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दिल्‍ली इकोनॉमिक्‍स कॉनक्‍लेव में प्रधानमंत्री के उदघाटन संबोधन का मूल पाठ

दिल्‍ली इकोनॉमिक्‍स कॉनक्‍लेव में प्रधानमंत्री के उदघाटन संबोधन का मूल पाठ

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दिल्‍ली इकोनॉमिक्‍स कॉनक्‍लेव में प्रधानमंत्री के उदघाटन संबोधन का मूल पाठ

दिल्‍ली इकोनॉमिक्‍स कॉनक्‍लेव में प्रधानमंत्री के उदघाटन संबोधन का मूल पाठ


सरकार में मेरे सहयोगियों,

मित्रों और भारत और विदेश के विशिष्ट अतिथियों,

मैं छठे दिल्ली इकोनॉमिक्‍स कॉनक्‍लेव को संबोधित करने के लिए आज यहां उपस्थित होकर खुश हूं। यह भारत और विदेश के अर्थशास्त्रियों, नीति-निर्माताओँ, विचारकों को एक साथ लाने का अच्छा मंच है। मैं वित्त मंत्रालय को इसके आयोजन के लिए बधाई देता हूं।

यहां आपके विमर्श का विषय है जेएएम यानी जन धन योजना, आधार और मोबाइल। जेएएम की यह दृष्टि आने वाले दिनों में सरकार के कई और प्रयासों का आधार बनेगा। मेरे लिए जेएएम का मतलब है जस्ट एचिविंग मैक्सिमम।

-खर्च किए गए रुपये का अधिकतम मूल्य हासिल करना।

-हमारे गरीबों का अधिकतम सशक्तिकरण।

-आम जनता तक टेक्नोलॉजी की अधिकतम पहुंच।

लेकिन अपनी बात रखने से पहले मैं भारतीय अर्थव्यवस्था पर सरसरी नजर डालना चाहूंगा। हर बड़े संकेतक के हिसाब से भारतीय अर्थव्यवस्था अच्छा प्रदर्शन कर रही है। 17 महीने पहले सरकार का कार्यभार संभालने के वक्त से तुलना करें तो यह काफी अच्छा प्रदर्शन है।

-जीडीपी बढ़ी है और महंगाई कम हुई है।

-विदेशी निवेश बढ़ा है और चालू खाते का घाटा कम हुआ है।

-राजस्व बढ़ा है और ब्याज दरें कम हुई हैं।

-राजकोषीय घाटा कम हुआ है और रुपये के मूल्य में स्थिरता आई है।

जाहिर है यह सब संयोगवश नहीं हुआ है। आप जानते ही हैं कि वैश्विक अर्थव्यवस्था का हाल भी अच्छा नहीं है। ऐसे में यह सफलता हमारी दूरदर्शी सोच का नतीजा है। हमने मैक्रो अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर जो सुधार किए हैं उससे आप भलि-भांति परिचित होंगे। हमने राजकोषीय प्रबंधन की मजबूती की दिशा में कदम बढ़ाए हैं। महंगाई कम करने के लिए पहली बार हमने रिजर्व बैंक के साथ मौद्रिक फ्रेमवर्क समझौता किया है। यहां तक कि राजकोषीय घाटे को घटाते हुए भी हमने काफी हद तक उत्पादक सार्वजनिक निवेश को बढ़ाया है। यह दो तरीके से संभव हुआ। पहला तो यह कि हमने जीवाश्म ईंधन पर कार्बन टैक्स लगाया। हमने डीजल कीमतों से नियंत्रण हटाने का साहसिक कदम उठाया और इस तरह ऊर्जा सब्सिडी को खत्म कर दिया। कोयले पर उप कर (सेस) को बढ़ा कर 50 रुपये प्रति टन से 200 रुपये प्रति टन कर दिया गया। दुनिया भर में कार्बन टैक्स पर बड़ी-बड़ी बातें होती हैं। लेकिन इस पर काम नहीं होता सिर्फ बातें ही रह जाती हैं। हमने इस पर काम किया है। दूसरा, हमने प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल जैसे अभिनव तरीके से बरबाद होने वाले खर्चे को बचाया है। इनमें से कुछ तरीके आपके एजेंडे में हैं, जैसे सब्सिडी के योग्य लोगों तक इसे पहुंचाने के लिए आधार का इस्तेमाल। कुछ और भी सुधार हैं, जिनके बारे में आप जानते हैं। लेकिन आम तौर लोग मानते हैं कि हमारे सुधार ज्यादा व्यापक, ज्यादा गहरे हैं।

मैं इनके बारे में विस्तार से बताऊं इससे पहले पहले मैं यहां दो मुद्दों का जिक्र करना चाहूंगा। पहला यह कि सुधार किसलिए और सुधार के लक्ष्य क्या हों, क्या यह सिर्फ जीडीपी बढ़ाने के लिए किए जाएं। या फिर ये समाज में परिवर्तन लाने के लिए हों। मेरा जवाब साफ है। वी मस्ट रीफॉर्म टू ट्रांसफॉर्म। यानी हमें परिवर्तन के लिए सुधार करना होगा।

