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PM’s address at 200th year celebrations of Shree Swaminarayan Mandir

PM’s address at 200th year celebrations of Shree Swaminarayan Mandir


जय स्वामीनारायण!

भगवान श्री स्वामीनारायण के चरणों में प्रणाम करता हूं। भगवान श्री स्वामीनारायण की कृपा से वडताल धाम में द्विशताब्दी समारोह का भव्य आयोजन चल रहा है। वहां देश-विदेश से सभी हरि भक्त आए हुए हैं और स्वामीनारायण की तो परंपरा रही है सेवा के बिना उनका कोई काम आगे नहीं होता है। आज लोग भी बढ़-चढ़कर के सेवा कार्यों में अपना योगदान दे रहे हैं। मैंने पिछले कुछ दिनों में टीवी पर इस समारोह की जो तस्वीरें देखीं, मीडिया में, सोशल मीडिया में जो वीडियो देखे, वो देखकर मेरा आनंद अनेक गुना बढ़ गया।

साथियों,

वडताल धाम की स्थापना के 200 वर्ष ये द्विशताब्दी समारोह, ये केवल एक आयोजन या इतिहास की तारीख नहीं है। ये मेरे जैसे हर व्यक्ति के लिए, जो वडताल धाम में अनन्‍य आस्था के साथ बड़ा हुआ है, उसके लिए बहुत बड़ा अवसर है। मैं मानता हूं, हमारे लिए ये अवसर भारतीय संस्कृति के शाश्वत प्रवाह का प्रमाण है। 200 साल पहले, जिस वडताल धाम की स्थापना भगवान श्री स्वामीनारायण ने की थी, हमने आज भी उसकी आध्यात्मिक चेतना को जागृत रखा है। हम आज भी यहां भगवान श्री स्वामीनारायण की शिक्षाओं को, उनकी ऊर्जा को अनुभव कर सकते हैं। मैं सभी संतों के चरणों में प्रणाम करते हुए आप सभी और सभी देशवासियों को द्विशताब्दी समारोह की बधाई देता हूं। मुझे खुशी है कि भारत सरकार ने इस मौके पर 200 रुपये का चांदी का एक सिक्का और स्मारक डाक टिकट भी जारी किया है। ये प्रतीक चिन्ह आने वाली पीढ़ियों के मन में इस महान अवसर की स्मृतियों को जीवंत करते रहेंगे।

साथियों,

भगवान स्वामीनारायण से जुड़ा हर व्यक्ति जानता है कि इस परंपरा से मेरा संबंध कितना गहरा है। हमारे राकेश जी बैठे हैं वहां, उनसे मेरा नाता कैसा है, कितना पुराना है, वो कभी आपको बताएंगे। ये रिश्ता आत्मिक भी है, आध्यात्मिक भी है और सामाजिक भी है। जब मैं गुजरात में था तब संतों का सानिध्य और सत्संग मेरे लिए सहज उपलब्ध रहता था। वो मेरे लिए एक सौभाग्य की पल होते थे और मैं भी उस पल को जी भर के जीता था। स्वामीनारायण भगवान की कृपा से आज भी किसी न किसी के रूप में प्रत्यक्ष नहीं तो परोक्ष रूप से वो क्रम तो चलता ही रहता है। कई अवसरों पर मुझे संतों का आशीर्वाद का सौभाग्य मिलता रहा है। राष्ट्रीय के लिए सार्थक चिंतन का अवसर मिलता रहा है। मेरी इच्छा थी कि मैं आज स्वयं वडताल धाम इस पवित्र उत्सव में उपस्थित होता। मेरी इच्छा तो बहुत थी की आपके बीच बैठूं और काफी पुरानी बातें याद करुं और स्वाभाविक है की आपको भी अच्छा लगे और मुझे भी अच्छा लगे। लेकिन जिम्मेदारियां और व्यस्तता के चलते ये संभव नहीं हो सका। लेकिन मैं हृदय से आप सबके बीच ही हूं। मेरा मन अभी पूरी तरह से वडताल धाम में ही है।

साथियों,

श्रद्धेय संतगण, हमारे भारत की ये विशेषता रही है कि यहां जब-जब भी मुश्किल समय आया है, कोई न कोई ऋषि, महर्षि, संत, महात्मा उसी काल में अवतरित हुआ है। भगवान स्वामीनारायण का आगमन भी एक ऐसे समय में हुआ था जब देश सैकड़ों वर्ष की गुलामी के बाद कमजोर हो चुका था। अपने आप में विश्वास खो चुका था। खुद को ही कोसने में डूबा हुआ था। तब भगवान स्वामीनारायण ने हमें उस कालखंड के सभी संतो ने हमें नई आध्यात्मिक ऊर्जा तो दी है। उन्होंने हमारे स्वाभिमान को जगाया हमारी पहचान को पुनर्जीवित किया। इस दिशा में शिक्षापत्री और वचनामृत का योगदान बहुत बड़ा है। उनकी शिक्षा को आत्मसात करना, उसे आगे बढ़ाना, यह हम सब का कर्तव्य है।

