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मन की बात की 83वीं कड़ी में प्रधानमंत्री का सम्बोधन


मेरे प्यारे देशवासियो, नमस्कार। आज हम एक बार फिर ‘मन की बात’ के लिए एक साथ जुड़ रहे हैं। दो दिन बाद दिसम्बर का महीना भी शुरू हो रहा है और दिसम्बर आते ही psychologically हमें ऐसा ही लगता है कि चलिए भई साल पूरा हो गया। ये साल का आखिरी महीना है और नए साल के लिए ताने-बाने बुनना शुरू कर देते हैं। इसी महीने Navy Day और Armed Forces Flag Day भी देश मनाता है। हम सबको मालूम है 16 दिसम्बर को 1971 के युद्ध का स्वर्णिम जयन्ती वर्ष भी देश मना रहा है। मैं इन सभी अवसरों पर देश के सुरक्षा बलों का स्मरण करता हूँ, हमारे वीरों का स्मरण करता हूँ। और विशेष रूप से ऐसे वीरों को जन्म देने वाली वीर माताओं का स्मरण करता हूँ। हमेशा की तरह इस बार भी मुझे NamoApp पर, MyGov पर आप सबके ढ़ेर सारे सुझाव भी मिले हैं। आप लोगों ने मुझे अपने परिवार का एक हिस्सा मानते हुए अपने जीवन के सुख-दुख भी साझा किये हैं। इसमें बहुत सारे नौजवान भी हैं, छात्र-छात्राएँ हैं। मुझे वाकई बहुत अच्छा लगता है कि ‘मन की बात’ का हमारा ये परिवार निरंतर बड़ा तो हो ही रहा है, मन से भी जुड़ रहा है और मकसद से भी जुड़ रहा है और हमारे गहरे होते रिश्ते, हमारे भीतर, निरंतर सकारत्मकता का एक प्रवाह, प्रवाहित कर रहे हैं।

मेरे प्यारे देशवासियो, मुझे सीतापुर के ओजस्वी ने लिखा है कि अमृत महोत्सव से जुड़ी चर्चाएँ उन्हें खूब पसंद आ रही हैं। वो अपने दोस्तों के साथ ‘मन की बात’ सुनते हैं और स्वाधीनता संग्राम के बारे में काफी कुछ जानने का, सीखने का, लगातार प्रयास कर रहे हैं। साथियो, अमृत महोत्सव, सीखने के साथ ही हमें देश के लिए कुछ करने की भी प्रेरणा देता है और अब तो देश-भर में आम लोग हों या सरकारें, पंचायत से लेकर parliament तक, अमृत महोत्सव की गूँज है और लगातार इस महोत्सव से जुड़े कार्यक्रमों का सिलसिला चल रहा है। ऐसा ही एक रोचक प्रोग्राम पिछले दिनों दिल्ली में हुआ। “आजादी की कहानी-बच्चों की जुबानी’ कार्यक्रम में बच्चों ने स्वाधीनता संग्राम से जुड़ी गाथाओं को पूरे मनोभाव से प्रस्तुत किया। खास बात ये भी रही कि इसमें भारत के साथ ही नेपाल, मौरिशस, तंजानिया, न्यूजीलैंड और फीजी के students भी शामिल हुए। हमारे देश का महारत्न ONGC. ONGC भी कुछ अलग तरीके से अमृत महोत्सव मना रहा है। ONGC इन दिनों, Oil Fields में अपने students के लिए study tour का आयोजन कर रहा है। इन tours में युवाओं को ONGC के Oil Field Operations की जानकारी दी जा रही है – उद्धेश्य ये कि हमारे उभरते इंजीनियर राष्ट्र निर्माण के प्रयासों में पूरे जोश और जुनून के साथ हाथ बंटा सकें।

