जवाब: यदि आप G20 का स्लोगन देखें, तो यह ‘वसुधैव कुटुंबकम – एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य’ है। यह वाक्य G20 प्रेसीडेंसी के प्रति हमारे दृष्टिकोण को सही तरीके से पेश करता है। हमारे लिए पूरा ग्रह एक परिवार की तरह है। किसी भी परिवार में, प्रत्येक सदस्य का भविष्य, दूसरे सदस्य के साथ गहराई से जुड़ा होता है। इसलिए जब हम एक साथ काम करते हैं, तो हम एक साथ प्रगति करते हैं। इसमें किसी को पीछे नहीं छोड़ते हैं।
इसके अलावा, यह सब जानते हैं कि हमने पिछले 9 वर्षों में अपने देश में; ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, सबका प्रयास’ के दृष्टिकोण का पालन किया है। इसने देश को प्रगति के लिए एक साथ लाने और अंतिम छोर तक विकास का लाभ पहुंचाने में बहुत बड़ा योगदान दिया है। आज इस मॉडल की सफलता को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान मिल रही है।
वैश्विक संबंधों में भी यही हमारा मार्गदर्शक सिद्धांत है।
सबका साथ – हम सभी को प्रभावित करने वाली सामूहिक चुनौतियों का सामना करने के लिए दुनिया को एक साथ लाना।
सबका विकास – मानव-केंद्रित विकास को हर देश और हर क्षेत्र तक ले जाना।
सबका विश्वास – प्रत्येक स्टेकहोल्डर की आकांक्षाओं की पहचान और उनके विचारों के जरिये से उनका विश्वास जीतना।
सबका प्रयास – दुनिया की भलाई के लिए प्रत्येक देश की अद्वितीय शक्ति और कौशल का उपयोग करना।
सवाल: आप युद्ध और जिओ-पोलिटिकल तनाव से भरे समय में दुनिया के तमाम बड़े नेताओं की मेजबानी करेंगे। दूसरे विश्व युद्ध के बाद से अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था इतनी अस्थिर नहीं रही है जितनी इस समय है। ऐसी स्थिति में G20 समिट की थीम ‘वसुधैव कुटुंबकम’ या ‘एक विश्व, एक परिवार, एक भविष्य’ है। जिन राष्ट्रपतियों और प्रधानमंत्रियों से आप मिलते हैं वे ‘वसुधैव कुटुंबकम’ और अंतरराष्ट्रीय समस्याओं को हल करने के लिए मानव-केंद्रित दृष्टिकोण के आपके आह्वान पर कैसी प्रतिक्रिया दे रहे हैं?
जवाब: इस सवाल का जवाब देने के लिए मेरे लिए उस पृष्ठभूमि के बारे में थोड़ा बोलना जरूरी है जिसमें भारत G20 का अध्यक्ष बना। जैसा कि आपने कहा, एक महामारी और उसके बाद संघर्ष की स्थितियों ने दुनिया के सामने मौजूदा विकास मॉडल को लेकर बहुत सारे सवाल खड़े कर दिए हैं। इसने दुनिया को अनिश्चितता और अस्थिरता के युग में भी धकेल दिया है।
पिछले कई सालों से, दुनिया कई क्षेत्रों में भारत के विकास को उत्सुकता के नजरिए से देख रही है। हमारे आर्थिक सुधार, बैंकिंग सुधार, सामाजिक क्षेत्र में क्षमता निर्माण, वित्तीय और डिजिटल समावेशन पर हुए काम, स्वच्छता, बिजली और आवास जैसी बुनियादी सुविधाओं में हुए विकास और इंफ्रास्ट्रक्चर में हुए अभूतपूर्व निवेश की अंतरराष्ट्रीय संगठनों और विषय के जानकारों द्वारा सराहना की गई है। ग्लोबल निवेशकों ने भी साल दर साल FDI में रिकॉर्ड बनाकर भारत पर अपना भरोसा जताया है।
ऐसे में जब महामारी आई, तो दुनिया को लग रहा था कि भारत अब क्या करेगा। हमने स्पष्ट और समन्वित दृष्टिकोण के साथ महामारी से लड़ाई लड़ी। हमने गरीबों और कमजोर लोगों की जरूरतों का ख्याल रखा। हमारे डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर ने हमें कल्याणकारी योजनाओं को सीधे जरूरतमंदों तक पहुंचाने में मदद की। दुनिया के सबसे बड़े वैक्सीन अभियान से 200 करोड़ खुराक मुफ्त प्रदान की गईं। हमने 150 से अधिक देशों को टीके और दवाएं भी भेजीं। यह माना गया कि ग्रोथ के हमारे मानव कल्याणकारी नजरिए ने महामारी से पहले, महामारी के दौरान और उसके बाद काम आसान किया। हमारी अर्थव्यवस्था लंबे समय से दुनिया में तेजी से ग्रोथ करती अर्थव्यवस्था थी और तब भी सबसे तेजी से ग्रोथ करती अर्थव्यवस्था बनी रही, जब दुनिया तमाम संकटों से संघर्ष कर रही थी।
पिछले 9 वर्षों में भारत, इंटरनैशनल सोलर एलायंस और कोएलिशन फॉर डिजास्टर रेजिलिएंट इंफ्रास्ट्रक्चर जैसी विभिन्न पहलों के जरिए, विभिन्न देशों को एक साथ लाने के लिए काम कर रहा था। इसलिए, भारत के शब्दों, कार्यों और दृष्टिकोण को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समावेशी और प्रभावी दोनों के रूप में व्यापक स्वीकृति मिली है। ऐसे समय में जब हमारे देश की क्षमताओं में वैश्विक भरोसा अभूतपूर्व स्तर पर था, हम G20 के अध्यक्ष बने।
इसलिए, जब हमने G20 के लिए अपना एजेंडा रखा, तो इसका सभी ने स्वागत किया गया, क्योंकि हर कोई जानता था कि हम वैश्विक मुद्दों के समाधान खोजने में मदद करने के लिए अपना सक्रिय और सकारात्मक दृष्टिकोण पेश करेंगे। G20 अध्यक्ष के रूप में, हम एक बॉयोफ्यूल एलायंस भी शुरू कर रहे हैं जो तमाम देशों को उनकी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में मदद करेगा और साथ ही एक पर्यावरण अनुकूल अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाएगा। जब ग्लोबल लीडर मुझसे मिलते हैं, तो वे विभिन्न सेक्टरों में 140 करोड़ भारतीयों के प्रयासों को देखकर भारत के बारे में आशावाद की भावना से भर जाते हैं। वे यह भी मानते हैं कि भारत के पास देने के लिए बहुत कुछ है और उसे वैश्विक भविष्य को आकार देने में बड़ी भूमिका निभानी चाहिए। G20 मंच के माध्यम से हमारे काम के प्रति उनके समर्थन में भी यह देखा गया है।
सवाल: आपने भारत की G20 की अध्यक्षता को पीपुल्स प्रेसीडेंसी के रूप में बताया है। इसे एक या दो शहरों तक सीमित रखने के बजाय, G20 कार्यक्रम पूरे देश में आयोजित किए गए हैं। आपने G20 को लोकतांत्रिक बनाने के नए विचार के बारे में निर्णय क्यों लिया?
