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ब्लूमबर्ग इंडिया इकोनॉमिक फोरम-2016 में प्रधानमंत्री के संबोधन का पाठ

ब्लूमबर्ग इंडिया इकोनॉमिक फोरम-2016 में प्रधानमंत्री के संबोधन का पाठ


श्री मिक्लेथवेट,

विशिष्ट अतिथियों,

देवियो और सज्जनो

मैं भारत में ब्लूमबर्ग की उपस्थिति के बीस वर्ष होने के अवसर पर यहां आकर बड़ा प्रसन्न हूं। इस अवधि के दौरान, ब्लूमबर्ग ने बुद्धिमान व्याख्या और भारत की अर्थव्यवस्था के समग्र विश्लेषण को उपलब्ध कराया है। यह अब वित्त परिदृश्य का एक अनिवार्य हिस्सा बन गया है।

इसके अलावा हमारे स्मार्ट सिटी कार्यक्रम को डिजाइन करने में श्री माइकल ब्लूमबर्ग से हमें जो मूल्यवान सलाह मिली है मैं उसके लिए आभारी हूं। विश्व के महान शहरों में से एक के मेयर के रूप में, श्री ब्लूमबर्ग ने शहर का निर्माण करने वाले व्यक्तिगत परिज्ञान का परिचय दिया है। उनके विचारों ने हमारे स्मार्ट सिटी कार्यक्रम के डिजाइन को समृद्ध किया है। इस कार्यक्रम के तहत हम सौ शहरों का निर्माण करने की उम्मीद करते हैं जो पूरे देश में शहरी विकास के रोल मॉडल बन जाएंगे।

आज विश्व भारत से वैश्विक विकास में योगदान देने की उम्मीद करता है। मैं इसके लिए आपके सामने अपने विचार रखना चाहूंगा कि कैसे भारत इन चुनौतियों का समाना करने का इरादा रखता है।

मैं तीन प्रमुख क्षेत्रों का जिक्र करना चाहूंगा। सबसे पहले, मैं भारत के आर्थिक विकास की चर्चा करूंगा। मैं कुछ प्रशासनिक और नीतिगत सुधारों के बारे में बताउंगा कि जिन्होंने उस विकास का सृजन किया है और इसे सतत बनाए रखेंगे। मैं आर्थिक विकास के एक पहलू का खुलासा करूंगा जो रोजगारों के सृजन करने में मेरे लिए विशेष महत्व रखता है।

विशेषज्ञ इस बारे में एकमत हैं कि भारत विश्व की अर्थव्यवस्था के सबसे प्रतिभाशाली स्थलों में से एक है। हमारे यहां कम मुद्रास्फीति है, चालू खाता घाटे भुगतान का कम संतुलन है और विकास की एक उच्च दर है। यह अच्छी नीति का परिणाम है, अच्छे भाग्य का नहीं।

• 2008 और 2009 के बीच कच्चे तेल की कीमतों में भारी गिरावट आयी और कीमतें 147 डॉलर प्रति बैरल के उच्च स्तर से गिरकर 50 डॉलर प्रति बैरल से भी कम हो गई थीं। यह वर्ष 2014 और 2015 के मुकाबले बहुत अधिक गिरावट थी। फिर भी इनसे वर्ष 2009-10 में भारत का राजकोषीय घाटा, इसका चालू खाता घाटा और मुद्रास्फीति की दर पर बुरा प्रभाव पड़ा। लेकिन 2015-16 में इन तीनों में ही कम आधार से सुधार हुआ।

• अन्य कई उभरती अर्थव्यवस्थाएं भी आयातित तेल पर निर्भर हैं। अगर तेल की कीमतें ही सफलता की वाहक हैं तो वे अन्य देश भी इसी तरह के परिणाम दर्शाएंगे। लेकिन वे ऐसा नहीं कर रहे हैं।

• हम वैश्विक व्यापार और विकास के मामले में भाग्यशाली नहीं रहे हैं। दोनों ही कम हैं और निर्यात को प्रोत्साहित करने में हमारे मददगार नहीं रहे हैं।