दूसरा सवाल यह है कि आखिर सुधार किसके लिए किए जाएं। सुधार किन लोगों के लिए हो। क्या हमारा उद्देश्य विशेषज्ञों के समूह को प्रभावित करने और बौद्धिक विमर्श में बढ़त बनाने के लिए हो। या फिर इसका उद्देश्य कुछ अंतरराष्ट्रीय लीगों में कुछ हासिल करने के लिए हो। इस बारे में भी मेरा जवाब स्पष्ट है। सुधार वहीं हैं जो सभी नागरिकों की मदद करें खास कर गरीबों की। गरीबों को अच्छी जिंदगी हासिल करने में मदद के लिए सुधार हों। यानी सबका साथ, सबका विकास।

संक्षेप में कहें तो सुधार अपने आप में कोई आखिरी मंजिल नहीं है बल्कि यह यहां तक पहुंचने के लंबे सफर में यह एक पड़ाव की तरह है। और यह मंजिल है भारत में परिवर्तन लाना। इसलिए मैंने कहा रिफॉर्म टु ट्रांसफॉर्म। इसलिए परिवर्तन के लिए सुधार छोटी तेज दौड़ नहीं बल्कि मैराथन है।

हमने जिन सुधारों की दिशा में कदम बढ़ाया है, वे कई तरह के हैं। सरल शब्‍दों में, मैं इन्‍हें वित्‍तीय, ढांचागत और संस्‍थागत सुधारों के रूप में वर्गीकृत करूंगा। मेरे लिए यहां पर इन सभी सुधारों को कवर करना संभव नहीं है। लेकिन मैं निश्चित तौर पर कुछ सर्वाधिक महत्‍वपूर्ण सुधारों का उल्‍लेख करूंगा।

मैं इसकी शुरुआत वित्‍तीय सुधारों से करता हूं। हम अक्‍सर ब्‍याज दरों और ऋण नीति की चर्चा करते हैं। ब्‍याज दरों में बदलाव पर कई महीनों तक बहस होती है। कई टन न्‍यूजप्रिंट और टेलीविजन के कई घंटे इस पर जाया हो जाते हैं। नि:संदेह ब्‍याज दरें अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण हैं, लेकिन क्‍या ब्‍याज दरें उन लोगों के लिए महत्‍वपूर्ण हैं, जो बैंकिंग प्रणाली से बाहर हैं ? क्‍या ब्‍याज दरें उस व्‍यक्ति के लिए महत्‍वपूर्ण हैं, जिसे किसी बैंक से कभी भी उधार या कर्ज मिलने की कोई संभावना नहीं है। यही कारण है कि विकास से जुड़े विशेषज्ञ वित्‍तीय समावेश की वकालत करते रहे हैं। पिछले 17 महीनों में हमारी उपलब्धि यह रही है कि इस दौरान 190 मिलियन लोगों को बैंकिंग प्रणाली के दायरे में लाया गया है। यह संख्‍या दुनिया के ज्‍यादातर देशों की आबादी से कहीं अधिक है। वर्तमान में ये करोडों लोग हमारी बैंकिंग प्रणाली का हिस्‍सा हैं और ब्‍याज दर जैसे शब्‍द अब उनके लिए मायने रखते हैं। न केवल इन लोगों को बैंकिंग प्रणाली के दायरे में लाया गया है, बल्कि उन्‍होंने यह दर्शा दिया है कि पिरामिड की तलहटी में बड़ी ताकत है। आप मानें या ना मानें, जन धन योजना के तहत खोले गए खातों में आज कुल बैलेंस तकरीबन 26,000 करोड़ रुपये या लगभग चार अरब डॉलर है। इससे साफ जाहिर है कि वित्‍तीय समावेश को लेकर हमारा सुधार बड़ा बदलाव लाने में कामयाब रहा है। हालांकि, इसके बावजूद इस मौन क्रांति की तरफ शायद ही किसी का ध्‍यान गया हो।

एक अन्‍य अहम बदलाव के तहत जन धन योजना ने इलेक्‍ट्रॉनिक भुगतान करने और पाने के मामले में भी गरीबों को सशक्‍त बनाया है। हर जन धन खाताधारक एक डेबिट कार्ड पाने का हकदार है। भारतीय बैंकों को ‘मोबाइल एटीएम’ के संचालन के लिए भी प्रोत्‍साहित किया जा रहा है। मोबाइल एटीएम वह होता है, जिसमें हाथ में रखे गए एक उपकरण के जरिए नकदी की निकासी की जा सकती है और सामान्‍य बैंकिंग कार्य पूरे किये जा सकते हैं। यही नहीं, जन धन योजना और रुपे डेबिट कार्ड की बदौलत हमने डेबिट और क्रेडिट कार्ड के बीच स्‍वस्‍थ प्रतिस्‍पर्धा भी सुनिश्चित कर दी है। इसमें परम्‍परागत रूप से महज कुछ अंतर्राष्‍ट्रीय खिलाडि़यों का वर्चस्‍व रहा है। यहां तक कि एक साल पहले तक बाजार में शायद ही कोई स्‍वदेशी कार्ड ब्रांड था। आज भारत में 36 फीसदी डेबिट कार्ड असल में रुपे कार्ड ही हैं।

