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प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने संविधान अपनाने की 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर विशेष चर्चा के दौरान लोकसभा को संबोधित किया


प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आज संविधान अपनाने की 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर लोकसभा में विशेष चर्चा को संबोधित किया। सदन को संबोधित करते हुए, श्री मोदी ने कहा कि यह भारत के सभी नागरिकों और दुनिया भर के सभी लोकतंत्र प्रेमी लोगों के लिए गर्व और सम्मान की बात है कि हम लोकतंत्र के इस उत्सव को मना रहे हैं। हमारे संविधान के 75 वर्षों की इस उल्लेखनीय और यादगार यात्रा में हमारे संविधान निर्माताओं की दूरदर्शिता, दिव्य दृष्टि और प्रयासों को धन्यवाद देते हुए, उन्होंने कहा कि 75 वर्ष सफलतापूर्वक पूरा होने के बाद अब यह लोकतंत्र का उत्सव मनाने का पल है।  श्री मोदी ने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की कि सांसद भी इस उत्सव में शामिल हुए और अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने इसके लिए सांसदों को धन्यवाद और बधाई दी।

75 वर्षों की उपलब्धि को एक असाधारण उपलब्धि बताते हुए, प्रधानमंत्री ने इस बात पर गर्व व्यक्त किया कि संविधान ने भारत की आजादी के तुरंत बाद सभी अनुमानित संभावनाओं और उसके बाद की चुनौतियों पर काबू पाकर हम सभी को यहां तक ले आया। उन्होंने इस महान उपलब्धि के लिए संविधान निर्माताओं और करोड़ों नागरिकों के प्रति गहरी कृतज्ञता व्यक्त की। श्री मोदी ने कहा कि भारत का नागरिक संविधान निर्माताओं द्वारा परिकल्पित संवैधानिक मूल्यों को सफलतापूर्वक अपनाने और जीने में हर कसौटी पर खरा उतरा है। उन्होंने कहा कि इसलिए ये नागरिक ही हैं, जो सही अर्थों में सभी प्रशंसाओं के अधिकारी हैं।

श्री मोदी ने कहा कि संविधान निर्माताओं ने कभी भी इस विचार का समर्थन नहीं किया कि भारत का जन्म 1947 में हुआ है या संविधान 1950 से लागू होगा, बल्कि वे भारत और इसके लोकतंत्र की महान परंपरा व विरासत पर विश्वास एवं गर्व करते थे। उन्होंने कहा कि भारत का लोकतांत्रिक व गणतांत्रिक अतीत हमेशा समृद्ध और दुनिया के लिए प्रेरणादायक रहा है। उन्होंने कहा कि और इसीलिए, “भारत को लोकतंत्र की जननी के रूप में जाना जाता है”। श्री मोदी ने  इस तथ्य को रेखांकित किया कि हम केवल एक महान लोकतांत्रिक देश ही नहीं, बल्कि लोकतंत्र की जननी भी हैं।

प्रधानमंत्री ने संवैधानिक सभा में हुई बहसों में से राजर्षि पुरूषोत्तम दास टंडन को उद्धृत करते हुए कहा कि “सदियों के बाद, ऐसी घटनापूर्ण बैठक बुलाई गई है, जो मुझे हमारे महान अतीत और पहले के समय की याद दिलाती है जब हम स्वतंत्र हुआ करते थे और सभाओं में बुद्धिजीवी लोग सार्थक मुद्दों पर चर्चा व विचार-विमर्श किया करते थे।” फिर उन्होंने डॉ. एस. राधाकृष्णन को उद्धृत करते हुए कहा, “इस महान राष्ट्र के लिए गणतंत्र की प्रणाली कोई नया विचार नहीं है क्योंकि हमारे यहां यह प्रणाली हमारे इतिहास की शुरुआत से ही रही है”। इसके बाद उन्होंने बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर को उद्धृत करते हुए कहा, “ऐसा नहीं है कि भारत को लोकतंत्र के बारे में पता नहीं था, एक समय था जब भारत में कई गणराज्य हुआ करते थे।”

प्रधानमंत्री ने संविधान निर्माण की प्रक्रिया तथा इसे और अधिक सशक्त बनाने में महिलाओं की भूमिका की सराहना की। उन्होंने कहा कि संविधान सभा में पंद्रह सम्मानित और सक्रिय महिला सदस्य थीं और उन्होंने अपने मौलिक विचार, दृष्टिकोण और विचार देकर संविधान का मसौदा तैयार करने की प्रक्रिया को और मजबूत किया। इस तथ्य को याद करते हुए कि उनमें से प्रत्येक विविध पृष्ठभूमि से थीं, श्री मोदी ने इस बात पर जोर दिया कि महिला सदस्यों द्वारा दिए गए सारगर्भित सुझावों का संविधान पर गहरा प्रभाव पड़ा। प्रधानमंत्री ने इस बात पर भी गर्व व्यक्त किया कि दुनिया के कई अन्य देशों की तुलना में भारत में आजादी के समय से ही महिलाओं को मतदान का अधिकार दिया गया और कई देशों को यह अधिकार देने में दशकों लग गए। उन्होंने कहा कि इसी भावना के साथ भारत ने जी-20 शिखर सम्मेलन की अध्यक्षता के दौरान महिलाओं के नेतृत्व वाले विकास का दृष्टिकोण दुनिया के सामने रखा। श्री मोदी ने सभी सांसदों द्वारा नारीशक्ति वंदन अधिनियम के सफल कार्यान्वयन का भी उल्लेख किया और कहा कि सरकार ने महिलाओं की बढ़ती राजनीतिक भागीदारी सुनिश्चित करने हेतु कई कदम उठाए हैं।

श्री मोदी ने इस बात पर जोर दिया कि हर प्रमुख नीतिगत निर्णय के केन्द्र में महिलाएं होती हैं और उन्होंने इस बात पर खुशी व्यक्त की कि यह एक महान संयोग है कि संविधान के 75 वर्ष पूरे होने के दौरान, भारत के राष्ट्रपति के पद पर एक आदिवासी महिला विराजमान है। उन्होंने कहा कि यह हमारे संविधान की भावना की सच्ची अभिव्यक्ति है। प्रधानमंत्री ने इस बात पर प्रकाश डाला कि संसद के साथ-साथ मंत्रिपरिषद में भी महिलाओं का प्रतिनिधित्व और योगदान लगातार बढ़ रहा है। श्री मोदी ने कहा, “महिलाओं का प्रतिनिधित्व और योगदान, चाहे वह सामाजिक, राजनीतिक, शिक्षा, खेल या किसी अन्य क्षेत्र में हो, देश को गौरवान्वित कर रहा है।” उन्होंने कहा कि हर भारतीय को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, विशेषकर अंतरिक्ष के क्षेत्र में महिलाओं के योगदान पर गर्व है। उन्होंने कहा कि संविधान इसके लिए सबसे बड़ी प्रेरणा है।

