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कोलंबो में आयोजित अंतरराष्‍ट्रीय वैशाख दिवस समारोह में प्रधानमंत्री का संबोधन

कोलंबो में आयोजित अंतरराष्‍ट्रीय वैशाख दिवस समारोह में प्रधानमंत्री का संबोधन

कोलंबो में आयोजित अंतरराष्‍ट्रीय वैशाख दिवस समारोह में प्रधानमंत्री का संबोधन

कोलंबो में आयोजित अंतरराष्‍ट्रीय वैशाख दिवस समारोह में प्रधानमंत्री का संबोधन


श्रीलंका के परम आदरणीय महा नायकोनथेरो

श्रीलंका के परम आदरणीय संघराजथाइरोस

प्रतिष्ठित धार्मिक एवं आध्‍यात्मिक नेताओं

श्रीलंका के माननीय राष्‍ट्रपति महामहिम मैत्रीपाल सिरीसेना

श्रीलंका के माननीय प्रधानमंत्री महामहिम रनिल विक्रमसिंघे

श्रीलंका के पार्लियामेंट के माननीय अध्‍यक्ष महामहिम कारू जयसूर्या

वैशाख दिवस के लिए अंतरराष्‍ट्रीय परिषद के अध्‍यक्ष परम आदरणीय डॉ. ब्राह्मण पंडित

सम्‍मानित प्रतिनिधिमंडल

मीडिया के मित्रों

महामहिम, देवियों एवं सज्‍जनों

नमस्‍कार, आयुबुवन।

वैशाख दिवस सबसे पवित्र दिन है।

यह मानवता के लिए भगवान बुद्ध, ‘तथागत’ के परिनिर्वाण, जन्‍म और प्रबोधन के प्रति आदर व्‍यक्त करने का दिन है। यह बुद्ध में आनंदित होने का दिन है। यह परम सत्‍य और चार महान सत्‍य एवं धम्‍म की कालातीत प्रासंगिकता को प्रतिबिंबित करने का दिन है।

यह दस पारमिता यानी पूर्णता- दान (उदारता), सील (शील), नेख्‍खम (नैष्‍क्रम्‍य यानी महान त्‍याग), पिन्‍या (प्रज्ञा यानी जानना), वीरि (वीर्य यानी भीतरी शक्ति), ख्‍न्‍ती (सहनशीलता), सच्‍च (सत्‍य), अदित्‍ठान (अधिष्‍ठान), मेत्ता (मैत्री) और उपेख्‍खा (उपेक्षा) – के बारे में चिंतन करने का दिन है।

यह आपके लिए यहां श्रीलंका में, भारत में हमारे लिए और दुनियाभर के बौद्धों के लिए काफी महत्‍व का दिन है। और मैं महामहिम राष्‍ट्रपति मैत्रीपाल सिरीसेना, महामहिम प्रधानमंत्री रनिल विक्रमसिंघे और श्रीलंका के लोगों का आभारी हूं कि उन्‍होंने मुझे कोलंबो में आयोजित इस वैशाख दिवस समारोह के मुख्‍य अतिथि के रूप में सम्‍मानित किया है। मैं इस शुभ अवसर पर सम्‍यकसमबुद्ध यानी जो पूरी तरह आत्‍म जागृत है, भूमि से 1.25 अरब लोगों की शुभकामनाएं भी अपने साथ लाया हूं।

महामहिम, और मित्रों,

हमारे क्षेत्र ने विश्‍व को बुद्ध एवं उनकी शिक्षओं का अमूल्‍य उपहार दिया है। भारत में बोध गया, जहां राजकुमर सिद्धार्थ बुद्ध बने थे, बौद्ध जगत का एक पवित्र केंद्र है। वाराणसी में भगवान बुद्ध के पहले उपदेश, जिसे संसद में प्रस्‍तुत करने का सम्‍मान मुझे मिला था, ने धम्‍म के चक्र को गति प्रदान किया। हमारे प्रमुख राष्‍ट्रीय प्रतीकों ने बौद्ध धर्म से प्रेरणा ली है। बौद्ध धर्म और इसकी शिक्षाओं से हमारा शासन, दर्शन एवं हमारी संस्‍कृति ओतप्रोत है। बौद्ध धर्म का दैवीय सुगंध भारत से निकलकर दुनिया के सभी कोनों में फैल गया। सम्राट अशोक के सुयोग्‍य पुत्र महिंद्र और संघमित्र ने सबसे बड़ा उपहार धम्‍म को फैलाने के लिए धम्‍म दूत के रूप में भारत से श्रीलंका की यात्रा की थी।