वित्‍तीय समावेश केवल बैंक खाते खोलने अथवा इलेक्‍ट्रॉनिक भुगतान करने में सक्षम बनाने तक ही सीमित नहीं है। मेरा यह पक्‍का विश्‍वास है कि भारत में जबर्दस्‍त उद्यमशीलता है। इसका दोहन करने की जरूरत है, ताकि भारत रोजगार चाहने वालों के बजाय रोजगार सृजित करने वालों के राष्‍ट्र के रूप में तब्‍दील हो सके। जब हमने कार्यभार संभाला था, तब हमने यह पाया था कि 58 मिलियन गैर-कॉरपोरेट उद्यम 128 मिलियन रोजगार मुहैया करा रहे थे। इनमें से 60 फीसदी ग्रामीण क्षेत्रों में थे। इनमें से 40 फीसदी से भी ज्‍यादा पर पिछड़े वर्गों से ताल्‍लुकात रखने वाले लोगों का और 15 फीसदी पर अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों से जुड़े लोगों का स्‍वामित्‍व था। लेकिन उनके वित्‍त पोषण में बैंक कर्ज की हिस्‍सेदारी बेहद मामूली थी। इनमें से ज्‍यादातर को कभी भी किसी बैंक से कोई कर्ज नहीं मिला था। दूसरे शब्‍दों में, अर्थव्‍यवस्‍था के उस सेक्‍टर को सबसे कम कर्ज मिला, जो सर्वाधिक रोजगार मुहैया कराता था! जहां एक ओर जन धन योजना का उद्देश्‍य बैंकिंग सुविधाओं से वंचित लोगों को बैंकिंग दायरे में लाना रहा है, वहीं दूसरे सुधार का उद्देश्‍य ऋण की सुविधा से वंचित लोगों को कर्ज मुहैया कराना रहा है। हम माइक्रो-इकाई विकास एवं पुनर्वित्त एजेंसी योजना, जो ‘मुद्रा’ के नाम से जानी जाती है, के तहत एक नई वित्‍तीय एवं नियामक व्‍यवस्‍था सृजित कर रहे हैं। प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत बैंक छोटे कारोबारियों को छह मिलियन से भी ज्‍यादा कर्ज मुहैया करा चुके हैं, जिनकी राशि कुल मिलाकर लगभग 38000 करोड रुपये अथवा छह अरब डॉलर बैठती है। अगर यह मान कर चला जाए कि हर कर्ज दो रोजगार सृजित करता है, तो उस हिसाब से हमने 12 मिलियन नये रोजगारों की नींव रखी है। यहां तक कि कॉरपोरेट सेक्‍टर में 200 हजार करोड़ रुपये का निवेश होने पर भी इतनी संख्‍या में रोजगार सृजित नहीं होंगे। हमने अब एक कार्यक्रम शुरू किया है, जिसके तहत हर बैंक की एक शाखा अर्थात 125,000 शाखाएं अपना व्‍यवसाय शुरू करने में एक दलित अथवा अनुसूचित जनजाति के एक व्‍यक्ति और एक महिला की मदद की मदद करेगी। हम एक ऐसा माहौल भी बनाने में जुटे हुए हैं, जो अटल नवाचार मिशन और स्‍व रोजगार एवं प्रतिभा उपयोग कार्यक्रम के जरिए नवाचार एवं स्‍टार्ट-अप्‍स को बढ़ावा देगा।

एक अन्‍य वित्‍तीय सुधार के अंतर्गत नई सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के माध्‍यम से सुरक्षा सुलभ कराने का प्रावधान किया गया है। हमने बगैर सब्सिडी वाली तीन किफायती योजनाएं शुरू की हैं, जिनमें दुर्घटना बीमा, जीवन बीमा और पेंशन को कवर किया गया है। इनके तहत व्‍यापक कवरेज को ध्‍यान में रखते हुए प्रीमियम को काफी कम रखा गया है। अब 120 मिलियन से भी ज्‍यादा सदस्‍य हो गए हैं।

इनमें से ज्‍यादातर सुधारों को कामयाब बनाने के लिए हमें एक सुदृढ़ बैंकिंग प्रणाली की जरूरत है। हमें एक ऐसी प्रणाली विरासत में मिली थी, जिसमें संभवत: भाई-भतीजावाद और भ्रष्‍टाचार बैंकिंग निर्णयों एवं सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में होने वाली नियुक्तियों पर हावी था। बैंकरों के साथ प्रधानमंत्री की हुई अब तक की प्रथम परिचर्चा, जिसे ‘ज्ञान संगम’ के नाम से जाना जाता है, के बाद हमने इस तरह की प्रवृत्ति में बदलाव के लिए ठोस कदम उठाए हैं। दक्षता बढ़ाने के लिए अनेक बड़े कदम उठाए गए हैं, जिनमें प्रदर्शन से संबंधित स्‍पष्‍ट उपाय और जवाबदेही से जुड़ी व्‍यवस्‍था भी शामिल है। हमने पर्याप्‍त पूंजी सुनिश्चित करने की प्रतिबद्धता व्‍यक्‍त की है।

लेकिन गैर-वित्‍तीय कदम इससे भी कहीं ज्‍यादा कारगर साबित हुए हैं। बैंकिंग निर्णयों में हस्‍तक्षेप समाप्‍त हो गया है। बैंक बोर्ड ब्‍यूरो के तहत नियुक्तियों के लिए एक नई प्रक्रिया कायम की जा रही है। विश्‍वसनीय एवं सक्षम बैंकरों को विभिन्‍न बैंकों का प्रमुख नियुक्‍त किया गया है। 46 साल पहले बैंकों के राष्‍ट्रीयकरण के बाद पहली बार निजी क्षेत्र के प्रोफेशनलों को प्रमुख पदों पर नियुक्‍त किया गया है। यह एक प्रमुख सुधार है।

