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पेरिस में सीओपी-21 में भारतीय पैविलियन के उद्घाटन अवसर पर प्रधानमंत्री का संबोधन

पेरिस में सीओपी-21 में भारतीय पैविलियन के उद्घाटन अवसर पर प्रधानमंत्री का संबोधन

पेरिस में सीओपी-21 में भारतीय पैविलियन के उद्घाटन अवसर पर प्रधानमंत्री का संबोधन

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पेरिस में सीओपी-21 में भारतीय पैविलियन के उद्घाटन अवसर पर प्रधानमंत्री का संबोधन

पेरिस में सीओपी-21 में भारतीय पैविलियन के उद्घाटन अवसर पर प्रधानमंत्री का संबोधन


मेरे मंत्रिमंडल के सहयोगी श्री प्रकाश जावड़ेकरजी, श्री पीयूष गोयल जी, सम्मानित अतिथिगण।

मुझे भारतीय पैविलियन का अद्घाटन करते हुए प्रसन्नता हो रही है।

पेरिस में ऐतिहासिक सम्मेलन का यह पहला दिन है।

हम यहां पेरिस और फ्रांस के साथ उनके संकल्प और साहस की प्रशंसा में एकजुट खड़े हैं।

पूरा विश्व, 196 देश, इस विश्व के भविष्य को संवारने तथा हमारे ग्रह की सेहत के लिए एक साथ आए हैं।

यह सम्मेलन भारत के भविष्य के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है।

यह पैविलियन हमारी विरासत, हमारी प्रगति, हमारी परंपराएं, हमारी टेक्नोलाजी, हमारी आकांक्षाएं और हमारी उपलब्धियों की खिड़की है।

भारत की नई आर्थिक गति अंतर्राष्ट्रीय आकर्षण का विषय और वैश्विक अवसर का स्रोत है। हमारी प्रगति केवल मानवता के छठे हिस्से की जिंदगी नहीं बदलेगी । इसका अर्थ और अधिक सफल तथा समृद्ध विश्व भी है।

इसी तरह विश्व की पसंद का हमारे विकास पर प्रभाव पड़ेगा।

जलवायु परिवर्तन प्रमुख वैश्विक चुनौती है।

लेकिन यह जलवायु परिवर्तन हमारा बनाया हुआ नहीं है। यह ग्लोबल वार्मिंग का परिणाम है जो फोसिल इंधन से ऊर्जा प्राप्त कर औद्योगिक युग की समृद्धि और प्रगति से आई है।

लेकिन हम आज भारत में इसके परिणामों का सामना कर रहे हैं। हम इसे अपने किसानों के लिए खतरे के रूप, मौसम के तौर-तरीकों में बदलाव के रूप में और प्राकृतिक आपदाओं की तीव्रता के रूप में देखते हैं ।

हम उभरते समुद्र को लेकर चिंतित हैं। इससे हमारी 7500 किलोमीटर की तटीय रेखा और 1300 द्वीपों को खतरा पैदा होगा। हीमनदों के खिसकने से हमें चिंता है। इन हीम नदों से हमारी नदियो को भोजन मिलता है और इनसे हमारी सभ्यता फलती है।

इसीलिए पेरिस में परिणाम महत्वपूर्ण है।

इसलिए हम यहां हैं।

हम चाहते हैं कि विश्व आवश्यकता के साथ काम करे। हम एक व्यापक, समान, टिकाऊ समझौता चाहते हैं जो हमें मानवता और प्रकृति के बीच तथा हमें जो विरासत में मिला है और हम जो पीछे छोड़ जाएंगे उनके बीच संतुलन बनाने की ओर ले जाये ।

इसके लिए एक साझेदारी करनी होगी जिसमें अपनी पसंद वाले और टेक्नोलॉजी क्षमता संपन्न अपना कार्बन उत्सर्जन कम करने में समायोजन करेंगे।

उनकी प्रतिबद्धता की सीमा और उनके कार्यों की शक्ति उनके कार्बन स्पेस के अनुरूप होनी चाहिए।

और उन्हें विकासशील देशों को आगे बढ़ने देने के लिए हमारे कार्बन स्पेस को छोड़ना होगा।

उन्हें संसाधनों तथा टेक्नोलॉजी को उनके साथ साझा करना चाहिए जो आवश्यकता और आशा के बीच रह रहे हैं ताकि हम स्वच्छ ऊर्जा के लिए सार्वभौमिक आकांक्षाओं को पूरा कर सकें।

इसका अर्थ यह भी होगा की विकासशील विश्व प्रगति की अपनी राह पर कार्बन की हल्की छाप छोड़ने का प्रयास करेंगे।