और बुद्ध ने स्‍वयं कहा था: सब्‍ब्‍दानामाधम्‍मादानं जनाती यानी धम्‍म का उपहार सबसे बड़ा उपहार है। श्रीलंका आज बौद्ध शिक्षा एवं प्रज्ञता के सबसे महत्‍वपूर्ण केंद्रों में शामिल होकर गौरवान्वित है। सदियों बाद अनगरिका धर्मपाल ने भी इसी तरह की यात्रा की थी लेकिन इस बार अपने मूल देश में बौद्ध धर्म की अलख जगाने के लिए यात्रा श्रीलंका से भारत के लिए की गई। किसी तरह आप हमें अपनी जड़ों तक वापस ले आए। बौद्ध धरोहर के कुछ सबसे महत्‍वपूर्ण तत्‍वों को संरक्षित करने के लिए विश्‍व भी श्रीलंका का आभारी है।

विश्व बौद्ध धरोहर के कुछ महत्वपूर्ण तत्वों को संरक्षित करने के लिए श्रीलंका के लिए कृतज्ञता का ऋण भी देता है। वैशाख हमारे लिए बौद्ध धर्म के इस अटूट साझा विरासत को मनाने का एक अवसर है। यह एक ऐसी विरासत है जो हमारे समाज को पीढि़यों और सदियों तक जोड़ती है।

मित्रों,

भारत और श्रीलंका के बीच मित्रता को समय-समय पर ‘महान उपदेशकों’ ने गढ़ा था। बौद्ध धर्म हमारे संबंधों को लगातार एक नई चमक देता रहा है। करीबी पड़ोसी देश होने के नाते हमारे संबंध कई स्‍तरों तक विस्‍तृत है। इसे बौद्ध धर्म के हमारे पारस्‍परिक मूल्‍यों से बल मिलता है क्‍योंकि यह हमारे साझा भविष्‍य की असीम संभावनाओं से प्रेरित है। हमारी मित्रता ऐसी है जो हमारे लोगों के दिलों में और हमारे सामजि‍क ताने-बाने में निवास करती है।

बौद्ध विरासत के हमारे संबंधों को सम्‍मान और गहराई देने के लिए मुझे यह घोषणा करते हुए खुशी हो रही है कि इसी साल अगस्‍त से एयर इंडिया कोलंबो और वाराणसी के बीच सीधी उड़ान सेवा शुरू करेगी। इससे श्रीलंका के मेरे भाइयों और बहनों के लिए बुद्ध की नगरी की यात्रा आसान हो जाएगी, और आप सीधे श्रावस्‍ती, कुसीनगर, संकासा, कौशांबी और सारनाथ की यात्रा कर सकेंगे। मेरे तमिल भाई और बहन भी काशी विश्‍वनाथ की भूमि वाराणसी की यात्रा करने में समर्थ होंगे।