इस बात को दोहराते हुए कि भारत तेज गति से प्रगति कर रहा है, श्री मोदी ने कहा कि जल्द ही भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होगा। उन्होंने कहा कि यह सुनिश्चित करना 140 करोड़ देशवासियों का साझा संकल्प है कि भारत 2047 तक एक विकसित राष्ट्र हो। उन्होंने आगे कहा कि इस संकल्प को हासिल करने के लिए भारत की एकता सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता है। प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारा संविधान भारत की एकता का आधार भी है। इस बात को याद करते हुए कि संविधान निर्माण की प्रक्रिया में महान स्वतंत्रता सेनानी, लेखक, विचारक, सामाजिक कार्यकर्ता, शिक्षाविद् और अन्य विविध क्षेत्रों के पेशेवर शामिल थे, श्री मोदी ने कहा कि वे सभी भारत की एकता के प्रति बेहद ही संवेदनशील थे।

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने इस बात पर दुख व्यक्त करते हुए कहा कि स्वतंत्रता के बाद, संविधान निर्माताओं के दिल और दिमाग में एकता थी। हालांकि, आज़ादी के बाद विकृत मानसिकता के कारण या स्वार्थवश सबसे बड़ा प्रहार देश की एकता की मूल भावना पर ही हुआ। प्रधानमंत्री ने इस बात पर प्रकाश डाला कि विविधता में एकता भारत की विशेषता रही है और इस बात पर जोर दिया कि हम विविधता का उत्सव मनाते हैं और देश की प्रगति भी इस विविधता का उत्सव मनाने में ही निहित है। हालांकि, भारत का भला नहीं चाहने और इस देश का जन्म 1947 से मानने वाले औपनिवेशिक मानसिकता के लोग इस विविधता में विरोधाभास ढूढ़ते हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि विविधता के इस अमूल्य खजाने का उत्सव मनाने के बजाय, देश की एकता को चोट पहुंचाने के उद्देश्य से इसके भीतर जहरीले बीज बोने का प्रयास किया गया। श्री मोदी ने सभी से विविधता के उत्सव को अपने जीवन का अभिन्न अंग बनाने का आग्रह किया और यही डॉ. बी.आर. अम्बेडकर को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि पिछले 10 वर्षों के दौरान, सरकार की नीतियों का लक्ष्य भारत की एकता को लगातार मजबूत करना रहा है। उन्होंने कहा कि धारा 370 देश की एकता में बाधक थी और एक अवरोध के रूप में काम करती थी। श्री मोदी ने इस बात पर जोर दिया कि संविधान की भावना के अनुरूप देश की एकता प्राथमिकता थी और इसलिए अनुच्छेद 370 को निरस्त कर दिया गया।

श्री मोदी ने आर्थिक रूप से आगे बढ़ने और वैश्विक निवेश आकर्षित करने के लिए भारत में अनुकूल परिस्थितियों की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि देश में जीएसटी को लेकर लंबे समय तक चर्चा चलती रही। प्रधानमंत्री ने कहा कि जीएसटी ने आर्थिक एकता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने पिछली सरकार के योगदान को स्वीकार किया और कहा कि वर्तमान सरकार के पास “एक राष्ट्र, एक कर” की अवधारणा को आगे बढ़ाते हुए इसे लागू करने का अवसर था।

हमारे देश में राशन कार्ड के महत्व व गरीबों के लिए उसके एक मूल्यवान दस्तावेज होने और एक राज्य से दूसरे राज्य में जाने पर एक गरीब व्यक्ति को होने वाली कठिनाइयों के बारे में बात करते हुए, श्री मोदी ने कहा कि वे किसी भी लाभ के हकदार नहीं होते थे। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि प्रत्येक नागरिक को समान अधिकार मिलने चाहिए, चाहे वे इस विशाल देश में कहीं भी जाए। उन्होंने कहा कि एकता की इस भावना को मजबूत करने के लिए सरकार ने “एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड” की अवधारणा को मजबूत किया है।

प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि गरीबों और आम नागरिकों को मुफ्त स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने से गरीबी से लड़ने की उनकी क्षमता में काफी वृद्धि होती है। उन्होंने इस तथ्य को रेखांकित किया कि जहां वे काम करते हैं वहां तो स्वास्थ्य सेवा सुलभ हो जाती है, लेकिन यह सुविधा उन्हें तब भी उपलब्ध होनी चाहिए जब वे बाहर गए हों और जीवन और मृत्यु की लड़ाई लड़ रहे हों। प्रधानमंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय एकता के सिद्धांत को बनाए रखने के लिए, सरकार ने आयुष्मान भारत के माध्यम से “एक राष्ट्र, एक स्वास्थ्य कार्ड” पहल की शुरुआत की। उन्होंने कहा कि पुणे में काम करने वाला बिहार के सुदूर इलाके का व्यक्ति भी आयुष्मान कार्ड से आवश्यक चिकित्सा सेवाएं हासिल कर सकता है।

श्री मोदी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि ऐसे समय थे जब देश के एक हिस्से में बिजली थी जबकि दूसरा हिस्सा आपूर्ति की समस्या के कारण अंधेरे में था। उन्होंने कहा कि पिछली सरकारों के कार्यकाल के दौरान, बिजली की कमी के लिए भारत की अक्सर वैश्विक स्तर पर आलोचना की जाती थी। प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि संविधान की भावना और एकता के मंत्र को बनाए रखने के लिए, सरकार ने “एक राष्ट्र, एक ग्रिड” पहल लागू की। उन्होंने कहा कि आज, भारत के हर कोने में बिजली की निर्बाध आपूर्ति की जा सकती है।

देश में बुनियादी ढांचे के विकास के बारे में बात करते हुए, प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि सरकार राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने के उद्देश्य से संतुलित विकास पर ध्यान केन्द्रित कर रही है। उन्होंने कहा कि चाहे वह उत्तर पूर्व हो, जम्मू-कश्मीर हो, हिमालयी क्षेत्र हो या रेगिस्तानी क्षेत्र, सरकार ने बुनियादी ढांचे को व्यापक रूप से सशक्त बनाने के प्रयास किए हैं। उन्होंने कहा कि इस पहल का उद्देश्य विकास के अभाव के कारण दूरी की किसी भी भावना को खत्म करना है ताकि एकता को बढ़ावा मिले।

“संपन्न” और “असहाय” लोगों के बीच डिजिटल विभाजन पर जोर देते हुए, श्री मोदी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि डिजिटल इंडिया में भारत की सफलता की कहानी वैश्विक स्तर पर बेहद गर्व का स्रोत है। उन्होंने कहा कि प्रौद्योगिकी का लोकतंत्रीकरण इस सफलता में एक महत्वपूर्ण कारक रहा है। श्री मोदी ने कहा कि संविधान निर्माताओं के दृष्टिकोण से निर्देशित होकर, सरकार ने राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने हेतु देश की हर पंचायत तक ऑप्टिकल फाइबर पहुंचाने का काम किया है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि संविधान एकता की अपेक्षा करता है और इसी भावना से मातृभाषा के महत्व को मान्यता दी गई है। उन्होंने कहा कि मातृभाषा को दबाने से देश की जनता सांस्कृतिक रूप से समृद्ध नहीं हो सकती। श्री मोदी ने कहा कि नई शिक्षा नीति ने मातृभाषा को उल्लेखनीय महत्व दिया है ताकि सबसे गरीब बच्चे भी अपनी मातृभाषा में डॉक्टर और इंजीनियर बन सकें। उन्होंने कहा कि संविधान हर किसी का समर्थन करता है और उनकी जरूरतों को पूरा करने का निर्देश देता है। श्री मोदी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि कई शास्त्रीय भाषाओं को उनका उचित स्थान और सम्मान दिया गया है। उन्होंने कहा कि ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ अभियान राष्ट्रीय एकता को मजबूत कर रहा है और नई पीढ़ी में सांस्कृतिक मूल्यों का संचार कर रहा है।