अब समूचे इको-सिस्‍टम का फोकस गरीबी उन्‍मूलन पर है। संभवत: इसे ‘गरीबी उन्‍मूलन उद्योग’ कहा जा सकता है। निश्चित तौर पर इरादे अच्‍छे हैं। पूरी तरह सोच-समझकर तैयार की गई योजनाओं और सब्सिडी की निश्चित तौर पर खास अहमियत है। लेकिन गरीबी उन्‍मूलन उद्योग के सशक्तिकरण के बजाय गरीबों का सशक्तिकरण कहीं ज्‍यादा कारगर साबित होगा। हमारे वित्‍तीय सुधार खुद गरीबों को गरीबी के खिलाफ जंग लड़ने की ताकत देते हैं। मैं एक घर का उदाहरण देना चाहूंगा। कुल लागत का कुछ हिस्‍सा इसकी नींव और बुनियादी ढांचे पर खर्च हो जाता है। इसके बाद फिक्‍स्‍चर, फिटिंग और फर्नीचर पर होने वाले खर्चों का नम्‍बर आता है। अगर नींव और ढांचा कमजोर होगा, तो बढि़या फिटिंग अथवा आकर्षक फ्लोर टाइलों या खूबसूरत पर्दों पर किया गया निवेश संभवत: टिकाऊ साबित नहीं होगा। अत:, वित्‍तीय समावेश और सामाजिक सुरक्षा के जरिए गरीबों का सशक्तिकरण कहीं ज्‍यादा स्थिर एवं टिकाऊ समाधान साबित होगा।

अब में विभिन्‍न क्षेत्रों में किये गये ढांचागत सुधारों का उल्‍लेख करता हूं।

आजीविका मुहैया कराने के लिहाज से कृषि अब भी भारत का मुख्‍य आधार है। हमने अनेक सुधार लागू किये हैं। पहले उर्वरक सब्सिडी को उसी मद में देने के बजाय रसायन उत्‍पादन में लगाने की प्रवृत्ति देखी जाती थी। एक सरल, किंतु अत्‍यंत कारगर हल नीम कोटेड उर्वरक है, जो डाइवर्जन के लिहाज से अनुपयुक्‍त है। इससे पहले इसे छोटे स्‍तर पर शुरू किया गया था। हम अब यूरिया की सार्वभौमिक नीम-कोटिंग की तरफ अग्रसर हैं। इसकी बदौलत अन्‍यत्र दी जानी वाली कृषि सब्सिडी के करोड़ों रुपये पहले ही बचाए जा चुके हैं। यह इस बात का एक अनोखा उदाहरण है कि किस तरह साधारण सुधार भी अत्‍यंत कारगर साबित हो सकते हैं।

हमने राष्‍ट्रीय स्‍तर पर मृदा सेहत कार्ड लांच किया है, जिससे हर किसान को अपनी जमीन की मिट्टी की सेहत के बारे में आवश्‍यक जानकारी मिलती है। इससे किसान को कच्‍चे माल की सही मात्रा एवं उनके मिश्रण का चयन करने में मदद मिलती है। इससे कच्‍चे माल की बर्बादी काफी हद तक कम हो जाती है और फसल की पैदावार बढ़ती है। इसके अलावा मिट्टी का संरक्षण भी होता है। अनावश्‍यक रासायनिक कच्‍चे माल का उपयोग कम किया जाना उपभोक्‍ताओं की सेहत के लिहाज से भी अच्‍छा है। यही नहीं, इससे किसानों को अपनी जमीन के लिए सर्वोत्‍तम फसल का चयन करने में भी मदद मिलती है। अनेक किसान इस तथ्‍य से अनभिज्ञ हैं कि उनकी भूमि वास्‍तव में किसी दूसरी फसल के लिए कहीं ज्‍यादा उपयुक्‍त है। आर्थिक लिहाज से यह सभी के लिए फायदे की बात है। इससे लागत घटती है, पैदावार बढ़ती है, पर्यावरण बेहतर होता है और उपभोक्‍ताओं की सेहत का संरक्षण होता है। 140 मिलियन मृदा सेहत कार्ड जारी किये जाएंगे, जिसके लिए 25 मिलियन से भी ज्‍यादा मिट्टी नमूनों के संग्रह की जरूरत पड़ेगी तकरीबन 1500 प्रयोगशालाओं के राष्‍ट्रव्‍यापी नेटवर्क के जरिए इन नमूनों का परीक्षण किया जाएगा। तकरीबन चार मिलियन नमूनों का संग्रह पहले ही हो चुका है। यह भी व्‍यापक बदलाव लाने वाला एक सुधार है।

हमने ‘सब के लिए आवास’ कार्यक्रम भी शुरू किया है, जो विश्‍वभर में एक अत्‍यंत महत्‍वाकांक्षी कार्यक्रम है। इसके तहत 20 मिलियन शहरी मकान और 30 मिलियन ग्रामीण मकान बनाए जाएंगे। इस तरह तकरीबन 50 मिलियन मकान बनाए जाएंगे। इस कार्यक्रम के तहत यह सुनिश्चित किया जाएगा कि कोई भी भारतीय बेघर न रहे। इससे मुख्‍यत अकुशल, अर्धकुशल और गरीबों के लिए बड़ी संख्‍या में रोजगार सृजित होंगे। यह बहुआयामी कार्यक्रम भी असल में व्‍यापक बदलाव लाने वाला सुधार है।

