अभी बड़े विस्तार से बताया गया कि मैं गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में कई वर्षों तक काम करके, अब भारत के प्रधानमंत्री के रूप में कार्यभार संभाला है। लेकिन इसमें ये सबसे बड़ी महत्वपूर्ण बात यह है कि गुजरात में काम करते समय मेरा सबसे अधिक संबंध जापान के इंडस्ट्रियल हाउस से हुआ, जापान के बिजनेस ग्रुप के साथ हुआ। पिछले 6-7 साल में शायद ही कोई ऐसा सप्ताह होगा, जब की जापान का डेलिगेशन गुजरात में न आया हो और इस संबंधों के कारण शासन में बैठे हुए लोगों का दृष्टिकोण कैसा होना चाहिए, ईज़ आफ बिजनेस के लिए इनीशिएटिव कौन से होने चाहिए? सिम्पलिफिकेशन ऑफ पालिसीज, इसके लिए कौन से कदम महत्वपूर्ण होते हैं, इन बातों को मैं सामान्य रूप से तो जानने लगा हूँ लेकिन साथ-साथ स्पेसिफिक जापान के लिए रिक्वायरमेंट क्या है, उसको भी मैं समझने लगा हूँ।
मैं जब गुजरात का मुख्यमंत्री था, हमारे यहां गुजरात में गोल्फ क्या होता है, गोल्फ कोर्स क्या होता है, कुछ पता नहीं था। लेकिन, जब से जापान का डेलीगेशन आना हुआ, तो हमें लगा कि एक सरकार के नाते, बिजनेस के नाते, शायद मेरे एजेंडा में यह होगा नहीं। लेकिन एक बिजनेस के नाते जापान को फेसिलिटेट करना है तो और चीजों के साथ मुझे इसकी इस बारीकी का भी ध्यान रखना होगा और आज मैं गर्व से कह रहा हूं कि मेरे गुजरात में वर्ल्ड क्लास गोल्फ कोर्सेस बना दिए हैं। ये इस बात का सबूत है कि एक प्रो-एक्टिव गवर्नमेंट, शासन और इंवेस्टर के बीच में कैसा तालमेल होना चाहिए, कितनी बारीकी से देखना चाहिए, इसको मैं भली-भांति समझता हूं।
मेरे लिए खुशी की यह भी बात है कि मैं पहले भी जापान आया हूं। आप सबों ने मेरा स्वागत-सम्मान मुख्यमंत्री था, तब भी किया। जापान सरकार ने भी बहुत किया। जापान के लोगों के बीच में, मोदी कौन है और गुजरात में क्या करता है? इसकी बात मैंने जितनी बताई है, उससे ज्यादा जापान के जो लोग गुजरात से जुड़े हुए हैं, उन्होंने बताई है और इस कार्य में जो लोग गुजरात एक्सपेरीमेंट को जानते हैं, उनके मन में, जब मैं भारत का प्रधानमंत्री बना हूं, तो आशाएं बहुत ज्यादा होना स्वाभाविक है। इतना ही नहीं, ज्यादा अपेक्षा भी हैं, और जल्दी से सारी बातें हो, यह भी अपेक्षा है।
मैं आपको आज विश्वास दिलाने आया हूं कि पिछले 100 दिन के मेरे कार्यकाल को अगर देखा जाए। मैं राष्ट्रीय राजनीति में नया था, इतने बड़े पद के लिए, मैं उस प्रोसेस में कभी रहा नहीं था। मैं छोटे राज्य से आया। इन सारी मर्यादाओं के बावजूद भी 100 दिन के भीतर-भीतर जो इनीशिएटिव हमने लिए हैं, एक के बाद एक जो कदम हमने उठाएं हैं, उसके परिणाम आज साफ नज़र आ रहे हैं। हम लोग जापान में जो मैनेजमेंट सिस्टम है, उसके रिफार्म में, ‘करजाई सिस्टम’ को बड़ा महत्व देते हैं। आपको जान कर के खुशी होगी, मैंने आते