साथियो, आजादी में अपने जनजातीय समुदाय के योगदान को देखते हुए देश ने जनजातीय गौरव सप्ताह भी मनाया है। देश के अलग-अलग हिस्सों में इससे जुड़े कार्यक्रम भी हुए। अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में जारवा और ओंगे, ऐसे जनजातीय समुदायों के लोगों ने अपनी संस्कृति का जीवंत प्रदर्शन किया। एक कमाल का काम हिमाचल प्रदेश में ऊना के Miniature Writer राम कुमार जोशी जी ने भी किया है, उन्होनें, Postage Stamps पर ही यानी इतने छोटे postage stamp पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस और पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी के अनोखे sketch बनाए हैं। हिन्दी में लिखे ‘राम’ शब्द पर उन्होनें sketch तैयार किए, जिसमें संक्षेप में दोनों महापुरुषों की जीवनी को भी उकेरा गया है। मध्य प्रदेश के कटनी से भी कुछ साथियों ने एक यादगार दास्तानगोई कार्यक्रम की जानकारी दी है। इसमें रानी दुर्गावती के अदम्य साहस और बलिदान की यादें ताजा की गई हैं। ऐसा ही एक कार्यक्रम काशी में हुआ। गोस्वामी तुलसीदास, संत कबीर, संत रैदास, भारतेन्दु हरिश्चंद्र, मुंशी प्रेमचंद और जयशंकर प्रसाद जैसी महान विभूतियों के सम्मान में तीन दिनों के महोत्सव का आयोजन किया गया। अलग-अलग कालखंड में, इन सभी की, देश की जन-जागृति में, बहुत बड़ी भूमिका रही है। आपको ध्यान होगा, ‘मन की बात’ के पिछले episodes के दौरान मैंने तीन प्रतियोगिताओं का उल्लेख किया था, competition की बात कही थी – एक देशभक्ति के गीत लिखना, देश भक्ति से जुड़ी, आजादी के आंदोलन से जुड़ी घटनाओं की रंगोली बनाना और हमारे बच्चों के मन में भव्य भारत के सपने जगाने वाली लोरी लिखी जाए। मुझे आशा है कि इन प्रतियोगिताओं के लिए भी आप जरुर Entry भी भेज चुके होंगे, योजना भी बना चुके होंगे और अपने साथियों से चर्चा भी कर चुके होंगे। मुझे आशा है बढ़-चढ़कर के हिन्दुस्तान के हर कोने में इस कार्यक्रम को आप जरुर आगे बढ़ायेंगे।

मेरे प्यारे देशवासियो, इस चर्चा से अब मैं आपको सीधे वृन्दावन लेकर चलता हूँ। वृन्दावन के बारे में कहा जाता है कि ये भगवान के प्रेम का प्रत्यक्ष स्वरूप है। हमारे संतों ने भी कहा है –

यह आसा धरि चित्त में, यह आसा धरि चित्त में,

कहत जथा मति मोर।

वृंदावन सुख रंग कौ, वृंदावन सुख रंग कौ,

काहु न पायौ और।

यानि, वृंदावन की महिमा, हम सब, अपने-अपने सामर्थ्य के हिसाब से कहते जरूर हैं, लेकिन वृंदावन का जो सुख है, यहाँ का जो रस है, उसका अंत, कोई नहीं पा सकता, वो तो असीम है। तभी तो वृंदावन दुनिया भर के लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करता रहा है। इसकी छाप आपको दुनिया के कोने-कोने में मिल जाएगी।

पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में एक शहर है, पर्थ। क्रिकेट प्रेमी लोग इस जगत से भली-भांति परिचित होंगे, क्योंकि पर्थ में अक्सर क्रिकेट मैच होते रहते हैं। पर्थ में एक ‘Sacred India Gallery’ इस नाम से एक art gallery भी है। यह gallery Swan Valley के एक खूबसूरत क्षेत्र में बनाई गई है, और, ये ऑस्ट्रेलिया की एक निवासी जगत तारिणी दासी जी के प्रयासों का नतीजा है। जगत तारिणी जी वैसे तो हैं ऑस्ट्रेलिया की, जन्म भी वहीं हुआ, लालन-पालन भी वहीँ हुआ, लेकिन 13 साल से भी अधिक समय, वृन्दावन में आकर के उन्होंने बिताया। उनका कहना है, कि वे ऑस्ट्रेलिया लौट तो गई, अपने देश वापिस तो गयी, लेकिन, वो कभी भी वृन्दावन को भूल नहीं पाईं। इसलिए उन्होने वृंदावन और उसका आध्यात्मिक भाव से जुडने के लिए ऑस्ट्रेलिया में ही वृन्दावन खड़ा कर दिया। अपनी कला को ही एक माध्यम बना करके एक अद्भुत वृन्दावन उन्होंने बना लिया। यहाँ आने वाले लोगों को कई तरह की कलाकृतियों को देखने का अवसर मिलता है। उन्हें भारत के सर्वाधिक प्रसिद्ध तीर्थस्थलों – वृंदावन, नवाद्वीप और जगन्नाथपुरी की परंपरा और संस्कृति की झलक देखने को मिलती है। यहाँ पर भगवान कृष्ण के जीवन से जुड़ी कई कलाकृतियाँ भी प्रदर्शित की गई हैं। एक कलाकृति ऐसी भी है, जिसमें भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठा रखा है, जिसके नीचे वृंदावन के लोग आश्रय लिए हुए हैं। जगत तारिणी जी का यह अद्भुत प्रयास, वाकई, हमें कृष्ण भक्ति की शक्ति का दर्शन कराता है। मैं, उन्हें, इस प्रयास के लिए बहुत-बहुत शुभकामनाएँ देता हूँ।