इस तथ्य पर प्रकाश डालते हुए कि काशी तमिल संगमम और तेलुगु काशी संगमम महत्वपूर्ण संस्थागत कार्यक्रम बन गए हैं, श्री मोदी ने इस बात पर जोर दिया कि ये सांस्कृतिक पहल सामाजिक बंधनों को मजबूत करती हैं। उन्होंने कहा कि संविधान के मूल सिद्धांतों में भारत की एकता के महत्व को मान्यता दी गई है और इसे स्वीकार किया जाना चाहिए।

प्रधानमंत्री ने कहा कि अब जबकि संविधान अपनी 75वीं वर्षगांठ मना रहा है, तो 25, 50 और 60 वर्ष जैसे पड़ाव भी महत्व रखते हैं। उन्होंने इतिहास पर प्रकाश डालते हुए कहा कि संविधान की 25वीं वर्षगांठ के दौरान देश में इसकी धज्जियां उड़ाई गईं। प्रधानमंत्री ने इस तथ्य को रेखांकित किया कि आपातकाल लगाया गया था, संवैधानिक व्यवस्थाओं को नष्ट कर दिया गया था, देश को जेल में बदल दिया गया था, नागरिकों के अधिकार छीन लिए गए थे और प्रेस की स्वतंत्रता पर ताला लगा दिया गया था। प्रधानमंत्री ने कहा कि लोकतंत्र का गला घोंटा गया और संविधान निर्माताओं के बलिदानों को मिट्टी में मिलाने की कोशिश की गई।

श्री मोदी ने कहा कि अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में, राष्ट्र ने 26 नवंबर, 2000 को संविधान की 50वीं वर्षगांठ मनाई। प्रधानमंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री के रूप में अटल वाजपेयीजी ने एकता, जनभागीदारी और भागीदारी महत्व पर बल देते हुए राष्ट्र को एक विशेष संदेश दिया था। उन्होंने कहा कि श्री वाजपेयी के प्रयासों का उद्देश्य संविधान की भावना को जीना और जनता को जागृत करना था।

प्रधानमंत्री ने कहा कि संविधान की 50वीं वर्षगांठ के दौरान उन्हें संवैधानिक प्रक्रिया के तहत मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य मिला। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि मुख्यमंत्री के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान, गुजरात में संविधान की 60वीं वर्षगांठ मनाई गई थी। उन्होंने कहा कि इतिहास में पहली बार संविधान को हाथी पर विशेष व्यवस्था के साथ रखा गया और संविधान गौरव यात्रा निकाली गई। श्री मोदी ने इस बात पर जोर दिया कि संविधान बहुत महत्व है और आज, जब इसके 75 वर्ष पूरे हो गए, उन्होंने लोकसभा में एक घटना को याद किया जिसमें एक वरिष्ठ नेता ने 26 नवंबर को संविधान दिवस मनाने की आवश्यकता पर सवाल उठाया था, यह देखते हुए कि 26 जनवरी पहले से ही मौजूद है।

श्री मोदी ने विशेष सत्र के बारे में प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि संविधान की शक्ति और विविधताओं पर चर्चा करना लाभदायक होता, जो नई पीढ़ी के लिए मूल्यवान होता। हालांकि उन्होंने टिप्पणी की कि हर किसी की अपनी-अपनी मजबूरियां हैं, विभिन्न रूपों में उनकी अपनी विफलताएं थीं, कईयों ने अपनी विफलताओं को प्रकट भी किया। प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि बेहतर होता कि चर्चा दलगत भावनाओं से ऊपर उठकर राष्ट्रीय हित पर केन्द्रित होती, जिससे नई पीढ़ी समृद्ध होती।

प्रधानमंत्री ने संविधान के प्रति विशेष सम्मान व्यक्त करते हुए कहा कि यह संविधान की भावना ही थी जिसने उनके जैसे कई लोगों को वहां तक ​​पहुंचने में सक्षम बनाया जहां वे आज हैं। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि बिना किसी पृष्ठभूमि के, यह संविधान का सामर्थ्य और लोगों का आशीर्वाद ही था जिसने उन्हें यहां पहुंचाया। श्री मोदी ने कहा कि समान परिस्थितियों में कई व्यक्ति संविधान के कारण महत्वपूर्ण पदों तक पहुंचे हैं। उन्होंने कहा कि यह बड़ा सौभाग्य है कि देश ने एक बार नहीं बल्कि तीन बार अपार विश्वास दिखाया है। उन्होंने कहा कि संविधान के बिना यह संभव नहीं होता।

श्री मोदी ने कहा कि 1947 से 1952 तक, भारत में कोई निर्वाचित सरकार नहीं थी, बल्कि एक अस्थायी, चयनित सरकार थी और कोई चुनाव नहीं हुए थे। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि 1952 से पहले, राज्यसभा का गठन नहीं हुआ था और राज्यों में भी चुनाव नहीं हुए थे, जिसका अर्थ हुआ कि लोगों की ओर से कोई जनादेश नहीं था। उन्होंने कहा कि इसके बावजूद 1951 में बिना किसी निर्वाचित सरकार के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला करते हुए संविधान में संशोधन के लिए एक अध्यादेश जारी किया गया था। प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि यह संविधान निर्माताओं का अपमान है, क्योंकि ऐसे मामलों का संविधान सभा में  समाधान नहीं हुआ था। उन्होंने कहा कि जब अवसर मिला, तो उन्होंने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रहार किया, जो संविधान के निर्माताओं का गंभीर अपमान था। प्रधानमंत्री ने कहा कि जो संविधान सभा में हासिल नहीं किया जा सका, उसे एक गैर-निर्वाचित प्रधानमंत्री ने पिछले दरवाजे से कर दिया, जोकि पाप था।

प्रधानमंत्री ने इस तथ्य को रेखांकित किया कि 1971 में, न्यायपालिका के पंख कतरकर संविधान में संशोधन करके सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया गया था। श्री मोदी ने कहा कि अदालतों की शक्तियों को खत्म करते हुए उक्त संशोधन में कहा गया कि संसद न्यायिक समीक्षा के बिना संविधान के किसी भी अनुच्छेद को बदल सकती है। उन्होंने कहा कि इससे तत्कालीन सरकार को मौलिक अधिकारों में कटौती करने और न्यायपालिका को नियंत्रित करने में मदद मिली।

प्रधानमंत्री ने कहा कि आपातकाल के दौरान संविधान का दुरुपयोग किया गया और लोकतंत्र का गला घोंट दिया गया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि 1975 में 39वां संशोधन पारित किया गया था ताकि किसी भी अदालत को राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और लोकसभाध्यक्ष के चुनावों को चुनौती देने से रोका जा सके और इसे पिछले कार्यों को कवर करने के लिए पूर्वव्यापी रूप से लागू किया गया था।