भारत के श्रम बाजारों के बारे में बहुत कुछ कहा और लिखा गया है। हम पहले ही कुछ महत्‍वपूर्ण कदम उठा चुके हैं। रोजगार बदलने के समय भविष्‍य निधि और अन्‍य लाभ पाने में असमर्थ रहने के चलते संगठित क्षेत्र के अनेकानेक कर्मचारियों को परेशानियों का सामना करना पड़ा है। किसी एक नियोक्‍ता के तहत मिलने वाले लाभ को दूसरे नियोक्‍ता के यहां स्‍थानांतरित करना काफी कठिन होता है। हमने एक सार्वभौ‍मिक खाता संख्‍या शुरू की है, जो रोजगार बदलने के वक्‍त भी संबंधित कर्मचारी के पास बरकरार रहेगी। इससे कर्मचारियों को नौकरी बदलने में आसानी होगी और नियोक्‍ताओं तथा कर्मचारियों दोनों को सहूलियत होगी।

हमने इससे भी आगे बढ़कर एक कदम उठाया है। हमने असंगठित क्षेत्र के कर्मचारियों को सार्वभौमिक पहचान संख्‍या देकर और उनके लिए कुछ विशेष न्‍यूनतम सामाजिक सुरक्षा लाभ सुनिश्चित कर उन्‍हें सशक्‍त बनाया है। आने वाले वर्षों में भारत में रोजगारों की गुणवत्‍ता पर निश्चित रूप से इसका व्‍यापक असर देने को मिलेगा।

प्रधानमंत्री बनने से पहले मुझे अनेक आर्थिक विशेषज्ञों की ओर से भारत में आवश्‍यक सुधारों के बारे में अनेक सुझाव प्राप्‍त हुए थे। हालांकि, इनमें से किसी भी सुझाव में स्‍वच्‍छता एवं साफ-सफाई के मसले का जिक्र नहीं था। स्‍वास्‍थ्‍य और पेयजल आपूर्ति के साथ-साथ साफ-सफाई की भी वर्षों से अनदेखी होती रही है। इसे अक्‍सर बजट और परियोजनाओं एवं व्यय के एक सवाल के रूप में देखा गया है। हालांकि, इसके बावजूद आप सभी इस बात से अवश्‍य सहमत होंगे कि कमजोर साफ-सफाई और स्‍वच्‍छता का अभाव स्‍वास्‍थ्‍य से जुड़ा एक बड़ा मुद्दा है। इससे हमारे अच्‍छे स्‍वास्‍थ्‍य का हर पहलू प्रभावित होता है। खासकर महिलाओं के लिए इसकी ज्‍यादा अहमियत है। हमारा स्‍वच्‍छ भारत अभियान न केवल स्‍वास्‍थ्‍य एवं साफ-सफाई पर असर डालेगा, बल्कि महिलाओं की स्थिति और सुरक्षा में भी बेहतरी सुनिश्चित करेगा। इससे भी बड़ी बात यह है कि स्‍वच्‍छ भारत अभियान से अच्‍छे स्‍वास्‍थ्‍य को लेकर जन जागरूकता बढ़ेगी। अगर यह सुधार कामयाब साबित होता है, तो मुझे पक्‍का विश्‍वास है कि इससे भारत में जबर्दस्‍त बदलाव देखने को मिलेगा।

हमने परिवहन के क्षेत्र में व्‍यापक प्रबंधकीय सुधार किेये हैं। वैश्विक स्‍तर पर कुल व्‍यापार में कमी दर्ज होने के बावजूद वर्ष 2014-15 में हमारे प्रमुख बंदरगाहों के कुल यातायात में पांच फीसदी और परिचालन आय में 11 फीसदी बढ़ोतरी दर्ज की गई है। भारतीय जहाजरानी निगम पिछले कई वर्षों से लगातार घाटा उठा रहा था और वर्ष 2013-14 में निगम को 275 करोड़ रुपये का घाटा हुआ था। वर्ष 2014-15 में निगम ने 201 करोड़ रुपये का मुनाफा कमाया। यह महज एक वर्ष में तकरीबन 500 करोड़ रुपये का व्‍यापक सुधार दर्शाता है। राजमार्गों से जुड़े नये कार्यों के ठेके देने की गति भी वर्ष 2012-13 के 5.2 किमी प्रति दिन और वर्ष 2013-14 के 8.7 किमी प्रति दिन से बढ़कर अब 23.4 किमी प्रति दिन हो गई है। सार्वजनिक क्षेत्र के कामकाज में इस तरह के प्रबंधकीय सुधारों का समूची अर्थव्‍यवस्‍था में कई गुना असर देखने को मिलेगा।