• हम मौसम और मॉनसून के मामले में भाग्यशाली नहीं रहे हैं। वर्ष 2015 और 2014 दोनों ही सूखाग्रस्त वर्ष रहे हैं। बिन मौसम तूफानों ने सूखे की समस्या को और बढ़ा दिया है। बावजूद इसके अनाज का उत्पादन अच्छा रहा है, और सूखे वाले साल 2009-10 की तुलना में मंहगाई कम रही है।

वैश्विक विकास की सूचियों में भारत का अव्वल रहना एक असाधारण स्थिति है। स्पष्टतः कुछ लोगों के लिए यह पचाना मुश्किल है और वे इस उपलब्धि को कम करने के लिए कल्पित एवं अलबेले विचार सामने लेकर आते हैं। वास्तविकता यह है कि भारत की आर्थिक सफलता बुद्धिमानी, दृढ़ नीति और प्रभावी प्रबंधन के ज़रिए परिश्रम से उपार्जित है। हमारी कुछ नीतियों के बारे में मैं बाद में सविस्तार बताउंगा, किंतु फिलहाल मैं राजकोषीय समेकन पर ज़ोर देता हूं। हमने पिछले दोनों वित्तीय वर्षों में बड़े राजकोषीय लक्ष्यों को हासिल किया है। हमने पूंजीगत व्यय को बढ़ाते हुए घाटे को कम किया है। और चौदहवें वित्त आयोग में केंद्र की कर-आय में बेमिसाल तरीके से हुई तीव्र कमी के बावजूद ऐसा हुआ है। वर्ष 2016-17 के लिए राजकोषीय घाटे को हमने सकल घरेलू उत्पाद का 3.5 प्रतिशत रखना तय किया है। पिछले 40 सालों में यह दूसरा सर्वाधिक निम्न स्तर होगा।

बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में हमारी विकास दर उच्चतम मानी जाती है। कुछ लोग संशयग्रस्त रहते हैं और उन्होंने कहा है कि विकास दर सही प्रतीत नहीं होती है। शायद मैं उनके इस अहसास की जगह तथ्य पेश कर यह संशय कम कर पाने में मददगार हो पाउंगा।

आइये पहले ऋण पर निगाह डालते हैं। सितम्बर 2015 के बाद ऋण वृद्धि में तीव्र बढ़ोतरी हुई है। फरवरी 2016 एवं फरवरी 2015 के मध्य ऋणदाय 11.5 प्रतिशत बढ़ा है। कॉर्पोरेट सेक्टर का घरेलू और विदेशी इक्विटी और विभिन्न प्रकार के ऋणों के द्वारा सकल ऋणदाय वर्ष 2015-16 की प्रथम तीन तिमाहियों में 30 प्रतिशत बढ़ा है।

क्रेडिट रेटिंग्स पर आंकड़े और अधिक रुचिकर हैं। वर्ष 2013 एवं 2014 में क्रेडिट रेटिंग घटने वाली फर्मों की संख्या उन फर्मों से अधिक थी जिनकी क्रेडिट रेटिंग बढ़ी थी। अब यह स्थिति निर्णायक रूप से बदली है। उन्नत क्रेडिट रेटिंग पाने वाली कम्पनियों की संख्या अधिक है और अवनत क्रेडिट रेटिंग पाने वाली कम्पनियों की संख्या कम हो रही है। वित्त वर्ष 2015-16 की प्रथम अर्द्धवार्षिकी के दौरान अवनत क्रेडिट रेटिंग पाने वाली प्रत्येक कम्पनी के विरुद्ध दो से अधिक कम्पनियों को उन्नत क्रेडिट रेटिंग मिली जो हाल के वर्षों में इस सम्बंध में सर्वश्रेष्ठ स्तर है।

उन फर्मों जिन्हें कम सहायता दी गई की स्थिति तो और भी बेहतर है। उन्नत स्थिति वाली फर्मों की संख्या अवनत स्थिति वाली फर्मों की अपेक्षा बहुत अधिक है। कम सहायता प्राप्त बड़ी फर्मों के संबंध में उन्नत फर्मों की संख्या अवनत फर्मों की संख्या की तुलना में 6.8 गुना अधिक है, मध्यम दर्जे की फर्मों में यह अनुपात 3.9 है और लघु फर्मों के सिलसिले में 6.3 है। यह आंकड़े असाधारण रूप से सुदृढ़ हैं। केवल अत्यधिक सहायता प्राप्त बड़ी फर्मों के मामले में ही अवनत स्तर में वृद्धि पाई गई है।

