प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने देश में महिलाओं के कल्याण के लिए एक ऐतिहासिक विधेयक ‘सहायक प्रजनन तकनीक नियमन विधेयक 2020’ को मंजूरी दे दी है। संसद में ‘सरोगेसी नियमन विधेयक 2020’ को पेश करने और ‘चिकित्सा गर्भपात संशोधन विधेयक 2020’ को मंजूरी देने के बाद यह अहम कदम उठाया गया है। ये विधायी उपाय महिलाओं के प्रजनन अधिकारों के संरक्षण के लिए ऐतिहासिक कदम हैं।
संसद में पारित हो जाने एवं इस विधेयक के कानून का रूप लेने के बाद केन्द्र सरकार इस अधिनियम पर अमल की तिथि को अधिसूचित करेगी। इसके बाद राष्ट्रीय बोर्ड का गठन किया जाएगा।
राष्ट्रीय बोर्ड भौतिक अवसंरचना, प्रयोगशाला एवं नैदानिक उपकरणों तथा क्लिनिकों एवं बैंकों में रखे जाने वाले विशेषज्ञों के लिए न्यूनतम मानक तय करने के लिए आचार संहिता निर्धारित करेगा, जिसका पालन क्लिनिक में काम करने वाले लोगों को करना होगा। केन्द्र सरकार द्वारा अधिसूचना जारी करने के तीन महीनों के भीतर राज्य एवं केन्द्र शासित प्रदेश इसके लिए राज्य बोर्डों और राज्य प्राधिकरणों का गठन करेंगे।
राज्य बोर्ड पर संबंधित राज्य में क्लिनिकों एवं बैंकों के लिए राष्ट्रीय बोर्ड द्वारा निर्धारित नीतियों एवं योजनाओं को लागू करने की जिम्मेदारी होगी।
विधेयक में केन्द्रीय डेटाबेस के रख-रखाव तथा राष्ट्रीय बोर्ड के कामकाज में उसकी सहायता के लिए राष्ट्रीय रजिस्ट्री एवं पंजीकरण प्राधिकरण का भी प्रावधान किया गया है। विधेयक में उन लोगों के लिए कठोर दंड का भी प्रस्ताव किया गया है, जो लिंग जांच, मानव भ्रूण अथवा जननकोष की बिक्री का काम करते हैं और इस तरह के गैर-कानूनी कार्यों के लिए एजेंसियां/गोरखधंधा/संगठन चलाते हैं।
लाभ
इस कानून का सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि यह देश में सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी सेवाओं का नियमन करेगा। अत: यह कानून बांझ दम्पत्तियों में सहायक प्रजनन तकनीक (एआरटी) के तहत नैतिक तौर-तरीकों को अपनाए जाने के संबंध में कहीं अधिक भरोसा पैदा करेगा।
पृष्ठभूमि
‘सहायक प्रजनन तकनीक नियमन विधेयक 2020’ महिलाओं के प्रजनन अधिकारों की रक्षा एवं संरक्षण के लिए केन्द्रीय मंत्रिमंडल द्वारा मंजूर किए गए अनेक कानूनों की श्रृंखला में नवीनतम कदम है। देश में सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी सेवाओं में सुरक्षित एवं नैतिक तौर-तरीकों को अपनाने के लिए अनेक प्रावधान किए गए हैं। इस विधेयक के जरिए राष्ट्रीय बोर्ड, राज्य बोर्ड, नेशनल रजिस्ट्री और राज्य पंजीकरण प्राधिकरण सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी से जुड़े क्लिनिकों और सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी बैंकों का नियमन एवं निगरानी करेंगे।
पिछले कुछ वर्षों के दौरान सहायक प्रजनन तकनीक (एआरटी) का चलन काफी तेजी से बढ़ा है। एआरटी केन्द्रों और हर साल होने वाले एआरटी चक्रों की संख्या में सर्वाधिक वृद्धि दर्ज करने वाले देशों में भारत भी शामिल है। वैसे तो इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) सहित सहायक प्रजनन तकनीक ने बांझपन के शिकार तमाम लोगों में नई उम्मीदें जगा दी हैं, लेकिन इससे जुड़े कई कानूनी, नैतिक और सामाजिक मुद्दे भी सामने आए हैं। इस वैश्विक प्रजनन उद्योग के प्रमुख केन्द्रों में अब भारत भी शामिल