मेरे प्यारे देशवासियो, अभी मैं ऑस्ट्रेलिया के पर्थ में बने वृन्दावन के विषय में बात कर रहा था। ये भी एक दिलचस्प इतिहास है कि ऑस्ट्रेलिया का एक रिश्ता हमारे बुंदेलखंड के झाँसी से भी है। दरअसल, झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई जब East India Company के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ रही थी, तो उनके वकील थे जॉन लैंग (John Lang)। जॉन लैंग मूल रूप से ऑस्ट्रेलिया के ही रहने वाले थे। भारत में रहकर उन्होने रानी लक्ष्मीबाई का मुकदमा लड़ा था। हमारे स्वतन्त्रता संग्राम में झाँसी और बुंदेलखंड का कितना बड़ा योगदान है, ये हम सब जानते हैं। यहाँ रानी लक्ष्मीबाई और झलकारी बाई जैसी वीरांगनाएँ भी हुईं और मेजर ध्यानचंद जैसे खेल रत्न भी इस क्षेत्र ने देश को दिये हैं।

साथियो, वीरता केवल युद्ध के मैदान में ही दिखाई जाए, ऐसा जरूरी नहीं होता। वीरता जब एक व्रत बन जाती है और उसका विस्तार होता है तो हर क्षेत्र में अनेकों कार्य सिद्ध होने लगते हैं। मुझे ऐसी ही वीरता के बारे में श्रीमती ज्योत्सना ने चिट्ठी लिखकर बताया है। जालौन में एक पारंपरिक नदी थी – नून नदी। नून, यहाँ के किसानों के लिए पानी का प्रमुख स्त्रोत हुआ करती थी, लेकिन, धीरे-धीरे नून नदी लुप्त होने की कगार पर पहुँच गई, जो थोड़ा बहुत अस्तित्व इस नदी का बचा था, उसमें वो नाले में तब्दील हो रही थी, इससे किसानों के लिए सिंचाई का भी संकट खड़ा हो गया था। जालौन के लोगों ने इस स्थिति को बदलने का बीड़ा उठाया। इसी साल मार्च में इसके लिए एक कमेटी बनाई गई। हजारों ग्रामीण और स्थानीय लोग स्वतः स्फूर्त इस अभियान से जुड़े। यहाँ की पंचायतों ने ग्रामीणों के साथ मिलकर काम करना शुरू किया, और आज इतने कम समय में, और बहुत कम लागत में, ये नदी, फिर से जीवित हो गई है। कितने ही किसानों को इसका फायदा हो रहा है। युद्ध के मैदान से अलग वीरता का ये उदाहरण, हमारे देशवासियों की, संकल्प शक्ति को दिखाता है, और ये भी बताता है कि अगर हम ठान लें, तो, कुछ भी असंभव नहीं है और तब ही तो मैं कहता हूँ – सबका प्रयास।

मेरे प्यारे देशवासियो, जब हम प्रकृति का संरक्षण करते हैं तो बदले में प्रकृति हमें भी संरक्षण और सुरक्षा देती है। इस बात को हम अपने निजी जीवन में भी अनुभव करते हैं और ऐसा ही एक उदाहरण तमिलनाडु के लोगों ने व्यापक स्तर पर प्रस्तुत किया है। ये उदाहरण है तमिलनाडु के तूतुकुड़ी जिले का। हम जानते हैं कि तटीय इलाकों में कई बार ज़मीन के डूबने का खतरा रहता है। तूतुकुड़ी में भी कई छोटे Island और टापू ऐसे थे जिनके समुद्र में डूबने का खतरा बढ़ रहा था। यहाँ के लोगों ने और विशेषज्ञों ने इस प्राकृतिक आपदा का बचाव प्रकृति के जरिये ही खोजा। ये लोग अब इन टापुओं पर पाल्मेरा के पेड़ लगा रहे हैं। ये पेड़ cyclone और तूफानों में भी खड़े रहते है और जमीन को सुरक्षा देते हैं। इनसे अब इस इलाके को बचाने का एक नया भरोसा जगा है।

साथियो, प्रकृति से हमारे लिये खतरा तभी पैदा होता है जब हम उसके संतुलन को बिगाड़ते हैं या उसकी पवित्रता नष्ट करते हैं। प्रकृति माँ की तरह हमारा पालन भी करती है और हमारी दुनिया में नए-नए रंग भी भरती है।

अभी मैं social media पर देख रहा था, मेघालय में एक flying boat की तस्वीर खूब viral हो रही है। पहली ही नज़र ये तस्वीर हमें आकर्षित करती है। आपमें से भी ज्यादातर लोगों ने इसे online जरुर देखा होगा। हवा में तैरती इस नाव को जब हम करीब से देखते है तब हमें पता चलता है कि ये तो नदी के पानी में चल रही है। नदी का पानी इतना साफ़ है कि हमें उसकी तलहटी दिखती है और नाव हवा में तैरती सी लगने लग जाती है। हमारे देश में अनेक राज्य हैं, अनेक क्षेत्र है जहाँ के लोगों ने अपनी प्राकृतिक विरासत के रंगों को सँजोकर रखा है। इन लोगों ने प्रकृति के साथ मिलकर रहने की जीवनशैली आज भी जीवित रखी है। ये हम सबके लिए भी प्रेरणा है। हमारे आस-पास जो भी प्राकृतिक संसाधन है, हम उन्हें बचाएं, उन्हें फिर से उनका असली रूप लौटाएँ। इसी में हम सबका हित है, जग का हित है।