जवाब: मेरे गुजरात का मुख्यमंत्री बनने के बाद के जीवन के बारे में बहुत से लोग जानते हैं। लेकिन उससे पहले कई दशकों तक, मैंने अराजनीतिक और राजनीतिक दोनों व्यवस्थाओं में संगठनात्मक भूमिकाएं निभाई थीं। परिणामस्वरूप, मुझे हमारे देश के लगभग हर जिले में जाने और रहने का अवसर मिला है। मेरे जैसे स्वाभाविक रूप से जिज्ञासु व्यक्ति के लिए, विभिन्न क्षेत्रों, लोगों, अद्वितीय संस्कृतियों और व्यंजनों और उनकी चुनौतियों के साथ-साथ अन्य पहलुओं के बारे में सीखना, एक जबरदस्त शिक्षाप्रद अनुभव था। भले ही मैं हमारे विशाल राष्ट्र की विविधता पर आश्चर्यचकित था, लेकिन एक सामान्य बात थी जो मैंने पूरे देश में देखी। हर क्षेत्र और समाज के हर वर्ग के लोगों में ‘can do’ spirit थी। उन्होंने बड़ी दक्षता और कुशलता से चुनौतियों का सामना किया। विपरीत परिस्थितियों में भी उनमें गजब का आत्मविश्वास था। उन्हें बस एक ऐसे मंच की जरूरत थी जो उन्हें सशक्त बनाए।
ऐतिहासिक रूप से, सत्ता के हलकों में, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बैठकों की मेजबानी के लिए दिल्ली, विशेषकर ‘विज्ञान भवन’ से परे सोचने के प्रति एक निश्चित अनिच्छा रही है। ऐसा शायद सुविधा या लोगों में विश्वास की कमी के कारण हुआ होगा।
इसके अलावा, हमने यह भी देखा है कि कैसे विदेशी नेताओं की यात्राएं भी मुख्य रूप से राष्ट्रीय राजधानी या कुछ अन्य स्थानों तक ही सीमित थीं। लोगों की क्षमताओं और हमारे देश की अद्भुत विविधता को देखकर, मैंने एक अलग दृष्टिकोण विकसित किया है। इसलिए, हमारी सरकार ने पहले दिन से ही दृष्टिकोण बदलने पर काम किया है।
मैंने देश भर में वैश्विक नेताओं के साथ कई कार्यक्रमों की मेजबानी की है।
मैं इसके कुछ उदाहरण बताना चाहता हूं। बेंगलुरु में तत्कालीन जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल की मेजबानी की गई थी। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों और तत्कालीन जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने वाराणसी का दौरा किया। पुर्तगाली राष्ट्रपति मार्सेलो रेबेलो डी सूजा की गोवा और मुंबई में मेजबानी की गई। बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने शांतिनिकेतन का दौरा किया। तत्कालीन फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने चंडीगढ़ का दौरा किया।
दिल्ली के बाहर विभिन्न स्थानों पर कई वैश्विक बैठकें भी आयोजित की गई हैं। ‘द ग्लोबल आंत्रप्रेन्योरशिप समिट’ हैदराबाद में आयोजित किया गया था। भारत ने गोवा में ‘ब्रिक्स समिट’ और जयपुर में ‘फोरम फॉर इंडिया-पैसिफिक आइलैंड्स कॉरपोरेशन समिट’ की मेजबानी की। मैं और उदाहरण दे सकता हूं, लेकिन जो पैटर्न आप यहां देख सकते हैं वह यह है कि इसके प्रचलित दृष्टिकोण में एक बड़ा बदलाव नजर आया है।
यहां ध्यान देने वाली एक और बात यह है कि मैंने जो उदाहरण बताये हैं। उनमें से कई उन राज्यों के हैं जहां उस समय गैर-एनडीए सरकारें थीं। जब राष्ट्रीय हित की बात हो तो यह सहयोगी संघवाद और द्विदलीयता में हमारे दृढ़ विश्वास का भी प्रमाण है।
यही भावना आप हमारी G20 प्रेसीडेंसी में भी देख सकते हैं।
हमारी G20 प्रेसीडेंसी के अंत तक, सभी 28 राज्यों और 8 केंद्र शासित प्रदेशों के 60 शहरों में 220 से अधिक बैठकें हो चुकी होंगी। लगभग 125 देशों के 1 लाख से अधिक प्रतिभागियों ने भारत का दौरा किया होगा। हमारे देश में 1.5 करोड़ से अधिक व्यक्ति इन कार्यक्रमों में शामिल हुए या उनके विभिन्न पहलुओं से अवगत हो चुके होंगे। इस तरह के पैमाने पर बैठकें आयोजित करना और विदेशी प्रतिनिधिमंडलों की मेजबानी करना एक ऐसा प्रयास है जो इंफ्रास्ट्रक्चर, लॉजिस्टिक्स, कम्युनिकेशन स्किल, आतिथ्य और सांस्कृतिक गतिविधियों आदि के संदर्भ में महान क्षमता निर्माण का आह्वान करता है। G20 की अध्यक्षता का हमारा लोकतंत्रीकरण हमारे देश के विभिन्न शहरों के लोगों, विशेषकर युवाओं की क्षमता निर्माण में हमारा निवेश है। इसके अलावा, यह जन-भागीदारी के हमारे मूल मंत्र का एक और उदाहरण है – हम मानते हैं कि किसी भी पहल की सफलता में लोगों की भागीदारी सबसे महत्वपूर्ण कारक है।
सवाल: एशियाई फाइनेंशियल क्राइसिस से निपटने के लिए 1999 में G20 की स्थापना की गई थी। जबकि सेकेंड वर्ल्ड वॉर के बाद स्थापित अनेक अंतरराष्ट्रीय संस्थान अपना मकसद पूरा नहीं कर पाए हैं। ऐसे में क्या आपको लगता है कि G20 ने अपने दायित्व को पूरा किया है?