आगे चर्चा करते हुए, श्री मोदी ने कहा कि आपातकाल के दौरान लोगों के अधिकार छीन लिए गए, हजारों लोगों को जेल में डाल दिया गया, न्यायपालिका का गला घोंट दिया गया और प्रेस की स्वतंत्रता पर ताला लगा दिया गया। उन्होंने टिप्पणी की कि प्रतिबद्ध न्यायपालिका का विचार पूरी तरह से लागू किया गया है। प्रधानमंत्री ने कहा कि न्यायमूर्ति एच.आर. खन्ना, जिन्होंने एक अदालती मामले में तत्कालीन प्रधानमंत्री के खिलाफ फैसला सुनाया था, को उनकी वरिष्ठता के बावजूद भारत के मुख्य न्यायाधीश के पद से वंचित कर दिया गया था। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यह संवैधानिक और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं का उल्लंघन था।

शाहबानो मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को याद करते हुए, जिसने एक भारतीय महिला को संविधान की गरिमा और भावना के आधार पर न्याय प्रदान किया था, श्री मोदी ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने एक बुजुर्ग महिला को उसका उचित हक दिया, लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री ने संविधान का सार की बलि चढ़ाते हुए इस भावना को त्याग दिया। प्रधानमंत्री ने कहा कि संसद ने एक बार फिर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को पलटने के लिए एक कानून पारित किया।

प्रधानमंत्री ने कहा कि इतिहास में पहली बार संविधान को गहरी चोट पहुंचाई गई। उन्होंने कहा कि संविधान निर्माताओं ने एक निर्वाचित सरकार और प्रधानमंत्री की कल्पना की थी। हालांकि, एक गैर-संवैधानिक इकाई, राष्ट्रीय सलाहकार परिषद, जिसने कोई शपथ नहीं ली, को प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) से ऊपर रखा गया था। प्रधानमंत्री ने कहा कि इस इकाई को पीएमओ से ऊपर एक अनौपचारिक दर्जा दिया गया था।

श्री मोदी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारतीय संविधान के तहत, लोग सरकार चुनते हैं, और उस सरकार का प्रमुख मंत्रिमंडल बनाता है। उस घटना को याद करते हुए जब कैबिनेट द्वारा लिए गए एक निर्णय को संविधान का अनादर करने वाले अहंकारी व्यक्तियों ने पत्रकारों के सामने फाड़ दिया था, श्री मोदी ने कहा कि ये लोग आदतन संविधान के साथ खिलवाड़ करते थे और इसका सम्मान नहीं करते थे। उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण था कि तत्कालीन कैबिनेट ने अपना निर्णय बदल दिया।

प्रधानमंत्री ने कहा कि अनुच्छेद 370 तो सर्वविदित है, लेकिन अनुच्छेद 35ए के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि अनुच्छेद 35ए को संसदीय मंजूरी के बिना लगाया गया था। संसदीय मंजूरी की मांग की जानी चाहिए थी। प्रधानमंत्री ने कहा कि संविधान के प्राथमिक संरक्षक संसद को दरकिनार कर दिया गया और देश पर अनुच्छेद 35ए थोप दिया गया, जिससे जम्मू एवं कश्मीर में स्थिति खराब हो गई। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि यह संसद को अंधेरे में रखकर राष्ट्रपति के आदेश के माध्यम से किया गया था।

श्री मोदी ने कहा कि अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के दौरान डॉ. अम्बेडकर की स्मृति में एक स्मारक बनाने का निर्णय लिया गया था, लेकिन अगले 10 वर्षों तक न तो यह काम शुरू किया गया और न ही इसकी अनुमति दी गई। प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि जब उनकी सरकार सत्ता में आई, तो डॉ. अम्बेडकर के प्रति सम्मान दिखाते हुए, उन्होंने अलीपुर रोड पर डॉ. अम्बेडकर स्मारक का निर्माण किया और काम पूरा किया।

इस बात को याद करते हुए कि 1992 में श्री चंद्रशेखर के कार्यकाल के दौरान, दिल्ली में जनपथ के पास अम्बेडकर अंतरराष्ट्रीय केंद्र स्थापित करने का निर्णय लिया गया था, श्री मोदी ने कहा कि यह परियोजना 40 वर्षों तक कागज पर ही रही और कार्यान्वित नहीं की गई। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि 2015 में, जब उनकी सरकार सत्ता में आई, तभी काम पूरा हुआ। प्रधानमंत्री ने कहा कि यहां तक ​​कि डॉ. बी.आर. अम्बेडकर को भारतरत्न देने का काम भी आजादी के काफी समय बाद हुआ।

श्री मोदी ने इस तथ्य को रेखांकित किया कि डॉ. बी.आर. अम्बेडकर की 125वीं जयंती को वैश्विक स्तर पर 120 देशों में मनाया गया और डॉ. अम्बेडकर की जन्म शताब्दी के दौरान, डॉ. अम्बेडकर के जन्मस्थान महू में एक स्मारक का पुनर्निर्माण किया गया।

समाज के हाशिए पर पड़े वर्गों को मुख्यधारा में लाने के लिए प्रतिबद्ध एक दूरदर्शी नेता के रूप में डॉ. बी.आर. अम्बेडकर की सराहना करते हुए, श्री मोदी ने कहा कि डॉ. अम्बेडकर का मानना ​​था कि भारत के विकास के लिए देश के किसी भी हिस्से को दुर्बल नहीं रहना चाहिए। उन्होंने  कहा कि इस चिंता के कारण आरक्षण प्रणाली की स्थापना हुई। प्रधानमंत्री ने कहा कि वोट बैंक की राजनीति में लगे लोगों ने आरक्षण प्रणाली के भीतर धार्मिक तुष्टीकरण की आड़ में विभिन्न उपायों को लागू करने का प्रयास किया, जिससे अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) समुदायों को काफी नुकसान हुआ।

प्रधानमंत्री ने कहा कि पिछली सरकारों ने आरक्षण का कड़ा विरोध किया और इस बात पर जोर दिया कि डॉ. बी.आर. अम्बेडकर ने भारत में समानता और संतुलित विकास के लिए आरक्षण की शुरुआत की। प्रधानमंत्री ने कहा कि मंडल आयोग की रिपोर्ट को दशकों तक लटकाया गया, जिससे ओबीसी के लिए आरक्षण में देरी हुई। प्रधानमंत्री ने कहा कि यदि आरक्षण पहले दिया गया होता, तो आज कई ओबीसी व्यक्ति विभिन्न पदों पर आसीन होते।

संविधान के निर्माण के दौरान आरक्षण को धर्म पर आधारित होना चाहिए या नहीं, इस पर हुई व्यापक चर्चा का जिक्र करते हुए, श्री मोदी ने कहा कि संविधान निर्माताओं ने निष्कर्ष निकाला कि भारत जैसे देश की एकता और अखंडता के लिए, धर्म या समुदाय के आधार पर आरक्षण संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि यह एक सोच-समझकर लिया गया फैसला था, कोई भूल नहीं। श्री मोदी ने कहा कि पिछली सरकारों ने धर्म के आधार पर आरक्षण की शुरुआत की, जो संविधान की भावना के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि कुछ कार्यान्वयन के बावजूद, सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसे उपायों को रद्द कर दिया है। प्रधानमंत्री ने कहा कि यह स्पष्ट है कि धर्म के आधार पर आरक्षण देने का इरादा है, जो संविधान निर्माताओं की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का एक बेशर्म प्रयास है।

समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को एक ज्वलंत मुद्दे के रूप में चर्चा करते हुए, जिसे संविधान सभा ने अनदेखा नहीं किया, प्रधानमंत्री ने कहा कि संविधान सभा ने यूसीसी पर व्यापक चर्चा की और फैसला किया कि निर्वाचित सरकार के लिए इसे लागू करना सबसे अच्छा होगा। उन्होंने कहा कि यह संविधान सभा का निर्देश था। प्रधानमंत्री ने कहा कि डॉ. अम्बेडकर ने यूसीसी की हिमायत की थी और उनके कथनों को गलत तरीके से प्रस्तुत नहीं किया जाना चाहिए।

श्री मोदी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि डॉ. बी.आर. अम्बेडकर ने धर्म पर आधारित पर्सनल लॉ को समाप्त करने की पुरजोर वकालत की थी। संविधान सभा के सदस्य के.एम. मुंशी को उद्धृत करते हुए, जिन्होंने कहा था कि समान नागरिक संहिता (यूसीसी) राष्ट्रीय एकता और  आधुनिकता के लिए आवश्यक है, श्री मोदी ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने बार-बार यूसीसी की आवश्यकता पर जोर दिया है और सरकारों को इसे जल्द से जल्द लागू करने का निर्देश दिया है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि संविधान की भावना और इसके निर्माताओं के इरादों को ध्यान में रखते हुए, सरकार एक धर्मनिरपेक्ष नागरिक संहिता की स्थापना के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है।

अतीत की एक घटना का जिक्र करते हुए, प्रधानमंत्री ने सवाल किया कि जो लोग अपनी ही पार्टी के संविधान का सम्मान नहीं करते वे देश के संविधान का सम्मान कैसे कर सकते हैं।

श्री मोदी ने कहा कि 1996 में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी और राष्ट्रपति ने संविधान का सम्मान करते हुए उन्हें सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया था। हालांकि, वह सरकार केवल 13 दिनों तक चली क्योंकि उन्होंने संविधान का सम्मान करना चुना। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने सौदेबाजी का विकल्प नहीं चुना बल्कि संविधान का सम्मान किया और 13 दिन बाद इस्तीफा दे दिया। उन्होंने कहा कि 1998 में एनडीए सरकार को अस्थिरता का सामना करना पड़ा, लेकिन संविधान की भावना के प्रति समर्पित वाजपेयी सरकार ने असंवैधानिक पदों को स्वीकार करने के बजाय एक वोट से हारना और इस्तीफा देना पसंद किया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यह उनका इतिहास, मूल्य और परंपरा है। उन्होंने कहा कि दूसरी ओर कैश-फॉर-वोट घोटाले के दौरान, अल्पमत सरकार को बचाने के लिए पैसे का इस्तेमाल किया गया, जिससे भारतीय लोकतंत्र की भावना को एक बाजार बना दिया गया जहां वोट खरीदे गए।

श्री मोदी ने कहा कि 2014 के बाद एनडीए को सेवा करने का अवसर मिला। संविधान और लोकतंत्र को मजबूती मिली। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि देश को पुरानी बीमारियों से छुटकारा दिलाने के लिए एक अभियान चलाया गया। प्रधानमंत्री ने कहा कि पिछले 10 वर्षों के दौरान, उन्होंने देश की एकता एवं अखंडता के लिए, इसके उज्ज्वल भविष्य के लिए और संविधान की भावना के प्रति पूर्ण समर्पण के साथ संवैधानिक संशोधन भी किए हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि ओबीसी समुदाय तीन दशकों से ओबीसी आयोग को संवैधानिक दर्जा देने की मांग कर रहा था। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि उन्होंने यह दर्जा देने के लिए संविधान में संशोधन किया और ऐसा करने में उन्हें गर्व महसूस हुआ। प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि समाज के हाशिए पर मौजूद वर्गों के साथ खड़ा होना उनका कर्तव्य है, यही वजह है कि संवैधानिक संशोधन किया गया।

प्रधानमंत्री ने इस बात पर ज़ोर दिया कि समाज का एक बड़ा वर्ग, चाहे जाति कोई भी हो, गरीबी के कारण अवसरों तक पहुंचने वंचित रह जाता है और प्रगति नहीं कर पाता। उन्होंने कहा  कि इससे असंतोष बढ़ रहा था और मांगों के बावजूद कोई निर्णय नहीं लिया गया था। श्री मोदी ने कहा कि उन्होंने सामान्य श्रेणी के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने के लिए संविधान में संशोधन किया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यह देश में पहला आरक्षण संशोधन था जिसे किसी विरोध का सामना नहीं करना पड़ा, सभी ने प्यार से स्वीकार किया और संसद द्वारा सर्वसम्मति से पारित किया गया। प्रधानमंत्री ने कहा कि ऐसा इसलिए संभव हुआ क्योंकि यह सामाजिक एकता को मजबूत करता था और संविधान की भावना के अनुरूप था।

श्री मोदी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि उन्होंने भी संवैधानिक संशोधन किए हैं, लेकिन ये महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए थे। उन्होंने कहा कि उन्होंने देश की एकता के लिए संविधान में संशोधन किया। श्री मोदी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि अनुच्छेद 370 के कारण डॉ. बी.आर. अम्बेडकर का संविधान जम्मू एवं कश्मीर पर पूरी तरह से लागू नहीं हो सकता था, जबकि सरकार चाहती थी कि डॉ. अम्बेडकर का संविधान भारत के हर हिस्से में लागू हो। उन्होंने कहा कि उन्होंने राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने और डॉ. अम्बेडकर को श्रद्धांजलि देने के लिए संविधान में संशोधन किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्होंने अनुच्छेद 370 हटा दिया और अब सर्वोच्च न्यायालय ने भी इस फैसले को बरकरार रखा है।

अनुच्छेद 370 को हटाने के लिए संविधान में किए गए संशोधन का जिक्र करते हुए, श्री मोदी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि उन्होंने संकट के समय पड़ोसी देशों में अल्पसंख्यकों की देखभाल के लिए विभाजन के समय महात्मा गांधी और अन्य वरिष्ठ नेताओं द्वारा किए गए वादे को पूरा करने के लिए भी कानून बनाए। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि उन्होंने इस प्रतिबद्धता का सम्मान करने के लिए नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) पेश किया और कहा कि वे गर्व से इस कानून का समर्थन करते हैं, क्योंकि यह संविधान की भावना के अनुरूप है और राष्ट्र को मजबूत करता है।

श्री मोदी ने कहा कि उनकी सरकार द्वारा किए गए संवैधानिक संशोधनों का उद्देश्य पिछली गलतियों को सुधारना और उज्जवल भविष्य का मार्ग प्रशस्त करना था। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि समय बताएगा कि वे समय की कसौटी पर खरे उतरे या नहीं। प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि ये संशोधन सत्ता के स्वार्थ से प्रेरित नहीं थे बल्कि देशहित में पुण्य के कार्य थे। उन्होंने कहा कि यही कारण है कि वे उठाए गए किसी भी प्रश्न का आत्मविश्वास से समाधान करते हैं।