ही, मेरे पीएमओ को और इफीशिएंट बनाने के लिए, और प्रोडक्टिव बनाने के लिए, ‘करजाई सिस्टम’ से कंसल्ट करके उसे मैंने इंडक्ट किया है और आलरेडी मेरे यहां पिछले तीन महीने से भिन्न-भिन्न डिपार्टमेंट की ट्रेनिंग चल रही है। जापान का जो एफिसिएंसी लेवल है, वह एटलिस्ट शुरू में, मेरे पीएमओ में कैसे आए, उस पर मैं लगातार तीन महीने से काम कर रहा हूं। आपकी एक टीम मेरे यहां काम कर रही है।
इससे आपको ध्यान में आएगा, कि गुड गवर्नेंस यह मेरी प्रोयोरिटी है। और जब मैं गुड गवर्नेंस कहता हूं तब आखिरकर इज ऑफ बिजनेस के लिए पहली शुरूआत क्या होती है, यही तो होती है। कोई भी कंपनी आए तो उसको सिंगल विंडो क्लियरेंस की अपेक्षा रहती है। सिंगल विंडो क्लियरेंस अल्टीमेटली इज ए मैटर आफ गुड गवर्नेंस। इसलिए हमने गुड गवर्नेंस को बल दिया है। उसी प्रकार से प्रोसेस क्विक कैसे हो? ऑनलाइन प्रोसेस को बल कैसे मिले? गवर्नेंस में टेक्नोलोजी को इंपोर्टेंस कैसे बढ़े, उस पर हमने बल दिया है। कई ऐसे पेंडिंग सवाल, मुझे याद है जब मैं 2012 में यहां आया तो मेरे सामने कुछ बातें रखी गई थी। तब तो मेरे कार्यक्षेत्र में वह विषय नहीं था, तब भी मुझसे अपेक्षाएं की जाती थी, मोदी जी ये करिये। लेकिन वो मुझसे ज्यादा भारत सरकार से संबंधित थे। लेकिन शायद आप लोगों को कुछ अंदाजा होगा, इसी वर्ष 2012 से ही मुझे लिस्ट देना शुरू कर दिया था।
आप चाहते थे, एक बैंक की ओपनिंग हमारे यहां अहमदाबाद में हो जाए, मैंने आते ही पहला काम वो कर दिया। मैंने उस बैंक के लिए परमिशन दे दी। ‘रियल अर्थ’ के लिए कई दिनों से चर्चा चल रही थी। वह काम पूरा हो गया। ऐसे कई डिसीजन एक के बाद एक। जापानीज बैंकों का भारत में और ब्रांचेज खोलने की अनुमति आल रेडी हमने दे दी। यानी एक के बाद एक निर्णय इतनी तेजी से हो रहे हैं ।अल्टीमेटली मेरा ये ही इंप्रेशन है,क्योंकि बीइंग ए गुजराती, मेरे ब्लड में कामर्स है। जैसे ब्लड में मनी होता है और इसलिए मेरा इन चीजों को समझना स्वाभाविक है। मैं नहीं मानता हूं कि बिजनेसमैन को बहुत ज्यादा कन्सैशन चाहिए। मैं ये समझता हूं कि बिजनेसमैन को ग्रो करने के लिए प्रोपर इन्वायरमेंट चाहिए। और इन्वायरमेंट प्रोवाइड करना, ये सिस्टम की जिम्मेवारी है, शासन की जिम्मेवारी है, पालिसीमेकर्स की जिम्मेवारी है। एक बार सही पालिसी मेकिंग का फ्रेमवर्क बन जाता है, तो चीजें अपने आप चलती हैं।
कभी-कभार डिले होने का एक कारण यह होता है कि हम नीचे के तबके के अधिकारियों पर चीजें छोड़ देते हैं। अगर हम पालिसी ड्रीवन स्टेट चलाते हैं, तो निर्णय करने में नीचे कोई भी झिझक नहीं रहती। छोटे से छोटा व्यक्ति भी आराम से डिसीजन ले सकता है। इसलिए हमने प्रायोरिटी दी है, पालिसी ड्रीवन स्टेट गवर्नेंस चलाने की। अगर पालिसी ड्रीवन स्टेट होता है तो डिसक्रिमीनेशन का स्कोप नहीं रहता है। पहले आप, पहले आप वाला मामला नहीं रहता है। और उसके कारण हर एक को समान न्याय मिलता है। हर एक को समान अवसर मिलता है और उस बात पर भी हमने बल दिया है।