मेरे प्यारे देशवासियो, सरकार जब योजनाएँ बनाती है, बजट खर्च करती है, समय पर परियोजनाओं को पूरा करती है तो लोगों को लगता है कि वो काम कर रही है। लेकिन सरकार के अनेक कार्यों में विकास के अनेक योजनाओं के बीच मानवीय संवेदनाओं से जुड़ी बातें हमेशा एक अलग सुख देती है। सरकार के प्रयासों से, सरकार की योजनाओं से कैसे कोई जीवन बदला उस बदले हुए जीवन का अनुभव क्या है ? जब ये सुनते हैं तो हम भी संवेदनाओं से भर जाते हैं। यह मन को संतोष भी देता है और उस योजना को लोगों तक पहुँचाने की प्रेरणा भी देता है। एक प्रकार से यह ‘स्वान्त: सुखाय’ ही तो है और इसलिए आज “मन की बात” में हमारे साथ दो ऐसे ही साथी भी जुड़ रहे हैं जो अपने हौसलों से एक नया जीवन जीतकर आए हैं। इन्होंने आयुष्मान भारत योजना की मदद से अपना इलाज कराया और एक नयी जिंदगी की शुरुआत की है। हमारे पहले साथी हैं राजेश कुमार प्रजापति जिन्हें ह्रदय रोग की बीमारी heart की समस्या थी।

तो आइये, राजेश जी से बात करते हैं –

प्रधानमंत्री जी – राजेश जी नमस्ते।

राजेश प्रजापति – नमस्ते Sir नमस्ते।

प्रधानमंत्री जी – आपकी राजेश जी बीमारी क्या थी ? फिर

किसी डॉक्टर के पास गए होंगे, मुझे जरा समझाइए स्थानीय डॉक्टर ने कहा होगा फिर किसी और डॉक्टर के पास गए होंगें ? फिर आप निर्णय नहीं करते होंगे या करते होंगे क्या-क्या होता था ?

राजेश प्रजापति – जी मुझे heart में problem sir आ गई थी, मेरे

सीने में जलन होती थी sir, फिर मैंने डॉक्टर को दिखाया डॉक्टर ने पहले तो बताया हो सकता है बेटा तुम्हारे एसिड होगी, तो मैंने काफी दिन एसिड की दवाई कराई , उससे जब मुझे फायदा नहीं हुआ फिर डॉक्टर कपूर को दिखाया, तो उन्होंने कहा बेटा तुम्हारे जो लक्षण हैं उससे angiography से पता चलेगा, फिर उन्होंने refer किया मुझे श्री राम मूर्ति में। फिर मिले हम अमरेश अग्रवाल जी से, तो उन्होंने मेरी angiography करी। फिर उन्होंने बताया कि बेटा ये तो तुम्हारी नस blockage है, तो हमने कहा sir इसमें कितना खर्चा आयेगा? तो उन्होंने कहा card है आयुष्मान वाला जो PM जी ने बना के दिया। तो हमने कहा sir, हमारे पास है। तो उन्होंने मेरा वो card लिया और मेरा सारा इलाज़ उसी card से हुआ है। सर और जो आपने ये बनाया है card ये बहुत ही अच्छी तरीक़े से और हम गरीब आदमियों के लिए बहुत सहूलियत है इससे। और आपका कैसे मैं धन्यवाद करूँ।

प्रधानमंत्री जी – आप करते क्या हैं राजेश जी ?

राजेश प्रजापति – सर मैं इस समय तो Private नौकरी करता हूँ। सर।

प्रधानमंत्री जी – और आयु कितनी है आपकी।

राजेश प्रजापति – मेरी उनचास साल है। सर।

प्रधानमंत्री जी – इतनी छोटी आयु में आप को heart का trouble हो गया।

राजेश प्रजापति – हाँ जी sir क्या बताये अब।

प्रधानमंत्री जी – आपके परिवार में भी पिताजी को या किसी माता जी को या इस प्रकार का पहले रहा है क्या?

राजेश प्रजापति – नहीं sir किसी को नहीं था sir, ये पहला हमारे साथ ही हुआ है

प्रधानमंत्री जी – ये आयुष्मान card भारत सरकार यह card देती है, गरीबों के लिए बहुत बड़ी योजना है तो ये आप को पता कैसे चला

राजेश प्रजापति – sir ये तो, इतनी बड़ी योजना है गरीब आदमी बहुत इस से benefit मिलता है और इतना खुश हैं sir, हमने तो हॉस्पिटल में देखा है कि इस card से कितना लोगों को सहूलियत मिलती है जब डॉक्टर से कहता है card मेरे पास है sir तो डॉक्टर कहता है ठीक वो card लेकर आईये मैं उसी card से आप का इलाज़ कर दूँगा।