एक अन्‍य उपाय हमने ‘मृत पैसे’ की पहचान करने और उसके उत्‍पादक उपयोग के रूप में किया है। इसका सर्वोत्‍तम उदाहरण सोना है। भारत सोने के प्रति देशवासियों के सांस्‍कृतिक लगाव के लिए जाना जाता है। अर्थशास्त्रियों के रूप में आप यह संभवत: भली-भांति समझ रहे होंगे कि इस तथाकथित सांस्‍कृतिक लगाव का एक मजबूत आर्थिक लॉजिक है। भारत में आमतौर पर उच्‍च महंगाई देखी जाती रही है। महंगाई की मार से बचाने में सोने को काफी सहायक माना जाता रहा है और इसमें परिवर्तनीय ऊंची कीमत भी निहित रहती है। इसकी परिवर्तनीयता एवं उपयोगिता भी महिलाओं के सशक्तिकरण का एक स्रोत है, जो परम्‍परागत रूप से गहनों की मुख्‍य मालकिन होती हैं। हालांकि, यह सूक्ष्‍म आर्थिक गुण एक बड़े आर्थिक अवगुण में तब्‍दील हो सकता है। यहां पर आशय भारी-भरकम सोना आयात से है। हमने हाल ही में स्‍वर्ण संबंधी अनेक योजनाएं शुरू की हैं। इससे सोने को वास्‍तव में अपने पास रखे बगैर ही देशवासियों को स्‍वर्ण के महंगाई संबंधी संरक्षण के साथ-साथ सामान्‍य ब्‍याज भी मिलेगा। यदि यह योजना अपने उद्देश्‍य में सफल होती है, तो इससे आयात को कम करने के साथ-साथ आम जनता की तर्कसंगत अपेक्षाओं को पूरा करने में भी मदद मिलेगी। निश्चित रूप से यह भी एक महत्‍वपूर्ण सुधार है, जिसमें जबर्दस्‍त बदलाव लाने की क्षमता है।

अब मैं संस्‍थागत एवं शासन संबंधी सुधारों का उल्‍लेख करता हूं।

वर्षों से योजना आयोग की काफी आलोचना होती रही थी। इसे आम तौर पर एक कष्‍टकर केन्‍द्रीकृत शक्ति के रूप में देखा जाता रहा था, जो राज्‍यों पर केन्‍द्र की इच्‍छा को थोपती थी। यह अलग बात है कि इसके कुछ बड़े आलोचकों का अचानक ही इस संस्‍था के प्रति प्रशंसा बोध काफी बढ़ गया था, जबकि पहले वे इससे घृणा करते थे। सत्‍ता में आने के बाद हमने एक नया संस्‍थान बनाया, जो नेशनल इंस्‍टीट्यूशन फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया यानी नीति के नाम से जाना जाता है। नीति का मेरा विजन योजना आयोग से काफी हटकर है। यह विचारों एवं कार्रवाई का एक सहयोगात्‍मक मंच है, जहां राज्‍य पूर्ण भागीदार हैं और जहां केन्‍द्र एवं राज्‍य सहकारी संघीयवाद की भावना से एकजुट होते हैं। संभवत: कुछ लोगों ने सोचा था कि यह महज एक नारा है। लेकिन हमारे पास इसकी रूपांतरकारी शक्ति के ठोस उदाहरण हैं। अब मैं इसकी व्‍याख्‍या करता हूं।

जैसा कि आप सभी जानते हैं कि 14वें वित्‍त आयोग ने यह सिफारिश की थी कि राज्‍यों को स्‍वत: हस्‍तांतरण के रूप में केन्‍द्रीय राजस्‍व में और ज्‍यादा हिस्‍सा दिया जाना चाहिए। इसके विपरीत कुछ आंतरिक सलाह मिलने के बावजूद मैंने इस सिफारिश को स्‍वीकार करने का निर्णय लिया। इससे केन्‍द्र प्रायोजित योजनाओं के पुनर्गठन की जरूरत महसूस की जा रही है। वर्ष 1952 में प्रथम पंचवर्षीय योजना के बाद से ही केन्‍द्र द्वारा एकतरफा ढंग से इस तरह के निर्णय लिये जाते रहे थे। हमने कुछ अलग हटकर काम किया। केन्‍द्रीय योजनाओं में हिस्‍सेदारी का पैटर्न तय करने का जिम्‍मा केन्‍द्रीय मंत्रियों के एक समूह के बजाय ‘नीति’ में मुख्‍यमंत्रियों के एक उप-समूह को सौंपा गया। और मुझे यह कहते हुए अत्‍यंत हर्ष हो रहा है कि सहकारिता संघीय व्‍यवस्‍था का उत्‍कृष्‍ट उदाहरण पेश करते हुए मुख्‍यमंत्रियों ने सिफारिशों की एक सूची पर सर्वसम्‍मति से हामी भरी है। एक खास बात यह है कि इस मसले के काफी जटिल होने और विभिन्‍न राजनीतिक दलों से ताल्‍लुकात रखने के बावजूद इन मुख्‍यमंत्रियों की सर्वसम्‍मति संभव हो पाई। उनकी रिपोर्ट मुझे 27 अक्‍टूबर को प्राप्‍त हुई। हिस्‍सेदारी के पैटर्न पर मुख्‍य सिफारिश को उसी दिन स्‍वीकार कर लिया गया और लिखित निर्देश ठीक अगले दिन ही जारी कर दिए गए। कई अन्‍य मसलों पर भी ये मुख्‍यमंत्री राष्‍ट्रीय एजेंडा तय करने में अगुवाई कर रहे हैं। संस्‍थान में सुधार सुनिश्चित कर हमने रिश्‍तों में भी बदलाव ला दिया है।

‘मेक इन इंडिया’ और ‘व्‍यवसाय करने में सुगमता’ को लेकर हमारे कार्य नि:संदेह जगजाहिर हैं। ‘मेक इन इंडिया’ पर हमारे विशेष जोर को विश्‍व व्‍यापार की धीमी वृद्धि दर के रूप में देखा जाना चाहिए। व्‍यापार की वृद्धि दर वर्ष 1983 से लेकर वर्ष 2008 के बीच जीडीपी वृद्धि दर से आगे निकल गई। हालांकि, उसके बाद से ही जीडीपी के मुकाबले व्‍यापार धीमी गति से वृद्धि दर्शा रहा है। अत: घरेलू खपत के लिए उत्‍पादन विकास के लिहाज से महत्‍वपूर्ण है।