जवाब: मुझे लगता है कि ऐसे समय में जब भारत G20 की अध्यक्षता कर रहा है, तब मेरा G20 के दायित्वों का मूल्यांकन करना ठीक नहीं है।
लेकिन मेरा मानना है कि यह अच्छा सवाल है। और इसके जवाब तक पहुंचने के लिए कई चीजों को समझना होगा। बहुत जल्द, G20 की स्थापना के 25 साल पूरे हो जाएंगे। यह एक अहम मौका है जब यह मूल्यांकन करना चाहिए कि यह संस्थान किस हद तक अपने मकसद को पूरा कर पाया है। ऐसा करना हर संस्थान के लिए जरूरी है। यह और भी दिलचस्प होता अगर संयुक्त राष्ट्र ने भी अपने 75 साल पूर्ण होने पर ऐसा किया होता।
G20 के 25 वर्ष पूरे होने पर, विशेष रूप से ग्लोबल साउथ के बाहर के देशों के विचार जानना भी एक अच्छा आईडिया होगा। इस तरह के इनपुट अगले 25 वर्षों के लिए भविष्य की दिशा तय करने के लिए बहुत मूल्यवान होंगे
मैं उल्लेख करना चाहूंगा कि ऐसे कई देश, शैक्षणिक संस्थान, वित्तीय संस्थान और सिविल सोसाइटी संगठन हैं, जो G20 के साथ लगातार बातचीत करते हैं, विचार और इनपुट प्रदान करते हैं तथा अपेक्षाएं भी व्यक्त करते हैं। उम्मीदें वहीं बनती हैं जहां डिलीवरी का ट्रैक रिकॉर्ड हो और भरोसा हो कि कुछ हासिल होगा।
भारत भी G20 का अध्यक्ष बनने से पहले से इस मंच पर सक्रिय रहा है। आतंकवाद से लेकर काले धन तक, सप्लाई चेन रेजिलिएंस से लेकर जलवायु-सचेत विकास तक, हमने पिछले कुछ वर्षों में उभरती चर्चाओं और कार्यों में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। G20 में उठाए जाने के बाद इन मुद्दों पर वैश्विक सहयोग में भी सराहनीय विकास हुआ है। बेशक, सुधार की गुंजाइश हमेशा रहती है, जैसे ग्लोबल साउथ की अधिक भागीदारी और अफ्रीका की बड़ी भूमिका आदि। ये वे क्षेत्र हैं जिन पर भारत अपनी G20 अध्यक्षता के दौरान काम कर रहा है।
सवाल: एक तरफ, संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के नेतृत्व वाले गुटों के साथ वैश्विक व्यवस्था के विभाजन के बारे में बहुत चर्चा हो रही है। लेकिन दूसरी ओर, भारत एक बहुध्रुवीय विश्व और एक बहुध्रुवीय एशिया की वकालत करता रहा है। आपको क्या लगता है कि भारत G20 देशों के बीच प्रतिस्पर्धा और यहां तक कि अलग-अलग हितों में सामंजस्य कैसे बिठा रहा है?
जवाब: हम अत्यधिक रूप से परस्पर जुड़ी हुई और एक दूसरे पर आश्रित दुनिया में रहते हैं। टेक्नोलॉजी का प्रभाव सरहदों और सीमाओं से परे है।
वहीं, यह भी हकीकत है कि हर देश के अपने-अपने हित होते हैं। इसलिए, सामान्य लक्ष्यों पर आम सहमति बनाने का निरंतर प्रयास महत्वपूर्ण है। संवाद के विभिन्न फोरम और मंच इसके लिए बने हुए हैं।
नई दुनिया बहुध्रुवीय है। प्रत्येक देश कुछ मुद्दों पर दूसरे देश से सहमत होता है और कुछ पर असहमत होता है। इस वास्तविकता को स्वीकार कर अपने राष्ट्रीय हितों के आधार पर आगे का रास्ता निकाला जाता है। भारत भी यही कर रहा है। हमारे कई अलग-अलग देशों के साथ घनिष्ठ संबंध हैं। परंतु कुछ कुछ मुद्दों पर वे खुद को अलग-अलग खेमों में पाते हैं। लेकिन एक सामान्य बात यह है कि ऐसे दोनों देशों के भारत के साथ मजबूत संबंध हैं।
आज प्राकृतिक संसाधनों और इंफ्रास्ट्रक्चर पर दबाव बढ़ता जा रहा है। ऐसे समय में, यह महत्वपूर्ण है कि दुनिया ‘शायद सही है’ संस्कृति के खिलाफ मजबूती से खड़ी हो। यह स्वीकार किया जाना चाहिए कि संसाधनों के अधिकतम उपयोग के जरिये साझा समृद्धि ही आगे बढ़ने का एकमात्र रास्ता है।
ऐसे संदर्भ में, भारत के पास एक ऐसा संसाधन है जो शायद किसी भी अन्य प्रकार के संसाधन से अधिक महत्वपूर्ण है – वह है हमारा मानव संख्याबल, जो कुशल और प्रतिभाशाली है। हमारी जनसांख्यिकी, विशेष रूप से यह तथ्य कि हम दुनिया में युवाओं की सबसे बड़ी आबादी वाला देश हैं। यह हमें ग्रह के भविष्य के लिए बेहद प्रासंगिक बनाती है। यह दुनिया के देशों को प्रगति की दिशा में हमारे साथ साझेदारी करने का एक मजबूत कारण भी देता है। दुनिया भर के देशों के साथ स्वस्थ संबंध बनाए रखने में, मुझे भारतीय प्रवासियों की भूमिका की भी सराहना करनी चाहिए। भारत और विभिन्न देशों के बीच एक कड़ी के रूप में, वे भारत की विदेश नीति को अन्य देशों तक पहुंचाने में एक प्रभावशाली और महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
सवाल: भारत सुधारित बहुपक्षवाद (Reformed Multilateralism) का मजबूत समर्थक रहा है। ताकि हमारे पास भी एक सही इंटरनैशनल व्यवस्था हो। G20 की भी यह प्राथमिकता है। क्या आप Reformed Multilateralism के बारे में अपना नजरिया विस्तार से बता सकते हैं?