प्रधानमंत्री जी – अच्छा card ना होता तो आप को कितना खर्चा बोला था डॉक्टर ने।

राजेश प्रजापति – डॉक्टर साहब ने कहा था बेटा इसमें बहुत सारा खर्चा आयेगा| बेटा अगर card नहीं होगा। तो मैंने कहा sir card तो है मेरे पास, तो उन्होंने कहा तुरंत आप दिखाइए तो हमने तुरंत दिखाया उसी card से सारा इलाज़ मेरा किया गया मेरे एक पैसा नहीं खर्च हुआ सारी दवाइयां भी उसी card से निकाली गई हैं।

प्रधानमंत्री जी – तो राजेश जी आप को अभी संतोष है, तबीयत ठीक है।

राजेश प्रजापति – जी sir आप का बहुत-बहुत धन्यवाद sir आप की उम्र भी इतनी लम्बी हो की हमेशा सत्ता में ही रहे, और हमारे परिवार के लोग भी आप से इतना खुश हैं क्या कहें आप से।

प्रधानमंत्री जी: राजेश जी आप मुझे सत्ता में रहने की शुभकामनाएं मत दीजिए, मैं आज भी सत्ता में नहीं हूँ और भविष्य में भी सत्ता में जाना नहीं चाहता हूँ। मैं सिर्फ सेवा में रहना चाहता हूँ, मेरे लिए ये पद, ये प्रधानमंत्री सारी चीजें ये सत्ता के लिए है ही नहीं भाई, सेवा के लिए है।

राजेश प्रजापति : सेवा ही तो चाहिए हम लोगों को और क्या।

प्रधानमंत्री जी: देखिये ग़रीबों के लिए यह आयुष्मान भारत योजना यह अपने आप में

राजेश प्रजापति : जी sir बहुत बढ़िया चीज़ है

प्रधानमंत्री जी: लेकिन देखिये राजेश जी आप हमारा एक काम कीजिये, करेंगे ?

राजेश प्रजापति: जी बिल्कुल करेंगे sir

प्रधानमंत्री जी: देखिये होता क्या है कि लोगों को इसका पता नहीं होता है, आप एक जिम्मेवारी निभायिये ऐसे जितने गरीब परिवार है आपके आसपास उनको अपनी ये कैसे आपको लाभ हुआ, कैसे मदद मिली, ये बताइए ?

राजेश प्रजापति : बिल्कुल बतायेंगे sir

प्रधानमंत्री जी: और उनको कहिये कि वे भी ऐसा कार्ड बनवा लें ताकि परिवार में पता नहीं कब क्या मुसीबत आ जाये और आज ग़रीब दवाई के कारण परेशान रहे यह तो ठीक नहीं है। अब पैसों के कारण वो दवाई न ले या बीमारी का उपाय न करें तो ये भी बड़ी चिंता का विषय है और गरीब को तो क्या होता है जैसे आपको ये Heart का Problem हुआ, तो कितने महीने तक आप काम ही नहीं कर पाएं होंगे

राजेश प्रजापति: हम तो दस कदम नहीं चल पातें थे जीना नहीं चढ़ पाते थे sir

प्रधानमंत्री जी: बस तो आप आप राजेश जी मेरे एक अच्छे साथी बनके जितने ग़रीबों को आप ये आयुष्मान भारत योजना के संबंध में समझा सकते हैं, वैसे बीमार लोगों की मदद कर सकते है देखिये आपको भी संतोष होगा और मुझे बहुत ख़ुशी होगी कि चलिए एक राजेश जी की तबीयत तो ठीक हुई लेकिन राजेश जी ने सैकड़ों लोगों की तबीयत ठीक करवा दी, ये आयुष्मान भारत योजना, ये गरीबों के लिए है, मध्यम वर्ग के लिए है, सामान्य परिवारों के लिए है, तो घर-घर इस बात को पहुचाएंगे आप !

राजेश प्रजापति: बिल्कुल पहुचाएंगे sir। हम तो वहीँ तीन दिन रुके न हॉस्पिटल में sir तो बिचारे बहुत लोग आएं सारी सुविधाएं उनको बताई, card होगा तो free में हो जाएगा।

प्रधानमंत्री जी: चलिए राजेश जी, आप अपने आप को स्वस्थ रखिए, थोड़ी शरीर की चिंता करिये, बच्चों की चिंता कीजिये और बहुत प्रगति कीजिये, मेरी बहुत शुभकामनाएं है आपको।

साथियो, हमने राजेश जी की बातें सुनी, आइये अब हमारे साथ सुख देवी जी जुड़ रही हैं, घुटनों की समस्या ने उन्हें बहुत परेशान कर दिया था, आइये हम सुखदेवी जी से पहले उनके दुःख कि बात सुनते हैं और फिर सुख कैसे आया वो समझते हैं।

मोदी जी – सुखदेवी जी नमस्ते! आप कहाँ से बोल रहीं हैं ?

सुखदेवी जी – दानदपरा से।

मोदी जी – कहाँ-कहाँ पड़ता है ये ?

सुखदेवी जी – मथुरा में।

मोदी जी – मथुरा में, फिर तो सुखदेवी जी, आपको नमस्ते भी कहना है और साथ-साथ राधे-राधे भी कहना होगा।

सुखदेवी जी – हाँ, राधे-राधे।

मोदी जी – अच्छा हमें सुना कि आपको तकलीफ हुई थी। आपका कोई operation हुआ। जरा बताएंगी कि क्या बात है ?