आदरणीय भिक्षुओं, महामहिम और मित्रों,

मैं समझता हूं कि हम श्रीलंका के साथ हमारे संबंधों में फिलहाल व्‍यापक संभावनाओं के दौर में हैं। यह विभिन्‍न क्षेत्रों में हमारी भागीदारी में उल्‍लेखनीय छलांग लगाने का अवसर है। और, हमारे लिए हमारी दोस्‍ती की सफलता का सबसे अधिक प्रासंगिक बेंचमार्क आपकी प्रगति और सफलता है। हम श्रीलंका के अपने भाइयों और बहनों की आर्थिक समृद्धि के लिए प्रतिबद्ध हैं। हम सकारात्‍कम बदलाव और आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए निवेश जारी रखेंगे ताकि विकास के लिए हमारे सहयोग को और गहराई दी जा सके। हमारी ताकत हमरे ज्ञान, क्षमता और समृद्धि को साझा करने में निहित है। व्‍यापार और निवेश में हम पहले से ही महत्‍वपूर्ण साझेदार हैं। हमारा मानना है कि हमारी सीमाओं के पार व्‍यापार, निवेश, प्रौद्योगिकी और विचारों का मुक्‍त प्रवाह हमारे पारस्‍परिक लाभ के लिए होगा। भारत के तीव्र विकास का लाभ पूरे क्षेत्र को और विशेष रूप से श्रीलंका को मिल सकता है। हम बुनियादी ढांचा एवं कनेक्टिविटी, परिवहन और ऊर्जा के क्षेत्र में अपने सहयोग को बढ़ाने के लिए तैयार हैं। हमारी विकास साझेदारी कृषि, शिक्षा, स्‍वास्‍थ्‍य, पुनर्वास, परिवहन, बिजली, संस्‍कृति, जल, आश्रय, खेल एवं मानव संसाधन जैसे मानव गतिविधियों के लगभग हरेक क्षेत्र तक विस्‍तृत है।

श्रीलंका के साथ भारत के विकास सहयोग का आकार आज 2.6 अरब अमेरिकी डॉलर है। और इसका एकमात्र उद्देश्‍य श्रीलंका को अपने लोगों के लिए शांतिपूर्ण, समृद्ध एवं सुरक्षित भविष्‍य सुनिश्चित करने में मदद करना है। क्‍योंकि श्रीलंका के लोगों की आर्थिक एवं सामाजिक प्रगति का संबंध 1.25 अरब भारतीयों से जुड़ा है। क्‍योंकि चाहे स्‍थल हो अथवा हिंद महासागर का जल, दोनों जगह हमारे समाज की सुरक्षा अविभाज्‍य है। राष्‍ट्रपति सिरीसेना और प्रधानमंत्री विक्रमसिंघे के साथ हुई मेरी बातचीत ने साझा लक्ष्‍यों को हासिल करने के लिए हाथ मिलाने की हमारी इच्‍छा को प्रबल किया है। जैसा कि आपने अपने समाज के सद्भाव एवं प्रगति के लिए महत्‍वपूर्ण विकल्‍प बनाया है, तो भारत में आप एक ऐसे मित्र एवं साझेदार को पाएंगे जो राष्‍ट्र निर्माण के लिए आपके प्रयायों में मदद करेगा।

आदरणीय भिक्षुओं, महामहिम और मित्रों,

भागवान बुद्ध का संदेश आज इक्‍कीसवीं सदी में भी उतना ही प्रासंगिक है जितना वह ढाई सौ साल पहले था। बुद्ध द्वारा दिखाई गई राह मध्‍यम प्रतिपदा हम सभी को निर्देशित करती है। इसकी सार्वभौमिक एवं सदाबहार प्रकृति असरदार है। यह विभिन्‍न देशों को एक सूत्र में बांधने की शक्ति है। दक्षिण, मध्‍य, दक्षिणपूर्व और पूर्वी एशिया के देश भगवान बुद्ध की धरती से अपने बौद्ध संबंधों पर गर्व करते हैं।

वैशाख दिवस के लिए चुने गए विषय- सामाजिक न्‍याय एवं स्‍थायी विश्‍व शांति- में बुद्ध की शिक्षा गहराई से प्रतिध्‍वनित होती है। यह विषय स्‍वतंत्र दिख सकता है, लेकिन वे दोनों गहराई से एक-दूसरे पर निर्भर और अंतरसंबंधित हैं। सामाजिक न्‍याय का मुद्दा विभिन्‍न समुदायों के बीच होने वाले संघर्ष से जुड़ा है। सैद्धांतिक रूप से यह तन्‍हा अथवा तृष्‍णा के कारण पैदा होता है जिससे लालच उत्‍पन्‍न होता है। लालच ने मानव जाति को हमारे प्राकृतिक आवास पर हावी होने और उसे नीचा दिखाने के लिए प्रेरित किया है। हमारी सभी चाहत को पूरा करने की हमारी इच्‍छा ने समुदायों के बीच आय में असमानता को जन्‍म दिया और सामाजिक सद्भाव को नुकसान पहुंचाया।