जवाब: जो संस्थाएं समय के साथ सुधार नहीं कर सकतीं, वे भविष्य का अनुमान नहीं लगा सकतीं या उसके लिए तैयारी नहीं कर सकतीं। इस क्षमता के बिना, वे कोई वास्तविक प्रभाव पैदा नहीं कर सकतीं और अप्रासंगिक वाद-विवाद क्लब के रूप में समाप्त हो सकती हैं।
इसके अलावा, जब यह देखा जाता है कि ऐसे संस्थान उन लोगों के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर सकते हैं, जो वैश्विक नियम-आधारित आदेश का उल्लंघन करते हैं या इससे भी बदतर ये होता है जब वे ऐसी संस्थाओं द्वारा हाईजैक कर लिये जाते हैं, तो उनकी विश्वसनीयता खोने का जोखिम रहता है। ऐसे संस्थानों द्वारा संचालित एक विश्वसनीय बहुपक्षवाद की आवश्यकता है जो सुधार को अपनाये और विभिन्न हितधारकों के साथ निरंतरता, समानता और सम्मान के साथ व्यवहार करें।
अब तक, हमने संस्थानों के बारे में बात की। लेकिन इससे परे, एक सुधारित बहुपक्षवाद को व्यक्तियों, समाजों, संस्कृतियों और सभ्यताओं की शक्ति का उपयोग करने के लिए संस्थागत क्षेत्र से परे जाने पर भी फोकस करने की आवश्यकता है। यह केवल अंतरराष्ट्रीय संबंधों को लोकतांत्रिक बनाकर किया जा सकता है। सिर्फ सरकार-से-सरकार के संबंधों को एकमात्र माध्यम बनाकर नहीं किया जा सकता है। व्यापार और पर्यटन, खेल और विज्ञान, संस्कृति और वाणिज्य, एवं प्रतिभा तथा प्रौद्योगिकी की गतिशीलता जैसे मार्गों के माध्यम से लोगों से लोगों के बीच संपर्क बढ़ाने से विभिन्न देशों, उनकी आकांक्षाओं और उनके दृष्टिकोण के बीच एक सच्ची समझ पैदा होगी।
अगर हम जन-केंद्रित नीति पर ध्यान केंद्रित करें तो आज हमारी दुनिया का इंटर कनेक्टेड नेचर, शांति और प्रगति की ताकत बन सकता है।
सवाल: आपकी कूटनीति का एक उल्लेखनीय तत्व यह रहा है कि भारत दुनिया के लगभग हर देश का मित्र है, जो दुर्लभ है। अमेरिका से रूस और पश्चिम एशिया से लेकर दक्षिण-पूर्व एशिया तक, आपने हर क्षेत्र में संबंधों को मजबूत किया है। क्या आपको लगता है कि आज भारत G20 में ग्लोबल साउथ की भरोसेमंद आवाज है?
जवाब: विभिन्न क्षेत्रों के, विभिन्न देशों के साथ भारत के संबंधों को मजबूत करने के पीछे कई कारक हैं।
कई दशकों की अस्थिरता के बाद, 2014 में, भारत के लोगों ने एक स्थिर सरकार के लिए मतदान किया, जिसमें विकास के लिए एक स्पष्ट एजेंडा था।
इन सुधारों ने भारत को न केवल अपनी अर्थव्यवस्था, शिक्षा, स्वास्थ्य और वेलफेयर डिलीवरी को मजबूत करने के लिए सशक्त बनाया, बल्कि देश को विभिन्न डोमेन में वैश्विक समाधानों का हिस्सा बनने की क्षमता भी दी। चाहे वह अंतरिक्ष हो, साइंस और टेक्नोलॉजी हो, व्यापार हो, अर्थव्यवस्था हो या इकोलॉजी; भारत के कार्यों की दुनिया भर में सराहना की गई है।
जब भी कोई देश हमारे साथ बातचीत करता था, तो वे जानते थे कि वे एक आकांक्षी भारत के साथ बातचीत कर रहे हैं जो अपने हितों का ख्याल रखते हुए, उनकी प्रगति में उनके साथ साझेदारी करना चाहता है। यह एक ऐसा भारत था, जिसके पास हर रिश्ते में योगदान करने के लिए बहुत कुछ था और स्वाभाविक रूप से, हमारे वैश्विक पदचिह्न विभिन्न क्षेत्रों में बढ़े और यहां तक कि जो देश एक-दूसरे को प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखते थे, वे हमारे साथ मित्रतापूर्ण हो गए।
इसके अलावा, जब ग्लोबल साउथ की बात आती है, तो ये ऐसे देश हैं जिनके साथ हम सहानुभूति रखते हैं। चूंकि हम भी विकासशील दुनिया का हिस्सा हैं, इसलिए हम उनकी आकांक्षाओं को समझते हैं। G20 समेत हर मंच पर भारत, ग्लोबल साउथ के देशों की चिंताओं को उठाता रहा है।
जैसे ही हम G20 के अध्यक्ष बने, हमने ‘वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ’ समिट आयोजित किया, जिसने यह स्पष्ट कर दिया कि हम उन लोगों को शामिल करने के लिए एक आवाज हैं, जो वैश्विक विमर्श और संस्थागत प्राथमिकताओं से बाहर महसूस करते हैं।
हमने वर्षों से अफ्रीका के साथ अपने संबंधों को महत्व दिया है। G20 में भी हमने अफ्रीकन यूनियन को शामिल करने के विचार को गति प्रदान की है।
हम एक ऐसे राष्ट्र हैं, जो दुनिया को एक परिवार के रूप में देखते हैं। हमारा G20 का आदर्श वाक्य भी यही कहता है। किसी भी परिवार में, हर सदस्य की आवाज मायने रखती है और दुनिया के लिए भी यही हमारा विचार है।
सवाल: यह एक अल नीनो वर्ष है और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव, बाढ़ और आग के रूप में पहले से कहीं अधिक दिखाई दे रहे हैं। भले ही विकसित देश, जलवायु परिवर्तन के बारे में बहुत बात करते हैं, लेकिन वे 2020 तक 100 बिलियन डॉलर का फाइनेंस प्रदान करने की अपने मुख्य जलवायु प्रतिबद्धता को पूरा नहीं कर रहे हैं। इसके विपरीत, युद्धों के लिए धन की अंतहीन आपूर्ति है। एक ऐसे नेता के रूप में जो ग्लोबल साउथ की आकांक्षा के अनुरूप है, इस मुद्दे पर उन अमीर देशों को आपका क्या संदेश है जो G20 का हिस्सा हैं?