सुखदेवी जी – हाँ मेरा घुटना खराब हो गया था, तो operation हुआ है मेरा। प्रयाग हॉस्पिटल में।

मोदी जी – आपकी आयु कितनी है सुखदेवी जी ?

सुखदेवी जी – उम्र 40 साल।

मोदी जी – 40 साल और सुखदेव नाम, और सुखदेवी को बीमारी हो गई।

सुखदेवी जी – बीमारी तो मुझे 15-16 साल से ही लग गई।

मोदी जी – अरे बाप रे ! इतनी छोटी आयु में घुटने आपके

खराब हो गए।

सुखदेवी जी – वो गठिया- बाय बोलते हैं जो जोड़ों में दर्द से घुटना खराब हो गई।

मोदी जी – तो 16 साल से 40 साल की उम्र तक आपने इसका

इलाज ही नहीं कराया।

सुखदेवी जी – नहीं, करवाया था। दर्द की दवाई खाते रहे छोटे-मोटे डॉक्टरों ने तो ऐसे देशी दवाई है वैसी दवाई है। थैलाछाप डॉक्टरों ने तो ऐसे उनसे घुटना चल भी पाई ख़राब हो गई, 1-2 किलोमीटर पैदल चली मैं तो घुटना खराब हो गई मेरी।

मोदी जी – तो सुखदेवी जी Operation का विचार कैसे आया ? उसके पैसों का क्या प्रबंधन किया ? कैसे बना ये सब ?

सुखदेवी जी – मैंने वो आयुष्मान कार्ड से इलाज करवाया है।

मोदी जी – तो आपको आयुष्मान कार्ड मिल गया था ?

सुखदेवी जी – हाँ।

मोदी जी – और आयुष्मान कार्ड से गरीबों को मुफ्त में उपचार

होता है। ये पता था ?

सुखदेवी जी – स्कूल में meeting हो रही थी। वहाँ से हमारे पति को पता चला तो कार्ड बनवाया मेरे नाम से।

मोदी जी – हाँ।

सुखदेवी जी – फिर इलाज करवाया कार्ड से, और मैंने कोई पैसा नहीं लगाया। कार्ड से ही इलाज हुआ है मेरा। खूब बढ़िया इलाज हुआ है।

मोदी जी – अच्छा डॉक्टर ने पहले अगर कार्ड न होता तो कितना खर्चा बताते थे ?

सुखदेवी जी – ढाई लाख रुपए, तीन लाख रुपए। 6-7 साल से पड़ी

हूँ खाट में। ये कहती थी कि हे भगवान मुझे ले ले तू, मुझे नहीं जीना।

मोदी जी – 6-7 साल से खाट पे थी। बाप-रे-बाप।

सुखदेवी जी – हाँ।

मोदी जी – ओहो।

सुखदेवी जी – बिल्कुल उठा-बैठा नहीं जाता।

मोदी जी – तो अभी आपका घुटना पहले से अच्छा हुआ है ?

सुखदेवी जी – मैं खूब घूमती हूँ। फिरती हूँ। Kitchen का काम

करती हूँ। घर का काम करती हूँ। बच्चों को खाना बनाकर देती हूँ।

मोदी जी – तो मतलब आयुष्मान भारत का कार्ड आपको सचमुच में आयुष्मान बना दिया।

सुखदेवी जी – बहुत-बहुत धन्यवाद आपकी योजना की वजह से ठीक हो गई, अपने पैरों पर खड़ी हो गई।

मोदी जी – तो अब तो बच्चों को भी आनंद आता होगा।

सुखदेवी जी – हाँजी। बच्चों को तो बहुत ही परेशानी होती थी। अब माँ परेशान है तो बच्चा भी परेशान है।

मोदी जी – देखिये हमारे जीवन में सबसे बड़ा सुख हमारा स्वास्थ्य ही होता है, ये सुखी जीवन सबको मिले यही आयुष्मान भारत की भावना है, चलिए सुखदेवी जी मेरी आप को बहुत बहुत शुभकामनाएँ, फिर से एक बार आप को राधे-राधे।

सुखदेवी जी- राधे- राधे , नमस्ते !