सरकार और रिज़र्व बैंक ने बड़े कॉर्पोरेट चूककर्ताओं से धन वापसी के लिए कड़े कदम उठाए हैं। इस क्षेत्र में हुए घटनाक्रमों ने मीडिया की समझ को प्रभावित किया है।

ऋण के बाद अब निवेश की बात करें तो मौजूदा वित्त वर्ष के तिमाही में कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश एक सर्वकालिक रिकॉर्ड रहा है। किंतु मेरे लिए कुछ महत्वपूर्ण क्षेत्रों में हुई नाटकीय वृद्धि ज़्यादा दिलचस्प रही है। अक्टूबर 2014 से सितम्बर 2015 के बीच खाद पर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 224 मिलियन डॉलर रहा, जबकि अक्टूबर 2013 से सितम्बर 2014 के मध्य यह 1 मिलियन डॉलर रहा था। इन्हीं कालखंडों में चीनी में यह 125 मिलियन डॉलर रहा, जबकि इससे पहले 4 मिलियन डॉलर रहा था। कृषि क्षेत्र से जुड़ी मशीनरी में यह 28 मिलियन डॉलर से बढ़ कर 57 मिलियन डॉलर हो गया। यह वो क्षेत्र हैं जिनका ग्रामीण अर्थव्यवस्था से करीबी वास्ता है। इनमें विदेशी निवेश का प्रवाह देख मैं रोमांचित हूं।

सितम्बर 2015 तक वर्ष में निर्माण क्षेत्र की गतिविधियों में 316 प्रतिशत की वृद्धि हुई। कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर एवं हार्डवेयर के क्षेत्र में 285 प्रतिशत की वृद्धि हुई। ऑटोमोबाइल उद्योग में एफडीआई 71 प्रतिशत की गति से बढ़ा। यह ठोस प्रमाण है कि मेक-इन-इण्डिया नीति का रोज़गार प्रदायक क्षेत्रों में प्रभाव पड़ रहा है।

निर्यात के लिए कठिन वैश्विक वातावरण में विनिर्माण क्षेत्र में उतार-चढ़ाव रहा है। हालांकि निर्माण क्षेत्र के कई अहम उप क्षेत्रों में तेज़ी से वृद्धि हो रही है। मोटर वाहनों का निर्माण, जो कि उपभोक्ता की खरीदने की क्षमता एवं आर्थिक क्रियाशीलता का मज़बूत सूचक है, 7.6 प्रतिशत की गति से बढ़ा है। रोज़गार प्रदायक परिधान निर्माण क्षेत्र में 8.7 प्रतिशत की दर से बढ़ोतरी हुई है। फर्नीचर के निर्माण में 57 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जो यह दर्शाता है कि फ्लैट और मकानों की ख़रीद में वृद्धि हुई है।

भविष्य़ की ओर देखते हुए, आइए कृषि की चर्चा करते हैं। पहले ज़ोर कृषि उत्पादन पर होता था न कि किसानों की आय पर। मैंने वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का निश्चय किया है। मैंने इसको एक चुनौती के तौर पर रखा है, परंतु यह मात्र एक चुनौती भर नहीं है। एक श्रेष्ठ रणनीति, ठीक से बनाए गए कार्यक्रमों, पर्याप्त संसाधनों और अच्छी तरह क्रियान्वित शासन प्रणाली से यह लक्ष्य प्राप्य है। और जैसा कि हमारी जनसंख्या का बड़ा वर्ग कृषि पर निर्भर है, किसानों की आय को दोगुना करने के प्रबल फायदे अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों पर भी होंगे।

हमारी रणनीति का प्रारूप यह है कि..