जवाब: मुझे लगता है कि यह समझने की जरूरत है कि आगे का रास्ता दायरे, रणनीति और संवेदनशीलता में बदलाव से संबंधित है। सबसे पहले, मैं आपको बता दूं कि दायरे में बदलाव की जरूरत कैसे है। विश्व को, चाहे वह विकसित देश हों या विकासशील, यह स्वीकार करने की आवश्यकता है कि जलवायु परिवर्तन न केवल एक वास्तविकता है बल्कि एक साझा वास्तविकता है। जलवायु परिवर्तन का प्रभाव क्षेत्रीय या स्थानीय नहीं बल्कि वैश्विक है।
हां, इसके काम करने के तरीके में क्षेत्रीय भिन्नताएं होंगी।
हां, ग्लोबल साउथ असंगत रूप से प्रभावित होगा।
लेकिन एक गहराई से परस्पर जुड़ी हुई दुनिया में, ग्रह की इतनी बड़ी आबादी को प्रभावित करने वाली कोई भी चीज निश्चित रूप से बाकी दुनिया पर भी प्रभाव डालेगी। इसलिए समाधान को अपने दायरे में वैश्विक बनाना होगा।
दूसरा कारक जिसमें बदलाव की आवश्यकता है, वह रणनीति के संदर्भ में है। प्रतिबंधों, आलोचना और दोष पर असंगत ध्यान केंद्रित करने से हमें किसी भी चुनौती से निपटने में मदद नहीं मिल सकती है, खासकर जब हम इसे एक साथ करना चाहते हैं। इसलिए, इस बात पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है कि किन सकारात्मक कार्यों की जरूरत है, जैसे कि एनर्जी ट्रांजीशन, सस्टेनेबल एग्रीकल्चर और जीवनशैली में परिवर्तन तथा इन्हें अधिक बढ़ावा देना।
तीसरा कारक जिसमें परिवर्तन की आवश्यकता है वह है संवेदनशीलता। यह समझने की जरूरत है कि गरीबों और इस ग्रह, दोनों को हमारी मदद की जरूरत है। दुनिया के विभिन्न देश, विशेष रूप से ग्लोबल साउथ; जलवायु संकट की सर्वाधिक जद में हैं, बावजूद इसके कि इस समस्या को पैदा करने में उनकी भूमिका न्यूनतम है। लेकिन वे ग्रह की मदद के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं, बशर्ते दुनिया अपने गरीब लोगों की देखभाल में उनकी मदद करने के लिए कुछ भी करने को तैयार हो। इसलिए, एक संवेदनशील और सहानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण, जो संसाधन जुटाने और टेक्नोलॉजी ट्रांसफर पर केंद्रित हो, चमत्कार कर सकता है।
सवाल: आप क्लीन और रिन्यूएबल एनर्जी के प्रबल समर्थक रहे हैं। भले ही कुछ ऊर्जा संपन्न देशों में रिन्यूएबल एनर्जी की त्वरित तैनाती और जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से कम करने का विरोध किया जा रहा है, लेकिन भारत ने इस मुद्दे पर दृढ़ प्रतिबद्धता दिखाई है। G20 सदस्यों को सामूहिक रूप से और व्यक्तिगत रूप से यह दिखाने के लिए क्या करना चाहिए कि वे वास्तव में क्लीन एनर्जी तैनाती के लिए समर्पित हैं?
जवाब: जैसा कि मैंने पहले जलवायु संकट की प्रतिक्रिया में पूरी तरह से प्रतिबंधात्मक दृष्टिकोण के बजाय रचनात्मक दृष्टिकोण अपनाने का उल्लेख किया था। पिछले 9 वर्षों से भारत इसका उदाहरण प्रस्तुत कर रहा है।
पहले हम उन कदमों के बारे में बात करते हैं जो हमने घरेलू स्तर पर उठाए हैं। पेरिस बैठक में हमने कहा था कि हम यह सुनिश्चित करेंगे कि 2030 तक हमारी एनर्जी का 40 प्रतिशत हिस्सा गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से आएगा। हमने अपने वादे से 9 साल पहले 2021 में ही इसे हासिल कर लिया। यह हमारी एनर्जी खपत को कम करके नहीं बल्कि हमारे रिन्यूएबल एनर्जी को बढ़ाकर संभव बनाया गया था। सोलर एनर्जी की स्थापित क्षमता 20 गुना बढ़ गई। विंड एनर्जी के मामले में हम दुनिया के शीर्ष 4 देशों में शामिल हैं।
सरकार, इलेक्ट्रिक वाहन उद्योग के लिए प्रोत्साहन प्रदान करने पर काम कर रही है। उद्योग ने अधिक नवाचार के साथ प्रतिक्रिया दी है और लोग विकल्प की कोशिश करने के लिए अधिक खुलेपन के साथ इसका जवाब दे रहे हैं। सिंगल-यूज प्लास्टिक के उपयोग से बचने के लिए व्यवहार परिवर्तन एक जन-आंदोलन बन गया। सेफ सैनिटेशन और स्वच्छता अब सामाजिक मानदंड हैं। सरकार प्राकृतिक खेती को लोकप्रिय बनाने के लिए काम कर रही है और हमारे किसान भी इसे तेजी से अपनाने की कोशिश कर रहे हैं।
मोटा अनाज उगाना और उपभोग करना, हमारे अपने ‘श्री अन्न’ अब हमारे राष्ट्रीय विमर्श में एक महत्वपूर्ण विषय है और अगले जन-आंदोलन के रूप में आकार ले रहा है। तो, भारत में बहुत कुछ ऐसा हो रहा है जिसने व्यापक प्रभाव डाला है। स्वाभाविक रूप से, हमने अपने ग्रह की देखभाल के लिए देशों को एक साथ लाने के वैश्विक प्रयासों का भी नेतृत्व किया है।
इंटरनैशनल सोलर अलायंस ‘वन वर्ल्ड वन सन वन ग्रिड’ के मंत्र के साथ दुनिया भर में पहुंच गया है। यह विश्व स्तर पर प्रतिध्वनित हुआ है और 100 से अधिक देश इसके सदस्य हैं। यह कई सूर्य समृद्ध देशों में हमारी सौर सफलता की कहानी को दोहराने में मदद करेगा।
भारत ने मिशन LiFE पहल का भी नेतृत्व किया है जो पर्यावरण के लिए जीवन शैली पर केंद्रित है। यदि आप हमारे सांस्कृतिक लोकाचार और पारंपरिक जीवन शैली के सिद्धांतों का निरीक्षण करते हैं, तो वे संयम और पर्यावरण के प्रति जागरूक होने पर आधारित हैं। ये सिद्धांत अब मिशन LiFE के साथ वैश्विक हो रहे हैं।
इसके अलावा, इसे देखने का एक और तरीका है, जिसे मैंने कई मंचों पर समझाया है। जिस तरह स्वास्थ्य के प्रति जागरूक लोग, अपने जीवन में हर निर्णय इस आधार पर लेते हैं कि यह निर्णय दीर्घकाल में उनके स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव डालेगा, उसी तरह ग्रह के प्रति जागरूक व्यक्तियों की भी आवश्यकता है।
जीवन शैली का प्रत्येक निर्णय, यदि ग्रह के कल्याण को ध्यान में रखते हुए किया जाता है, तो हमारी आने वाली पीढ़ियों को लाभ होगा। यही कारण है कि मैंने कहा कि हमें विचारहीन और विनाशकारी उपभोग से सावधानीपूर्वक और समझदारीपूर्वक उपयोग की ओर बढ़ना चाहिए। यदि आपने मेरे उत्तर की दिशा का अवलोकन किया हो, तो यह पूरी तरह से जिम्मेदारी लेने और चीजों को करने पर केंद्रित है। चाहे वह एक देश हो या एक समूह, जलवायु संकट से निपटने के लिए जिम्मेदारी लेना और कुछ करना ही मायने रखता है।
सवाल: जबकि दुनिया में परस्पर जुड़ाव बढ़ रहा है, हम सप्लाई चेन्स के साथ-साथ उनके विविधीकरण को सुरक्षित करने में अधिक राष्ट्रीय स्वायत्तता की ओर रुझान भी देख रहे हैं। क्या आपको लगता है कि जिओ-पॉलिटिक्स अब ग्लोबल कॉर्पोरेशन्स के लिए फैसले लेने में एक निर्णायक कारक है तथा भारत, सुचारु वैश्विक व्यापार को सुविधाजनक बनाने के लिए G20 की छत्रछाया में क्या कर रहा है?