मेरे प्यारे देशवासियो, युवाओं से समृद्ध हर देश में तीन चीजें बहुत मायने रखती हैं। अब वही तो कभी-कभी युवा की सच्ची पहचान बन जाती है। पहली चीज है – Ideas और Innovation। दूसरी है – जोखिम लेने का जज्बा और तीसरी है – Can Do Spirit यानी किसी भी काम को पूरा करने की जिद्द, चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी विपरीत क्यों न हों – जब ये तीनों चीजें आपस में मिलती हैं तो अभूतपूर्व परिणाम मिलते हैं। चमत्कार हो जाते हैं। आज कल हम चारों तरफ सुनते हैं Start-Up, Start-Up, Start-Up। सही बात है, ये Start-Up का युग है, और ये भी सही है कि Start-Up की दुनिया में आज भारत विश्व में एक प्रकार से नेतृत्व कर रहा है। साल-दर-साल Start-Up को record निवेश मिल रहा है। ये क्षेत्र बहुत तेज रफ़्तार से आगे बढ़ रहा है। यहाँ तक कि देश के छोटे-छोटे शहरों में भी Start-Up की पहुँच बढ़ी है। आज कल ‘Unicorn’ शब्द खूब चर्चा में है। आप सबने इसके बारे में सुना होगा। ‘Unicorn’ एक ऐसा Start-Up होता है जिसका valuation कम से कम 1 Billion Dollar होता है यानी करीब-करीब सात हज़ार करोड़ रूपए से ज्यादा।

साथियो, साल 2015 तक देश में बमुश्किल नौ या दस Unicorns हुआ करते थे। आपको ये जानकार बेहद ख़ुशी होगी कि अब Unicorns की दुनिया में भी भारत तेज उड़ान भर रहा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक इसी साल एक बड़ा बदलाव आया है। सिर्फ 10 महीनों में ही भारत में हर 10 दिन में एक Unicorn बना है। ये इसलिए भी बड़ी बात है क्योंकि हमारे युवाओं ने ये सफलता कोरोना महामारी के बीच हासिल की है। आज भारत में 70 से अधिक Unicorns हो चुके हैं। यानि 70 से अधिक Start-Up ऐसे हैं जो 1 Billion से ज्यादा के valuation को पार कर गए हैं। साथियो Start-Up की सफलता के कारण हर किसी का उस पर ध्यान गया है और जिस प्रकार से देश से, विदेश से, निवेशकों से उसे समर्थन मिल रहा है। शायद कुछ साल पहले उसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था।

साथियो, Start-Ups के जरिये भारतीय युवा Global Problems के समाधान में भी अपना योगदान दे रहे हैं। आज हम एक युवा मयूर पाटिल से बात करेंगे, उन्होंने अपने दोस्तों के साथ मिलकर Pollution की problem का solution देने का प्रयास किया है

मोदी जी – मयूर जी नमस्ते।

मयूर पाटिल – नमस्ते सर जी।

मोदी जी – मयूर जी आप कैसे हैं ?

मयूर पाटिल – बस बढ़िया सर। आप कैसे हो ?

मोदी जी – मैं बहुत प्रसन्न हूँ। अच्छा मुझे बताइए कि आज

आप कुछ Start-Up की दुनिया में हैं।

मयूर पाटिल – हाँ जी !

मोदी जी – और Waste में से Best भी कर रहें हैं।

मयूर पाटिल – हाँ जी !

मोदी जी – Environment का भी कर रहे हैं, थोड़ा मुझे अपने बारे में बताइए। अपने काम के बारे में बताइए और इस काम के पीछे आपको विचार कहाँ से आया ?

मयूर पाटिल – सर जब College में था तभी मेरे पास Motorcycle था। जिसका Mileage बहुत कम था और Emission बहुत ज्यादा था। वो Two stroke Motorcycle था। तो Emission कम करने के लिए और उसका Mileage थोड़ा बढ़ाने के लिए मैंने कोशिश चालू किया था। कुछ 2011-12 में और इसका मैंने करीब-करीब 62 Kilometres per litre तक Mileage बढ़ा दिया था। तो वहाँ से मुझे ये प्रेरणा मिली कि कुछ ऐसा चीज बनाए जो Mars Production कर सकते हैं, तो बाकी बहुत सारे लोगों को उसका फायदा होगा, तो 2017-18 में हम लोगों ने उसका Technology develop किया और Regional transport corporation में हम लोगों ने 10 buses में वो use किया। उसका result check करने के लिए और करीब-करीब हम लोगों ने उसका चालीस प्रतिशत emission उसका कम कर दिया। Buses में।

मोदी जी – हम्म ! अब ये Technology जो आपने खोजी

है। उसका Patent वगैरह करवा लिया।

मयूर पाटिल – हाँ जी ! Patent हो गया। ये साल में हमें Patent

grant होकर के आ गया।

मोदी जी – और आगे इसको बढ़ाने का क्या Plan है ? आपका। किस प्रकार से कर रहें हैं ? जैसे बस का result आ गया। उसकी भी सारी चीज़ें बाहर आ गई होंगी। तो आगे क्या सोच रहे हैं ?

मयूर पाटिल – सर, Start-Up India के अन्दर नीति आयोग से Atal New India Challenge जो है, वहाँ से हमें grant मिला और वो grant के basis पे हम लोगों ने अभी factory चालू किया जहाँ पे हम Air filters का manufacturing कर सकते हैं।

मोदी जी – तो भारत सरकार की तरफ से कितना grant मिला आपको ?

मयूर पाटिल – 90 Lakhs।

मोदी जी – 90 Lakhs।

मयूर पाटिल – हाँ जी !