अभी हमारी सरकार को तीन महीने हुए है। आप व्यापार जगत के लोग है तो आप जानते हैं ग्लोबल इकोनोमी, और ग्लोबल इकोनोमी का इंपेक्ट क्या होता है और किस नेशन की इकोनोमी कैसे चल रही है। पिछला एक दशक, हमारा कठिनाइयों से गुजरा है। मैं उसके विवाद में जाने के लिए इस फोरम का उपयोग नहीं करना चाहता हूं। लेकिन पहले क्वार्टर में 5.7 प्रतिशत के ग्रोथ के साथ हमने एक बहुत बड़ा जम्प लगाया है। इसने एक बहुत बड़ा विश्वास पैदा किया है। क्योंकि हम 4.4- 4.5- 4.6 के आस-पास लुढ़कते रहते थे। और एक निराशा का माहौल था। इससे बहुत बड़ा बदलाव आता है।
आप जानते हैं, ‘गो- नो गो’, यह एक ऐसी स्थिति होती है जो किसी को भी डिसीजन लेने के लिए उलझन में डाल देती है। जब जनता का क्लियर कट मैंडेट होता है, और एक खुशनसीबी है, जापान और भारत के बीच कि जापान में भी बहुत अरसे के बाद एक स्पष्ट बहुमत के साथ, पीपल्स मैंडेट के साथ एक स्टेबल गवर्नमेंट आई है। लोअर हाउस, अपर हाउस दोनों में, एक स्टेबल गवर्नमेंट आई है। भारत में भी करीब 30 साल के बाद एक पार्टी की पूर्ण बहुमत की सरकार आई है। पूर्ण बहुमत की सरकार आने के कारण दो चीजें साफ बनती हैं। एक, हमारी अकाउंटिबिलिटी बहुत ज्यादा बढ़ जाती है। हमारी रिस्पांसिबिलिटी और ज्यादा बढ़ जाती हैं। ये दो चीजें ऐसी है जो हमारे काम करने के की जिम्मेवारी को भी बढ़ाती है प्रेरणा भी देती है, गति भी देती है। ये जो पोलिटिकल स्टेबिलिटी की सिचुएशन दोनों कंट्री में खड़ी हुई है, वो आगे वाले दिनों में बहुत बड़ी उपकारक होने वाली है, ये मैं साफ मानता हूं।
मैं और एक विषय पर जाना चाहता हूं। आप जानते हैं, भारत दुनिया का सबसे युवा देश है। 65 परसेंट आफ पोपुलेशन बिलो थर्टी एज ग्रुप की है। 2020 में पूरे विश्व को जो वर्क फोर्स की जरूरत है, अभी से मैपिंग करके, ग्लोबल वर्क फोर्स की जो रिक्वायरमेंट है, उसकी पूर्ति करने के लिए हम स्किल डेवलपमेंट पे बल देना चाहते हैं, ताकि 2020 में हम ग्लोगल वर्क फोर्स रिक्वायरमेंट को मीट करने में भारत बहुत बड़ी भूमिका निभा सकता है। लेकिन हम स्किल डेवलपमेंट जापान के तर्ज पर करना चाहते हैं, जहां क्वालिटी, जीरो डिफेक्ट, इफीशिएंसी, डिसिप्लिन, इन सारे विषयों में हम कोई कभी न बरतें। मैं मानता हूं, जापान हमें इसमें बहुत बड़ी मदद कर सकता है। मैं जापान के गवर्नमेंट के जिन लोगों से मिलता हूं, मैं उनसे बात कर रहा हूं,मुझे उस स्किल डेवलपेंटमेंट के लेवल पे जाना है जो ग्लोबल रिक्वायरमेंट के लेवल पे करें। हम ग्लोबल रिक्वायरमेंट की मैपिंग भी करना चाहते हैं और एकार्डिंग टू देट, हम लोग हमारे यहां स्किल डेवलपमेंट पे फोकस करना चाहते हैं।