इस बात को इंगित करते हुए कि संविधान के संबंध में कई भाषण दिए गए हैं और कई विषय उठाए गए हैं, जिनमें से प्रत्येक की अपनी राजनीतिक प्रेरणा है, प्रधानमंत्री ने कहा कि संविधान भारत के लोगों, “वी द पीपल” के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील है और यह उनके हितों,  गरिमा एवं कल्याण के लिए है। उन्होंने कहा कि संविधान सभी नागरिकों के लिए सम्मानजनक जीवन सुनिश्चित करते हुए हमें एक कल्याणकारी राज्य की दिशा में मार्गदर्शन करता है।

इस बात पर प्रकाश डालते हुए कि आजादी के इतने वर्षों के बाद भी कई परिवारों को गरिमा के साथ जीवन जीने के लिए शौचालय तक सुलभ नहीं था, श्री मोदी ने कहा कि शौचालय बनाने का अभियान गरीबों के लिए एक सपना था और उन्होंने इस काम को पूरे समर्पण के साथ हाथ में लिया। उन्होंने कहा कि मजाक उड़ाए जाने के बावजूद वे दृढ़ रहे क्योंकि आम नागरिकों की गरिमा उनकी प्राथमिकता थी। प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि महिलाओं को या तो सूर्योदय से पहले या सूर्यास्त के बाद खुले में शौच के लिए जाना पड़ता है और इससे उन लोगों को कोई परेशानी नहीं होती जो गरीबों को केवल टीवी पर या अखबार की सुर्खियों में देखते हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि गरीबों के जीवन को समझने वाले लोग ऐसा अन्याय नहीं करेंगे। श्री मोदी ने सवाल किया कि इस देश में अस्सी प्रतिशत लोग स्वच्छ पेयजल से वंचित हैं, जबकि संविधान का लक्ष्य सभी के लिए बुनियादी मानवीय सुविधाएं सुनिश्चित करना है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि देश में लाखों माताएं पारंपरिक स्टोव पर खाना बनाती हैं, जिसके धुएं से उनकी आंखें लाल हो जाती हैं, जो सैकड़ों सिगरेट के धुएं को अंदर लेने के बराबर है। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि इससे न केवल उनकी आंखों पर असर पड़ा बल्कि उनका स्वास्थ्य भी खराब हुआ। श्री मोदी ने कहा कि आजादी के 70 वर्ष बाद भी 2013 तक, चर्चा इस बात पर थी कि नौ या छह सिलेंडर उपलब्ध कराए जाएं, जबकि उनकी सरकार ने हर घर में गैस सिलेंडर की आपूर्ति सुनिश्चित की क्योंकि उन्होंने हर नागरिक को बुनियादी सुविधाएं प्रदान करने को प्राथमिकता दी।

स्वास्थ्य सेवा के बारे में चर्चा करते हुए, श्री मोदी ने कहा कि गरीबी से बचने एवं अपने बच्चों को शिक्षित करने तथा अपनी योजनाओं एवं प्रयासों को पूरा करने के लिए दिन-रात कड़ी मेहनत करने वाले एक गरीब परिवार को एक बीमारी बर्बाद कर सकती है। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि उन्होंने संविधान की भावना का सम्मान करते हुए 50-60 करोड़ नागरिकों को मुफ्त इलाज प्रदान करने के लिए आयुष्मान भारत योजना लागू की। प्रधानमंत्री ने कहा कि यह योजना समाज के किसी भी वर्ग के 70 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों सहित सभी के लिए स्वास्थ्य संबंधी देखभाल सुनिश्चित करती है।

गरीबों को मुफ्त राशन उपलब्ध कराने का जिक्र करते हुए, श्री मोदी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि 25 करोड़ लोगों ने सफलतापूर्वक गरीबी को परास्त कर दिया है।  उन्होंने कहा कि जो लोग गरीबी से उबरे हैं वे ही इस समर्थन के महत्व को समझते हैं। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि जिस तरह एक मरीज को अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद दोबारा बीमारी से बचने के लिए देखभाल करने की सलाह दी जाती है, उसी तरह गरीबों को फिर से गरीबी में जाने से बचाने के लिए उनका समर्थन करना आवश्यक है। प्रधानमंत्री ने कहा कि यही कारण है कि वे मुफ्त राशन प्रदान करते हैं, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जो लोग गरीबी से बाहर आ गए हैं वे फिर वापस न आएं, और जो लोग अभी भी गरीबी में हैं उन्हें इससे ऊपर उठने में मदद करें। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि इस प्रयास का मजाक उड़ाना अन्यायपूर्ण है, क्योंकि यह नागरिकों की गरिमा और कल्याण को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है।

यह कहते हुए कि गरीबों के नाम पर केवल नारे लगाए गए और उनके नाम पर बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया, श्री मोदी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि 2014 तक देश के 50 करोड़ नागरिकों ने कभी किसी बैंक के भीतर प्रवेश नहीं किया था। उन्होंने कहा कि उन्होंने 50 करोड़ गरीब नागरिकों के लिए बैंक खाते खोले हैं, इस प्रकार उनके लिए बैंकों के दरवाजे खुल गए हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि एक पूर्व प्रधानमंत्री ने एक बार कहा था कि दिल्ली से भेजे गए एक रुपये में से केवल 15 पैसे ही गरीबों तक पहुंचते हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि उन्होंने यह सुनिश्चित करके रास्ता दिखाया है कि आज दिल्ली से भेजे गए एक रुपये में से सभी 100 पैसे सीधे गरीबों के खाते में जमा किए जाएं। प्रधानमंत्री ने कहा कि हमने बैंकों का उचित उपयोग किया है। उन्होंने कहा कि जिन लोगों को पहले बैंकों के दरवाजे तक जाने की इजाजत नहीं थी, वे अब बिना किसी गारंटी के ऋण प्राप्त कर सकते हैं। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि गरीबों का यह सशक्तिकरण संविधान के प्रति सरकार के समर्पण का एक प्रमाण है।

प्रधान मंत्री ने कहा कि “गरीबी हटाओ” (गरीबी हटाओ) का नारा सिर्फ एक नारा बनकर रह गया क्योंकि गरीबों को उनकी कठिनाइयों से मुक्ति नहीं मिली। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि उनका मिशन और प्रतिबद्धता गरीबों को इन मुश्किलों से मुक्ति दिलाना है और वे इसे हासिल करने के लिए दिन-रात काम कर रहे हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि वह उन लोगों के लिए खड़े हैं जिनकी सहायता करने वाला कोई नहीं है।