• सर्वप्रथम हमने सिंचाई में बजटीय आवंटन बढ़ा कर बड़ा ध्यान दिया है। हम समग्र दृष्टिकोण अपना रहे हैं जो सिंचाई और जल संरक्षण को मिलाता है। उद्देश्य ‘प्रति बूंद अधिक फसल’ पाना है।

• दूसरा, हम श्रेष्ठ बीजों एवं पोषकता पर ज़ोर दे रहे हैं। सोइल हेल्थ कार्ड्स का प्रावधान हर क्षेत्र के ज़रूरतों के सही आकलन में मदद करता है। इनसे उत्पादन की लागत कम होगी और आय में वृद्धि होगी।

• तीसरा, कृषि उपज का बड़ा हिस्सा उपभोक्ता तक पहुंचने से पहले ही नष्ट हो जाता है। विकारी खाद्य में नुकसान परिवहन के दौरान होता है, जबकि अविकारी खाद्य में भंडारण के दौरान होता है। हम भंडारण की अवसंरचना एवं शीतागार श्रृंखला खड़ी कर पैदावार के बाद होने वाले नुकसान को कम कर रहे हैं। हमने कृषि क्षेत्र में ढंचागत व्यवस्था के लिए खर्च में बड़ी वृद्धि की है।

• चौथा, हम खाद्य प्रक्रमण के माध्यम से गुणवत्ता को प्रोत्साहन दे रहे हैं। उदाहरण के तौर पर मेरे एक कॉल के बाद कोका कोला ने अपने कुछ वातित पेयों में फलों का रस मिलाना शुरू किया है।

• पांचवां, हम विकृतियां दूर कर एक राष्ट्रीय कृषि बाज़ार की रचना कर रहे हैं। 585 नियमित होलसेल बाज़ारों में एक सार्व इलेक्ट्रॉनिक मार्केट प्लेटफॉर्म बनाया जा रहा है। हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि मूल्य का बड़ा हिस्सा किसान तक पहुंचे और बिचौलियों की भूमिका कमतर हो। बजट में घरेलू खाद्य उत्पादों के क्रय विक्रय में विदेशी पूंजी निवेश इसी मंतव्य से रखा गया है।

• छठा, हमने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना शुरू की है। यह एक विस्तृत देशव्यापी फसल बीमा कार्यक्रम है जो एक वहन करने योग्य राशि में किसानों का उन खतरों से बचाव करता है जो उनके नियंत्रण में नहीं हैं। यह योजना खराब मौसमी हालात में किसानों की आय की रक्षा सुनिश्चित करेगी।

• सातवां, हम सहायक गतिविधियों से आय में बढ़ोतरी करेंगे। अशंतः यह मुर्गीपालन, मधु मक्खी उद्योग से एवं मत्स्यपालन के माध्यम से किया जाएगा। हम किसानों को उनकी भूमि के उस हिस्से का उपयोग करने का प्रोत्साहन दे रहे हैं जो जोता हुआ नहीं है, खास कर खेतों के बीच की सीमा वाला हिस्सा जिसका प्रयोग लकड़ियां उगाने एवं सौर सेल बनाने में किया जा सकता है।

निम्न तरीक़ों के साझा प्रयोग से

• उत्पादन में वृद्धि
• आगत के प्रभावी उपयोग से
• उपज के बाद नुकसान कम करके
• गुणवत्ता में वृद्धि कर
• संकट का शमन कर
•और सहायक गतिविधियों से

मुझे विश्वास है कि हम किसानों की आय को दोगुना करने का लक्ष्य हासिल कर लेंगे। मैं प्रसन्न हूं कि भारत की कृषि के पुरोधा डॉक्टर एम एस स्वामीनाथन सहमत हैं। उन्होंने मुझे बजट के बाद किसान-केंद्रित बजट के लिए आभार जताती चिट्ठी लिखी। उन्होंने कृषि से होने वाली आय पर दिए गए ध्यान का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि, “कुल मिलाकर बजट को किसानों का हितकारी बनाने की कोशिश की गई है- जो संसाधनों की सीमितता का विषय है। कृषि क्षेत्र में रूपांतरण और युवाओं को कृषि में रोकने एवं आकर्षित करने के बीज बोए गए हैं। कृषि के क्षेत्र में एक नये युग का उदय नज़र आ रहा है।”

आइए अब हमारे विकास को आधार प्रदान करने वाले कुछ कार्यक्रमों एवं नीतियों का ज़िक्र करें। जैसा कि मैंने कहा कि मेरा लक्ष्य रिफॉर्म टू ट्रांसफॉर्म है, सुधारों का उद्देश्य आम लोगों की ज़िंदगी में रूपांतरण करना है। आइए प्रशासनिक सुधारों और उनको क्रियान्वित करने पर हमारे फोकस की बात करें।