उसी प्रकार से, जापान के साथ मिल करके हम रिसर्च के क्षेत्र में आगे बढ़ना चाहते हैं। मानव स्वभाव ऐसा है, कि निरंतर रिसर्च अनिवार्य होती है। देयर इज नो इंड ऑफ दि रोड, रिसर्च के क्षेत्र में। और ये अगर करना है तो दुनिया में इस प्रकार की जो इन्टेलक्चुअल प्रॉपर्टी है, उसे आगे बढ़ाने में कौन कितना मदद कर सकता है। भारत इस प्रवाह में जुड़ना चाहता है। वहां भी एक बहुत बड़ा स्कोप है। 125 करोड़ की जनसंख्या। वहां भी एक अर्ज पैदा हुई है। वे भी अपनी क्वालिटी ऑफ लाइफ में चेंज चाहते हैं। जब 125 करोड़ लोग क्वालिटी ऑफ लाइफ में चेंज चाहते हैं तो ये अर्ज भीतर से उठती है तो हम कल्पना कर सकते हैं कि रिक्वारमेंट भी कितनी बड़ी होगी।
अगर हम एक एनर्जी सेक्टर ले लें, आज क्लीन एनर्जी हमारी सबसे बड़ी रिक्वायरमेंट है। क्योंकि हम कोई हाइड्रो-कार्बन रिच कंट्री नहीं हैं। हम प्रकृति से, एक्सपलाइटेशन ऑफ नेचर में विश्वास नहीं करते हैं। हम एन्वायरमेंट फ्रैंडली डेवलपमेंट में विश्वास करते हैं। और इसीलिए हमारे लिए बहुत जरूरी है कि हम क्लीन एनर्जी के क्षेत्र में आगे बढ़े। और उसमें जापान से हम जितना सहयोग कर सकते, जितना जापान का हमें सहयोग मिलेगा, हम ग्लोबली बहुत बड़ी सेवा कर सकते हैं। क्योंकि सवा सौ करोड़ देशवासियों का एनर्जी कंजम्पशन की तुलना में, उनकी क्लीन एनर्जी से ग्लोबल वार्मिंग को बचाने में भी उनकी मदद होना बहुत स्वाभाविक है।
हम इन्फ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में, अभी बजट में हमने काफी इनिशिएटिव लिए हैं। रेलवे में हमने 100 पर्सेन्ट एफडीआई के लिए बहुत हिम्मत का निर्णय किया है। डिफेंस में हमने 49 पर्सेन्ट का बहुत बड़ा महत्वपूर्ण निर्णय किया है। इन्फ्रास्ट्रक्चर में हमने 100 पर्सेन्ट एएडीआई की बात कही है और इसके लिए जो भी आवश्यक है उन आवश्यक कानूनी व्यवस्थाओं में परिवर्तन लाना होगा। नियमों में परिवर्तन लाना होगा। एक के बाद एक हम कर रहे हैं। मैं मानता हूं कि इसका लाभ भी आने वाले दिनों में मिलने वाला है।
मैं चाहता हूं अगर आप गुजरात एक्सपीरियंस को अपना एक पैरामीटर मानते हैं तो मैं आपसे आग्रह करूंगा कि आने वाले दिनों में भारत में भी आपको वही रिस्पान्स, वही सुविधाएं, वही गति और वही परिणामकारी पस्थितियां मिलेंगी। ये मैं जापान के सभी उद्योग जगत के मित्रों को विश्वास दिलाने के लिए आया हूं। मैं यह भी मानता हूं कि भारत और जापान में आर्थिक समन्वय का बनना, वो क्या हमारी बैलेंस शीट में इजाफा करने के लिए है? क्या हमारा बैंक बैलेंस बढ़े, इसके लिए है? या हमारी कंपनी का बड़ा वोल्यूम है इसलिए हमारी ऊंचाई बढ़े, ये है? मैं मानता हूं कि भारत और जापान का संबंध इससे भी कही ज्यादा और है।