दिव्यांगों के संघर्षों के बारे में बात करते हुए, श्री मोदी ने कहा कि उन्होंने अब दिव्यांग व्यक्तियों के लिए सुलभ बुनियादी ढांचा प्रदान किया है, जिससे उनकी व्हीलचेयर ट्रेन के डिब्बों तक पहुंच सके। उन्होंने कहा कि यह पहल समाज के वंचित वर्गों के प्रति उनकी चिंता से प्रेरित है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि जहां भाषा के नाम पर झगड़ा करना सिखाया गया है, वहीं दिव्यांग व्यक्तियों के साथ बहुत अन्याय किया गया है। प्रधानमंत्री ने कहा कि विभिन्न राज्यों में सांकेतिक भाषा प्रणालियां भिन्न-भिन्न हैं, जिससे दिव्यांगों के लिए कठिनाइयां पैदा होती हैं। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि हमने एक सामान्य सांकेतिक भाषा बनाई है, जिससे अब देश के सभी दिव्यांग व्यक्तियों को लाभ मिल रहा है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि घुमंतू और अर्ध-घुमंतू समुदायों का कल्याण सुनिश्चित करने वाला कोई नहीं था। उन्होंने कहा कि उनकी सरकार ने उनकी भलाई के लिए एक कल्याण बोर्ड की स्थापना की, क्योंकि ये लोग संविधान के तहत प्राथमिकता में हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि रेहड़ी-पटरी वालों, जो सुबह से रात तक अथक परिश्रम करते हैं, को अक्सर कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, जिसमें अपनी गाड़ियां किराए पर लेना और उच्च ब्याज दरों पर पैसा उधार लेना शामिल है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सरकार ने रेहड़ी-पटरी वालों को गारंटी-मुक्त ऋण प्रदान करने के लिए पीएम स्वनिधि योजना शुरू की। प्रधानमंत्री ने कहा कि इस योजना के कारण, स्ट्रीट वेंडर ऋण के तीसरे दौर में पहुंच गए हैं, सम्मान प्राप्त कर रहे हैं और अपने व्यवसाय का विस्तार कर रहे हैं।

यह कहते हुए कि इस देश में कोई भी ऐसा नहीं है जिसे विश्वकर्मा कारीगरों की सेवाओं की जरुरत नहीं पड़ती हो, श्री मोदी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि सदियों से एक महत्वपूर्ण प्रणाली मौजूद थी, लेकिन विश्वकर्मा कारीगरों के कल्याण पर कभी ध्यान नहीं दिया गया। प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्होंने विश्वकर्मा कारीगरों के कल्याण के लिए एक योजना बनाई है, जिसमें बैंक ऋण, नए प्रशिक्षण, आधुनिक उपकरण और नवीन डिजाइन के प्रावधान शामिल हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि उन्होंने विश्वकर्मा समुदाय का सहायता करने के लिए इस पहल को मजबूत किया है।

श्री मोदी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि सरकार ने भारतीय संविधान के तहत ट्रांसजेंडर लोगों के लिए अधिकार सुनिश्चित किए हैं और उनके अधिकारों की रक्षा करने तथा उन्हें सम्मानजनक जीवन प्रदान करने के लिए कानून बनाए हैं।

गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल, जब उमरगाम से लेकर अंबाजी तक पूरे आदिवासी क्षेत्र में एक भी विज्ञान विषय का स्कूल नहीं था, को याद करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि विज्ञान विषय के स्कूलों के बिना, आदिवासी छात्रों के लिए इंजीनियर या डॉक्टर बनना असंभव था। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि उन्होंने आदिवासी समुदाय की शैक्षिक जरूरतों को पूरा करते हुए उस क्षेत्र में विज्ञान विषय के स्कूल और विश्वविद्यालय स्थापित किए।

प्रधानमंत्री ने सबसे पिछड़े आदिवासी समुदायों के विकास पर केन्द्रित पीएम जन मन योजना बनाने में मार्गदर्शन के लिए राष्ट्रपति का आभार व्यक्त किया। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि वोट की राजनीति में अक्सर नजरअंदाज किए जाने वाले इन छोटे समूहों को अब इस योजना के माध्यम से ध्यान और समर्थन प्राप्त हुआ है। प्रधानमंत्री ने कहा कि वह हाशिए पर रहने वाले सबसे कमजोर लोगों को भी खोजने और उनकी सहायता करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

श्री मोदी ने कहा कि 60 वर्षों के दौरान 100 जिलों की पहचान पिछड़े के रूप में की गई और यह लेबल जिम्मेदार अधिकारियों के लिए दंडात्मक पोस्टिंग बन गया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि उन्होंने आकांक्षी जिलों की अवधारणा शुरू करके, 40 मापदंडों की नियमित रूप से ऑनलाइन निगरानी करके इस स्थिति को बदल दिया है। प्रधानमंत्री ने कहा कि आज, आकांक्षी जिले अपने राज्यों के सर्वश्रेष्ठ जिलों की बराबरी कर रहे हैं और कुछ तो राष्ट्रीय औसत तक भी पहुंच रहे हैं। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि कोई भी क्षेत्र पीछे नहीं रहना चाहिए और वे अब 500 प्रखंडों को आकांक्षी प्रखंडों के रूप में विकसित करने पर ध्यान केन्द्रित कर रहे हैं।

इस तथ्य को रेखांकित करते हुए कि आदिवासी समुदाय राम और कृष्ण के समय में भी अस्तित्व में था लेकिन फिर भी आजादी के दशकों के बाद भी उनके लिए कोई अलग मंत्रालय नहीं बनाया गया, प्रधानमंत्री ने कहा कि यह अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ही थी जिसने सबसे पहले आदिवासियों से जुड़े मामलों के लिए एक अलग मंत्रालय की स्थापना की थी और उनके विकास एवं प्रसार के लिए बजट आवंटित किया। मछुआरों के कल्याण के बारे में बोलते हुए, श्री मोदी ने कहा कि पहली बार उनकी सरकार ने मत्स्यपालन का एक अलग मंत्रालय बनाया और उनके कल्याण के लिए एक अलग बजट दिया गया। उन्होंने कहा कि समाज के इस वर्ग का ख्याल रखा गया है।

देश के छोटे किसानों के संबंध में, प्रधानमंत्री ने कहा कि सहकारिता उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग है। छोटे किसानों की चिंताओं पर प्रकाश डालते हुए, उन्होंने कहा कि सहकारी क्षेत्र को जिम्मेदार, मजबूत और सशक्त बनाकर छोटे किसानों के जीवन को ताकत देने के लिए एक अलग सहकारिता मंत्रालय बनाया गया है। कुशल श्रमशक्ति के महत्व पर जोर देते हुए, श्री मोदी ने कहा कि आज पूरी दुनिया श्रमशक्ति के लिए तरस रही है। उन्होंने कहा कि यदि हमें देश में जनसांख्यिकीय लाभांश प्राप्त करना है, तो हमारी यह श्रमशक्ति कुशल होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि एक अलग कौशल मंत्रालय बनाया गया ताकि देश के युवा दुनिया की जरूरतों के मुताबिक तैयार हों और वे दुनिया के साथ आगे बढ़ें।

उत्तर पूर्वी क्षेत्र के बारे में बात करते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारे उत्तर पूर्वी क्षेत्र को वहां कम वोट या सीटें मिलने के कारण उपेक्षित किया गया। उन्होंने कहा कि यह अटल जी की  सरकार ही थी जिसने पहली बार उत्तर पूर्वी क्षेत्र के कल्याण के लिए डोनर मंत्रालय बनाया और आज उसके कारण रेलवे, सड़क, बंदरगाह, हवाई अड्डे के निर्माण के साथ उत्तर पूर्वी क्षेत्र में विकास देखा जा सकता है।