हो गया है। यही नहीं, प्रजनन चिकित्सा पर्यटन का भी चलन तेजी से बढ़ता जा रहा है। भारत में इससे संबंधित क्लिनिक अब जननकोश दान करना, अंतर्गर्भाशयी गर्भाधान (आईयूआई), आईवीएफ, आईसीएसआई, पीजीडी और गर्भकालीन सरोगेसी जैसी लगभग सभी तरह की एआरटी सेवाएं मुहैया करा रहे हैं। हालांकि, भारत में इस तरह की अनेक सेवाएं मुहैया कराने के बावजूद संबंधित प्रोटोकॉल का अब तक कोई मानकीकरण नहीं हो पाया है और इस बारे में सूचनाएं देने का चलन अब भी काफी हद तक अपर्याप्त है।
सहायक प्रजनन तकनीक सेवाओं के नियमन का मुख्य उद्देश्य संबंधित महिलाओं एवं बच्चों को शोषण से संरक्षण प्रदान करना है। डिम्बाणुजन कोशिका दाता को बीमा कवर मुहैया कराने एवं कई भ्रूण आरोपण से संरक्षण प्रदान करने की जरूरत है और इसके साथ ही सहायक प्रजनन तकनीक से जन्म लेने वाले बच्चों को किसी जैविक बच्चे की भांति ही समान अधिकार देने की आवश्यकता है। एआरटी बैंकों द्वारा किये जाने वाले शुक्राणु, डिम्बाणुजन कोशिका और भ्रूण के निम्नताप परिरक्षण का नियमन करने की जरूरत है और इस विधेयक का उद्देश्य सहायक प्रजनन तकनीक के जरिए जन्म लेने वाले बच्चे के हित में आनुवांशिक पूर्व आरोपण परीक्षण को अनिवार्य बनाना है।
सरोगेसी नियमन विधेयक 2020
सरोगेसी (नियमन) विधेयक 2020 में केन्द्रीय स्तर पर राष्ट्रीय बोर्ड और राज्यों एवं केन्द्र शासित प्रदेशों में राज्य बोर्डों तथा उपयुक्त प्राधिकरणों के गठन के जरिए भारत में सरोगेसी का नियमन करने का प्रस्ताव किया गया है। इस विधेयक पर प्रवर समिति ने गौर कर लिया है तथा संबंधित रिपोर्ट 5 फरवरी, 2020 को राज्यसभा में पेश कर दी गई है।
इस अधिनियम का मुख्य लाभ यह होगा कि यह देश में सरोगेसी सेवाओं का नियमन करेगा। वैसे तो मानव भ्रूण एवं जननकोश की खरीद-बिक्री सहित वाणिज्यिक सरोगेसी को प्रतिबंधित किया जाएगा, लेकिन भारतीय विवाहित जोड़ों, भारतीय मूल के विवाहित जोड़ों और भारतीय अविवाहित महिला यानी सिंगल वुमन (केवल विधवा अथवा तलाकशुदा) को नैतिक सरोगेसी की अनुमति निर्दिष्ट शर्तों को पूरा करने पर ही दी जाएगी। इस प्रकार यह अनैतिक तौर-तरीकों को नियंत्रित करेगा, सरोगेसी के वाणिज्यीकरण की रोकथाम करेगा और सरोगेट माताओं तथा सरोगेसी के जरिए जन्म लेने वाले बच्चों के संभावित शोषण को रोकेगा।
चिकित्सा गर्भपात संशोधन विधेयक 2020
चिकित्सा गर्भपात अधिनियम, 1971 (1971 का 34) को कानून का रूप इसलिए दिया गया, ताकि पंजीकृत डॉक्टरों द्वारा निर्दिष्ट गर्भपात किये जाने का मार्ग प्रशस्त किया जा सके। इसके तहत संबंधित मुद्दों और घटनाओं को भी ध्यान में रखा गया। इस अधिनियम में उन महिलाओं के लिए सुरक्षित, किफायती एवं सुगम्य गर्भपात सेवाओं को मान्यता दी गई, जिन्हें निर्दिष्ट स्थितियों में गर्भपात कराने की जरूरत पड़ती है। इसके अलावा कई रिट याचिकाएं उच्चतम न्यायालय और विभिन्न उच्च न्यायालयों में दाखिल की गई हैं, जिनमें महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा के कारण भ्रूण में असामान्यता या गर्भधारण के आधार पर वर्तमान स्वीकार्य सीमा के बाद भी गर्भावधि में गर्भपात की अनुमति देने की मांग की गई है।
कुल मिलाकर, इन तीनों प्रस्तावित कानूनों ने बदलते सामाजिक संदर्भों और तकनीक की दिशा में हुई प्रगति से जुड़े मुद्दों को सुलझाते हुए महिलाओं के प्रजनन अधिकारों के संरक्षण का माहौल बनाया है।