भारत जैसे देश में संसाधनों की कमी है, जबकि समस्याएं ढेरों हैं। क्रियान्वयन की सामर्थ्य में वृद्धि कर संसाधनों का अधिकतम प्रयोग करना एक कुशल रणनीति है। नीतियों की घोषणा करना, या तथाकथित नीतियों की घोषणा से ज़्यादा हासिल नहीं होता। यहां तक कि नीतियों में सुधार से ज़्यादा हमें रूपांतरित कार्य निष्पादन की आवश्यकता है। मैं व्याख्या करता हूं। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 में पारित हुआ था लेकिन अधिकतर राज्यों में क्रियान्वित नहीं हुआ। महात्मा गांधी ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना में ज़्यादातर धन दलालों, बिचौलियों और ग़ैर-निर्धनों में जा रहा था, जबकि कागज़ों में यह व्यय दर्ज हो जाता था।

हम अब खाद्य सुरक्षा एक्ट को देश भर में क्रियान्वित कर रहे हैं। हमने रोज़गार गारंटी योजना में ग़लत हाथों में धन जाने से रोका है और कोशिश की है कि यह उन हाथों में जाए जिनके लिए योजना बनी है। हमने टिकाउ सम्पत्तियां बनाने पर धयान दिया है जो जनता के लिए लाभकारी हों, न कि दलालों के लिए। और वित्तीय समावेशन के फायदों की चर्चा करने के बजाय, हमने लक्ष्य पूरा कर लिया है और 200 मिलियन लोगों को बैंकिंग प्रणाली के दायरे में लाए हैं।

आम तौर पर क्रियान्वयन के बारे में हमारा रिकॉर्ड, एवं ख़ास कर भ्रष्टाचार घटाने के प्रति, सबकी समझ में आ चुका है। इसलिए मैं संक्षिप्त रहूंगा। कोयला, खनिज एवं स्पैक्ट्रम की नीलामी पार्दर्शिता से हुई है जिससे सरकार को बड़ी मात्रा में धन की प्राप्ति हुई है। प्रबंधकीय सुधारों से बिजली की कमी को ख़त्म किया गया है, प्रति दिन राष्ट्रीय राजमार्गों का निर्माण एक रिकॉर्ड है। हमने विविध क्षेत्रों में कई नये कार्यक्रम शुरू किए हैं। परम्परा से जुड़े कई मुद्दों का समाधान किया है। रुकी हुई परियोजनाओं की संख्या घटी है। लंबे समय से बंद दाभोल विद्युत कारखाना हमारे समन्वित प्रयासों से दोबारा शुरू हुआ है, और यह विद्युत का उत्पादन कर रहा है, नौकरियां बचाए हुए है और बैंकों के फिजूल ऋण से दूर है। आइए अब नीतिगत सुधारों की बात करते हैं। मैंने सरकार के कार्यभार संभालने के बाद मंहगाई में स्थाई कमी की बात की थी। आंशिक रूप से यह मुद्रा संबंधी नीतियों को सुदृढ़ बनाने हेतु लिए गए साहसी निर्णयों से जुड़ा है। पिछले वर्ष हमारा रिज़र्व बैंक ऑफ इण्डिया के साथ मौद्रिक रूपरेखा करार हुआ था।

इस वर्ष हमने वित्त विधेयक में विधेयक में रिज़र्व बैंक ऑफ इण्डिया एक्ट में संशोधन शामिल किए हैं। इन संशोधनों के अंतर्गत रिज़्रव बैंक के पास मुद्रा स्फीति का लक्ष्य होगा और मौद्रिक नीति समिति के माध्यम से मौद्रिक नीति बनाई जाएगी। समिति में सरकार से कोई सदस्य नहीं होगा। इस सुधार से मौद्रिक नीति मुद्रा स्फीति केंद्रित रहेगी और उभरते हुए बाज़ारों में इसको विकसित देशों से भी ज़्यादा सांस्थानिक स्वायत्तता का स्तर प्राप्त होगा। राजकोषीय समेकन के मार्ग का पालन करते हुए यह स्थूल आर्थिक बुद्धिमता और स्थायित्व के प्रति हमारे कड़े निश्चय का परिचायक है।