जवाब: जिओ-पॉलिटिक्स और संबंधित कारक, अंतरराष्ट्रीय व्यापार में निर्णय लेने पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकते हैं। ऐसे कारकों द्वारा संचालित एकतरफावाद और अलगाव के उदाहरण, सप्लाई चेन्स में बाधा डाल सकते हैं और आजीविका को प्रभावित कर सकते हैं, खासकर महत्वपूर्ण क्षेत्रों में।
यही कारण है कि आज, विश्वसनीय ग्लोबल वैल्यू चेन्स बनाने में निवेश का महत्त्व बढ़ रहा है।
साथ ही, जिओ-पॉलिटिक्स कारक अकेले मदद नहीं कर सकते। देशों को ऐसी स्थिर नीतियां पेश करने की ज़रूरत है जो व्यापार, उद्योग और नवाचार को प्रोत्साहित करें। अपनी G20 अध्यक्षता के दौरान, भारत बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली को मजबूत करने और नियम-आधारित वैश्विक व्यापार को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
हम अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में MSMEs के एकीकरण में बाधा डालने वाले कारकों को दूर करने, ग्लोबल वैल्यू चेन्स को भविष्य के झटकों के प्रति लचीला बनाने वाली रूपरेखा विकसित करने और विश्व व्यापार संगठन सुधारों पर आम सहमति बनाने की आवश्यकता को अपनाने पर वैश्विक विचार-विमर्श करने में सक्षम हैं।
सवाल: कुछ अमीर और शक्तिशाली देशों के एकतरफा फैसले इंटरनैशनल ट्रेड पर बुरा असर डाल रहे हैं। ऐसे में इस समय तमाम द्विपक्षीय व्यापार समझौते हो रहे हैं। इसके साथ ही विश्व व्यापार संगठन की प्रासंगिकता भी खत्म हो रही है। इंटरनैशनल ट्रेड नियमों में असमानता किसी भी दूसरे देश की तुलना में विकासशील देशों को ज्यादा प्रभावित करती है। हमारे पास समान व्यापार नीतियां होनी चाहिए जो सबसे गरीब देशों में विकास को बढ़ावा दें। इस दिशा में G20 के लिए आगे का रास्ता क्या है?
जवाब: अपनी G20 अध्यक्षता के हिस्से के रूप में, भारत उन एजेंडों का समर्थन करता रहा है जो एक स्थिर, पारदर्शी और निष्पक्ष व्यापार व्यवस्था को बढ़ावा देते हैं जिससे सभी को लाभ होता है। विश्व व्यापार संगठन के नियमों को मजबूत करने, विवाद निपटान तंत्र को बहाल करने और नए पारस्परिक रूप से लाभकारी विश्व व्यापार संगठन समझौतों को पूरा करने सहित आवश्यक सुधारों की दिशा में काम करने के लिए प्रतिबद्ध होने के साथ-साथ, विश्व व्यापार संगठन के साथ बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली की आवश्यक भूमिका को स्वीकार किया गया है।
भारत, विकासशील दुनिया के हितों को भी आगे बढ़ा रहा है, जिसमें G20 में प्रतिनिधित्व नहीं करने वाले देशों जैसे अफ्रीकन यूनियन के देशों के हित भी शामिल हैं।
शायद G20 के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब विकासशील दुनिया की तिकड़ी; इंडोनेशिया, भारत और ब्राजील एक साथ आए हैं। यह तिकड़ी बढ़ते जिओ-पॉलिटिकल तनाव वाले मुश्किल दौर में विकासशील दुनिया की आवाज़ को बुलंद कर सकती है।
एक समान ट्रेड पॉलिसी निश्चित रूप से G20 की प्राथमिकता सूची में है क्योंकि इससे लंबी अवधि में पूरी दुनिया को सीधे लाभ होगा।
सवाल: दुनिया के कई लो-इनकम और मिडिल-इनकम वाले देशों के कर्ज का बोझ बहुत बढ़ गया है। आपके विचार से इन गरीब देशों को कर्ज के संकट से उबरने और सतत विकास हासिल करने में मदद करने के लिए लोन देने वाले G20 देशों को और क्या करना चाहिए?
जवाब: 2023 में भारत की अध्यक्षता में G20 ने कम आय और मध्यम आय वाले देशों में कर्ज संकट से पैदा हुई चुनौतियों से निपटने पर बहुत जोर दिया है।
हम कर्ज के संकट से जूझ रहे देशों के हितों की पूरी लगन से वकालत कर रहे हैं।
हम ऋण-संकटग्रस्त देशों के लिए समन्वित कर्ज सुधार की सुविधा के लिए बहुपक्षीय सहयोग को मजबूत करने पर काम कर रहे हैं। G20 के वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंक के गवर्नरों की बैठक में यह स्वीकार किया गया कि कॉमन फ्रेमवर्क के तहत और कॉमन फ्रेमवर्क के बाहर भी, इस संकट के दौर से गुजर रहे देशों के ऋण संकट में सुधार में अच्छी प्रगति हुई है।
इसके अतिरिक्त, ऋण पुनर्गठन प्रयासों में तेजी लाने के लिए, वैश्विक संप्रभु ऋण गोलमेज सम्मेलन (GSDR), IMF, विश्व बैंक और प्रेसीडेंसी की एक संयुक्त पहल, इस साल के आरंभ में शुरू की गई थी। यह कम्युनिकेशन को मजबूत करेगा और प्रभावी ऋण उपचार की सुविधा के लिए कॉमन फ्रेमवर्क के भीतर और बाहर दोनों प्रमुख हितधारकों के बीच एक आम समझ को बढ़ावा देगा।
हालांकि, इन सभी संस्थागत तंत्रों से परे एक बड़ा आंदोलन हो रहा है। इस सूचना युग में, एक देश में ऋण संकट की खबरें कई अन्य देशों तक पहुंच रही हैं। लोग स्थिति का विश्लेषण कर रहे हैं और जागरूकता फैल रही है। यह अन्य देशों के लिए लोगों के समर्थन से अपने देश में इसी तरह की स्थिति से बचने के लिए एहतियाती कदम उठाने में मददगार है।
अपने देश में भी, कई मंचों पर, मैंने आर्थिक रूप से गैर-जिम्मेदाराना नीतियों के प्रति सतर्क रहने की आवश्यकता के बारे में बात की है। ऐसी नीतियों के दीर्घकालिक प्रभाव न केवल अर्थव्यवस्था बल्कि समाज को भी नष्ट कर देते हैं। गरीबों को भारी कीमत चुकानी पड़ती है। फिर भी, अच्छी बात यह है कि लोग समस्या के प्रति तेजी से जागरूक हो रहे हैं।
सवाल: भारत ने जिस तरह से देश में डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर को डेवलप और लागू किया है वह अपने में एक अभूतपूर्व घटना है। UPI हो या आधार या फिर ONDC, इन सभी ने देश की अर्थव्यवस्था में भारी बदलाव किए हैं। डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास में भारत के योगदान से ग्लोबल लेवल पर क्या बदलाव हो सकते हैं ?