मुझे खुशी है कि वड़ताल धाम आज इसी प्रेरणा से मानवता की सेवा और युग निर्माण का बहुत बड़ा अधिष्ठान बन चुका है। इसी वड़ताल धाम ने हमें वंचित समाज से सगराम जी जैसे भक्त दिए हैं। आज यहां कितने ही बच्चों के भोजन का, आवास का, शिक्षा का और इतना ही नहीं दूर-सुदूर जंगलों में भी सेवा के कई प्रकल्प आप सबके माध्यम से चल रहे हैं। आदिवासी क्षेत्रों में बेटियों की शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण अभियान आप लोग चला रहे हैं। गरीबों की सेवा, नई पीढ़ी का निर्माण, आधुनिकता और अध्यात्म को जोड़कर भारत की संस्कृति का संरक्षण, आज बेहतर भविष्य के लिए जो अभियान चल रहा है, स्वच्छता से लेकर पर्यावरण तक मैंने जितने भी आह्वान किये हैं, मुझे खुशी है कि आप सब संतो ने, भक्तों ने मुझे कभी निराश नहीं किया। मेरी हर बात को आप ने अपनी खुद की बात मान लिया। अपनी स्वयं की जिम्मेदारी मान लिया और आप जी जान से उसको पूरा करने में लगे रहे।

मुझे बताया गया है, जो मैंने पिछले दिनों एक आह्वान किया था। एक पेड़ मां के नाम… अपनी खुद की माँ के नाम एक पेड़ रोपे – एक पेड माँ के नाम… इस अभियान में स्वामीनारायण परिवार ने एक लाख से ज्यादा वृक्षारोपण किया है।

साथियों,

हर व्यक्ति के जीवन का एक उद्देश्य होता है, लाइफ का कोई परपज होता है। यह उद्देश्य ही हमारे जीवन को निर्धारित करता है। हमारे मन, कर्म, वचन को प्रभावित करता है। जब हमें हमारे जीवन का उद्देश्य मिल जाता है, तब पूरा जीवन बदल जाता है। हमारे संत-महात्माओं ने हर युग में मानव को उसके जीवन के उद्देश्यों से साक्षात्कार कराया है। यह संत महात्माओं का हमारे समाज को बहुत बड़ा योगदान रहा है। जब किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए पूरा समाज, पूरा देश एकजुट हो जाता है, तो वह जरूर पूरा होता है और पहले कई उदाहरण हैं। हमने यह करके दिखाया है। हमारे संतो ने करके दिखाया है। हमारे समाज ने करके दिखाया है। हमारे धार्मिक संस्थानों ने करके दिखाया है।

आज हमारे युवाओं के सामने एक बहुत बड़ा उद्देश्य उभर कर आया है। पूरा देश एक निश्चित लक्ष्य को लेकर आगे बढ़ रहा है। यह लक्ष्य है- विकसित भारत का… वड़ताल के और समस्त स्वामीनारायण परिवार के संत-महात्माओं से मेरा आग्रह है कि वो विकसित भारत के इस पवित्र उद्देश्य, महान उद्देश्य, उसके साथ जन-जन को जोड़ें, जैसे आजादी के आंदोलन में एक शताब्दी तक समाज के भिन्‍न-भिन्‍न कोने से आजादी की ललक, आजादी की चिंगारी देशवासियों को प्रेरित करती रही। एक भी दिन, एक भी पल ऐसा नहीं गया कि जब लोगों ने आजादी के इरादों को छोड़ा, सपनों को छोड़ा, संकल्पों को छोड़ा, ऐसा कभी नहीं हुआ। जैसी ललक आजादी के आंदोलन में थी, वैसी ही ललक, वैसी ही चेतना, विकसित भारत के लिए 140 करोड़ देशवासियों में हर पल होना जरूरी है।