प्रधानमंत्री ने सबसे समृद्ध देशों में आज भी भूमि रिकॉर्ड के महत्व और उसमें आने वाली समस्याओं को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि जमीनों का मालिकाना हक दिलाने के लिए सरकार की ओर से हरसंभव प्रयास किये गये, ताकि गांव के हर आम आदमी के पास उसके घर की जमीन का रिकॉर्ड हो, उसके घर के मालिकाना हक के कागजात हों, ताकि वह बैंक से ऋण ले सके और उसे अवैध कब्जे का कोई डर नहीं हो।

श्री मोदी ने कहा कि इन सभी कार्यों के कारण, पिछले 10 वर्षों में किए गए प्रयासों से गरीबों को एक नया आत्मविश्वास मिला है और इतने कम समय में 25 करोड़ लोग गरीबी को परास्त करने में सफल रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह सब इसलिए संभव हो सका क्योंकि हम संविधान के निर्देशन में काम कर रहे हैं।

प्रधानमंत्री ने कहा कि ‘सबका साथ, सबका विकास’, सिर्फ एक नारा नहीं है, बल्कि यह हमारे विश्वास का प्रतीक है और इसलिए हमने बिना किसी भेदभाव के सरकारी योजनाओं को लागू किया है। उन्होंने कहा कि सरकार योजनाओं की संतृप्ति के लिए प्रयासरत है, ताकि शत-प्रतिशत लाभार्थियों को लाभ मिल सके।. उन्होंने कहा कि अगर कोई सच्ची धर्मनिरपेक्षता है तो वह संतृप्ति में है और अगर कोई सच्चा सामाजिक न्याय है तो वह है संतृप्ति, यानी शत-प्रतिशत लाभ उस व्यक्ति को दिया जाना चाहिए जो इसका हकदार है, बिना किसी भेदभाव के। उन्होंने कहा कि यही सच्ची धर्मनिरपेक्षता और सच्चा सामाजिक न्याय है।

संविधान की भावना को देश को दिशा देने का माध्यम बताते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि देश के चालक बल के रूप में राजनीति केन्द्र में रहती है। उन्होंने कहा कि हमें सोचना चाहिए कि आने वाले दशकों में हमारे लोकतंत्र व हमारी राजनीति की दिशा क्या होनी चाहिए।

श्री मोदी ने कुछ दलों से उनके राजनीतिक स्वार्थ और सत्ता की भावना के बारे में सवालकरते हुए पूछा कि क्या उन्होंने कभी खुद इस बारे में सोचा है और कहा कि उनका आशय सभी दलों से है। उन्होंने कहा कि ये उनके मन के विचार हैं, जिन्हें वह इस सदन के सामने रखना चाहते हैं।

प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि सभी राजनीतिक दलों को देश के युवाओं को आकर्षित करने, लोकतंत्र को मजबूत करने और देश के युवाओं को आगे लाने के लिए प्रयास करना चाहिए। उन्होंने कहा कि युवाओं को राजनीति में लाना देश के लोकतंत्र की जरूरत है और दोहराया कि एक लाख ऐसे युवाओं को देश की राजनीति में लाया जाना चाहिए, जिनकी कोई राजनीतिक पारिवारिक पृष्ठभूमि न हो। उन्होंने कहा कि देश को नई ऊर्जा और नए संकल्पों और सपनों के साथ आने वाले युवाओं की जरूरत है और जब हम भारत के संविधान के 75 साल का उत्सव मना रहे हैं, तो हमें उस दिशा में आगे बढ़ना चाहिए।

संविधान में हमारे कर्तव्यों को लेकर लाल किले से किए गये अपने उल्लेख को याद करते हुए, श्री मोदी ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि यह नहीं समझा गया कि संविधान ने जहां नागरिकों के अधिकारों का निर्धारण किया है, वहीँ उनसे कर्तव्यों की अपेक्षा भी की है। उन्होंने कहा कि हमारी सभ्यता का सार धर्म है, हमारा कर्तव्य है। महात्मा गांधी जी का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि महात्मा जी ने कहा था कि उन्होंने अपनी अशिक्षित लेकिन विद्वान मां से सीखा था कि हम जिस तरह अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं, उससे ही अधिकार निकलते हैं। श्री मोदी ने कहा कि वह महात्मा जी के शब्दों को आगे बढ़ाते हुए कहना चाहेंगे कि अगर हम अपने मौलिक कर्तव्यों का पालन करें तो हमें विकसित भारत बनाने से कोई नहीं रोक सकता। उन्होंने कहा कि संविधान का 75 वां वर्ष हमारे कर्तव्य के प्रति समर्पण, हमारी प्रतिबद्धता को और ताकत दे और समय की मांग है कि देश कर्तव्य की भावना के साथ आगे बढ़े।

प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत के भविष्य के लिए संविधान की भावना से प्रेरित होकर वह सदन के समक्ष 11 प्रस्ताव रखना चाहते हैं। पहला संकल्प यह है कि चाहे नागरिक हो या सरकार, सभी को अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए। दूसरा संकल्प है कि हर क्षेत्र, हर समाज को विकास का लाभ मिले, सबका साथ सबका विकास। तीसरा संकल्प यह है कि भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस हो, भ्रष्टाचारी की कोई सामाजिक स्वीकार्यता न हो। चौथा संकल्प यह है कि देश के नागरिकों को देश के कानून, देश के नियमों और देश की परंपराओं का पालन करने में गर्व हो। पांचवां संकल्प है गुलामी की मानसिकता से मुक्ति मिले, देश की विरासत पर गर्व हो। छठा संकल्प है कि देश की राजनीति को भाई-भतीजावाद से मुक्त किया जाए। सातवां संकल्प, संविधान का सम्मान किया जाए, संविधान को राजनीतिक लाभ के लिए हथियार के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाए। आठवां संकल्प, संविधान की भावना को ध्यान में रखते हुए जिन लोगों को आरक्षण मिल रहा है, उनसे आरक्षण नहीं छीना जाए और धर्म के आधार पर आरक्षण देने की हर कोशिश को रोका जाए। नौवां संकल्प, महिलाओं के नेतृत्व वाले विकास में भारत दुनिया के लिए मिसाल बने। दसवां संकल्प, राज्य के विकास से देश का विकास, यही हमारा विकास का मंत्र हो। ग्यारहवां संकल्प, एक भारत-श्रेष्ठ भारत का लक्ष्य सर्वोपरि हो।

प्रधानमंत्री ने कहा कि हम सब मिलकर इस संकल्प के साथ अगर आगे बढ़ते हैं, तो सबके प्रयास से हम लोग, विकसित भारत का सपना पूरा कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि जब 140 करोड़ देशवासियों का सपना पूरा होता है और देश संकल्प लेकर चलने लगता है तो इच्छित परिणाम मिलते हैं। श्री मोदी ने कहा कि उनके मन में 140 करोड़ देशवासियों के प्रति अगाध सम्मान है, उनकी शक्ति पर उन्हें अगाध विश्वास है, उन्हें देश की युवा शक्ति पर, देश की नारी शक्ति पर अगाध विश्वास है। अपने संबोधन का समापन करते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि हमें इस संकल्प के साथ आगे बढ़ना चाहिए कि 2047 में जब देश आजादी के 100 वर्ष मनाएगा, तो उसे विकसित भारत के रूप में मनाएगा।

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