हम विश्व की दृढ़ता का मेल उन प्रयासों के साथ चाहते हैं जो हमारी सफलता के लायक परिस्थितियां बनाए।

क्योंकि हमारी चुनौतियां विशाल हैं, हमारे प्रयास तत्काल होने चाहिए।

अगले कुछ दिनों में इन विषयों पर चर्चा होगी।

मैं भारतीय पैविलियन में कुछ और कहने के लिए आया हूं। और मैं केवल विश्व के लिए नहीं बोलता बल्कि अपने लोगों के लिए भी बोलता हूं।

भारत की प्रगति हमारी नीयती और हमारे लोगों का अधिकार है। लेकिन हम एक राष्ट्र हैं जिसे जलवायु परिवर्तन से मुकाबला करने में आगे आना होगा।

हमें अपने लोगों को स्वच्छ हवा, स्वच्छ नदियां, लचीला खेत, स्वस्थ निवास तथा जीवन संपन्न वन देना हमारा दायित्व है।

यह हमारे संकल्प से आता है कि हमारा उद्देश्य केवल ऊंची आय ही नहीं बल्कि गुणवत्ता संपन्न जीवन होना चाहिए।

यह विश्व के प्रति हमारे संकल्प से आता है।

और सबसे बड़ी बात कि हमारी प्राचीन परंपराओं और मान्यताओं से उठता है।

लोग जो पसंद व्यक्त करते हैं वह उनकी संस्कृति और मान्यताओं से बनती है।

भारत में प्रकृति को हमेशा से मां माना गया है।

प्राचीन समय से हमने मानवता को प्रकृति के हिस्से के रूप में देखा है, प्रकृति से ऊपर नहीं।

हमेशा हमारा विश्वास रहा है कि प्रकृति मानव जाति के लिए नहीं रहती बल्कि प्रकृति के बिना हमारा अस्तित्व नहीं है। इसलिए प्रकृति का अर्थ देना और पालना है , शोषण करना नहीं।

जब प्रकृति संतुलित होगी तो हमारा विश्व संतुलित होगा।

यह हम अपने ऋग वेद से सीखते हैं–

क्षेत्रस्य पते मधुमन्तमूर्मिं धेनुरिव पयो अस्मासु धुक्ष्व।

मधुश्चुतं घृतमिव सुपूतमृतस्य नः पतयो मृळयन्तु॥

इसका अर्थ है:-

हे पृथ्वी के देवता, प्रकृति मां के आशीर्वाद के साथ गाय दुग्ध के समान हमारी पृथ्वी को दुग्धमय करें, मां प्रकृति की प्रचुरता के साथ मक्खन के समान हम पर कृपा करें।

इसीलिए अथर्व वेद कहता है कि पृथ्वी की रक्षा हमारा कर्तव्य है ताकि जीवन सतत रहे।

यही हम गांधी जी के जीवन में देखते हैं। उनकी राय थी कि विश्व में काफी कुछ सभी की आवश्यकता के लिए है, लेकिन किसी के लोभ के लिए नहीं।

आज जारी अपने प्रकाशन परंपरा में हमने यही दिखाने का प्रयास किया है।

इसीलिए पुनःचक्रीकरण तथा संरक्षण हमारे लिए स्वाभाविक है। और इसीलिए अपने देश में पवित्र उपवन हैं।

मित्रों,

यही भावना है जो हमें जलवायु परिवर्तन से लड़ने की आकांक्षा और व्यापक रणनीति प्रदान करती है।

हमारा लक्ष्य 2022 तक 175 गिगावाट नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन है। हमने अच्छी शुरुआत की है। हम 2016 तक लगभग 12 गिगावाट स्थापित कर देंगे जो वर्तमान क्षमता से तीन गुना है।

पहले के सेलुलर फोन की तरह हम 1800 बिना संपर्क वाले गांवों को बिजली देने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग कर सकते हैं।

2030 तक हमारी 40 प्रतिशत स्थापित क्षमता गैर-फोसिल ईंधन पर आधारित होगी।

हम कचरे को ईंधन में बदलेंगे। हम अपने शहरों को स्मार्ट और टिकाऊ बनाएंगे और सार्वजनिक परिवहन को बदलेंगे। इनमें 50 नई मेट्रो रेल परियोजनाएं होंगी।

हम ताप उर्जा संयंत्रों में अति महत्वपूर्ण टेक्नोलॉजी में निवेश कर रहे हैं। हमने कोयला पर कर लगाया है और पेट्रोलियम उत्पादों पर सबसिडी कम की है। हम ओटोमोबिल के लिए ईंधन मानक बढ़ा रहे हैं। और हम नवीकरणीय ऊर्जा के लिए कर मुक्त बांड लाए हैं।