आप सब और हम सब मिलकर लोगों को प्रेरित करें कि आने वाले 25 साल तक हम सबको और विशेष करके हमारे नौजवान साथियों को विकसित भारत के उद्देश्य को जीना है। पल-पल जीना है। हर पल उसके लिए अपने आप को जोड़ के रखना है। इसके लिए जो जहां है, वहीं से अपना योगदान देना शुरू कर दे। जब वो विकसित भारत के लिए योगदान देगा। वो जहां होगा वहीं से उसका लाभ मिलेगा ही। अब जैसे हम लगातार कहते हैं कि विकसित भारत बनने की पहली शर्त है हमें आत्मनिर्भर भारत बनाना। अब आत्मनिर्भर भारत बनाने के लिए कोई बाहर वाला काम नहीं आएगा, हमें ही करना पड़ेगा। 140 करोड़ देशवासियों को ही करना पड़ेगा। यहां बैठे हुए सब हरि भक्तों को ही करना पड़ेगा और इसकी शुरुआत कहां से करेंगे, शुरुआत होती है वोकल फॉर लोकल, वोकल फॉर लोकल को बढ़ावा दिया जा सकता है।विकसित भारत के लिए हमारी एकता, देश की अखंडता वो भी बहुत जरूरी है। आज इस दुर्भाग्य से निहित स्वार्थ के लिए छोटी समझ के कारण भारत के उज्जवल भविष्य के महत्वाकांक्षी उद्देश्यों को भूल करके कुछ लोग समाज को जाति में, धर्म में, भाषा में, उच्च और नीच में, स्त्री और पुरुष में, गांव और शहर में, न जाने किस प्रकार से टुकड़े-टुकड़े-टुकड़े में बांटने की साजिश चल रही है। जरूरी है कि देश विरोधियों की इस चेष्टा को, हम इसकी गंभीरता को समझें। उस संकट को समझें और हमें सबने मिलकर के ऐसे कारनामों को पराजित करना ही होगा। हमें मिलकर के नाकाम करना होगा।

साथियों,

भगवान श्री स्वामीनारायण में बताया है कि बड़े लक्ष्य कठोर तप से हासिल होते हैं। उन्होंने हमें बताया राष्ट्र को निर्णायक दिशा दिखाने की क्षमता युवा मन में होती है। उन्होंने हमें सिखाया कि युवा राष्ट्र का निर्माण कर सकते हैं और करेंगे। इसके लिए हमें सक्षक्त, समर्थ और शिक्षित युवाओं का निर्माण करना होगा। विकसित भारत के लिए हमारे युवा सशक्त होने चाहिए। Skilled युवा हमारी सबसे बड़ी ताकत बनेंगे। हमारे युवाओं की ग्लोबल डिमांड और बढ़ने वाली है। आज मैं विश्व के जिन-जिन नेताओं से मिलता हूं, ज्यादातर नेताओं की अपेक्षा रहती है कि भारत के युवा, भारत का Skilled Manpower, भारत के आईटी सेक्टर के नौजवान उनके देश जाएं, उनके देश में काम करें। पूरा विश्व भारत के युवाओं के सामर्थ्य से आकर्षित है। ये युवा देश ही नहीं बल्कि विश्व की जरूरतें भी पूरी करने के लिए तैयार होंगे। इस दिशा में भी हमारे प्रयास राष्ट्र निर्माण में बहुत सहायक होंगे। मैं एक और आग्रह भी आपसे करना चाहता हूं। स्वामीनारायण संप्रदाय हमेशा नशा मुक्ति पर बहुत काम करता रहा है। युवाओं को नशे से दूर रखना, उन्हें नशा मुक्त बनाने में हमारे संत, महात्मा, हरि भक्त बहुत बड़ा योगदान कर सकते हैं। युवाओं को नशे से बचाने के लिए ऐसे अभियान और ऐसे प्रयास हमेशा जरूरी होते हैं, हर समाज में जरूरी होते हैं। देश के हर कोने में जरूरी होते हैं और ये हमें निरंतर करना होगा।

साथियों,

कोई भी देश अपनी विरासत पर गर्व करते हुए, उसका संरक्षण करते हुए ही आगे बढ़ सकते हैं और इसलिए हमारा तो मंत्र है विकास भी, विरासत भी । हमें खुशी है कि आज हमारी विरासत के हजारों साल पुराने केंद्रों का गौरव लौट रहा है, जिसे नष्ट मान लिया गया था वो फिर से प्रकट हो रहा है। अब अयोध्या का उदाहरण सबके सामने है। 500 साल के बाद एक सपना पूरा होना मतलब 500 साल तक कितनी ही पीढ़ियों ने उस सपने को जीया है। उस सपने के लिए जूझते रहे हैं, जरूरत पड़ी बलिदान देते रहे हैं, तब जा के हुआ है। आज काशी का और केदार का जो कायाकल्प हुआ है, ये उदाहरण हमारे सामने हैं। हमारे पावागढ़ में 500 साल बाद धर्म-ध्वजा फहरी, 500 साल बाद… हमारा मोढेरा का सूर्य मंदिर देख लीजिए, आज हमारा सोमनाथ है, देख लीजिए। चारों तरफ, एक नई चेतना, नई क्रांति के दर्शन हो रहे हैं।