जवाब: लंबे समय से भारत पूरी दुनिया में अपनी तकनीकी प्रतिभा के लिए जाना जाता था। आज, यह अपनी तकनीकी प्रतिभा और तकनीकी कौशल दोनों के लिए जाना जाता है। भारत ने डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर के मामले में अभूतपूर्व प्रगति की है। इस दिशा में पिछले 9 सालों में उठाए गए कई कदमों से अर्थव्यवस्था पर कई गुना प्रभाव पड़ रहा है। भारत की तकनीकी क्रांति का न केवल आर्थिक प्रभाव पड़ा है, बल्कि इसका गहरा सामाजिक प्रभाव भी पड़ा है।
जिस मानव कल्याण केंद्रित मॉडल के बारे में, मैं पहले हमारी चर्चा कर चुका हूं, वह टेक्नोलॉजी के उपयोग करने के तरीके में साफ रुप से दिखाई दे रहा है। हमारे लिए, टेक्नोलॉजी लोगों को सशक्त बनाने, वंचितों तक सुविधाएं पहुंचाने तथा ग्रोथ और वेलफेयर स्कीमों को समाज के अंतिम पायदान तक पहुंचाने का एक साधन है।
आज देश में जनधन-आधार-मोबाइल (JAM) की तिकड़ी के कारण देश के सबसे गरीब और सबसे कमजोर लोग भी अपने को सशक्त महसूस कर रहे हैं क्योंकि अब कोई भी उनके अधिकारों को छीन नहीं सकता है। महामारी के दौरान जिस तरह से टेक्नोलॉजी ने हमें करोड़ों लोगों तक सहायता पहुंचाने में मदद की, उसे हमेशा याद रखा जाएगा।
आज, जब विदेशी प्रतिनिधि भारत आते हैं तो वे सड़क किनारे बैठे वेंडर्स को, ग्राहकों से UPI के जरिए QR कोड शेयर करके लेन-देन करते देखकर आश्चर्यचकित रह जाते हैं। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि दुनिया में होने वाले रियल टाइम डिजिटल लेनदेन का लगभग आधा हिस्सा भारत में होता है! यहां तक कि दूसरे देश भी UPI के साथ जुड़ने के इच्छुक हैं। यही नहीं भारतीयों के पास भारत के बाहर भी UPI के जरिए भुगतान करने का विकल्प है!
आज लाखों छोटे उद्यमियों को सरकारी e-मार्केटप्लेस के जरिए सरकारी खरीद का हिस्सा बनने का समान अवसर मिल रहा है।
कोविड महामारी के दौरान COWIN ने 200 करोड़ से ज्यादा मुफ्त वैक्सीन खुराक पहुंचाने में मदद की। हमने इस प्लेटफ़ॉर्म को पूरी दुनिया के उपयोग के लिए ओपन-सोर्स भी बनाया है।
ONDC भविष्य को ध्यान में रखकर की गई पहल है जो कई अलग-अलग सेक्टर के लोगों के लिए एक ही डिजिटल प्लेटफॉर्म पर समान अवसर उपलब्ध करवा के टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में क्रांति लाएगी।
इसके अलावा, तकनीकी क्षेत्र में हमारी क्षमताओं के लिए मान्यता प्राप्त होने के बाद, वैश्विक प्रौद्योगिकी के भविष्य के लिए भारत के दृष्टिकोण का विभिन्न वैश्विक मंचों पर स्वागत किया जा रहा है।
उदाहरण के लिए, हमारी G20 अध्यक्षता के दौरान, डिजिटल अर्थव्यवस्था मंत्रियों द्वारा डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर को नियंत्रित करने के लिए एक रूपरेखा अपनाई गई है, जो वन फ्यूचर एलायंस की नींव रखती है।
सवाल: मुद्रास्फीति भारत सहित अधिकांश देशों के लिए एक बड़ी समस्या है। कोविड और यूक्रेन युद्ध के दौरान आसान मौद्रिक और राजकोषीय नीतियों ने मुद्रास्फीति को सबसे गंभीर वैश्विक आर्थिक मुद्दा बना दिया है। क्या अभी और भविष्य में समृद्ध G20 देशों द्वारा बेहतर प्रतिक्रिया की गुंजाइश है, ताकि विकासशील देशों को उनकी अर्थव्यवस्थाओं में आयातित मुद्रास्फीति का खामियाजा न भुगतना पड़े?
जवाब: मुद्रास्फीति एक प्रमुख मुद्दा है जिसका दुनिया सामना कर रही है। पहले महामारी और फिर यूक्रेन संघर्ष ने वैश्विक मुद्रास्फीति की गतिशीलता को बदल दिया है। परिणामस्वरूप, विकसित देशों और उभरती अर्थव्यवस्थाओं दोनों को उच्च मुद्रास्फीति का सामना करना पड़ रहा है। यह एक वैश्विक मुद्दा है जिसमें निकट सहयोग की आवश्यकता है।
हमारी G20 की अध्यक्षता के दौरान G20 के वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंकों के गवर्नरों की बैठक हुई थी। इस मंच ने माना है कि यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि मुद्रास्फीति का मुकाबला करने के लिए प्रत्येक देश द्वारा अपनाई गई नीतियों से अन्य देशों में नकारात्मक नतीजे न हों। इसके अलावा, इसके लिए, एक समझ है कि केंद्रीय बैंकों द्वारा समयबद्ध नीतिगत रुख और स्पष्ट कम्युनिकेशन महत्वपूर्ण है।
जहां तक भारत का संबंध है, हमने मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए अनेक कदम उठाए हैं। प्रतिकूल परिस्थितियों और वैश्विक गतिशीलता के सामने भी, भारत की मुद्रास्फीति 2022 में वैश्विक औसत मुद्रास्फीति दर से दो प्रतिशत अंक कम थी। फिर भी, हम उस से निश्चिंत नहीं बैठे हैं तथा जीवन सुगमता को बढ़ावा देने के लिए जन-समर्थक निर्णय लेना जारी रखे हुए हैं। उदाहरण के लिए, हाल ही में रक्षाबंधन पर, आपने देखा कि कैसे हमने सभी उपभोक्ताओं के लिए रसोई गैस की कीमतों को कम किया।
सवाल: भारत वर्तमान में दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। भारत के 2027 में तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का अनुमान है। एक मजबूत और समृद्ध भारत का G20 और बाकी दुनिया पर क्या असर होगा?
