was deliberately forgotten.
— Narendra Modi (@narendramodi) October 21, 2018
It is high time more Indians know about the historic role of stalwarts Sardar Patel, Dr. Babasaheb Ambedkar and Netaji Subhas Bose. pic.twitter.com/t7G34trODe
It is our Government's honour that we have taken several steps for the welfare of our armed forces, including for women serving in the forces. pic.twitter.com/Lgd6wARIW2
— Narendra Modi (@narendramodi) October 21, 2018