इस बात में ना आप में से किसी को शंका है ना मुझे कोई शक है और ना ही ग्लोबल कम्युनिटी को शक है कि 21वीं सदी एशिया की सदी है। ये सारी दुनिया मानती है। उसमें कोई दुविधा नहीं है। 21वीं सदी एशिया की है ये सारी दुनिया मानती है। लेकिन मेरे मन में सवाल दूसरा है और सवाल ये है कि 21वीं सदी एशिया की हो, लेकिन 21वीं सदी कैसी हो, किस की हो इसको तो जवाब तो मिल चुका है, कैसी हो इसका जवाब हम लोगों को देना है। मैं यह मानता हूं कि 21वीं सदी कैसी हो, ये उस बात पर निर्भर करता है कि भारत और जापान के संबंध कितने गहरे बनते है, कितने प्रोग्रेसिव हैं। पीस एंड प्रोग्रेस के लिए कितना कमिटमेंट है और भारत और जापान के संबंध पहले एशिया पर और बाद में ग्लोबली किस पर प्रकार का इम्पेक्ट क्रिएट करते हैं, उस पर निर्भर करता है। इसलिए 21वीं सदी की शांति के लिए, 21वीं सदी की प्रगति के लिए, 21वीं सदी के जन सामान्य मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए, भारत और जापान की बहुत बड़ी जिम्मेवारी है और किसी न किसी कारण से उन जिम्मेवारियों को निभाने के लिए जन सामान्य ने बहुत बड़ा निर्णय किया है, पॉलिटिकल स्टेबिलिटी का। अब दायित्व उन चुनी हुई सरकारों का है। उन दो देशों के पालिसी मेकर्स का है, ओपीनियन मेकर्स का है। इंडस्ट्रियल और फाइनेंशियल वर्ल्ड के लीडर्स का है। और ये यदि हम कर पाते हैं तो हम आने वाले दिनों में किस प्रकार से विश्व को जाना है तो उसका रास्ता तय कर सकते हैं।
दुनिया दो धाराओं में बंटी हुई है। एक, विस्तारवाद की धारा है और दूसरी विकासवाद की धारा है। हमें तय करना है विश्व को विस्तारवाद के चंगुल में फंसने देना है या विश्व को विकासवाद के मार्ग पर जा करके, नई ऊंचाइयों पर जा करके नई ऊंचाइयों को पाने के अवसर पैदा करना है। जो बुद्ध के रास्ते पर चलते हैं जो विकासवाद में विश्वास करते हैं, वह शांति और प्रगति की गारंटी लेकर के आते हैं। लेकिन आज हम चारों तरफ देख रहे हैं कि 18वीं सदी की जो स्थिति थी, वो विस्तारवाद नजर आ रहा है। किसी देश में एन्क्रोचमेंन्ट करना, कहीं समुद्र में घुस जाना, कभी किसी देश के अंदर जाकर कब्जा करना। ये विस्तारवाद कभी भी मानव जाति का कल्याण 21वीं सदी में नहीं कर सकता है। विकासवाद ही अनिवार्य है और मैं मानता हूं कि 21वीं सदी में विश्व का नेतृत्व यदि एशिया को करना है तो भारत और जापान ने मिलकर विकासवाद की गरिमा को और ऊंचाई पर ले जाना पड़ेगा। अगर इसको करना है तो मैं चाहूंगा कि इन्ड्रस्ट्रियल वर्ल्ड हो, फाइनेंसियल वर्ल्ड हो, बिजनेस सर्कल हो, हमारे इंटरलेक्चुअल फील्ड के लोग हों। हम सबको मिलकर करें, भारत और जापान की एक वैश्विक जिम्मेदारी है। ये सिर्फ भारत की भलाई के लिए कुछ करे या जापान की भलाई के लिए कुछ करें, इस कंपनी की भलाई के लिए कुछ करे या उस कंपनी की भलाई के लिए कुछ करें, यहां तक का सीमित दायरा मिट चुका है, हम उससे बड़ी जिम्मेदारियों के साथ जुड़े हुए हैं।