आप सभी संभवत: इस बात से वाकिफ होंगे कि विश्‍व बैंक के ‘डूइंग बिजनेस सर्वेक्षण’ में भारत की रैंकिंग अब काफी सुधर गई है। लेकिन राज्‍यों के बीच अत्‍यंत स्‍वस्‍थ एवं रचनात्‍मक प्रतिस्‍पर्धा एक नई खास बात है। आपको यह जानकर आश्‍चर्य होगा कि कुछ शीर्ष राज्‍यों में झारखंड, छत्‍तीसगढ़ और ओडिशा भी शामिल हैं। यह रचनात्‍मक प्रतिस्‍पर्धी संघीय व्‍यवस्‍था का एक नायाब उदाहरण है।

65 वर्षों से भी ज्‍यादा की परम्‍परा को तोड़ते हुए हमने यहां तक कि विदेश नीति में भी राज्‍यों को शामिल किया है। विदेश मंत्रालय से कहा गया है कि वह राज्‍यों के साथ मिलकर काम करे। जब मैं चीन के दौरे पर गया था, तो ‘राज्‍य से राज्‍य के बीच शिखर सम्‍मेलन’ भी आयोजित किया गया था। राज्‍यों से निर्यात संवर्धन परिषदों का गठन करने को कहा गया है। राज्‍यों की सोच को वैश्विक बनाना भी एक और अहम सुधार है, जिसमें व्‍यापक बदलाव लाने की क्षमता है।

मुझे पक्‍का विश्‍वास है कि भारत की जनता बहुत ज्‍यादा परिपक्‍व है और कुर्सी पर बैठे-बैठे आलोचना करने की बजाय सार्वजनिक तौर पर बेहद उत्‍साहित है और विशेषज्ञ इसका श्रेय उन्‍हें ही देते हैं। गवर्नेंस से जुड़ा एक महत्‍वपूर्ण मसला नागरिकों और सरकार के बीच पारस्‍परिक विश्‍वास का है। हमने हस्‍ताक्षरों के ‘प्रमाणीकरण’ की अनेक जरूरतों को समाप्‍त करते हुए नागरिकों पर विश्‍वास कर इस दिशा में शुरुआत की। उदाहरण के लिए उच्‍च शिक्षा विभाग ने विभिन्‍न शैक्षणिक पाठयक्रमों में प्रवेश के लिए आवश्‍यक दस्‍तावेजों के स्‍व-प्रमाणीकरण की इजाजत विद्यार्थियों को दे दी है। हमने ऑनलाइन बायोमीट्रिक पहचान की शुरुआत कर पेंशनभोगियों के लिए जीवन प्रमाण पत्र हेतु सरकारी कार्यालय जाने की अनिवार्यता खत्‍म कर दी है। अर्थशास्त्रियों का परम्‍परागत रूप से यह मानना रहा है कि लोग स्‍वहित को देखते हुए ही काम करते हैं। लेकिन भारत में स्‍वैच्छिक भावना की लंबी परम्‍परा रही है। हमने रसोई गैस सब्सिडी को स्‍वेच्‍छा से छोड़ने में जन सहयोग के लिए ‘गिव-इट-अप अभियान’ शुरू किया। हमने उनसे वायदा किया कि छोड़े जाने वाला हर कनेक्‍शन उस गरीब परिवार को दिया जाएगा, जिसके पास फिलहाल गैस की सुविधा नहीं है। इससे हमें जलावन लकड़ी का इस्‍तेमाल करने वाली अनेक गरीब महिलाओं को स्‍वास्‍थ्‍य संबंधी खतरे के साथ-साथ सांस की बीमारी से बचाने में मदद मिलेगी। इसे जबर्दस्‍त समर्थन प्राप्‍त हुआ। कुछ ही महीनों के भीतर 4 मिलियन से भी ज्‍यादा भारतीयों ने अपनी रसोई गैस सब्सिडी छोड़ दी है। इनमें से ज्‍यादातर अमीर परिवार नहीं हैं और वे निम्‍न मध्‍यम वर्ग से ताल्‍लुकात रखते हैं। यदि इस कमरे में उपस्थित किसी भी व्‍यक्ति के पास सब्सिडी वाला कनेक्‍शन है, तो मैं उनसे सब्सिडी छोड़ने वाले लोगों में शुमार होने के लिए कहूंगा।

