प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने राज्यसभा की चयन समिति द्वारा रिपोर्ट किये गये रियल स्टेट (नियामक और विकास) विधेयक-2015 को मंजूरी दे दी है। यह विधेयक अब संसद में विचार-विमर्श और पारित करने के लिए लाया जाएगा।
रियल एस्टेट (नियामक और विकास) विधेयक- उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने, रियल एस्टेट लेन-देन में निष्पक्षता लाने और समय पर परियोजनाओं के कार्यान्वयन में मार्ग प्रशस्त करने वाला कदम है।
इस विधेयक से वाद-विवाद के त्वरित निपटान और रियल एस्टेट क्षेत्र की तरीकेबद्ध वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए समान नियामक वातावरण उपलब्ध होगा। इससे रियल एस्टेट क्षेत्र में घरेलू और विदेशी निवेश को बढ़ावा मिलेगा और निजी प्रतिभागिता बढ़ाकर ‘सब के लिए आवास’ प्रदान करने के भारत सरकार के उद्देश्य को हासिल करने में मदद मिलेगी।
यह विधेयक रियल एस्टेट नियामक प्राधिकरण के साथ रियल एस्टेट परियोजनाओं और रियल एस्टेट एजेंटों के पंजीकरण के जरिए उपभोक्ताओं के लिए प्रमोटर्स द्वारा आवश्यक खुलासा करना सुनिश्चित करता है। इस विधेयक का उद्देश्य रियल एस्टेट में संस्थागत पारदर्शिता और जिम्मेदारी द्वारा रियल एस्टेट क्षेत्र में उपभोक्ताओं का विश्वास बहाल करना तथा आवासीय लेन-देन, जिससे पूंजी और वित्तीय बाजार में इस क्षेत्र की पहुंच और बढ़े। इस विधेयक से परियोजना के प्रभावी कार्यान्वयन, पेशेवर तरीके और मानकीकरण के जरिए व्यवस्थित तरीके के इस क्षेत्र की वृद्धि को बढ़ावा मिलेगा।
विधेयक की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं:
1. व्यावसायिक और आवासीय रियल एस्टेट परियोजनाओं पर लागू।
2. रियल एस्टेट लेन-देन को नियमित करने के लिए राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों में ‘रियल एस्टेट नियामक प्राधिकरण’ की स्थापना।
3. रियल एस्टेट परियोजनाओं और रियल एस्टेट एजेंटों का प्राधिकरण के साथ पंजीकरण।
4. सभी पंजीकृत परियोजनाओं के बारे में खुलासा अनिवार्य, जिसमें प्रमोटर, परियोजना, ले आउट, योजना, भूमि की स्थिति, मंजूरियां, समझौते, रियल एस्टेट एजेंटों, ठेकेदारों, वास्तुकारों और इंजीनियरों आदि के बारे में विस्तृत जानकारी शामिल है।
5. परियोजना को समय पर पूरा करने में इसकी निर्माण लागत के लिए एक अलग बैंक खाते में विशेष राशि जमा करना।
6. न्यायिक अधिकारियों और अपीलीय ट्राइब्यूनल के जरिए वाद-विवाद सुलझाने के लिए त्वरित विवाद निपटान प्रणाली की स्थापना।
7. न्यायालयों में विधेयक में परिभाषित मुद्दों को उठाने पर प्रतिबंध, हालांकि उपभोक्ता अदालतों में रियल एस्टेट के मामलों पर सुनवाई हो सकती है।
8. प्रमोटर, उपभोक्ता की सहमति के बिना योजना और डिजाइन में बदलाव नहीं कर सकते।
9. विधेयक में दिए गए विशेष मामलों के लिए नियम बनाने हेतु उचित सरकारी प्रावधान और नियामक प्राधिकरण आवश्यक नियम बना सकता है।