मोदी जी – और उससे आपका काम चल गया।

मयूर पाटिल – हाँ अभी तो चालू हो गया है। Processes में हैं।

मोदी जी – आप कितने दोस्त मिल करके कर रहें हैं ? ये सब !

मयूर पाटिल – हम लोग चार लोग हैं सर।

मोदी जी – और चारों पहले साथ में ही पढ़ते थे और उसी में से आपको एक विचार आया आगे बढ़ने का।

मयूर पाटिल – हाँ जी ! हाँ जी ! हम college में ही थे। और college में हम लोगों ने ये सब सोचा और ये मेरा idea था कि मैं मेरा motorcycle का at least pollution कम हो जाए और mileage बढ़ जाए।

मोदी जी – अच्छा pollution कम करते हैं, mileage बढ़ाते हैं तो average खर्च कितना बचता होगा ?

मयूर पाटिल – सर motorcycle पे हम लोगों ने test किया उसका mileage था 25 Kilometers per liter वो हम लोगों ने बढ़ा दिया 39 Kilometers per liter तो करीब-करीब 14 किलोमीटर का फायदा हुआ और उसमें से 40 प्रतिशत का Carbon emissions कम हो गया। और जब buses पे किया Regional transport corporation ने तो वहाँ पे 10 प्रतिशत Fuel efficiency increase हुआ और उसमें भी 35-40 percent emission कम हो गया।

मोदी जी – मयूर मुझे बहुत अच्छा लगा आपसे बात करके और आपके साथियों को भी मेरी तरफ से बधाई दीजिये कि College life में खुद की जो समस्या थी उस समस्या का समाधान भी आपने खोजा और अब उस समाधान में से जो रास्ता चुना उसने पर्यावरण की समस्या को address करने के लिए आपने बीड़ा उठाया। और ये हमारे देश के युवाओं का ये सामर्थ्य ही है कि कोई भी बड़ी चुनौती उठा लेते हैं और रास्ते खोज रहें हैं। मेरी तरफ से आपको बहुत शुभकामनाएँ हैं। बहुत –बहुत धन्यवाद।

मयूर पाटिल – Thank You Sir ! Thank You !

साथियो, कुछ सालों पहले यदि कोई कहता था कि वो business करना चाहता है या एक कोई नई कंपनी शुरू करना चाहता है, तब, परिवार के बड़े-बुजुर्ग का जवाब होता था कि – “तुम नौकरी क्यों नहीं करना चाहते, नौकरी करो ना भाई। अरे नौकरी में security होती है salary होती है। झंझट भी कम होती है। लेकिन, आज यदि कोई अपनी कंपनी शुरू करना चाहता है तो उसके आस-पास के सभी लोग बहुत उत्साहित होते हैं और इसमें उसका पूरा support भी करते हैं। साथियो भारत की growth story का यह turning point है, जहाँ अब लोग सिर्फ Job seekers बनने का सपना नहीं देख रहे बल्कि job creators भी बन रहे हैं। इससे विश्व मंच पर भारत की स्थिति और मज़बूत बनेगी।

मेरे प्यारे देशवासियो, आज ‘मन की बात’ में हमने अमृत महोत्सव की बात की। अमृतकाल में कैसे हमारे देशवासी नए-नए संकल्पों को पूरा कर रहे हैं, इसकी चर्चा की, और, साथ ही दिसम्बर महीने में सेना के शौर्य से जुड़े हुए अवसरों का भी जिक्र किया। दिसम्बर महीने में ही एक और बड़ा दिन हमारे सामने आता है जिससे हम प्रेरणा लेते हैं। ये दिन है, 6 दिसम्बर को बाबा साहब अम्बेडकर की पुण्यतिथि। बाबा साहब ने अपना पूरा जीवन देश और समाज के लिये अपने कर्तव्यों के निर्वहन के लिये समर्पित किया था। हम देशवासी ये कभी न भूलें कि हमारे संविधान की भी मूल भावना, हमारा संविधान हम सभी देशवासियो से अपने-अपने कर्तव्यों के निर्वहन की अपेक्षा करता है – तो आइये, हम भी संकल्प लें कि अमृत महोत्सव में हम कर्तव्यों को पूरी निष्ठा से निभाने का प्रयास करेंगे। यही बाबा साहब के लिये हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

साथियो अब हम दिसम्बर महीने में प्रवेश कर रहे हैं, स्वाभाविक है अगली ‘मन की बात’ 2021 की इस वर्ष की आखिरी ‘मन की बात’ होगी। 2022 में फिर से यात्रा शुरू करेंगे और मैं हाँ आपसे ढ़ेर सारे सुझावों की अपेक्षा करता ही रहता हूँ, करता रहूँगा। आप इस साल को कैसे विदा कर रहे हैं, नए साल में क्या कुछ करने वाले हैं, ये भी जरुर बताइये और हाँ ये कभी मत भूलना कोरोना अभी गया नहीं है। सावधानी बरतना हम सब की जिम्मेवारी है।

बहुत-बहुत धन्यवाद।