यह मेरे लिए एक उपलब्धि है कि जो मैं सोचता हूं, उसे हमारे कटु आलोचक भी असहमत नहीं हो पाते हैं। यह भ्रष्‍टाचार के स्‍तर में परिवर्तन को दर्शाता है। पिछले कई वर्षों से अर्थशास्‍त्रीगण एवं अन्‍य विशेषज्ञ किसी भी विकासशील अर्थव्‍यवस्‍था की प्रगति में भ्रष्‍टाचार को एक प्रमुख बाधा मानते रहे हैं। हमने भ्रष्‍टाचार पर अंकुश लगाने के लिए अनेक निर्णायक कदम उठाए हैं। मैं पहले ही इस बात का जिक्र कर चुका हूं कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में क्‍या तब्‍दीली लाई गई है। एक अन्‍य प्रमुख सुधार जग जाहिर है। इस सुधार का वास्‍ता महत्‍वपूर्ण संसाधनों के आवंटन में मनमानी की समाप्ति से है। कोयला, स्‍पेक्‍ट्रम और एफएम रेडियो की नीलामी से बड़ी मात्रा में अतिरिक्‍त राजस्‍व प्राप्‍त हुआ है। कोयले के मामले में मुख्‍य लाभार्थी भारत के कुछ निर्धनतम राज्‍य रहे हैं, जिनके पास अब विकास के लिए और ज्‍यादा संसाधन होंगे। कनिष्‍ठ स्‍तर के सरकारी पदों के लिए होने वाले साक्षात्‍कार को आमतौर पर भ्रष्‍टाचार के एक साधन के रूप में देखा जाता रहा है। हमने हाल ही में सरकार में कनिष्‍ठ पदों के लिए साक्षात्‍कार प्रणाली को खत्‍म कर दिया है। हम पारदर्शी लिखित परीक्षा के परिणामों पर भरोसा करके ही यह तय करेंगे कि किसका चयन किया जाएगा। कर चोरी और मनी लांड्रिंग के खिलाफ हमारे अभियान से सभी वाकिफ हैं। नये काला धन अधिनियम के लागू होने से पहले 6500 करोड़ रुपये का आकलन किया गया। इसके अलावा नये अधिनियम के तहत 4000 करोड़ रुपये से भी ज्‍यादा की राशि घोषित की गई है। इस तरह विदेश से 10,500 करोड़ रुपये से भी ज्‍यादा के काले धन की पहचान और आकलन किया गया है। अगर हम ईमानदारी और पारदर्शिता में इस सुधार को बनाए रखते हैं, तो इससे बड़ा परिवर्तनकारी सुधार और कौन सा हो सकता है?

हम ईमानदार करदाताओं को बेहतर सेवा मुहैया कराने के लिए भी अनेक कदम उठा रहे हैं। अब समस्‍त कर रिटर्न में से 85 फीसदी रिटर्न की इलेक्‍ट्रॉनिक फाइलिंग होती है। इससे पहले इलेक्‍ट्रॉनिक रिटर्न के बाद एक पेपर वेरिफिकेशन की जरूरत पड़ती थी, जिसकी प्रोसेसिंग में कई हफ्ते लग जाया करते थे। इस साल हमने आधार का इस्‍तेमाल करते हुए ई-वेरिफिकेशन की शुरुआत की है और चार मिलियन से भी ज्‍यादा करदाताओं ने इस सुविधा का उपयोग किया है। उनके लिए यह समूची प्रक्रिया सरल व इलेक्‍ट्रॉनिक थी, जो तत्‍काल पूरी हो गई, क्‍योंकि इसके लिए किसी पेपर की जरूरत नहीं थी। इस साल 91 फीसदी इलेक्‍ट्रॉनिक रिटर्न की प्रोसेसिंग 90 दिनों के भीतर हो गई, जबकि पिछले साल यह आंकड़ा 46 फीसदी था। मैंने आयकर विभाग से ऐसी प्रणाली अपनाने को कहा है जिसमें न केवल रिटर्न भरने, बल्कि जांच-पड़ताल का काम भी कार्यालय जाए बगैर ही संपन्‍न हो जाए। सवाल-जवाब ऑनलाइन अथवा ई-मेल के जरिए किये जा सकते हैं। इसमें इलेक्‍ट्रॉनिक तरीके से यह जानने की व्‍यवस्‍था होनी चाहिए कि किसके पास क्‍या, कहां और कितने समय से लंबित है। इसे पांच बड़े शहरों में संचालित किया जा रहा है। मैंने यह भी निर्देश दिया है कि आयकर अधिकारियों से जुड़ी प्रदर्शन आकलन प्रणाली में फेरबदल किया जाए। आकलन में यह दर्शाया जाना चाहिए कि किसी अधिकारी के आदेश और आकलन को अपील के वक्‍त बरकरार रखा गया या नहीं। इससे भ्रष्‍टाचार पर अंकुश लगेगा और अधिकारीगण सही आदेश जारी करने के लिए प्रेरित होंगे। पूरी तरह से अमल में आने के बाद ये बदलाव जैसे कि ऑनलाइन जांच-पड़ताल और प्रदर्शन आकलन से जुड़े बदलाव आगे चलकर परिवर्तनकारी साबित हो सकते हैं।

यह एक प्रतिष्ठित सम्‍मेलन है। आपको अभी कई रोचक और विचारप्रेरक सत्रों में भाग लेना है। मैं आप सभी से यह अपील करता हूं कि आप परम्‍परागत उपायों से कुछ अलग हटकर सोचें। हमें सुधारों के अपने विचार को कुछ मानक धारणाओं तक ही सीमित नहीं रखना चाहिए। सुधारों का हमारा विचार समावेशी और वैविध्‍यपूर्ण होना चाहिए। सुधारों का लक्ष्‍य गुलाबी पेपरों में बेहतर शीर्षक नहीं है, बल्कि हमारी जनता की बेहतर जिंदगी सुनिश्चित करना है। मुझे पक्‍का विश्‍वास है कि आप अपने ज्ञान की बदौलत और भी अच्‍छे विचार सामने रखेंगे। मैं आपकी ओर से और ज्‍यादा परिवर्तनकारी सुधारों को पेश किये जाने की आशा करता हूं, जो पूरे भारत में लोगों के जीवन को बेहतर बनाएंगे। ऐसा होने पर न केवल भारत में हम, बल्कि पूरी दुनिया लाभान्वित होगी।

धन्‍यवाद।