इतना ही नहीं हमारे देश से चोरी हुई सैकड़ों साल पुरानी मूर्तियां, कोई पूछने वाला नहीं था, आज ढूंढ-ढूंढ कर के दुनिया से हमारे जो मूर्तियां चोरी गई, हमारे देवी-देवताओं के रूपों को चोरी कर लिया गया था। वो वापस आ रही हैं, हमारे मंदिरों में लौट रही हैं। और हम गुजरात के लोग तो धोलावीरा को लेकर के कितना गर्व करते हैं। लोथल को लेकर के कितना गौरव करते हैं कि ये हमारे प्राचीन गौरव की विरासत है। अब उसको भी पुनः स्थापित करने का काम हो रहा है और भारत की सांस्कृतिक चेतना का ये अभियान, ये केवल सरकार का अभियान नहीं है। इसमें इस धरती को, इस देश को प्यार करने वाले, यहां की परंपरा को प्यार करने वाले, यहां की संस्कृति का गौरव करने वाले, हमारे विरासत के गुणगान करने वाले, हम सबका दायित्व है। हम सब की बहुत बड़ी भूमिका है और आप तो बहुत बड़ी प्रेरणा दे सकते हैं।वड़ताल धाम में भगवान स्वामीनारायण की अधिक वस्तुओं का म्यूजियम अक्षर भुवन, यह भी इसी अभियान का एक हिस्सा है और मैं इसके लिए आप सबको बहुत बधाई देता हूं क्योंकि म्यूजियम नई पीढ़ी के लोगों को बहुत ही कम समय में परिचित करवाता है। मुझे विश्वास है अक्षर भुवन भारत के अमर आध्यात्मिक विरासत का एक भव्य मंदिर बनेगा।

साथियों,

मैं मानता हूं कि इन प्रयासों से ही विकसित भारत का उद्देश्य पूरा होगा। जब 140 करोड़ भारतीय एक समान उद्देश्य को पूरा करने के लिए जुड़ जाएंगे, तो इसे आसानी से हासिल कर सकेंगे। इस यात्रा को पूरा करने में हमारे संतों का मार्गदर्शन बहुत महत्वपूर्ण है और जब इतनी बड़ी मात्रा में हजारों संत यहां बैठे हैं, देश-विदेश से आए हुए हरि भक्त यहां बैठे हुए हैं और जब मैं अपने ही घर में एक प्रकार का जब बातें कर रहा हूं तो मैं एक और काम के लिए भी आपको जोड़ना चाहता हूं। इस बार प्रयागराज में पूर्ण कुंभ हो रहा है। 12 साल के बाद एक पूर्ण कुंभ आता है। हमारे भारत के महान विरासत है। अब तो विश्व ने भी इस विरासत को स्वीकार किया हुआ है। 13 जनवरी से करीब 45 दिन तक 40-50 करोड़ इस कुंभ मेले में आते हैं। मैं आपसे आग्रह करता हूं क्या आप यह काम कर सकते हैं? विश्व भर में आपका काम है। विश्व के अनेक देशों में आपके मंदिर है। क्या आप तय कर सकते हैं कि इस बार यह कुंभ का मेला क्या होता है, क्यों होता है। इसके पीछे क्या सामाजिक सोच रही हुई है। वहां लोगों को शिक्षित करें और जो भारतीय मूल के नहीं है, विदेशी लोग हैं, उनको समझाएं यह क्या है और कोशिश करें कि विदेश में आपकी एक-एक शाखा कम से कम 100 विदेशी लोगों को बड़ी श्रद्धा पूर्वक यह प्रयागराज का कुंभ मेला के दर्शन करने के लिए ले आइए। पूरे विश्व में एक चेतना पाटने का काम होगा और ये आप आसानी से कर सकते हैं।

मैं फिर एक बार वहां खुद नहीं आ पाया हूं इसके लिए क्षमा मांगते हुए, आपने video conferencing से भी आप सब के दर्शन मुझे दिए। मुझे सब संतो के दर्शन करने का मौका मिला। सारे परिचित चेहरे मेरे सामने हैं। मेरे लिए बहुत खुशी की पल है कि आज मैं दूर से ही आप सब के दर्शन कर पा रहा हूं। ये द्विशताब्दी समारोह के लिए मेरी तरफ से आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएं हैं।

बहुत-बहुत बधाई! आप सबका धन्यवाद!

जय स्वामीनारायण।