एक अन्य बड़ा नीतिगत सुधार पेट्रोलियम क्षेत्र में हुआ है। नई हाइड्रोकार्बन लाइसेंसीकरण नीति के तहत मूल्य निर्धारण एवं क्रय विक्रय की स्वतंत्रता एवं पारदर्शी राजस्व सहभाजन प्रक्रिया होगी। इससे नौकरशाही के नियंत्रण की कई तहें ख़त्म हो जाएंगी। ऐसी परियोजनाएं जो जारी हैं किंतु तैयार नहीं हुई हैं, के लिए भी हमने मूल्य निर्धारण एवं क्रय विक्रय की स्वतंत्रता प्रदान की है। मौजूदा प्रोडक्शन शेयरिंग अनुबंधों के नवीनीकरण के लिए हमने सरकार के लाभांश में एकसमान प्रतिशत वृद्धि कर एक पारदर्शी तरीक़ा अपनाया है। यह अनिश्चितता का निवारण करता है।

संसद ने रीयल इस्टेट रेग्युलेशन अधिनियम को पारित कर दिया है जो कि भवन निर्माण बाज़ार का रूपांतरण करने की दिशा में, खरीदारों को सुरक्षा देने में एवं ईमानदार और स्वस्थ नीतियों को प्रोत्साहन देने में अहम होगा। लंबे समय से लंबित इस विधेयक को पारित करने के साथ हमने नव्य मध्यम वर्ग एवं निर्धनों के लिए मकान बनाने पर भवन निर्माताओं को टैक्स में छूट भी दी है।

ऊर्जा क्षेत्र की उदय योजना ने राज्य सरकारों के लिए प्रोत्साहन की परिपाटी में स्थाई रूप से परिवर्तन कर दिया है। महत्वाकांक्षी लक्ष्यों के लिए विश्वसनीय प्रोत्साहन दिया जाएगा। इस योजना के तहत राज्य सरकारों को चरणबद्ध तरीके से विद्युत वितरण कम्पनियों के घाटे को अपने राजकोषीय घाटे के लक्ष्यों के विरुद्ध दर्शाना होगा। इससे इन प्रदेशों को बजट निर्माण में काफी कठिनाई झेलनी पड़ेगी। इससे राज्यों को अपने विद्युत क्षेत्र का सुदक्ष प्रबंधन करने का गहन प्रोत्साहन मिलेगा। इस सिलसिले में ऐसे नौ राज्यों, जो विद्युत वितरण कम्पनियों के 40 प्रतिशत ऋण का भार ग्रहण कर रहे हैं, ने केंद्र सरकार के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं। नौ अन्य राज्य ऐसा करने पर सहमत हुए हैं।

नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में इस सरकार के नीतिगत सुधारों के बारे में आपको पता होगा। जब मैंने जलवायु परिवर्तन की रणनीति के तौर पर नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में 175 गीगावॉट के अपने लक्ष्य को बताया, तो कई लोगों को आश्चर्य हुआ और कुछ लोगों को संदेह भी हुआ। लेकिन इस महीने अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी ने बताया है कि नवीकरणीय ऊर्जा के प्रयोग में बढ़ोतरी ने कार्बन ऊत्सर्जन में कमी ला दी है।

संसद ने हाल ही में अंतर्देशीय जलमार्गों पर एक नये क़ानून को पारित किया है जिससे परिवहन के इस सक्षम तरीके का तीव्र विकास हो पाएगा। इससे जलमार्गों की संख्या मौजूदा 5 से 106 हो जाएगी।

प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी निवेश की नीति का रूपांतरण बंद पड़े क्षेत्रों जैसे रेलवे और रक्षा में निवेश को अनुमति देकर, एवं बीमा समेत कई अन्य क्षेत्रों में निवेश की सीमा बढ़ा कर, किया गया है। इन सुधारों के परिणाम आने लगे हैं। जीई और एल्सटम की ओर से बिहार में 5 बिलियन की लागत से दो नई लोकोमोटिव फैक्ट्रियां लगाई जा रही हैं। बीमा क्षेत्र में विश्व की अग्रणी कंपनियों की ओर से 9600 करोड़ रुपए, लगभग 1500 मिलियन डॉलर, को पहले ही मंजूरी दी जा चुकी है।