इसी प्रकार यह जरूरी नहीं है कि आज राष्‍ट्र राज्‍यों के बीच संघर्ष स्‍थायी विश्‍व शांति के लिए सबसे बड़ी चुनौती हो। बल्कि यह घृणा एवं हिंसा के विचार पर आधारित हमारी मनोदशा, सोच की धारा, संस्‍थाओं, और उपकरणों में निहित है। हमारे क्षेत्र में आतंकवाद का खतरा इस विध्‍वंसक भावनाओं की एक ठोस अभिव्‍यंजना है। दुर्भाग्‍य से हमारे क्षेत्र में नफरत की इन विचारधाराओं के समर्थक बातचीत के लिए खुले नहीं हैं और इसलिए वे केवल मौत और विनाश को पैदा कर रहे हैं। मुझे दृढ़ विश्‍वास है कि बौद्ध धर्म का संदेश दुनियाभर में बढ़ती हिंसा का जवाब है।

और यह संघर्ष की अनुपस्थिति से परिभाषित केवल शांति की एक नकारात्‍मक धारणा नहीं है। बल्कि यह एक सकारात्‍मक शांति है जहां हम सब करुणा और ज्ञान के आधार पर संवाद, सद्भाव और न्‍याय को बढ़ावा देने के लिए काम करते हैं। बुद्ध कहते हैं, ‘नत्तीसंतिपरणसुखं’ यानी शांति से बढ़कर कोई आनंद नहीं है। वैशाख के अवसर पर मैं उम्‍मीद करता हूं कि भारत और श्रीलंका भगवान बुद्ध के आदर्शों को बनाए रखने और हमारी सरकारों की नीतियों एवं आचरण में शांति, सहअस्तित्‍व, समावेशीकरण और करुणा जैसे मूल्‍यों को बढ़ावा देने के लिए साथ मिलकर काम करेंगे। यह वास्‍तव में व्‍यक्तियों, परिवारों, समाजों, राष्‍ट्रों और दुनिया को लालच, घृणा और उपेक्षा के तीनों जहर से मुक्‍त करने का रास्‍ता है।

आदरणीय भिक्षुओं, महामहिम और मित्रों,

आइये वैशाख के इस पावन अवसर पर हम अंधकार से बाहर निकलने के लिए ज्ञान की दीप जलाएं, हम अपने भीतर झांकें और सत्‍य के अलावा किसी भी चीज को बरकरार न रहने दें। और, बुद्ध के उस मार्ग पर चलने की कोशिश करें जो दुनियाभर को प्रकाशित कर रहा है।

धम्‍मपद के 387 वें पद में कहा गया है:

दिवातपतिआदिच्चो, रत्तिंगओभातिचंदिमा।

सन्न्द्धोखत्तियोतपति, झायीतपति ब्राह्मणों।

अथसब्बमअहोरत्तिंग, बुद्धोतपतितेजसा।

अर्थ:

सूरज दिन में चमकता है,

चंद्रमा रात में प्रकाशित होता है,

योद्धा अपने कवच में चमकता है,

ब्राह्मण अपने ध्‍यन में चमता है,

लेकिन जागृत व्‍यक्ति अपनी कांति से पूरे दिन और रात को चमकाता है।

यहां आपके साथ होने के सम्‍मान के लिए एक बार फिर धन्‍यवाद।

मैं आज दोपहर को केंडी के पवित्र दांत अवशेष मंदिर श्री दलदा मालीगावा में श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए उत्‍सुक हूं। बुद्ध, धम्‍म और संघ के तीनों मणि हम सभी को आशीर्वाद दें।

धन्‍यवाद,

बहुत-बहुत धन्‍यवाद।