मुझे विश्वास है कि मैं ऐसे महत्वपूर्ण लोगों के बीच मैं खड़ा हूं, जो एक प्रकार से, दुनिया की इकोनोमी में बहुत बड़ा ड्राइविंग फोर्स, इस कमरे में बैठे हैं, जो विश्व की इकोनोमी को दिशा देने वाले लोग हैं। विश्व की इकोनोमी में प्रभुत्व पैदा करने वाले लोग मेरे सामने बैठे हैं। इतने बड़े सामर्थवान लोगों के बीच में मैं आज ऐसी बात कर रहा हूं, जो मानव कल्याण के लिए है, विश्व शांति के लिए है, विश्व के गरीबों की प्रगति के लिए है। और उस एक महान दायित्व को पूर्ण करने के लिए भारत अपनी भूमिका निभाना चाहता है। नई सरकार आवश्यक सभी रिफार्म करते हुए आगे बढ़ना चाहता है।
मैं जापान के उद्योगकार मित्रों से एक और भी बात बताना चाहता हूं। हमने तय किया है डायरेक्टली पीएमओ के अंडर में, एक जापान प्लस, इस भूमिका से एक स्पेशियल मैनेजमेंट टीम में क्रिएट करने जा रहा हूं। जो एबसेल्यूटली जापान को फेसिलिटेट करने के लिए डेडिकेटिड होगी और उसके कारण उनकी सुविधा बढ़ेगी। और एट दि सेम टाइम, हमारे यहां जो इन्डस्ट्रियल कामों को देखने वाली जो टीम है, उसके साथ हमारी टीम में, मैं जापान जो दो लोगों को पसंद करे उस टीम में मैं जोड़ना चाहता हूं। जो परमानेंट उसके साथ बैठेंगे, जो आपकी बात को बहुत आसानी से समझ पायेंगे और हमारे निर्णय प्रक्रिया के हिस्से होंगे। ये एक ऐसी सुविधा होगी जिसके कारण ‘ईज़ आफ बिजनेस’ है, ‘ईज़ फोर जापान’ भी हो जाएगा। इस प्रकार से एक स्पेशल इनोसिएटिव भी लेने का हमने निर्णय लिया है। मुझे आप सबके बीच आने का अवसर मिला, आपने समय निकाला। आपका बहुत-बहुत आभारी हूं।
भारत से मेरे साथ एक बहुत ही बड़ा डेलीगेशन आया है। आप लोग तो परिचित होंगे, कोई ना कोई से परिचित होगा, लेकिन सब लोग सबसे परिचित नहीं होंगे। मैं कह सकता हूं कि हिन्दुस्तान का इन्डस्ट्रियल वर्ल्ड का जो मेरा ‘हू इज हू’ है, वो आज यहां इस कमरे में हैं। मैं चाहूंगा कि आप लोग उनसे बाद में मिलना चाहेंगे तो मैं एक बार उनसे प्रार्थना करूंगा कि अगर हमारे लोग एक बार अपनी जगह पर खड़े हो जायें, भारत से आये हुए मेरे सब साथी। तो और लोगों को ध्यान में रहेगा ताकि हाथ मिलाना उनको बात करना उनको सबको सुविधा रहेगी। ये बहुत ही हैवीवेट, मेरे देश की टीम है। मुझे भी कभी मिलना है, तो मुझे भी उनसे समय लेना पड़े, इतने बड़े लोग हैं।
मैं इनका भी आभारी हूं कि मेरे साथ वो आये हैं और भारत की प्रगति के एक महत्वपूर्ण वो हिस्से हैं। वी आर पार्टनर। हम सरकार और वो अलग ऐसी भूमिका हमें मंजूर नहीं। हम सभी एक पार्टनर है। पार्टनर रूप से आगे बढ़ा रहे हैं। मैं चाहता हूं कि जापान और भारत पार्टनर बने। हम मिलकर एशिया के लिए और एशिया के माध्यम से विश्व के लिए विकास के मार्ग पर आगे बढ़े।
इसी अपेक्षा के साथ फिर आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।