हमने स्टॉक एक्सचेंजों में विदेशी निवेश की सीमा बढ़ाई है और उन्हें सूचीबद्ध करने की इजाज़त दी है। मैं आश्वस्त हूं कि आपको प्राइवेट इक्विटी वेंचर केपिटल को प्रोत्साहन देने के लिए हमारे सुधारों और स्टार्टअप्स के बारे में पता होगा। मैंने नोट किया है कि यह नई अर्थव्यवस्था आपकी पैनल चर्चा का अहम मुद्दा है।

अंत में बात करते हैं रोज़गार उत्पन्न करने वाले हमारे बड़े क़दमों के बारे में। यह मेरी सर्वोच्च प्राथमिकताओं में से एक है। भारत एक पूंजी वाला किंतु प्रचुर श्रमशक्ति से सम्पन्न देश है। इसके बावजूद कॉर्पोरेट कर संरचना ने पूंजीमूलक उत्पादन की ही सहायता की है। त्वरित अवमूल्यन तथा निवेशानुमति जैसे करलाभों से श्रम क्षेत्र के प्रति कृत्रिम पूर्वाग्रह सा उत्पन्न हो गया है। श्रम विनियमनों ने भी औपचारिक रोज़राग की अपेक्षा सामाजिक संरक्षा विहीन अनौपचारिक रोजगार का ही संवर्द्धन किया है। इसमें बदलाव के लिए हमने दो महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं।

सर्वप्रथम यदि करसमपरीक्षा के अधीन आने वाली कोई फर्म अपने कर्मीवर्ग में वृद्धि करना चाहती है तो उसको तीन वर्ष के लिए उसकी अतिरिक्त मज़दूरी लागत पर 30 प्रतिशत अधिक कर कटौती मिलेगी। इसके पूर्व ऐसा लाभ केवल गिनी चुनी औद्योगिक फर्मों को ही उपलब्ध था और उसमें भी इतने अवरोध थे कि व्यवहारिक रूप से यह सुविधा प्रभावहीन सी हो गई थी। अब यह सुविधा ऐसे सेवा क्षेत्रों जिनके कर्मचारियों का वेतन 25 हज़ार रुपए प्रतिमास तक है, सहित सभी क्षेत्रकों को दी जाएगी।

दूसरा सरकार ने भविष्य निधि फंड के तहत नामांकित होने वाले नये लोगों को तीन वर्ष तक पेंशन देने की ज़िम्मेदारी उठाई है। यह उन सभी पर लागू होगा जिनका वेतन प्रतिमाह 15,000 रुपए तक है। हमें उम्मीद है कि इन कदमों से लाखों बेरोज़गार, और अनौपचारिक रोज़गार प्राप्त लोगों को फायदा होगा।

सरकारी नियुक्तियों में भ्रष्टाचार के की समाप्ति के लिए हमने निम्न एवं मध्य स्तरीय पदों के लिए साक्षात्कार को ख़त्म कर दिया है। इन पदों को अब पारदर्शी तरीक़े से परीक्षा परिणामों के आधार पर भरा जाएगा।

आप जानते हैं कि इंजीनियरिंग एवं मेडिकल कॉलेजों मे प्रवेश के लिए आयोजित प्रतियोगी परीक्षाओं के नतीजों का इस्तेमाल निजी कॉलेज भी करते हैं। मुझे बेरोज़गारों को लाभ देने वाली एक अन्य योजना की घोषणा करते हुए ख़ुशी हो रही है। सरकार और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम कई चयन परीक्षाएं आयोजित करते हैं। अब तक इन इम्तिहानों के परिणाम सरकार के पास ही होते थे। यहां से आगे हम अभ्यर्थी की स्वीकृति पर उससे जुड़ी सूचना एवं परीक्षा के परिणामों को सभी रोज़गार प्रदाताओं को दे देंगे। इससे एक सकारात्मक खुलापन आएगा। इससे निजी क्षेत्र के रोज़गार प्रदाताओं के पास वह निष्पक्ष तैयार डाटा उपलब्ध रहेगा जिसका इस्तेमाल वो स्क्रीनिंग की प्रक्रिया के लिए कर पाएंगे। इससे निजी क्षेत्र में नियोक्ता की कर्मचारी को ढ़ूंढने में लगने वाली लागत में कमी आएगी। इससे अभ्यर्थियों की बढ़िया मैचिंग हो पाएगी।