जवाब: भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। यह वास्तव में काफी बड़ी बात है। लेकिन जिस तरह से हमारे देश ने यह किया, मुझे लगता है, वह और ज्यादा अहम है। यह एक उपलब्धि है क्योंकि यहां एक ऐसी सरकार है जिस पर लोगों को भरोसा है। बदले में, सरकार को भी लोगों की क्षमताओं पर भरोसा है।
यह हमारे लिए सौभाग्य और सम्मान की बात है कि लोगों ने हम पर अभूतपूर्व भरोसा किया है। उन्होंने हमें सिर्फ एक बार नहीं, बल्कि दो बार बहुमत का जनादेश दिया। पहला जनादेश वादों को लेकर था। दूसरा, इससे भी बड़ा जनादेश था। क्योंकि ये सरकार के प्रदर्शन और देश के लिए सरकार की भावी योजना, दोनों के बारे में दिया गया जनादेश था। देश में राजनीतिक स्थिरता के कारण, हर सेक्टर में बड़े ढांचागत सुधार हुए हैं। अर्थव्यवस्था, शिक्षा, सामाजिक सशक्तिकरण; कोई भी सेक्टर सुधार से अछूता नहीं है।
सरकार की तरफ से किए गए सुधारों के चलते भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश साल-दर-साल रिकॉर्ड तोड़ रहा है। सेवाओं और वस्तुओं दोनों को निर्यात का रिकॉर्ड टूट रहा है। ‘मेक इन इंडिया’ ने सभी क्षेत्रों में बड़ी सफलता हासिल की है। स्टार्टअप और मोबाइल मैन्युफैक्चरिंग में चमत्कार देखने को मिला है। इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण हुआ है। इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण ऐसी गति से हो रहा है जो पहले कभी नहीं देखी गई। इन सबके चलते हमारे युवाओं के लिए बड़ी संख्या में रोजगार के अवसर बढ़ रहे हैं। विकास का लाभ अंतिम छोर तक पहुंचाया जा रहा है। एक व्यापक सामाजिक सुरक्षा कवच हमारे गरीबों की रक्षा करता है। सरकार गरीबी के खिलाफ उनकी लड़ाई में हर कदम पर उनकी सहायता कर रही है। केवल 5 वर्षों में हमारे 13.5 करोड़ से ज्यादा लोग गरीबी से बाहर आए हैं। देश में एक महत्वाकांक्षी नव-मध्यम वर्ग आकार ले रहा है और समाज का यह वर्ग विकास को और भी आगे बढ़ाने के लिए तैयार है।
सवाल: प्रधानमंत्री जी आप 72 साल के हैं, लेकिन आपका एनर्जी लेवल तमाम कम उम्र के लोगों को मात देता है। कौन सी चीज़ आपको इतना सक्रिय रखती है?
जवाब: दुनिया भर में ऐसे तमाम लोग हैं जो किसी मिशन के लिए अपनी एनर्जी, समय और संसाधनों का पूरा उपयोग करते हैं। ऐसा नहीं है कि मैं ऐसा करने वाला अकेला या असाधारण व्यक्ति हूं।
राजनीति में आने से पहले कई दशकों तक मैं समाज के साथ जमीनी स्तर पर पर जुड़ा रहा था। लोगों के बीच सक्रिय रूप से काम कर रहा था। इस अनुभव का एक फायदा यह हुआ कि मैं ऐसे कई प्रेरणादायक लोगों से मिला, जिन्होंने खुद को पूरी तरह से एक उद्देश्य के लिए समर्पित कर दिया। मैंने उनसे सीखा है।
दूसरा अहम पहलू, महत्वाकांक्षा और मिशन के बीच का अंतर है। जब कोई अपनी निजी महत्वाकांक्षा के लिए काम करता है, तो उसके सामने आने वाला कोई भी उतार-चढ़ाव उसे परेशान कर सकता है। क्योंकि महत्वाकांक्षा; पद, शक्ति, सुख-सुविधाओं आदि के प्रति लगाव से आती है।
लेकिन जब कोई किसी खास मिशन के लिए काम करता है तो उसके लिए व्यक्तिगत लाभ कुछ नहीं होता। इसलिए उतार-चढ़ाव का उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ सकता। किसी मिशन के प्रति समर्पित होना अनंत आशावाद और ऊर्जा का एक निरंतर स्रोत है। इसके अलावा, मिशन की भावना के साथ-साथ अनावश्यक मामलों से अलगाव की भावना भी आती है जो एनर्जी को पूरी तरह से महत्वपूर्ण चीजों पर केंद्रित करने में मदद करती है।
मेरा मिशन, अपने देश और अपने लोगों के विकास के लिए काम करना है। इससे मुझे बहुत एनर्जी मिलती है, खासकर इसलिए क्योंकि हमें अभी लंबा रास्ता तय करना है।
मैंने पहले भी बताया है कि गुजरात का मुख्यमंत्री बनने से पहले भी मैं एक आम आदमी की तरह भारत के लगभग हर जिले में गया था और रहा था। मैंने कठिन जीवन जीने वाले लोगों के लाखों उदाहरण प्रत्यक्ष रूप से देखे हैं। मैंने बड़ी कठिन स्थितियों में भी उनकी दृढ़ भावना और दृढ़ आत्म-विश्वास देखा है। हमारा इतिहास महान है और महानता के सभी तत्व, अभी भी हमारे लोगों में मौजूद हैं।
मेरा दृढ़ विश्वास है कि हमारे देश में बहुत सारी क्षमताएं हैं, जिनका अभी दोहन नहीं हुआ है। हमारे पास दुनिया को देने के लिए बहुत कुछ है। हमारे लोगों को बस एक मंच की जरूरत है, जहां से वे चमत्कार कर सकते हैं। ऐसे सशक्त मंच का निर्माण ही मेरा मिशन है। यह मुझे हर समय प्रेरित रखता है। इसके अलावा जब कोई व्यक्तिगत स्तर पर किसी मिशन के लिए समर्पित होता है, तो स्वस्थ शरीर और दिमाग को बनाए रखने के लिए, अनुशासन और दैनिक आदतों की आवश्यकता होती है, जिसका मैं निश्चित रूप से ध्यान रखता हूं।