अपने वन क्षेत्र को बढ़ाने तथा जैव विविधता की रक्षा के लिए हमारा कार्यक्रम व्यापक है।

पिछले कुछ महीनों में लाखों लोगों ने एलईडी बल्ब लगाना शुरु किया है। हमारी योजना है कि हजारों दूरसंचार टावरों को ईंधन देने के लिए डीजल की जगह ईंधन सेल्स लाएं।

वैश्विक मैन्युफैक्चरिंग केन्‍द्र के रूप में भारत का हमारा विजन ‘शून्‍य दोष, शून्‍य प्रभाव सिद्धांत पर आधारित है- उत्पाद जो सही हो और पर्यावरण पर कोई छाप न छोड़े। हमारा मिशन प्रति बूंद अधिक फसल है । यह न केवल किसानों के जीवन में सुधार लाएगा बल्कि संसाधनों की कमी का दबाव कम करेगा। स्‍वच्‍छ ऊर्जा में अनुसंधान और नवाचार उच्‍च प्राथमिकता है। हम कोयला जैसी पारंपरिक ऊर्जा को स्‍वच्‍छ बनाना चाहते हैं। हम नवीकरणीय ऊर्जा को सस्ती और अपने घरों में लगाने के लिए सहज बनाएंगे। हम अपने ट्रांसमिशन लाइनों के लिए इसे अधिक विश्‍वसनीय और सहज बनाना चाहते हैं।

सरकारों से लेकर समुदायों तक नवाचारों और उद्यमों के अनगिनत उदाहरण हैं, जो हमारे पर्यावरण की सेहत बहाल कर रहे है।

मैंने अपनी पुस्‍तक विनियेंट ऐक्शन में कुछ पहलुओं पर प्रकाश डालने की कोशिश की है इसे आज प्रस्‍तुत किया जाएगा।

मित्रों,

यह हमारी जनता की आवाज है, हमारे राष्‍ट्र का आहृवान है और हमारी राजनीति की सहमति है। 1975 में स्‍टॉकहोम से लेकर 2009 में कोपेनहेगन तक पर्यावरण पर हमारा नेतृत्‍व भारतीय नेताओं और अब तक की सरकारों का विजन है। हम अपने राष्ट्रीय प्रयास को पूरी तरह नए स्‍तर पर उठा रहे हैं और हम अपनी अंतर्राष्‍ट्रीय साझेदारी बढ़ा रहे हैं।

इसलिए हम संकल्‍प के साथ पेरिस आए हैं, लेकिन आशा के साथ भी। हम साझेदारी की भावना से जलवायु परिवर्तन पर संयुक्‍त राष्‍ट्र रूपरेखा समझौते के अंतर्गत बातचीत चाहते हैं। यह समानता पर आधारित होनी चाहिए लेकिन भिन्‍न जिम्‍मेदारियों के साथ। आज मैं प्रमुख विकसित तथा विकासशील देश के नेताओं के साथ नवाचारी सम्मेलन में शामिल होउंगा, क्योंकि मैं मानता हूं कि हमारी सामूहिक सफलता की कुंजी नवाचार और टेक्नोलॉजी है।

मैं राष्ट्रपति ओलांद के साथ 121 सौर संपन्न राष्ट्रों में सौर ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सौर सहयोग की सह अध्यक्षता करूंगा।

मैंमे राष्ट्रपति ओलांद से अनुरोध किया है कि वह पूरे विश्व की उक्तियों की एक पुस्तक लाएं ताकि हमारी सभ्यताओं, संस्कृतियों और धर्मों के गुणों को विश्व देखे।

मैं जीवन शैली में परिवर्तन का भी आग्रह करूंगा ताकि धरती पर बोझ कम हो। हमारे प्रयासों की सफलता हमारे रहने और सोचने के तरीकों पर निर्भर करेगी।

निष्कर्ष में मुझे भारत में परिभाषित करने वाली विषय वस्‍तु पर जाने दे- साझेदारी की भावना, एकता में विश्‍वास।भारत के लोगों और विश्‍व के मित्रों से कहना चाहूंगा कि वह लोकः समस्‍थ सुखीनो भवन्तु के संकल्‍प के साथ जीवित रहें। कल्‍याण की इच्‍छा में हमारी धरती, हमारी प्रकृति, सभी देश और पूरी मानवता शामिल होनी चाहिए।

यदि हमारी सोच सही है तो हम क्षमताओं और आवश्यकताओं की वैश्विक साझेदारी बनाएंगे जो हमें कम कार्बन युग की ओर ले जाएगी।

धन्यवाद।

बहुत-बहुत धन्यवाद।