आपको प्रधानमंत्री मुद्रा योजना की प्रगति के बारे में पता होगा। इस वर्ष लगभग 19 बिलियन डॉलर के 31 मिलियन से भी ज़्यादा ऋण उद्मिययों को दिए गए हैं। आपको यह जान कर ख़ुशी होगी कि इनमें से 77 प्रतिशत महिलाएं हैं और 22 प्रतिशत अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति से हैं। यदि हम अनुदार ढंग से भी आकलन करें तो औसतन हर उपक्रम एक दीर्घकालिक जॉब देता है, इससे 31 मिलियन नये रोज़गारों के सृजन होने की बात पता चलती है। स्टैण्डअप इण्डिया योजना महिलाओं एवं एससी एसटी वर्गों को 250,000 उद्यमिता ऋण भी उपलब्ध कराएगी।

कौशल विकास पर मेरी सरकार के कदम सभी जानते हैं। बजट में हमने शिक्षा क्षेत्र में दो पथ प्रदर्शक सुधार किए, जिनके बारे में मैं बताना चाहता हूं। हमारा उद्देश्य उच्च शिक्षण संस्थानों को मज़बूत बनाने का है ताकि उन्हें उच्च स्तरीय बनाया जा सके। शुरुआत में हम 10 सरकारी एवं 10 निजी संस्थानों के लिए नियमन का ढ़ांचा खड़ा करेंगे, ताकि वे विश्व स्तरीय शिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान बन सकें। इन संस्थानों के नियमन का ढांचा मौजूदा यूजीसी और एआईसीटीई से भिन्न होगा। उनके पास अकादमिक, प्रशासनिक और वित्तीय मामलों में पूर्ण स्वायत्तता होगी। हम 10 सरकारी विश्वविद्यालयों के लिए अगले पांच सालों तक अतिरिक्त संसाधन मुहैया कराएंगे। इससे साधारण भारतीयों को वहन करने योग्य विश्व स्तरीय शिक्षा का अवसर मिल पाएगा। यह कदम उच्च शिक्षा के नियमन की यात्रा की शुरुआत होगा।

इन संस्थानों को ऊपर से नीचे तक प्रभुत्व एवं नियंत्रण वाली संस्थाएं होने की बजाय स्व-प्रकटीकरण एवं पारदर्शिता के सिद्धातों का समन्वयक एवं गाइड होना चाहिए। आखिरकार हम नियमन में सुधार के पीछे हमारी मंशा कॉलेजों एवं विश्वविद्यालयों को विश्व स्तरीय बनाने की है।

एक अन्य कदम स्कूली शिक्षा के क्षेत्र में है। हमने छात्र-शिक्षक अनुपात में एवं शिक्षा की पहुंच के मामलों में बहुत परिमाणात्मक प्रगति की है। आज की ज्ञान अर्थव्यवस्था का आधार स्कूलों से शिक्षित होकर निकले छात्रों की गुणवत्ता पर है। हमने फैसला किया है कि यह गुणवत्ता सरकार का प्राथमिक लक्ष्य होगी। हम सर्व शिक्षा अभियान के तहत गुणवत्ता के लिए संसाधनों में वृद्धि करने के लिए धनराशि आवंटित करेंगे। इस धन का प्रयोग ज्ञान में गुणवत्ता की प्राप्ति हेतु स्थानिक कदमों एवं नवाचारों के लिए किया जाएगा। मैं आश्वस्त हूं कि आपमें सभी जो अभिभावक हैं एवं आपमें वो जो रोज़गार नियोक्ता हैं, उच्च एवं स्कूली शिक्षा में उठाए गए इन क़दमों का स्वागत करेंगे।

अंत में देवियों और सज्जनों, हमने कई कदम उठाए हैं। कई उठाए जाने हैं। कुछ ने परिणाम देना शुरू कर दिया है। हमने अब तक जो हासिल किया है वह मुझे विश्वास देता है कि लोगों के समर्थन से हम भारत का रूपांतरण कर देंगे।

मैं जानता हूं यह मुश्किल होगा।

पर मैं जानता हूं कि यह साध्य है।

और मुझे विश्वास है कि यह किया जाएगा।

धन्यवाद।